स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय: जीवन, शिक्षाएँ, और प्रभाव

Published on October 19, 2025
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स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

Quick Summary

स्वामी विवेकानंद एक महान भारतीय संत, दार्शनिक और राष्ट्रवादी थे। उन्होंने भारत के युवाओं में राष्ट्रीय चेतना जगाई और भारतीय संस्कृति को विश्व पटल पर पहुंचाया।

  • स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 में कलकत्ता शहर में एक हाईकोर्ट के वकील के यहाँ हुआ।
  • सन्यास से पहले उनका नाम “नरेन्द्र नाथ दत्त” था।
  • 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में उन्होंने भारतीय दर्शन का प्रतिनिधित्व किया।
  • उनका प्रसिद्ध नारा था, “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो।”

Table of Contents

स्वामी विवेकानंद एक महान हिन्दू संत और नेता थे, जिनका जन्म 12 जनवरी, 1863 को हुआ था। इन्होने ही रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिससे आज विश्व के अनेकों लोग ज्ञान की प्राप्ति कर रहे हैं। स्वामी विवेकानंद के विचार हमेशा युवाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। आज भारत का युवा स्वामी विवेकानंद जी के विचारों पर चलकर विश्व में भारत का नाम ऊँचा कर रहा है।

युवाओं को सही और अच्छी शिक्षा प्रदान कर उन्हें कर्म के रास्ते पर लाने के कारण, हम सभी स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन के अवसर पर प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाते हैं। आइये जानते हैं स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय, देश के लिए उनका योगदान उनके आध्यात्मिक यात्रा के बारे में।

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | स्वामी विवेकानंद का जीवन दर्शन

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय देते हुए उनके बाल्यकाल के बारे में पूरी जानकारी नीचे दे रहे है।

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | Swami Vivekanand ka Jivan Parichay
नाम (Name)नरेन्द्रनाथ दत्त
जन्म (Birth Day)12 जनवरी 1863
कलकत्ता
(अब कोलकाता)
मृत्यु (Death)4 जुलाई 1902 (उम्र 39)
बेलूर मठ, बंगाल रियासत, ब्रिटिश राज
(अब बेलूर, पश्चिम बंगाल में)
गुरु/शिक्षक (Mentor)रामकृष्ण परमहंस
साहित्यिक कार्य (Work)राज योग (पुस्तक)
स्वामी विवेकानंद का प्रसिद्ध कथन (Quotes)“उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए”
धर्म (Religion)हिन्दू
राष्ट्रीयता (Nationality)भारतीय
Swami vivekanand ka jivan parichay | स्वामी विवेकानंद कौन थे और वह क्यों प्रसिद्ध हैं?

स्वामी विवेकानंद का जन्म और परिवार | Swami Vivekanand ka Jivan Parichay

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 में कलकत्ता शहर में एक हाईकोर्ट के वकील के यहाँ हुआ। सन्यास से पहले उनका नाम “नरेन्द्र नाथ दत्त” था। उनकी माताजी उन्हें बचपन में “बिलेह” कहकर बुलाती थी क्योंकि उनको काफी समय बाद और वीरेश्वर महादेव की बहुत पूजा-पाठ के बाद पुत्र प्राप्त हुआ था इसलिए वे इसे वीरेश्वर महादेव की कृपा ही मानती थी।

स्वामी जी का नाम भी इसलिए बचपन में उनकी माताजी ने “वीरेश्वर” ही रखा था जिसे वो प्यार से “बिलहे” कहती थी।उनके पिता का नाम विश्वनाथ और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। उनके गुरु थे श्री रामकृष्ण परमहंस।

स्वामी विवेकानंद जी के बाल्यकाल का अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा-अर्चना में बीतता था। नरेन्द्र के पिता और उनकी माँ के धार्मिक रवैये के कारण, उनका झुकाव धर्म के प्रति बढ़ता गया। बचपन से ही नरेन्द्र अत्यन्त तेज बुद्धि के तो थे ही नटखट भी थे। कभी भी शरारत करने से नहीं चूकते थे फिर चाहे वे उनके साथी के साथ हो या फिर मौका मिलने पर अपने अध्यापकों के साथ।

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय और शिक्षा | Swami Vivekanand ji ke Bare Mein

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | Swami Vivekanand ka jivan Parichay में उनकी शिक्षा को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। नरेन्द्रनाथ ने अपनी शिक्षा घर से शुरू की। वे तेज़-तर्रार और चंचल स्वभाव के बालक थे, जिन्होंने सात वर्ष की आयु में पूरा व्याकरण रट लिया। सात वर्ष में मेट्रोपोलिटन कॉलेज में दाखिला लिया, जहां उन्होंने पढ़ाई, खेल, व्यायाम, संगीत और नाटक में रुचि ली। 16 वर्ष की आयु में हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की और बाद में प्रेसीडेंसी कॉलेज और जनरल असेंबली इन्स्टीट्यूशन में अध्ययन किया।

उन्होंने साहित्य, दर्शन और धर्म का भी अध्ययन किया, और इस क्षेत्र में माता-पिता तथा शिक्षकों से सहायता मिली। नरेन्द्रनाथ का जीवन संयमित था; वे ब्रह्मचर्य का पालन करते थे और ध्यान, उपासना में रहते थे।

स्वामी विवेकानंद का जीवन अद्वितीय था, क्योंकि उन्होंने वेदांत दर्शन को विदेशों में फैलाया। नवंबर 1881 में वे श्री रामकृष्ण परमहंस से मिले और उनका सत्संग सुना। इसने नरेन्द्रनाथ को गृहस्थ जीवन से विमुक्त किया। 1884 में उन्होंने बी.ए. किया, और उसी वर्ष उनके पिता का निधन हुआ। उनके पिता संपन्न थे, लेकिन खर्चों के कारण धन की कमी रही। इस कठिन समय ने नरेन्द्रनाथ को यह महसूस कराया कि गरीबी दुःख का कारण होती है।

स्वामी विवेकानंद की 4 प्रमुख शिक्षाएँ

क्रमांकशिक्षा / उपदेशविवरणप्रसिद्ध उद्धरण
1आत्मविश्वास और स्व-बल पर विश्वासआत्मबल और आत्मविश्वास से ही बड़े लक्ष्य पूरे होते हैं।“उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य न मिले।”
2सेवा ही सच्चा धर्म हैमानवता की सेवा को ही स्वामी जी ने सच्चा धर्म बताया।“जीवों की सेवा ही ईश्वर की सेवा है।”
3नारी का सम्माननारी को शिक्षित और सशक्त बनाना समाज की उन्नति के लिए आवश्यक है।“एक देश की प्रगति नारी की स्थिति पर निर्भर करती है।”
4ज्ञान ही शक्ति हैशिक्षा का उद्देश्य जीवन निर्माण, चरित्र निर्माण और आत्मनिर्भरता होना चाहिए।“शिक्षा वह है जो जीवन निर्माण करे, चरित्र गढ़े।”
Swami Vivekanand ki 4 Shikshaye

स्वामी विवेकानंद का साधना समय

स्वामी विवेकानंद की फोटो

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | Swami Vivekanand ka Jivan Parichay ध्यान से देखें तो आपको उनके जीवन के 2 भाग दिखेंगें, साधना से पहले ओर उसके बाद। स्वामी जी जैसे-जैसे बड़े होते गए सभी धर्म और अध्यात्म के लिए उनका अविश्वास बढ़ता गया। संदेह और उलझन के चलते नास्तिकता की तरफ बढ़ गए। स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय देते हुए देखते हैं के वह ऐसे में साधना की तरफ़ कैसे बढ़े।

स्वामी विवेकानंद की श्री रामकृष्ण से मुलाकात

जब नरेंद्र युवा वयस्क बनने की कगार पर थे, तो वे आध्यात्मिक संकट के कठिन दौर से गुज़रे, जिसके दौरान उन्होंने ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल उठाया। उनके कॉलेज के एक अंग्रेज़ी शिक्षक से उन्होंने सबसे पहले श्री रामकृष्ण के बारे में सुना। नवंबर 1881 में, नरेंद्र दक्षिणेश्वर में काली मंदिर गए, जहाँ श्री रामकृष्ण निवास कर रहे थे। उन्होंने बिना समय बर्बाद किए गुरु से पूछा, “सर, क्या आपने ईश्वर को देखा है?” – एक ऐसा सवाल जो उन्होंने पहले भी कई लोगों से पूछा था, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। श्री रामकृष्ण ने आत्मविश्वास से कहा, “हाँ, मैंने देखा है। अगर कुछ है, तो उनके बारे में मेरी धारणा आपके बारे में मेरी धारणा से ज़्यादा स्पष्ट है।

श्री रामकृष्ण ने न केवल नरेंद्र के संदेह को दूर किया, बल्कि अपने निस्वार्थ प्रेम से उन्हें जीत भी लिया। इसे प्रबुद्ध शिक्षकों के इतिहास में एक दुर्लभ प्रकार के गुरु-शिष्य संबंध की शुरुआत के रूप में चिह्नित किया जाता है। एक बार जब नरेंद्र ने दक्षिणेश्वर की नियमित यात्राएँ शुरू कीं, तो वे गुरु के हाथों अपने आध्यात्मिक विकास में तेज़ी से आगे बढ़े। जब नरेन्द्र की मुलाकात दक्षिणेश्वर में अनेक ऐसे युवाओं से हुई जो श्री रामकृष्ण के प्रति समर्पित थे, तो वे सभी अच्छे मित्र बन गए।

रामकृष्ण परमहंस की शिष्यता

  • अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए ब्रह्म समाज और साधु संतों के पास भटकने के बाद, नरेन्द्रनाथ रामकृष्ण परमहंस के शरण में पहुंचे। उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर 1881 में उन्होंने रामकृष्ण को गुरु माना और संन्यास जीवन की शुरुआत की। स्वामी विवेकानंद ने गुलाम भारत को ‘विश्व गुरु’ का दर्जा दिलाया।
  • रामकृष्ण के आध्यात्मिक प्रभाव से स्वामी विवेकानंद के विचार सन्यास की ओर बढ़े और उन्होंने 25 वर्ष की आयु में गेरुआ वस्त्र धारण किया। वे सच्चे गुरु भक्त थे और अपने गुरु के नाम से रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
  • स्वामी विवेकानंद ने वेदों और उपनिषदों का गूढ़ अध्ययन किया था। वे वेदान्त दर्शन के तीन रूपों – द्वैत, विशिष्टाद्वैत और अद्वैत – में अद्वैतवाद के समर्थक थे। उनके अनुसार ये तीनों वेदान्त के सोपान हैं, जिनका उद्देश्य अद्वैत की अनुभूति है। स्वामी जी ने विश्व के सभी धर्मों को अद्वैत की ओर झुका बताया।
  • रामकृष्ण से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के बाद, स्वामी विवेकानंद ने अज्ञान का अंधकार मिटाकर ज्ञान का प्रकाश फैलाया, लेकिन 1886 में श्री रामकृष्ण का महाप्रस्थान हो गया।

स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचार और विदेश यात्राएँ

स्वामी विवेकानंद के जीवन परिचय/स्वामी विवेकानंद की जीवनी में उनके शैक्षिक विचारों का विशेष महत्व है उनके विचारों में कुछ खास विचार हैं –

  • पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता, एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान, ध्यान से ही हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है।
  • उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लो
  • जब तक जीना, तब तक सीखना, अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है।

गुरु के महाप्रस्थान के बाद स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचारों का प्रचार शुरू हुआ। पहले वर्ष वे कोलकाता में ही रहे, फिर 1888 में भारत भ्रमण पर निकले। उन्होंने काशी, अयोध्या, लखनऊ, आगरा, मथुरा, वृन्दावन और हिमालय की यात्रा की। वे अधिकतर पैदल चलते हुए रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं का प्रचार करते रहे। 1891 में उन्होंने राजस्थान और 1892 में दक्षिण भारत यात्रा की।

दक्षिण भारत में कन्याकुमारी पहुंचे, जहां देवी के दर्शन किए और समुद्र में कूदकर पास की चट्टान पर ध्यान में बैठ गए। यहाँ उन्हें दिव्य अनुभूति हुई और उन्होंने जन कल्याण का संकल्प लिया।

इसके बाद, स्वामी विवेकानंद मद्रास पहुंचे, जहाँ वेदान्त पर व्याख्यान दिए। लोग उनसे प्रभावित हुए और उन्हें शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में भेजने के लिए रास्ते का खर्च जुटाया। 1893 में वे अमेरिका गए, जहाँ उन्हें शुरुआत में कठिनाई का सामना करना पड़ा। एक अमेरिकी प्रोफेसर ने उन्हें बोलने का समय दिया। स्वामी विवेकानंद ने सम्मेलन में भाषण की शुरुआत “भाइयों और बहनों” से की, जिससे लोग चौंक गए।

शिक्षा और प्रेरणा के स्रोत

फिर तो अमेरिका में उनका बहुत शानदार स्वागत हुआ। उनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय बन गया। 3 वर्षों तक स्वामी विवेकानंद वहां के लोगों को भारतीय अध्यात्म की शिक्षा देते रहे। वहां स्वामी जी ने दृढ़ता से कहा अध्यात्म विद्या और बिना भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा। उन्होंने अमेरिका में रामकृष्ण मिशन की कई शाखाओं की भी स्थापना की।

अमेरिका के कई विद्वान उनके शिष्य बन गए। वापस भारत आने पर उन्हें देश के प्रमुख विचारक के रूप में सम्मान और प्रतिष्ठा मिला।

इस बीच इनकी अनेक पुस्तकों का प्रकाशन भी हुआ। 1897 में ये इंग्लैंड गए और अनेक स्थानों पर भाषण दिए और वेदान्त का प्रचार किया। इंग्लैंड से इटली, स्विट्जरलैंड, जर्मनी और फ्रांस गए और इन देशों में वेदान्त पर भाषण दिए। यहाँ से ये पुनः इंग्लैण्ड गए और वहाँ वेदान्त का प्रचार किया। 1900 में स्वामी जी अमेरिका से फ्रांस पहुँचे। यहाँ उन्होंने ‘पेरिस विश्व धर्म इतिहास सम्मेलन’ में भाग लिया। फ्रांस से ये इटली और- ग्रॉस होते हुए उसी वर्ष भारत लौट आए।

नारी का सम्मान – स्वामी विवेकानंद की प्रेरणादायक कहानी

स्वामी विवेकानंद की ख्याति केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी थी। एक बार वे एक समारोह में भाग लेने विदेश गए। उनके विचार और भाषण सुनने के लिए बड़ी संख्या में विदेशी लोग भी वहाँ उपस्थित थे।

उनके प्रभावशाली भाषण से एक विदेशी महिला इतनी प्रभावित हुई कि वह स्वयं स्वामी विवेकानंद से मिलने आई। उसने कहा,
“मैं आपसे विवाह करना चाहती हूँ ताकि मुझे आपके जैसा ही एक गौरवशाली पुत्र प्राप्त हो।”

स्वामी विवेकानंद मुस्कराए और शांत स्वर में बोले,
“क्या आप जानती हैं कि मैं एक सन्यासी हूँ? मैं विवाह नहीं कर सकता। लेकिन यदि आप चाहें, तो मुझे अपना पुत्र बना लीजिए। इससे मेरा सन्यास भी बना रहेगा और आपको मेरे जैसा पुत्र भी मिल जाएगा।”

स्वामी जी की यह बात सुनकर वह महिला भावुक हो गई। वह उनके चरणों में गिर पड़ी और बोली,


“आप धन्य हैं। आप सचमुच ईश्वर के समान हैं, जो किसी भी परिस्थिति में अपने धर्म और सिद्धांतों से नहीं डिगते।”

स्वामी विवेकानंद की विरासत

आइए स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय/स्वामी विवेकानंद की जीवनी देते हुए उनके योगदान पर ध्यान देते है जो आगे जाकर उनकी विरासत बने।

रामकृष्ण मिशन के संस्थापक

रामकृष्ण मिशन, कोलकाता

भारतीय युगपुरुष स्वामी विवेकानंद जी ने इंग्लैंड से भारत लौटकर उन्होंने ‘रामकृष्ण मिशन’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य न केवल वेदान्त का प्रचार था, अपितु दीन-हीनों की सेवा के लिए शिक्षण संस्था और चिकित्सालय खोलना भी था। स्वामी जी चाहते थे कि इनके अनुयायी गाँव-गाँव जाकर शिक्षा का प्रचार करें और अज्ञान के अंधकार को दूर करें।

इसी समय उन्होंने कलकत्ता स्थित बेलूर में एक मठ का निर्माण कराया। जो 1899 के आरम्भ से रामकृष्ण के अनुयायियों का स्थायी केन्द्र बन गया। थोड़े ही दिनों बाद हिमालय में अल्मोड़े से 75 किमी की दूरी पर अद्वैत आश्रम के नाम से एक दूसरे मठ का निर्माण हुआ। इन कार्यों से निवृत्त होकर स्वामी जी 1899 में पुनः अमेरिका गए। स्वामी विवेकानंद वहाँ लगभग एक वर्ष तक रहे और राजयोग तथा साधना की शिक्षा देते रहे।

भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेम और समर्पण 

स्वामी जी कहा करते थे भारत की यह भूमि मेरा शरीर है। कन्याकुमारी मेरा पद है। हिमालय मेरा मस्तक है मेरे ही कैसे कालकों से गंगा बहती है। मेरे मस्तक से निकलती है सिंधु और ब्रह्मपुत्र। विंध्याचल है मेरा कौपीन। कोरोमंडल है मेरी बाम, जंघा मालाबार दक्षिण। संपूर्ण भारत हूं। पूर्व और पश्चिम मेरे बाहू है और मैंने उन्हें फैलाया है मानवता का आलिंगन करने के लिए। जब मैं चलता हूं मानो भारत चलता है। जब मैं बोलता हूं मानो भारत बोलता है। मैं सांस लेता हूं तो भारत ही श्वास लेता है मैं ही भारत हूं।

स्वामी विवेकानंद ने जीवन के 3 उद्देश्य बनाये थे-

उनके उद्देश्य ही स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय का आधार बना:

  1. पहला उद्देश्य धर्म की पुनर्स्थापना निर्धारित किया।
  2. उनका दूसरा कार्य था हिन्दू धर्म और संस्कृति पर हिन्दुओं की श्रद्धा जमाना
  3. उनका तीसरा कार्य था भारतीयों की संस्कृति, इतिहास और आध्यात्मिक परंपराओं का योग्य उत्तराधिकारी बनाना।

युवाओं के उत्थान और स्वाधीनता के संदेश

स्वामी विवेकानंद ने भारतीय जीवन-मूल्यों को आधुनिक अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण से समझाया। उन्होंने भारतीय नव-निर्माण के विचारों के साथ-साथ पीड़ित मानवता के पुनर्निर्माण की योजनाएँ भी प्रस्तुत कीं। स्वामी जी के विचार और संदेश हर भारतीय के लिए अनमोल धरोहर हैं और उनकी जीवनशैली हर युवा के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

उन्होंने अपने जीवन का मुख्य लक्ष्य भारत के नैतिक और सामाजिक सुधार को बनाया और इसके लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। स्वामी जी ने भारतीय संस्कृति, शिक्षा और धर्म के बारे में यह सिखाया कि “अपने मानव स्वाभाविक गौरव को कभी मत भूलो”। हर व्यक्ति को यह महसूस करना चाहिए कि “मैं ही ईश्वर हूँ, और मुझसे बड़ा कोई नहीं है और न ही होगा”।

स्वामी विवेकानंद के 9 अनमोल वचन

स्वामी विवेकानंद के 9 अनमोल वचनों ने विश्व के युवाओं को धर्म के पथ पर कर्म करते हुए चलना सिखाया है। आइये जानते हैं कि स्वामी विवेकानंद के 9 अनमोल वचन – 

  1.  उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये।
  2. ब्रह्मांड की सभी शक्तियां हमारे अंदर हैं। ये हम ही हैं जिन्होंने अपनी आंखों के सामने हाथ रखा है और रोते हुए कहा कि अंधेरा है।
  3. किसी की निंदा ना करें, अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिये।
  4. बाहरी प्रकृति केवल आंतरिक प्रकृति बड़ी है।
  5. सच को कहने के हजारों तरीके हो सकते हैं और फिर भी सच तो वही रहता है।
  6. इस दुनिया में सभी भेद-भाव किसी स्तर के हैं, ना कि प्रकार के, क्योंकि एकता ही सभी चीजों का रहस्य है।
  7. जब कोई विचार अनन्य रूप से मस्तिष्क पर अधिकार कर लेता है तब वो वास्तविक भौतिक या मानसिक अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।
  8. जितना हम दूसरों के साथ अच्छा करते हैं उतना ही हमारा हृदय पवित्र हो जाता है और भगवान उसमें बसता है।
  9. यदि स्वयं में विश्वास करना और अधिक विस्तार से पढाया और अभ्यास कराया गया होता, तो मुझे यकीन है कि बुराइयों और दुःख का एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता।

आधुनिक भारत में स्वामी विवेकानंद के विचारों का प्रभाव

स्वामी विवेकानंद (1863-1902) का जीवन और कार्य ऐतिहासिक है।

स्वामी विवेकानंद युवाओं के लिये प्रेरणा: स्वामी विवेकानंद का मानना है कि किसी भी राष्ट्र का युवा जागरूक और अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित हो, तो वह देश किसी भी लक्ष्य को हासिल कर सकता है। युवाओं को सफलता के लिये समर्पण भाव को बढ़ाना होगा तथा पश्चिम सभ्यता की ओर झुकती युवा समाज को धार्मिक सुधारों के माध्यम से, उनका सशक्तिकरण करना था। अपने भारतीय संस्कृति के महत्व युवाओं को समझाना उनका मूल सन्देश था। विवेकानंद युवाओं को आध्यात्मिक बल के साथ-साथ शारीरिक बल में वृद्धि करने के लिये भी प्रेरित करते हैं।

युवाओं के लिये प्रेरणा स्रोत के रूप में विवेकानंद के जन्मदिवस, 12 जनवरी को भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस तथा राष्ट्रीय युवा सप्ताह मनाया जाता है। राष्ट्रीय युवा सप्ताह के एक हिस्से के रूप में भारत सरकार हर साल राष्ट्रीय युवा महोत्सव का आयोजन करती है और इस महोत्सव का उद्देश्य राष्ट्रीय एकीकरण, सांप्रदायिक भाईचारे को बढ़ावा देना है।

स्वामी विवेकानंद के विचारों का प्रभाव

युवाओं को प्रेरणा दी:
उन्होंने युवाओं को आत्मबल, आत्मविश्वास और कर्तव्य के प्रति जागरूक किया — “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।”

राष्ट्रवाद का विकास:
विवेकानंद ने भारतीयों को अपने गौरवशाली अतीत, संस्कृति और शक्ति को पहचानने के लिए प्रेरित किया, जिससे स्वतंत्रता आंदोलन को बल मिला।

धार्मिक सहिष्णुता और एकता:
उन्होंने सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखने की बात कही और “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना को बढ़ावा दिया।

शिक्षा में बदलाव की सोच:
वे ऐसी शिक्षा के पक्षधर थे जो चरित्र निर्माण, मन की शक्ति और आत्मनिर्भरता सिखाए — न कि केवल डिग्री।

पश्चिम में भारत की पहचान बनाई:
उनके विचारों और भाषणों ने हिंदू धर्म और भारतीय दर्शन को वैश्विक स्तर पर सम्मान दिलाया।

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु | Swami Vivekanand Death in Hindi

उन्हें पहले से ही अंदाजा था कि वे 40 वर्ष की आयु से पहले ही मर जाएँगे। परिणामस्वरूप, 4 जुलाई, 1902 को ध्यान करते हुए उनकी मृत्यु हो गई। बताया जाता है कि वे ‘महासमाधि’ पर पहुँच गए थे और गंगा के तट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया था।

स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं ने न केवल युवाओं को बल्कि पूरे विश्व को प्रेरित किया। उन्होंने भारत की राष्ट्रीय एकता की सच्ची नींव रखी। उन्होंने हमें दिखाया कि इतने सारे मतभेदों के बावजूद कैसे सह-अस्तित्व में रहा जा सकता है। वे पूर्वी और पश्चिमी संस्कृतियों के बीच एक आभासी पुल बनाने में प्रभावी थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति को बड़े पैमाने पर दुनिया से अलग करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

यहां पढ़ें ऐसे ही महान लोगो की जीवन की कहानियां जो हमें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।

निष्कर्ष 

स्वामी विवेकानंद के विचार, दर्शन और शिक्षा अत्यंत उच्चकोटि के है इनमें जीवन के मूल सत्यों, रहस्यों और तथ्यों को समझने की कुंजी है। उनके शब्द इतने असरदार है कि एक मुर्दे में भी जान डाल सकता है। वे मानवता के सच्चे प्रतीक थे, है और मानव जाति के अस्तित्व को जनसाधारण के पास पहुंचाने का अभूतपूर्व काम किया।’’ वे अद्धैेत वेदांत के पक्के समर्थक थे।

भारतीय संस्कृति एवं उनके मूल मान्यताओं पर दर्शन की जीवन शैली अपनाने तथा आपनी संस्कृति को जीवित रखने हेतु भारतीय संस्कृति के मूल अस्तित्व को बनाए रखने का आह्वान किया ताकि आने वाली भावी पीढ़ी पूर्ण संस्कारिक, नैतिक गुणों से युक्त, न्यायप्रिय, सत्यधर्मी तथा आध्यात्मिक और भारतीय आदर्श के सच्चे प्रतीक के रूप में विश्व में ऊंचा स्थान रखें’’।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

स्वामी विवेकानंद का शिकागो धर्म संसद में दिया गया ऐतिहासिक भाषण क्या था?

1893 में, उनके “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों” से शुरू हुए भाषण ने दुनिया भर में भारत का नाम रोशन किया।

स्वामी विवेकानंद का जीवन दर्शन और उनके प्रमुख उपदेश क्या थे?

उनका दर्शन मानवता की सेवा और आत्मज्ञान पर आधारित था, और वे “उठो, जागो, और लक्ष्य तक पहुँचने तक रुको मत” का उपदेश देते थे।

स्वामी विवेकानंद का निधन कब और किन परिस्थितियों में हुआ?

स्वामी विवेकानंद का निधन 4 जुलाई 1902 को बेलूर मठ में ध्यान के दौरान हुआ।

स्वामी विवेकानंद का वास्तविक नाम क्या था? 

स्वामी विवेकानंद का वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्ता था।

स्वामी विवेकानंद की प्रमुख रचनाएँ कौन-सी हैं? 

उनकी प्रमुख रचनाओं में “योग का राजमार्ग”, “प्रभावक विचार”, और विभिन्न भाषणों का संकलन शामिल है।

स्वामी विवेकानंद पर सबसे अधिक प्रभाव किसका था?

स्वामी विवेकानंद पर सबसे अधिक प्रभाव उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस का पड़ा था।

स्वामी विवेकानंद से हमें क्या सीख मिलती है?

स्वामी विवेकानंद से मिलने वाली प्रमुख सीखें:
आत्मविश्वास और आत्मबल:
“विश्वास रखो, तुम सब कुछ कर सकते हो।”
→ अपने ऊपर भरोसा रखना और आत्मबल से कठिनाइयों को पार करना।
लक्ष्य के प्रति एकनिष्ठता:
“उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य न प्राप्त हो जाए।”
→ अपने उद्देश्य के प्रति पूरी निष्ठा और लगन से कार्य करना।
सेवा का महत्व:
“ईश्वर की सच्ची पूजा, मानव सेवा में है।”
→ निःस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करना।
राष्ट्रप्रेम:
→ भारत की संस्कृति, ज्ञान और परंपरा पर गर्व करना और देश के विकास के लिए कार्य करना।
धार्मिक सहिष्णुता:
→ सभी धर्मों का सम्मान करना और उनके मूल में एकता को पहचानना।
चरित्र निर्माण:
→ सच्चरित्र, ईमानदार और जिम्मेदार नागरिक बनना।

Authored by, Aakriti Jain
Content Curator

Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.

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