रस किसे कहते हैं

रस किसे कहते हैं? | Ras kise kahate Hain

Published on August 19, 2025
|
1 Min read time
रस किसे कहते हैं

Quick Summary

  • रस वह भावनात्मक अनुभव है जो कला, साहित्य, नृत्य या संगीत के माध्यम से दर्शक या श्रोता को होता है।
  • यह व्यक्ति के मन में उत्पन्न होने वाली गहरी भावना का प्रतीक है।
  • रस कला के विभिन्न रूपों में प्रमुख भूमिका निभाता है, जो दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ता है।
  • भारतीय नाट्यशास्त्र में इसे मुख्य रूप से नौ प्रकारों में विभाजित किया गया है।

Table of Contents

भारतीय साहित्य में “रस” का महत्व अनमोल है। यह वह अनुभूति है, जो किसी कविता, नाटक या कहानी को पढ़ते या देखते समय हमारे मन में जागृत होती है। रस का शाब्दिक अर्थ है “आनंद”। साहित्य में रस उस आनंद या भावात्मक अनुभव को कहा जाता है, जो किसी कविता, कहानी या नाटक को पढ़ते या सुनते समय पाठक या दर्शक को प्राप्त होता है। यह एक विशेष अनुभूति होती है जो रचना के माध्यम से मन में उत्पन्न होती है।

रस हमें भावनाओं की गहराई में ले जाता है, चाहे वह प्रेम का श्रृंगार हो, वीरता का प्रदर्शन हो या हास्य (laugh) का आनंद।  ऐसे में, आपके लिए रस किसे कहते हैं और ras ke parkar के बारे में जानना जरूरी हो जाता है। इस ब्लॉग में आपको जानने मिलेगा कि रस किसे कहते हैं(Ras kise kahate Hain), Ras ke Prakar kitne hote hain, Hasya ras ki paribhasha kya hai, श्रृंगार रस किसे कहते हैं तथा रसों का साहित्य और कला में क्या महत्व है।

रस की परिभाषा | Ras ki Paribhasha

रस भारतीय साहित्य और काव्यशास्त्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। रस का दूसरा अर्थ आनंद होता है जो किसी काव्य, नाटक या अन्य कला के माध्यम से दर्शकों या पाठकों के मन में उत्पन्न होता है। सरल शब्दों में, जब हम किसी कविता, कहानी, या नाटक को पढ़ते या देखते हैं और उसमें डूब जाते हैं, तो जो आनंद हमें महसूस होता है, उसे ही रस कहते हैं।

रस को काव्य की आत्मा कहा गया है। आचार्य भरतमुनि ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘नाट्यशास्त्र’ में नौ प्रमुख रसों का वर्णन किया है, जिनमें शृंगार, हास्य, करुण, वीर, रौद्र, भयानक, वीभत्स, अद्भुत और शांत रस सम्मिलित हैं।

भरतमुनि द्वारा रस की परिभाषा

भरतमुनि, जो नाट्यशास्त्र के रचयिता माने जाते हैं, ने “रस किसे कहते हैं” की एक अनोखी और गहरी परिभाषा दी है। उनके अनुसार, रस का अर्थ है वह आनंद या अनुभूति, जो दर्शक को किसी कला रूप, जैसे नाटक, संगीत या साहित्य के माध्यम से प्राप्त होती है। 

भरतमुनि ने कहा है, “विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः”, जिसका अर्थ है कि विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भावों के संयोग से रस की उत्पत्ति होती है। विभाव वे कारण होते हैं जो भाव को उत्पन्न करते हैं, अनुभाव वे संकेत होते हैं जो भाव को व्यक्त करते हैं, और व्यभिचारी भाव वे सहायक भाव होते हैं जो मुख्य भाव को और प्रबल बनाते हैं।

रस के मुख्य अंग | Ras ke kitne Ang Hote Hain

जब विभाव, अनुभाव, और संचारी भाव एक साथ काम करते हैं, तो वे एक शक्तिशाली रस का निर्माण करते हैं। उदाहरण के लिए, अगर एक कवि प्रेमियों के मिलन का वर्णन करता है (विभाव), उनके चेहरे पर मुस्कान और आँखों में चमक दिखाता है (अनुभाव), और उनके दिल की धड़कन तेज हो जाती है (संचारी भाव), तो पाठक को रस का गहरा अनुभव होता है।

स्थायी भाव रस

हर रस का एक मुख्य भाव होता है जिसे स्थायी भाव कहते हैं। ये वो भाव हैं जो हमारे मन में हमेशा मौजूद रहते हैं। जैसे प्यार, नफरत, खुशी, दुख आदि। जब ये भाव किसी कहानी में किसी विशेष परिस्थिति के कारण उभरकर सामने आते हैं, तो हमें एक खास तरह का आनंद महसूस होता है।

उदाहरण:

  • शृंगार रस: जब हम किसी प्रेम कहानी को पढ़ते हैं तो हमें रति (प्यार) का स्थायी भाव महसूस होता है और हम शृंगार रस का अनुभव करते हैं।
  • वीर रस: जब हम किसी वीर योद्धा की कहानी पढ़ते हैं तो हमें उत्साह का स्थायी भाव महसूस होता है और हम वीर रस का अनुभव करते हैं।

विभाव रस

विभाव शब्द का सीधा मतलब होता है ‘कारण’ या ‘उद्दीपक’। साहित्य की दुनिया में, विभाव उन तत्वों को कहते हैं जो किसी खास भाव यानी ‘रस’ को जन्म देते हैं।

उदाहरण:

  • अगर आप एक डरावनी कहानी पढ़ रहे हैं और अंधेरे कमरे में एक आकृति देखते हैं, तो यह आकृति विभाव है जो आपके मन में भय यानी ‘भयानक रस’ पैदा करती है।
  • अगर आप एक मज़ेदार कहानी पढ़ रहे हैं और किसी पात्र को फिसलते हुए देखते हैं, तो यह दृश्य विभाव है जो आपके मन में हंसी यानी ‘हास्य रस’ पैदा करता है।

विभाव के प्रकार:

विभाव मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं:

  1. आलंबन विभाव: जिसके कारण स्थायी भाव उत्पन्न होता है। जैसे, प्रेम कहानी में नायक और नायिका आलंबन विभाव हैं।
  2. उद्दीपन विभाव: यह आलंबन विभाव के सहायक होते हैं। जैसे, बारिश की बूंदें, चांदनी रात, ये सब उद्दीपन विभाव हैं जो प्रेम भाव को और गहरा बना सकते हैं।

अनुभाव रस

अनुभाव शब्द का मतलब होता है ‘अनुभव’ या ‘भाव का अनुगमन करने वाला’। साहित्य में, अनुभाव उन भावों को कहते हैं जो किसी खास भाव यानी ‘रस’ के उत्पन्न होने के बाद व्यक्त होते हैं।

सरल शब्दों में:

मान लीजिए आप एक प्रेम कहानी पढ़ रहे हैं और पात्रों के बीच प्रेम दिखाया जा रहा है। इस प्रेम के कारण पात्र के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है, उसकी आँखें चमक उठती हैं, और वह शर्माने लगता है। ये सभी भाव अनुभाव कहलाते हैं। ये भाव हमें बताते हैं कि पात्र वास्तव में प्रेम मे डूबा है।

अनुभाव के प्रकार:

अनुभाव मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं:

  1. इच्छित अनुभाव: ये वे अनुभाव होते हैं जो हम चाहते हैं कि हों, जैसे प्रेम में मुस्कुराना।
  2. अनिच्छित अनुभाव: ये वे अनुभाव होते हैं जो हम नहीं चाहते हैं कि हों, जैसे दुःख में रोना।

व्यभिचारी अथवा संचारी भाव रस

संचारी रस या व्यभिचारी भाव को हम ऐसे समझ सकते हैं कि ये रस के साथ-साथ चलने वाले भाव होते हैं। ये भाव किसी भी रस के साथ जुड़ सकते हैं और उसे और गहरा बना सकते हैं। ये भाव ऐसे होते हैं जैसे पानी के बुलबुले, जो कभी उठते हैं और कभी शांत हो जाते हैं। इन्हें संचारी भाव भी कहा जाता है क्योंकि ये एक भाव से दूसरे भाव में संचरित होते रहते हैं। 

रस के प्रकार उदाहरण सहित | Ras kitne Hote Hain?

रस के 11 प्रकार होते हैं, हालांकि भारतमुनि ने नाट्यशास्त्र में मूलतः 9 रसों को ही मान्यता दी है। आगे चलकर परवर्ती साहित्य परंपरा में वात्सल्य और भक्ति रस को दसवें और ग्यारवें रस के रूप में स्वीकृत कर लिया गया। इस प्रकार रस कितने प्रकार के होते हैं कुल 11 हुए। 

रस किसे कहते हैं

रस के उदाहरण | Ras kitne Prakar ke Hote Hain

क्रमांकRas ke prakarभाव
1श्रृंगार रसरति
2हास्य रसहास
3रौद्र रसक्रोध
4करुण रसशोक
5वीर रसउत्साह
6भयानक रसभय
7वीभत्स रसघृणा, जुगुप्सा
8अद्भुत रसआश्चर्य
9शांत रसनिर्वेद
10वात्सल्य रसप्रेम, स्नेह
11भक्ति रसभक्ति
Ras ke Prakar | रस की परिभाषा एवं प्रकार

1. श्रृंगार रस (Shringar Ras)

श्रृंगार रस किसे कहते हैं?

प्रेम के आनंद को श्रृंगार रस कहा जाता है। जब हम किसी कविता या कहानी में प्रेम, आकर्षण, रोमांस या सौंदर्य देखते हैं, तो हमें श्रृंगार रस महसूस होता है। यह रस हमारे दिल को छूता है और हमें खुशी, उल्लास या कभी-कभी दुःख भी दे सकता है।

उदाहरण:(shringar ras ka udaharan)

  • साँवरी सूरत, काले बादल, चमक उठी बिजली सी। मिलन को आया प्रियतम, मन मोहित होत है जी।

श्रृंगार रस के प्रकार

श्रृंगार रस मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है:

  1. संयोग श्रृंगार
  2. वियोग श्रृंगार

2. हास्य रस (Hasya Ras)

हास्य रस भारतीय काव्यशास्त्र में एक ऐसा रस है, जो मनुष्य को आनंद और हंसी का अनुभव कराता है। जब किसी घटना, संवाद, या पात्र की हरकतें हमें हंसने पर मजबूर करती हैं, तो वहां हास्य रस का प्रभाव होता है। इसे “आनंद का रस” भी कहा जा सकता है, क्योंकि यह हमारे मन को हल्का और प्रसन्न करता है।

Hasya ras ki paribhasha

भरतमुनि के अनुसार, हास्य रस की उत्पत्ति हास (हंसी) से होती है, जो किसी विचित्र या मजेदार स्थिति से प्रेरित होती है। जब किसी के आचरण, वाणी या भाव-भंगिमा (body language) में कुछ असामान्य, अनोखा या व्यंग्यात्मक होता है, तो वह हास्य रस कहलाता है।

उदाहरण(Hasya Ras ka Udaharan)

  • पंडित जी ने उपदेश दिया कि क्रोध बुरी चीज़ है, और जब एक श्रोता ने तालियाँ नहीं बजाईं तो पंडित जी गुस्से में लाल हो गए।

हास्य रस के प्रकार

हास्य रस को दो भागों में बांटा गया है:

  1. स्मित हास्य
  2. विस्मित हास्य

3. रौद्र रस (Raudra Ras)

भारतीय काव्यशास्त्र में क्रोध और उग्रता से जुड़े रस को रौद्र रस माना जाता है। यह रस उस स्थिति को दर्शाता है जब व्यक्ति के मन में गुस्सा या आक्रोश उत्पन्न होता है। रौद्र रस का मुख्य उद्देश्य दर्शकों या पाठकों के मन में उग्रता और शक्ति का अनुभव कराना है।

रौद्र रस किसे कहते हैं?

भरतमुनि के अनुसार, रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध (anger) है। जब कोई परिस्थिति, व्यक्ति या घटना किसी पात्र के मन में असंतोष और आक्रोश उत्पन्न करती है, तो वह रौद्र रस का निर्माण करती है।

उदाहरण:

  • जब उसने अपनी बहन का अपमान सुना, तो उसकी आँखों में ऐसी आग भड़क उठी कि प्रलय की ज्वाला भी उसके सामने फीकी पड़ जाए।

4. करुण रस (Karun Ras)

करुण रस भारतीय काव्यशास्त्र का एक ऐसा रस है, जो दुख, वेदना और करुणा की भावनाओं को व्यक्त करता है। जब किसी कविता, नाटक, या कहानी में ऐसी घटनाएँ या परिस्थितियाँ प्रस्तुत की जाती हैं, जो हमारे दिल को छू जाती हैं और दुख का अनुभव कराती हैं, तो वहां करुण रस की अनुभूति होती है।

करुण रस किसे कहते हैं?

भरतमुनि के अनुसार, करुण रस की उत्पत्ति शोक (दुख) से होती है। यह तब प्रकट होता है, जब किसी पात्र की पीड़ा, वियोग, या दुखद घटना को देखकर दर्शक या पाठक के मन में संवेदना उत्पन्न होती है।

उदाहरण:

  • माँ की अर्थी उठने से पहले बच्चा रोते हुए कह रहा था – माँ उठो ना, मैंने आज फर्स्ट आया हूँ स्कूल में।

5. वीर रस (Veer Ras)

वीर रस भारतीय काव्यशास्त्र में एक ऐसा रस है, जो साहस, आत्मविश्वास और पराक्रम की भावना को प्रकट करता है। जब किसी कविता, नाटक या कहानी में वीरता, शौर्य और संघर्ष की झलक मिलती है, तो वहां वीर रस का प्रभाव होता है। यह रस पाठकों या दर्शकों को प्रेरित करता है और उनके भीतर उत्साह भरता है।

वीर रस किसे कहते हैं?

भरतमुनि के अनुसार, वीर रस की उत्पत्ति उत्साह नामक स्थायी भाव से होती है। जब किसी व्यक्ति का साहस, बलिदान और संघर्ष का चित्रण किया जाता है, तो वह वीर रस कहलाता है। यह रस हमें संघर्षों का सामना करने और जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

उदाहरण: (veer ras ka udaharan)

  • सिंह की तरह दहाड़ते हुए योद्धा ने कहा, ‘जब तक इस धरती पर सांस है, दुश्मन का विजय सपना अधूरा रहेगा!

6. भयानक रस (Bhayanak Ras)

भयानक रस भारतीय काव्यशास्त्र का एक ऐसा रस है, जो भय और डर की भावना को व्यक्त करता है। जब किसी कविता, नाटक, कहानी, या दृश्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, जो मन में डर, आतंक या घबराहट पैदा करे, तो वहां भयानक रस की उपस्थिति होती है।

भयानक रस किसे कहते हैं?

भरतमुनि के अनुसार, भयानक रस की उत्पत्ति भय (डर) से होती है। यह डर किसी खतरनाक परिस्थिति, डरावने दृश्य, या जीवन के लिए उत्पन्न खतरे के कारण पैदा होता है। जब पाठक या दर्शक उस स्थिति को महसूस करता है और उसका प्रभाव उसके मन पर पड़ता है, तो भयानक रस का अनुभव होता है।

उदाहरण:

  • अंधेरी रात में सुनसान सड़क पर चलते हुए अचानक पेड़ से लटकती सफेद साड़ी में एक परछाई दिखी, और ठंडी हवा की सनसनाहट ने दिल दहला दिया।

7. बीभत्स रस (Bibhats Ras)

बीभत्स रस भारतीय काव्यशास्त्र का एक ऐसा रस है, जो घृणा, विकर्षण या नापसंदगी की भावना को प्रकट करता है। जब किसी दृश्य, घटना, या परिस्थिति से हमारे मन में घृणा, अस्वीकृति या अशुद्धता की भावना उत्पन्न होती है, तो वह बीभत्स रस कहलाता है।

बीभत्स रस किसे कहते हैं?

भरतमुनि के अनुसार, बीभत्स रस की उत्पत्ति जुगुप्सा (घृणा) नामक स्थायी भाव से होती है। यह रस तब प्रकट होता है, जब किसी दृश्य, वस्तु, या घटना को देखकर मनुष्य के मन में अप्रियता या अस्वीकृति का भाव जागृत होता है।

उदाहरण:

  • मैदान में बिखरी हुई लाशों पर गिद्धों का झुंड मांस नोच रहा था, और उनकी चोंचों से टपकते खून की बूंदें धरती को लाल कर रही थीं।

8. अद्भुत रस (Adbhut Ras)

अद्भुत रस भारतीय काव्यशास्त्र में एक ऐसा रस है, जो आश्चर्य और जिज्ञासा की भावना को प्रकट करता है। जब हम किसी अद्वितीय, अकल्पनीय या चमत्कारिक घटना को देखते हैं या पढ़ते हैं, तो हमारे मन में जो विस्मय और रोमांच उत्पन्न होता है, उसे अद्भुत रस कहते हैं। यह रस हमारी कल्पनाओं को नया आयाम देता है और हमारे भीतर नई सोच की प्रेरणा जगाता है।

अद्भुत रस किसे कहते हैं?

भरतमुनि के अनुसार, अद्भुत रस की उत्पत्ति विस्मय नामक स्थायी भाव से होती है। जब किसी घटना, दृश्य, या वस्तु को देखकर हमारे मन में आश्चर्य और कौतूहल उत्पन्न होता है, तो अद्भुत रस का निर्माण होता है।

उदाहरण: 

  • जब उस योगी ने अपनी आंखें बंद कीं तो आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी और चारों ओर दिव्य प्रकाश फैल गया।

9. शांत रस (Shant Ras ka Sthai Bhav)

शांत रस भारतीय काव्यशास्त्र का वह रस है, जो मन में शांति, संतोष और आत्मिक आनंद का अनुभव कराता है। यह रस व्यक्ति को बाहरी दुनिया के शोर-शराबे से दूर ले जाकर उसके भीतर के सुकून से जोड़ता है। जब कोई कविता, नाटक या कला का रूप हमें मानसिक शांति और ध्यान की अवस्था में ले जाए, तो वहां शांत रस का प्रभाव होता है।

शांत रस किसे कहते हैं?

भरतमुनि के अनुसार, शांत रस की उत्पत्ति शम (शांति) नामक स्थायी भाव से होती है। यह रस वैराग्य, आत्मज्ञान और संतुलन की भावना को व्यक्त करता है। शांत रस का उद्देश्य दर्शकों या पाठकों को आंतरिक शांति और संतोष का अनुभव कराना है।

उदाहरण:

  • एक साधु, गंगा नदी के किनारे ध्यान लगाए हुए हैं। सूर्योदय हो रहा है। धीमी-धीमी नदी की लहरें, पक्षियों का मधुर संगीत, और साधु की शांत सांसें, एक मंत्रमुग्ध कर देने वाली शांति का वातावरण बनाती हैं। साधु का मन, समस्त संसार से अलग होकर, परमात्मा में लीन हो जाता है।

10. वात्सल्य रस (Vaatsaly Ras)

वात्सल्य रस भारतीय काव्यशास्त्र में वह रस है, जो माता-पिता और बच्चों के बीच के प्रेम और स्नेह को दर्शाता है। जब किसी कविता, नाटक, या कहानी में ममता, स्नेह और दया का चित्रण होता है, तो वहां वात्सल्य रस प्रकट होता है। यह रस हमारी भावनाओं को कोमल बनाता है और प्रेम के सबसे पवित्र रूप को व्यक्त करता है।

वात्सल्य रस किसे कहते हैं?

वात्सल्य रस की उत्पत्ति स्नेह नामक स्थायी भाव से होती है। यह रस मुख्य रूप से माता-पिता और बच्चों के बीच के स्नेह को उजागर करता है, लेकिन गुरु-शिष्य या किसी संरक्षक और शरणागत के बीच के प्रेम को भी दर्शा सकता है।

उदाहरण:

  • माँ ने अपने सोते हुए बच्चे को प्यार से देखा और उसके माथे पर हाथ फेरते हुए बोली, ‘तू ही तो मेरी दुनिया है।

11. भक्ति रस (Bhakti Ras) 

भक्ति रस भारतीय काव्यशास्त्र में एक ऐसा रस है, जो ईश्वर के प्रति प्रेम, श्रद्धा और समर्पण की भावना को प्रकट करता है। जब किसी कविता, भजन, कथा या नाटक में भगवान की महिमा, उनकी लीलाओं या भक्त के भावों का वर्णन होता है, तो वहां भक्ति रस का अनुभव होता है। यह रस हमारे मन को शांति और दिव्यता से भर देता है।

भक्ति रस किसे कहते हैं?

भक्ति रस की उत्पत्ति श्रद्धा और समर्पण से होती है। यह रस भक्त और भगवान के बीच के पवित्र संबंध को दर्शाता है, जिसमें भक्त अपने आराध्य के प्रति पूर्ण विश्वास और प्रेम व्यक्त करता है।

उदाहरण:

  • हे कृष्ण, तेरी मुरली की मधुर ध्वनि सुनकर मेरा मन हर क्षण तुझमें ही लीन हो जाता है।

रसों का साहित्य और कला में महत्व | Ras kya Hota Hai

रसों का साहित्य और कला मे काफ़ी ज्यादा महत्व है। रसों के इस्तेमाल से ही कविता, नाटक, और गद्य को सुनने और देखने वाले के मन मे गहरे भाव उत्पन्न होते हैं। 

  1. कविता, नाटक, और गद्य में रस का प्रयोग

कविता, नाटक और गद्य में रस का प्रयोग पाठकों और दर्शकों के मन में गहराई से भावनाएं जगाने के लिए किया जाता है। कविता में रस शब्दों और छंदों के माध्यम से भावनात्मक जुड़ाव पैदा करता है। नाटक में पात्रों के संवाद और अभिनय से रस का संचार होता है, जिससे दर्शक कहानी से जुड़ते हैं। गद्य में रस का उपयोग वर्णनात्मक शैली और घटनाओं के चित्रण से होता है, जो पाठकों को भावनात्मक रूप से प्रभावित करता है।

  1. नाट्यशास्त्र में रसों का योगदान।

नाट्यशास्त्र में रसों का मुख्य उद्देश्य दर्शकों के मन में भावनाओं को जागृत करना और उन्हें आनंदित करना है। भरतमुनि ने रसों को नाट्यकला की आत्मा कहा है, क्योंकि ये कथा और पात्रों के माध्यम से दर्शकों को भावनात्मक अनुभव प्रदान करते हैं। शृंगार, वीर, हास्य, करुण आदि रस नाटक को जीवंत बनाते हैं और दर्शकों को उससे जोड़ते हैं। रसों के बिना नाटक नीरस हो जाता है। ये कला को प्रभावशाली और यादगार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

  1. दर्शकों के मन में भावनाएँ उत्पन्न करना

दर्शकों के मन में गहरी भावनाएँ उत्पन्न करने में रस का काफ़ी महत्व है। उदाहरण के लिए:

  • श्रृंगार रस प्रेम और सौंदर्य का अनुभव कराता है, जैसे राधा-कृष्ण की लीलाएं।
  • वीर रस साहस और प्रेरणा जगाता है, जैसे भगत सिंह की कहानियां।
  • हास्य रस हंसी और खुशी देता है, जैसे विदूषक के संवाद।
  • करुण रस दुख और सहानुभूति उत्पन्न करता है, जैसे शोकपूर्ण दृश्यों में।

निष्कर्ष

इस प्रकार, “रस किसे कहते हैं” का अर्थ केवल भावनाओं का अनुभव करना नहीं, बल्कि कला और साहित्य के माध्यम से उन्हें गहराई से महसूस करना है। “Ras ke prakar” जैसे “hasya ras ki paribhasha” और “श्रृंगार रस किसे कहते हैं” हमें यह समझने में मदद करते हैं कि साहित्य और कला कैसे हमारे मन में भावनाओं की एक अनोखी दुनिया रचते हैं। यही रसों की सुंदरता और महत्व है।

इस ब्लॉग में आपने विस्तार से जाना कि रस किसे कहते हैं, Ras ke prakar kitne hote hain, hasya ras ki paribhasha kya hai, श्रृंगार रस किसे कहते हैं तथा रसों का साहित्य और कला में क्या महत्व है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

रस किसे कहते हैं और कितने प्रकार के होते हैं?

रस कला, साहित्य, और नृत्य में अनुभव होने वाली भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता है। भारतीय नाट्यशास्त्र में नौ प्रकार के रस होते हैं: शृंगार, वीर, करुण, रौद्र, हास्य, अद्भुत, भयानक, वीभत्स, और शांत।

रस के जनक कौन थे?

रस के जनक भारतीय नाट्यशास्त्र के महान ग्रंथ “नाट्यशास्त्र” के रचनाकार भरत मुनि माने जाते हैं। उन्होंने ही रसों को नाट्य और काव्य में अभिव्यक्त किया।

रस की कुल संख्या कितनी होती है?

रस की कुल संख्या नौ होती है, जिन्हें शास्त्रों में प्रमुख रूप से शृंगार, वीर, करुण, रौद्र, हास्य, अद्भुत, भयानक, वीभत्स और शांत के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

रस की उत्पत्ति कैसे हुई?

भरत मुनि ने इसे नाट्य और काव्य में प्रमुख भूमिका निभाने वाली भावनाओं के रूप में परिभाषित किया।

हास्य रस कब उत्पन्न होता है?

जब किसी स्थिति में विनोद, मज़ाक या मनोरंजन होता है, तब हास्य रस उत्पन्न होता है।

रस और भाव में क्या अंतर है?

भाव वह मानसिक अवस्था है जो काव्य या नाट्य में अभिव्यक्त होती है, जबकि रस उस भाव का परिपक्व, सौंदर्यपूर्ण अनुभव होता है जो पाठक या दर्शक को मिलता है।

Authored by, Aakriti Jain
Content Curator

Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.

Editor's Recommendations