Quick Summary
“रॉलेट एक्ट” कानून ने भारत की आज़ादी की यात्रा में अहम भूमिका निभाई। यह इतिहास के पन्नों पर एक काले कानून के रूप ने लिखा गया क्योंकि, इसी कानून ने स्वतंत्रता संग्राम में घटित सबसे दुखत घटना जलियांवाला बाग हत्याकांड को जन्म दिया। ऐसे में, आपको रॉलेट एक्ट क्या था, रॉलेट एक्ट कब पारित हुआ और रॉलेट एक्ट कब लागू हुआ के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए।
इस ब्लॉग में आपको रॉलेट एक्ट क्या था, रॉलेट एक्ट कब पारित हुआ, रॉलेट एक्ट कब लागू हुआ, इसका उद्देश, इसके प्रभाव, जलियांवाला बाग हत्याकांड 1919 और जानने योग्य “रॉलेट एक्ट पर टिप्पणी लिखिए” के बारे में जानकारी मिलेगी।
रॉलेट एक्ट, 1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में लागू किया गया एक कानून था। रॉलेट एक्ट का सरकारी नाम अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, 1919 (The Anarchical and Revolutionary Crime Act of 1919) था। इसे सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली एक समिति द्वारा तैयार किया गया था, इसलिए इसे रॉलेट एक्ट कहा गया। इस कानून के तहत, ब्रिटिश सरकार को किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमे के जेल में रखने की शक्ति मिल गई थी। यह कानून इतना क्रूर था कि इसे ‘काले कानून’ के नाम से भी जाना जाता है।
| विवरण | जानकारी |
| नाम | काला कानून, रौलेट एक्ट |
| लागू होने का समय | 18 मार्च, 1919 |
| क्यों लाया गया था? | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को दबाने के लिए |
| मुख्य उद्देश्य | भारतीय राष्ट्रवादियों को बिना किसी मुकदमे के गिरफ्तार करना और जेल में रखना |
| विशेषताएं | बिना किसी मुकदमे के गिरफ्तारी अनिश्चितकाल तक जेल में रखना न्यायिक समीक्षा का अभाव गिरफ्तारी के कारणों को गोपनीय रखना |
| भारत का वायसराय उस समय | लॉर्ड चेम्सफोर्ड |
| भारतीयों की प्रतिक्रिया | विरोध प्रदर्शन, हड़ताल, सविनय अवज्ञा आंदोलन |
| महत्वपूर्ण घटनाएं | जलियांवाला बाग हत्याकांड |
| परिणाम | भारतीय राष्ट्रवाद में वृद्धि, ब्रिटिश शासन के खिलाफ गुस्सा बढ़ा |
रौलेट आयोग की स्थापना 1917 में ब्रिटिश सरकार ने भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों की जांच करने के लिए की थी। इस आयोग की अध्यक्षता न्यायमूर्ति सिडनी रॉलेट ने की और इसका उद्देश्य राजनीतिक अशांति को रोकने के लिए आपातकालीन शक्तियों का विस्तार करना था। आयोग की सिफारिशों के आधार पर 1919 में रॉलेट अधिनियम लागू किया गया, जिसने बिना मुकदमे के हिरासत में रखने की अनुमति दी और इसके परिणामस्वरूप पूरे भारत में व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।
रौलेट आयोग की नियुक्ति 1918 में ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई थी। आयोग के अन्य सदस्य थे जेडीवी हॉज, बेसिल स्कॉट, वर्नी लवेट, पीसी मित्तल और सीवी कुमारस्वामी शास्त्री। इसका मुख्य उद्देश्य भारत में बढ़ते क्रांतिकारी आंदोलनों और नजरबंदी नीति की जांच करना था। आयोग ने इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल को सिफारिश की कि क्रांतिकारियों को बिना मुकदमा चलाए दो साल तक निर्वासित किया जाए या कारावास में रखा जाए।
ब्रिटिश सरकार आतंकवाद और क्रांतिकारी गतिविधियों के खतरे से चिंतित थी और इस कानून को इन खतरों को रोकने के उपाय के रूप में लागू किया गया। इस अधिनियम को भारतीय जनता ने व्यापक रूप से आलोचना का लक्ष्य बनाया।
रॉलेट एक्ट के ऐतिहासिक संदर्भ में कुछ बातों का जानना बेहद जरूरी है, जिसमें Rowlatt Act kab Parit Hua Tha और रॉलेट एक्ट कब लागू हुआ सामिल हैं।
“रॉलेट एक्ट कब पारित हुआ” ये अक्सर पूछे जाने वाला सवाल है। न्यायमूर्ति रौलट की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट पर, 6 फरवरी 1919 को केंद्रीय विधानमंडल में दो बिल पेश किए गए और इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल द्वारा रॉलेट एक्ट को पारित किया गया। इन बिलों को “ब्लैक बिल” के रूप में भी जाना जाता है।
“रॉलेट एक्ट कब लागू हुआ” यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी कानून ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नया मोड़ लाया। रॉलेट एक्ट जो एक विधान परिषद अधिनियम था 18 मार्च 1919 को इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल द्वारा लागू किया गया था। इस कानून के मुख्य उद्देश में से एक भारत में बढ़ते स्वतंत्रता संग्राम को दबाना था।
रॉलेट एक्ट लाने के पीछे ब्रिटिश सरकार के कुछ नकारात्मक उद्देश थें। जो कुछ इस प्रकार हैं:
रॉलेट एक्ट को लेकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अहम भूमिका रही। इस कानून को लेकर जनता में असंतोष था और इसने अंग्रेजी शासन के खिलाफ बढ़ते आंदोलन को और बढ़ावा दिया।
रौलेट एक्ट के लागू होने के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इसका कड़ा विरोध किया। कांग्रेस ने इसे भारतीयों के मौलिक अधिकारों का हनन माना और इसे रद्द करने की मांग की। महात्मा गांधी ने कांग्रेस के साथ मिलकर इसके खिलाफ व्यापक स्तर पर आंदोलन और विरोध प्रदर्शन आयोजित किए।
कांग्रेस ने देशभर में असहयोग आंदोलन और हड़तालों का आह्वान किया, जिससे जनता ने बड़े पैमाने पर ब्रिटिश उत्पादों का बहिष्कार किया और सरकारी संस्थानों से दूरी बनाई। कांग्रेस की भूमिका इस एक्ट के खिलाफ जनजागृति फैलाने और ब्रिटिश शासन के खिलाफ मजबूत आवाज उठाने में महत्वपूर्ण रही।
रॉलेट एक्ट, जिसे आम जनता ने “काला कानून” की संज्ञा दी, ब्रिटिश सरकार द्वारा 19 मार्च 1919 को लागू किया गया था। इस कानून का उद्देश्य भारत में तेजी से उभरते राष्ट्रीय आंदोलन को दबाना था। यह कानून सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली सेडिशन समिति की सिफारिशों पर आधारित था और इसका आधिकारिक नाम था – “अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, 1919” (The Anarchical and Revolutionary Crimes Act of 1919)।
रौलेट एक्ट को लेकर जनता का असंतोष और अंग्रेजी शासन के खिलाफ बढ़ता आंदोलन बहुत ही महत्वपूर्ण था। जब रॉलेट एक्ट लागू हुआ, तो भारतीय जनता में भारी आक्रोश और असंतोष फैल गया। लोग इस कानून को अपने मौलिक अधिकारों पर हमला मानते थे।
महात्मा गांधी ने इस एक्ट के खिलाफ व्यापक स्तर पर विरोध और सत्याग्रह का आयोजन किया। जनता ने हड़तालें कीं, रैलियाँ निकालीं, और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ खुलकर अपनी नाराजगी जताई। इस विरोध ने पूरे देश में एकजुटता का माहौल पैदा किया और स्वतंत्रता संग्राम को एक नया मोड़ दिया।
जलियाँवाला बाग हत्याकांड, जो इसी आंदोलन के दौरान हुआ, ने जनता के गुस्से को और भड़का दिया। इस घटना ने ब्रिटिश शासन की क्रूरता को सबके सामने ला दिया और स्वतंत्रता की मांग को और मजबूती से उठाया। रौलेट एक्ट के कारण जनता और भी अधिक संगठित होकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ खड़ी हो गई।
जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत के इतिहास का एक ऐसा काला अध्याय है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिटिश सेना ने निहत्थे लोगों पर गोलियां चला दी थीं। उस दिन जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा चल रही थी साथ ही बैसाखी का पर्व होने के कारण भीड़ अधिक थी। लोग रौलेट एक्ट और 10 अप्रैल को कांग्रेस के दो नेताओं, डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू के गिरफ्तारी के विरोध में इकट्ठा हुए थें।
ब्रिटिश जनरल डायर ने इस सभा को अवैध घोषित कर दिया और बिना किसी चेतावनी के अपने सैनिकों को भीड़ पर गोलियाँ चलाने का आदेश दिया। ब्रिटिश सेना ने बाग को चारों तरफ से घेर लिया और एक संकरी गली से ही बाग में प्रवेश का रास्ता छोड़ रखा था। फिर अचानक से उन्होंने भीड़ पर गोलियां चला दीं। इस बर्बर गोलीबारी में 379 से अधिक लोग मारे गए और 1200 लोग घायल हुए।
इस हत्याकांड ने भारतीय जनता को गहरे सदमे में डाल दिया और ब्रिटिश शासन की क्रूरता को उजागर कर दिया। यह घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ बनी, जिसने जनता के मन में ब्रिटिश शासन के प्रति और भी अधिक आक्रोश और स्वतंत्रता की भावना को भड़का दिया।
रौलेट एक्ट के खिलाफ जलियांवाला बाग हत्याकांड प्रतिक्रिया ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया मोड़ दिया और जनता को ब्रिटिश शासन के खिलाफ और भी अधिक संगठित और एकजुट कर दिया।
रौलेट एक्ट के विरुद्ध लोगों ने कई तरह की प्रतिक्रियाएं दीं जिनमें शामिल हैं:
रौलेट एक्ट के बारे में जानने योग्य बातें संक्षेप में रॉलेट एक्ट पर टिप्पणी लिखिए के माध्यम से जाना जा सकता है। रॉलेट एक्ट भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय है। यह कानून भारतीयों के मौलिक अधिकारों का हनन था और इसने भारतीयों में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ गुस्सा पैदा किया। इस कानून के कारण इतिहास के पन्नों पर जलियांवाला बाग हत्याकांड 1919 जैसी दर्दनाक घटना दर्ज हुई। जिसमें सैकड़ों लोगों को ब्रिटिश सरकार द्वारा गोलियों से झल्ली कर दिया गया था।
रौलेट एक्ट ब्रिटिश साम्राज्यवाद का एक कड़वा उदाहरण था। इस कानून ने दिखाया कि कैसे एक शक्तिशाली सरकार अपने नागरिकों के अधिकारों का हनन कर सकती है। यह कानून भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ और इसने भारतीयों को एकजुट होकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित भी किया।
रॉलेट एक्ट के विरोध में पूरे देश में तीव्र आंदोलन प्रारंभ हो गया। मदन मोहन मालवीय और मोहम्मद अली जिन्ना जैसे नेताओं ने इस कानून के विरोध में केंद्रीय व्यवस्थापिका की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। भारतीय जनता ने इस कानून को “काला कानून” कहकर इसका विरोध किया। इसके खिलाफ देशभर में हड़तालें, जूलूस और प्रदर्शन होने लगे।
महात्मा गांधी, जो उस समय भारतीय राजनीति के प्रमुख नेता बन चुके थे, इस आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हुए। उन्होंने पहले चंपारण, खेड़ा और अहमदाबाद में सत्याग्रह का सफल प्रयोग किया था और अब रॉलेट एक्ट के विरोध में भी उसी हथियार का उपयोग करने का संकल्प लिया।
गांधीजी ने एक व्यापक हड़ताल का आह्वान किया। रॉलेट एक्ट के खिलाफ यह उनका राष्ट्रीय स्तर पर पहला बड़ा आंदोलन था। 24 फरवरी 1919 को गांधीजी ने मुंबई में एक “सत्याग्रह सभा” का आयोजन किया, जिसमें यह संकल्प लिया गया कि रॉलेट एक्ट का विरोध सत्य और अहिंसा के मार्ग पर किया जाएगा। गांधीजी के इस सत्य और अहिंसा के मार्ग का विरोध कुछ सुधारवादी नेताओं द्वारा किया गया, जिनमें सर डॉ. इ.वी. रादी, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, तेज बहादुर सप्रु, और श्री निवास शास्त्री जैसे नेता शामिल थे। हालांकि, गांधीजी को होमरूल लीग के सदस्यों से बड़े पैमाने पर समर्थन मिला।
हड़ताल के दौरान दिल्ली और अन्य कुछ स्थानों पर हिंसा भड़क उठी। इसके बाद गांधीजी ने सत्याग्रह को वापस ले लिया और कहा कि भारत के लोग अभी भी अहिंसा के सिद्धांत पर दृढ़ रहने के लिए तैयार नहीं हैं।
स्थान: अमृतसर, पंजाब
तारीख: 13 अप्रैल 1919
घटनास्थल: जलियांवाला बाग
परिचय: जलियांवाला बाग हत्याकांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक अत्यंत काले अध्याय के रूप में दर्ज है। यह घटना 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में स्थित जलियांवाला बाग में घटी। ब्रिटिश हुकूमत द्वारा यह नरसंहार भारतीय जनता को डराने और दबाने के लिए किया गया था, जो रॉलेट एक्ट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।
13 अप्रैल 1919 को, जलियांवाला बाग में हजारों लोग बैसाखी पर्व और रॉलेट एक्ट के खिलाफ विरोध जताने के लिए एकत्रित हुए थे। उस समय ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड डायर (Reginald Dyer) को अमृतसर में कानून-व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी दी गई थी। डायर ने बिना किसी चेतावनी के बाग में उपस्थित भीड़ पर गोलियां चलवा दीं।
जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नया मोड़ लाया। इस घटना ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय जनता को और अधिक एकजुट किया और अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष की आवश्यकता को स्पष्ट किया। यह घटना महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए एक केंद्रीय मुद्दा बन गई, जिसने नौकरी छोड़ने का आंदोलन, नमक सत्याग्रह, और अंग्रेजों के खिलाफ अन्य संघर्षों का मार्ग प्रशस्त किया।
रॉलेट एक्ट, जिसे भारतीय जनता द्वारा ‘काला कानून’ कहा गया, ब्रिटिश सरकार द्वारा 19 मार्च 1919 को लागू किया गया था। इसका उद्देश्य भारत में उभरते हुए राष्ट्रीय आंदोलन को दबाना और ब्रिटिश साम्राज्य की पकड़ को मजबूत करना था। यह कानून सिडनी रॉलेट के नेतृत्व वाली सेडिशन समिति की सिफारिशों के आधार पर तैयार किया गया था। इसका आधिकारिक नाम था – “अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, 1919” (The Anarchical and Revolutionary Crimes Act of 1919)।
यह कानून प्रथम विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश सत्ता को बनाए रखने के लिए बनाया गया था, जब भारत में आज़ादी की मांग तेज़ हो रही थी।
“रॉलेट एक्ट” न केवल एक दमनकारी कानून था, बल्कि यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ भी साबित हुआ। इस एक्ट ने भारतीय जनता के बीच एकता और संघर्ष की भावना को और मजबूत किया। रॉलेट एक्ट के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों और जलियांवाला बाग हत्याकांड ने ब्रिटिश शासन की क्रूरता को उजागर किया और स्वतंत्रता की लड़ाई को और तेज कर दिया। यह घटना भारतीय इतिहास में एक काला अध्याय है, लेकिन इसने स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा और ऊर्जा भी प्रदान की।
इस ब्लॉग में आपने रॉलेट एक्ट क्या था, रॉलेट एक्ट कब पारित हुआ, रॉलेट एक्ट कब लागू हुआ, इसका उद्देश, इसके प्रभाव, जलियांवाला बाग हत्याकांड 1919 और जानने योग्य “रॉलेट एक्ट पर टिप्पणी लिखिए” के बारे में जाना।
रौलट एक्ट 18 मार्च 1919 को पारित किया गया था।
रॉलेट एक्ट को “काला कानून” इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस कानून के तहत:
• किसी भी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमे के गिरफ्तार करके अनिश्चित काल के लिए जेल में रखा जा सकता था।
• गिरफ्तारी के खिलाफ कोई न्यायिक अपील नहीं की जा सकती थी।
• गिरफ्तारी के कारणों को भी नहीं बताया जाता था।
इन कठोर प्रावधानों के कारण भारतीयों ने इस कानून का विरोध किया और इसे “काला कानून” कहा।
इस एक्ट के अनुसार सरकार किसी भी व्यक्ति को बिना अभियोग चलाए अनिश्चित समय के लिए बंद कर सकती थी और उसे अपील, दलील या वकील करने का कोई अधिकार नहीं था।
गांधीजी ने इस कानून के विरोध में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया क्योंकि यह कानून बिना किसी अपराध के लोगों को सजा देता था।
रौलट एक्ट पारित होने के समय भारत का वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड(1916-21) था।
गांधीजी ने रौलट सत्याग्रह अप्रैल 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद बंद कर दिया था। जलियांवाला बाग हत्याकांड में ब्रिटिश सेना ने निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाई थीं, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए थे। इस घटना ने पूरे देश में आक्रोश फैला दिया था और गांधीजी ने महसूस किया कि सत्याग्रह का तरीका अब प्रभावी नहीं रहेगा।
रौलट एक्ट 1919 एक ऐसा कानून था जिसमें बिना मुकदमा चलाए किसी को भी जेल में डाला जा सकता था। जलियांवाला बाग हत्याकांड 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में हुआ जब जनरल डायर ने शांतिपूर्ण सभा पर गोली चलवा दी, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए।
क्योंकि यह कानून नागरिक स्वतंत्रता का हनन करता था और न्यायिक प्रक्रिया के बिना दमन की अनुमति देता था, इसलिए इसे “ब्लैक एक्ट” कहा गया।
महात्मा गांधी ने रॉलेट एक्ट के विरोध में 6 अप्रैल 1919 को रॉलेट सत्याग्रह का आह्वान किया। इस आंदोलन में भारतभर में हड़तालें, रैलियाँ और सार्वजनिक सभाएँ आयोजित की गईं। यह अहिंसात्मक विरोध ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों की एकजुटता और प्रतिरोध का प्रतीक बना
रॉलेट एक्ट ने भारतीयों में गहरी नाराजगी और असंतोष पैदा किया। इसके विरोध में महात्मा गांधी के नेतृत्व में रॉलेट सत्याग्रह ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी। इस आंदोलन ने भारतीयों को अहिंसात्मक प्रतिरोध की शक्ति का अहसास कराया और स्वतंत्रता संग्राम को व्यापक जनसमर्थन प्राप्त हुआ
Authored by, Aakriti Jain
Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.
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