संघवाद क्या है

संघवाद क्या है? | Sanghvad kya Hai

Published on August 19, 2025
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संघवाद क्या है

Quick Summary

  • संघवाद एक राजनीतिक सिद्धांत है जिसमें शक्ति और अधिकार विभिन्न स्तरों पर वितरित होते हैं।
  • इसमें केंद्रीय और राज्य सरकारें शामिल होती हैं।
  • केंद्रीय और क्षेत्रीय सरकारें अपनी-अपनी जिम्मेदारियों और अधिकारों के अनुसार स्वतंत्रता से काम करती हैं।
  • हालांकि, ये सभी एक संयुक्त संघ के तहत एकजुट रहती हैं।

Table of Contents

संघवाद एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें राजनीतिक सत्ता को आमतौर पर दो प्रमुख इकाइयों – केंद्र और राज्यों (या प्रांतों) – के बीच बाँटा जाता है। इस तरह की सरकार को आम भाषा में “संघ” या “संघीय राज्य” कहा जाता है, जैसे – संयुक्त राज्य अमेरिका। इसमें संप्रभु शक्तियाँ केंद्र और राज्यों के बीच आपसी समझौते के आधार पर निर्धारित होती हैं।

संघवाद एक ऐसा शब्द है जो अक्सर सुनने में आता है। संघवाद क्या है? यह सरकार चलाने की कई प्रणालियों में से एक है, जिसमें प्रशासनिक शक्तियों का विभाजन होता है। हमारा देश भी संघवाद के आधार पर संचालित होता है। इस ब्लॉग में, आप जानेंगे कि संघवाद क्या है, इसे कैसे परिभाषित किया जाता है, इसकी विशेषताएं क्या हैं, और इसके कितने प्रकार होते हैं। साथ ही, सहकारी संघवाद और संघवाद में प्रतिस्पर्धा के बारे में भी जानकारी मिलेगी। संघवाद की यह प्रणाली न केवल प्रशासनिक संतुलन बनाए रखती है, बल्कि विभिन्न स्तरों पर सरकारों के बीच तालमेल भी सुनिश्चित करती है, जिससे शासन अधिक प्रभावी और संगठित होता है।

संघवाद से आप क्या समझते हैं? | Sanghvad se Aap kya Samajhte Hain?

संघवाद एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें सत्ता का बंटवारा केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच किया जाता है। इस व्यवस्था में दो या दो से अधिक स्तर की सरकारें एक ही भौगोलिक क्षेत्र में कार्य करती हैं, और प्रत्येक सरकार को अपने अधिकार क्षेत्र में कुछ विशिष्ट शक्तियाँ और जिम्मेदारियाँ प्राप्त होती हैं। संघवाद एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें सत्ता दो स्तरों पर बाँटी जाती है-

  1. केंद्र सरकार
  2. राज्य सरकारें

भारत में संघवाद का मतलब है कि देश को कई राज्यों में बाँटा गया है, और हर राज्य की अपनी सरकार होती है, लेकिन सभी राज्यों के ऊपर एक केंद्रीय सरकार भी होती है। यह प्रणाली देश को एकजुट रखती है, राज्यों को स्वायत्तता देती है और सभी स्तरों की सरकारों को जनता की सेवा करने का अवसर देती है।

भारत में राजकोषीय या वित्तीय संसाधनों का बंटवारा संघवाद को प्रभावित करता है। इसके अतिरिक्त, भारत में शासन प्रणाली को “एकात्मक पूर्वाग्रह वाला संघ” माना जाता है, जिसमें केंद्र सरकार को राज्यों की तुलना में अधिक अधिकार प्राप्त हैं। इसी कारण भारत को अर्ध-संघीय राज्य भी कहा जाता है। भारत का संघीय ढांचा क्षेत्रीय स्वायत्तता को मान्यता देता है, लेकिन आपातकालीन प्रावधान इस संघवाद की स्वायत्तता को सीमित भी कर सकते हैं।

हालाँकि, भारत में संघवाद का गठन राज्यों के बीच किसी समझौते के परिणामस्वरूप नहीं हुआ। भारतीय संविधान किसी भी राज्य को संघ से अलग होने का अधिकार नहीं देता है। चुनाव प्रक्रिया भारत में संघीय ढांचे को मजबूती देती है। संविधान का अनुच्छेद 1(1) भारत को “राज्यों का संघ” कहता है, जिसका अर्थ है कि भारत विभिन्न राज्यों से मिलकर बना है, जो उसके अभिन्न भाग हैं।

संघवाद की परिभाषा | Sanghvad ki Paribhasha

संघवाद क्या है? समझने के लिए प्रचलित और आसान संघवाद की परिभाषा को जानना महत्वपूर्ण है। संघवाद शासन की एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें प्रशासनिक शक्तियों को देश की राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच में संवैधानिक तरीके से बाँट दिया जाता है। संघवाद सरकार चलाने का वह अनुबंध भी है जो राज्य और केंद्र सरकार को क्षेत्रों के नियंत्रण अधिकार देता है तथा दोनों के मध्य तालमेल बनाए रखता है। संघवाद की परिभाषा के अनुसार संघवाद में कम से कम दो स्तरीय सरकार होती है जिसका विभाजन एक बड़ी इकाई तथा कई छोटी छोटी इकाइयों में होता है।

संघवाद किसे कहते हैं? | Sanghvad kise kahate Hain

संघवाद एक ऐसी प्रणाली है जिसमें देश की सरकार दो या दो से अधिक स्तरों में बंटी होती है — जैसे केंद्र और राज्य — और दोनों के पास कुछ स्वतंत्र शक्तियाँ होती हैं।

  1. द्वैध शासन प्रणाली (Dual Government): केंद्र और राज्य दोनों सरकारें होती हैं।
  2. संविधान का सर्वोच्चता (Supremacy of Constitution): सभी सरकारें संविधान के अधीन कार्य करती हैं।
  3. शक्तियों का वितरण (Division of Powers): केंद्र और राज्य के बीच विषयों का विभाजन (जैसे भारत में — संघ सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची)।
  4. संवैधानिक स्वायत्तता (Constitutional Autonomy): दोनों स्तर की सरकारें कुछ मामलों में स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकती हैं।
  5. संघीय न्यायपालिका (Federal Judiciary): संविधान और शक्तियों की व्याख्या करने के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका होती है।

संघवाद के प्रकार | Sanghvad ke Prakar

संघवाद के प्रकार
संघवाद के प्रकार | what is federalism?

संघवाद में क्षेत्र, संस्कृति, भाषा, उपनेश के आधार पर संघवाद के प्रकार कई तरह के हो सकते है। संघवाद के प्रकार तीन है:

  1. असममित संघ 
  2. कमिंग टूगेदर फ़ेडरेशन
  3. होल्डिंग टूगेदर फ़ेडरेशन

असममित संघ

संघवाद में दो स्तर की सरकार होती है और दूसरे स्तर पर राज्य या प्रांत होते है। इन सभी राज्यों का संवैधानिक स्तर एक ही होता है लेकिन इन राज्यों के पास एक दूसरे से भिन्न अधिकार होते है, असममित संघ राज्यों में इसी असमान शक्तियों और अधिकारों के बंटवारे पर चलने वाला संघ है, संघवाद के प्रकार असममित संघ में निम्न गुण पाए जाते है।

  • एक या एक से ज़्यादा राज्यों के पास दूसरे राज्यों की तुलना में अधिक स्वतंत्रता होती है। 
  • राज्य का निर्माण भाषा, संस्कृति और परम्परा के आधार पर होता है इसीलिए अलग अलग राज्य अपनी भाषा, संस्कृति, परम्परा तथा जाती के अनुसार राज्य के प्रावधानों में बदलाव कर सकतें है ।
  • असममित संघ विविधता में एकता कायम करने के लिए एक अच्छी व्यवस्था है।

कमिंग टूगेदर फ़ेडरेशन

जब कुछ स्वतंत्र इकाइयाँ, जैसे प्रांत, राज्य या उपनिवेश, एक साथ आकर एक बड़ा संघ बनाती हैं, तो इसे “कमिंग टुगेदर फेडरेशन” (एक साथ आने वाला संघ) कहते हैं। इस प्रकार के संघ में विशेष प्रशासनिक शक्तियाँ राज्यों के पास रहती हैं, और कोई नया नियम या बदलाव तभी लागू होता है जब सभी संघ सदस्य राज्यों की सहमति मिलती है। संयुक्त राज्य अमेरिका इसका एक प्रमुख उदाहरण है। कमिंग टुगेदर फेडरेशन संघवाद के प्रमुख प्रकारों में से एक माना जाता है।

होल्डिंग टूगेदर फ़ेडरेशन

जब एक बड़ा देश अपनी नीतियों को हर क्षेत्र में समान रूप से लागू करना चाहता है और विभिन्न परंपराओं और विविधताओं के बीच तालमेल बैठाना चाहता है, तो वह अपने क्षेत्र को अलग-अलग इकाइयों में बांटकर शक्तियों को विकेंद्रीकृत कर देता है। इस प्रकार के संघ को “होल्डिंग टुगेदर फेडरेशन” (एक साथ रहने वाला संघ) कहते हैं। इस संघ में केंद्रीय सरकार के पास विशेष शक्तियाँ होती हैं, जबकि राज्यों को भी कुछ अधिकार मिलते हैं। भारत इसका एक प्रमुख उदाहरण है। होल्डिंग टुगेदर फेडरेशन संघवाद के महत्वपूर्ण प्रकारों में से एक है।

भारतीय संघवाद की विशेषताएं | Features of Federalism

संघवाद की विशेषताएं
संघवाद की विशेषताएं | sanghvad kya hai

दोहरी सरकार की राजनीति 

  1. केंद्र और राज्य की सरकार के पास अलग होने से दोनों के पास सीमित अधिकार का होना एक सामंजस्य स्थापित करता है।
  2. प्रशासनिक नीतियों पर स्वच्छ तथा पारदर्शिता बनी रहती है। 
  3. केंद्र सरकार का राज्य सरकार पर पूर्ण नियंत्रण नहीं होता, राज्य सरकार कई क्षेत्रों में बिना दबाव के फैसला ले सकती है। यह दोहरी सरकार की राजनीति में महत्वपूर्ण संघवाद की विशेषताएं है।

विभिन्न स्तरों के बीच शक्तियों का विभाजन 

शक्तियों का विकेंद्रीकरण संघवाद की विशेषताएं  में से सबसे ज्यादा प्रचलित विशेषता है

  1. शक्तियों का विकेंद्रीकरण मुख्यतः संघीय सूची, राज्य सूची तथा समवर्ती सूची के मुताबिक किया जाता है ।
  2. राज्य से संबंध रखने वाले विषयों पर राज्य का एकाधिकार होता है और राज्य स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति  रखता है।
  3. राष्ट्रीय हितों के विषय में संविधान द्वारा निर्धारित क्षेत्रों में केंद्रीय सरकार फैसले लेती है ।
  4. जो विषय और क्षेत्र केंद्र और राज्य दोनों के लिए महत्वपूर्ण है वहाँ आपसी सहमति से फैसले लिए जाते है। राज्य द्वारा सहमत ना होने पर संविधान के पूर्व केंद्रीय कानून मान्य होते है।

संविधान की कठोरता

  1. संविधान के अनुसार ही केंद्र और राज्य को शक्तियां मिलती है, स्वतंत्र होकर भी केंद्र और राज्य संविधान के अनुसार ही फैसले ले सकते है
  2. केंद्र और राज्य अपनी शक्तियों का दुरुपयोग ना करे यह संविधान में पहले से ही निश्चित किया जाता है।
  3. संविधान के द्वारा राज्य दिए गए अधिकारों में  केंद्र अपने फायदे के लिए फेरबदल नहीं कर सकता।
  4. संविधान में बदलाव के लिए दोनों स्तर की सरकारों का योगदान होता है

स्वतंत्र न्यायपालिका 

  1. देश की न्यायपालिका स्वतंत्र है तथा केंद्र और राज्य के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहती है, यह संघवाद की विशेषता है ।
  2. न्यायपालिका सीधे तौर पर संविधान के मुताबिक बनाए गए  कानून पर चलती है, जब राज्य या केंद्र द्वारा पारित कानून संविधान के प्रावधान का उल्लंघन करता है तब सर्वोच्च न्यायालय उसे स्थगित कर सकता है।
  3. केंद्र और राज्य के बीच जब शक्तियों और अधिकारों को लेकर विवाद उत्पन्न होता है तब सर्वोच्च न्यायालय निर्णय करता है।

लिखित संविधान:

संघवाद में एक ऐसा लिखित संविधान होता है जो विभिन्न सरकारों की शक्तियों और कर्तव्यों को स्पष्ट रूप से निर्धारित करता है। इस तरह, संघवाद में लिखित संविधान एक स्थिर और संतुलित शासन व्यवस्था की नींव होता है।

द्विसदनीय विधायिका:

  1. संघवाद में द्विसदन का होना संघवाद की विशेषता है, राज्यसभा प्रांतों का प्रतिनिधित्व करता है तथा लोकसभा केंद्र का।
  2. दोनों सदनों की सहभागिता विधायी प्रक्रिया को अधिक लोकतांत्रिक बनाती है।
  3. द्विसदन प्रणाली संघीय सरकारों के कामों पर निगरानी रखने का काम करती है।
  4. संघवाद में द्विसदन प्रणाली विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों की विविधता और उनकी विशेष आवश्यकताओं को प्रतिनिधित्व देती है।
  5. द्विसदन दोनो स्तर पर शक्तियों का संतुलन बनाए रखती है।

भारत में सहकारी और प्रतिस्पर्धा संघवाद

सहकारी संघवाद 

संघवाद की परिभाषा के अनुसार भारत में  सहकारी संघवाद एक महत्वपूर्ण प्रणाली है जो देश के संघीय ढांचे को मजबूत बनाती है।  सहकारी संघवाद प्रणाली केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच तालमेल और सहयोग बढ़ाने पर जोर देती है। भारतीय संविधान में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन स्पष्ट रूप से किया गया है, लेकिन सहकारी संघवाद के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि दोनों स्तर की सरकारें मिलकर राष्ट्र के विकास के लिए कार्य करें। सहकारी संघवाद से राष्ट्र की अखंडता और एकता को बनाए रखते हुए समावेशी और संतुलित विकास किया जाता है।

प्रतिस्पर्धा संघवाद

यह संघवाद की एक ऐसी अवधारणा है, जिसमें राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित किया जाता है ताकि वे विकास और सुशासन के क्षेत्र में अधिकतम प्रदर्शन कर सकें। यह अवधारणा सहकारी संघवाद के साथ-साथ कार्य करती है और देश के समग्र विकास में योगदान करती है। केंद्रीय योजनाओं के तहत धन का निवेश हासिल करने के लिए राज्य सरकारें कई तरह की सुविधाएं देकर आपस में प्रतिस्पर्धा करती है जिससे विकास की गति को बढ़ावा मिलता है।

भारतीय संघवाद की विशेषताएं | Sanghvad ki Visheshtaen

क्रम संख्याविशेषताविवरण
1दो या अधिक स्तर की सरकारेंसंघवाद में केंद्र और राज्य दोनों स्तरों की सरकारें होती हैं, जो अपने-अपने क्षेत्रों में शासन करती हैं।
2शक्तियों का स्पष्ट विभाजनसंविधान में केंद्र और राज्यों के बीच अधिकारों और कर्तव्यों का स्पष्ट विभाजन किया गया है।
3लिखित संविधानसंघीय व्यवस्था एक लिखित संविधान पर आधारित होती है, जो दोनों स्तर की सरकारों की शक्तियाँ और सीमाएँ तय करता है।
4स्वतंत्र न्यायपालिकाएक स्वतंत्र न्यायपालिका संविधान की व्याख्या करती है और केंद्र एवं राज्यों के बीच विवादों का समाधान करती है।
5दोहरी नागरिकताकुछ संघीय देशों में नागरिकों को केंद्र और राज्य दोनों की नागरिकता प्राप्त होती है। (भारत में नहीं है)।
6संविधान संशोधन की प्रक्रियासंविधान में बदलाव की एक विशेष प्रक्रिया होती है, जिसमें केंद्र और राज्य दोनों की सहमति आवश्यक होती है।
7सहकारी संघवादकेंद्र और राज्य सरकारें कई योजनाओं और नीतियों में मिलकर काम करती हैं, जिसे सहकारी संघवाद कहा जाता है।

संघीकरण और क्षेत्रीयकरण

  • संघीकरण की प्रक्रिया:
    • भारतीय संविधान संघीकरण और क्षेत्रीयकरण को मान्यता देता है।
    • संघीकरण राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए एकात्मक विशेषताओं (जैसे केंद्रीकृत संघवाद) को अपनाने की अनुमति देता है।
    • सर्वोच्च न्यायालय की समीक्षा के अधीन रहता है।
  • क्षेत्रीयकरण की मान्यता:
    • संविधान क्षेत्रीयता और क्षेत्रीयकरण को मान्यता देता है।
    • राष्ट्र निर्माण और राज्य गठन के मान्य सिद्धांतों के रूप में स्वीकार करता है।

बहुस्तरीय संघ की स्थापना

  • संविधान द्वारा मान्यता:
    • भारतीय संविधान बहुस्तरीय संघ की स्थापना को मान्यता देता है।
    • इसमें संघ, राज्य, क्षेत्रीय विकास/स्वायत्त परिषद और स्थानीय स्वशासन (पंचायतें और नगर पालिकाएँ) शामिल हैं।
  • स्वतंत्र कार्य:
    • प्रत्येक इकाई अपने संवैधानिक कर्तव्यों को स्वतंत्र रूप से निभाती है।
    • उदाहरण के लिए, केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण सातवीं अनुसूची में निर्दिष्ट है।
    • आदिवासी क्षेत्रों, स्वायत्त जिला परिषदों, पंचायतों और नगर पालिकाओं के अधिकार पांचवीं, छठी, ग्यारहवीं और बारहवीं अनुसूचियों में वर्णित हैं।

वित्तीय और राजनीतिक नियंत्रण

  • केंद्र का नियंत्रण:
    • केंद्र सरकार के पास राज्यों पर राजकोषीय और राजनीतिक नियंत्रण होता है।
    • संविधान सममित और विषम शक्ति वितरण को प्रोत्साहित करता है।
  • विशेष प्रावधान:
    • अनुच्छेद 370 और 371, और पांचवीं और छठी अनुसूचियाँ विषम राज्यों के लिए विशेष नियमों की अनुमति देती हैं।

स्थानीय स्वशासन और विकास

  • पंचायती राज संस्थाएँ (PRI):
    • ग्रामीण उद्योगों को प्रोत्साहन देना।
    • सड़क और परिवहन जैसी विकास परियोजनाओं के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण करना।
    • सामुदायिक संपत्तियों का निर्माण और रखरखाव।
  • नगर पालिकाएँ:
    • स्थानीय स्वास्थ्य और शिक्षा की व्यवस्था और नियंत्रण।
    • सामाजिक वानिकी, पशुपालन, डेयरी और मुर्गी पालन को बढ़ावा देना।

संघवाद की चुनौतियाँ 

संघवाद की चुनौतियाँ विभिन्न कारणों से उत्पन्न होती हैं जो कि संघीय ढांचे के सुचारू संचालन में बाधा डालती हैं। संघवाद क्या है? और इसकी क्या चुनौतियां हैं इसका विवरण निम्नलिखित है:

कई निकायों का अप्रभावी कार्य:

  • केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी कई बार नीतियों और योजनाओं के चलन में बाधा डालती है।
  •  संघीय ढांचे में कई निकायों के होने से नीतिगत निर्णय लेने में जटिलता बढ़ती है, जिससे निर्णयों का प्रभावी कार्यान्वयन कठिन हो जाता है।
  • कई बार संस्थानों में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी भी कार्यों के अप्रभावी होने का एक कारण होती है, संपूर्ण पारदर्शिता लाना भी संघवाद की चुनौती है  ।

कर व्यवस्था की समस्याएँ:

  • वस्तु एवं सेवा कर (GST) प्रणाली में राज्यों और केंद्र के बीच राजस्व बंटवारे को लेकर कई विवाद होते हैं।
  • विभिन्न राज्यों में कर संग्रहण में असमानता पाई जाती है, जिससे राज्यों की आर्थिक स्थिति में फर्क पड़ता है।
  • राज्यों को अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए केंद्र पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे उनकी आर्थिक स्वायत्तता प्रभावित होती है, वित्तीय स्वतंत्रता लाना संघवाद की चुनौती है ।

राज्य सूची के मामले में राज्यों की स्वायत्तता का अतिक्रमण:

  • कई मामलों में केंद्र सरकार द्वारा राज्य सूची के विषयों पर भी नीतिगत हस्तक्षेप किया जाता है, जिससे राज्यों की स्वायत्तता प्रभावित होती है।
  • संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद केंद्र के बढ़ते हस्तक्षेप से राज्यों के अधिकारों का हनन होता है।
  • कई बार राज्यों और केंद्र के बीच राजनीतिक विवाद भी इस समस्या को बढ़ाते हैं, केंद्र और राज्य के बीच क्षेत्राधिकार की सीमा तय करना संघवाद की चुनौती है ।

कोविड-19 का प्रभाव:

  • कोविड-19 महामारी के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और समन्वय की कमी स्पष्ट रूप से देखी गई।
  • कोविड-19 महामारी के दौरान केंद्र राज्यों के बीच उपकरणों तथा ऑक्सिजन की आपूर्ति करने में नाकाम रहा तथा सुविधाएँ वहाँ नहीं पहुँच पाई जहाँ उनकी आवश्यकता ज़्यादा थी।
  • महामारी के कारण उत्पन्न आर्थिक संकट ने राज्यों और केंद्र दोनों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित किया।
  • महामारी ने विभिन्न राज्यों में स्वास्थ्य सुविधाओं और आर्थिक सहायता के वितरण में असमानता को उजागर किया, अब जिससे संघवाद की चुनौती और बढ़ गई है।

कौन-सी संस्थाएँ संघवाद को बढ़ावा दे रहीं है?

संघवाद क्या है? यह जानने के लिए भारत में संघवाद को बढ़ावा देने वाली प्रमुख संस्थाओं के बारे में जान लेते हैं:

सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India):

  • संवैधानिक व्याख्या: सर्वोच्च न्यायालय संघवाद से जुड़े संवैधानिक विवादों की व्याख्या करता है और संघीय ढांचे की रक्षा करता है।
  • राज्यों और केंद्र के बीच विवाद समाधान: यह न्यायालय राज्यों और केंद्र के बीच उत्पन्न विवादों का समाधान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे संघीय ढांचे की मजबूती सुनिश्चित होती है।
  • संविधान की सर्वोच्चता: सर्वोच्च न्यायालय संवैधानिक प्रावधानों का पालन सुनिश्चित कर संघवाद को बनाए रखता है तथा संघवाद को बढ़ावा देता है ।

अंतर्राज्यीय परिषद :

  • संवाद और समन्वय: यह परिषद केंद्र और राज्यों के बीच संवाद और समन्वय को बढ़ावा देती है, जिससे संघीय ढांचे के तहत सहयोग सुनिश्चित होता है।
  • विवाद समाधान: अंतर्राज्यीय विवादों और नीतिगत मुद्दों पर विचार-विमर्श कर उन्हें सुलझाने में सहायक होती है जिससे संघवाद को बढ़ावा मिलता है।
  • नीतिगत सुधार: संघीय नीतियों में सुधार और राज्यों की समस्याओं के समाधान के लिए यह महत्वपूर्ण मंच है।

 वित्त आयोग :

  • राजस्व का बंटवारा: वित्त आयोग केंद्र और राज्यों के बीच कर राजस्व के बंटवारे का निर्धारण करता है, जिससे वित्तीय संघवाद को मजबूती मिलती है।
  • वित्तीय अनुशासन: यह आयोग राज्यों के वित्तीय अनुशासन और समन्वित आर्थिक नीतियों को प्रोत्साहित करता है।
  • राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता: राज्यों को उनके वित्तीय आवश्यकताओं के अनुसार अनुदान और संसाधन प्रदान करने की सिफारिश करता है।

नीति आयोग :

  • राष्ट्रीय विकास की योजना: नीति आयोग केंद्र और राज्यों के बीच समन्वित विकास योजनाएँ बनाता है और उन्हें लागू करता है।
  • राज्यों की भागीदारी: नीति आयोग राज्यों की भागीदारी से विकास कार्यों की प्राथमिकताएँ तय करता है, जिससे संघीय संरचना को मजबूती मिलती है।
  • सहयोगात्मक संघवाद: यह आयोग सहकारी संघवाद को बढ़ावा देता है और राज्यों को विकास योजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करता है।

संघवाद के लाभ

क्षेत्रीय स्वायत्तता (Regional Autonomy)

संघवाद राज्यों को स्थानीय जरूरतों के अनुसार नीतियाँ बनाने की आज़ादी देता है। इससे हर क्षेत्र की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विशेषताओं के अनुसार निर्णय लिए जा सकते हैं।

सत्ता का विकेंद्रीकरण (Decentralization of Power)

संघवाद के तहत शक्ति एक ही स्थान पर केंद्रित न होकर विभिन्न स्तरों पर वितरित होती है। इससे सत्ता के दुरुपयोग की संभावना कम होती है और शासन अधिक जवाबदेह बनता है।

विविधता का संरक्षण (Preservation of Diversity)

भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में संघवाद भाषाई, सांस्कृतिक और धार्मिक विविधताओं को सम्मान देता है और उन्हें संविधान के दायरे में संरक्षित करता है।

राजनीतिक स्थिरता (Political Stability)

जब सभी क्षेत्रों को अपनी बात कहने और निर्णय लेने का अवसर मिलता है, तो असंतोष कम होता है और देश में राजनीतिक स्थिरता बनी रहती है।

प्रतिक्रियाशील सरकार (Responsive Governance)

स्थानीय सरकारें लोगों की जरूरतों और समस्याओं को बेहतर तरीके से समझती हैं। इससे निर्णय प्रक्रिया तेज़ होती है और सरकार लोगों के प्रति अधिक संवेदनशील बनती है।

संघवाद का भविष्य

संघवाद के पास भविष्य में टिकाऊ बने रहने की क्षमता है, क्योंकि यह अन्य प्रणालियों की तुलना में बेहतर है और राष्ट्रहित के अनुसार परिवर्तन की गुंजाइश रखता है।

  • राजनीतिक स्थिरता: संघीय व्यवस्था में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सरकारों के बीच संतुलन और सहयोग आवश्यक है।
  • अर्थव्यवस्था: आर्थिक विकास और वित्तीय संसाधनों का उचित वितरण संघवाद के सफल संचालन में महत्वपूर्ण है।
  • सामाजिक एकता: विभिन्न समुदायों के बीच समरसता और एकता संघवाद की स्थिरता को बनाए रखने में सहायक हैं।

संभावित परिवर्तन

  • विकेंद्रीकरण: राज्यों और स्थानीय सरकारों को अधिक स्वायत्तता और अधिकार प्रदान करना।
  • आर्थिक नीतियाँ: संघीय और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय संसाधनों का पुनर्वितरण।
  • संवैधानिक सुधार: संविधान में बदलाव कर संघीय व्यवस्था को अधिक लचीला और समावेशी बनाना।
  • तकनीकी परिवर्तन: प्रौद्योगिकी और डिजिटल गवर्नेंस के माध्यम से प्रशासन में सुधार।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: पिछड़े क्षेत्रों और वर्ग समूहों पर विशेष ध्यान देना और असमानताओं को दूर करना।

संघवाद के विकास के रुझान

  • सहकारी संघवाद: राष्ट्रीय और राज्य सरकारों के बीच बढ़ते सहयोग की प्रवृत्ति।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव: वैश्वीकरण और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का संघीय संरचना पर प्रभाव।
  • प्रादेशिक पहचान: क्षेत्रीय और सांस्कृतिक पहचान का महत्व, जो संघवाद को प्रभावित कर सकता है।
  • नागरिक सहभागिता: संघीय शासन में नागरिकों की भागीदारी और उनकी आवाज़ को महत्व देना।

संघवाद का ऐतिहासिक विकास (भारत में)

भारत में संघवाद का विचार स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ही जन्म ले चुका था:

  • 1935 का भारत सरकार अधिनियम: यही अधिनियम भारत में संघीय शासन की नींव बनाता है। इसमें केंद्र और प्रांतों के बीच शक्तियों का वितरण स्पष्ट किया गया था।
  • संविधान सभा की बहसें: संविधान सभा में संघ बनाम एकात्मक ढांचे को लेकर काफी बहसें हुईं। अंततः डॉ. भीमराव अंबेडकर ने “केंद्र की मज़बूती के साथ संघीय ढांचे” की संकल्पना को रखा।
  • 1950 का संविधान: भारत को एक “केंद्र-प्रधान संघीय राज्य” घोषित किया गया जहाँ राज्यों को सीमित स्वायत्तता दी गई।

निष्कर्ष 

संघवाद क्या है, यह समझने से हमें यह स्पष्ट होता है कि यह एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का बंटवारा होता है। संघवाद के प्रकार मुख्य रूप से संघीय और संघात्मक होते हैं, जो अलग-अलग देशों की शासन प्रणाली पर निर्भर करते हैं। भारत में संघवाद की विशेषताएं इसकी संविधान में निर्धारित की गई हैं, जहां केंद्र और राज्य दोनों के अधिकार और जिम्मेदारियां स्पष्ट रूप से परिभाषित हैं। यह प्रणाली विभिन्न स्तरों पर शासन की दक्षता और समन्वय बनाए रखने में मदद करती है, जिससे एक स्थिर और समृद्ध राष्ट्र की नींव तैयार होती है। संघवाद लोकतंत्र के सिद्धांतों को मजबूती प्रदान करता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

संघवाद का क्या अर्थ है?

संघवाद दो सरकारों का संयोजन है, जिसमें राज्य सरकार और केंद्र सरकार शामिल होती हैं। भारत में, संघवाद को स्थानीय, राज्य और राष्ट्रीय सरकारों के बीच सत्ता के वितरण के रूप में समझा जा सकता है।

संघवाद क्या है कक्षा 8?

संघवाद एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें सत्ता केंद्रीय प्राधिकरण और देश की विभिन्न घटक इकाइयों के बीच विभाजित होती है। एक संघ में कम से कम दो स्तर की सरकारें होती हैं, और ये सभी स्तर कुछ हद तक स्वतंत्र रूप से अपनी शक्तियों का उपयोग करते हैं।

संघवाद की पांच विशेषताएं क्या है?

संघवाद की कई महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं, जिनमें सत्ता का विभाजन, संवैधानिक सर्वोच्चता, लिखित संविधान, कठोरता, स्वतंत्र न्यायपालिका, और द्विसदनीय विधायिका शामिल हैं।

भारत की संघीय व्यवस्था क्या है?

भारतीय संविधान, जो 16 नवंबर 1949 को अस्तित्व में आया, देश के 28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों को नियंत्रित करता है। भारतीय संघीय प्रणाली के तहत, राष्ट्रपति कार्यकारी संघ का प्रमुख होता है। वहीं, राज्य का मुखिया, जो मंत्रिपरिषद का प्रमुख भी होता है, वास्तविक सामाजिक और राजनीतिक शक्ति का प्रयोग करता है।

संघवाद की चार प्रमुख विशेषताएँ कौन सी हैं?

संघवाद की चार प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
शक्तियों का विभाजन: संघवाद में सत्ता का विभाजन विभिन्न सरकारों के बीच होता है, जैसे केंद्र और राज्य सरकारों के बीच, जो संविधान द्वारा निर्धारित किया जाता है।
लिखित संविधान: संघीय प्रणाली में एक लिखित संविधान होता है, जो विभिन्न सरकारों की शक्तियों और जिम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है।
दोस्तरी सरकारें: संघवाद में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की स्वतंत्रता होती है, और दोनों का संविधान में सुनिश्चित किया गया अधिकार होता है। प्रत्येक सरकार अपने-अपने क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से काम करती है।
संघीय न्यायालय: संघीय न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय उन विवादों को हल करने का काम करता है जो केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों के विभाजन को लेकर उत्पन्न होते हैं।

Bharat ka Samvidhan kisne Likha?

भारत का संविधान डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता वाली मसौदा समिति (Drafting Committee) द्वारा लिखा गया था।

Authored by, Aakriti Jain
Content Curator

Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.

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