Quick Summary
“वन नेशन वन इलेक्शन” देश भर में सभी चुनाव – लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, और यदि संभव हो तो स्थानीय निकायों के चुनाव – एक ही समय पर कराए जाएं।भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, अपनी विशाल और विविध जनसंख्या के लिए नियमित चुनाव आयोजित करने की चुनौती का सामना करता है। हाल के वर्षों में, “वन नेशन वन इलेक्शन” या “एक देश एक चुनाव” की अवधारणा ने राजनीतिक और सार्वजनिक चर्चा में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। यह विचार लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराने का प्रस्ताव करता है, जिससे चुनाव प्रक्रिया को अधिक कुशल और किफायती बनाया जा सके।
इस लेख में, हम वन नेशन वन इलेक्शन की अवधारणा, इसके संभावित लाभों, और इसके कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों की गहन जांच करेंगे। साथ ही, हम भारतीय चुनाव आयोग की भूमिका और देश की वर्तमान चुनाव प्रणाली पर भी प्रकाश डालेंगे।
वन नेशन वन इलेक्शन का मूल विचार यह है कि देश भर में सभी चुनाव – लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, और यदि संभव हो तो स्थानीय निकायों के चुनाव – एक ही समय पर कराए जाएं। इसे राष्ट्रीय चुनाव भी कहा जाता है, इसका उद्देश्य है चुनाव प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना, खर्च को कम करना, और शासन की निरंतरता सुनिश्चित करना।
वन नेशन वन इलेक्शन भारतीय चुनाव की यह अवधारणा भारतीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रस्ताव करती है। ये राष्ट्रीय चुनाव व्यवस्था जहां एक ओर कई लाभ प्रदान कर सकती है, वहीं इसके कार्यान्वयन में अनेक चुनौतियां भी हैं। इस विचार पर व्यापक चर्चा और विश्लेषण की आवश्यकता है ताकि इसके सभी पहलुओं को समझा जा सके और एक सुविचारित निर्णय लिया जा सके।
एक देश एक चुनाव के लाभ की अवधारणा नई नहीं है। वास्तव में, भारत में स्वतंत्रता के बाद के पहले दो दशकों में, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के भारतीय चुनाव एक साथ ही होते थे। यह व्यवस्था 1967 तक चली, जब कुछ राज्य विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण यह चक्र टूट गया।
2000 के दशक की शुरुआत में, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इस विचार को फिर से उठाया। तब से, यह विषय समय-समय पर राजनीतिक और शैक्षणिक चर्चा का केंद्र रहा है। वर्तमान में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने इस विचार को फिर से प्राथमिकता दी है, जिससे इस पर राष्ट्रव्यापी बहस छिड़ गई है।
भारतीय चुनाव प्रक्रिया को समझने के लिए, यह आवश्यक है कि हम भारत निर्वाचन आयोग (इलेक्शन कमिशन )की भूमिका और कार्यों को समझें।
भारत निर्वाचन आयोग, जिसे आमतौर पर चुनाव आयोग या इलेक्शन कमिशन के नाम से जाना जाता है, एक स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण है जो भारत में चुनावों के संचालन के लिए जिम्मेदार है। यह संस्था भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत 25 जनवरी 1950 को स्थापित की गई थी।
चुनाव आयोग यानी की इलेक्शन कमिशन के प्रमुख कार्य हैं:
चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता भारतीय लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। साथ ही इलेक्शन कमिशन ये सुनिश्चित करता है कि चुनाव स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से आयोजित किए जाएं।
भारत निर्वाचन आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते हैं। इन्हें राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है और इनका कार्यकाल छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पह m ले हो, होता है।
आयोग के पास व्यापक शक्तियां हैं जो इसे चुनाव प्रक्रिया के दौरान किसी भी अनियमितता या उल्लंघन से निपटने में सक्षम बनाती हैं। यह राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों पर प्रतिबंध लगा सकता है, चुनाव रद्द कर सकता है, या फिर से मतदान का आदेश दे सकता है।
भारत निर्वाचन आयोग की प्रभावशीलता और निष्पक्षता ने इसे वैश्विक स्तर पर सम्मान दिलाया है, और कई अन्य देशों ने अपने चुनाव प्रबंधन संस्थानों के लिए इसे एक मॉडल के रूप में अपनाया है।
भारतीय चुनाव प्रक्रिया एक जटिल और व्यापक प्रयास है, जिसमें राष्ट्रीय चुनाव के कई चरण शामिल हैं। इस प्रक्रिया को समझना वन नेशन वन इलेक्शन की अवधारणा के निहितार्थों को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।

इस राष्ट्रीय चुनाव की पूरी प्रक्रिया में कई महीने लग सकते हैं, विशेष रूप से बड़े राज्यों या लोकसभा चुनावों के मामले में, जहां मतदान कई चरणों में होता है।
एक देश एक चुनाव के लाभ के समर्थक इस अवधारणा के कई संभावित लाभों का उल्लेख करते हैं। आइए इनमें से कुछ प्रमुख लाभों पर विचार करें।

हालांकि एक देश एक चुनाव के लाभ, लेकिन इसके कार्यान्वयन में कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियाँ भी हैं जिन पर ध्यान देना आवश्यक है।
“वन नेशन, वन इलेक्शन” विधेयक के लिए संयुक्त संसदीय समिति (JPC) का गठन एक महत्वपूर्ण कदम है। यह समिति समवर्ती चुनावों के प्रस्ताव पर विचार करेगी, जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक ही समय पर आयोजित किए जाने की योजना है। इस कदम का उद्देश्य चुनावों की प्रक्रिया को सरल और व्यवस्थित बनाना है।
इस JPC का गठन इस विचार को लागू करने के लिए किया गया है, ताकि इसके लिए संवैधानिक संशोधन, प्रशासनिक चुनौती और चुनावी प्रक्रिया में सुधार पर विचार किया जा सके। समिति समवर्ती चुनावों के फायदे, संभावनाओं और दुष्प्रभावों का अध्ययन करेगी।
समिति के प्रमुख सदस्य:
यह समिति विभिन्न पक्षों से जानकारी जुटाएगी, नेताओं और विशेषज्ञों से बातचीत करेगी और इसके बाद संसद में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी, जो समवर्ती चुनावों को लागू करने के तरीके पर आधारित होगी।
सितंबर 2023 में केंद्र सरकार ने “वन नेशन वन इलेक्शन”(one nation one election) की व्यवहारिकता पर विचार करने के लिए Ram Nath Kovind की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति (High-Level Committee – HLC) का गठन किया। इस समिति की रिपोर्ट इस विषय पर अब तक की सबसे विस्तृत और ठोस पहल मानी जाती है। समिति ने व्यापक स्तर पर विभिन्न हितधारकों की राय ली और एक चरणबद्ध कार्यान्वयन योजना प्रस्तुत की।
प्रमुख बिंदु जो रिपोर्ट में शामिल थे:
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
राजनीतिक करियर
केंद्रीय मंत्री के रूप में योगदान
विशेषताएं और पहचान
हाल की उपलब्धियाँ
“वन नेशन वन इलेक्शन” यानी “एक देश, एक चुनाव” का अर्थ है कि देश भर में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ एक ही समय पर कराए जाएं।
इस प्रणाली का उद्देश्य यह है कि भारत में हर कुछ महीनों में होने वाले अलग-अलग चुनावों को एक साथ आयोजित किया जाए, ताकि:
फिलहाल भारत में लोकसभा और विभिन्न राज्य विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिससे बार-बार आचार संहिता लागू होती है और सरकारी कामकाज प्रभावित होता है।
भारत एक विशाल लोकतांत्रिक देश है जहाँ हर वर्ष किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं। इन चुनावों में धन, समय और संसाधनों की अत्यधिक खपत होती है। ऐसे में “वन नेशन वन इलेक्शन” यानी “एक देश, एक चुनाव” की अवधारणा का महत्व बढ़ गया है। इस विचार के अंतर्गत पूरे देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की योजना बनाई गई है। यह पहल चुनाव प्रक्रिया को अधिक प्रभावी और कुशल बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है।
वन नेशन वन इलेक्शन की आवश्यकता
वर्तमान व्यवस्था में बार-बार चुनाव होने से न केवल सरकारी खजाने पर भार पड़ता है, बल्कि विकास कार्यों में भी रुकावट आती है। चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता लागू होने से योजनाओं की घोषणा, नई परियोजनाओं की शुरुआत और सरकारी कार्यों में अड़चनें आती हैं। इसके अलावा, सुरक्षा बलों, शिक्षकों और सरकारी कर्मियों को बार-बार चुनावी ड्यूटी में लगाया जाता है, जिससे शिक्षा और अन्य सेवाएं प्रभावित होती हैं। ऐसे में “वन नेशन वन इलेक्शन” व्यवस्था इन समस्याओं का समाधान प्रस्तुत कर सकती है।
लाभ
एक साथ चुनाव कराने से सबसे बड़ा लाभ आर्थिक रूप से होगा। बार-बार होने वाले चुनावों पर अरबों रुपये खर्च होते हैं, जो एक बार में चुनाव कराने से बचाए जा सकते हैं। साथ ही, प्रशासनिक मशीनरी की बार-बार चुनाव ड्यूटी से मुक्ति मिलेगी, जिससे उनकी नियमित जिम्मेदारियाँ सुचारू रूप से चलेंगी। इसके अलावा, बार-बार राजनीतिक प्रचार और रैलियों से जनता भी ऊब जाती है और मतदान प्रतिशत कम हो जाता है। एक बार में चुनाव होने से मतदान दर भी बढ़ सकती है।
चुनौतियाँ
हालाँकि यह विचार आकर्षक है, लेकिन इसके सामने कई व्यावहारिक चुनौतियाँ भी हैं। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि अलग-अलग राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल अलग-अलग समय पर समाप्त होता है। अगर किसी राज्य सरकार का कार्यकाल समय से पहले समाप्त हो जाए या अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाए तो फिर नए चुनाव और पूरे देश के साथ तालमेल बैठाना कठिन हो सकता है। इसके अलावा, संविधान में कई प्रावधानों में संशोधन करना होगा, जिसके लिए केंद्र और सभी राज्यों की सहमति आवश्यक होगी।
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वन नेशन वन इलेक्शन की अवधारणा भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण और दूरगामी प्रस्ताव है, जो आर्थिक लाभ, समय और संसाधनों की बचत, तथा राजनीतिक स्थिरता जैसे कई संभावित फायदे प्रदान करता है। हालांकि, इसके कार्यान्वयन में संवैधानिक संशोधन, लॉजिस्टिक चुनौतियाँ और राजनीतिक सहमति जैसी बड़ी बाधाएँ हैं। इस विचार को लागू करने से पहले सभी पहलुओं पर गहन विचार-विमर्श, व्यापक सहमति और सावधानीपूर्वक योजना बनाने की आवश्यकता है।
“वन नेशन, वन इलेक्शन” का मतलब है कि भारत में केंद्र और राज्य की सभी चुनाव एक साथ आयोजित किए जाएं। इसका उद्देश्य चुनावी खर्च को कम करना, चुनावी प्रक्रिया को सरल बनाना और प्रशासनिक बोझ को घटाना है।
“वन नेशन, वन इलेक्शन” के फायदे में चुनावी खर्च में कमी, प्रशासनिक बोझ में कमी, राजनीतिक स्थिरता, और चुनावी प्रक्रिया की सरलता शामिल है। इससे चुनावी ध्रुवीकरण और चुनावी आपाधापी को भी कम किया जा सकता है।
“वन नेशन, वन इलेक्शन” के नुकसान में राज्यों की चुनावी स्वतंत्रता में कमी, विभिन्न राज्यों के मुद्दों की उपेक्षा, और स्थानीय मुद्दों की अनदेखी शामिल हो सकती है। इससे राजनीतिक असंतुलन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जटिलता भी बढ़ सकती है।
भारत में “वन नेशन, वन इलेक्शन” को लागू करने की प्रमुख चुनौतियां हैं: विभिन्न राज्यों के चुनावी समय में असमंजस, राजनीतिक दलों की असहमति, संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता, और राज्य सरकारों की चुनावी स्वतंत्रता में हस्तक्षेप।
भारत में “वन नेशन, वन इलेक्शन” लागू करने के लिए निर्वाचन आयोग ने विचार-विमर्श शुरू किया है, जबकि संसद में संविधान संशोधन की संभावनाओं पर चर्चा हो रही है। इसके अलावा, राज्य सरकारों से सहमति प्राप्त करने की कोशिश की जा रही है।
“वन नेशन, वन इलेक्शन” की अवधारणा पहली बार 1999 में लॉ कमीशन की रिपोर्ट में सामने आई थी। इसके बाद इसे 2014 और 2019 के चुनाव घोषणापत्रों में भाजपा द्वारा प्रमुख रूप से उठाया गया।
जी हाँ, इसे लागू करने के लिए कई संविधानिक अनुच्छेदों में संशोधन की आवश्यकता होगी जैसे अनुच्छेद 83, 85, 172, 174 और 356। इसके अलावा चुनावों की तिथि समन्वयित करने के लिए विधायी सहमति भी ज़रूरी है।
Authored by, Aakriti Jain
Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.
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