Quick Summary
प्रथम विश्व युद्ध (World War I) एक वैश्विक युद्ध था जो 28 जुलाई 1914 से लेकर 11 नवंबर 1918 तक लड़ा गया। यह युद्ध मुख्य रूप से यूरोप में लड़ा गया लेकिन इसके प्रभाव पूरी दुनिया में महसूस किए गए। इसे “महायुद्ध” (The Great War) और “सभी युद्धों को समाप्त करने वाला युद्ध” (The War to End All Wars) भी कहा जाता था। प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) की शुरुआत ऑस्ट्रिया-हंगरी के आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या से हुई थी, लेकिन इसके पीछे और भी कई गहरे कारण थे। प्रमुख कारणों में बढ़ता हुआ राष्ट्रवाद, साम्राज्यवाद की होड़, सैन्य शक्ति का विस्तार और विभिन्न देशों के बीच बने जटिल गठबंधन शामिल थे।
प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी, ओटोमन साम्राज्य, बुल्गारिया और ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस, रूस, इटली, जापान के बीच हुआ। नई सैन्य तकनीक के कारण ये युद्ध विनाशकारी साबित हुआ। युद्ध समाप्त होने तक 17 मिलियन से अधिक लोग – सैनिक और नागरिक दोनों – मारे जा चुके थे।
प्रथम विश्व युद्ध सुनते ही हमारे मन में कई तरह के सवाल आने लगते हैं, जैसे प्रथम विश्व युद्ध कब हुआ, प्रथम विश्व युद्ध क्यों हुआ, प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम क्या रहे आदि। इन सभी सवालों का जवाब इस लेख में विस्तार पूर्वक मिल जाएगा। प्रथम विश्व युद्ध क्या है?
प्रथम विश्व युद्ध, जिसे महान युद्ध के नाम से भी जाना जाता है, दो मुख्य गठबंधनों के बीच लड़ा गया था:
First World War Date- 1914 में शुरू हुआ और 1918 तक चला, जिसने इतिहास की दिशा बदल दी और दुनिया पर एक अमिट छाप छोड़ी। प्रथम विश्व युद्ध क्यों हुआ, इसके पीछे कई कारण बताए जाते हैं।

प्रथम विश्व युद्ध का तत्काल ट्रिगर 28 जून, 1914 को साराजेवो में आर्चड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड(Archduke Franz Ferdinand) और उनकी पत्नी सोफी की हत्या थी। यह हत्या बोस्नियाई सर्ब राष्ट्रवादी गैवरिलो प्रिंसिप ने की, जिससे ऑस्ट्रिया-हंगरी और सर्बिया के बीच कूटनीतिक संकट और अल्टीमेटम की श्रृंखला शुरू हुई।
| क्रमांक | कारण | विवरण |
|---|---|---|
| 1 | फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या | 28 जून 1914 को सर्बिया के एक राष्ट्रवादी द्वारा ऑस्ट्रिया-हंगरी के युवराज की हत्या, जिससे युद्ध की चिंगारी भड़की |
| 2 | राष्ट्रवाद | यूरोप में विभिन्न देशों में अपनी जाति, संस्कृति और प्रभुत्व को सर्वोच्च मानने की भावना |
| 3 | साम्राज्यवाद | औद्योगिक राष्ट्रों के बीच उपनिवेशों को हथियाने की होड़, जिससे तनाव बढ़ा |
| 4 | सैन्यीकरण | देशों ने अपने सैन्य बलों को तेज़ी से बढ़ाया और हथियारों की होड़ शुरू की |
| 5 | गठबंधन प्रणाली | यूरोप में दो मुख्य गुट बने – त्रिगुटीय संघ (Triple Alliance) और त्रि-समझौता (Triple Entente), जिनकी वजह से स्थानीय विवाद वैश्विक युद्ध में बदल गया |
ऑस्ट्रिया-हंगरी ने सर्बिया से हत्या की साजिश में शामिल होने के लिए सख्त कदम उठाने की मांग की। सर्बिया का आंशिक अनुपालन अपर्याप्त माना गया, और 28 जुलाई, 1914 को युद्ध की घोषणा की गई।
कुछ ही हफ्तों में रूस सर्बिया के पक्ष में आ गया, जर्मनी ने रूस और फ्रांस के खिलाफ युद्ध की घोषणा की, और ब्रिटेन बेल्जियम की रक्षा में शामिल हो गया। युद्ध का माहौल पूरे यूरोप में फैल गया।
जून 1914 में आर्चड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या ने घटनाओं की एक झड़ी शुरू की, जिसने दुनिया को अंतरराष्ट्रीय अराजकता में डाल दिया। यूरोपीय शक्तियों के गठबंधन और प्रतिद्वंद्विता ने ऑस्ट्रिया-हंगरी और सर्बिया के संघर्ष को जल्दी ही पूर्ण युद्ध में बदल दिया, जिसमें अधिकांश दुनिया शामिल हो गई।
सर्बिया के समर्थन में रूस की एकजुटता ने जर्मनी को रूस पर युद्ध की घोषणा करने के लिए प्रेरित किया, और फ्रांस भी रूस के साथ शामिल हुआ। जर्मनी द्वारा बेल्जियम पर आक्रमण करने से ब्रिटेन युद्ध में शामिल हुआ। जल्द ही, यह संघर्ष अफ्रीका, एशिया और प्रशांत क्षेत्रों में फैल गया।
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सैन्य सहयोग की विशेषता राष्ट्रों के बीच गठबंधनों के गठन से थी, जिनमें से प्रत्येक अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करने और रणनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने की कोशिश कर रहा था। इन गठबंधनों ने युद्ध अलग दिशा देने और इसके रिजल्ट्स को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
| क्रमांक | पक्ष | शामिल देश |
|---|---|---|
| 1 | मित्र राष्ट्र (Allied Powers) | फ्रांस, ब्रिटेन, रूस, सर्बिया, बेल्जियम, जापान, इटली (1915 से), अमेरिका (1917 से), रोमानिया, ग्रीस आदि |
| 2 | मध्य शक्तियाँ (Central Powers) | जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी, ऑटोमन साम्राज्य (तुर्की), बुल्गारिया |
यह युद्ध दो मुख्य गुटों के बीच लड़ा गया:
| युद्ध | तारीख |
| मॉन्स की लड़ाई | Battle of Mons | 23 अगस्त 1914 |
| टैननबर्ग की लड़ाई | Battle of Tannenberg | 26 अगस्त – 30 अगस्त 1914 |
| मार्ने की पहली लड़ाई | First Battle of the Marne | 6 सितंबर – 12 सितंबर 1914 |
| यप्रेस की पहली लड़ाई | First Battle of Ypres | 19 अक्टूबर – 22 नवंबर 1914 |
| डॉगर बैंक की लड़ाई | Battle of Dogger Bank | 24 जनवरी 1915 |
| वर्डन की लड़ाई | Battle of Verdun | 21 फरवरी – 18 दिसंबर 1916 |
| गैलीपोली की लड़ाई | Battle of Gallipoli | 19 फरवरी 1915 – 9 जनवरी 1916 |
| जटलैंड की लड़ाई | Battle of Jutland | 31 मई – 1 जून 1916 |
| सोम्मे की लड़ाई | Battle of the Somme | 1 जुलाई – 13 नवंबर 1916 |
| इसोंजो की लड़ाई | Battles of the Isonzo | 23 जून 1915 – 24 अक्टूबर 1917 |
| यप्रेस की तीसरी लड़ाई | Third Battle of Ypres | 31 जुलाई – 6 नवंबर 1917 |
| विमी रिज की लड़ाई | Battle of Vimy Ridge | 9 अप्रैल – 12 अप्रैल 1917 |
| जून आक्रामक | June Offensive | 1 जुलाई – 4 जुलाई 1917 |
| कैपोरेटो की लड़ाई | Battle of Caporetto | 24 अक्टूबर – 19 दिसंबर 1917 |
| कैम्ब्राई की लड़ाई | Battle of Cambrai | 20 नवंबर – 5 दिसंबर 1917 |
| सोम्मे की दूसरी लड़ाई | Second Battle of the Somme | 21 मार्च – 5 अप्रैल 1918 |
| लुडेनडॉर्फ आक्रामक | Ludendorff Offensive | 21 मार्च – 18 जुलाई 1918 |
| मार्ने की दूसरी लड़ाई | Second Battle of the Marne | 15 जुलाई – 18 जुलाई 1918 |
| एमिएन्स की लड़ाई | Battle of Amiens | 8 अगस्त – 11 अगस्त 1918 |
| म्यूज़-आर्गोन की लड़ाई | Battles of the Meuse-Argonne | 26 सितंबर – 11 नवंबर 1918 |
| कैम्ब्राई की लड़ाई | Battle of Cambrai | 27 सितंबर – 11 अक्टूबर 1918 |
| मॉन्स की लड़ाई | Battle of Mons | 11 नवंबर 1918 |

प्रथम विश्व युद्ध में दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों के देशों की एक जटिल श्रृंखला शामिल थी। प्रमुख भाग लेने वाले देशों में को मोटे तौर पर दो विरोधी गठबंधनों में बांटा जा सकता है: मित्र राष्ट्र (जिसे एंटेंटे पॉवर्स के रूप में भी जाना जाता है) और केंद्रीय शक्तियाँ।
प्रथम विश्व युद्ध को कई चरणों में विभाजित किया जा सकता है। हाँलाकि यहां हम इसे तीन चरणों में बाट रहे हैं।

वर्साय की संधि उन शांति संधियों में से एक थी जिसने आधिकारिक तौर पर प्रथम विश्व युद्ध को समाप्त किया। इस पर 28 जून, 1919 को फ्रांस के वर्साय के महल के दर्पण कक्ष में हस्ताक्षर किए गए थे। यहाँ वर्साय की संधि के कुछ मुख्य पहलू दिए गए हैं:
प्रथम विश्व युद्ध में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण थी, क्योंकि यह तब ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा था और मित्र राष्ट्रों के युद्ध प्रयासों में काफी जनशक्ति, संसाधन और सहायता प्रदान करता था। यहाँ भारत की भागीदारी के कुछ प्रमुख पहलू बता रहे हैं:

1. साम्राज्यवाद (Imperialism)
Pratham Vishwa Yudh से पहले अफ्रीका और एशिया के क्षेत्रों में कच्चे माल की प्रचुरता ने यूरोपीय शक्तियों के बीच उपनिवेशवाद की प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया। जर्मनी और इटली जब इस उपनिवेशवादी दौड़ में शामिल हुए, तब तक अधिकांश क्षेत्र पहले से ही ब्रिटेन और फ्रांस के नियंत्रण में थे। इससे निराश होकर जर्मनी और इटली ने दूसरे देशों के उपनिवेशों को बलपूर्वक छीनने की नीति अपनाई।
मोरक्को और बोस्निया संकटों ने इंग्लैंड और जर्मनी के बीच तनाव को और बढ़ाया।
जर्मनी द्वारा प्रस्तावित बर्लिन-बगदाद रेलमार्ग योजना ने फ्रांस, रूस और इंग्लैंड के विरोध को आमंत्रित किया, जिससे परस्पर संबंधों में कटुता आई और युद्ध का माहौल बना।
2. सैन्यवाद (Militarism)
20वीं सदी की शुरुआत में यूरोपीय देशों के बीच हथियारों की दौड़ तेज हो गई। 1914 तक जर्मनी ने सैन्य निर्माण में भारी वृद्धि की, वहीं ब्रिटेन ने अपनी नौसेना को और मज़बूत किया।
1911 में आंग्ल-जर्मन नौसैनिक प्रतिस्पर्धा के चलते ‘अगादिर संकट’ उत्पन्न हुआ, जिसे सुलझाने के प्रयास असफल रहे।
1912 में जर्मनी ने विशाल युद्धपोत ‘इम्प रेटर’ का निर्माण किया, जिससे इंग्लैंड और जर्मनी के बीच दुश्मनी और बढ़ गई।
3. राष्ट्रवाद (Nationalism)
राष्ट्रवाद ने भी युद्ध को भड़काने में अहम भूमिका निभाई। जर्मनी और इटली का एकीकरण इसी भावना के आधार पर हुआ। बाल्कन क्षेत्र में राष्ट्रवाद बहुत प्रबल था, जहाँ के लोग तुर्की साम्राज्य से स्वतंत्र होना चाहते थे।
बोस्निया और हर्जेगोविना के स्लाविक लोग ऑस्ट्रिया-हंगरी से अलग होकर सर्बिया में शामिल होना चाहते थे, जिससे क्षेत्रीय तनाव गहरा गया।
रूस ने सर्वस्लाववाद (Pan-Slavism) आंदोलन का समर्थन किया, ताकि स्वतंत्र स्लाव राज्य उसके प्रभाव में आ जाएँ। इससे रूस और ऑस्ट्रिया-हंगरी के बीच संबंध और खराब हुए।
इसी तरह, सर्वजर्मन आंदोलन जैसे अन्य राष्ट्रवादी आंदोलनों ने भी अंतरराष्ट्रीय संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया।
सन् 1890 में जर्मनी के सम्राट विल्हेम द्वितीय ने एक नई अंतर्राष्ट्रीय नीति अपनाई, जिसका उद्देश्य जर्मनी को एक वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करना था। इस नीति के चलते अन्य राष्ट्रों ने जर्मनी को एक संभावित खतरे के रूप में देखना शुरू कर दिया, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्थिरता प्रभावित हुई।
यूरोप के विभिन्न देशों ने सुरक्षा के उद्देश्य से आपसी रक्षा समझौते किए। इनका अर्थ यह था कि यदि किसी एक देश पर हमला होता है, तो उसके सहयोगी देश उसकी रक्षा के लिए युद्ध में शामिल हो जाएँगे।
इन समझौतों के परिणामस्वरूप यूरोप दो विरोधी गुटों में बँट गया, जिसने युद्ध की स्थिति को और भी जटिल बना दिया।
प्रथम विश्व युद्ध क्यों हुआ इसके कारण और परिणाम बहुआयामी और दूरगामी हैं, जो राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आयामों में फैले हुए हैं। यहाँ हम प्रथम विश्व युद्ध के कारण और प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम का एक संक्षिप्त अवलोकन दिया गया है:
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प्रथम विश्व युद्ध मानव इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसने राष्ट्रों, समाजों और वैश्विक राजनीति को नया रूप दिया। इसका प्रभाव महाद्वीपों में गूंजता रहा, और इसने अभूतपूर्व विनाश, जीवन की हानि और गहन सामाजिक परिवर्तन की विरासत को पीछे छोड़ दिया। जैसे-जैसे युद्ध समाप्त होने लगा, दुनिया ने नई भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के उद्भव, पुराने साम्राज्यों के विघटन और राष्ट्र संघ के जन्म को देखा, जो संयुक्त राष्ट्र का अग्रदूत था, जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना और भविष्य के संघर्षों को रोकना था। हालांकि, युद्ध खत्म होने के बाद भी प्रथम विश्व युद्ध क्यों हुआ, इसका कई देश के सौनिक सौनिकों को पता नहीं चल पाया।
इसकी शुरुआत ऑस्ट्रिया-हंगरी के सिंहासन के उत्तराधिकारी आर्चड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की बोस्निया में गैवरिलो प्रिंसिप द्वारा हत्या से हुई थी। प्रथम विश्व युद्ध के मुख्य कारण देशों के बीच गठबंधन, सैन्यवाद, राष्ट्रवाद, साम्राज्यवाद, गुप्त कूटनीति और अंतर्राष्ट्रीयतावाद थे।
प्रथम विश्व युद्ध में मुख्य रूप से दो गुटों के बीच लड़ाई हुई थी:
मित्र राष्ट्र: ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, इटली और बाद में संयुक्त राज्य अमेरिका।
केंद्रीय शक्तियां: जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी, ऑटोमन साम्राज्य और बुल्गारिया।
इस युद्ध में केंद्रीय शक्तियों की हार हुई थी।
द्वितीय विश्व युद्ध के कई कारण थे, लेकिन सबसे प्रमुख कारणों में से एक प्रथम विश्व युद्ध के बाद की वर्साय संधि थी। इस संधि के तहत जर्मनी पर बहुत कठोर शर्तें थोपी गई थीं, जिसके कारण जर्मनी में आर्थिक मंदी और लोगों में असंतोष बढ़ गया था।
प्रथम विश्व युद्ध 28 जुलाई, 1914 को शुरू हुआ था।
प्रथम विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों (Allied Powers) ने जीत हासिल की थी। इस समूह में ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, अमेरिका (1917 से) और अन्य देश शामिल थे। 1918 में जर्मनी और उसकी सहयोगी मध्य शक्तियाँ (Central Powers) हार गईं और जर्मनी को वर्साय की संधि (Treaty of Versailles) के तहत कठोर शर्तों को स्वीकार करना पड़ा।
गाव्रिलो प्रिंसिप (Gavrilo Princip)
वह एक सर्ब राष्ट्रवादी संगठन ‘ब्लैक हैंड’ (Black Hand) का सदस्य था।
28 जून 1914 को उसने ऑस्ट्रिया-हंगरी के युवराज आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड और उनकी पत्नी की हत्या कर दी थी। यह घटना प्रथम विश्व युद्ध की चिंगारी बनी, क्योंकि इसके बाद ऑस्ट्रिया-हंगरी ने सर्बिया पर हमला कर दिया और धीरे-धीरे यूरोप के अधिकांश देश युद्ध में शामिल हो गए।
Authored by, Aakriti Jain
Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.
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