Quick Summary
संघवाद एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें राजनीतिक सत्ता को आमतौर पर दो प्रमुख इकाइयों – केंद्र और राज्यों (या प्रांतों) – के बीच बाँटा जाता है। इस तरह की सरकार को आम भाषा में “संघ” या “संघीय राज्य” कहा जाता है, जैसे – संयुक्त राज्य अमेरिका। इसमें संप्रभु शक्तियाँ केंद्र और राज्यों के बीच आपसी समझौते के आधार पर निर्धारित होती हैं।
संघवाद एक ऐसा शब्द है जो अक्सर सुनने में आता है। संघवाद क्या है? यह सरकार चलाने की कई प्रणालियों में से एक है, जिसमें प्रशासनिक शक्तियों का विभाजन होता है। हमारा देश भी संघवाद के आधार पर संचालित होता है। इस ब्लॉग में, आप जानेंगे कि संघवाद क्या है, इसे कैसे परिभाषित किया जाता है, इसकी विशेषताएं क्या हैं, और इसके कितने प्रकार होते हैं। साथ ही, सहकारी संघवाद और संघवाद में प्रतिस्पर्धा के बारे में भी जानकारी मिलेगी। संघवाद की यह प्रणाली न केवल प्रशासनिक संतुलन बनाए रखती है, बल्कि विभिन्न स्तरों पर सरकारों के बीच तालमेल भी सुनिश्चित करती है, जिससे शासन अधिक प्रभावी और संगठित होता है।
संघवाद एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें सत्ता का बंटवारा केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच किया जाता है। इस व्यवस्था में दो या दो से अधिक स्तर की सरकारें एक ही भौगोलिक क्षेत्र में कार्य करती हैं, और प्रत्येक सरकार को अपने अधिकार क्षेत्र में कुछ विशिष्ट शक्तियाँ और जिम्मेदारियाँ प्राप्त होती हैं। संघवाद एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें सत्ता दो स्तरों पर बाँटी जाती है-
भारत में संघवाद का मतलब है कि देश को कई राज्यों में बाँटा गया है, और हर राज्य की अपनी सरकार होती है, लेकिन सभी राज्यों के ऊपर एक केंद्रीय सरकार भी होती है। यह प्रणाली देश को एकजुट रखती है, राज्यों को स्वायत्तता देती है और सभी स्तरों की सरकारों को जनता की सेवा करने का अवसर देती है।
भारत में राजकोषीय या वित्तीय संसाधनों का बंटवारा संघवाद को प्रभावित करता है। इसके अतिरिक्त, भारत में शासन प्रणाली को “एकात्मक पूर्वाग्रह वाला संघ” माना जाता है, जिसमें केंद्र सरकार को राज्यों की तुलना में अधिक अधिकार प्राप्त हैं। इसी कारण भारत को अर्ध-संघीय राज्य भी कहा जाता है। भारत का संघीय ढांचा क्षेत्रीय स्वायत्तता को मान्यता देता है, लेकिन आपातकालीन प्रावधान इस संघवाद की स्वायत्तता को सीमित भी कर सकते हैं।
हालाँकि, भारत में संघवाद का गठन राज्यों के बीच किसी समझौते के परिणामस्वरूप नहीं हुआ। भारतीय संविधान किसी भी राज्य को संघ से अलग होने का अधिकार नहीं देता है। चुनाव प्रक्रिया भारत में संघीय ढांचे को मजबूती देती है। संविधान का अनुच्छेद 1(1) भारत को “राज्यों का संघ” कहता है, जिसका अर्थ है कि भारत विभिन्न राज्यों से मिलकर बना है, जो उसके अभिन्न भाग हैं।
संघवाद क्या है? समझने के लिए प्रचलित और आसान संघवाद की परिभाषा को जानना महत्वपूर्ण है। संघवाद शासन की एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें प्रशासनिक शक्तियों को देश की राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच में संवैधानिक तरीके से बाँट दिया जाता है। संघवाद सरकार चलाने का वह अनुबंध भी है जो राज्य और केंद्र सरकार को क्षेत्रों के नियंत्रण अधिकार देता है तथा दोनों के मध्य तालमेल बनाए रखता है। संघवाद की परिभाषा के अनुसार संघवाद में कम से कम दो स्तरीय सरकार होती है जिसका विभाजन एक बड़ी इकाई तथा कई छोटी छोटी इकाइयों में होता है।
संघवाद एक ऐसी प्रणाली है जिसमें देश की सरकार दो या दो से अधिक स्तरों में बंटी होती है — जैसे केंद्र और राज्य — और दोनों के पास कुछ स्वतंत्र शक्तियाँ होती हैं।

संघवाद में क्षेत्र, संस्कृति, भाषा, उपनेश के आधार पर संघवाद के प्रकार कई तरह के हो सकते है। संघवाद के प्रकार तीन है:
संघवाद में दो स्तर की सरकार होती है और दूसरे स्तर पर राज्य या प्रांत होते है। इन सभी राज्यों का संवैधानिक स्तर एक ही होता है लेकिन इन राज्यों के पास एक दूसरे से भिन्न अधिकार होते है, असममित संघ राज्यों में इसी असमान शक्तियों और अधिकारों के बंटवारे पर चलने वाला संघ है, संघवाद के प्रकार असममित संघ में निम्न गुण पाए जाते है।
जब कुछ स्वतंत्र इकाइयाँ, जैसे प्रांत, राज्य या उपनिवेश, एक साथ आकर एक बड़ा संघ बनाती हैं, तो इसे “कमिंग टुगेदर फेडरेशन” (एक साथ आने वाला संघ) कहते हैं। इस प्रकार के संघ में विशेष प्रशासनिक शक्तियाँ राज्यों के पास रहती हैं, और कोई नया नियम या बदलाव तभी लागू होता है जब सभी संघ सदस्य राज्यों की सहमति मिलती है। संयुक्त राज्य अमेरिका इसका एक प्रमुख उदाहरण है। कमिंग टुगेदर फेडरेशन संघवाद के प्रमुख प्रकारों में से एक माना जाता है।
जब एक बड़ा देश अपनी नीतियों को हर क्षेत्र में समान रूप से लागू करना चाहता है और विभिन्न परंपराओं और विविधताओं के बीच तालमेल बैठाना चाहता है, तो वह अपने क्षेत्र को अलग-अलग इकाइयों में बांटकर शक्तियों को विकेंद्रीकृत कर देता है। इस प्रकार के संघ को “होल्डिंग टुगेदर फेडरेशन” (एक साथ रहने वाला संघ) कहते हैं। इस संघ में केंद्रीय सरकार के पास विशेष शक्तियाँ होती हैं, जबकि राज्यों को भी कुछ अधिकार मिलते हैं। भारत इसका एक प्रमुख उदाहरण है। होल्डिंग टुगेदर फेडरेशन संघवाद के महत्वपूर्ण प्रकारों में से एक है।

शक्तियों का विकेंद्रीकरण संघवाद की विशेषताएं में से सबसे ज्यादा प्रचलित विशेषता है
संघवाद में एक ऐसा लिखित संविधान होता है जो विभिन्न सरकारों की शक्तियों और कर्तव्यों को स्पष्ट रूप से निर्धारित करता है। इस तरह, संघवाद में लिखित संविधान एक स्थिर और संतुलित शासन व्यवस्था की नींव होता है।
संघवाद की परिभाषा के अनुसार भारत में सहकारी संघवाद एक महत्वपूर्ण प्रणाली है जो देश के संघीय ढांचे को मजबूत बनाती है। सहकारी संघवाद प्रणाली केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच तालमेल और सहयोग बढ़ाने पर जोर देती है। भारतीय संविधान में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन स्पष्ट रूप से किया गया है, लेकिन सहकारी संघवाद के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि दोनों स्तर की सरकारें मिलकर राष्ट्र के विकास के लिए कार्य करें। सहकारी संघवाद से राष्ट्र की अखंडता और एकता को बनाए रखते हुए समावेशी और संतुलित विकास किया जाता है।
यह संघवाद की एक ऐसी अवधारणा है, जिसमें राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित किया जाता है ताकि वे विकास और सुशासन के क्षेत्र में अधिकतम प्रदर्शन कर सकें। यह अवधारणा सहकारी संघवाद के साथ-साथ कार्य करती है और देश के समग्र विकास में योगदान करती है। केंद्रीय योजनाओं के तहत धन का निवेश हासिल करने के लिए राज्य सरकारें कई तरह की सुविधाएं देकर आपस में प्रतिस्पर्धा करती है जिससे विकास की गति को बढ़ावा मिलता है।
| क्रम संख्या | विशेषता | विवरण |
|---|---|---|
| 1 | दो या अधिक स्तर की सरकारें | संघवाद में केंद्र और राज्य दोनों स्तरों की सरकारें होती हैं, जो अपने-अपने क्षेत्रों में शासन करती हैं। |
| 2 | शक्तियों का स्पष्ट विभाजन | संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच अधिकारों और कर्तव्यों का स्पष्ट विभाजन किया गया है। |
| 3 | लिखित संविधान | संघीय व्यवस्था एक लिखित संविधान पर आधारित होती है, जो दोनों स्तर की सरकारों की शक्तियाँ और सीमाएँ तय करता है। |
| 4 | स्वतंत्र न्यायपालिका | एक स्वतंत्र न्यायपालिका संविधान की व्याख्या करती है और केंद्र एवं राज्यों के बीच विवादों का समाधान करती है। |
| 5 | दोहरी नागरिकता | कुछ संघीय देशों में नागरिकों को केंद्र और राज्य दोनों की नागरिकता प्राप्त होती है। (भारत में नहीं है)। |
| 6 | संविधान संशोधन की प्रक्रिया | संविधान में बदलाव की एक विशेष प्रक्रिया होती है, जिसमें केंद्र और राज्य दोनों की सहमति आवश्यक होती है। |
| 7 | सहकारी संघवाद | केंद्र और राज्य सरकारें कई योजनाओं और नीतियों में मिलकर काम करती हैं, जिसे सहकारी संघवाद कहा जाता है। |
संघवाद की चुनौतियाँ विभिन्न कारणों से उत्पन्न होती हैं जो कि संघीय ढांचे के सुचारू संचालन में बाधा डालती हैं। संघवाद क्या है? और इसकी क्या चुनौतियां हैं इसका विवरण निम्नलिखित है:
संघवाद क्या है? यह जानने के लिए भारत में संघवाद को बढ़ावा देने वाली प्रमुख संस्थाओं के बारे में जान लेते हैं:
संघवाद राज्यों को स्थानीय जरूरतों के अनुसार नीतियाँ बनाने की आज़ादी देता है। इससे हर क्षेत्र की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विशेषताओं के अनुसार निर्णय लिए जा सकते हैं।
संघवाद के तहत शक्ति एक ही स्थान पर केंद्रित न होकर विभिन्न स्तरों पर वितरित होती है। इससे सत्ता के दुरुपयोग की संभावना कम होती है और शासन अधिक जवाबदेह बनता है।
भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में संघवाद भाषाई, सांस्कृतिक और धार्मिक विविधताओं को सम्मान देता है और उन्हें संविधान के दायरे में संरक्षित करता है।
जब सभी क्षेत्रों को अपनी बात कहने और निर्णय लेने का अवसर मिलता है, तो असंतोष कम होता है और देश में राजनीतिक स्थिरता बनी रहती है।
स्थानीय सरकारें लोगों की जरूरतों और समस्याओं को बेहतर तरीके से समझती हैं। इससे निर्णय प्रक्रिया तेज़ होती है और सरकार लोगों के प्रति अधिक संवेदनशील बनती है।
संघवाद के पास भविष्य में टिकाऊ बने रहने की क्षमता है, क्योंकि यह अन्य प्रणालियों की तुलना में बेहतर है और राष्ट्रहित के अनुसार परिवर्तन की गुंजाइश रखता है।
भारत में संघवाद का विचार स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ही जन्म ले चुका था:
संघवाद क्या है, यह समझने से हमें यह स्पष्ट होता है कि यह एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का बंटवारा होता है। संघवाद के प्रकार मुख्य रूप से संघीय और संघात्मक होते हैं, जो अलग-अलग देशों की शासन प्रणाली पर निर्भर करते हैं। भारत में संघवाद की विशेषताएं इसकी संविधान में निर्धारित की गई हैं, जहां केंद्र और राज्य दोनों के अधिकार और जिम्मेदारियां स्पष्ट रूप से परिभाषित हैं। यह प्रणाली विभिन्न स्तरों पर शासन की दक्षता और समन्वय बनाए रखने में मदद करती है, जिससे एक स्थिर और समृद्ध राष्ट्र की नींव तैयार होती है। संघवाद लोकतंत्र के सिद्धांतों को मजबूती प्रदान करता है।
संघवाद दो सरकारों का संयोजन है, जिसमें राज्य सरकार और केंद्र सरकार शामिल होती हैं। भारत में, संघवाद को स्थानीय, राज्य और राष्ट्रीय सरकारों के बीच सत्ता के वितरण के रूप में समझा जा सकता है।
संघवाद एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें सत्ता केंद्रीय प्राधिकरण और देश की विभिन्न घटक इकाइयों के बीच विभाजित होती है। एक संघ में कम से कम दो स्तर की सरकारें होती हैं, और ये सभी स्तर कुछ हद तक स्वतंत्र रूप से अपनी शक्तियों का उपयोग करते हैं।
संघवाद की कई महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं, जिनमें सत्ता का विभाजन, संवैधानिक सर्वोच्चता, लिखित संविधान, कठोरता, स्वतंत्र न्यायपालिका, और द्विसदनीय विधायिका शामिल हैं।
भारतीय संविधान, जो 16 नवंबर 1949 को अस्तित्व में आया, देश के 28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों को नियंत्रित करता है। भारतीय संघीय प्रणाली के तहत, राष्ट्रपति कार्यकारी संघ का प्रमुख होता है। वहीं, राज्य का मुखिया, जो मंत्रिपरिषद का प्रमुख भी होता है, वास्तविक सामाजिक और राजनीतिक शक्ति का प्रयोग करता है।
संघवाद की चार प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
शक्तियों का विभाजन: संघवाद में सत्ता का विभाजन विभिन्न सरकारों के बीच होता है, जैसे केंद्र और राज्य सरकारों के बीच, जो संविधान द्वारा निर्धारित किया जाता है।
लिखित संविधान: संघीय प्रणाली में एक लिखित संविधान होता है, जो विभिन्न सरकारों की शक्तियों और जिम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है।
दोस्तरी सरकारें: संघवाद में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की स्वतंत्रता होती है, और दोनों का संविधान में सुनिश्चित किया गया अधिकार होता है। प्रत्येक सरकार अपने-अपने क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से काम करती है।
संघीय न्यायालय: संघीय न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय उन विवादों को हल करने का काम करता है जो केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों के विभाजन को लेकर उत्पन्न होते हैं।
भारत का संविधान डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता वाली मसौदा समिति (Drafting Committee) द्वारा लिखा गया था।
Authored by, Aakriti Jain
Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.
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