Quick Summary
पोक्सो एक्ट हिंदी जिसका उद्देश्य 18 वर्ष से कम के बच्चों को शारीरिक शोषण के खिलाफ लड़ने और न्याय दिलाना है। इस ब्लॉग में आपको पोक्सो एक्ट हिंदी क्या है, पॉक्सो एक्ट कब लागू हुआ, इसका महत्व, पॉक्सो एक्ट की धाराएं और इसकी जांच प्रक्रिया से जुड़ी सभी जानकारियां मिलेगी।
पॉक्सो एक्ट, जिसका पूरा नाम “यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012” है, भारत में बच्चों को यौन शोषण से सुरक्षित रखने के उद्देश्य से बनाया गया एक महत्वपूर्ण कानून है। यह अधिनियम बच्चों को यौन उत्पीड़न, शोषण और अश्लील सामग्री (पोर्नोग्राफी) से सुरक्षा प्रदान करता है।
पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) का पूरा नाम “प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसिज़ एक्ट” है। यह कानून 2012 में लागू किया गया था और इसका मुख्य उद्देश्य 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और अश्लील साहित्य से सुरक्षा प्रदान करना है।
पॉक्सो एक्ट में यौन शोषण से जुड़े विभिन्न अपराधों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है, जिनमें यौन उत्पीड़न, बलात्कार, बाल यौन शोषण और बाल पोर्नोग्राफी शामिल हैं।
पॉक्सो एक्ट लागू होने से पहले, बच्चों के यौन शोषण से संबंधित कोई विशेष और व्यापक केंद्रीय कानून नहीं था। इस दिशा में गोवा बाल अधिनियम, 2003 ही एकमात्र विशिष्ट राज्य कानून था, जो बच्चों के यौन शोषण को सीधे तौर पर संबोधित करता था।
उस समय बाल यौन शोषण के मामलों में मुकदमा भारतीय दंड संहिता (IPC) की निम्नलिखित धाराओं के तहत चलाया जाता था:
हालाँकि, इन धाराओं में कई खामियाँ थीं, जिनके कारण बच्चों की पर्याप्त कानूनी सुरक्षा नहीं हो पाती थी:
इन कमियों को दूर करने के लिए 14 नवंबर 2012 में पॉक्सो एक्ट लाया गया, जो बच्चों की सुरक्षा के लिए एक समर्पित और व्यापक कानूनी ढांचा प्रदान करता है।
इस खंड में हम UPSC दृष्टिकोण से POCSO अधिनियम की आवश्यकता को समझते हैं।
भारत विश्व की सबसे बड़ी बाल जनसंख्या वाला देश है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 18 वर्ष से कम आयु के लगभग 472 मिलियन (47.2 करोड़) बच्चे हैं। ऐसे में बच्चों की सुरक्षा एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय बन जाती है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है, जिसमें बच्चों की सुरक्षा भी शामिल है। साथ ही, भारत ने संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकारों के सम्मेलन (UNCRC) पर हस्ताक्षर कर यह सुनिश्चित किया है कि बच्चों को हर प्रकार के शोषण से सुरक्षित रखा जाए।
निम्नलिखित तालिका में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम के मुख्य विवरण सूचीबद्ध हैं:
प्रवर्तन तिथि: | 14 नवंबर 2012 |
मंत्रालय: | महिला एवं बाल विकास मंत्रालय |
शीर्षक: | इस कानून का उद्देश्य नाबालिगों को यौन उत्पीड़न, उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी से बचाना है। यह इन अपराधों और संबंधित चिंताओं से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें भी स्थापित करता है। |
संक्षिप्त शीर्षक | प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ओफ्फेंसेस एक्ट 2012 |
कार्य वर्ष: | 2012 |
अधिनियमन तिथि: | 19 जून 2012 |
बच्चों को यौन शोषण से बचाता है: यह कानून विभिन्न प्रकार के यौन अपराधों को परिभाषित करता है, जिनमें बलात्कार, यौन उत्पीड़न, बाल अश्लीलता, और अश्लील साहित्य शामिल हैं। यह अपराधियों के लिए कठोर दंड का प्रावधान करता है, जिससे बच्चों को यौन शोषण से बचाने में मदद मिलती है।
बच्चों के अधिकारों की रक्षा करता है: पॉक्सो एक्ट बच्चों के अधिकारों की रक्षा करता है, जिसमें उनके सम्मान, गोपनीयता, और स्वतंत्रता का अधिकार शामिल है। यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि बच्चों के साथ सम्मान और गरिमा के साथ व्यवहार किया जाए और उन्हें किसी भी प्रकार के शोषण या उत्पीड़न का सामना न करना पड़े।
पीड़ितों को न्याय दिलाता है: पॉक्सो एक्ट का कानून यौन अपराधों के पीड़ितों को न्याय दिलाने में मदद करता है। यह पीड़ितों को मुआवजा और पुनर्वास के लिए प्रावधान करता है, और यह सुनिश्चित करता है कि उन्हें उचित कानूनी सहायता और समर्थन मिले।
जागरूकता बढ़ाता है: पॉक्सो एक्ट ने बाल यौन शोषण और उत्पीड़न के बारे में जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस कानून ने लोगों को इस मुद्दे पर ध्यान देने और इसके खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया है।
समाज में बदलाव लाता है: पॉक्सो एक्ट ने समाज में बदलाव लाने में भी मदद की है। इस कानून ने लोगों को बच्चों के साथ उनके व्यवहार के बारे में अधिक जागरूक बनाया है और बच्चों के प्रति सम्मान और गरिमा को बढ़ावा दिया है।
पॉक्सो एक्ट की धाराएं में से एक धारा 3 के तहत, बच्चे के साथ यौन शोषण को अपराध माना गया है, जिसमें बच्चे के साथ किसी भी प्रकार का यौन संपर्क शामिल है। यह धारा प्रवेशात्मक यौन हमले (Penetrative Sexual Assault) से जुड़ी है। यदि कोई व्यक्ति किसी नाबालिग के साथ शारीरिक संबंध बनाता है, तो इसे धारा 3 के अंतर्गत एक गंभीर अपराध माना जाता है।
यह धारा:
पॉक्सो एक्ट की धारा 4, 18 साल से कम उम्र के बच्चे के साथ यौन उत्पीड़न करने के लिए सजा का प्रावधान करती है। जिसमें बिना अनुमति के छूना, छेड़छाड़, अन्य यौन उत्पीड़न गतिविधि शामिल है। यह धारा गैर-प्रवेशात्मक यौन हमले (Non-Penetrative Sexual Assault) से संबंधित है। यदि कोई व्यक्ति किसी नाबालिग के गुप्तांग या शरीर के किसी हिस्से को अनुचित रूप से छूता है या शारीरिक नुकसान पहुँचाता है, तो यह कृत्य धारा 4 के अंतर्गत आता है और कानूनन दंडनीय है।
यह धारा:
पॉक्सो एक्ट की धारा 5 के तहत, गंभीर यौन शोषण के मामलों जैसे सामूहिक बलात्कार, बार-बार शोषण, या किसी भरोसेमंद व्यक्ति द्वारा शोषण पर कठोर सजा का प्रावधान है। इस धारा में दोषी को न्यूनतम 20 साल की सजा, उम्रकैद या फांसी हो सकती है।
पॉक्सो एक्ट की धाराएं में से एक धारा 6 के तहत, बच्चों के साथ गंभीर यौन शोषण करने पर न्यूनतम 20 साल की सजा, जो उम्रकैद तक बढ़ाई जा सकती है, और जुर्माने का प्रावधान है।
(Section 10 of the POCSO Act, 2012) “गंभीर यौन उत्पीड़न” (Aggravated Sexual Assault) के लिए दंड से संबंधित है। यदि कोई व्यक्ति गंभीर यौन उत्पीड़न करता है (जैसा कि धारा 9 में परिभाषित किया गया है), तो उस पर धारा 10 के अंतर्गत दंड लगाया जाता है।
धारा 19 के तहत कोई भी व्यक्ति, जो यह जानता है कि बच्चे के साथ यौन अपराध हुआ है, उसे पुलिस या बाल कल्याण अधिकारी को सूचित करना होगा। ये सूचना मौखिक या लिखित रूप में दी जा सकती है। जो व्यक्ति सूचना देने में विफल होता है, वो दंडनीय अपराधी है।
पॉक्सो एक्ट की धारा 21 उन लोगों को दंडित करती है जो:
इस धारा के तहत:
2019 में POCSO एक्ट में संशोधन किया गया था, जिसके तहत बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को रोकने के लिए कठोर सजा का प्रावधान किया गया। यह संशोधन बच्चों की सुरक्षा को और अधिक प्रभावी बनाने के उद्देश्य से किया गया था।
पॉक्सो एक्ट को बच्चों पर यौन अपराधों को रोकने के लिए भारत में 14 नवंबर 2012, बाल दिवस के दिन लागू किया गया था।
पॉक्सो एक्ट, जिसे संरक्षण से जुड़े बाल अपराधों का अधिनियम, 2012 भी कहा जाता है, भारत में 19 जून 2012 को पारित किया गया था। यह अधिनियम बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को रोकने और उनसे जुड़े अपराधियों को सजा देने के लिए बनाया गया था।
पॉक्सो एक्ट के तहत गंभीर अपराधों, जैसे बलात्कार या हत्या, में आमतौर पर जमानत नहीं मिलती है। केवल कुछ अपवादों में, उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय असाधारण परिस्थितियों में जमानत पर विचार कर सकते हैं।
पॉक्सो एक्ट में जमानत अपराधी का एक अधिकार नहीं है बल्कि, अदालत का विवेकाधिकार है। अदालत सभी तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करती है और उसके बाद ही जमानत मिलती है:
पॉक्सो एक्ट में जमानत के लिए बचाव पक्ष के पास कई अधिकार हैं जैसे:
POCSO एक्ट के अंतर्गत अलग-अलग अपराधों के लिए विभिन्न प्रकार की सज़ाओं का प्रावधान है, जिनमें कारावास, आर्थिक दंड (जुर्माना) और मृत्युदंड शामिल हैं। विशेष रूप से गंभीर यौन अपराधों के मामलों में फांसी की सज़ा (मृत्युदंड) का भी प्रावधान किया गया है, ताकि अपराध की गंभीरता के अनुरूप कठोर दंड दिया जा सके।
पॉक्सो एक्ट के तहत बच्चों के यौन शोषण मामलों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना की गई है। यह न्यायालय तुरंत और गोपनीय सुनवाई सुनिश्चित करते हैं, जिससे पीड़ित बच्चों को जल्दी न्याय मिल सके।
न्यायालय आरोपी को आरोपों से अवगत कराता है और उसके बयान दर्ज करता है। यदि आरोपी आरोपों से इनकार करता है, तो मुकदमा शुरू होता है। अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष अपने-अपने सबूत पेश करते हैं। न्यायालय साक्ष्यों का मूल्यांकन करने के बाद फैसला सुनाता है। यदि आरोपी दोषी पाया जाता है, तो उसे सजा सुनाई जाती है।
पीड़ित की पहचान, पता और अन्य व्यक्तिगत जानकारी को गोपनीय रखा जाता है। मुकदमे की सुनवाई संवेदनशील और गोपनीय तरीके से की जाती है, जिसमें मीडिया और जनता की भागीदारी प्रतिबंधित होती है। पीड़ित को गवाहों और आरोपी से सुरक्षा प्रदान की जाती है।
पॉक्सो एक्ट एक महत्वपूर्ण कानून है जो बच्चों को यौन शोषण से सुरक्षा प्रदान करता है। यदि आपको खुद या किसी अन्य के माध्यम से बच्चों के विरुद्ध यौन शोषण की जानकारी मिलती है, तो इसकी सूचना तुरंत पुलिस को देना आवश्यक है।
शिकायत दर्ज होने के 24 घंटे के भीतर, पीड़ित का बयान महिला पुलिस अधिकारी या बाल कल्याण अधिकारी द्वारा लिया जाएगा। यह बयान वीडियो रिकॉर्ड किया जाएगा और पीड़ित को उसकी कॉपी दी जाएगी।
डॉक्टर पीड़ित के ब्लड, नाखून, आदि का सैंपल लेकर पीड़ित की शारीरिक जांच करेंगे और यौन उत्पीड़न के सबूत इकट्ठा करेंगे। डॉक्टर द्वारा एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर रिपोर्ट को पुलिस या अदालत में जमा किया जाएगा।
अटॉर्नी जनरल बनाम सतीश और अन्य (2021) केस पॉक्सो एक्ट से जुड़ा एक महत्वपूर्ण मामला था। अपराधी ने 12 साल एक बच्ची को अमरूद देने के बहाने घर में बुलाया और उसके कपड़े के ऊपर उसे शरीर में हाथ फेरने लगा और जबरदस्ती कपड़े हटाने की कोशिश की। केके वेणुगोपाल (भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल) द्वारा दायर एक अपील से भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई कर बॉम्बे उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज किया।
फैसले में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा था की “प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसिज़ एक्ट, 2002 के धारा 7 के तहत सजा देने के लिए 18 साल से कम बच्चों के विरुद्ध यौन उत्पीड़न के अपराध में ‘त्वचा से त्वचा’ का संपर्क होना जरूरी है।” भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने फैसले को खारिज करते हुए आरोपी को IPC 1860 की धारा 354 के तहत 1 साल तक जेल की सजा सुनाई।
इस मामले में, अपराधी पर पीड़ित को उसके माता-पिता से दूर ले जाने और उसके साथ जबरदस्ती यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया गया था। जांच के दौरान, पीड़ित, अपराधी के घर में पाई गई, जिसके कारण उसे न्यायालय द्वारा जुर्माने के साथ ही 10 साल की सजा सुनाई गई। अपराधी ने इस फैसले की अपील की और आरोप लगाया कि पीड़ित ने उसे ऐसा करने के लिए बहकाया और उसकी सहमति से उसके ये सब किया। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि किशोर न्याय नियम 2007, के तहत किशोर की आयु निर्धारित करने के नियम, पॉक्सो एक्ट 2012, से संबंधित मामलों में भी लागू किए जा सकते हैं।
18 साल से कम के बच्चों के साथ यौन संबंध बनाने के उद्देश से लिए जाने वाले छेड़छाड़ को पॉक्सो एक्ट 2012 के तहत गंभीर अपराध मानते हुए कड़ी सजा दी जाती है। जिससे नाबालिक बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के मामलों में कमी आई है। नबालिको के साथ यौन उत्पीड़न के मामलों को कई बार छुपाया भी जाता है, बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के मामलों को पूरी तरह खत्म किया जा सकता है अगर हर एक व्यक्ति “पॉक्सो एक्ट क्या है” के बारे में जाने, इसे गंभीर अपराध की तरह देखे और इसके रिपोर्ट दर्ज कराएं।
इस ब्लॉग में आपको पॉक्सो एक्ट क्या है, इसका महत्व, पॉक्सो एक्ट कब लागू हुआ, पॉक्सो एक्ट की धाराएं, इसकी जांच प्रक्रिया और इससे जुड़े और पहलुओं के बारे में जानने को मिला।
हाँ, पॉक्सो एक्ट में ‘यौन उत्पीड़न’ के तहत कोई भी यौन संपर्क, चाहे वह शारीरिक हो या न हो, को अपराध माना गया है।
हाँ, पॉक्सो एक्ट में बच्चों के लिए पोस्ट-ट्रॉमा काउंसलिंग का प्रावधान है, ताकि वे मानसिक और भावनात्मक रूप से स्वस्थ हो सकें।
पॉक्सो एक्ट के तहत अपील करने की समय सीमा 30 से 60 दिन के भीतर होती है, मामले की जटिलता के आधार पर।
फास्ट ट्रैक कोर्ट का महत्व है कि यह बच्चों के मामलों को तेजी से निपटाने में मदद करता है, जिससे उन्हें जल्द न्याय मिल सके।
पॉक्सो एक्ट के तहत 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की सहमति को मान्य नहीं माना जाता, चाहे उन्होंने सहमति दी हो या नहीं।
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Authored by, Amay Mathur | Senior Editor
Amay Mathur is a business news reporter at Chegg.com. He previously worked for PCMag, Business Insider, The Messenger, and ZDNET as a reporter and copyeditor. His areas of coverage encompass tech, business, strategy, finance, and even space. He is a Columbia University graduate.
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