Vidhan Parishad Wale Rajya

भारत के छह Vidhan Parishad wale Rajya और उनकी शक्तियाँ

Published on October 3, 2025
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Vidhan Parishad Wale Rajya

Quick Summary

  • विधान परिषद को राज्य का उच्च सदन कहा जाता है, जो कानून निर्माण में संतुलन और विशेषज्ञता लाता है।
  • सदस्यों का चुनाव विभिन्न वर्गों से होता है: विधायक, स्थानीय निकाय, स्नातक, शिक्षक और राज्यपाल द्वारा नियुक्त सदस्य।
  • यह केवल कानून बनाने का मंच नहीं, बल्कि राज्य में लोकतंत्र और विचार-विमर्श को मजबूत करने का माध्यम भी है।
  • वर्तमान में भारत में कुल 6 राज्य हैं जिनमें विधान परिषद है: उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश।

Table of Contents

भारत में विधान परिषद (Legislative Council) राज्य स्तर पर विधायिका की एक महत्वपूर्ण इकाई है, जिसे “ऊपरी सदन” के रूप में जाना जाता है। यह उन राज्यों में कार्यरत होती है जहाँ द्विसदनीय (Bicameral) व्यवस्था अपनाई गई है। भारत में फिलहाल केवल 6 राज्यों में विधान परिषद अस्तित्व में है, जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र। Vidhan Parishad Wale Rajya विधान परिषद का मुख्य कार्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों की समीक्षा करना और कानून निर्माण प्रक्रिया में संतुलन बनाना है। यह लेख आपको बताएगा कि किन राज्यों में विधान परिषद है, इसका गठन कैसे होता है, इसके कार्य क्या हैं, और विधानसभा से इसका क्या अंतर है।

भारत की द्विसदनीय व्यवस्था क्या है? | Vidhan Parishad wale Rajya 

(Vidhan parishad wale rajya)भारत का संसदीय ढांचा संघीय (Federal) प्रणाली पर आधारित है, जिसमें केंद्र और राज्यों दोनों के लिए अलग-अलग विधायी व्यवस्थाएँ होती हैं। भारत में संसद और राज्य विधानमंडल दो प्रकार की व्यवस्थाओं में काम करते हैं- द्विसदनीय (Bicameral) और एकसदनीय (Unicameral)। 

द्विसदनीय और एकसदनीय व्यवस्था का परिचय | Vidhan Parishad wale Rajya 

  • एकसदनीय व्यवस्था (Unicameralism): इसमें केवल एक ही सदन होता है- विधान सभा। अधिकतर राज्य इसी प्रणाली का पालन करते हैं। 
  • द्विसदनीय व्यवस्था (Bicameralism): इसमें दो सदन होते हैं। 
    केंद्र स्तर पर लोकसभा (निचला सदन) और राज्यसभा (उच्च सदन)। 
    कुछ राज्यों में विधान सभा (निचला सदन) और विधान परिषद (उच्च सदन)। 

विधान परिषद का गठन और इतिहास

  • भारत में पहली बार विधान परिषद की स्थापना 1861 के भारतीय परिषद अधिनियम द्वारा की गई। इस अधिनियम के तहत गवर्नर-जनरल प्रत्येक प्रांत में छह सदस्यों तक की विधान परिषद तीन वर्ष की अवधि के लिए नियुक्त कर सकते थे।
  • 1892 के भारतीय परिषद अधिनियम ने सदस्यों की संख्या छह से बढ़ाकर बारह कर दी।
  • भारत सरकार अधिनियम 1919 ने प्रांतों में द्विसदनीय विधायिका की स्थापना की, जिसमें विधान सभा और विधान परिषद दोनों शामिल थीं।
  • भारत सरकार अधिनियम 1935 ने प्रांतों में एक सदनीय विधायिका की स्थापना की, जिसमें विधान सभा और विधान परिषद शामिल थीं।
  • भारत सरकार अधिनियम 1949 ने भी प्रांतों में द्विसदनीय विधायिका की व्यवस्था कायम की।
  • राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 के तहत कई राज्यों में विधान परिषदों को समाप्त कर दिया गया।
  • बयालीसवें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 ने जम्मू-कश्मीर को छोड़कर अधिकांश राज्यों में विधान परिषदों को समाप्त कर दिया।
  • विधान परिषद (अवधि विस्तार) अधिनियम 1985 के तहत आंध्र प्रदेश और बिहार में विधान परिषद की अवधि बढ़ा दी गई।

लोकसभा/विधान सभा vs राज्यसभा/विधान परिषद 

बिंदु लोकसभा / विधान सभा राज्यसभा / विधान परिषद 
प्रकार निचला सदन उच्च सदन 
गठन जनता द्वारा सीधे चुनाव अप्रत्यक्ष चुनाव और नामांकन 
कार्यकाल 5 वर्ष (या विघटन तक) स्थायी निकाय, आंशिक सदस्य हर 2 साल में रिटायर 
शक्तियाँ अधिक विधायी और वित्तीय शक्तियाँ समीक्षा और सलाहकार भूमिका में 

विधान परिषद उन्हीं राज्यों में होती है जहाँ द्विसदनीय विधानमंडल की व्यवस्था है। फिलहाल भारत के कुछ ही राज्यों में विधान परिषद है, जिन्हें हम आगे विस्तार से जानेंगे। 

विधान परिषद क्या है? | Vidhan Parishad Wale Rajya 

भारत में कुछ राज्यों में द्विसदनीय व्यवस्था के अंतर्गत विधान सभा के साथ एक दूसरा सदन भी होता है, जिसे विधान परिषद (Member of Legislative Council) कहते हैं। यह उच्च सदन होता है, जो नीतिगत चर्चाओं, विधेयकों की समीक्षा और परामर्शदात्री भूमिका निभाता है। 

MLC क्या है? | MLC Full Form

MLC का फुल फॉर्म है Member of Legislative Council। यह उन सदस्यों के लिए इस्तेमाल होता है जो राज्य की विधान परिषद (Legislative Council) के सदस्य होते हैं।

  • MLC का कार्य राज्य के कानून निर्माण में भाग लेना और विधान परिषद में निर्णय देना होता है।
  • वे विधान सभा (MLA) की तरह कानून बनाने में योगदान करते हैं, लेकिन केवल उच्च सदन यानी विधान परिषद में।

परिभाषा और संवैधानिक आधार (अनुच्छेद 169) 

विधान परिषद एक स्थायी निकाय है, जो संविधान के अनुच्छेद 169 के अंतर्गत गठित किया जाता है। संविधान कहता है कि यदि कोई राज्य विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर केंद्र को सिफारिश भेजे, तो संसद को अधिकार है कि वह उस राज्य में विधान परिषद का गठन करे या उसे समाप्त करे। 

 संविधान का अनुच्छेद 169 – यह संसद को अधिकृत करता है कि वह राज्य की विधान परिषद के निर्माण या उन्मूलन के लिए कानून बनाए। 

विधान परिषद की विशेषताएँ | Vidhan Parishad wale Rajya 

  • यह राज्य का उच्च सदन होता है, जैसे केंद्र में राज्यसभा। 
  • इसके सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं — शिक्षक, स्नातक, स्थानीय निकाय, विधान सभा सदस्य और राज्यपाल द्वारा नामांकित वर्गों से। 
  • कुल सदस्य संख्या विधान सभा की सदस्य संख्या के एक-तिहाई से अधिक नहीं हो सकती। 
  • इसका कार्यकाल स्थायी होता है; प्रत्येक 2 वर्ष में 1/3 सदस्य रिटायर होते हैं। 
  • यह विधायी प्रक्रिया में सलाहकार की भूमिका निभाता है, परंतु इसके पास निर्णायक अधिकार सीमित होते हैं (विशेषकर धन विधेयकों पर)। 

विधान परिषद का मुख्य उद्देश्य राज्य विधान सभा में पारित विधेयकों की गहन समीक्षा और नीतियों का परीक्षण करना होता है। 

भारत में विधान परिषद कितने राज्यों में है? | States with Legislative Council in 2025

भारत में अधिकांश राज्यों में केवल विधान सभा (एकसदनीय व्यवस्था) होती है। लेकिन कुछ राज्यों ने द्विसदनीय विधानमंडल को अपनाया है, जिसमें एक उच्च सदन यानी विधान परिषद (Legislative Council) भी होता है। 

भारत में विधान परिषद कितने राज्यों में है? वर्तमान समय (2025) में भारत के 6 राज्यों में विधान परिषद मौजूद है 

वर्तमान में विधान परिषद वाले 6 राज्य | भारत में विधान परिषद कितने राज्यों में है? 

नीचे उन राज्यों की सूची दी गई है जहाँ विधान परिषद सक्रिय रूप से कार्यरत है: 

राज्यनिर्वाचित सदस्यमनोनीत सदस्यकुल सदस्यस्थापना वर्ष
बिहार विधान परिषद6312751952
आंध्र प्रदेश विधान परिषद508581958
उत्तर प्रदेश विधान परिषद90101001958
महाराष्ट्र विधान परिषद6612781960
कर्नाटक विधान परिषद6411751986
तेलंगाना विधान परिषद346402007
विधान परिषद सदस्य संख्या | विधान परिषद वाले राज्य

1. उत्तर प्रदेश (UP Vidhan Parishad) | भारत में विधान परिषद कितने राज्यों में है? 

  • देश की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी विधान परिषदों में से एक। 
  • गठन: 1935 में 
  • सदस्य संख्या: अधिकतम 100 

2. बिहार (Bihar Vidhan Parishad) | भारत में विधान परिषद कितने राज्यों में है? 

  • एक स्थायी निकाय, जो विधान सभा के समानांतर कार्य करता है। 
  • गठन: 1936 में 
  • सदस्य संख्या: लगभग 75 

3. महाराष्ट्र | भारत में विधान परिषद कितने राज्यों में है? 

  • देश के सबसे महत्वपूर्ण औद्योगिक राज्यों में से एक, यहाँ भी द्विसदनीय व्यवस्था है। 
  • गठन: 1960 में 
  • सदस्य संख्या: 78 

4. कर्नाटक 

  • कर्नाटक विधान परिषद राज्य की विधायी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
  • गठन: 1952 में 
  • सदस्य संख्या: 75 

5. तेलंगाना 

  • आंध्र प्रदेश से अलग होने के बाद तेलंगाना ने अपनी विधान परिषद बनाए रखी। 
  • गठन: 2014 में 
  • सदस्य संख्या: 40 

6. आंध्र प्रदेश | भारत में विधान परिषद कितने राज्यों में है? 

  • हालाँकि एक बार इसे भंग किया गया था, लेकिन अब फिर से विधान परिषद सक्रिय है। 
  • पुनर्गठन: 2007 में 
  • सदस्य संख्या: लगभग 58 

UP Vidhan Parishad की संरचना और कार्य | Vidhan Parishad State

Up Vidhan Parishad wale rajya में उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा राज्य है, और यही कारण है कि यहाँ की विधायिका द्विसदनीय है। इसमें विधान सभा के साथ-साथ विधान परिषद (Legislative Council) भी कार्यरत है। UP Vidhan Parishad न केवल एक स्थायी उच्च सदन है, बल्कि यह राज्य की नीतियों और कानूनों की समीक्षा में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

सदस्यों की संख्या और चुनाव प्रक्रिया | UP Vidhan Parishad 

UP विधान परिषद में कुल 100 सदस्य होते हैं। ये सदस्य अप्रत्यक्ष चुनाव और नामांकन के ज़रिए चुने जाते हैं। सदस्यता का वितरण निम्न प्रकार से होता है: 

श्रेणी सदस्य संख्या 
स्थानीय निकायों से निर्वाचित 36 
विधान सभा के सदस्य द्वारा निर्वाचित 36 
शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से 
स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से 
राज्यपाल द्वारा नामित 12 

कार्यकाल: विधान परिषद एक स्थायी सदन है। हर 2 वर्ष में 1/3 सदस्य रिटायर होते हैं और नए चुने जाते हैं। 

 चयन प्रक्रिया: सदस्य MLA, शिक्षक, स्नातक, स्थानीय निकायों और राज्यपाल द्वारा तय की गई प्रक्रिया से चुने जाते हैं। इसका उद्देश्य विविध क्षेत्रों की राय को विधान प्रक्रिया में शामिल करना होता है। 

यूपी विधान परिषद की भूमिका उत्तर प्रदेश की राजनीति में | UP Vidhan Parishad 

उत्तर प्रदेश विधान परिषद की भूमिका मुख्यतः विधायी प्रक्रिया की समीक्षा और राजनीतिक संतुलन बनाए रखने की होती है। इसमें कोई सरकार नहीं बनती, लेकिन यह विधान सभा द्वारा पारित विधेयकों की गहन समीक्षा करती है। 

प्रमुख भूमिकाएँ: 

  • विधेयकों पर पुनर्विचार: विधानसभा में पारित विधेयकों को यह सुझाव या संशोधन के साथ लौटा सकती है। 
  • विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व: शिक्षक, स्नातक, स्थानीय निकाय – इन वर्गों की आवाज विधान प्रक्रिया में लाना। 
  • नीतियों पर चर्चा: यह सदन सरकार की नीतियों पर गंभीर चर्चा करता है और विशेषज्ञता आधारित विचार रखता है। 

नोट: UP Vidhan Parishad की सदस्यता सीधे जनता द्वारा नहीं बल्कि विशेष निर्वाचन क्षेत्रों और नामांकन के माध्यम से दी जाती है, जिससे यह अधिक विशेषज्ञता आधारित मं बन जाता है। 

बिहार विधान परिषद का परिचय और महत्व | vidhan parishad wale rajya 

बिहार विधान परिषद (Bihar Legislative Council) भारत के उन चुनिंदा राज्यों की विधान व्यवस्थाओं में से एक है जहाँ द्विसदनीय प्रणाली अपनाई गई है। यह परिषद राज्य की नीतियों की समीक्षा, विशेष वर्गों की भागीदारी और शिक्षा व समाज कल्याण से जुड़े मामलों में प्रभावशाली भूमिका निभाती है। 

बिहार विधान परिषद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 

बिहार विधान परिषद की स्थापना 1936 में ब्रिटिश भारत के शासनकाल के दौरान की गई थी, जब बिहार को एक स्वतंत्र प्रांत का दर्जा मिला। यह देश की सबसे पुरानी विधान परिषदों में से एक है। 

  • इसकी शुरुआत गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1919 के तहत हुई थी, लेकिन मौजूदा स्वरूप स्वतंत्रता के बाद संविधान के अनुच्छेद 169 के तहत लागू हुआ। 
  • यह एक स्थायी सदन है, जिसमें समय-समय पर 1/3 सदस्य सेवानिवृत्त होते हैं। 

इसके गठन का उद्देश्य था – शिक्षा, स्थानीय निकाय, स्नातक व नामांकित वर्गों को विधान प्रक्रिया में प्रतिनिधित्व देना। 

बिहार विधान परिषद : शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र में इसकी भागीदारी 

बिहार विधान परिषद का सामाजिक और शैक्षणिक महत्व बहुत गहरा है। यह विशेष रूप से उन वर्गों की आवाज़ बनती है जो सीधे चुनावी प्रक्रिया में पूरी तरह भाग नहीं ले पाते: 

शिक्षा क्षेत्र में भूमिका: 

  • परिषद में शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र और स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए सदस्य शिक्षा नीति, स्कूल-कॉलेजों की स्थिति, और उच्च शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर विशेषज्ञ विचार रखते हैं। 
  • इससे नीति निर्माण में शैक्षिक दृष्टिकोण भी शामिल होता है। 

सामाजिक क्षेत्र में भागीदारी: 

  • परिषद में स्थानीय निकायों से चुने गए सदस्य ग्राम पंचायत, नगर निकाय, और सामाजिक संगठनों की जमीनी समस्याओं को सदन में रखते हैं। 
  • राज्यपाल द्वारा मनोनीत सदस्य साहित्य, समाजसेवा, कला, विज्ञान जैसे क्षेत्रों से होते हैं, जिससे सामाजिक प्रतिनिधित्व बढ़ता है। 

विधान परिषद के सदस्य कैसे चुने जाते हैं? | vidhan parishad wale rajya 

विधान परिषद (Legislative Council) भारत के कुछ राज्यों का उच्च सदन है, जिसके सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं। इनका चुनाव विभिन्न वर्गों और कोटे के आधार पर होता है, जिससे विधान परिषद विशेषज्ञता और अनुभव का प्रतिनिधित्व करती है। 

विभिन्न कोटे (MLAs, Teachers, Graduates) 

विधान परिषद के सदस्य निम्नलिखित कोटों से चुने जाते हैं: 

कोटा/वर्ग चयन प्रक्रिया प्रतिशत (लगभग) 
विधान सभा सदस्य (MLAs) विधायकों द्वारा चुनाव 1/3 
स्थानीय निकाय (नगर पालिका, पंचायत) स्थानीय निकायों के निर्वाचित सदस्य 1/3 
शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र माध्यमिक विद्यालय या उससे ऊपर पढ़ाने वाले शिक्षकों द्वारा 1/12 
स्नातक निर्वाचन क्षेत्र स्नातक डिग्रीधारकों द्वारा चुनाव 1/12 
राज्यपाल द्वारा नामित साहित्य, विज्ञान, कला, समाजसेवा आदि से 1/6 

 वोटिंग अधिकार आम जनता को नहीं होता, बल्कि विशेष पात्रता रखने वाले लोग ही मतदान कर सकते हैं। 

कार्यकाल और सदस्य संख्या 

  • कार्यकाल: विधान परिषद एक स्थायी सदन होता है। इसके सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष होता है। हर 2 साल में 1/3 सदस्य रिटायर होते हैं और नए सदस्य चुने जाते हैं। 
  • सदस्य संख्या: 
  • किसी राज्य की विधान परिषद की कुल सदस्य संख्या, उस राज्य की विधान सभा की संख्या के एक-तिहाई से अधिक नहीं हो सकती। 
  • हालांकि, न्यूनतम सदस्य संख्या 40 होनी चाहिए। 

उदाहरण: 

  • उत्तर प्रदेश में: 100 सदस्य 
  • महाराष्ट्र में: 78 सदस्य 
  • बिहार में: 75 सदस्य 

विधान परिषद के कार्य और भूमिका | vidhan parishad wale rajya 

विधान परिषद (Legislative Council) राज्य की विधायी प्रक्रिया का उच्च सदन है। यह भले ही सीधे जनता द्वारा नहीं चुनी जाती, लेकिन इसकी भूमिका नीति निर्माण, कानून की समीक्षा और विशेषज्ञता आधारित विमर्श में बेहद महत्त्वपूर्ण होती है। 

कानून निर्माण में भागीदारी 

  • विधान परिषयदि विधानसभा कोई साधारण विधेयक पास करती है और परिषद उसे दो बार अस्वीकार कर देती है, तो विधानसभा की मंजूरी को ही अंतिम माना जाता है। 
  • द राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत साधारण विधेयकों (Ordinary Bills) पर विचार करती है। 
  • यह विधेयकों को स्वीकृति, संशोधन या स्थगित करने का सुझाव दे सकती है। 
  • परिषद द्वारा वित्तीय विधेयक पेश नहीं किया जा सकता और न ही वह उसे अस्वीकार कर सकती है, लेकिन उस पर चर्चा ज़रूर कर सकती है। 

इसका अर्थ है कि विधान परिषद की भूमिका सलाहकार और पुनरीक्षण की होती है, जबकि अंतिम निर्णय का अधिकार विधानसभा के पास होता है। 

राज्य विधानसभा के निर्णयों पर विचार 

  • विधानसभा में पारित विधेयकों और प्रस्तावों की गहन समीक्षा करना परिषद का एक प्रमुख कार्य है। 
  • परिषद विधानसभा द्वारा जल्दबाज़ी में लिए गए निर्णयों को संशोधन या विचार हेतु रोक सकती है। 
  • यह एक बैलेंसिंग संस्था के रूप में कार्य करती है जिससे किसी भी कानून को पारित करने में व्यापक दृष्टिकोण और विमर्श सुनिश्चित हो। 

विधान परिषद की उपयोगिता और आलोचना | vidhan parishad wale rajya 

विधान परिषद राज्य की विधायी प्रक्रिया में एक उच्च सदन की तरह कार्य करती है। इसकी संरचना, कार्य और उद्देश्य लोकतंत्र को अधिक समावेशी और विशेषज्ञता आधारित बनाने के लिए बनाए गए हैं। लेकिन इसके अस्तित्व को लेकर समय-समय पर सवाल भी उठते रहे हैं। 

सकारात्मक पहलू: विशेषज्ञता और स्थायित्व 

  • विशेषज्ञ वर्गों की भागीदारी: 
    शिक्षक, स्नातक, समाजसेवक, साहित्यकार जैसे वर्गों को विधान परिषद के माध्यम से प्रतिनिधित्व मिलता है, जो सामान्य चुनावी राजनीति में नहीं हो पाता। 
  • गंभीर विमर्श और समीक्षा: 
    यह उच्च सदन विधानसभा में जल्दबाज़ी में लाए गए विधेयकों की गहन समीक्षा करता है, जिससे अधिक संतुलित और टिकाऊ कानून बनते हैं। 
  • स्थायित्व और अनुभव: 
    चूंकि यह एक स्थायी सदन है (हर 2 साल में 1/3 सदस्य रिटायर होते हैं), यह नीतियों में निरंतरता बनाए रखता है और अनुभवी नेताओं का मार्गदर्शन प्रदान करता है। 

नकारात्मक पहलू: खर्च, विलंब, राजनीतिक लाभ 

  • वित्तीय बोझ: 
    विधान परिषद को संचालित करने में राज्य सरकार पर अतिरिक्त खर्च आता है, जबकि इसकी निर्णय लेने की शक्ति सीमित होती है। 
  • विधायी प्रक्रिया में विलंब: 
    कभी-कभी यह परिषद सरकार द्वारा लाए गए विधेयकों को अनावश्यक रूप से विलंबित कर देती है, जिससे नीतियों के लागू होने में बाधा आती है। 
  • राजनीतिक नियुक्तियाँ और फायदा: 
    कई बार विधान परिषद का उपयोग राजनीतिक दल अपने पराजित नेताओं को मनोनीत करने या पुनः सत्ता में लाने के लिए करते हैं, जिससे इसकी प्रामाणिकता पर सवाल उठते हैं। 

क्या भारत में अन्य राज्यों में विधान परिषद बन सकती है?  

भारत का संविधान राज्यों को यह अधिकार देता है कि वे आवश्यकता महसूस होने पर अपनी विधान व्यवस्था को एकसदनीय से द्विसदनीय बना सकते हैं। यानी अगर कोई राज्य चाहे, तो वह विधान परिषद (Legislative Council) का गठन कर सकता है लेकिन इसके लिए एक संवैधानिक प्रक्रिया का पालन ज़रूरी होता है। 

संविधान की प्रक्रिया और राज्य की मांगें 

विधान परिषद बनाने या भंग करने की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 169 में वर्णित है: 

  1. राज्य विधानसभा को प्रस्ताव पारित करना होता है – इसे सदन के कुल सदस्यों के बहुमत और उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित किया जाना चाहिए। 
  1. इसके बाद यह प्रस्ताव संसद को भेजा जाता है , और यदि संसद साधारण बहुमत से इसे पारित कर दे, तो राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद विधान परिषद का गठन किया जा सकता है। 

उदाहरण: पश्चिम बंगाल, राजस्थान, ओडिशा 

भारत के कई राज्य समय-समय पर विधान परिषद के गठन की मांग उठा चुके हैं: 

  1. पश्चिम बंगाल 
  • ममता बनर्जी सरकार ने 2021 में विधान परिषद बनाने का प्रस्ताव पारित किया था। 
  • उद्देश्य था – वरिष्ठ नेताओं, बुद्धिजीवियों को प्रतिनिधित्व देना, लेकिन संसद में इसे अभी तक पारित नहीं किया गया। 
  1. राजस्थान 
  • अशोक गहलोत सरकार ने भी 2022 में विधान परिषद की संभावनाओं पर विचार शुरू किया। 
  • कहा गया कि इससे नीति-निर्माण में विविधता और गहराई आएगी। 
  1. ओडिशा 
  • नवीन पटनायक सरकार ने भी विधान परिषद की माँग उठाई थी, विशेषकर शिक्षित वर्ग और समाजसेवियों को प्रतिनिधित्व देने के लिए। 

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश list

निष्कर्ष 

विधान परिषद राज्य(vidhan parishad wale rajya) स्तर पर विशेषज्ञों और शिक्षित वर्ग को प्रतिनिधित्व देने वाली संस्था है। यह नीतियों की समीक्षा, विधानसभा के फैसलों पर संतुलन और लोकतंत्र को गहराई देने का कार्य करती है। हालांकि इसमें खर्च और राजनीतिक लाभ जैसी समस्याएं हैं, फिर भी यदि इसका उपयोग सही उद्देश्य से हो, तो यह भारत के लोकतंत्र को और अधिक समावेशी और प्रभावी बना सकती है। 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

वर्तमान में कुल कितने राज्यों में विधान परिषद है?

वर्तमान में भारत के 6 राज्यों में विधान परिषद (Legislative Council) है। ये राज्य हैं:
उत्तर प्रदेश
बिहार
महाराष्ट्र
आंध्र प्रदेश
तेलंगाना
कर्नाटक

वर्तमान में भारत में कितने राज्यों में विधानसभा है?

वर्तमान में भारत के सभी 28 राज्यों में विधानसभा (Legislative Assembly) है।

विधान परिषद क्या है?

विधान परिषद राज्य की द्विसदनीय विधायिका का उच्च सदन होता है, जिसे राज्यसभा की तरह माना जाता है। यह स्थायी सदन होता है, जिसे भंग नहीं किया जा सकता।

विधान परिषद के सदस्य कैसे चुने जाते हैं?

विधान परिषद के सदस्य शिक्षक, स्नातक, स्थानीय निकायों और विधान सभा के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं, साथ ही कुछ सदस्य राज्यपाल द्वारा नामित किए जाते हैं।

भारत में विधान परिषद की शुरुआत कब हुई?

भारत में विधान परिषद की शुरुआत 1935 के भारतीय शासन अधिनियम (Government of India Act 1935) के तहत हुई थी, लेकिन संविधान लागू होने के बाद इसका प्रावधान अनुच्छेद 169 में किया गया।

विधान परिषद का कार्यकाल कितना होता है?

विधान परिषद एक स्थायी सदन होता है और इसे भंग नहीं किया जाता। इसके एक-तिहाई सदस्य हर दो साल में सेवानिवृत्त होते हैं और उनका कार्यकाल 6 वर्षों का होता है।

विधानसभा और विधान परिषद में क्या अंतर है?

विधानसभा राज्य का निचला सदन है, जिसके सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं, जबकि विधान परिषद ऊपरी सदन है, जिसके सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं।

Authored by, Aakriti Jain
Content Curator

Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.

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