श्वेत क्रांति की शुरुआत 1970 के दशक में डॉ. वर्गीज कुरियन के नेतृत्व में हुई थी।
श्वेत क्रांति भारत में दूध उत्पादन में हुई एक क्रांतिकारी परिवर्तन को कहते हैं।
इसे ‘ऑपरेशन फ्लड’ के नाम से भी जाना जाता है।
इस अभियान ने भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बना दिया।
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श्वेत क्रांति या दुग्ध क्रांति, जिसने भारत के दूध उत्पाद को पिछले 63 सालों में 11.5 गुना किया, भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बनाया साथ ही देश के किसानों की अर्थव्यवस्ता को बेहतर बनाया। ऐसे में एक भारतीय होने के दृष्टिकोण से आपको “श्वेत क्रांति क्या है” के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए।
इस ब्लॉग में आपको श्वेत क्रांति क्या है, श्वेत क्रांति के जनक कौन हैं, श्वेत क्रांति किससे संबंधित है, श्वेत क्रांति कब हुई, तथा श्वेत क्रांति के जुड़े और भी महत्वपूर्ण चीजों के बारे में विस्तार से जानकारी मिलेगी।
श्वेत क्रांति क्या है? | shwet kranti ka sambandh kisse hai
श्वेत क्रांति, जिसे दुग्ध क्रांति के नाम से भी जाना जाता है, भारत में डेयरी उद्योग में लाए गए क्रांतिकारी बदलावों का एक दौर था। यह 1961 में शुरू हुआ और इसका उद्देश्य दूध उत्पादन बढ़ाना, किसानों को सशक्त बनाना और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना था।
श्वेत क्रांति के उद्देश्य
दूध उत्पादन में वृद्धि: भारत को दूध और डेयरी उत्पादों की कमी का सामना करना पड़ रहा था। श्वेत क्रांति का लक्ष्य दूध उत्पादन को बढ़ाकर इस कमी को दूर करना था।
किसानों का सशक्तिकरण: डेयरी सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को संगठित करके और उन्हें बेहतर तकनीक, पशुधन और बाजार तक पहुंच प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाना था।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना: श्वेत क्रांति का एक उद्देश डेयरी उद्योग को बढ़ावा देकर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करना और किसानों की आय में वृद्धि करना था।
बिचौलियों को समाप्त करना: बिचौलियों (दलाल) का सफाया करना क्योंकि उत्पादक सहकारी समितियों द्वारा संचालित ये केंद्र किसानों से दूध शीतलन केंद्रों से दूर लेते हैं।
पशु चिकित्सा सुविधाएं: ईस समिति का उद्देश्य बेहतर पशु चिकित्सा सुविधाएँ, स्वास्थ्य सेवाएँ और गाय और भैंस की बेहतर नस्लें प्रदान करना था।
श्वेत क्रांति का इतिहास | History of the White Revolution
वर्ष 1964-1965 के दौरान भारत में गहन पशु विकास कार्यक्रम शुरू किया गया था, जिसमें पशुपालकों को देश में श्वेत क्रांति को बढ़ावा देने के लिए उन्नत पशुपालन का पैकेज प्रदान किया गया था। बाद में, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड ने देश में श्वेत क्रांति की गति को बढ़ाने के लिए “ऑपरेशन फ्लड” नामक एक नया कार्यक्रम शुरू किया।
ऑपरेशन फ्लड की शुरुआत वर्ष 1970 में हुई थी और इसका उद्देश्य देश भर में दूध ग्रिड बनाना था। यह NDDB – भारतीय राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड द्वारा शुरू किया गया एक ग्रामीण विकास कार्यक्रम था।
श्वेतक्रांतिकेविभिन्न चरण | Shwet Kranti kise kahate hain
ऑपरेशन फ्लड तीन चरणों में शुरू किया गया था जिनकी चर्चा नीचे की गई है:
चरण 1
1970 में शुरू हुआ और 1980 तक यानी दस साल तक चलता रहा। विश्व खाद्य कार्यक्रम के तहत यूरोपीय संघ द्वारा दिए गए बटर ऑयल और स्किम मिल्क पाउडर की बिक्री से इस चरण के लिए धन जुटाने में मदद मिली। चरण I
की शुरुआत में, कार्यक्रम के उचित क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए विशिष्ट लक्ष्य निर्धारित किए गए थे। लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, ऐसा ही एक उद्देश्य शहरी क्षेत्रों में दूध विपणन रणनीति को बढ़ाना था।
चरण II
1981 से 1985 तक चला, जो पाँच वर्षों की अवधि थी। इस चरण में, दूध की दुकानों का विस्तार लगभग 290 शहरी बाजारों तक किया गया, दूध शेडों की संख्या 18 से बढ़कर 136 हो गई, और 43,000 ग्रामीण सहकारी समितियों के बीच वितरित 4,250,000 दूध उत्पादकों सहित एक आत्मनिर्भर प्रणाली स्थापित की गई।
सहकारी समितियों के प्रत्यक्ष दूध विपणन के परिणामस्वरूप, घरेलू दूध पाउडर का उत्पादन 1980 में 22,000 टन से बढ़कर 1989 में 140,000 टन हो गया। इसके अतिरिक्त, दूध की दैनिक बिक्री में कई मिलियन लीटर की वृद्धि हुई। उत्पादकता में सभी सुधार ऑपरेशन फ्लड के दौरान डेयरी सेटअप का परिणाम मात्र थे।
चरण III
1985 से 1996 तक चला, यानी करीब दस साल। इस चरण ने कार्यक्रम को पूरा किया और डेयरी सहकारी समितियों को बढ़ने का मौका दिया। इसके अतिरिक्त, यह दूध की बड़ी मात्रा प्राप्त करने और बेचने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे को मजबूत करता है।
ऑपरेशन फ्लड के अंत में स्थापित 73,930 डेयरी सहकारी समितियों के माध्यम से 3.5 करोड़ से अधिक डेयरी किसान सदस्य जुड़े थे, जिसे श्वेत क्रांति के रूप में भी जाना जाता है। श्वेत क्रांति के परिणामस्वरूप, भारत में वर्तमान में कई सौ बहुत प्रभावी सहकारी समितियाँ हैं। इसलिए, कई भारतीय समुदायों की समृद्धि का श्रेय क्रांति को दिया जा सकता है।
श्वेत क्रांति के जनक: डॉ. वर्गीज कुरियन
डॉ. वर्गीज कुरियन को भारत में श्वेत क्रांति के जनक के रूप में जाना जाता है। श्वेत क्रांति के जनक के रूप में जाने जाने वाले डॉ. वर्गीज कुरियन ने 1960 और 1970 के दशक में भारत में डेयरी उद्योग में क्रांतिकारी बदलाव लाए, जिसका परिणाम ये हुआ कि देश दूध उत्पादन में आत्मनिर्भर बन गया और लाखों किसानों को इससे लाभ हुआ।
डॉ. वर्गीज कुरियन का योगदान
डॉ. कुरियन ने भारत में डेयरी सहकारी आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसने किसानों को सशक्त बनाया और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया।
उन्होंने आधुनिक डेयरी प्रौद्योगिकियों और प्रबंधन प्रथाओं को पेश किया, जिससे दूध उत्पादन और गुणवत्ता में सुधार हुआ।
उन्होंने “अमूल” ब्रांड का निर्माण किया, जो भारत में डेयरी उत्पादों का एक विश्वसनीय और लोकप्रिय नाम बन गया।
उनके प्रयासों के फलस्वरूप, भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बन गया। आज भारत पूरे विश्व का लगभग 23% दूध उत्पाद करता है।
जीवन और कार्य
डॉ. कुरियन का जन्म 23 नवंबर 1921 को केरल के अंबातूर में हुआ था।
उन्होंने 1948 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की।
1949 में, वे संयुक्त राज्य अमेरिका गए और मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी से डेयरी टेक्नोलॉजी में मास्टर डिग्री हासिल की।
1951 में भारत लौटने के बाद, वे “केरल लाइवस्टॉक एंड डेयरी डेवलपमेंट डिपार्टमेंट” में शामिल हो गए।
1953 में, उन्होंने “आनंद” नामक एक छोटे से डेयरी सहकारी समिति की स्थापना की।
“आनंद” बाद में “अमूल” बन गया, जो भारत की सबसे प्रसिद्ध डेयरी सहकारी समितियों में से एक है।
डॉ. कुरियन ने “नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड” (NDDB) के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया, जिसने “ऑपरेशन फ्लड” नामक एक राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम शुरू किया।
9 सितंबर 2012 को उन्होंने अपनी अंतिम सांसें ली और उस वक्त तक उनके प्रयासों ने देश के दूध उत्पादक को 120 मिलियन टन के ऊपर पहुंचाया और भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बनाया।
श्वेत क्रांति किससे संबंधित है?
दुग्ध उत्पादन
श्वेत क्रांति, दूध और डेयरी उत्पादन से संबंधित है। यह भारत में 1961 में शुरू हुआ था जिसका उद्देश्य दूध उत्पादन में वृद्धि करना, किसानों को सशक्त बनाना और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना था।
यह क्रांति “ऑपरेशन फ्लड” नामक एक व्यापक कार्यक्रम के माध्यम से लागू की गई थी, जिसमें डेयरी सहकारी समितियों का गठन, बेहतर पशुधन और तकनीक प्रदान करना, चारा विकास, पशु स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार और दूध खपत में सुधार शामिल था।
डेयरी सहकारी आंदोलन
डेयरी सहकारी आंदोलन, जिसे आमतौर पर “श्वेत क्रांति” के नाम से भी जाना जाता है, भारत में दुग्ध उत्पादन और वितरण में एक प्रमुख बदलाव लाया। इस आंदोलन की शुरुआत 1946 के दशक में हुई, जिसका मुख्य उद्देश्य किसानों को एकत्रित करके एक मजबूत सहकारी प्रणाली विकसित करना था।
इसकी शुरुआत गुजरात के आणंद जिले से हुई, जहाँ किसानों ने मिलकर आनंद ब्रांड (आज अमूल ब्रांड) की स्थापना की। इससे उन्हें अपने दूध का उचित मूल्य मिलने लगा और बिचौलियों की भूमिका खत्म हो गई। इससे न केवल दूध उत्पादन में वृद्धि हुई, बल्कि लाखों किसानों की आजीविका में भी सुधार हुआ।
डेयरी सहकारी आंदोलन ने उस समय भारत को विश्व के सबसे बड़े दूध उत्पादक देशों में से एक बना दिया है और यह आज भी किसानों के सशक्तिकरण का एक सफल मॉडल माना जाता है।
श्वेत क्रांति कब हुई?
श्वेत क्रांति भारत में 1961 में शुरू हुई थी। इसका उद्देश्य दूध उत्पादन बढ़ाना, किसानों को सशक्त बनाना और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना था। यह क्रांति पूरे भारत में लागू की गई थी, लेकिन इसका मुख्य केंद्र गुजरात था।
श्वेत क्रांति की महत्वपूर्ण घटनाएँ वर्ष के हिसाब से
वर्ष
घटनाएँ
1946
गुजरात के आणंद जिले में अमूल की स्थापना हुई। यह सहकारी आंदोलन का प्रारंभिक बिंदु था।
1955
राष्ट्रीय डेयरी विकास संस्थान (NDRI), करनाल की स्थापना।
1961
श्वेत क्रांति की शुरुआत।
1965
राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) की स्थापना हुई, जिससे इस आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा मिला।
1970
“ऑपरेशन फ्लड” कार्यक्रम की शुरुआत।
1981
“ऑपरेशन फ्लड” का दूसरा चरण शुरू हुआ, जिसका ध्यान ग्रामीण क्षेत्रों में डेयरी सहकारी समितियों के विकास पर केंद्रित था।
1985
“ऑपरेशन फ्लड” का तीसरा चरण शुरू हुआ, जिसका ध्यान डेयरी उत्पादों के विपणन और प्रसंस्करण पर केंद्रित था।
1997
भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बना और उसने संयुक्त राज्य अमेरिका को पीछे छोड़ दिया।
2011
देश में दूध उत्पाद का आंकड़ा 121.8 मिलियन टन पहुंचा।
2012
राष्ट्रीय डेयरी नीति की शुरुआत।
2014
राष्ट्रीय पशुधन मिशन (NLM) शुरू हुआ।
2021
भारत ने 200 मिलियन टन का आंकड़ा पार करते हुए 210 मिलियन टन दूध का उत्पाद किया।
श्वेत क्रांति
श्वेत क्रांति का महत्व
आर्थिक सुधार
रोजगार निर्माण: डेयरी उद्योग में रोजगार के अवसरों में वृद्धि ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति दी।
किसानों की आय में वृद्धि: दूध उत्पादन से होने वाली आय ने किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत की।
गरीबी में कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी कम करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
दूध और डेयरी उत्पादों का निर्यात: देश में विदेशी मुद्रा में वृद्धि हुई।
आर्थिक विकास: ग्रामीण और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान दिया।
दुग्ध उत्पादन में वृद्धि
1961 में शुरू हुई श्वेत क्रांति का मुख्य उद्देश्य देश में दूध की कमी को दूर करना और किसानों को सशक्त बनाना था। जहां 1961 में भारत दूध की कमी ने जूज रहा था, देश का दूध उत्पाद सिर्फ 20 मिलियन टन था और भारत को दूध के लिए दूसरे देशों पर निर्भर होना पड़ता था।
वर्तमान (2025) में ये स्थिति बिल्कुल विपरित है, श्वेत क्रांति के कारण आज भारत विश्व का सबसे बड़ा मिल्क प्रोड्यूसर है जो पूरे विश्व में 23% की भागेदारी रखता है। देश का दूध उत्पाद 2024 में 230 मिलियन टन से भी ज्यादा था और 2025 में भारत का दूध उत्पादन 216.5 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) तक पहुंचने का अनुमान है। भारत ने वित्तीय साल 2023 में करीब ₹22.7 अरब के दूध और दूध से बने हुए उत्पाद को बाहर के देशों तक पहुंचाया।
पोषण सुधार
श्वेत क्रांति ने भारत में न केवल दूध उत्पादन में वृद्धि की, बल्कि देश के पोषण स्तरको भी बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पोषण सुधार में योगदान:
दूध और डेयरी उत्पादों की उपलब्धता में वृद्धि: श्वेत क्रांति के कारण, दूध और डेयरी उत्पाद जैसे दही, पनीर और घी देश भर में अधिक आसानी से उपलब्ध हो गए।
प्रोटीन और कैल्शियम की कमी को दूर करना: दूध और डेयरी उत्पाद प्रोटीन और कैल्शियम के महत्वपूर्ण स्रोत हैं, जो बच्चों और वयस्कों दोनों के लिए आवश्यक पोषक तत्व हैं। श्वेत क्रांति ने इन पोषक तत्वों की कमी को दूर करने में मदद की, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
बाल मृत्यु दर में कमी: दूध और डेयरी उत्पादों की खपत में वृद्धि से बच्चों में कुपोषण और बाल मृत्यु दर में कमी आई।
सामुदायिक स्वास्थ्य में सुधार: श्वेत क्रांति ने लोगों के समग्र स्वास्थ्य और प्रतिरक्षा में सुधार करने में भी योगदान दिया।
दूध खपत में बढ़त: जहा 1970 में रोजाना दूध खपत 107 ग्राम/व्यक्ति थी वो 2022 तक बढ़कर 444 ग्राम/व्यक्ति हो गई।
ग्रामीण विकास
श्वेत क्रांति से ग्रामीण क्षेत्रों में डेयरी उद्योग के विकास से नए रोजगार के अवसर पैदा हुए, जिससे महिलाओं और युवाओं को भी लाभ मिला। श्वेत क्रांति ने न केवल दूध उत्पादन में वृद्धि की, बल्कि ग्रामीण बुनियादी ढांचे, जैसे सड़कों, बिजली, और ठंडे गोदाम सुविधाओं का भी विकास किया।
श्वेत क्रांति के लाभ
किसानों के लिए
श्वेत क्रांति ने किसानों के लिए कई लाभ प्रदान किए। इस आंदोलन के तहत:
किसानों को सहकारी समितियों में संगठित किया गया, जिससे उन्हें दूध का उचित मूल्य मिलने लगा और बिचौलियों की भूमिका कम हो गई।
इससे उनकी आय में वृद्धि हुई और आर्थिक स्थिरता आई।
सहकारी मॉडल ने किसानों को बाजार की बेहतर समझ और प्रबंधन कौशल सिखाए, जिससे वे अधिक आत्मनिर्भर बने।
उन्हें आधुनिक दुग्ध उत्पादन तकनीकों और पशुपालन की जानकारी भी मिली, जिससे उनकी उत्पादकता में सुधार हुआ।
उपभोक्ताओं के लिए
दूध और डेयरी उत्पादों की उपलब्धता में वृद्धि हुई, जिससे इनकी कीमतें स्थिर रहीं और गुणवत्ता में सुधार हुआ।
उपभोक्ताओं को ताजा और सुरक्षित डेयरी उत्पाद आसानी से मिल सका।
सहकारी मॉडल ने यह सुनिश्चित किया कि उपभोक्ताओं को सीधे किसानों से दूध मिले, जिससे उसकी शुद्धता और पोषण बरकरार रहे।
अमूल जैसे ब्रांड्स ने विविध डेयरी उत्पादों की रेंज पेश की, जिससे उपभोक्ताओं को अधिक विकल्प मिले।
राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए
श्वेत क्रांति ने भारत की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को कई तरह से लाभ पहुंचाया:
सबसे पहले, इसने भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बना दिया, जिससे देश की अर्थव्यवस्था में वृद्धि हुई।
इससे न केवल देश की खाद्य सुरक्षा मजबूत हुई, बल्कि दूध और डेयरी उत्पादों के निर्यात में भी बढ़ोतरी हुई।
डेयरी उद्योग ने ग्रामीण क्षेत्रों में लाखों रोजगार के अवसर पैदा किए, जिससे ग्रामीण आबादी की आय में वृद्धि हुई और गरीबी में कमी आई।
श्वेत क्रांति के कारण दूध उत्पाद में बढ़त हुई और भारत ने वित्तीय साल 2023 में ₹22.7 अरब के दूध और दूध से बने हुए उत्पाद का निर्यात किया।
श्वेत क्रांति के प्रभाव
डेयरी उद्योग का विस्तार
श्वेत क्रांति ने भारत के डेयरी उद्योग को एक नए आयाम पर पहुंचा दिया। 1961 में शुरू हुई इस क्रांति ने न केवल दूध उत्पादन में वृद्धि की, बल्कि पूरे डेयरी क्षेत्र का विस्तार भी किया।
विस्तार के पहलू:
संस्थागत विकास: डेयरी सहकारी समितियों का गठन, ‘ऑपरेशन फ्लड’ जैसी योजनाओं का शुभारंभ, और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की स्थापना।
तकनीकी प्रगति: आधुनिक दुग्ध उत्पादन तकनीकों का परिचय, बेहतर पशुधन नस्लों का विकास, और चारा उत्पादन में वृद्धि।
बाजार पहुंच: दूध और डेयरी उत्पादों के लिए राष्ट्रीय स्तरीय विपणन और वितरण नेटवर्क का निर्माण, ‘अमूल’ जैसे प्रसिद्ध ब्रांडों का उदय।
रोजगार निर्माण: डेयरी क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में वृद्धि, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
महिला सशक्तिकरण
श्वेत क्रांति ने भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। डेयरी सहकारी समितियों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी, जिससे उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक सम्मान प्राप्त हुआ।
महिला सशक्तिकरण के पहलू:
आर्थिक सशक्तिकरण: महिलाओं को आय का एक स्वतंत्र स्रोत प्रदान किया गया, जिससे वे अपनी जरूरतों को पूरा करने और अपने परिवारों में योगदान करने में सक्षम हुईं।
सामाजिक सम्मान: डेयरी सहकारी समितियों में महिलाओं के नेतृत्व की भूमिकाओं ने उन्हें समाज में सम्मान और पहचान प्रदान की।
निर्णय लेने में भागीदारी: महिलाओं को सहकारी समितियों के संचालन और निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल होने का अवसर मिला।
कौशल विकास: महिलाओं को पशुपालन, डेयरी प्रबंधन और वित्तीय साक्षरता जैसे कौशल विकसित करने का अवसर मिला।
आत्मविश्वास में वृद्धि: आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक सम्मान ने महिलाओं के आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को बढ़ाया।
सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव
महिला सशक्तिकरण: डेयरी सहकारी समितियों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी, जिससे उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता और निर्णय लेने की शक्ति मिली।
सामाजिक समरसता: विभिन्न जातियों और समुदायों के लोगों को एक साथ लाकर डेयरी सहकारी समितियों ने सामाजिक मेल को बढ़ावा दिया।
शिक्षा और स्वास्थ्य: डेयरी सहकारी समितियों ने शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच प्रदान करके ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक विकास को बढ़ावा दिया।
आहार में बदलाव: दूध और डेयरी उत्पादों की खपत में वृद्धि हुई, जिससे लोगों के आहार में पोषण स्तर में सुधार हुआ।
जीवनशैली में बदलाव: डेयरी व्यवसायों ने ग्रामीण क्षेत्रों में जीवनशैली में बदलाव लाए, जिससे लोगों की जीवन स्तर में सुधार हुआ।
उद्यमिता को बढ़ावा: डेयरी उद्योग ने ग्रामीण क्षेत्रों में उद्यमिता को बढ़ावा दिया और लोगों को स्वरोजगार के अवसर प्रदान किए।
ऑपरेशन फ्लड के प्रमुख व्यक्ति | Operation Flood Ke Pramukh Vyakti
श्वेत क्रांति और ऑपरेशन फ्लड का श्रेय भले ही डॉ. वर्गीज़ कुरियन को जाता है, लेकिन कई अन्य व्यक्तियों ने भी इस आंदोलन को सशक्त और सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई। उनमें से दो प्रमुख नाम हैं:
1. एच. एम. दलाया (H. M. Dalaya)
पद: डेयरी टेक्नोलॉजिस्ट एवं नवाचारकर्ता योगदान:
एच. एम. दलाया ने वर्गीज़ कुरियन के साथ मिलकर स्प्रे-ड्राय मिल्क पाउडर और कंडेंस्ड मिल्क बनाने की तकनीक भारत में विकसित की।
उनकी इस खोज ने भारत को विदेशों से दूध पाउडर मंगाने की निर्भरता से मुक्त किया।
उन्होंने भैंस के दूध से पाउडर बनाने की तकनीक को व्यवहार में लाया, जो पहले केवल गाय के दूध से बनता था। यह भारत जैसे देश के लिए अत्यंत उपयोगी था जहाँ भैंस का दूध अधिक मात्रा में उपलब्ध था।
दलाया का नवाचार भारतीय डेयरी उद्योग के लिए Game Changer सिद्ध हुआ, जिससे अमूल और NDDB जैसी संस्थाओं को उत्पादों का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने में मदद मिली।
2. त्रिभुवनदास पटेल (Tribhuvandas Patel)
पद: सहकारी आंदोलन के जनक, अमूल के पहले अध्यक्ष योगदान:
त्रिभुवनदास पटेल ने 1946 में आनंद जिले के किसानों को संगठित करके एक सहकारी आंदोलन की शुरुआत की। उनका उद्देश्य था किसानों को बिचौलियों से मुक्ति दिलाना और उन्हें उचित मूल्य दिलवाना।
उन्होंने किसानों को संगठित कर “आनंद मॉडल” विकसित किया, जिसमें दूध उत्पादन, प्रोसेसिंग और मार्केटिंग सभी किसान-संचालित सहकारी समितियों के माध्यम से होती थी।
उन्होंने अमूल ब्रांड की नींव रखी और डॉ. कुरियन को इससे जोड़ने में अहम भूमिका निभाई।
पटेल ने डॉ. कुरियन को NDDB का कार्यभार सौंपने में भी पहल की, जिससे यह आंदोलन पूरे देश में फैल सका।
निष्कर्ष
श्वेत क्रांति ने भारत को दुग्ध उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया और किसानों के जीवन में सुधार लाया है। यह क्रांति न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक बदलाव का भी प्रतीक है। जिसने किसानों और उपभोगताओं को बहुत फायदा पहुंचाया और भारत को दूध उत्पाद के मामले में आत्मनिर्भर और विश्व में सर्वश्रेष्ठ बनाया।
इस ब्लॉग में अपने श्वेत क्रांति क्या है, श्वेत क्रांति कब हुई, श्वेत क्रांति के जनक कौन हैं, श्वेत क्रांति किससे संबंधित है, श्वेत क्रांति के लाभ, इसके महत्व और इसके प्रभावों के बारे में विस्तार से जाना।
श्वेत क्रांति के दौरान विपणन की समस्याएं, उत्पादन की गुणवत्ता बनाए रखना और तकनीकी सुधार की चुनौतियाँ आईं।
श्वेत क्रांति के कितने चरण हैं?
श्वेत क्रांति के मुख्य रूप से तीन चरण हैं: 1. अवस्थापन (1960-1965), 2. विकास (1965-1975), 3. विस्तार (1975-1985)
श्वेत क्रांति का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा?
श्वेत क्रांति के कारण पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा, क्योंकि इसमें पशुपालन के लिए बेहतर प्रथाओं को अपनाया गया।
श्वेत क्रांति का मुख्य नारा क्या था?
श्वेत क्रांति का मुख्य नारा “हर खेत को पानी, हर हाथ को काम” था।
श्वेत क्रांति का उद्देश्य केवल दुग्ध उत्पादन तक सीमित था?
नहीं, श्वेत क्रांति का उद्देश्य दुग्ध उत्पादन के साथ-साथ दुग्ध उत्पादों के प्रसंस्करण और विपणन में भी सुधार करना था |
श्वेत क्रांति से पहले भारत में दुग्ध उत्पादन की स्थिति कैसी थी?
श्वेत क्रांति से पहले भारत में दुग्ध उत्पादन की स्थिति कैसी थी?
श्वेत क्रांति का दूसरा नाम क्या था?
इसे “ऑपरेशन फ्लड” भी कहा जाता है, जो श्वेत क्रांति की मुख्य योजना थी और इसकी अगुवाई डॉ. वर्गीज कुरियन ने की थी
हरित क्रांति का आधार क्या है?
हरित क्रांति का आधार “उच्च उत्पादकता वाली फसलों की किस्में (HYV), रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और सिंचाई तकनीकों का उपयोग” है।
Authored by, Aakriti Jain Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.