Quick Summary
संत रविदास जी के अनमोल वचन दोहे और चौपाइयाँ युवाओं को जीवन को एक नई दृष्टि से देखने और उसे सार्थकता के साथ जीने की प्रेरणा देते हैं। संत रविदास जी भारतीय संत परंपरा के महान आध्यात्मिक और सामाजिक सुधारक थे। उनके विचार और उपदेश समाज में समानता, भाईचारे और भक्ति के मूल सिद्धांतों पर आधारित थे। उनका जीवन और उनकी शिक्षाएँ हमें सिखाती हैं कि कैसे एक साधारण व्यक्ति अपने कर्म, सादगी और भक्ति के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकता है। यह लेख संत रविदास जी के अनमोल वचन का समाज पर प्रभाव, रविदास जयंती और रविदास की कहानी को विस्तार से समझाने का प्रयास करेगा।
संत रविदास का जन्म 15वीं शताब्दी में उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के पास सीर गोवर्धनपुर नामक स्थान पर हुआ था। उनके माता-पिता, माता कालसा देवी और पिता संतोख दास, समाज के उस वर्ग से थे जिसे तत्कालीन समाज में निम्न जाति के रूप में देखा जाता था। उनके पिता जूते बनाने और उनकी मरम्मत का कार्य करते थे।
संत रविदास का बचपन बेहद साधारण और संघर्षपूर्ण रहा। अपने परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद, रविदास ने हमेशा सरलता और सच्चाई का जीवन जीया। उनके जीवन में ईश्वर के प्रति गहरी भक्ति बचपन से ही देखी जा सकती थी। ऐसा माना जाता है कि उनके पिता के व्यवसाय से जुड़ी कठिनाइयों और समाज के भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण ने उनके भीतर समानता और न्याय के प्रति गहरी भावना जागृत की।
संत रविदास के जन्म की सटीक तिथि को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ स्रोतों के अनुसार उनका जन्म वर्ष 1376, 1377 या 1399 सीई में हुआ हो सकता है। कई अध्येताओं का मानना है कि उनका जीवनकाल 1450 से 1520 के बीच रहा। यह भी माना जाता है कि उन्होंने अपना जीवन समाज के उत्थान और भक्ति मार्ग के प्रचार में समर्पित कर दिया।
संत रविदास का बचपन जिज्ञासा, भक्ति, और अद्भुत बुद्धिमत्ता से भरा हुआ था। जब वे शिक्षा ग्रहण करने के लिए गुरु पंडित शारदानंद की पाठशाला गए, तब कुछ उच्च जाति के लोगों ने इसका विरोध किया। लेकिन पंडित शारदानंद ने उनके असाधारण व्यक्तित्व को पहचानते हुए उन्हें अपनी पाठशाला में प्रवेश दिया।
रविदास ने अपनी शिक्षा में उत्कृष्टता दिखाई और अपने गुरु को भी प्रभावित किया। उनकी आध्यात्मिक प्रवृत्ति और गहन सोच ने उन्हें बचपन से ही अपने साथियों और समाज में अलग पहचान दिलाई। वह बचपन से ही अन्याय के खिलाफ खड़े होते थे और हर व्यक्ति के साथ समानता का व्यवहार करते थे।
संत रविदास का जीवन एक आदर्श उदाहरण है कि साधुता केवल वस्त्र और दिखावे पर निर्भर नहीं करती, बल्कि आंतरिक शुद्धता, ईश्वर भक्ति और मानवता के प्रति सेवा भाव पर आधारित होती है। उन्होंने अपने जीवन में कभी भेदभाव को स्वीकार नहीं किया और समाज में समानता और एकता का संदेश फैलाने के लिए साधु मार्ग अपनाया।
संत रविदास केवल आध्यात्मिक गुरु ही नहीं थे, बल्कि वे एक समाज सुधारक भी थे। उन्होंने जाति-धर्म के आधार पर होने वाले भेदभाव को चुनौती दी और मानवता को प्राथमिकता दी। उनके विचार और कार्य समाज में नई चेतना और जागरूकता लाने का माध्यम बने।
संत रविदास के अनमोल वचन मानवता, समानता, भक्ति और सादगी पर आधारित हैं। उनके वचनों में जीवन के हर पहलू के लिए गहन संदेश छुपे हैं।
“मन चंगा तो कठौती में गंगा।”
यह वचन बताता है कि जाति, धर्म या स्थान की परवाह किए बिना, सच्चा भक्त वही है जिसका मन पवित्र है। उन्होंने हर इंसान को समान दृष्टि से देखने की शिक्षा दी।
“प्रभु की भक्ति में सच्चाई ही सबसे बड़ा धन है।”
उनका मानना था कि ईश्वर के लिए धन-दौलत की नहीं, बल्कि सच्चे और निष्कपट मन की आवश्यकता होती है।
“जाति-जाति में जाति है, जो केतन के पात। रैदास मनुष ना जुड़ सके, जब तक जाति न जात।”
संत रविदास ने जाति प्रथा का कड़ा विरोध किया। उनके इस वचन से यह संदेश मिलता है कि जब तक जाति का भेदभाव खत्म नहीं होगा, मानवता को एकता नहीं मिलेगी।
रैदास बैराग्य भलो, सोई कर जो होई।
अर्थ: सच्चा वैराग्य वही है जो बिना स्वार्थ के ईश्वर की भक्ति में लीन हो और वही कर्म करें जो उचित हो।
संत रविदास का यह संदेश हमें यह समझाने की कोशिश करता है कि सच्चा वैराग्य केवल संसार से दूर रहने में नहीं है, बल्कि अपने मन और कर्म को पवित्र और ईश्वरमय बनाने में है।
संत रविदास जी के दोहे मानव को ज्ञान के मार्ग की ओर ले जाने का कार्य करते हैं। संत रविदास जी के दोहे कुछ इस प्रकार हैं;
“रविदास’ जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच,
नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच॥”
भावार्थ: संत रविदास इस दोहे में यह संदेश देते हैं कि जन्म के आधार पर कोई व्यक्ति नीच या छोटा नहीं होता। हर व्यक्ति का जन्म समान रूप से पवित्र और श्रेष्ठ है। लेकिन जब कोई गलत कार्य करता है या अपने कर्मों में पवित्रता और सच्चाई नहीं रखता, तो उसके कर्म उसे नीच बना देते हैं।
“जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात, रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात॥”
भावार्थ: संत रविदास इस दोहे में समाज में जाति के आधार पर हो रहे भेदभाव और विभाजन को लेकर अपनी चिंता व्यक्त करते हैं। वह कहते हैं कि जैसे एक पेड़ की शाखाओं पर असंख्य पत्ते होते हैं, वैसे ही समाज में भी जातियों की गिनती बहुत अधिक है। जब तक यह जातिगत भेदभाव खत्म नहीं होगा, तब तक मानवता एकजुट नहीं हो सकती।
“रैदास प्रेम नहिं छिप सकई, लाख छिपाए कोय।
प्रेम न मुख खोलै कभऊँ, नैन देत हैं रोय॥”
भावार्थ: संत रविदास इस दोहे में प्रेम की गहराई और उसकी स्वाभाविक अभिव्यक्ति को समझाते हैं। वह कहते हैं कि सच्चा प्रेम चाहे लाख छुपाने की कोशिश की जाए, फिर भी छिप नहीं सकता। प्रेम के शब्द भले ही न बोलें, लेकिन आँखों से आंसू बनकर वह स्वयं ही अपनी अभिव्यक्ति कर देता है।
“पराधीनता पाप है, जान लेहु रे मीत।
रैदास दास पराधीन सौं, कौन करैहै प्रीत॥”
भावार्थ: संत रविदास इस दोहे में पराधीनता (दूसरों पर निर्भरता या दासता) को पाप बताते हैं। वे कहते हैं कि हे मित्र, यह समझ लो कि पराधीनता एक ऐसा पाप है, जिसमें स्वतंत्रता और स्वाभिमान समाप्त हो जाता है। जो व्यक्ति पराधीन है, उससे कौन सच्चा प्रेम करेगा?
“सौ बरस लौं जगत मंहि, जीवत रहि करू काम।
रैदास करम ही धरम हैं, करम करहु निहकाम॥”
भावार्थ: संत रविदास इस दोहे में कर्म और धर्म के संबंध को समझाते हुए कहते हैं कि चाहे आप सौ वर्षों तक इस संसार में जीवित रहें, लेकिन हमेशा अच्छे कर्म करते रहें। उनके अनुसार, कर्म ही सच्चा धर्म है, और इसे निस्वार्थ भाव से करना चाहिए, बिना किसी फल की अपेक्षा के।
संत रविदास जी की चौपाई कुछ इस प्रकार हैं;
चौपाई 1:
मन चंगा तो कठौती में गंगा,
जो मन मैला तो गंगा मैला॥
जाति-पाँति पूछे नहिं कोई,
हरि को भजे सोई गोसाई॥
चौपाई 2 :
जय रविदास आस के दानी ।
जय गुरुवर जय हो वरदानी ॥
हे दीनों के सच्चे दाता ।
तुमसे यह जीवन सुख पाता ॥
चौपाई 3 :
जब चौदहवीं सदी उदासी ।
तुम बालक बन आये काशी ॥
माघ महीने की पुनवासी ।
झूम उठे काशी के वासी ॥
चौपाई 4 :
रघुनंदन कर्मा के लाला ।
मंडुवाडी में बचपन पाला ॥
सीरकरहियाँ धाम तुम्हारा ।
सुखदायक है नाम तुम्हारा ॥
संत रविदास ने अपने विचारों और वचनों से समाज में समानता और मानवता की नई लहर चलाई। उनके संदेश आज भी हर व्यक्ति को इंसानियत के मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देते हैं।
संत रविदास का भक्ति आंदोलन में योगदान अतुलनीय है। उन्होंने भक्ति को जाति, धर्म और लिंग से ऊपर बताया और सभी को ईश्वर के प्रति सच्ची निष्ठा रखने की शिक्षा दी।
संत रविदास ने समाज में व्याप्त असमानता और अन्याय को खत्म करने के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया। उनकी शिक्षाओं ने लोगों को सामाजिक बंधनों से मुक्त होकर एक नई सोच अपनाने की प्रेरणा दी।
जन्म जात मत पूछिए, का जात और पात। रैदास पूत सम प्रभु के कोई नहिं जात-कुजात।।
ऐसा चाहूं राज मैं, जहां मिले सबन को अन्न। छोट बड़ो सब सम बसे, रविदास रहे प्रसन्न।।
ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन, पूजिए चरण चंडाल के जो होवे गुण प्रवीन।।
माता पिता गुरुदेव, तीन देव लोक माही। इनकी सेवा कर लेवो, हरि को भजो रज खाही।।
संत भाखै रविदास, प्रेम काज सदा निराला। प्रेम ही राम, प्रेम ही रहीम, प्रेम ही सब सारा।।
जहां पर प्रेम न होय, वहां पर नरक समीप। जहां पर प्रेम रहे, वहां बैकुंठ लोक सदीप।।
संत रविदास के वचन और शिक्षाएँ आज भी समाज को एक नई दिशा देने और जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान करती हैं। उनका जीवन दर्शन यह सिखाता है कि सच्ची सफलता केवल भौतिक उपलब्धियों में नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धता, ईश्वर भक्ति, और मानवता की सेवा में निहित है। उनके विचारों का हर पहलू जीवन को सरल, सच्चा और सार्थक बनाने की दिशा में प्रेरित करता है।
संत रविदास जयंती एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो भारतीय भक्ति आंदोलन के महान संत और समाज सुधारक संत रविदास जी के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। Guru Ravidas Jayanti 2025 हर साल माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार माघ मास की पूर्णिमा तिथि होती है। यह तिथि ग्रेगोरियन कैलेंडर में आमतौर पर फरवरी के महीने में पड़ती है। इस दिन संत रविदास के अनुयायी और भक्ति आंदोलन से जुड़े लोग उनके विचारों और शिक्षाओं को याद करते हैं
संत रविदास जयंती न केवल उनके उपदेशों और विचारों को याद करने का अवसर है, बल्कि यह समाज में उनके द्वारा फैलाए गए समानता और मानवता के संदेश को पुनर्जीवित करने का दिन भी है। इस दिन लोग:
आज के दौर में, जब समाज में जातिगत और सामाजिक असमानताएँ अब भी मौजूद हैं, संत रविदास जयंती का महत्व और बढ़ जाता है। उनके विचार हमें यह सिखाते हैं कि समाज में समानता और भाईचारा ही सच्ची मानवता है।
संत रविदास के वचन और शिक्षाएँ न केवल उनके समय में, बल्कि आज के समाज में भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने हमें यह सिखाया कि:
संत रविदास का जीवन और उनकी शिक्षाएँ आज भी हमें प्रेरणा देती हैं। उन्होंने समाज को जाति, धर्म और भेदभाव से ऊपर उठकर मानवता को अपनाने का मार्ग दिखाया। उनके अनमोल वचन हमें जीवन के वास्तविक अर्थ को समझने और मानवता की सेवा में अपने जीवन को समर्पित करने की प्रेरणा देते हैं। संत रविदास जी के अनमोल वचन ब्लॉग में रविदास जयंती, रविदास की कहानी पर विस्तार से जानकारी दी गई है। संत रविदास का संदेश आज के समाज में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उनके समय में था। उनकी शिक्षाएँ हमें सिखाती हैं कि सच्चा संत वही है जो मानवता की सेवा करे और समाज को एकता और समानता की राह पर ले जाए।
संत रविदास के उपदेश थे: समानता, भाईचारा, निर्गुण भक्ति, मानवता, और नम्रता। उन्होंने जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया और ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा की शिक्षा दी।
गुरु रविदास जयंती हर साल माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। 2024 में यह 647वीं जयंती थी। आप 2025 के लिए माघ पूर्णिमा की तारीख हिंदी कैलेंडर, पंचांग या ऑनलाइन देख सकते हैं।
संत रविदास की मृत्यु वृंदावन में हुई थी। माना जाता है कि उन्होंने अपनी अंतिम सांस वहीं ली थी, और उन्हें एक महान संत और समाज सुधारक के रूप में याद किया जाता है।
संत रविदास ने निर्गुण भक्ति और आध्यात्मिक साधना से ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने जीवन के अनुभवों और ईश्वर भक्ति के माध्यम से समाज में समता और मानवता का प्रचार किया।
ऐसे और आर्टिकल्स पड़ने के लिए, यहाँ क्लिक करे
adhik sambandhit lekh padhane ke lie
Chegg India does not ask for money to offer any opportunity with the company. We request you to be vigilant before sharing your personal and financial information with any third party. Beware of fraudulent activities claiming affiliation with our company and promising monetary rewards or benefits. Chegg India shall not be responsible for any losses resulting from such activities.
Chegg India does not ask for money to offer any opportunity with the company. We request you to be vigilant before sharing your personal and financial information with any third party. Beware of fraudulent activities claiming affiliation with our company and promising monetary rewards or benefits. Chegg India shall not be responsible for any losses resulting from such activities.