पॉक्सो एक्ट

पॉक्सो एक्ट क्या है? | Pocso Act kya Hai

Published on June 9, 2025
|
1 Min read time
पॉक्सो एक्ट

Quick Summary

  • पॉक्सो एक्ट (Protection of Children from Sexual Offences Act) 14 नवंबर, 2012 को लागू हुआ था।
  • इस कानून का मुख्य उद्देश्य बच्चों को यौन शोषण से बचाना है।
  • पॉक्सो एक्ट के तहत ऐसे अपराधों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाती है।

Table of Contents

पोक्सो एक्ट हिंदी जिसका उद्देश्य 18 वर्ष से कम के बच्चों को शारीरिक शोषण के खिलाफ लड़ने और न्याय दिलाना है। इस ब्लॉग में आपको पोक्सो एक्ट हिंदी क्या है, पॉक्सो एक्ट कब लागू हुआ, इसका महत्व, पॉक्सो एक्ट की धाराएं और इसकी जांच प्रक्रिया से जुड़ी सभी जानकारियां मिलेगी।

पॉक्सो एक्ट, जिसका पूरा नाम “यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012” है, भारत में बच्चों को यौन शोषण से सुरक्षित रखने के उद्देश्य से बनाया गया एक महत्वपूर्ण कानून है। यह अधिनियम बच्चों को यौन उत्पीड़न, शोषण और अश्लील सामग्री (पोर्नोग्राफी) से सुरक्षा प्रदान करता है।

पोक्सो एक्ट हिंदी? | POCSO Act in Hindi

पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) का पूरा नाम “प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसिज़ एक्ट” है। यह कानून 2012 में लागू किया गया था और इसका मुख्य उद्देश्य 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और अश्लील साहित्य से सुरक्षा प्रदान करना है।

पॉक्सो एक्ट में यौन शोषण से जुड़े विभिन्न अपराधों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है, जिनमें यौन उत्पीड़न, बलात्कार, बाल यौन शोषण और बाल पोर्नोग्राफी शामिल हैं।

उदाहरण:

  • यदि कोई व्यक्ति 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे के साथ यौन संबंध बनाता है, तो यह पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत एक दंडनीय अपराध माना जाएगा।
  • यदि कोई व्यक्ति किसी नाबालिग (18 वर्ष से कम उम्र) बच्चे का यौन शोषण करता है, तो वह पॉक्सो एक्ट के तहत अपराधी माना जाएगा।
  • यदि कोई व्यक्ति किसी नाबालिग बच्चे से जुड़ी अश्लील सामग्री बनाता है, संग्रह करता है या उसे साझा/प्रसारित करता है, तो यह भी पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है।

उद्देश्य

  • बच्चों की सुरक्षा: यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  • कानूनी सहारा: पीड़ित बच्चों को न्याय दिलाने के लिए कानूनी प्रक्रिया को आसान और तेज बनाना।
  • सख्त सजा: यौन अपराधियों के खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान।

विशेषताएं

  • विस्तृत परिभाषाएँ: यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और अश्‍लील साहित्य को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है।
  • गोपनीयता: पीड़ित की पहचान और उनकी जानकारी गोपनीय रखी जाती है।
  • जल्द सुनवाई: अदालतों को पॉक्सो एक्ट से जुड़े मामलों का निपटारा जल्द से जल्द करने का निर्देश दिया गया है।
  • विशेष न्यायालय: बच्चों के मामलों के लिए विशेष न्यायालयों का प्रावधान।
  • बच्चों की सुरक्षा: मामलों की सुनवाई के दौरान बच्चों की सुरक्षा और उनकी मानसिक स्थिति का ध्यान रखा जाता है।

अन्य बातें

  • यह कानून केवल भारत में रहने वाले बच्चों पर लागू होता है, विदेशी बच्चों पर नहीं।
  • अगर कोई व्यक्ति 12 साल से कम उम्र के बच्चे के साथ यौन संबंध बनाता है, तो उसे उम्रकैद की सजा हो सकती है।
  • पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध ज्यादातर गैर-जमानती होते हैं।
  • अगर आपको लगता है कि किसी बच्चे के साथ यौन शोषण हो रहा है, तो आप 1098 पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) को कॉल कर सकते हैं।

पॉक्सो एक्ट से पहले के कानून | Pocso Act kab Aaya

पॉक्सो एक्ट लागू होने से पहले, बच्चों के यौन शोषण से संबंधित कोई विशेष और व्यापक केंद्रीय कानून नहीं था। इस दिशा में गोवा बाल अधिनियम, 2003 ही एकमात्र विशिष्ट राज्य कानून था, जो बच्चों के यौन शोषण को सीधे तौर पर संबोधित करता था।

उस समय बाल यौन शोषण के मामलों में मुकदमा भारतीय दंड संहिता (IPC) की निम्नलिखित धाराओं के तहत चलाया जाता था:

  • धारा 375 (बलात्कार): केवल महिलाओं के साथ होने वाले यौन अपराधों को परिभाषित करती है।
  • धारा 354 (शील भंग करना): किसी महिला की मर्यादा भंग करने से संबंधित अपराधों के लिए लागू होती थी।
  • धारा 377 (अप्राकृतिक अपराध): अप्राकृतिक यौन कृत्यों से संबंधित थी, लेकिन इसमें स्पष्टता का अभाव था।

हालाँकि, इन धाराओं में कई खामियाँ थीं, जिनके कारण बच्चों की पर्याप्त कानूनी सुरक्षा नहीं हो पाती थी:

  1. धारा 375 केवल महिलाओं के प्रति पारंपरिक यौन हमलों तक ही सीमित थी और यह पुरुष बच्चों या अन्य प्रकार के यौन हमलों को कवर नहीं करती थी।
  2. धारा 354 में “शील” (modesty) की कोई स्पष्ट कानूनी परिभाषा नहीं थी, सज़ा भी सीमित थी और यह अपराध समझौता योग्य (compoundable) था। यह भी केवल महिला पीड़ितों के लिए लागू होता था, पुरुष बच्चों को इसमें कोई संरक्षण नहीं मिलता था।
  3. धारा 377 “अप्राकृतिक अपराध” शब्द को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं करती थी और इसे बच्चों के यौन शोषण को रोकने के उद्देश्य से नहीं बनाया गया था। यह केवल कुछ विशेष प्रकार के यौन कृत्यों को दंडित करता था।

इन कमियों को दूर करने के लिए 14 नवंबर 2012 में पॉक्सो एक्ट लाया गया, जो बच्चों की सुरक्षा के लिए एक समर्पित और व्यापक कानूनी ढांचा प्रदान करता है।

POCSO अधिनियम की आवश्यकता

इस खंड में हम UPSC दृष्टिकोण से POCSO अधिनियम की आवश्यकता को समझते हैं।

भारत विश्व की सबसे बड़ी बाल जनसंख्या वाला देश है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 18 वर्ष से कम आयु के लगभग 472 मिलियन (47.2 करोड़) बच्चे हैं। ऐसे में बच्चों की सुरक्षा एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय बन जाती है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है, जिसमें बच्चों की सुरक्षा भी शामिल है। साथ ही, भारत ने संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकारों के सम्मेलन (UNCRC) पर हस्ताक्षर कर यह सुनिश्चित किया है कि बच्चों को हर प्रकार के शोषण से सुरक्षित रखा जाए।

पोक्सो एक्ट 2012: पॉक्सो एक्ट अधिनियम के बारे में

निम्नलिखित तालिका में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम के मुख्य विवरण सूचीबद्ध हैं:

प्रवर्तन तिथि:14 नवंबर 2012
मंत्रालय:महिला एवं बाल विकास मंत्रालय
शीर्षक:इस कानून का उद्देश्य नाबालिगों को यौन उत्पीड़न, उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी से बचाना है। यह इन अपराधों और संबंधित चिंताओं से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें भी स्थापित करता है।
संक्षिप्त शीर्षकप्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ओफ्फेंसेस एक्ट 2012
कार्य वर्ष:2012
अधिनियमन तिथि:19 जून 2012
पॉक्सो एक्ट

पॉक्सो एक्ट का महत्व

पॉक्सो एक्ट का महत्व
पॉक्सो एक्ट का महत्व | Pocso Act kya Hai

1. बच्चों की सुरक्षा

बच्चों को यौन शोषण से बचाता है: यह कानून विभिन्न प्रकार के यौन अपराधों को परिभाषित करता है, जिनमें बलात्कार, यौन उत्पीड़न, बाल अश्लीलता, और अश्‍लील साहित्य शामिल हैं। यह अपराधियों के लिए कठोर दंड का प्रावधान करता है, जिससे बच्चों को यौन शोषण से बचाने में मदद मिलती है।

बच्चों के अधिकारों की रक्षा करता है: पॉक्सो एक्ट बच्चों के अधिकारों की रक्षा करता है, जिसमें उनके सम्मान, गोपनीयता, और स्वतंत्रता का अधिकार शामिल है। यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि बच्चों के साथ सम्मान और गरिमा के साथ व्यवहार किया जाए और उन्हें किसी भी प्रकार के शोषण या उत्पीड़न का सामना न करना पड़े।

2. न्याय प्रणाली में सुधार

पीड़ितों को न्याय दिलाता है: पॉक्सो एक्ट का कानून यौन अपराधों के पीड़ितों को न्याय दिलाने में मदद करता है। यह पीड़ितों को मुआवजा और पुनर्वास के लिए प्रावधान करता है, और यह सुनिश्चित करता है कि उन्हें उचित कानूनी सहायता और समर्थन मिले।

3. समाज में जागरूकता

जागरूकता बढ़ाता है: पॉक्सो एक्ट ने बाल यौन शोषण और उत्पीड़न के बारे में जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस कानून ने लोगों को इस मुद्दे पर ध्यान देने और इसके खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया है।

समाज में बदलाव लाता है: पॉक्सो एक्ट ने समाज में बदलाव लाने में भी मदद की है। इस कानून ने लोगों को बच्चों के साथ उनके व्यवहार के बारे में अधिक जागरूक बनाया है और बच्चों के प्रति सम्मान और गरिमा को बढ़ावा दिया है।

पॉक्सो एक्ट की धाराएं: पास्को एक्ट कब लगता है

धारा 3

पॉक्सो एक्ट की धाराएं में से एक धारा 3 के तहत, बच्चे के साथ यौन शोषण को अपराध माना गया है, जिसमें बच्चे के साथ किसी भी प्रकार का यौन संपर्क शामिल है। यह धारा प्रवेशात्मक यौन हमले (Penetrative Sexual Assault) से जुड़ी है। यदि कोई व्यक्ति किसी नाबालिग के साथ शारीरिक संबंध बनाता है, तो इसे धारा 3 के अंतर्गत एक गंभीर अपराध माना जाता है।

यह धारा:

  • सख्त सजा का प्रावधान करती है, जिसमें जीवन कारावास भी शामिल है।
  • पीड़ित को मुआवजा दिलाने का प्रावधान करती है।
  • गवाहों की सुरक्षा का प्रावधान करती है।

धारा 4

पॉक्सो एक्ट की धारा 4, 18 साल से कम उम्र के बच्चे के साथ यौन उत्पीड़न करने के लिए सजा का प्रावधान करती है। जिसमें बिना अनुमति के छूना, छेड़छाड़, अन्य यौन उत्पीड़न गतिविधि शामिल है। यह धारा गैर-प्रवेशात्मक यौन हमले (Non-Penetrative Sexual Assault) से संबंधित है। यदि कोई व्यक्ति किसी नाबालिग के गुप्तांग या शरीर के किसी हिस्से को अनुचित रूप से छूता है या शारीरिक नुकसान पहुँचाता है, तो यह कृत्य धारा 4 के अंतर्गत आता है और कानूनन दंडनीय है।

यह धारा:

  • कम से कम 10 साल की कैद का प्रावधान करती है, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।
  • जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
  • पीड़ित को मुआवजा दिलाने का प्रावधान करती है।

धारा 5

पॉक्सो एक्ट की धारा 5 के तहत, गंभीर यौन शोषण के मामलों जैसे सामूहिक बलात्कार, बार-बार शोषण, या किसी भरोसेमंद व्यक्ति द्वारा शोषण पर कठोर सजा का प्रावधान है। इस धारा में दोषी को न्यूनतम 20 साल की सजा, उम्रकैद या फांसी हो सकती है।

धारा 6

पॉक्सो एक्ट की धाराएं में से एक धारा 6 के तहत, बच्चों के साथ गंभीर यौन शोषण करने पर न्यूनतम 20 साल की सजा, जो उम्रकैद तक बढ़ाई जा सकती है, और जुर्माने का प्रावधान है।

धारा 10

(Section 10 of the POCSO Act, 2012) “गंभीर यौन उत्पीड़न” (Aggravated Sexual Assault) के लिए दंड से संबंधित है। यदि कोई व्यक्ति गंभीर यौन उत्पीड़न करता है (जैसा कि धारा 9 में परिभाषित किया गया है), तो उस पर धारा 10 के अंतर्गत दंड लगाया जाता है।

धारा 19

धारा 19 के तहत कोई भी व्यक्ति, जो यह जानता है कि बच्चे के साथ यौन अपराध हुआ है, उसे पुलिस या बाल कल्याण अधिकारी को सूचित करना होगा। ये सूचना मौखिक या लिखित रूप में दी जा सकती है। जो व्यक्ति सूचना देने में विफल होता है, वो दंडनीय अपराधी है।

धारा 21

पॉक्सो एक्ट की धारा 21 उन लोगों को दंडित करती है जो:

  • बच्चों के यौन शोषण की रिपोर्ट करने में विफल रहते हैं।
  • बच्चों के यौन शोषण के मामलों को दर्ज नहीं करते हैं।
  • बच्चों के यौन शोषण के मामलों में लापरवाही बरतते हैं।

इस धारा के तहत:

  • 6 महीने तक की कैद या जुर्माना हो सकता है।
  • गंभीर मामलों में एक साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।

2019 में संशोधन:

2019 में POCSO एक्ट में संशोधन किया गया था, जिसके तहत बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को रोकने के लिए कठोर सजा का प्रावधान किया गया। यह संशोधन बच्चों की सुरक्षा को और अधिक प्रभावी बनाने के उद्देश्य से किया गया था।

POCSO नियम 2020

  • अस्थायी मुआवज़ा और विशेष राहत:
    • एफआईआर दर्ज होने के बाद, विशेष अदालत, POCSO नियमों के नियम 9 के तहत, बच्चे के लिए अस्थायी राहत या पुनर्वास की आवश्यकताएं प्रदान कर सकती है। अंतिम मुआवज़ा (यदि कोई हो) इस मुआवज़े से काट लिया जाता है।
  • विशेष राहत का तुरंत भुगतान:
    • POCSO नियम बाल कल्याण समिति (CWC) को यह प्रस्ताव करने की अनुमति देते हैं कि जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (DLSA), जिला बाल संरक्षण इकाई (DCPU), या किशोर न्याय अधिनियम, 2015 द्वारा अलग किए गए फंड का उपयोग बुनियादी सुविधाओं के लिए आपातकालीन धन उपलब्ध कराने के लिए किया जाए। भोजन, कपड़े और परिवहन जैसी आवश्यकताएँ।
    • सीडब्ल्यूसी (CWC) की अनुशंसा प्राप्त होने के एक सप्ताह के भीतर भुगतान जमा करना होगा।
  • बाल सहायता कार्यकर्ता:
    • सीडब्ल्यूसी को जांच और परीक्षण चरणों के दौरान बच्चे की मदद के लिए एक सहायक व्यक्ति नियुक्त करने के लिए POCSO नियमों द्वारा अधिकृत किया गया है।
    • बच्चे के सर्वोत्तम हित, जिसमें उनका शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य शामिल है, साथ ही परामर्श, शिक्षा और चिकित्सा उपचार तक उनकी पहुँच, सहायक व्यक्ति की जिम्मेदारी है। इसके अतिरिक्त, वह बच्चे के माता-पिता या अभिभावकों को मामले और किसी भी अदालती कार्यवाही के बारे में किसी भी अपडेट के बारे में सलाह देगा।

पॉक्सो एक्ट कब लागू हुआ?

पॉक्सो एक्ट को बच्चों पर यौन अपराधों को रोकने के लिए भारत में 14 नवंबर 2012, बाल दिवस के दिन लागू किया गया था। 

एक्ट पारित होने की तिथि

पॉक्सो एक्ट, जिसे संरक्षण से जुड़े बाल अपराधों का अधिनियम, 2012 भी कहा जाता है, भारत में 19 जून 2012 को पारित किया गया था। यह अधिनियम बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को रोकने और उनसे जुड़े अपराधियों को सजा देने के लिए बनाया गया था।

पॉक्सो एक्ट में समझौता

समझौता के प्रावधान

  1. पीड़ित की सहमति: पॉक्सो एक्ट में समझौता तभी मान्य होगा जब पीड़ित, अपनी स्वतंत्र इच्छा और सहमति से करे, बिना दबाव या डर के।
  2. अदालत की मंजूरी: समझौता अदालत में पेश कर उसे पीड़ित के हित में और बिना दबाव के ही मान्य माना जाएगा।
  3. अपराध की गंभीरता: पॉक्सो एक्ट में समझौता यौन उत्पीड़न या छेड़छाड़ जैसे मामूली अपराधों में ही मान्य है, गंभीर अपराधों में नहीं।
  4. मुआवजा: समझौते में पीड़ित को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा शामिल हो सकता है।

अदालत की भूमिका

  1. जांच: अदालत पुलिस द्वारा की गई जांच की निगरानी करती है।
  2. मुकदमा: आरोप साबित होने पर अदालत अपराधी को सजा सुनाती है।
  3. पीड़ित का संरक्षण: अदालत पीड़ित को चिकित्सा सहायता, परामर्श, और पुनर्वास प्रदान करती है।
  4. गवाहों की सुरक्षा: गवाहों और पीड़ितों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है।
  5. समझौते की मंजूरी: अदालत पीड़ित के हित में समझौते को मंजूरी देती है।

पीड़ित के अधिकार

  1. तुरंत और निःशुल्क मुकदमा: यौन अपराध की रिपोर्ट दर्ज करने के बाद तुरंत और निःशुल्क मुकदमा।
  2. गोपनीयता: पीड़ित की पहचान और व्यक्तिगत जानकारी गोपनीय रखी जाएगी।
  3. चिकित्सा सहायता: मुफ्त चिकित्सा सहायता का अधिकार।
  4. मुआवजा: शारीरिक और मानसिक नुकसान के लिए मुआवजा।
  5. सुरक्षा: अपराधी से सुरक्षा का अधिकार।
  6. गरिमा और सम्मान: गरिमा और सम्मान के साथ पेश आने का अधिकार।

पॉक्सो एक्ट में जमानत

गंभीर अपराध

पॉक्सो एक्ट के तहत गंभीर अपराधों, जैसे बलात्कार या हत्या, में आमतौर पर जमानत नहीं मिलती है। केवल कुछ अपवादों में, उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय असाधारण परिस्थितियों में जमानत पर विचार कर सकते हैं।

अदालत की विवेकाधिकार

पॉक्सो एक्ट में जमानत अपराधी का एक अधिकार नहीं है बल्कि, अदालत का विवेकाधिकार है। अदालत सभी तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करती है और उसके बाद ही जमानत मिलती है:

  • जैसे कि अपराध की गंभीरता
  • आरोपी का आपराधिक इतिहास
  • सबूतों की मजबूती
  • गवाहों को प्रभावित करने की संभावना
  • पीड़ित को नुकसान पहुंचाने का खतरा

बचाव पक्ष के अधिकार

पॉक्सो एक्ट में जमानत के लिए बचाव पक्ष के पास कई अधिकार हैं जैसे:

  • निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार 
  • सबूत पेश करने का अधिकार
  • अनुचित दबाव से मुक्ति का अधिकार
  • अपील का अधिकार

सज़ाएं

POCSO एक्ट के अंतर्गत अलग-अलग अपराधों के लिए विभिन्न प्रकार की सज़ाओं का प्रावधान है, जिनमें कारावास, आर्थिक दंड (जुर्माना) और मृत्युदंड शामिल हैं। विशेष रूप से गंभीर यौन अपराधों के मामलों में फांसी की सज़ा (मृत्युदंड) का भी प्रावधान किया गया है, ताकि अपराध की गंभीरता के अनुरूप कठोर दंड दिया जा सके।

पॉक्सो एक्ट के तहत विशेष न्यायालय

स्थापना

पॉक्सो एक्ट के तहत बच्चों के यौन शोषण मामलों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना की गई है। यह न्यायालय तुरंत और गोपनीय सुनवाई सुनिश्चित करते हैं, जिससे पीड़ित बच्चों को जल्दी न्याय मिल सके।

प्रक्रिया

न्यायालय आरोपी को आरोपों से अवगत कराता है और उसके बयान दर्ज करता है। यदि आरोपी आरोपों से इनकार करता है, तो मुकदमा शुरू होता है। अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष अपने-अपने सबूत पेश करते हैं। न्यायालय साक्ष्यों का मूल्यांकन करने के बाद फैसला सुनाता है। यदि आरोपी दोषी पाया जाता है, तो उसे सजा सुनाई जाती है।

पीड़ित की सुरक्षा

पीड़ित की पहचान, पता और अन्य व्यक्तिगत जानकारी को गोपनीय रखा जाता है। मुकदमे की सुनवाई संवेदनशील और गोपनीय तरीके से की जाती है, जिसमें मीडिया और जनता की भागीदारी प्रतिबंधित होती है। पीड़ित को गवाहों और आरोपी से सुरक्षा प्रदान की जाती है।

पॉक्सो एक्ट के तहत जांच प्रक्रिया

पॉक्सो एक्ट एक महत्वपूर्ण कानून है जो बच्चों को यौन शोषण से सुरक्षा प्रदान करता है। यदि आपको खुद या किसी अन्य के माध्यम से बच्चों के विरुद्ध यौन शोषण की जानकारी मिलती है, तो इसकी सूचना तुरंत पुलिस को देना आवश्यक है।

पुलिस की भूमिका

  • शिकायत दर्ज करना: शिकायत दर्ज करने पर तुरंत FIR दर्ज करना।
  • जांच: घटनास्थल का निरीक्षण करना, साक्ष्य इकट्ठा करना, गवाहों के बयान लेना और मेडिकल जांच करवाना।
  • गिरफ्तारी: आवश्यक हो तो आरोपी को गिरफ्तार करना।
  • सुरक्षा: पीड़ित और गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  • अभियोजन: जांच पूरी होने के बाद, चार्जशीट तैयार कर अदालत में पेश करना।

बयान दर्ज करना

शिकायत दर्ज होने के 24 घंटे के भीतर, पीड़ित का बयान महिला पुलिस अधिकारी या बाल कल्याण अधिकारी द्वारा लिया जाएगा। यह बयान वीडियो रिकॉर्ड किया जाएगा और पीड़ित को उसकी कॉपी दी जाएगी।

चिकित्सा परीक्षण

डॉक्टर पीड़ित के ब्लड, नाखून, आदि का सैंपल लेकर पीड़ित की शारीरिक जांच करेंगे और यौन उत्पीड़न के सबूत इकट्ठा करेंगे। डॉक्टर द्वारा एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर रिपोर्ट को पुलिस या अदालत में जमा किया जाएगा।

पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत सजा के प्रावधान

  • न्यूनतम सजा: पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत न्यूनतम सजा का प्रावधान है ताकि यौन अपराधों पर सख्त कार्रवाई हो सके। सामान्य यौन शोषण के मामलों में न्यूनतम सजा 6 महीने से लेकर 10 साल की सजा होती है।
  • अधिकतम सजा: पॉक्सो एक्ट के तहत, यदि कोई व्यक्ति बच्चे के साथ गंभीर यौन शोषण करता है, तो उसे 20 साल की कारावास सजा हो सकती है, जो उम्रकैद भी बढ़ाई जा सकती है।
  • दंडनीय अपराध: अगर अपराधी ने बच्चे की मृत्यु कर दी है या उसे गंभीर चोट पहुंचाई है तो उसे उम्रकैद या फांसी दी जा सकती है।

पॉक्सो एक्ट के लैंडमार्क केस

भारत के अटॉर्नी जनरल बनाम सतीश और अन्य (2021)

अटॉर्नी जनरल बनाम सतीश और अन्य (2021) केस पॉक्सो एक्ट से जुड़ा एक महत्वपूर्ण मामला था। अपराधी ने 12 साल एक बच्ची को अमरूद देने के बहाने घर में बुलाया और उसके कपड़े के ऊपर उसे शरीर में हाथ फेरने लगा और जबरदस्ती कपड़े हटाने की कोशिश की। केके वेणुगोपाल (भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल) द्वारा दायर एक अपील से भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई कर बॉम्बे उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज किया। 

फैसले में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा था की “प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसिज़ एक्ट, 2002 के धारा 7 के तहत सजा देने के लिए 18 साल से कम बच्चों के विरुद्ध यौन उत्पीड़न के अपराध में ‘त्वचा से त्वचा’ का संपर्क होना जरूरी है।” भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने फैसले को खारिज करते हुए आरोपी को IPC 1860 की धारा 354 के तहत 1 साल तक जेल की सजा सुनाई।

जरनैल सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2013)

इस मामले में, अपराधी पर पीड़ित को उसके माता-पिता से दूर ले जाने और उसके साथ जबरदस्ती यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया गया था। जांच के दौरान, पीड़ित, अपराधी के घर में पाई गई, जिसके कारण उसे न्यायालय द्वारा जुर्माने के साथ ही 10 साल की सजा सुनाई गई। अपराधी ने इस फैसले की अपील की और आरोप लगाया कि पीड़ित ने उसे ऐसा करने के लिए बहकाया और उसकी सहमति से उसके ये सब किया। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि किशोर न्याय नियम 2007, के तहत किशोर की आयु निर्धारित करने के नियम, पॉक्सो एक्ट 2012, से संबंधित मामलों में भी लागू किए जा सकते हैं।

गोलकनाथ केस

निष्कर्ष

18 साल से कम के बच्चों के साथ यौन संबंध बनाने के उद्देश से लिए जाने वाले छेड़छाड़ को पॉक्सो एक्ट 2012 के तहत गंभीर अपराध मानते हुए कड़ी सजा दी जाती है। जिससे नाबालिक बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के मामलों में कमी आई है। नबालिको के साथ यौन उत्पीड़न के मामलों को कई बार छुपाया भी जाता है, बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के मामलों को पूरी तरह खत्म किया जा सकता है अगर हर एक व्यक्ति “पॉक्सो एक्ट क्या है” के बारे में जाने, इसे गंभीर अपराध की तरह देखे और इसके रिपोर्ट दर्ज कराएं। 

इस ब्लॉग में आपको पॉक्सो एक्ट क्या है, इसका महत्व, पॉक्सो एक्ट कब लागू हुआ, पॉक्सो एक्ट की धाराएं, इसकी जांच प्रक्रिया और इससे जुड़े और पहलुओं के बारे में जानने को मिला।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

क्या पॉक्सो एक्ट में ‘यौन उत्पीड़न’ के लिए कोई विशेष परिभाषा दी गई है?

हाँ, पॉक्सो एक्ट में ‘यौन उत्पीड़न’ के तहत कोई भी यौन संपर्क, चाहे वह शारीरिक हो या न हो, को अपराध माना गया है।

क्या पॉक्सो एक्ट में बच्चों के लिए पोस्ट-ट्रॉमा काउंसलिंग का प्रावधान है?

हाँ, पॉक्सो एक्ट में बच्चों के लिए पोस्ट-ट्रॉमा काउंसलिंग का प्रावधान है, ताकि वे मानसिक और भावनात्मक रूप से स्वस्थ हो सकें।

पॉक्सो एक्ट में अपील करने की समय सीमा क्या है?

पॉक्सो एक्ट के तहत अपील करने की समय सीमा 30 से 60 दिन के भीतर होती है, मामले की जटिलता के आधार पर।

पॉक्सो एक्ट में फास्ट ट्रैक कोर्ट का क्या महत्व है?

फास्ट ट्रैक कोर्ट का महत्व है कि यह बच्चों के मामलों को तेजी से निपटाने में मदद करता है, जिससे उन्हें जल्द न्याय मिल सके।

क्या पॉक्सो एक्ट के तहत बच्चे की सहमति की उम्र पर ध्यान दिया जाता है?

पॉक्सो एक्ट के तहत 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की सहमति को मान्य नहीं माना जाता, चाहे उन्होंने सहमति दी हो या नहीं।

Editor's Recommendations

Authored by, Amay Mathur | Senior Editor

Amay Mathur is a business news reporter at Chegg.com. He previously worked for PCMag, Business Insider, The Messenger, and ZDNET as a reporter and copyeditor. His areas of coverage encompass tech, business, strategy, finance, and even space. He is a Columbia University graduate.