Quick Summary
“हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को: …व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित कराने वाली, बन्धुता बढ़ाने के लिए, दृढ़ संकल्पित होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई॰ (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”
भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया था। यह भारत का सर्वोच्च कानून है और इसमें 25 भागों में 448 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां शामिल हैं। संविधान की प्रस्तावना(Samvidhan Prastavana) संविधान का एक प्रारंभिक भाग है जो इसके मूल्यों, उद्देश्यों और लक्ष्यों को निर्धारित करता है। यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है जो भारत की संवैधानिक व्यवस्था को समझने के लिए आवश्यक है। यहां हम संविधान की प्रस्तावना, samvidhan kisne likha tha और Samvidhan kab lagu hua इसके बारे में विस्तार से जानेंगे।
भारत के संविधान की प्रस्तावना संविधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह संविधान के उद्देश्यों, मूल्यों और दिशा-निर्देशों को संक्षेप में प्रस्तुत करती है। प्रस्तावना संविधान की आत्मा मानी जाती है और यह भारतीय राज्य के उद्देश्य, लक्ष्य और आदर्शों का परिचय देती है।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना हमारे लोकतांत्रिक राष्ट्र की आत्मा है। इसमें उन मूल आदर्शों और सिद्धांतों का उल्लेख है, जिन पर हमारा देश आधारित है। प्रस्तावना न केवल संविधान की प्रस्ताविक भूमिका निभाती है बल्कि भारत के लोकतांत्रिक चरित्र और मूल्यों को भी दर्शाती है। आइए विस्तार से जानते हैं प्रस्तावना के आदर्शों को—
भारत एक संप्रभु राष्ट्र है, अर्थात् यह किसी भी बाहरी शक्ति के अधीन नहीं है। अपने सभी आंतरिक और बाहरी निर्णय भारत स्वयं लेता है।
संविधान समाज में आर्थिक और सामाजिक समानता स्थापित करने पर बल देता है। समाजवाद का अर्थ है कि देश में धन का समान वितरण और सभी नागरिकों के लिए समान अवसर सुनिश्चित हों।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। इसका अर्थ है कि राज्य का कोई आधिकारिक धर्म नहीं है और सभी धर्मों को समान सम्मान दिया जाता है। प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म का पालन करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता प्राप्त है।
भारत में शासन की वास्तविक शक्ति जनता के हाथ में है। सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है और जनता के प्रति उत्तरदायी होती है।
भारत एक गणराज्य है। इसका अर्थ है कि राष्ट्राध्यक्ष (राष्ट्रपति) जनता द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है और यहाँ कोई वंशानुगत शासक नहीं होता।
भारतीय संविधान सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर न्याय सुनिश्चित करता है ताकि हर नागरिक को समान अधिकार और अवसर मिल सके।
नागरिकों को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और पूजा की स्वतंत्रता प्राप्त है। यह स्वतंत्रता लोकतंत्र को मजबूत बनाती है।
संविधान सभी नागरिकों के लिए कानून के समक्ष समानता और समान अवसर की गारंटी देता है।
भारतीय संविधान नागरिकों के बीच भाईचारे की भावना को बढ़ावा देता है ताकि देश की एकता और अखंडता बनी रहे।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना (Preamble) को विशेष रूप से किसी एक व्यक्ति ने नहीं लिखा, बल्कि यह संविधान सभा द्वारा सामूहिक रूप से तैयार की गई थी। हालांकि, डॉ. भीमराव आंबेडकर संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे और उन्होंने संविधान निर्माण में केंद्रीय भूमिका निभाई।

हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को:
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए,
तथा उन सब में,
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित कराने वाली, बन्धुता बढ़ाने के लिए,
दृढ़ संकल्पित होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई॰ (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
| मुख्य शब्दावली | अर्थ |
| संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न | इसका मतलब है कि भारत को पूर्ण रूप से स्वतंत्र और आत्मनिर्भर राज्य बनाना। |
| समाजवादी | समाजवाद का मतलब है, समाज में धन और संसाधनों का समान वितरण और सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना। |
| पंथनिरपेक्ष | इसका मतलब है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, यानी राज्य का कोई धर्म नहीं होगा और सभी धर्मों को समान सम्मान दिया जाएगा। |
| लोकतांत्रिक | यह भारत के लोकतांत्रिक स्वरूप को इंगीत करता है, जहां जनमत के द्वारा चुनी हुई सरकार का शासन चलता है। |
| गणतंत्र | गणतंत्र का अर्थ है एक ऐसा शासन व्यवस्था, जिसमें देश का प्रमुख (राष्ट्रपति या अन्य कोई) जनता द्वारा चुना जाता है और उसका कार्यकाल सीमित होता है। इसमें सर्वोच्च सत्ता जनता के हाथों में होती है, और सरकार को उनकी इच्छा और संविधान के अनुरूप काम करना होता है। |
| न्याय | सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि के लोगों के साथ व्यवहार में निष्पक्षता |
| स्वतंत्रता | विचार, विश्वास, आस्था और पूजा की अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध की अनुपस्थिति |
| समानता | स्थिति और अवसर के संदर्भ में किसी विशेष हेतु प्रावधानों की अनुपस्थिति |
| बन्धुत्व | देश की एकता और अखंडता के साथ भाईचारा |
Samvidhan kab lagu hua यह लगभग सभी को पता होता है, लेकिन भारतीय संविधान की प्रस्तावना का इतिहास संविधान सभा के विचार-विमर्श के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। प्रस्तावना सहित संविधान का मसौदा तैयार करने का कार्य डॉ. बी.आर. अंबेडकर की अध्यक्षता वाली मसौदा समिति द्वारा किया गया था। प्रस्तावना को अंतिम रूप से अपनाने से पहले कई संशोधनों से गुजरना पड़ा।
प्रस्तावना विभिन्न स्रोतों से प्रेरित है, जिसमें 13 दिसंबर, 1946 को संविधान सभा में जवाहरलाल नेहरू द्वारा पेश किया गया उद्देश्य प्रस्ताव भी शामिल है। यह न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के लिए भारतीय लोगों की आकांक्षाओं को दर्शाता है। प्रस्तावना को 26 नवंबर, 1949 को अपनाया गया था और यह 26 जनवरी, 1950 को भारत के संविधान के साथ लागू हुई थी।

अगर आप सोचते हैं कि Samvidhan kab lagu hua तो बता दे कि भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ था। इस दिन को भारत में गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो ब्रिटिश शासन से भारत के एक लोकतांत्रिक गणराज्य में परिवर्तन का प्रतीक है। इस दिन, संविधान ने भारत सरकार अधिनियम (1935) को देश के सर्वोच्च कानून के रूप में प्रतिस्थापित किया और भारत औपचारिक रूप से अपनी स्वयं की निर्वाचित सरकार तथा राज्य प्रमुख के साथ एक स्वतंत्र गणराज्य बन गया।
संविधान की प्रस्तावना का क्या महत्व है? यह संविधान के मूल विचार और भावना को दर्शाती है। इसका महत्व कई पहलुओं में है, जो मार्गदर्शन और उद्देश्यों को बताती है। यह भारत को एक स्वतंत्र, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश घोषित करती है, जो सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।
Samvidhan ki prastavana नागरिकों और संस्थाओं को संविधान के मूल्यों को बनाए रखने के लिए प्रेरित करती है। यह उन्हें लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय और समानता के महत्वपूर्ण सिद्धांतों की याद दिलाती है, जो भारतीय राज्य की नींव हैं। इसके अलावा, यह राष्ट्र की एकता और अखंडता की पुष्टि करके, भारत की विविध जनसंख्या के बीच अपनेपन और राष्ट्रीय पहचान की भावना को बढ़ावा देती है।
ऐतिहासिक केशवानंद भारती मामले (1973) में, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि संसद को संविधान के विभिन्न भागों में संशोधन करने का अधिकार है।लेकिन वह प्रस्तावना में परिलक्षित मूल संरचना या आवश्यक विशेषताओं को नहीं बदल सकती है।
संविधान सभा का प्राथमिक कार्य भारत के संविधान का मसौदा तैयार करना और उसे लागू करना था। संविधान सभा ने संविधान के प्रत्येक प्रावधान पर गहन वाद-विवाद और चर्चाएँ की। विचारधारा, भाषा, धर्म और क्षेत्र में मतभेदों के बावजूद, संविधान सभा के सदस्यों ने आम सहमति बनाने और परस्पर विरोधी हितों के समाधान की दिशा में काम किया।
संविधान सभा के कामकाज ने एक स्थायी विरासत छोड़ी, जिसने भारत के लोकतांत्रिक शासन और संवैधानिक सिद्धांतों की नींव रखी। इसका समावेशी और सहभागी दृष्टिकोण भविष्य की लोकतांत्रिक संस्थाओं के लिए एक मिसाल कायम करता है, जिसमें संवाद, आम सहमति बनाने और लोकतांत्रिक विचार-विमर्श के महत्व पर बल दिया गया है।
भारत के संविधान की प्रस्तावना(Samvidhan Prastavana) कई उद्देश्यों को पूरा करती है और महत्वपूर्ण महत्व रखती है। यह उन उद्देश्यों और लक्ष्यों को रेखांकित करती है जिन्हें संविधान प्राप्त करना चाहता है। यह भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करता है, जो उन मौलिक मूल्यों और सिद्धांतों पर प्रकाश डालता है जिन पर भारतीय राज्य आधारित है।
भारत के संविधान की प्रस्तावना(Samvidhan Prastavana) कई प्रमुख उद्देश्यों को पूरा करता है।
अगर आप जानना चाहते हैं कि संविधान की प्रस्तावना का क्या महत्व है, तो बता दे कि यह कई कारणों से सर्वोपरि महत्व रखता है। यह एक आधारभूत कानूनी दस्तावेज के रूप में कार्य करता है जो सरकार की संरचना, शक्तियों और कार्यों को स्थापित करता है। यह शासन के लिए रूपरेखा तैयार करता है, राज्य के विभिन्न अंगों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को परिभाषित करता है।
संविधान की प्रस्तावना का अर्थ भारतीय संविधान की मूलभूत विशेषताओं और लक्ष्यों को संक्षेप में प्रस्तुत करती है। इसमें लिखा है हम, भारत के लोग, भारत को एक संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने और उसके सभी नागरिकों को सुरक्षित करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं।
यह घोषणा भारत की राजनीतिक व्यवस्था की मूल प्रकृति को स्पष्ट करती है।
प्रस्तावना में उन मौलिक अधिकारों और मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख है जो सभी नागरिकों के लिए लागू होते हैं।
प्रस्तावना भारत को एक संघीय गणराज्य घोषित करती है, जिसमें केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन होता है।
प्रस्तावना न्यायपालिका की स्वतंत्रता की गारंटी देती है, जिसका अर्थ है कि न्यायाधीशों को बिना किसी डर या पक्षपात के अपने फैसले सुनाने की स्वतंत्रता है।
प्रस्तावना स्थापित करती है कि भारत का संविधान देश का सर्वोच्च कानून है, और कोई भी कानून या नियम संविधान के विपरीत नहीं हो सकता है।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारतीय संविधान के सिद्धांतों और उद्देश्यों के लिए मार्गदर्शक ढांचे के रूप में कार्य करती है। इसमें चार मुख्य घटक शामिल हैं।
1. संप्रभुता (Sovereignty):
भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र है। इसका मतलब है कि हमारे देश के किसी भी निर्णय में कोई बाहरी शक्ति हस्तक्षेप नहीं कर सकती। हम अपने सभी आंतरिक और बाहरी मामलों का फैसला खुद लेते हैं।
2. समाजवादी (Socialist):
भारत का उद्देश्य सभी नागरिकों का सामाजिक और आर्थिक कल्याण सुनिश्चित करना है। यहाँ मिश्रित अर्थव्यवस्था अपनाई गई है, जिसमें सरकारी और निजी दोनों क्षेत्र साथ मिलकर काम करते हैं।
3. धर्मनिरपेक्षता (Secular):
भारत किसी एक धर्म को बढ़ावा नहीं देता। यहाँ हर नागरिक को अपने धर्म को मानने और पालन करने की पूरी आज़ादी है। राज्य सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखता है।
4. लोकतंत्र (Democratic):
भारत की सरकार जनता द्वारा, जनता के लिए और जनता के माध्यम से चुनी जाती है। नागरिकों को चुनाव में भाग लेने और अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार है।
5. गणराज्य (Republic):
भारत में देश का सर्वोच्च नेता यानी राष्ट्रपति जनता द्वारा परोक्ष रूप से चुना जाता है। यह पद किसी विरासत या राजशाही से नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया से तय होता है।
अविश्वास प्रस्ताव: अर्थ, नियम और प्रक्रिया
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में संशोधन करना इसकी आधारभूत प्रकृति और प्रतीकात्मक महत्व के कारण एक जटिल और संवेदनशील मामला है।
हालाँकि प्रस्तावना को इसके अपनाए जाने के बाद से पूरी तरह से संशोधित नहीं किया गया है, लेकिन बदलते सामाजिक मूल्यों या राजनीतिक विचारधाराओं को प्रतिबिंबित करने के लिए संभावित संशोधनों या परिवर्धन के बारे में महत्वपूर्ण बहस और चर्चाएँ हुई हैं।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 में संशोधन की प्रक्रिया का उल्लेख है। इस अनुच्छेद के अनुसार, संसद के दोनों सदनों (लोक सभा और राज्य सभा) द्वारा दो-तिहाई बहुमत से पारित किए गए प्रस्ताव द्वारा संविधान में संशोधन किया जा सकता है।कुछ कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि प्रस्तावना, संविधान का एक हिस्सा होने के नाते, इस प्रक्रिया के अधीन संशोधन के लिए खुला है।
हालांकि, इस मुद्दे पर कोई सर्वसम्मति नहीं है, और कई अन्य विशेषज्ञों का तर्क है कि प्रस्तावना संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है और इसे संशोधित नहीं किया जा सकता है।
भारत के संविधान की प्रस्तावना राष्ट्र का मार्गदर्शन करने वाली आकांक्षाओं और आदर्शों की एक गंभीर घोषणा है। यह न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मूलभूत सिद्धांतों को समाहित करती है, जो भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की आधारशिला हैं। संविधान के परिचयात्मक कथन के रूप में, प्रस्तावना एक प्रकाश स्तंभ के रूप में कार्य करती है, जो न्यायपूर्ण, समतापूर्ण और समावेशी समाज की ओर मार्ग को रोशन करती है। अब आपको पूरी तरह ज्ञात हो गया होगा कि संविधान की प्रस्तावना क्या है।
भारत के संविधान की प्रस्तावना संविधान का वह भाग है जो संविधान के निर्माण के उद्देश्यों और मूल्यों को स्पष्ट करता है। इसे संविधान का आत्मा भी कहा जाता है।
संविधान की प्रस्तावना का कोई एक जनक नहीं है। यह संविधान सभा के सदस्यों के सामूहिक प्रयास का परिणाम है। हालांकि, प्रस्तावना में निहित कुछ विचारों को डॉ. बी.आर. अंबेडकर और जे.बी. कृपलानी जैसे प्रमुख संविधान सभा के सदस्यों से प्रेरित माना जाता है। डॉ. भीमराव अंबेडकर को “भारतीय संविधान के जनक” भी जाना जाता है।
संविधान का मूल उद्देश्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहां सभी नागरिकों को समानता, न्याय और स्वतंत्रता प्राप्त हो। यह एक ऐसा दस्तावेज है जो एक देश के शासन के नियमों और सिद्धांतों को निर्धारित करता है।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना (Preamble) में कुल 85 शब्द हैं।
यह प्रस्तावना संविधान के उद्देश्यों और मूलभूत सिद्धांतों को संक्षेप में प्रस्तुत करती है, जैसे कि न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुता। 1976 में 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से इसमें तीन शब्द जोड़े गए थे: “समाजवादी”, “धर्मनिरपेक्ष” और “अखंडता”, जिसके बाद इसकी शब्द संख्या 85 हो गई।
भारत के संविधान की पहली लाइन है:
“हम, भारत के लोग, भारत को एक संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए…”
Authored by, Aakriti Jain
Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.
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