Quick Summary
ऋग्वेद न केवल धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि यह दर्शन, नीतिशास्त्र और संस्कृति के ज्ञान का भी खजाना है। इसका अध्ययन हमें भारतीय दर्शन, नैतिकता, सामाजिक जीवन और इतिहास के बारे में गहन जानकारी प्रदान करता है। यह भारतीय संस्कृति और सभ्यता की समझ के लिए अनिवार्य है।
इस ब्लॉग में आपको ऋग्वेद क्या है(Rigved Kya Hai), ऋग्वेद में कितने मंत्र हैं, ऋग्वेद किसने लिखा, महर्षि वेदव्यास कौन थे, ऋग्वेद में प्रमुख देवता और उनकी स्तुतियां तथा ऋग्वेद से जुड़ी और भी अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां मिलेगी।

इसको दो मुख्य भागों में बांटा गया है:
ऋग्वेद की कई शाखाएं हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख शाखाएं निम्नलिखित हैं:
ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद है। आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान का एक प्राचीन भारतीय प्रणाली है।
दस मंडलों (पुस्तकों) और 1028 भजनों के साथ, यह वेद चार वेदों में सबसे प्राचीन माना जाता है। इसमें भजनों के माध्यम से अग्नि, इंद्र, मित्र, वरुण और अन्य देवताओं की स्तुति की गई है। इसके साथ ही, इसमें पौराणिक पुरुष सूक्त भी शामिल है, जो यह वर्णन करता है कि कैसे चार वर्ण – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र – क्रमशः निर्माता के मुख, हाथ, जांघ और पैरों से उत्पन्न हुए थे। ऋग्वेद में प्रसिद्ध गायत्री मंत्र (सावित्री) का भी उल्लेख किया गया है, जो वेदों के ज्ञान और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। यह ग्रंथ भारतीय संस्कृति और धार्मिकता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो प्राचीन काल से आज तक अध्ययन का विषय रहा है।
Rigveda में कुल 10,552 मंत्र हैं। ये मंत्र 10 मंडलों में विभाजित हैं और प्रत्येक मंडल में कई सूक्त (स्तुतियां) शामिल हैं।
| कुछ प्रमुख मंत्र और उनके रचयिता | |||
| मंत्र के नाम | मंत्र | रचैता | विवरण |
| गायत्री मंत्र | ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। | ऋषि विश्वामित्र | यह मंत्र सूर्य देवता की स्तुति करता है और ज्ञान और प्रकाश की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करता है। |
| अग्नि सूक्त | अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम्।। | ऋषि माधुचंद्र | यह मंत्र अग्नि देवता की स्तुति करता है, जो यज्ञ के मुख्य पुरोहित हैं। |
| अश्विन सूक्त | आवहन्निह वोऽश्विना रथे हिरण्यवर्तनिः।… | ऋषि कण्व | यह मंत्र अश्विनीकुमारों की स्तुति करता है, जो स्वास्थ्य और चिकित्सा के देवता हैं। |
| इंद्र सूक्त | इन्द्रं वर्धन्तो अप्तुरः कृण्वन्तो विश्वमार्यम्। अपघ्नन्तो अराव्णः। | ऋषि वसिष्ठ | यह मंत्र इंद्र देवता की स्तुति करता है, जो देवताओं के राजा और युद्ध के देवता हैं। |
जिस प्रकार हिंदी व्याकरण में अक्षरों का महत्वपूर्ण स्थान है, उसी प्रकार Rigved संहिता में छन्दों का महत्वपूर्ण स्थान है। ये छन्द मंत्रों के उच्चारण में को लय और ताल प्रदान करते हैं, जिससे उन्हें याद रखना और गान करना आसान हो जाता है। Rigveda में 20 प्रकार के छन्द होते हैं, जिनमें से कुछ मुख्य छन्द इस प्रकार हैं:
| छन्द | अक्षर | गण |
| गायत्री | 24 | 8 |
| उष्णिह | 28 | 8 |
| अनुष्टुप | 32 | 8 |
| बृहती | 36 | 8 |
| त्रिष्टुप | 44 | 12 |
छन्दों की विशेषताएं:
छन्दों का महत्व:
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Rigveda में कई देवी-देवताओं की स्तुतियां हैं, जिनमें से स्तुतियों के आधार पर कुछ प्रमुख देवता और उनकी विशेषताएं इस प्रकार हैं:
| देवी/ देवता के नाम | उनकी विशेषताएं |
| इंद्र | देवताओं के राजा, वर्षा, युद्ध और शक्ति के देवता। Rigveda में इंद्र की स्तुतियां सबसे अधिक(लगभग 250) हैं। |
| अग्नि | अग्नि देवता, वेदों के वाहक, यज्ञों के देवता, और शुद्धिकरण के प्रतीक हैं। |
| सूर्य | देवताओं के नेता, प्रकाश, ऊर्जा और जीवन के देवता। |
| विष्णु | रक्षक और संरक्षक देवता, सृष्टि के देवता/रचायता, और त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) में से एक। |
| सोम | देवताओं का पेय, प्रेरणा और ज्ञान के देवता, और यज्ञों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले। |
| उषा | भोर की देवी, सुंदरता और नवीनता की प्रतीक। |
| वरुण | न्याय, व्यवस्था और जल के देवता। |
| रुद्र | विनाशकारी और रचनात्मक शक्ति के देवता, भगवान शिव के अवतार। |
इन प्रमुख देवताओं के अलावा भी इसमें कई अन्य देवी-देवताओं का उल्लेख है, जिनमें पृथ्वी, वायु, नदियां, और विभिन्न प्राकृतिक शक्तियां भी शामिल हैं।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि Rig Veda में देवताओं को विभिन्न रूपों में दर्शाया गया है। वे कभी मानव रूप में, तो कभी पशु के रूप में, और कभी प्रतीकों के रूप में दिखाई देते हैं।
पहला मंडल, सूक्त 1 पहला मंत्र, अग्निदेव की स्तुति में लिखा गया है। ऋग्वेद का पहला मंत्र और उसका अर्थ कुछ इस प्रकार है:
| मंत्र | अ॒ग्निमी॑ळे पु॒रोहि॑तं य॒ज्ञस्य॑ दे॒वमृ॒त्विज॑म्। होता॑रं रत्न॒धात॑मम्॥ |
| अर्थ | मैं अग्नि देवता की स्तुति करता हूँ , जो यज्ञ के पुरोहित है, देवताओं के पुजारी हैं और सबसे कीमती रत्नों के दाता हैं। |
ऋग्वेद का पहला मंत्र यज्ञ की महत्ता को दर्शाता है और अग्नि देवता को समर्पित है, जो यज्ञों के माध्यम से देवताओं और मनुष्यों के बीच संपर्क स्थापित करता है। अग्नि को शुभ और समृद्धि का प्रतीक माना गया है। इस मंत्र के माध्यम से वेदों की शुरुआत होती है, जो धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान की गहराइयों की ओर इशारा करती है।

“ऋग्वेद किसने लिखा” सवाल के जवाब में यह कहा जाता है कि इसे महर्षि वेदव्यास ने संकलित किया था। महर्षि वेदव्यास एक महान ऋषि और भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण व्यक्ति थे।
महर्षि वेदव्यास कौन थे? वेदव्यास का असली नाम कृष्ण द्वैपायन था। वेदव्यास ने चारों वेदों – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद को संकलित किया और इसीलिए उन्हें वेदों का विभाजनकर्ता भी कहा जाता है।
Rig veda की रचना किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं की गई थी, बल्कि यह विभिन्न ऋषियों के योगदान का संग्रह है। इन ऋषियों ने ईश्वरीय प्रेरणा से इन स्तुतियों की रचना की। महर्षि वेदव्यास ने इन मौखिक रूप से प्रसारित स्तुतियों को एकत्रित, वर्गीकृत और लिखित रूप में संकलित किया था।
| मंडल | सूक्त | मंत्र | ऋषि के नाम |
| 1 | 191 | 2006 | ऋषि मधुचंद, ऋषि मेघातिथि, ऋषि गौतम और कई अन्य |
| 2 | 43 | 429 | ऋषि ग्रीतासमदा और उनका परिवार |
| 3 | 62 | 617 | ऋषि विश्वामित्र और उनका परिवार |
| 4 | 58 | 589 | वामदेव और उनका परिवार |
| 5 | 87 | 727 | ऋषि अत्रि और उनका परिवार |
| 6 | 75 | 765 | ऋषि भारद्वाज और उनका परिवार |
| 7 | 104 | 841 | ऋषि विशिष्ट और उनका परिवार |
| 8 | 103 | 1716 | ऋषि कण्व, अंगिरा और उनका परिवार |
| 9 | 114 | 1108 | सोम देवता, अन्य ऋषि |
| 10 | 191 | 1754 | ऋषि विमदा, इंद्र, और कई अन्य |
Rigveda, वेदों में सबसे प्राचीन ग्रंथ है और हिंदू धर्म का आधार माना जाता है। इसमें हजारों मंत्र (श्लोक) हैं जो प्राचीन भारतीय समाज के जीवन, विश्वासों और देवताओं के बारे में बताते हैं।
क्योंकि यह इतना विशाल ग्रंथ है, इसलिए यहां कुछ चुनिंदा ऋग्वेद के श्लोक अर्थ सहित दिए गए है:
अग्नि देवता के लिए स्तुति:
अग्ने नय नः पथः सुयम। यत्र देवाः सन्ति दिव्ये दाने।
अर्थ: हे अग्नि देवता! हमें उस सुगम मार्ग पर ले चलो जहां देवता दिव्य दान देते हैं।
इंद्र देवता की शक्ति:
इंद्रो वरुणो मिथः, इंद्रो विश्वे देवाः। इंद्रो ब्रह्मा, इंद्रो विष्णुः।
अर्थ: इंद्र ही वरुण हैं, इंद्र ही सभी देवता हैं। इंद्र ही ब्रह्मा हैं, इंद्र ही विष्णु हैं।
सृष्टि की उत्पत्ति:
तमसः परं ज्योतिर्गमय।
अर्थ: हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो।
प्रकृति का वर्णन:
द्यौः अपः पृथिवी।
अर्थ: आकाश, जल और पृथ्वी।
Rigveda भारतीय साहित्य का आदिपुराण है। इसके मंत्रों और सूक्तियों ने भारतीय काव्य, भाषा और साहित्यिक परंपराओं को समृद्ध किया है। संस्कृत भाषा की श्रेष्ठता और छंदों की विविधता का अद्भुत प्रदर्शन इसमें मिलता है। इस ग्रंथ ने वेदांग, उपनिषद, महाकाव्य और पुराणों जैसे महत्वपूर्ण साहित्यिक रचनाओं की प्रेरणा दी है।
ऋग्वेद ने भारतीय संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया है। इसमें वर्णित यज्ञ, प्रार्थना, और देवताओं की स्तुतियां भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का हिस्सा बन गई हैं। इसमें दिए गए सामाजिक और नैतिक नियम आज भी भारतीय समाज की नींव माने जाते हैं। यह ग्रंथ परिवार, समाज, और मानवता के बीच सामंजस्य और सद्भावना को प्रोत्साहित करता है।
धर्म के क्षेत्र में Rigveda का महत्व अद्वितीय है। इसमें वर्णित यज्ञ और प्रार्थना की विधियों ने हिंदू धर्म की धार्मिक परंपराओं को स्थापित किया है। अग्नि, इंद्र, वरुण, और सूर्य जैसे देवताओं की पूजा की परंपरा यहीं से ही शुरू हुई। यह ग्रंथ आध्यात्मिकता, आत्मज्ञान, और मोक्ष के मार्ग को दर्शाता है, जो आज भी भारतीय धर्म का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
ऋग्वेद वैदिक साहित्य का सबसे प्राचीन ग्रंथ है और इसे मानवता का पहला साहित्यिक दस्तावेज भी कहा जाता है। यह संस्कृत में रचित है और मुख्यतः ऋचाओं (स्तुतियों) का संग्रह है, जो विभिन्न देवताओं की स्तुति में हैं।
ऋग्वेद में 33 प्रमुख देवताओं की स्तुति की गई है। इनमें मुख्य हैं:
ऋचाएं इन देवताओं से यज्ञों में आकर कृपा करने, वर्षा देने, विजय दिलाने और समृद्धि देने की प्रार्थना करती हैं।
| विशेषता | विवरण |
|---|---|
| कुल मण्डल (Chapters) | 10 |
| कुल सूक्त (Hymns) | लगभग 1,028 |
| कुल ऋचाएं (Verses) | लगभग 10,600 |
| भाषा | वैदिक संस्कृत |
ऋग्वेद, चारों वेदों में सबसे प्राचीन, हमें प्राचीन भारत की धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक के बारे में बताता है। इसमें निहित सूक्त और मंत्र, न केवल देवी-देताओं की स्तुति करते हैं, बल्कि आधुनिक समाज की जीवनशैली, परंपराओं और विश्वासों को भी उजागर करते हैं।
इस ब्लॉग में आपने Rigved Kya Hai, ऋग्वेद किसने लिखा, ऋग्वेद में कितने मंत्र है, ऋग्वेद में किसका वर्णन है, महर्षि वेदव्यास कौन थे, ऋग्वेद में प्रमुख देवता और उनकी स्तुतियां तथा ऋग्वेद का महत्व और इसके प्रभावों के बारे में विस्तार से जाना।
ऋग्वेद लगभग 1500–1200 ईसा पूर्व में रचा गया था।
इसे किसी एक व्यक्ति ने नहीं, बल्कि कई ऋषियों (जैसे विश्वामित्र, वशिष्ठ, अत्रि आदि) ने मौखिक रूप से रचा और पीढ़ी-दर-पीढ़ी श्रुति परंपरा से संरक्षित किया।
बाद में इसे लिखित रूप में संकलित किया गया।
Rigveda की महत्वपूर्ण सूक्तों में “सप्ताश्वर सूक्त” और “रवी सूक्त” शामिल हैं, जो विशेष धार्मिक और याज्ञिक महत्व रखती हैं।
ऋग्वेद का संस्कृत में अनुवाद और संस्करण कई विद्वानों और शास्त्रज्ञों ने किया, जिनमें प्रमुख रूप से सायणाचार्य का योगदान महत्वपूर्ण है।
ऋग्वेद के श्लोकों में उपयोग की गई याज्ञिक विधियाँ अग्निहोत्र, सोम यज्ञ, और हवि यज्ञ जैसी विधियाँ शामिल हैं।
प्रमुख शोधकर्ताओं और विद्वानों में सायणाचार्य, यास्क, और राधाकृष्णन शामिल हैं, जिन्होंने ऋग्वेद की व्याख्या और विश्लेषण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
ऋग्वेद में विश्वामित्र ऋषि का संवाद गंगा और यमुना नदियों के बीच है। यह संवाद ऋग्वेद के सूक्तों में पाया जाता है, जहां वे नदियों को पूजनीय और महत्वपूर्ण मानते हैं।
वेद का पहला मंत्र ऋग्वेद में है और वह है: अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्
Authored by, Aakriti Jain
Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.
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