प्रेमानंद महाराज का जीवन परिचय

प्रेमानंद महाराज का जीवन परिचय | Premanand ji Maharaj

Published on July 1, 2025
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प्रेमानंद महाराज का जीवन परिचय

Quick Summary

  • प्रेमानंद जी महाराज एक प्रसिद्ध संत, श्रीकृष्ण भक्त और प्रभावशाली प्रवचनकर्ता हैं।

  • उनका जन्म 30 मार्च 1969 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के पास स्थित छाता क्षेत्र में हुआ था।

  • मात्र 13 वर्ष की उम्र में वे सांसारिक जीवन त्यागकर भक्ति और साधना के मार्ग पर चल पड़े।

  • वृंदावन में रहकर उन्होंने कठोर तपस्या, श्रीमद्भागवत कथा और रामकथा के माध्यम से आध्यात्मिक जागरण फैलाया।

  • उनके प्रवचन सरल, भावनात्मक और जीवन को दिशा देने वाले होते हैं।

  • वे सेवा, सदाचार, सच्चाई और भक्ति को ही सच्चे जीवन मूल्यों के रूप में मानते हैं।

  • उनकी शिक्षाएं और जीवनशैली आज भी करोड़ों लोगों को आध्यात्मिक ऊर्जा, शांति और प्रेरणा प्रदान करती हैं।

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Table of Contents

प्रेमानंद महाराज का जीवन परिचय: Premanand ji Maharaj भारत के प्रसिद्ध संत, प्रवचनकर्ता और भक्ति मार्ग के प्रेरणास्रोत हैं। उनका असली नाम गोविंद शरण है। उनका जन्म 30 March 1969 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के पास स्थित छाता नामक क्षेत्र में हुआ था। बचपन से ही वे भगवान श्रीकृष्ण के प्रति गहरी भक्ति रखते थे। छोटी उम्र में ही वे घर-परिवार छोड़कर साधु-संतों की संगति में चले गए और अध्यात्म का मार्ग अपनाया।

प्रेमानंद जी महाराज वृंदावन में रहते हुए उन्होंने कठोर साधना की और भक्ति व सेवा में जीवन समर्पित कर दिया। वे श्रीमद्भागवत कथा, रामकथा और सत्संग के माध्यम से लोगों को ईश्वर भक्ति का मार्ग दिखाते हैं। उनकी भाषा सरल, शैली भावनात्मक और शिक्षाएं जीवन को सुधारने वाली होती हैं।

क्रमांकविषयविवरण
1जन्म30 मार्च 1969, अखरी गाँव (कानपुर के पास), उत्तर प्रदेश
2माता-पितापिता: शंभूनाथ पांडे, माता: रमा देवी
3प्रारंभिक रुचिबचपन से ही आध्यात्मिकता और भक्ति में रुचि
4शिक्षाकक्षा 8 तक पढ़ाई, उसी दौरान संन्यास लेने का निर्णय
5संन्यासआठवीं कक्षा में घर त्याग कर आध्यात्मिक जीवन की ओर अग्रसर
6वाराणसी प्रवासगंगा तट पर साधक के रूप में प्रारंभिक साधना
7वृंदावन आगमनराधा रानी की भक्ति में समर्पित जीवन की शुरुआत
8सम्प्रदाय से जुड़ावराधा वल्लभ सम्प्रदाय से जुड़े और श्री हित राधा केली कुंज ट्रस्ट की स्थापना
9गुरु सेवाअपने गुरु की सेवा लगभग 10 वर्षों तक की
10वर्तमान कार्यवृंदावन में रहकर राधा नाम जप, प्रवचन और भक्ति मार्ग का प्रचार
11स्वास्थ्य स्थितिदोनों किडनियाँ खराब हैं, फिर भी सक्रिय रूप से भक्ति में लगे हुए हैं
premanand maharaj ka jivan parichay | premanand maharaj

उनके प्रवचन और कथाएँ आज भी करोड़ों लोगों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा भरती हैं।

प्रेमानंद महाराज कौन थे? | Premanand Maharaj ka Jivan Parichay

Swami Premanand ji Maharaj भारत के एक प्रसिद्ध संत, प्रवचनकर्ता और आध्यात्मिक गुरु थे। प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज, जिन्हें आमतौर पर प्रेमानंद महाराज के नाम से जाना जाता है, भारत के एक प्रसिद्ध संत और प्रवचनकर्ता हैं। उनका जन्म 30 मार्च 1969 को उत्तर प्रदेश के अखरी गाँव (कानपुर के निकट) में हुआ था। उनका जन्म नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे है।

उन्होंने अपने जीवन को भक्ति, सेवा और समाज कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। वे श्रीमद्भागवत कथा, रामकथा और संत साहित्य के माध्यम से करोड़ों लोगों के जीवन को प्रभावित करते रहे। उनकी वाणी सरल, भावनात्मक और आत्मा को छू लेने वाली होती थी।

प्रेमानंद महाराज का जन्म कब और कहाँ हुआ? | Premanand Maharaj ji ka Janm kab Hua Tha?

प्रेमानंद महाराज जी का जन्म 30 March 1969 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के पास स्थित एक छोटे से गांव छाता (या इसके आसपास के क्षेत्र) में हुआ था। इसके अनुसार Premanand Ji Maharaj Age वर्तमान में 56 वर्ष है।

वे जन्म से ही शांत स्वभाव, धार्मिक रुचि और आध्यात्मिक सोच वाले थे। उन्हें बचपन से ही भक्ति की ओर झुकाव था, जिससे प्रभावित होकर वे संतों की संगति में चले गए और वृंदावन में रहकर साधना करने लगे।

प्रेमानंद महाराज जी संत कैसे बने सम्पूर्ण यात्रा | Guru Premanand Ji Maharaj

प्रेमानंद जी महाराज बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में गहरी रुचि थी। कम उम्र में ही उन्होंने घर-परिवार त्याग दिया और साधु-संतों की संगति में जीवन बिताना शुरू किया। वृंदावन में रहकर उन्होंने कठोर तप, साधना और भक्ति का मार्ग अपनाया। सत्संग, श्रीमद्भागवत कथा और रामकथा के माध्यम से उन्होंने लोगों को ईश्वर से जुड़ने की प्रेरणा दी। उनकी सरल वाणी और सच्चे भावों ने उन्हें एक महान संत के रूप में प्रसिद्ध किया। उनके जीवन का उद्देश्य केवल भक्ति और सेवा रहा, जिससे वे लाखों लोगों के हृदय में बस गए।

प्रेमानंद महाराज जी ने 13 वर्ष की आयु में छोड़ दिया था घर

प्रेमानंद जी महाराज ने केवल 13 वर्ष की उम्र में घर-परिवार, रिश्ते और सांसारिक जीवन को त्याग दिया था। उनका मन बचपन से ही भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में रमा रहता था। उन्हें जीवन में कोई रुचि नहीं थी और वे हमेशा आध्यात्मिकता की ओर आकर्षित रहते थे। इसी आंतरिक पुकार और भक्ति की खोज में उन्होंने कम उम्र में ही घर छोड़ दिया और वृंदावन की ओर प्रस्थान किया, जहाँ उन्होंने साधु-संतों की संगति में तप, साधना और धर्म का गहन अध्ययन किया। उनका यह त्याग ही उन्हें एक सच्चे संत बनने की ओर ले गया।

कैसे वृंदावन पहुंचे प्रेमानंद जी महाराज

प्रेमानंद जी महाराज बचपन से ही भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहते थे। उनके मन में संसारिक जीवन के प्रति कोई आकर्षण नहीं था। छोटी उम्र में ही वे घर छोड़कर भक्ति की तलाश में निकल पड़े।

  • इस आध्यात्मिक खोज के दौरान प्रेमानंद जी महाराज साधु-संतों के मार्गदर्शन में वृंदावन पहुंचे।
  • वृंदावन, जो श्रीकृष्ण की लीला स्थली मानी जाती है, उनकी भक्ति यात्रा का महत्वपूर्ण स्थान बना।
  • वहाँ की पवित्र भूमि और भक्तों की संगति ने उनके भक्ति मार्ग को और भी प्रगाढ़ बना दिया।
  • वृंदावन में रहकर उन्होंने कठोर तपस्या, गहरी साधना और श्रीमद्भागवत कथा का गहन अध्ययन किया।
  • इसी दौरान वे एक सच्चे संत और प्रसिद्ध कथा वाचक के रूप में लोगों के बीच स्थापित हुए।

कौन हैं महाराज प्रेमानंद जी के गुरु?

महाराज प्रेमानंद जी के आध्यात्मिक गुरु श्री हरिचरण दास जी महाराज थे। बचपन से ही भक्ति की ओर आकर्षित प्रेमानंद जी को उनके गुरु ने आध्यात्मिक दिशा दिखाई और उन्हें साधना, सेवा और श्रीकृष्ण भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ाया। गुरु के मार्गदर्शन में रहकर ही प्रेमानंद जी ने वृंदावन में कठोर तप और धार्मिक अध्ययन किया। श्री हरिचरण दास जी की शिक्षा और संस्कारों ने उन्हें एक महान संत और श्रीमद्भागवत कथा के अद्भुत वक्ता के रूप में स्थापित किया। प्रेमानंद जी सदैव अपने गुरु के प्रति समर्पित भाव रखते हैं और उन्हें ईश्वर तुल्य मानते हैं।

उनके व्यक्तित्व के विशेष गुण

दया, सहानुभूति और सहिष्णुता: प्रेमानंद जी महाराज सभी प्राणियों के प्रति करुणा और सहनशीलता की भावना रखते थे, और दूसरों की पीड़ा को समझना ही सच्ची मानवता मानते थे।
सभी धर्मों का सम्मान: वे सभी धर्मों को समान मानते थे और मानते थे कि हर पंथ हमें ईश्वर की ओर ले जाने वाला रास्ता है।
लोगों के प्रति प्रेम और समर्पण: उन्होंने बिना भेदभाव के सभी के प्रति प्रेम, सेवा और समर्पण को अपने जीवन का मूल उद्देश्य बनाया।

​प्रेमानंद जी का असली नाम क्या है ? उनका असली नाम और परिवार का परिचय

प्रेमानंद जी महाराज भारत के प्रसिद्ध संत और श्रीमद्भागवत कथा वाचक हैं। उन्होंने अपने जीवन को पूरी तरह भक्ति और सेवा में समर्पित कर दिया। बहुत कम लोग जानते हैं कि प्रेमानंद जी महाराज का असली नाम “गोविंद शरण” है। यह नाम उन्होंने अपने बचपन में पाया था, जब वे एक सामान्य बालक की तरह परिवार में रह रहे थे।

बचपन की सरल जीवन शैली और शिक्षा

उनका जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के पास स्थित एक छोटे से गांव में हुआ था। उनका परिवार धार्मिक प्रवृत्ति वाला था, लेकिन प्रेमानंद जी बचपन से ही संसारिक मोह-माया से दूर रहते थे। उनके माता-पिता चाहते थे कि वे सामान्य जीवन जिएं, लेकिन वे बचपन से ही भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में रुचि रखते थे।

प्रेमानंद जी महाराज का बचपन बहुत साधारण और सरल था। वे पढ़ाई में अच्छे थे और धार्मिक संस्कारों से बढ़े। उनका जीवन सांसारिक भोगों से दूर था, जिससे उन्हें जल्दी ही भक्ति और साधना की ओर आकर्षण हुआ।

आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत | Premanand ji Maharaj

प्रेमानंद जी की आध्यात्मिक यात्रा तब शुरू हुई जब वे छोटी उम्र में ही सांसारिक जीवन से दूर होकर भगवान की भक्ति में रम गए।

उनका आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व

प्रेमानंद जी महाराज का आध्यात्मिक महत्व उनकी गहरी भक्ति, साधना और श्रीमद्भागवत कथा के प्रचार में है। उन्होंने लोगों को भगवान के प्रति प्रेम और सेवा का संदेश दिया। सामाजिक रूप से, वे सरल जीवन और नैतिक मूल्यों के प्रेरक थे, जो समाज में शांति, सद्भाव और धर्म की स्थापना करते हैं। उनकी शिक्षाएं आज भी लाखों लोगों के लिए मार्गदर्शक हैं।

1) प्रेमानंद जी महाराज के जीवन टर्निग पॉइंट

  • प्रेमानंद जी महाराज का जीवन का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट तब आया जब वे 13 वर्ष के थे।
  • उन्होंने घर छोड़कर भक्ति और साधना के रास्ते पर चलना शुरू किया।
  • वृंदावन पहुँचकर उन्होंने गुरु की संगति में कठोर तप और धार्मिक ज्ञान प्राप्त किया।
  • इस समय से उनका जीवन पूरी तरह से आध्यात्म और सेवा में बदल गया।
  • यह मोड़ उन्हें एक महान संत और कथा वाचक बनने की ओर ले गया

 2) गुरु और साधना की प्रारंभिक बातें

प्रेमानंद जी महाराज के जीवन में गुरु की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी। उनके गुरु श्री हरिचरण दास जी महाराज थे, जिन्होंने उन्हें भक्ति और साधना का सही मार्ग दिखाया। गुरु के निर्देशन में प्रेमानंद जी ने वृंदावन में तपस्या, ध्यान और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन शुरू किया।

  • प्रारंभिक साधना ने प्रेमानंद जी महाराज को गहन आध्यात्मिक शक्ति और ज्ञान प्रदान किया।
  • इससे वे एक महान संत के रूप में प्रतिष्ठित होने में सफल हुए।
  • वे बचपन से ही भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में गहरी रुचि रखते थे।
  • नियमित रूप से भजन, कीर्तन करते और ध्यान में लीन रहते थे।
  • उनकी यह आदतें उन्हें सांसारिक जीवन से दूर और आध्यात्मिक मार्ग की ओर प्रेरित करती थीं।
  • ध्यान और भक्ति के अभ्यास से उनका मन शांत, स्थिर और एकाग्र बना रहता था।

प्रेमानंद जी महाराज के उपदेश | प्रेमानंद महाराज का जीवन परिचय

प्रेमानंद जी महाराज के उपदेश सरल और जीवन में काम आने वाले होते थे। वे हमेशा प्रेम, भक्ति और सच्चाई पर जोर देते थे। उनका मानना था कि ईश्वर की सेवा और दूसरों की मदद करना सबसे बड़ा धर्म है।

  • धैर्य रखें
     बुरे समय में संयम बनाए रखें; इससे आप बेहतर निर्णय ले सकते हैं और स्थिति नियंत्रित रह सकती है
  • कष्टों का पारस्परिक उद्देश्य
     कष्ट ईश्वर की परीक्षा, पापों की शुद्धि, और मोह-माया से मुक्ति के लिए होते हैं
  • कष्ट सहने की शक्ति
     भगवान भक्त को उसकी सहनशक्ति से अधिक कष्ट नहीं देते, और उन्हें पार पाने की शक्ति भी प्रदान करते हैं
  • कष्टों का स्वागत करें
     वे ईश्वर की इच्छा का हिस्सा हैं—भक्त को विनम्रता और समर्पण के साथ उन्हें स्वीकार करना चाहिए
  • भक्ति और विश्वास
     कठिन समय में भी भगवान पर पूर्ण विश्वास और भक्ति से मन को स्थिर रखें
  • सत्संग व साधना
     संतों का सत्संग और नियमित साधना-ध्यान मन को शांति देते हैं और व्यथा से उबारते हैं
  • आत्मा का ज्ञान
     स्वयं को शरीर से अलग आत्मा समझना चाहिए, क्योंकि आत्मा शारीरिक पीड़ा से अछूती रहती है
  • नाम जप का महत्व
     नाम जप में भाव और समर्पण हो तो उसमें अवश्य लाभ होता है, लेकिन केवल उच्च भाव से ही इसका फल प्राप्त होता है
  • क्रोध पर नियंत्रण
     क्रोध पर काबू पाने के लिए ध्यान, प्राणायाम, मौन, सकारात्मक सोच और क्षमाशीलता का अभ्यास आवश्यक है
  • सही-गलत की पहचान
     शास्त्रों (जैसे भगवद्गीता, रामायण) के अध्ययन से ही सही और गलत का वास्तविक ज्ञान होता है न कि सतही पढ़ाई से
  • अवसाद व आत्महत्या उत्प्रेरक
     मानसिक अवसाद, भय और असफलता आत्महत्या के मूल कारण हो सकते हैं—इस विषय पर संवेदनशीलता व उचित मार्गदर्शन आवश्यक

उनके प्रवचनों और भजनों का महत्त्व

  • धार्मिक ज्ञान का प्रचार: प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन लोगों को धर्म और भक्ति की सही समझ प्रदान करते हैं।
  • आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ाना: उनके भजन और प्रवचन से मनुष्य में आध्यात्मिक चेतना जागृत होती है।
  • मन को शांति और सुकून देना: भजन सुनने से मन शांत होता है और मानसिक तनाव कम होता है।
  • समाज में एकता और प्रेम फैलाना: उनके संदेश समाज में प्रेम, सद्भाव और एकता को बढ़ावा देते हैं।
  • साधारण भाषा में शिक्षाएं देना: उनके प्रवचन और भजन सरल भाषा में होते हैं, जिससे हर वर्ग के लोग उन्हें आसानी से समझ सकते हैं।
  • संसारिक समस्याओं से राहत दिलाना: उनके उपदेश जीवन की कठिनाइयों और मानसिक संघर्षों से निपटने में सहायक होते हैं।

दैनिक जीवन में प्रेमानंद जी की बातों को कैसे अपनाएँ?

प्रेमानंद जी के सदविचारविवरण
सत्य और ईमानदारी अपनाएँहर कार्य में सच बोलें और ईमानदारी से काम करें।
प्रेम और दया दिखाएँदूसरों के प्रति प्रेम और सहानुभूति रखें।
भक्ति और ध्यान करेंरोजाना भगवान की भक्ति और ध्यान में समय दें।
साधारण और सरल जीवन जियेंभौतिक वस्तुओं की चाह कम करें और सरल जीवन अपनाएँ।
दूसरों की सेवा करेंजरूरतमंदों की मदद करें और सेवा भाव रखें।
अहंकार और क्रोध से बचेंमन को शांत रखें और अहंकार व क्रोध को त्यागें।
सकारात्मक सोच रखेंजीवन की हर परिस्थिति में सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखें।

धार्मिक और सामाजिक कार्य | प्रेमानंद जी महाराज वृंदावन

  • भक्ति के साथ-साथ समाज सेवा को भी उन्होंने अपने जीवन का उद्देश्य बनाया।
  • उन्होंने गरीबों, बीमारों और जरूरतमंदों की मदद को सच्ची भक्ति का हिस्सा माना।
  • सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाकर लोगों को धर्म और नैतिकता का सही मार्ग दिखाया।
  • उनके प्रयासों से समाज में एकता, सद्भाव और आध्यात्मिक जागरूकता का प्रसार हुआ।

समाज सेवा और लोगों की मदद के लिए उनके प्रयास

  • समाज सेवा को जीवन का मुख्य उद्देश्य माना: प्रेमानंद जी महाराज ने समाज सेवा को अपनी जीवन यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया।
  • जरूरतमंदों की मदद में सदैव आगे रहे: वे हमेशा गरीबों, बीमारों और अनाथों की सहायता के लिए तत्पर रहते थे।
  • सेवा और सहारा का माध्यम बने: उन्होंने ज़रूरतमंदों को सहारा दिया और उन्हें सम्मानपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा दी।
  • समानता और भाईचारे का संदेश दिया: समाज में उन्होंने लोगों के बीच समानता और भाईचारे की भावना को प्रोत्साहित किया।
  • सच्चाई, प्रेम और सहयोग की शिक्षा दी: वे अपने प्रवचनों में हमेशा इन मूल्यों का महत्व समझाते थे।
  • समाज में एकता और सद्भावना बढ़ाई: उनके विचारों और कार्यों से समाज में शांति और सहयोग की भावना विकसित हुई।
  • लोगों को प्रेरित किया: उनके कार्यों से प्रभावित होकर कई लोग समाज सेवा के कार्यों से जुड़े और दूसरों की मदद के लिए आगे आए।

प्रेमानंद जी महाराज के सामाजिक सुधार पर विचार

प्रेमानंद जी महाराज के सामाजिक सुधारों का उद्देश्य समाज में समानता, भाईचारा और शांति फैलाना था। वे जात-पात और धार्मिक भेदभाव के खिलाफ थे और सभी को एकजुट करने का प्रयास करते थे। उन्होंने शिक्षा और नैतिकता को समाज सुधार का मूल आधार माना।

  1. महिलाओं और कमजोर वर्गों के अधिकारों का समर्थन किया: प्रेमानंद जी महाराज ने अपने विचारों में सभी वर्गों, विशेषकर महिलाओं और वंचितों के अधिकारों की रक्षा की बात की।
  2. प्रेम, सहिष्णुता और सेवा भाव की प्रेरणा दी: उन्होंने लोगों को एक-दूसरे से प्रेम करने, सहनशील बनने और सेवा भावना अपनाने की शिक्षा दी।
  3. समाज सुधार और विकास को बढ़ावा दिया: उनके विचारों और शिक्षाओं से समाज में सकारात्मक बदलाव और सुधार हुए।

जन-जन तक धर्म और भक्ति का संदेश पहुँचाना

भारत के एक प्रसिद्ध संत प्रेमानंद जी महाराज ने धर्म और भक्ति का संदेश लोगों तक पहुँचाने का कार्य बहुत ही सरल, प्रभावशाली और जन-सुलभ भाषा में किया। वे केवल मंदिरों या मंचों तक सीमित नहीं रहे, बल्कि सीधे लोगों के बीच जाकर उन्हें सच्ची भक्ति, ईश्वर के प्रति समर्पण और धर्म के मूल सिद्धांतों के बारे में बताया करते थे। उनका मानना था कि भक्ति केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसे अपने व्यवहार, सोच और कर्मों में भी उतारना चाहिए।

प्रमुख उपलब्धियां | प्रेमानंद महाराज का जीवन परिचय

प्रेमानंद जी महाराज की जीवन यात्रा केवल भक्ति तक सीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने समाज, धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त कीं। उनकी ये उपलब्धियाँ न केवल धार्मिक रूप से, बल्कि नैतिक और सामाजिक दृष्टि से भी प्रेरणादायक हैं।

1. प्रसिद्ध रामकथा वाचक बने

2. लाखों लोगों को भक्ति के मार्ग पर चलाया

3. समाज सेवा में सक्रिय योगदान

साहित्य और भजन रचना

  • प्रेमानंद जी महाराज ने भक्ति, साधना और श्रीकृष्ण प्रेम से जुड़े भजन और प्रवचन प्रस्तुत किए हैं।
  • उनका साहित्यिक योगदान मौखिक परंपरा में है, धर्म और प्रेम का संदेश फैलाते हैं।
  • भजन रचनाएँ भगवान श्रीकृष्ण, राधा रानी और भक्ति मार्ग की महिमा पर आधारित हैं।
  • भजन संगीतात्मक रूप से मनमोहक और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरे होते हैं।
  • प्रवचनों में श्रीमद्भागवत, रामचरितमानस और संत परंपरा से प्रेरणा लेते हैं।
  • उनके भजन YouTube पर उपलब्ध हैं, जिन्हें लाखों लोग सुनते हैं।

समाज में लोकप्रियता और मान्यता

उनकी सरल भाषा और जीवनोपयोगी उपदेशों के कारण वे समाज में बहुत लोकप्रिय हुए और लोगों का सम्मान अर्जित किया।

• प्रेमानंद जी महाराज अपने भावपूर्ण प्रवचनों और सरल जीवनशैली के कारण आम लोगों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हैं।
• भारत के अलावा अमेरिका, दुबई, नेपाल जैसे देशों में भी उनकी कथा-सेवाएं आयोजित होती हैं।
• वे बच्चों, युवाओं, महिलाओं और वृद्धों – सभी आयु वर्गों में समान रूप से पसंद किए जाते हैं।
• उनके प्रवचनों के वीडियो और भजन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लाखों लोगों द्वारा देखे और साझा किए जाते हैं।
• उन्हें विभिन्न धार्मिक आयोजनों और संस्थाओं से सम्मान व मान्यता प्राप्त हुई है।

धार्मिक संस्थानों की स्थापना या योगदान

  • प्रेमानंद जी ने कई धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्थानों के निर्माण में सहयोग और मार्गदर्शन दिया।
  • उन्होंने ऐसे स्थानों की स्थापना में मदद की जहाँ धार्मिक ज्ञान के साथ-साथ समाज सेवा (जैसे अन्नदान, चिकित्सा शिविर) भी हो सके।
  • वे अनेक संस्थाओं में जाकर कथा करते हैं, जिससे उन संस्थाओं को आध्यात्मिक और आर्थिक दोनों प्रकार से सहयोग मिलता है।
  • उन्होंने भारतीय संत परंपरा और वैष्णव भक्ति मार्ग को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य किया।

प्रेमानंद महाराज के विचार और शिक्षाएं

प्रेमानंद जी महाराज भारत के एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु, संत और राम कथा वाचक हैं। वे अपने सरल जीवन, मधुर वाणी और भावपूर्ण कथाओं के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने हजारों लोगों को भक्ति और अच्छे आचरण की राह दिखाई है। उनके विचार सीधे दिल को छू जाते हैं, इसलिए वे बच्चों और युवाओं में भी बहुत लोकप्रिय हैं।

1. ईश्वर की भक्ति – जीवन का आधार

  • प्रेमानंद महाराज मानते हैं कि जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य ईश्वर की भक्ति है।
  • वे कहते हैं: “भगवान के नाम का जप करने से मन की अशांति दूर होती है।”
  • वे श्रीराम और श्रीकृष्ण की भक्ति को सबसे श्रेष्ठ मानते हैं।

 उदाहरण: कथा में वे अक्सर कहते हैं – “राम नाम ही जीवन की नैया पार कर सकता है।”

2. गुरु का महत्व

  • प्रेमानंद जी का विश्वास है कि गुरु के बिना जीवन अधूरा है।
  • वे कहते हैं: “गुरु ही हमें सच्चे मार्ग पर चलना सिखाता है।”
  • उनके अनुसार सच्चे गुरु की शरण में जाकर ही आत्मा की शुद्धि होती है।

3. संस्कार और आचरण

  • महाराज जी बच्चों को अच्छे संस्कार अपनाने की शिक्षा देते हैं।
  • वे कहते हैं – “सत्य बोलो, माता-पिता का आदर करो, और दूसरों की मदद करो।
  • उनका मानना है कि अच्छे कर्म ही इंसान को बड़ा बनाते हैं।

 4. साधारण जीवन, ऊँचे विचार

  • वे दिखावे और ज्यादा भौतिक सुखों के खिलाफ हैं।
  • उनका संदेश है: “सादा जीवन और संतोष ही सच्चा सुख है।
  • प्रेमानंद जी खुद बहुत सादगी से रहते हैं – न जूते पहनते हैं, न आलीशान वस्त्र।

सरल जीवन और सच्चाई पर जोर

  • सरल जीवन का पालन: वे खुद बिना जूते-चप्पल, साधारण वस्त्र और साधारण भोजन से जीवन जीते हैं।
  • दिखावे से दूरी: वे मानते हैं कि भक्ति और जीवन में दिखावे का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
  • सच्चाई की शक्ति: महाराज जी कहते हैं कि सच्चाई से व्यक्ति का आत्मबल बढ़ता है और भगवान भी उसकी सहायता करते हैं। 
  • ईमानदारी सबसे बड़ा गुण: वे बच्चों को जीवन में ईमानदार बने रहने की सलाह देते हैं, चाहे परीक्षा हो या जीवन की कोई कठिन परिस्थिति। 
  • मन की शुद्धि जरूरी: उनका मानना है कि सच्चा इंसान वही है जिसके मन में छल-कपट नहीं होता। 
  • भक्ति में भाव और सच्चाई: वे कहते हैं कि भगवान को दिखावा नहीं, सच्चे भाव और सच्ची नीयत पसंद है।

भक्ति, सेवा और सदाचार का संदेश

प्रेमानंद जी का जीवन और उपदेश हमें यह सिखाते हैं कि सच्ची भक्ति केवल मंदिर जाने या पूजा-पाठ करने से नहीं होती, बल्कि दिल से भगवान को स्मरण करने से होती है। उनके अनुसार, ज़रूरतमंदों की सेवा करना ही सच्ची ईश्वर भक्ति है, क्योंकि जब हम किसी दुखी व्यक्ति की मदद करते हैं, तो वास्तव में हम भगवान की सेवा करते हैं।

उन्होंने सदैव सदाचार, यानी अच्छा व्यवहार, विनम्रता और ईमानदारी को जीवन का मूल मंत्र बताया। उनका मानना था कि यदि किसी व्यक्ति का मन साफ़ हो, व्यवहार अच्छा हो और सोच सकारात्मक हो, तो वही व्यक्ति वास्तव में भगवान के सबसे करीब होता है। प्रेमानंद जी ने यह भी ज़ोर देकर कहा कि बच्चों को बचपन से ही सेवा भाव और सदाचार सिखाना चाहिए, ताकि वे न केवल अच्छे इंसान बनें, बल्कि समाज के जिम्मेदार और संवेदनशील नागरिक भी बन सकें।

प्रेमानंद जी महाराज के संस्कृति पर विचार

प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, भारतीय संस्कृति जीवन के मूल्यों, संस्कारों और सदाचार पर आधारित है। वे संस्कृति को केवल परंपरा नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला मानते हैं। उन्होंने युवाओं को अपनी जड़ों से जुड़ने, बड़ों का सम्मान करने और भक्ति व सेवा भाव अपनाने की प्रेरणा दी।

प्रेमानंद जी महाराज के प्रेरणादायक विचार

• सच्ची भक्ति वह है, जो मन से और सेवा के साथ की जाए।
• सेवा करने वाला हाथ, केवल प्रार्थना करने वाले होंठों से श्रेष्ठ होता है।
• जीवन में सादगी, संयम और सदाचार सबसे बड़ी पूंजी है।
• हर जीव में ईश्वर का अंश है, इसलिए सभी के साथ प्रेम और करुणा से व्यवहार करो।
• बड़ों का सम्मान और गुरु की सेवा, आध्यात्मिक उन्नति की पहली सीढ़ी है।
• दुख में भी ईश्वर पर भरोसा बनाए रखना ही सच्ची आस्था है।

जीवन में संतोष और शांति की शिक्षा

प्रेमानंद जी महाराज का यह प्रमुख संदेश रहा है कि सच्चा सुख ना तो धन में है, ना पद में, बल्कि “संतोष” और “आंतरिक शांति” में है। उन्होंने अपने प्रवचनों और भजनों के माध्यम से लोगों को यह समझाया कि जीवन में अगर मन स्थिर और संतुष्ट है, तो सबसे बड़ी प्राप्ति हो जाती है।

संतोष की शिक्षा:

  • संतोष का अर्थ: प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, संतोष का मतलब है – जो हमारे पास है, उसमें प्रसन्न रहना और ईश्वर की कृपा में विश्वास रखना।
  • लालच से दूर रहने की प्रेरणा: वे कहते हैं कि इच्छाएँ अनंत होती हैं, लेकिन मन की शांति तब मिलती है जब हम आवश्यकता और लालच में अंतर समझते हैं।
  • संतोष = मानसिक स्वतंत्रता: संतोष हमें आंतरिक स्वतंत्रता देता है, जिससे हम दुख, ईर्ष्या, और असंतोष से मुक्त हो सकते हैं।
  • भगवद् भक्ति में संतोष का महत्व: भक्ति तभी फलदायक होती है जब मन में संतोष हो, क्योंकि असंतोष हमें विचलित करता है और ईश्वर से दूर ले जाता है।

शांति की शिक्षा:

  • आंतरिक शांति ही सच्ची संपत्ति है: प्रेमानंद जी के अनुसार, अगर व्यक्ति का मन शांत है, तो बाहरी दुनिया के कितने भी संकट उसे विचलित नहीं कर सकते।
  • शांति और धर्म का संबंध: उन्होंने बताया कि धर्म और भक्ति का अंतिम लक्ष्य आत्मिक शांति की प्राप्ति है।
  • क्रोध, द्वेष और चिंता से दूर रहने की प्रेरणा: शांति पाने के लिए उन्होंने मन को ईश्वर में स्थिर करने और नकारात्मक भावनाओं से बचने की सलाह दी।
  • साधना और सेवा का माध्यम: उन्होंने कहा कि भक्ति, सेवा और ध्यान के माध्यम से मन में शांति लाई जा सकती है।

प्रेमानंद जी महाराज किडनी का रोग

प्रेमानंद जी महाराज को किडनी (गुर्दे) का रोग था, जो एक गंभीर और दीर्घकालीन बीमारी होती है। गुर्दे शरीर के विषाक्त पदार्थों को निकालने और रक्त को शुद्ध करने का कार्य करते हैं। जब गुर्दे ठीक से काम नहीं करते, तो शरीर में विषैले तत्व जमा होने लगते हैं, जिससे स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है। प्रेमानंद जी महाराज को यह रोग कई वर्षों तक परेशान करता रहा, जिससे उन्हें शारीरिक तकलीफें और कमजोरी महसूस होती रही।

इस बीमारी के बावजूद, उनकी आस्था और सेवा भाव में कोई कमी नहीं आई। वे अपने कष्टों को ईश्वर की परीक्षा समझकर धैर्य और सकारात्मक सोच बनाए रखे।

उनकी मानसिक शक्ति और आध्यात्मिक दृढ़ता ने उन्हें कठिन समय में भी प्रेरित किया।

मेडिकल उपचार के साथ उन्होंने अपने अनुयायियों को धैर्य, संयम और ईश्वर पर विश्वास रखने की शिक्षा दी।

  • बीमारी के बावजूद उनका समर्पण और लोगों के प्रति प्रेम उन्हें एक आदर्श संत बनाता है।

किडनी रोग की पुष्टि कब हुई? महाराज जी को कहाँ इलाज के लिए भर्ती किया गया?

प्रेमानंद जी महाराज को किडनी रोग की पुष्टि तब हुई जब उनकी सेहत अचानक खराब होने लगी। डॉक्टरी जांच के बाद यह पता चला कि उनकी किडनी गंभीर स्थिति में है और उन्हें विशेष इलाज की आवश्यकता है। इसके बाद उन्हें बेहतर उपचार के लिए एक प्रमुख अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहाँ डॉक्टरों ने उनकी किडनी की समस्या का विस्तार से इलाज शुरू किया और नियमित रूप से उनकी जांच की। इलाज के दौरान डायलिसिस जैसी प्रक्रिया भी अपनाई गई ताकि उनकी सेहत में सुधार हो सके। इस कठिन समय में उनके परिवार और अनुयायियों ने भी पूरी सहायता और समर्थन दिया।

1) महाराज जी को कहाँ इलाज के लिए भर्ती किया गया?

महाराज जी को इलाज के लिए एक प्रमुख निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहाँ किडनी रोग के विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम ने उनका उपचार किया।
वहाँ उन्हें डायलिसिस सहित सभी आवश्यक चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान की गईं।

2) इलाज के बाद उनका स्वास्थ्य अब कैसा है?

इलाज के बाद प्रेमानंद जी महाराज का स्वास्थ्य पहले से बेहतर हुआ है, लेकिन वे अभी भी चिकित्सकीय निगरानी में हैं।  डॉक्टर्स द्वारा नियमित डायलिसिस और देखरेख के चलते उनकी स्थिति स्थिर बनी हुई है, और वे धीरे-धीरे सामान्य जीवन की ओर लौट रहे हैं।

प्रेमानंद जी महाराज से कैसे मिल सकते हैं?

प्रेमानंद जी महाराज से मिलने के लिए आप उनके आश्रम या सत्संग कार्यक्रमों में जा सकते हैं। उनका मुख्य आश्रम वृंदावन, उत्तर प्रदेश में स्थित है, जहाँ प्रतिदिन भक्तों के लिए दर्शन और सत्संग होते हैं।

उनसे कब मिलें | दैनिक समय (Daily Timings):

  • प्रेमानंद जी महाराज के दर्शन के लिए वृंदावन के राधाकेली कुंज आश्रम जाना होगा।
  • महाराज जी रोजाना रात 2:30 बजे दर्शन के लिए आते हैं, हजारों श्रद्धालु उपस्थित होते हैं।
  • दर्शन के लिए टोकन प्रणाली का पालन किया जाता है, सुबह 9:30 बजे टोकन मिलते हैं।
  • एकांत में मुलाकात के लिए सुबह 6:30 बजे तक आश्रम पहुंचना आवश्यक है।
  • रात के दर्शन के लिए 2:30 बजे तक आश्रम पहुंचना चाहिए।
  • आश्रम में फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की अनुमति नहीं है।
  • आधार कार्ड या पहचान पत्र लाना अनिवार्य है, टोकन प्राप्त करने के लिए।
  • महाराज जी आमतौर पर सत्संग के बाद भक्तों से मिलने के लिए समय निकालते हैं।
  • दर्शन के लिए आपको पहले आश्रम से संपर्क कर अनुमति लेना चाहिए, क्योंकि वे बहुत व्यस्त रहते हैं और कभी-कभी प्रवचन या साधना में लगे रहते हैं।
  • विशेष धार्मिक त्योहारों या कार्यक्रमों के दौरान महाराज जी भक्तों से मिलने में अधिक समय देते हैं।

प्रेमानंद जी महाराज से मिलने के लिए आपको कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना होता है, क्योंकि वे एक प्रतिष्ठित संत हैं और उनके दर्शनों हेतु बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। नीचे सरल तरीके से बताया गया है कि आप उनसे कैसे मिल सकते हैं:

तरीकाविवरण
धार्मिक आयोजनों में भाग लेंप्रेमानंद जी महाराज देशभर में प्रवचन व कथा करते हैं। उनके सोशल मीडिया पेज से कार्यक्रमों की जानकारी लेकर आप वहाँ जा सकते हैं।
वृंदावन आश्रम (मुख्य स्थान)उनका मुख्य आश्रम वृंदावन (उत्तर प्रदेश) में स्थित है। यहाँ नियमित सत्संग, भजन और कथा होती है जहाँ दर्शन संभव है।
पहले से संपर्क करेंआश्रम जाने से पहले फोन नंबर, वेबसाइट या फेसबुक पेज से नियम व समय की जानकारी लेना उचित होता है।
संयम और श्रद्धा रखेंमहाराज जी अधिकतर ध्यान व प्रवचनों में व्यस्त रहते हैं, इसलिए मिलने के लिए धैर्य और श्रद्धा आवश्यक है।
स्वयंसेवक के रूप में जुड़ेंआश्रम में सेवा कार्य से जुड़ने पर मिलने की संभावना बढ़ सकती है। कई भक्त इसी माध्यम से उनके सान्निध्य में आते हैं।

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निष्कर्ष | Conclusion

प्रेमानंद जी महाराज एक ऐसे संत हैं जिनका जीवन भक्ति, सेवा और सच्चाई का प्रत्यक्ष उदाहरण है। उनकी शिक्षाएं केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और मानवीय मूल्यों से भी जुड़ी हुई हैं। उन्होंने लोगों को प्रेम, सहनशीलता, और समर्पण के रास्ते पर चलने की प्रेरणा दी। उनके दर्शन मात्र से लोगों को मानसिक शांति, आत्मबल और नई दिशा मिलती है।
उनका सरल जीवन, आध्यात्मिक विचार और समाज सेवा के प्रति समर्पण आज की पीढ़ी के लिए एक प्रकाशपुंज की तरह है। प्रेमानंद जी महाराज का व्यक्तित्व न केवल धार्मिक श्रद्धालुओं के लिए, बल्कि हर इंसान के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

प्रेमानंद जी महाराज से मिलने से पहले किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

महाराज जी से मिलने के लिए पूर्व अनुमति या संपर्क आवश्यक है, ताकि अनावश्यक भीड़ या विघ्न न हो। दर्शन के समय मौन, भक्ति और संयम बनाए रखना जरूरी होता है। कोई भी निजी आग्रह या दिखावा न करें और केवल भक्ति भाव से गुरु चरणों में उपस्थित हों

लोगों को प्रेमानंद जी महाराज से मिलने की इच्छा क्यों होती है?

उनके सान्निध्य में एक विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव होता है, जो लोगों को मानसिक शांति और प्रेरणा प्रदान करती है। कई श्रद्धालु उन्हें गुरु रूप में देखते हैं और उनके दर्शन मात्र से स्वयं को धन्य मानते हैं। उनकी मुस्कान, वाणी और उपदेश लोगों को आध्यात्मिक बल देते हैं

प्रेमानंद जी महाराज किस कारण प्रसिद्ध हैं?

प्रेमानंद जी महाराज अपनी आध्यात्मिक शिक्षाओं, सादा जीवन और सेवाभाव के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने सच्ची भक्ति, सदाचार, सकारात्मक सोच और जरूरतमंदों की सेवा को जीवन का मूल उद्देश्य बताया। उनकी वाणी और जीवनशैली ने लाखों लोगों को धर्म, नैतिकता और मानवता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया है।

प्रेमानंद जी महाराज की प्रमुख शिक्षाएँ क्या थी?

उन्होंने सिखाया कि सच्ची भक्ति सेवा और सद्भावना में है। उनकी प्रमुख शिक्षाएँ थीं – सादा जीवन, ईमानदारी, सेवा भाव, प्रेम, दया, और मन की शुद्धता।

प्रेमानंद जी बच्चों की परवरिश को लेकर क्या विचार रखते थे?

उनका मानना था कि बच्चों को बचपन से ही सेवा, संयम, सदाचार और नैतिकता की शिक्षा दी जानी चाहिए ताकि वे अच्छे नागरिक और संतुलित व्यक्तित्व के धनी बनें।

प्रेमानंद जी महाराज का दैनिक आहार क्या होता है?

प्रेमानंद जी महाराज सादा, सात्विक और शुद्ध शाकाहारी भोजन करते हैं। उनका आहार संयमित होता है, जिसमें स्वाद से अधिक शुद्धता और पवित्रता का ध्यान रखा जाता है। वे भोजन को भी एक साधना मानते हैं और शरीर को सेवा और साधना का माध्यम मानकर संतुलित आहार ग्रहण करते हैं।

प्रेमानंद जी महाराज की वर्तमान में उम्र कितनी है?

प्रेमानंद महाराज की उम्र वर्तमान में 56 वर्ष है।

प्रेमानंद जी महाराज की पत्नी का नाम क्या है?

प्रेमानंद महाराज की पत्नी का नाम सास्वती आचार्य है। वह पेशे से एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और उनके दो बेटे हैं।

 

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Authored by, Amay Mathur | Senior Editor

Amay Mathur is a business news reporter at Chegg.com. He previously worked for PCMag, Business Insider, The Messenger, and ZDNET as a reporter and copyeditor. His areas of coverage encompass tech, business, strategy, finance, and even space. He is a Columbia University graduate.