संत रविदास जी के अनमोल वचन और चौपाइयाँ

February 20, 2025
संत रविदास जी के अनमोल वचन
Quick Summary

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  • “जो जैसा करता है, वैसा भरता है”: कर्मों का फल हमेशा प्राप्त होता है।
  • “मन चंगा तो कठौती में गंगा”: पवित्रता मन में हो, तो कहीं भी भगवान की उपस्थिति महसूस होती है।
  • “रविदास जी ने कहा, प्रेम ही सबसे बड़ा धर्म है”: प्रेम और सद्भावना से जीवन जीने की शिक्षा दी।
  • “हिरदय की शुद्धता ही सर्वोत्तम पूजा है”: ईश्वर की सच्ची पूजा दिल की शुद्धता से होती है।

Table of Contents

संत रविदास जी के अनमोल वचन दोहे और चौपाइयाँ युवाओं को जीवन को एक नई दृष्टि से देखने और उसे सार्थकता के साथ जीने की प्रेरणा देते हैं। संत रविदास जी भारतीय संत परंपरा के महान आध्यात्मिक और सामाजिक सुधारक थे। उनके विचार और उपदेश समाज में समानता, भाईचारे और भक्ति के मूल सिद्धांतों पर आधारित थे। उनका जीवन और उनकी शिक्षाएँ हमें सिखाती हैं कि कैसे एक साधारण व्यक्ति अपने कर्म, सादगी और भक्ति के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकता है। यह लेख संत रविदास जी के अनमोल वचन का समाज पर प्रभाव, रविदास जयंती और रविदास की कहानी को विस्तार से समझाने का प्रयास करेगा।

संत रविदास की कहानी | संत रविदास जी के अनमोल वचन

जन्म और प्रारंभिक जीवन

संत रविदास का जन्म 15वीं शताब्दी में उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के पास सीर गोवर्धनपुर नामक स्थान पर हुआ था। उनके माता-पिता, माता कालसा देवी और पिता संतोख दास, समाज के उस वर्ग से थे जिसे तत्कालीन समाज में निम्न जाति के रूप में देखा जाता था। उनके पिता जूते बनाने और उनकी मरम्मत का कार्य करते थे।

संत रविदास का बचपन बेहद साधारण और संघर्षपूर्ण रहा। अपने परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद, रविदास ने हमेशा सरलता और सच्चाई का जीवन जीया। उनके जीवन में ईश्वर के प्रति गहरी भक्ति बचपन से ही देखी जा सकती थी। ऐसा माना जाता है कि उनके पिता के व्यवसाय से जुड़ी कठिनाइयों और समाज के भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण ने उनके भीतर समानता और न्याय के प्रति गहरी भावना जागृत की।

जन्म तिथि को लेकर मतभेद

संत रविदास के जन्म की सटीक तिथि को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ स्रोतों के अनुसार उनका जन्म वर्ष 1376, 1377 या 1399 सीई में हुआ हो सकता है। कई अध्येताओं का मानना है कि उनका जीवनकाल 1450 से 1520 के बीच रहा। यह भी माना जाता है कि उन्होंने अपना जीवन समाज के उत्थान और भक्ति मार्ग के प्रचार में समर्पित कर दिया।

प्रारंभिक शिक्षा और बचपन की विशेषताएँ

संत रविदास का बचपन जिज्ञासा, भक्ति, और अद्भुत बुद्धिमत्ता से भरा हुआ था। जब वे शिक्षा ग्रहण करने के लिए गुरु पंडित शारदानंद की पाठशाला गए, तब कुछ उच्च जाति के लोगों ने इसका विरोध किया। लेकिन पंडित शारदानंद ने उनके असाधारण व्यक्तित्व को पहचानते हुए उन्हें अपनी पाठशाला में प्रवेश दिया।

रविदास ने अपनी शिक्षा में उत्कृष्टता दिखाई और अपने गुरु को भी प्रभावित किया। उनकी आध्यात्मिक प्रवृत्ति और गहन सोच ने उन्हें बचपन से ही अपने साथियों और समाज में अलग पहचान दिलाई। वह बचपन से ही अन्याय के खिलाफ खड़े होते थे और हर व्यक्ति के साथ समानता का व्यवहार करते थे।

साधु बनने का मार्ग

संत रविदास का जीवन एक आदर्श उदाहरण है कि साधुता केवल वस्त्र और दिखावे पर निर्भर नहीं करती, बल्कि आंतरिक शुद्धता, ईश्वर भक्ति और मानवता के प्रति सेवा भाव पर आधारित होती है। उन्होंने अपने जीवन में कभी भेदभाव को स्वीकार नहीं किया और समाज में समानता और एकता का संदेश फैलाने के लिए साधु मार्ग अपनाया।

समाज सुधारक की भूमिका

संत रविदास केवल आध्यात्मिक गुरु ही नहीं थे, बल्कि वे एक समाज सुधारक भी थे। उन्होंने जाति-धर्म के आधार पर होने वाले भेदभाव को चुनौती दी और मानवता को प्राथमिकता दी। उनके विचार और कार्य समाज में नई चेतना और जागरूकता लाने का माध्यम बने।

संत रविदास जी के अनमोल वचन 

संत रविदास के अनमोल वचन मानवता, समानता, भक्ति और सादगी पर आधारित हैं। उनके वचनों में जीवन के हर पहलू के लिए गहन संदेश छुपे हैं।

समानता और भाईचारे पर संत रविदास जी के अनमोल वचन

यह वचन बताता है कि जाति, धर्म या स्थान की परवाह किए बिना, सच्चा भक्त वही है जिसका मन पवित्र है। उन्होंने हर इंसान को समान दृष्टि से देखने की शिक्षा दी।

ईश्वर भक्ति पर संत रविदास जी के अनमोल वचन

उनका मानना था कि ईश्वर के लिए धन-दौलत की नहीं, बल्कि सच्चे और निष्कपट मन की आवश्यकता होती है।

जाति और धर्म पर अनमोल वचन

संत रविदास ने जाति प्रथा का कड़ा विरोध किया। उनके इस वचन से यह संदेश मिलता है कि जब तक जाति का भेदभाव खत्म नहीं होगा, मानवता को एकता नहीं मिलेगी।

वैराग्य पर अनमोल वचन

अर्थ: सच्चा वैराग्य वही है जो बिना स्वार्थ के ईश्वर की भक्ति में लीन हो और वही कर्म करें जो उचित हो।

संत रविदास का यह संदेश हमें यह समझाने की कोशिश करता है कि सच्चा वैराग्य केवल संसार से दूर रहने में नहीं है, बल्कि अपने मन और कर्म को पवित्र और ईश्वरमय बनाने में है।

संत रविदास के प्रसिद्ध दोहे

संत रविदास जी के दोहे मानव को ज्ञान के मार्ग  की ओर ले जाने का कार्य करते हैं। संत रविदास जी के दोहे कुछ इस प्रकार हैं;

भावार्थ: संत रविदास इस दोहे में यह संदेश देते हैं कि जन्म के आधार पर कोई व्यक्ति नीच या छोटा नहीं होता। हर व्यक्ति का जन्म समान रूप से पवित्र और श्रेष्ठ है। लेकिन जब कोई गलत कार्य करता है या अपने कर्मों में पवित्रता और सच्चाई नहीं रखता, तो उसके कर्म उसे नीच बना देते हैं।

भावार्थ: संत रविदास इस दोहे में समाज में जाति के आधार पर हो रहे भेदभाव और विभाजन को लेकर अपनी चिंता व्यक्त करते हैं। वह कहते हैं कि जैसे एक पेड़ की शाखाओं पर असंख्य पत्ते होते हैं, वैसे ही समाज में भी जातियों की गिनती बहुत अधिक है। जब तक यह जातिगत भेदभाव खत्म नहीं होगा, तब तक मानवता एकजुट नहीं हो सकती।

भावार्थ: संत रविदास इस दोहे में प्रेम की गहराई और उसकी स्वाभाविक अभिव्यक्ति को समझाते हैं। वह कहते हैं कि सच्चा प्रेम चाहे लाख छुपाने की कोशिश की जाए, फिर भी छिप नहीं सकता। प्रेम के शब्द भले ही न बोलें, लेकिन आँखों से आंसू बनकर वह स्वयं ही अपनी अभिव्यक्ति कर देता है।

भावार्थ: संत रविदास इस दोहे में पराधीनता (दूसरों पर निर्भरता या दासता) को पाप बताते हैं। वे कहते हैं कि हे मित्र, यह समझ लो कि पराधीनता एक ऐसा पाप है, जिसमें स्वतंत्रता और स्वाभिमान समाप्त हो जाता है। जो व्यक्ति पराधीन है, उससे कौन सच्चा प्रेम करेगा?

भावार्थ: संत रविदास इस दोहे में कर्म और धर्म के संबंध को समझाते हुए कहते हैं कि चाहे आप सौ वर्षों तक इस संसार में जीवित रहें, लेकिन हमेशा अच्छे कर्म करते रहें। उनके अनुसार, कर्म ही सच्चा धर्म है, और इसे निस्वार्थ भाव से करना चाहिए, बिना किसी फल की अपेक्षा के।

रविदास जी की चौपाई

संत रविदास जी की चौपाई कुछ इस प्रकार हैं;

चौपाई 1:

मन चंगा तो कठौती में गंगा,
जो मन मैला तो गंगा मैला॥
जाति-पाँति पूछे नहिं कोई,
हरि को भजे सोई गोसाई॥

चौपाई 2 :

जय रविदास आस के दानी ।

जय गुरुवर जय हो वरदानी ॥

हे दीनों के सच्चे दाता ।

तुमसे यह जीवन सुख पाता ॥

चौपाई 3 :

चौपाई 4  :

संत रविदास के विचारों का समाज पर प्रभाव

समानता और मानवता का संदेश

संत रविदास ने अपने विचारों और वचनों से समाज में समानता और मानवता की नई लहर चलाई। उनके संदेश आज भी हर व्यक्ति को इंसानियत के मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देते हैं।

भक्ति आंदोलन में योगदान

संत रविदास का भक्ति आंदोलन में योगदान अतुलनीय है। उन्होंने भक्ति को जाति, धर्म और लिंग से ऊपर बताया और सभी को ईश्वर के प्रति सच्ची निष्ठा रखने की शिक्षा दी।

समाज सुधारक के रूप में

संत रविदास ने समाज में व्याप्त असमानता और अन्याय को खत्म करने के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया। उनकी शिक्षाओं ने लोगों को सामाजिक बंधनों से मुक्त होकर एक नई सोच अपनाने की प्रेरणा दी।

संत रविदास जी के  कुछ और अनमोल विचार इस प्रकार हैं

संत रविदास जी के अनमोल वचन से सीख

संत रविदास के वचन और शिक्षाएँ आज भी समाज को एक नई दिशा देने और जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान करती हैं। उनका जीवन दर्शन यह सिखाता है कि सच्ची सफलता केवल भौतिक उपलब्धियों में नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धता, ईश्वर भक्ति, और मानवता की सेवा में निहित है। उनके विचारों का हर पहलू जीवन को सरल, सच्चा और सार्थक बनाने की दिशा में प्रेरित करता है।

  1. भौतिक उपलब्धियाँ नहीं, आत्मा की शुद्धता है असली सफलता
    • संत रविदास ने हमेशा सिखाया कि धन, पद, और प्रतिष्ठा से ज्यादा महत्वपूर्ण आत्मा की पवित्रता है। उनका मानना था कि भौतिक चीज़ें अस्थायी होती हैं, लेकिन आत्मा की शुद्धता और सच्चे कर्म स्थायी हैं।
    • उनके वचन “मन चंगा तो कठौती में गंगा” से यह सीख मिलती है कि अगर हमारा मन शुद्ध है, तो बाहरी साधनों की कोई जरूरत नहीं है। यह हमें जीवन के वास्तविक मूल्यों को पहचानने और अपने विचारों को सकारात्मक दिशा देने की प्रेरणा देता है।
  2. सादगी और ईमानदारी से बड़ा कोई धन नहीं
    • संत रविदास ने यह स्पष्ट किया कि सादगी और ईमानदारी ही असली धन है। उनका मानना था कि जीवन को सरल और सच्चा बनाकर जिया जाए, क्योंकि यही सच्चा संतोष प्रदान करता है।
    • उनके वचन “सादा जीवन ही सच्ची दौलत है” यह समझाते हैं कि दिखावा और भौतिक चीज़ों का पीछा करने के बजाय हमें अपने विचार और कर्म शुद्ध रखने चाहिए।
  3. मानवता की सेवा में जीवन का सार
    • संत रविदास ने अपने वचनों और कर्मों से यह सिखाया कि मानवता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है। उनका कहना था कि जाति, धर्म, या समाज में ऊंच-नीच का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
    • उनका वचन “जो नीच को उच्च कहे, सोई सच्चा संत” हमें यह सिखाता है कि समाज में हर व्यक्ति समान है और हमें हर किसी को आदर और प्रेम के साथ देखना चाहिए।
  4. जीवन को सरल और उद्देश्यपूर्ण बनाएं
    • संत रविदास ने लोगों को यह सिखाया कि सादा जीवन जीकर अपने विचारों को ऊंचा रखें। उन्होंने हमें प्रेरित किया कि हम अपने जीवन को केवल व्यक्तिगत लाभ तक सीमित न रखें, बल्कि इसे समाज और मानवता की भलाई के लिए समर्पित करें।
    • उनके वचन “ऐसा चाहूं राज मैं, जहां मिले सबन को अन्न” यह संदेश देते हैं कि हर व्यक्ति को समान अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए। यह समाज में समानता और भाईचारे को बढ़ावा देने की शिक्षा देता है।
  5. भक्ति और कर्म का मेल
    • संत रविदास ने हमेशा भक्ति और कर्म के महत्व को समझाया। उनका मानना था कि भक्ति को सिर्फ पूजा तक सीमित न रखें, बल्कि इसे अपने कर्मों में भी उतारें। उनके वचन “करम ही धरम है” यह बताते हैं कि सच्चा धर्म वही है जो हमारे कर्मों में झलके।

संत रविदास जयंती

संत रविदास जयंती एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो भारतीय भक्ति आंदोलन के महान संत और समाज सुधारक संत रविदास जी के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। Guru Ravidas Jayanti 2025 हर साल माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार माघ मास की पूर्णिमा तिथि होती है। यह तिथि ग्रेगोरियन कैलेंडर में आमतौर पर फरवरी के महीने में पड़ती है। इस दिन संत रविदास के अनुयायी और भक्ति आंदोलन से जुड़े लोग उनके विचारों और शिक्षाओं को याद करते हैं

उत्सव का स्वरूप

  • प्रभात फेरी- इस दिन सुबह-सुबह संत रविदास के अनुयायी प्रभात फेरी निकालते हैं, जिसमें भजन, कीर्तन और संत रविदास के उपदेशों का गायन किया जाता है।
  • पूजा और प्रार्थना- उनके जन्मस्थान सीर गोवर्धनपुर, वाराणसी में विशाल स्तर पर पूजा-अर्चना होती है। इस दिन संत रविदास के भजनों और दोहों का गायन किया जाता है। ।

समाज में जागरूकता

संत रविदास जयंती न केवल उनके उपदेशों और विचारों को याद करने का अवसर है, बल्कि यह समाज में उनके द्वारा फैलाए गए समानता और मानवता के संदेश को पुनर्जीवित करने का दिन भी है। इस दिन लोग:

  • समाज में समानता और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित होते हैं।
  • जातिगत भेदभाव और अन्याय के खिलाफ खड़े होने का संकल्प लेते हैं।
  • उनके दोहों और विचारों से शिक्षा लेकर जीवन को सही दिशा देने का प्रयास करते हैं।

संत रविदास जयंती का महत्व आज के समय में

आज के दौर में, जब समाज में जातिगत और सामाजिक असमानताएँ अब भी मौजूद हैं, संत रविदास जयंती का महत्व और बढ़ जाता है। उनके विचार हमें यह सिखाते हैं कि समाज में समानता और भाईचारा ही सच्ची मानवता है।

  • उनका संदेश हर वर्ग के व्यक्ति को समान दृष्टि से देखने की प्रेरणा देता है।
  • यह दिन विभिन्न धर्मों और जातियों के बीच भाईचारे को मजबूत करने का अवसर है।
  • युवाओं को उनके उपदेशों से प्रेरणा लेकर समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में काम करने का प्रोत्साहन मिलता है।

संत रविदास के वचनों का आज के जीवन में महत्व

संत रविदास के वचन और शिक्षाएँ न केवल उनके समय में, बल्कि आज के समाज में भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने हमें यह सिखाया कि:

  • जीवन का असली उद्देश्य मानवता की सेवा और सच्चे कर्मों में है।
  • भौतिक वस्तुएं और दिखावा हमें संतोष नहीं दे सकते; इसके लिए हमें सादगी और ईमानदारी अपनानी होगी।
  • जाति और धर्म के बंधनों से ऊपर उठकर हर व्यक्ति को समान दृष्टि से देखना चाहिए।
  • समाज में प्रेम, भाईचारा, और समानता स्थापित करना ही सच्चे संत की पहचान है।

निष्कर्ष

संत रविदास का जीवन और उनकी शिक्षाएँ आज भी हमें प्रेरणा देती हैं। उन्होंने समाज को जाति, धर्म और भेदभाव से ऊपर उठकर मानवता को अपनाने का मार्ग दिखाया। उनके अनमोल वचन हमें जीवन के वास्तविक अर्थ को समझने और मानवता की सेवा में अपने जीवन को समर्पित करने की प्रेरणा देते हैं। संत रविदास जी के अनमोल वचन ब्लॉग में रविदास जयंती, रविदास की कहानी पर विस्तार से जानकारी दी गई है। संत रविदास का संदेश आज के समाज में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उनके समय में था। उनकी शिक्षाएँ हमें सिखाती हैं कि सच्चा संत वही है जो मानवता की सेवा करे और समाज को एकता और समानता की राह पर ले जाए। 

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. संत रविदास के उपदेश क्या थे?

संत रविदास के उपदेश थे: समानता, भाईचारा, निर्गुण भक्ति, मानवता, और नम्रता। उन्होंने जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया और ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा की शिक्षा दी।

2. 2024 में रविदास की कौन सी जयंती है?

गुरु रविदास जयंती हर साल माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। 2024 में यह 647वीं जयंती थी। आप 2025 के लिए माघ पूर्णिमा की तारीख हिंदी कैलेंडर, पंचांग या ऑनलाइन देख सकते हैं।

3. संत रविदास की मृत्यु कहाँ हुई थी?

संत रविदास की मृत्यु वृंदावन में हुई थी। माना जाता है कि उन्होंने अपनी अंतिम सांस वहीं ली थी, और उन्हें एक महान संत और समाज सुधारक के रूप में याद किया जाता है।

4. संत रविदास ने कहाँ से ज्ञान प्राप्त किया था?

संत रविदास ने निर्गुण भक्ति और आध्यात्मिक साधना से ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने जीवन के अनुभवों और ईश्वर भक्ति के माध्यम से समाज में समता और मानवता का प्रचार किया।

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