व्याकरण किसे कहते हैं

व्याकरण किसे कहते हैं?: हिंदी व्याकरण की पूरी जानकारी

Published on June 9, 2025
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व्याकरण किसे कहते हैं

Quick Summary

  • व्याकरण भाषा की संरचना को समझने में मदद करता है।
  • यह बताता है कि भाषा के विभिन्न तत्व (शब्द, वाक्य, वाक्य खंड) कैसे आपस में जुड़े होते हैं।
  • व्याकरण हमें यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि हम जो भाषा बोल रहे हैं या लिख रहे हैं, वह शुद्ध हो।

Table of Contents

व्याकरण, भाषा का वह विज्ञान है जो हमें भाषा के सही और शुद्ध प्रयोग के लिए मार्गदर्शन करता है। किसी भी भाषा की संरचना, उसके शब्दों और वाक्यों का अध्ययन करना व्याकरण कहलाता है। हिंदी भाषा की समृद्धि और उसकी विविधता को समझने के लिए हिंदी व्याकरण का ज्ञान अत्यंत महत्वपूर्ण है।

इस ब्लॉग में हम व्याकरण किसे कहते हैं व्याकरण की परिभाषा, व्याकरण किसे कहते हैं उदाहरण सहित और हिंदी व्याकरण पुस्तक के बारे में विस्तार से समझने की कोशिश करेंगे।

व्याकरण किसे कहते हैं?: व्याकरण की परिभाषा | Vyakaran Kise Kahate Hain?

सबसे पहले हम ये समझेंगे कि व्याकरण किसे कहते हैं व्याकरण की परिभाषा क्या होती है। व्याकरण वह नियमों का सेट है जो किसी भाषा के सही प्रयोग को सुनिश्चित करता है। यह भाषा के विभिन्न तत्वों जैसे ध्वनि, शब्द, वाक्य, और उनके उपयोग के नियमों का अध्ययन करता है।

व्याकरण का उद्देश्य भाषा को शुद्ध, स्पष्ट, और प्रभावी बनाना है। इसे भाषा की आत्मा भी कहा जा सकता है, जो हमें सही संचार के लिए मार्गदर्शन करती है।

भाषा में व्याकरण का महत्व

व्याकरण भाषा के हर पहलू में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह भाषा को समझने, उसे सही ढंग से प्रयोग करने, और दूसरों तक सही संदेश पहुँचाने के लिए आवश्यक है। बिना व्याकरण के, भाषा में स्पष्टता और शुद्धता नहीं होती, जिससे संचार में गलतफहमियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। व्याकरण न केवल लिखित भाषा में बल्कि मौखिक भाषा में भी महत्वपूर्ण है।

व्याकरण के भेद | vyakaran ke bhed

हिंदी व्याकरण किसे कहते हैं उदाहरण सहित उसके भेदों को समझना उसके संपूर्ण ज्ञान के लिए बहुत आवश्यक है। यह भेद भाषा के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करने में मदद करते हैं। मुख्य रूप से हिंदी व्याकरण को चार भेदों में विभाजित किया जा सकता है: वर्णविचार, शब्दविचार, वाक्यविचार, और अर्थविचार।

1. वर्णविचार (ध्वनि और उच्चारण)

वर्णविचार में ध्वनियों और उनके उच्चारण का अध्ययन होता है। यह भाग भाषा के ध्वनि विज्ञान को कवर करता है, जिसमें वर्णमाला के विभिन्न अक्षरों का सही उच्चारण, स्वर और व्यंजन ध्वनियों की उत्पत्ति, और उनकी उच्चारण विधियाँ शामिल होती हैं।

वर्ण और उनके प्रकार

हिंदी वर्णमाला में 52 वर्ण होते हैं, जिसमें 11 स्वर और 41 व्यंजन शामिल हैं। स्वर वे ध्वनियाँ हैं जो स्वतंत्र रूप से उच्चारित हो सकती हैं, जैसे अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ। व्यंजन वे ध्वनियाँ हैं जो स्वर के बिना नहीं उच्चारित हो सकतीं, जैसे क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह, क्ष, त्र, ज्ञ।

उच्चारण के नियम

उच्चारण में स्वर और व्यंजन के सही प्रयोग का महत्व है। सही उच्चारण न केवल भाषा की स्पष्टता को बढ़ाता है बल्कि उसकी शुद्धता को भी बनाए रखता है। हिंदी में शब्दों के उच्चारण में स्वर और व्यंजन का सही मिश्रण आवश्यक है।

  • वर्ण
    • देवनागरी हिंदी भाषा की लिपि में कुल 52 वर्ण शामिल हैं। इन्हें 4 भागों में बांटा गया है: 33 व्यंजन, 11 स्वर, एक अनुस्वार (अं), और एक विसर्ग (अः)। इसके अलावा, हिंदी में द्विगुण व्यंजन ड़ और ढ़ तथा चार संयुक्त व्यंजन क्ष, श्र, ज्ञ, और त्र भी शामिल होते हैं।
  • स्वर
    • हिंदी भाषा में कुल 10 स्वर होते हैं। कुछ स्वरों की ध्वनि ह्रस्व (छोटी) होती है, जैसे अ, इ, उ, जबकि कुछ की ध्वनि दीर्घ (लंबी) होती है, जैसे आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ। स्वरों को विभिन्न प्रकारों में बांटा जा सकता है:
  • व्यंजन
    • व्यंजन वर्णों की संख्या 33 होती है, जो ध्वनियों को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने में सहायता करते हैं। इनमें द्विगुण व्यंजन जैसे ड़, ढ़ और संयुक्त व्यंजन जैसे क्ष, श्र, ज्ञ, त्र शामिल हैं। ये वर्ण भाषा की ध्वनि समृद्धि को बढ़ाते हैं और संचार को अधिक प्रभावी बनाते हैं।

2. शब्दविचार (शब्दों का निर्माण और प्रकार)

शब्दविचार में शब्दों का निर्माण और उनके प्रकारों का अध्ययन होता है। इसमें मूल शब्दों से नए शब्द बनाने की प्रक्रियाएँ, जैसे प्रत्यय और उपसर्ग का उपयोग, और शब्दों के विभिन्न प्रकार जैसे संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण आदि का विवरण शामिल है।

शब्द की परिभाषा

एक या उससे अधिक वर्णों से बनी हुई स्वतंत्र सार्थक ध्वनि शब्द कहलाती है। किसी भाषा में अनेक सार्थक शब्दों का प्रयोग किया जाता है तब वह एक वाक्य का रूप लेकर पूर्ण अभिव्यक्ति करने में सक्षम हो पाता है। हिंदी व्याकरण में कुछ तत्वों का समावेश होता है जैसे –

शब्दों का निर्माण

शब्द निर्माण में उपसर्ग और प्रत्यय का महत्वपूर्ण योगदान होता है। उपसर्ग वे अक्षर या शब्दांश होते हैं जो किसी शब्द के प्रारंभ में जोड़कर नया अर्थ देते हैं, जैसे ‘अति’, ‘अन’, ‘प्रति’ आदि। प्रत्यय वे अक्षर या शब्दांश होते हैं जो शब्द के अंत में जोड़कर उसका अर्थ बदलते हैं, जैसे ‘ता’, ‘पन’, ‘इय’ आदि।

शब्द-भेद

बनावट के आधार पर शब्द के भेद होते हैं। निम्नलिखित तीन भेद दिए गए हैं-

  • रूढ़
  • यौगिक
  • योगरूढ़

शब्दों के प्रकार

हिंदी भाषा में शब्दों को उनके प्रयोग और अर्थ के आधार पर विभिन्न प्रकारों में विभाजित किया जाता है। इनमें प्रमुख प्रकार हैं संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण, क्रियाविशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक, और विस्मयादिबोधक।

3. वाक्यविचार (वाक्य संरचना)

वाक्यविचार वाक्य की संरचना और उसके तत्वों के सही प्रयोग पर केंद्रित होता है। इसमें वाक्य के प्रकार, जैसे सरल, संयुक्त, और मिश्रित वाक्य, और उनके निर्माण के नियम शामिल होते हैं। यह भाग सही वाक्य निर्माण और प्रभावी संचार के लिए महत्वपूर्ण है।

वाक्य के प्रकार

वाक्य कई प्रकार के हो सकते हैं, जैसे कथनवाचक वाक्य, प्रश्नवाचक वाक्य, आज्ञावाचक वाक्य, और विस्मयवाचक वाक्य। हर प्रकार का वाक्य एक विशेष उद्देश्य की पूर्ति करता है और भाषा को अधिक प्रभावी बनाता है।

वाक्य निर्माण के नियम

वाक्य निर्माण में संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, और अन्य शब्दों का सही प्रयोग महत्वपूर्ण है। वाक्य की स्पष्टता और अर्थ की शुद्धता बनाए रखने के लिए इन तत्वों का सही संयोजन आवश्यक है।

4. अर्थविचार (अर्थ और संदर्भ)

अर्थविचार भाषा के अर्थ और संदर्भ पर केंद्रित होता है। इसमें शब्दों और वाक्यों के सही अर्थ की पहचान, उनकी संदर्भानुसार उपयोगिता, और विभिन्न भाषाई तत्वों के बीच संबंधों का अध्ययन शामिल है।

संदर्भ और संदर्भ के प्रकार

संदर्भ वह स्थिति है जिसमें शब्दों या वाक्यों का अर्थ स्पष्ट होता है। संदर्भ कई प्रकार के हो सकते हैं, जैसे शाब्दिक संदर्भ, सांस्कृतिक संदर्भ, और सामाजिक संदर्भ। संदर्भ के आधार पर ही शब्दों और वाक्यों का सही अर्थ निकलता है।

व्याकरण के मूल तत्व

हिंदी व्याकरण के मूल तत्व भाषा की संरचना और उसकी व्याख्या में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन तत्वों के सही ज्ञान से ही भाषा को सही ढंग से समझा और प्रयोग किया जा सकता है।

1. संज्ञा और सर्वनाम

संज्ञा और सर्वनाम भाषा के महत्वपूर्ण तत्व हैं। संज्ञा किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु, या भाव का नाम बताती है, जबकि सर्वनाम संज्ञा के स्थान पर प्रयोग होते हैं। उदाहरण के लिए, ‘राम’ एक संज्ञा है और ‘वह’ उसका सर्वनाम है।

संज्ञा के प्रकार

संज्ञा को मुख्यतः चार प्रकारों में विभाजित किया जाता है: व्यक्तिवाचक संज्ञा, जातिवाचक संज्ञा, भाववाचक संज्ञा, और सामूहिक संज्ञा। हर प्रकार की संज्ञा का प्रयोग भाषा में एक विशेष अर्थ और संदर्भ में होता है।

सर्वनाम के प्रकार

सर्वनाम भी कई प्रकार के होते हैं, जैसे पुरुषवाचक सर्वनाम, निश्चयवाचक सर्वनाम, प्रश्नवाचक सर्वनाम, संबंधवाचक सर्वनाम, और अन्य। ये सर्वनाम भाषा को संक्षिप्त और स्पष्ट बनाने में मदद करते हैं।

2. क्रिया और विशेषण

क्रिया और विशेषण भाषा के महत्वपूर्ण घटक हैं। क्रिया किसी कार्य, स्थिति, या अवस्था को व्यक्त करती है, जबकि विशेषण संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं। उदाहरण के लिए, ‘खाना’, ‘सोना’, ‘पढ़ना’ क्रियाएँ हैं, और ‘सुंदर’, ‘बड़ा’, ‘लाल’ विशेषण हैं।

क्रिया के प्रकार

क्रिया को मुख्यतः तीन प्रकारों में विभाजित किया जाता है: सकर्मक क्रिया, अकर्मक क्रिया, और द्विकर्मक क्रिया। सकर्मक क्रिया वह है जो कर्म लेती है, अकर्मक क्रिया वह है जो कर्म नहीं लेती, और द्विकर्मक क्रिया वह है जो दो कर्म लेती है।

विशेषण के प्रकार

विशेषण कई प्रकार के होते हैं, जैसे गुणवाचक विशेषण, परिमाणवाचक विशेषण, संख्या विशेषण, और अन्य। ये विशेषण भाषा को और अधिक स्पष्ट और विस्तृत बनाने में सहायक होते हैं।

3. अव्यय

अव्यय वे शब्द होते हैं जो अपने रूप में परिवर्तन नहीं करते और वाक्य में एक निश्चित भूमिका निभाते हैं। ये मुख्यतः क्रियाविशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक, और विस्मयादिबोधक के रूप में प्रयोग होते हैं।

  • क्रियाविशेषण
    • क्रियाविशेषण क्रिया की विशेषता बताते हैं। उदाहरण के लिए, ‘तेजी से’, ‘धीरे’, ‘अच्छे से’ आदि।
  • संबंधबोधक
    • संबंधबोधक वे शब्द होते हैं जो संज्ञा या सर्वनाम के साथ संबंध बताते हैं। उदाहरण के लिए, ‘के’, ‘में’, ‘पर’, ‘से’ आदि।
  • समुच्चयबोधक
    • समुच्चयबोधक वे शब्द होते हैं जो वाक्यों या वाक्यांशों को जोड़ते हैं। उदाहरण के लिए, ‘और’, ‘या’, ‘लेकिन’ आदि।
  • विस्मयादिबोधक
    • विस्मयादिबोधक वे शब्द होते हैं जो विस्मय, हर्ष, दुख आदि भावनाओं को व्यक्त करते हैं। उदाहरण के लिए, ‘अरे’, ‘वाह’, ‘आह’ आदि।
  • अलंकार
    • अलंकार साहित्यिक भाषा को सुंदर और आकर्षक बनाने के लिए प्रयोग किए जाने वाले तत्व हैं। ये दो प्रमुख प्रकार के होते हैं: शब्दालंकार और अर्थालंकार। 
  • रस
    • रस का अर्थ है किसी साहित्यिक रचना से उत्पन्न होने वाली भावनात्मक अनुभूति। इसे काव्य या नाटकों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। भारतीय साहित्य में नौ रस माने जाते हैं, जिन्हें ‘नवरस’ कहते हैं: श्रृंगार रस (प्रेम और सुंदरता), हास्य रस (हास्य और विनोद), करुण रस (दुख और करुणा), रौद्र रस (क्रोध और उग्रता), वीर रस (वीरता), भयानक रस (भय), वीभत्स रस (घृणा), अद्भुत रस (आश्चर्य) और शांत रस (शांति)।
  • प्रत्यय
    • प्रत्यय वह शब्दांश है जो किसी मूल शब्द के अंत में जुड़कर उसके अर्थ को विस्तार या परिवर्तन देता है। उदाहरण के लिए, ‘विद्या’ (ज्ञान) + ‘र्थी’ (प्रत्यय) = ‘विद्यार्थी’ (जो ज्ञान प्राप्त कर रहा हो)। प्रत्यय के जोड़ने से शब्दों के नए अर्थ और रूप बनते हैं, जिससे भाषा अधिक समृद्ध और व्याख्यात्मक बनती है।
  • उपसर्ग
    • उपसर्ग वह शब्दांश है जो किसी शब्द के आरंभ में जुड़कर उसके अर्थ में बदलाव लाता है। उदाहरण के लिए, ‘सम्भव’ (जो हो सकता है) + ‘अ’ (उपसर्ग) = ‘असम्भव’ (जो नहीं हो सकता)। उपसर्ग के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में नकारात्मक या सकारात्मक बदलाव आ सकता है।
  • समास
    • समास का अर्थ है संक्षिप्त रूप में दो या दो से अधिक शब्दों का मेल। इससे शब्दों का नया और संक्षिप्त रूप बनता है, जो अधिक सटीकता से अर्थ व्यक्त करता है। उदाहरण के लिए, ‘रसोई’ और ‘घर’ को मिलाकर ‘रसोईघर’ शब्द बनता है।

व्याकरण की विशेषताएं | Benefits of Grammer

व्याकरण की निम्न विशेषताएं होती है –

  1. सही व्याकरण आपके लिखे को साफ और समझने में आसान बनाता है। इससे लोग आसानी से समझ सकते हैं कि आप क्या कहना चाहते हैं।
  2. जब आप सही व्याकरण का इस्तेमाल करते हैं, तो आपके शब्द और वाक्य असरदार बनते हैं। इससे आपका संदेश साफ और सटीक तरीके से पहुँचता है।
  3. इससे आपका लेखन सही और भरोसेमंद लगता है। इससे पाठक आपके लेख पर विश्वास करते हैं।
  4. व्याकरण आपके वाक्यों और पैराग्राफों को सही तरीके से संगठित करता है। इससे आपका लेखन पढ़ने में आसान और सुव्यवस्थित लगता है।
  5. इससे आपका लेखन पेशेवर और अच्छा दिखता है। इससे आपके लिखे को लोग ज्यादा गंभीरता से लेते हैं।

व्याकरण के अध्ययन के लिए संसाधन

व्याकरण का अध्ययन करने के लिए आजकल कई संसाधन उपलब्ध हैं, जिनमें ऑनलाइन सामग्री, मोबाइल एप्स, और पुस्तकें शामिल हैं।

ऑनलाइन संसाधन और वेबसाइट्स

ऑनलाइन प्लेटफार्मों पर व्याकरण से संबंधित सामग्री आसानी से उपलब्ध है। ये वेबसाइट्स और ब्लॉग्स व्याकरण की विभिन्न धाराओं, प्रश्नों, और अभ्यासों को कवर करते हैं।

व्याकरण के लिए मोबाइल एप्स

मोबाइल एप्स भी इसको सीखने का एक सुविधाजनक माध्यम हैं। ये एप्स इंटरेक्टिव तरीकों से व्याकरण की शिक्षा प्रदान करते हैं, जैसे क्विज़, वीडियो लेक्चर्स, और फ्लैशकार्ड्स। ये एप्स भाषा सीखने की प्रक्रिया को रोचक और प्रभावी बनाते हैं।

हिंदी व्याकरण पुस्तक और गाइड्स

किसी एक व्याकरण पुस्तक का नाम नहीं लिया जा सकता लेकिन ऐसी कई हिंदी व्याकरण पुस्तक और गाइड्स है जिनमे इस विषय की गहरी जानकारी होती है। ये संसाधन व्याकरण के नियमों और उनके प्रयोग को विस्तार से समझाते हैं। पुस्तकों में दी गई उदाहरण और अभ्यास इसके अध्ययन को और अधिक स्पष्ट और समझने योग्य बनाते हैं।

छंद विचार | Chhand Vichar

परिभाषा:
छंद वह नियमबद्ध रचनात्मक ढांचा है, जिसके अनुसार कविता में शब्दों की मात्राएँ, लय, और गति तय होती है। यह कविता को गेय और मधुर बनाता है।

प्रमुख छंद प्रकार:

छंद का नामविशेषताउदाहरण
दोहापहले चरण में 13 मात्राएँ, दूसरे में 11“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर” – कबीरदास
चौपाईचार चरणों वाला, प्रत्येक में 16 मात्राएँ“रामचंद्र के चरित अपारा…” – तुलसीदास
सोरठादोहा के उलट क्रम मेंभक्ति कविताओं में प्रयुक्त
कुंडलियादोहा और रोला का संयोजनप्राचीन काव्य रचनाओं में
रोला24 मात्राओं का छंद (12-12)उत्सव गीतों में

महत्व:
छंदों का अध्ययन कविता लेखन, साहित्य विश्लेषण और भाषिक सौंदर्य को समझने के लिए जरूरी है।

अलंकार | Alankar

परिभाषा:
अलंकार का शाब्दिक अर्थ है ‘श्रृंगार’। भाषा को सौंदर्य, प्रभाव और कलात्मकता देने के लिए अलंकारों का प्रयोग किया जाता है। ये भाव और विचारों को अधिक प्रभावशाली बनाते हैं।

प्रमुख अलंकार प्रकार:

अलंकार का नामपरिभाषाउदाहरण
उपमा अलंकारतुलना के माध्यम से सौंदर्य“वह चाँद की तरह सुंदर है।”
रूपक अलंकारसीधी उपमा, जिसमें विषय और उपमेय एक हो जाते हैंतुम चाँद हो।”
अनुप्रास अलंकारएक ही वर्ण की पुनरावृत्ति“चंचल चितवन चलचित”
यमक अलंकारएक ही शब्द की पुनरावृत्ति पर भिन्न अर्थ“नयन नयन में भिन्न हैं, फिर भी एक समान”
श्लेष अलंकारएक शब्द के दो या अधिक अर्थों का प्रयोग“रहीमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून”

महत्व:
काव्य या लेखन को प्रभावशाली और अभिव्यक्तिपूर्ण बनाने में अलंकारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इनका ज्ञान न केवल साहित्यिक परीक्षा की दृष्टि से उपयोगी है, बल्कि रचनात्मक लेखन में भी सहायक होता है।

निष्कर्ष

इस ब्लॉग में हमने व्याकरण किसे कहते हैं व्याकरण की परिभाषा, व्याकरण के भेद, व्याकरण किसे कहते हैं उदाहरण सहित और हिंदी व्याकरण पुस्तक के बारे में विस्तार से समझने की कोशिश की कोशिश की है।

हिंदी व्याकरण भाषा की संरचना और शुद्धता को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है। यह न केवल भाषा के सही प्रयोग को सिखाता है बल्कि उसे प्रभावी और स्पष्ट भी बनाता है। व्याकरण के विभिन्न भेद, तत्व, और उनकी विशेषताएं भाषा को समृद्ध बनाते हैं। भाषा की सुंदरता और उसकी विविधता को समझने के लिए व्याकरण का अध्ययन आवश्यक है, और इस ज्ञान से ही हम भाषा का सच्चा आनंद ले सकते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

व्याकरण किसे कहते हैं?

व्याकरण भाषा की वह शाखा है जिसमें शब्दों के सही प्रयोग, वाक्यों का निर्माण और भाषा के नियमों का अध्ययन किया जाता है। यह हमें यह बताता है कि हम किसी भाषा का सही उपयोग कैसे करें।

व्याकरण के भेद कितने होते हैं?

व्याकरण को मुख्य रूप से चार भागों में बांटा जा सकता है:
1. वर्ण विचार
2. शब्द विचार
3. पद विचार
4. वाक्य विचार

व्याकरण के पिता कौन थे?

पश्चिमी व्याकरण: पश्चिमी व्याकरण में अरस्तू और पाणिनी को प्रमुख माना जाता है।
भारतीय व्याकरण: भारत में पाणिनी को व्याकरण का पिता कहा जाता है। उन्होंने संस्कृत व्याकरण पर एक बहुत ही विस्तृत ग्रंथ ‘अष्टाध्यायी’ लिखा था।

वर्ण कितने प्रकार के होते हैं?

वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई है। वर्णों को मुख्य रूप से दो प्रकार में बांटा जाता है:
1. स्वर
2. व्यंजन

स्वर के कितने भेद होते हैं?

हिंदी भाषा में स्वरों को मुख्य रूप से चार भेदों में बांटा जाता है:
1. ह्रस्व स्वर: जिन स्वरों का उच्चारण कम समय में किया जाता है, उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। उदाहरण: अ, इ, उ, ऋ।
2. दीर्घ स्वर: जिन स्वरों का उच्चारण ह्रस्व स्वरों की तुलना में अधिक समय में किया जाता है, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। उदाहरण: आ, ई, ऊ, ऋ।
3. प्लुत स्वर: जिन स्वरों का उच्चारण दीर्घ स्वरों की तुलना में और भी अधिक समय में किया जाता है, उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। उदाहरण: आः, ईः, ऊः।
4. संयुक्त स्वर: दो या दो से अधिक स्वरों के मेल से बने स्वरों को संयुक्त स्वर कहते हैं। उदाहरण: ऐ, औ।

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Authored by, Amay Mathur | Senior Editor

Amay Mathur is a business news reporter at Chegg.com. He previously worked for PCMag, Business Insider, The Messenger, and ZDNET as a reporter and copyeditor. His areas of coverage encompass tech, business, strategy, finance, and even space. He is a Columbia University graduate.