भारत में विधान परिषद (Legislative Council) राज्य स्तर पर विधायिका की एक महत्वपूर्ण इकाई है, जिसे “ऊपरी सदन” के रूप में जाना जाता है। यह उन राज्यों में कार्यरत होती है जहाँ द्विसदनीय (Bicameral) व्यवस्था अपनाई गई है। भारत में फिलहाल केवल 6 राज्यों में विधान परिषद अस्तित्व में है, जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र। Vidhan Parishad Wale Rajya विधान परिषद का मुख्य कार्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों की समीक्षा करना और कानून निर्माण प्रक्रिया में संतुलन बनाना है। यह लेख आपको बताएगा कि किन राज्यों में विधान परिषद है, इसका गठन कैसे होता है, इसके कार्य क्या हैं, और विधानसभा से इसका क्या अंतर है।
(Vidhan parishad wale rajya)भारत का संसदीय ढांचा संघीय (Federal) प्रणाली पर आधारित है, जिसमें केंद्र और राज्यों दोनों के लिए अलग-अलग विधायी व्यवस्थाएँ होती हैं। भारत में संसद और राज्य विधानमंडल दो प्रकार की व्यवस्थाओं में काम करते हैं — द्विसदनीय (Bicameral) और एकसदनीय (Unicameral)।
बिंदु | लोकसभा / विधान सभा | राज्यसभा / विधान परिषद |
प्रकार | निचला सदन | उच्च सदन |
गठन | जनता द्वारा सीधे चुनाव | अप्रत्यक्ष चुनाव और नामांकन |
कार्यकाल | 5 वर्ष (या विघटन तक) | स्थायी निकाय, आंशिक सदस्य हर 2 साल में रिटायर |
शक्तियाँ | अधिक विधायी और वित्तीय शक्तियाँ | समीक्षा और सलाहकार भूमिका में |
विधान परिषद उन्हीं राज्यों में होती है जहाँ द्विसदनीय विधानमंडल की व्यवस्था है। फिलहाल भारत के कुछ ही राज्यों में विधान परिषद है, जिन्हें हम आगे विस्तार से जानेंगे।
भारत में कुछ राज्यों में द्विसदनीय व्यवस्था के अंतर्गत विधान सभा के साथ एक दूसरा सदन भी होता है, जिसे विधान परिषद (Legislative Council) कहते हैं। यह उच्च सदन होता है, जो नीतिगत चर्चाओं, विधेयकों की समीक्षा और परामर्शदात्री भूमिका निभाता है।
विधान परिषद एक स्थायी निकाय है, जो संविधान के अनुच्छेद 169 के अंतर्गत गठित किया जाता है। संविधान कहता है कि यदि कोई राज्य विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर केंद्र को सिफारिश भेजे, तो संसद को अधिकार है कि वह उस राज्य में विधान परिषद का गठन करे या उसे समाप्त करे।
संविधान का अनुच्छेद 169 – यह संसद को अधिकृत करता है कि वह राज्य की विधान परिषद के निर्माण या उन्मूलन के लिए कानून बनाए।
विधान परिषद का मुख्य उद्देश्य राज्य विधान सभा में पारित विधेयकों की गहन समीक्षा और नीतियों का परीक्षण करना होता है।
भारत में अधिकांश राज्यों में केवल विधान सभा (एकसदनीय व्यवस्था) होती है। लेकिन कुछ राज्यों ने द्विसदनीय विधानमंडल को अपनाया है, जिसमें एक उच्च सदन यानी विधान परिषद (Legislative Council) भी होता है।
भारत में विधान परिषद कितने राज्यों में है? वर्तमान समय (2025) में भारत के 6 राज्यों में विधान परिषद मौजूद है।
नीचे उन राज्यों की सूची दी गई है जहाँ विधान परिषद सक्रिय रूप से कार्यरत है:
1. उत्तर प्रदेश (UP Vidhan Parishad) | भारत में विधान परिषद कितने राज्यों में है?
2. बिहार (Bihar Vidhan Parishad) | भारत में विधान परिषद कितने राज्यों में है?
3. महाराष्ट्र | भारत में विधान परिषद कितने राज्यों में है?
4. कर्नाटक
5. तेलंगाना
6. आंध्र प्रदेश | भारत में विधान परिषद कितने राज्यों में है?
Up Vidhan Parishad wale rajya में उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा राज्य है, और यही कारण है कि यहाँ की विधायिका द्विसदनीय है। इसमें विधान सभा के साथ-साथ विधान परिषद (Legislative Council) भी कार्यरत है। UP Vidhan Parishad न केवल एक स्थायी उच्च सदन है, बल्कि यह राज्य की नीतियों और कानूनों की समीक्षा में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
UP विधान परिषद में कुल 100 सदस्य होते हैं। ये सदस्य अप्रत्यक्ष चुनाव और नामांकन के ज़रिए चुने जाते हैं। सदस्यता का वितरण निम्न प्रकार से होता है:
श्रेणी | सदस्य संख्या |
स्थानीय निकायों से निर्वाचित | 36 |
विधान सभा के सदस्य द्वारा निर्वाचित | 36 |
शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से | 8 |
स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से | 8 |
राज्यपाल द्वारा नामित | 12 |
कार्यकाल: विधान परिषद एक स्थायी सदन है। हर 2 वर्ष में 1/3 सदस्य रिटायर होते हैं और नए चुने जाते हैं।
चयन प्रक्रिया: सदस्य MLA, शिक्षक, स्नातक, स्थानीय निकायों और राज्यपाल द्वारा तय की गई प्रक्रिया से चुने जाते हैं। इसका उद्देश्य विविध क्षेत्रों की राय को विधान प्रक्रिया में शामिल करना होता है।
उत्तर प्रदेश विधान परिषद की भूमिका मुख्यतः विधायी प्रक्रिया की समीक्षा और राजनीतिक संतुलन बनाए रखने की होती है। इसमें कोई सरकार नहीं बनती, लेकिन यह विधान सभा द्वारा पारित विधेयकों की गहन समीक्षा करती है।
प्रमुख भूमिकाएँ:
नोट: UP Vidhan Parishad की सदस्यता सीधे जनता द्वारा नहीं बल्कि विशेष निर्वाचन क्षेत्रों और नामांकन के माध्यम से दी जाती है, जिससे यह अधिक विशेषज्ञता आधारित मंच बन जाता है।
बिहार विधान परिषद (Bihar Legislative Council) भारत के उन चुनिंदा राज्यों की विधान व्यवस्थाओं में से एक है जहाँ द्विसदनीय प्रणाली अपनाई गई है। यह परिषद राज्य की नीतियों की समीक्षा, विशेष वर्गों की भागीदारी और शिक्षा व समाज कल्याण से जुड़े मामलों में प्रभावशाली भूमिका निभाती है।
बिहार विधान परिषद की स्थापना 1936 में ब्रिटिश भारत के शासनकाल के दौरान की गई थी, जब बिहार को एक स्वतंत्र प्रांत का दर्जा मिला। यह देश की सबसे पुरानी विधान परिषदों में से एक है।
इसके गठन का उद्देश्य था – शिक्षा, स्थानीय निकाय, स्नातक व नामांकित वर्गों को विधान प्रक्रिया में प्रतिनिधित्व देना।
बिहार विधान परिषद का सामाजिक और शैक्षणिक महत्व बहुत गहरा है। यह विशेष रूप से उन वर्गों की आवाज़ बनती है जो सीधे चुनावी प्रक्रिया में पूरी तरह भाग नहीं ले पाते:
शिक्षा क्षेत्र में भूमिका:
सामाजिक क्षेत्र में भागीदारी:
विधान परिषद (Legislative Council) भारत के कुछ राज्यों का उच्च सदन है, जिसके सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं। इनका चुनाव विभिन्न वर्गों और कोटे के आधार पर होता है, जिससे विधान परिषद विशेषज्ञता और अनुभव का प्रतिनिधित्व करती है।
विधान परिषद के सदस्य निम्नलिखित कोटों से चुने जाते हैं:
कोटा/वर्ग | चयन प्रक्रिया | प्रतिशत (लगभग) |
विधान सभा सदस्य (MLAs) | विधायकों द्वारा चुनाव | 1/3 |
स्थानीय निकाय (नगर पालिका, पंचायत) | स्थानीय निकायों के निर्वाचित सदस्य | 1/3 |
शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र | माध्यमिक विद्यालय या उससे ऊपर पढ़ाने वाले शिक्षकों द्वारा | 1/12 |
स्नातक निर्वाचन क्षेत्र | स्नातक डिग्रीधारकों द्वारा चुनाव | 1/12 |
राज्यपाल द्वारा नामित | साहित्य, विज्ञान, कला, समाजसेवा आदि से | 1/6 |
वोटिंग अधिकार आम जनता को नहीं होता, बल्कि विशेष पात्रता रखने वाले लोग ही मतदान कर सकते हैं।
उदाहरण:
विधान परिषद (Legislative Council) राज्य की विधायी प्रक्रिया का उच्च सदन है। यह भले ही सीधे जनता द्वारा नहीं चुनी जाती, लेकिन इसकी भूमिका नीति निर्माण, कानून की समीक्षा और विशेषज्ञता आधारित विमर्श में बेहद महत्त्वपूर्ण होती है।
इसका अर्थ है कि विधान परिषद की भूमिका सलाहकार और पुनरीक्षण की होती है, जबकि अंतिम निर्णय का अधिकार विधानसभा के पास होता है।
विधान परिषद राज्य की विधायी प्रक्रिया में एक उच्च सदन की तरह कार्य करती है। इसकी संरचना, कार्य और उद्देश्य लोकतंत्र को अधिक समावेशी और विशेषज्ञता आधारित बनाने के लिए बनाए गए हैं। लेकिन इसके अस्तित्व को लेकर समय-समय पर सवाल भी उठते रहे हैं।
भारत का संविधान राज्यों को यह अधिकार देता है कि वे आवश्यकता महसूस होने पर अपनी विधान व्यवस्था को एकसदनीय से द्विसदनीय बना सकते हैं। यानी अगर कोई राज्य चाहे, तो वह विधान परिषद (Legislative Council) का गठन कर सकता है लेकिन इसके लिए एक संवैधानिक प्रक्रिया का पालन ज़रूरी होता है।
विधान परिषद बनाने या भंग करने की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 169 में वर्णित है:
भारत के कई राज्य समय-समय पर विधान परिषद के गठन की मांग उठा चुके हैं:
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वर्तमान में भारत के 6 राज्यों में विधान परिषद (Legislative Council) है। ये राज्य हैं:
उत्तर प्रदेश
बिहार
महाराष्ट्र
आंध्र प्रदेश
तेलंगाना
कर्नाटक
वर्तमान में भारत के सभी 28 राज्यों में विधानसभा (Legislative Assembly) है।
विधान परिषद राज्य की द्विसदनीय विधायिका का उच्च सदन होता है, जिसे राज्यसभा की तरह माना जाता है। यह स्थायी सदन होता है, जिसे भंग नहीं किया जा सकता।
विधान परिषद के सदस्य शिक्षक, स्नातक, स्थानीय निकायों और विधान सभा के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं, साथ ही कुछ सदस्य राज्यपाल द्वारा नामित किए जाते हैं।
भारत में विधान परिषद की शुरुआत 1935 के भारतीय शासन अधिनियम (Government of India Act 1935) के तहत हुई थी, लेकिन संविधान लागू होने के बाद इसका प्रावधान अनुच्छेद 169 में किया गया।
विधान परिषद एक स्थायी सदन होता है और इसे भंग नहीं किया जाता। इसके एक-तिहाई सदस्य हर दो साल में सेवानिवृत्त होते हैं और उनका कार्यकाल 6 वर्षों का होता है।
विधानसभा राज्य का निचला सदन है, जिसके सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं, जबकि विधान परिषद ऊपरी सदन है, जिसके सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं।
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Authored by, Amay Mathur | Senior Editor
Amay Mathur is a business news reporter at Chegg.com. He previously worked for PCMag, Business Insider, The Messenger, and ZDNET as a reporter and copyeditor. His areas of coverage encompass tech, business, strategy, finance, and even space. He is a Columbia University graduate.
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