नर्मदा बचाओ आंदोलन

नर्मदा बचाओ आंदोलन क्या है? 1985 से 2017

Published on June 9, 2025
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नर्मदा बचाओ आंदोलन

Quick Summary

  • नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) एक सामाजिक आंदोलन है जिसका उद्देश्य नर्मदा नदी पर बांधों के निर्माण का विरोध करना है।
  • यह आंदोलन 1985 में शुरू हुआ था।
  • इसका नेतृत्व मेधा पाटकर और बाबा आमटे जैसे कार्यकर्ताओं ने किया था।
  • इस आंदोलन में स्थानीय जनजातियाँ, किसान, पर्यावरणविद और मानवाधिकार कार्यकर्ता शामिल थे।

Table of Contents

नर्मदा बचाओ आंदोलन भारत में एक महत्वपूर्ण आंदोलन था, जो 1985 से 2017 तक चला। आंदोलन का नेतृत्व मेधा पाटकर और बाबा आमटे जैसे कार्यकर्ताओं ने किया था। आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था नर्मदा नदी पर बन रहे बांध (सरदार सरोवर बांध) के विरोध में लोगों को जोड़ना और नदी के आसपास के स्थानों पर रहने वाले लोगों के हक की रक्षा करना।

इस आंदोलन के चलते बहुत से लोगों को उनके गाँवों से बाहर निकाला गया। जिनके घर सरदार सरोवर बांध बनने के चलते डूब गए। नर्मदा बचाओ आंदोलन मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, और महाराष्ट्र के क्षेत्रों में नर्मदा नदी के ऊपर बनने वाले नर्मदा सागर डैम के खिलाफ हुआ। आज यहां आप जानेंगे की नर्मदा बचाओ आंदोलन कब शुरू हुआ और नर्मदा बचाओ आंदोलन किससे संबंधित है।

नर्मदा बचाओ आंदोलन क्या है | Narmada Bachao Andolan kya Hai

  • नर्मदा नदी, भारतीय सब-कोटी के मध्यभाग में स्थित एक महत्वपूर्ण नदी है।
  • हिन्दू धर्म में इसे माँ नर्मदा की पूजा का विषय माना जाता है।
  • नर्मदा नदी भारत में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान राज्यों से होकर बहती है।
  • इसकी जल धारा स्वच्छ और पवित्र मानी जाती है।
  • नर्मदा नदी की मुख्य सहायक नदियां है तावा, बानस, केन, और शिप्रा।
  • इसका स्रोत अमरकंटक पहाड़ी है, जो मध्य प्रदेश के अंबिकापुर के पास स्थित है।

नर्मदा नदी का भूगोल

नर्मदा नदी को भारत की माता भी माना जाता है। नर्मदा नदी कहां है? तो नर्मदा नदी भारत में मध्य प्रदेश और गुजरात राज्यों से बहती है। नर्मदा नदी के भूगोल के बारे में:

  • इसे ‘पुरानी नदी’ के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इसका पुरातन काल में प्रवाह था।
  • नर्मदा नदी की लंबाई करीब 1312 किलोमीटर है।
  • नर्मदा नदी के किनारे कई प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं, जैसे महेश्वर और ओंम्कारेश्वर। जो हिन्दू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म से संबंधित है।
  • नर्मदा नदी के आस-पास बहुत से जलजीवन है, जिसमें समुद्री जीवन शामिल हैं। यहां पर प्रमुख प्रजातियों में मगरमच्छ और गैंडा शामिल हैं।

नर्मदा नदी का इतिहास क्या है? | Narmada Bachao Andolan kya Tha

नर्मदा नदी, भारतीय प्राचीनतम नदियों में से एक है और नर्मदा नदी का इतिहास बहुत पुराना है। इसे ‘रेवा’ के नाम से भी जाना जाता है। यह नदी हजारों सालों से मानव जाती का एक हिस्सा रही है। यहां नर्मदा नदी का इतिहास कुछ महत्वपूर्ण पहलूओं में बताया गया है:

  • नर्मदा नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वतश्रेणियों के पूर्वी संधिस्थल पर स्थित अमरकंटक में नर्मदा कुंड से हुआ है।
  • नदी पश्चिम की ओर सोनमुद से बहती हुई, एक चट्टान से नीचे गिरती हुई कपिलधारा नाम की एक जलप्रपात बनाती है। इसके बाद यह मध्य प्रदेश और गुजरात से होकर गुजरती हुई अरब सागर में जा मिलती है।
  • नर्मदा का उल्लेख प्राचीन भारतीय ग्रंथों जैसे वेदों, पुराणों और महाकाव्यों में मिलता है। इसे भगवान शिव की जटा से निकली हुई माना जाता है।
  • नर्मदा नदी के ऐसे बहुत से स्थल है जहां ऐतिहासिक लड़ाइयां, शासकीय और सामरिक घटनाएं हुई हैं।
  • नदी के तट पर बहुत से पुराने सांस्कृतिक स्थल भी हैं, जैसे की केदारिकूण्ड, भेडाघाट, महेश्वर, ऑंचलेश्वर, अमरावती, चौबीसी, आदि। आपको इन स्थलों पर धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी देखने को मिलेंगे।

विश्व बैंक की भूमिका – नर्मदा बचाओ आंदोलन से संबंधित

  • नर्मदा परियोजना भारत की सबसे महत्वपूर्ण बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं में से एक है।
  • सरकार को इन बांधों के निर्माण के लिए धन की आवश्यकता थी।
  • नर्मदा जल विवाद अधिकरण ने परियोजना को शुरू करने की अनुमति दी, जिसके बाद विश्व बैंक को फंडिंग की अनुमति दी गई।
  • 1985 में, विश्व बैंक ने इस परियोजना को वित्तीय सहायता देने का निर्णय लिया।
  • विश्व बैंक ने सरदार सरोवर बांध के निर्माण के लिए 450 मिलियन डॉलर की राशि प्रदान की।
  • मेधा पाटकर द्वारा वॉशिंगटन डी.सी. में किए गए विरोध प्रदर्शन के कारण विश्व बैंक पर इस परियोजना से हटने का दबाव बढ़ा।
  • इसके परिणामस्वरूप, विश्व बैंक ने स्वयं इस परियोजना की समीक्षा कराने का निर्णय लिया।
  • 1991 में, मॉर्स आयोग (Morse Commission) का गठन हुआ, जिसने मानवीय विस्थापन, पर्यावरणीय क्षति और बांध निर्माण से जुड़े मुद्दों की जांच की।
  • 1993 में, परियोजना से विश्व बैंक ने अपनी भागीदारी समाप्त कर दी।
  • 1991 में, बाबा आमटे और मेधा पाटकर को राइट लाइवलीहुड अवॉर्ड (Right Livelihood Award) से सम्मानित किया गया।
  • इस आंदोलन को फिल्म और कला जगत से जुड़ी प्रसिद्ध हस्तियों, जनसभाओं, भूख हड़तालों और कानूनी कार्यवाहियों का समर्थन प्राप्त हुआ।
  • अनेक गैर सरकारी संगठन (NGOs), कार्यकर्ता और स्थानीय लोग इस आंदोलन से जुड़े।
  • महाराष्ट्र में नर्मदा धरणग्रस्त समिति (Narmada Dharangrastha Samiti) मुख्य सहयोगी संगठन था।
  • मध्य प्रदेश में नर्मदा घाटी नव निर्माण समिति (Narmada Ghati Nav Nirman Samiti) सक्रिय थी।
  • गुजरात में नर्मदा असरग्रस्त समिति (Narmada Asargrastha Samiti) कार्य कर रही थी।

नर्मदा नदी से जुड़े प्रमुख स्थल और घटनाएं | Narmada Bachao Andolan kya Tha

नर्मदा नदी अनेक धार्मिक और पर्यटनीय गतिविधियों का केंद्र है। जो कई महत्वपूर्ण स्थलों से गुजरती है। जैसा की सब लोग जानते हैं की नर्मदा नदी कहां है लेकिन इसके कुछ प्रमुख स्थल और घटनाएं भी हैं जो नर्मदा नदी से जुड़ी हुई हैं:

  1. अमरकंटक पर्वत: नर्मदा नदी का स्रोत अमरकंटक पर्वत है। नर्मदा का प्रारंभिक प्रवाह यहां से शुरू होता है। यह मध्य प्रदेश के अनुपपुर जिले में स्थित है।
  2. ओंकारेश्वर मंदिर: मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल है। जहां ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। यहां महाशिवरात्रि के मौके पर बड़ा धार्मिक महोत्सव मनाया जाता है।
  3. महेश्वर घाट: महेश्वर नगर मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में स्थित है, यहां पर नर्मदा नदी के पानी में स्नान करने का काफी महत्व है। इस जगह पर नर्मदा नदी के कई प्रसिद्ध घाट हैं जहां लोग धार्मिक कार्यों के लिए आते हैं।
  4. भेड़ाघाट: यह एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है जो मध्य प्रदेश में स्थित है। यहां के नर्मदा नदी का जल मधुमय (मधु और जल का मिश्रण) माना जाता है। भेड़ाघाट नर्मदा नदी पर धार्मिक स्नान की परंपरा है।

आंदोलन का महत्व

नर्मदा नदी पर निर्मित हो रहे सर्वोच्च डैम (सरदार सरोवर डैम) के विरोध में यह आंदोलन किया जा रहा था। इस आंदोलन का महत्व विभिन्न पहलुओं में समझे:

  • पर्यावरणीय पहलू: नर्मदा नदी के प्राकृतिक संतुलन को बनाये रखना इस आंदोलन का पहलू था। सरदार सरोवर डैम के निर्माण से प्राकृतिक संसाधनों, वन्य जीवन और प्राकृतिक वातावरण पर असर जरूर पड़ता।
  • न्यायिक पहलू: विभिन्न उच्चतम न्यायालयों में इस डैम को बनाने के खिलाफ याचिकाएं दायर की गईं। यह आंदोलन भारतीय न्यायिक प्रक्रिया में भी प्रभावी रहा।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू: यह आंदोलन वहां रहने वाले आदिवासी समुदायों के हित में भी था क्योंकि उनकी जीवनधारा और संस्कृति नर्मदा नदी के आधार पर निर्भर करती थी।
  • राजनीतिक पहलू: इस आंदोलन ने राजनीतिक दलों और सरकारी प्रशासन पर भी दबाव डाला। इसका उन पर प्रभाव पड़ता जिसके कारण उन्होंने इसके विरोध में अपनी आवाज उठाई।

नर्मदा बचाओ आंदोलन एक प्रमुख सामाजिक और पर्यावरणीय पहलू है, जिसने भारत में बांधों और विकास से जुड़े मुद्दों पर गंभीर बहस को जन्म दिया है।

नर्मदा नदी की प्रमुख विशेषताएं

उद्देश्य:
नर्मदा बचाओ आंदोलन का मुख्य उद्देश्य नर्मदा नदी पर बनने वाले बड़े बांधों, विशेषकर सरदार सरोवर बांध का विरोध करना था। आंदोलन ने इन परियोजनाओं से प्रभावित होने वाले लाखों लोगों के अधिकारों, पर्यावरणीय संतुलन और सतत विकास के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया।

नेतृत्व:
इस आंदोलन का नेतृत्व प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने किया, जिनके साथ बाबा आमटे जैसे वरिष्ठ समाजसेवी भी जुड़े। इनके नेतृत्व में आंदोलन ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान खींचा और इसे एक सशक्त जनआंदोलन के रूप में स्थापित किया।

भागीदारी:
नर्मदा बचाओ आंदोलन में बड़ी संख्या में स्थानीय आदिवासी, किसान, महिलाएं, पर्यावरणविद्, सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिकार समर्थक शामिल हुए। सभी ने मिलकर विस्थापन और अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की और आंदोलन को जन-आधारित ताकत प्रदान की।

मुख्य मुद्दे:
इस आंदोलन ने बांधों से होने वाले जबरन विस्थापन, पर्यावरणीय नुकसान, उचित पुनर्वास की कमी और सामाजिक न्याय की अनदेखी जैसे मुद्दों को केंद्र में रखा। यह आंदोलन इन समस्याओं को उजागर करते हुए न्यायपूर्ण और टिकाऊ विकास की मांग करता है।

रणनीति:
आंदोलनकारियों ने शांतिपूर्ण विरोध, भूख हड़ताल, न्यायालयों में जनहित याचिकाएं दाखिल करना और जनजागरूकता अभियानों जैसे अहिंसक तरीकों को अपनाया। इन रणनीतियों ने आंदोलन को लोकतांत्रिक दायरे में रखते हुए प्रभावशाली और दूरगामी बनाया।

प्रभाव:
इस आंदोलन ने कई बांध परियोजनाओं में देरी करवाई और सरकार को पुनर्वास नीति पर विचार करने के लिए मजबूर किया। हालांकि कुछ मांगें अब भी पूरी नहीं हुईं, आंदोलन आज भी पर्यावरण और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए सक्रिय बना हुआ है।

सरदार सरोवर बांध की जानकारी

सरदार सरोवर बांध, गुजरात के नर्मदा जिले में केवड़िया के समीप नर्मदा नदी पर स्थित एक कंक्रीट गुरुत्व बांध है। इस परियोजना की परिकल्पना भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने की थी, और इसकी आधारशिला 1961 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रखी थी।

163 मीटर ऊंचा यह बांध भारत का तीसरा सबसे ऊंचा कंक्रीट बांध है। इससे ऊंचे केवल भाखड़ा बांध (226 मीटर, हिमाचल प्रदेश) और लखवार बांध (192 मीटर, उत्तर प्रदेश) हैं। सरदार सरोवर बांध, नर्मदा नदी पर निर्मित एक विशाल बहुउद्देशीय परियोजना है। यह भारत के सबसे बड़े बांधों में से एक है।

विशेषताएंविवरण
स्थाननर्मदा नदी, केवड़िया, गुजरात
उद्देश्यसिंचाई, बिजली उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण, पेयजल आपूर्ति
ऊंचाई163 मीटर (नींव से)
लंबाई1210 मीटर
निर्माण सामग्रीकंक्रीट
शुरुआतसरदार वल्लभभाई पटेल
पूरा हुआ2017
लाभलाखों हेक्टेयर भूमि की सिंचाई, बिजली उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण, पेयजल आपूर्ति
विवादविस्थापन, पर्यावरणीय प्रभाव, सामाजिक विरोध
महत्वभारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान, लाखों लोगों के जीवन में सुधार
सरदार सरोवर बांध की जानकारी | नर्मदा बचाओ आंदोलन किसने शुरू किया

नर्मदा बचाओ आंदोलन क्यों हुआ

नर्मदा बचाओ आंदोलन वर्ष 1985 में शुरू हुआ। इसका मुख्य कारण था नर्मदा नदी पर बनाए जा रहे बड़े-बड़े बांध, विशेष रूप से सरदार सरोवर बांध। इन परियोजनाओं से विकास की उम्मीद थी, लेकिन इसके साथ-साथ कई गंभीर सामाजिक और पर्यावरणीय समस्याएं भी सामने आईं।

  1. बड़े पैमाने पर विस्थापन
    सरदार सरोवर बांध जैसे प्रोजेक्ट से लगभग 40,000 से अधिक परिवार प्रभावित हुए। उन्हें अपने घर, ज़मीन और आजीविका को छोड़ना पड़ा। उचित पुनर्वास की व्यवस्था नहीं होने के कारण वे संकट में आ गए।
  2. पर्यावरण को नुकसान
    बांधों के निर्माण से नर्मदा नदी का प्राकृतिक बहाव बाधित हुआ। इससे जंगल, जानवर और आसपास के पारिस्थितिक तंत्र को भारी नुकसान पहुंचा। जैव विविधता पर भी खतरा मंडराने लगा।
  3. सामाजिक अन्याय
    अधिकतर प्रभावित लोग आदिवासी, किसान और ग्रामीण समुदाय से थे। सरकार ने निर्णय लेते समय इन लोगों की राय नहीं ली, जिससे असमानता और अन्याय की भावना पैदा हुई।
  4. पुनर्वास नीति की विफलता
    सरकार द्वारा बनाए गए पुनर्वास योजना कागजों पर अच्छी थी, लेकिन जमीन पर लागू नहीं हो सकी। लोगों को न रहने के लिए घर मिला, न खेती के लिए ज़मीन, और न ही रोजगार।
  5. विश्व बैंक की फंडिंग
    इस परियोजना को विश्व बैंक द्वारा 450 मिलियन डॉलर की फंडिंग मिल रही थी। आंदोलन के दबाव में, 1993 में विश्व बैंक ने इस परियोजना से हाथ खींच लिया।

नर्मदा बचाओ आंदोलन केवल एक नदी बचाने का संघर्ष नहीं था, बल्कि यह मानव अधिकार, पर्यावरण संरक्षण और न्यायपूर्ण विकास की मांग का प्रतीक बन गया।

बांध के विरोध का कारण | Narmada Bachao Aandolan kiske Virodh Mein Hua

  • नर्मदा बचाओ आंदोलन 1985 से ही भारत के चार राज्यों के लिए महत्वपूर्ण सरदार सरोवर परियोजना का विरोध कर रहा है। आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों के अलावा इस मुद्दे की कई परतें हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र के गरीबों और आदिवासियों के पुनर्वास और वन भूमि का मुद्दा है।
  • नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा इस बांध के विरोध का प्रमुख कारण इसकी ऊँचाई है, जिससे इस क्षेत्र के हज़ारों हेक्टेयर वन भूमि के जलमग्न होने का खतरा है।
  • बताया जाता है कि जब भी इस बांध की ऊँचाई बढ़ाई गई है, तब हज़ारों लोगों को इसके आस-पास से विस्थापित होना पड़ा है तथा उनकी भूमि और आजीविका भी छिनी है।
  • इस बांध की ऊँचाई बढ़ाए जाने से मध्य प्रदेश के 192 गाँव और एक नगर डूब क्षेत्र में आ रहे हैं। इसके चलते 40 हज़ार परिवारों को अपने घर, गाँव छोड़ने पड़ेंगे। 
  • इस आंदोलन की नेता मेधा पाटकर का आरोप है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद बांध प्रभावित लोगों को न तो मुआवजा दिया गया है और न ही उनका उचित पुनर्वास किया गया है। इसके बावजूद बांध का जलस्तर बढ़ा दिया गया।
  • नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं की मांग है कि जलस्तर को बढ़ने से रोका जाए और पहले पुनर्वास किया जाए और फिर विस्थापन किया जाए।
  • सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस बांध के निर्माण से मध्य प्रदेश के चार जिलों के 23,614 परिवार प्रभावित हुए हैं।

नर्मदा बचाओ आंदोलन कब शुरू हुआ?

जो लोग नहीं जानते की नर्मदा बचाओ आंदोलन कब हुआ तो उनकी जानकारी के लिए यह आंदोलन 1985 में शुरू हुआ और इसके अंतर्गत बड़े और छोटे बांधों के विरोध में लोगों ने आंदोलन किया। इसके दौरान लोगों ने अपने हक की रक्षा करने के लिए न्यायालयों के भी चक्कर लगाए।

आंदोलन की शुरुआत और समयरेखा

नर्मदा बचाओ आंदोलन की शुरुआत भारत में जल संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण के लिए हुई थी। यह आंदोलन मुख्य रूप से गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के बीच बसी नर्मदा नदी के लिए था। नर्मदा बचाओ आंदोलन कब हुआ एवं इसकी मुख्य घटनाएँ और समयरेखा निम्न हैं:

  • नर्मदा बचाओ आंदोलन कब हुआ? (1985-1989): आंदोलन नर्मदा सरदार सरोवर बांध के विरोध में शुरू हुआ। इस बांध के निर्माण के परिणामस्वरूप स्थानीय लोगों के अधिकारों पर प्रभाव पड़ा।
  • 1990s: इस समय आंदोलन को गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में एक बड़े रूप में लिया गया। जिसमें स्थानीय लोग, आदिवासियों , नागरिक समाज संगठनों और पर्यावरण संरक्षण गैर सरकारी संगठन शामिल थे।
  • 2000s: भारतीय सरकार ने आंदोलन की शिकायतों पर नजर डाली, लेकिन बांध के निर्माण को आगे बढ़ाया गया। इसके बाद आंदोलन ने संगठन, न्यायिक लड़ाई और सामाजिक चेतना में सफलता प्राप्त की।
  • वर्तमान समय: आज भी यह आंदोलन अनेक संगठनों और समर्थक विभिन्न राज्यों में सक्रिय हैं, जो नर्मदा नदी के निहित समस्याओं के विरुद्ध संघर्ष जारी रख रहे हैं।

नर्मदा बचाओ आंदोलन में शामिल लोग

मेधा पाटकर इस आंदोलन की प्रमुख नेता हैं। उन्होंने भूख हड़ताल और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन आयोजित किए हैं और इस मुद्दे के लिए कई बार जेल भी गई हैं।

प्रमुख लोग:

  1. मेधा पाटकर: मेधा पाटकर नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख और सबसे पहचान जाने वाली नेता हैं। वे इस आंदोलन की शुरुआत से ही शामिल थीं और उन्होंने इसके नेतृत्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे भारतीय समाज की सामाजिक और पर्यावरणीय समस्याओं पर जोर देती रहीं, विशेष रूप से विस्थापन और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर। मेधा पाटकर ने आंदोलन के माध्यम से आदिवासियों, किसानों और स्थानीय समुदायों की आवाज को देश और दुनिया के सामने लाया।
  2. मनबौरी बाई और अन्य आदिवासी नेता: नर्मदा बचाओ आंदोलन में आदिवासी समुदायों की विशेष भूमिका रही है। इस आंदोलन में शामिल कई आदिवासी नेताओं ने अपने गांवों और समुदायों को बचाने के लिए संघर्ष किया। मनबौरी बाई जैसे आदिवासी नेता जिन्होंने अपने गांव और परिवार के हितों के लिए संघर्ष किया, वे आंदोलन के प्रेरणास्त्रोत बने।
  3. सिंहगाड़ा और रामनाथ ठाकुर: सिंघगढ़ और रामनाथ ठाकुर जैसे नेता आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हुए। उन्होंने नर्मदा नदी के किनारे बसे गांवों के लोगों को जागरूक करने का कार्य किया और बांध निर्माण के विरोध में अभियान चलाया। उनके संघर्ष ने लोगों को यह समझने में मदद की कि बड़े बांधों से होने वाला विस्थापन न केवल पारंपरिक जीवनशैली को नुकसान पहुँचाता है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी विनाशकारी हो सकता है।
  4. विकास परमार: विकास परमार जैसे नेता भी इस आंदोलन में शामिल थे और उन्होंने नर्मदा नदी के किनारे बसे लोगों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। उन्होंने न केवल जल संकट के मुद्दे को उठाया, बल्कि नदी के आसपास के पारिस्थितिकीय नुकसान और स्थानीय समुदायों के जीवन पर इसके प्रभाव को भी उजागर किया।
  5. संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का योगदान: नर्मदा बचाओ आंदोलन में विभिन्न सामाजिक संगठनों, जैसे ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन संगठन’, और कार्यकर्ताओं का भी योगदान रहा। इनके माध्यम से आंदोलन को जन स्तर पर फैलाया गया और विभिन्न शहरों और राज्यों में समर्थन प्राप्त हुआ। इस आंदोलन में स्थानीय लोग, पर्यावरणवादी, मानवाधिकार कार्यकर्ता और सांस्कृतिक नेता भी शामिल हुए, जिन्होंने जलवायु परिवर्तन, मानवाधिकार और सामाजिक न्याय के मुद्दों को प्रमुख रूप से उठाया।

नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख घटनाएं और तिथियां

इस आंदोलन के दौरान कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं, जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण तिथियां और घटनाएं हैं:

तिथियांघटनाएं
1985जल-जंगल-जमीन सभा की स्थापना
1989बाबा अम्बेडकर नगर
1991-1993नर्मदा बचाओ आंदोलन
1993आंदोलन का राष्ट्रीय स्तर पर उदघाटन
2000नर्मदा बचाओ आंदोलन का सर्वेक्षण
2000आंदोलन का समापन
नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख घटनाएं और तिथियां

प्रमुख नेताओं और संगठनों की भूमिका

आंदोलन के मुख्य नेताओं में मेधा पाटकर, बाबा अम्बेडकर, अच्युत पटवर्धन, नरेंद्र पटेल और अनिल गुप्ता शामिल थे। इन नेताओं ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया और सामाजिक, राजनीतिक, और कानूनी प्रयासों के माध्यम से अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास किया।

नर्मदा बचाओ आंदोलन की चुनौतियाँ | Narmada Bachao Andolan se Aap kya Samajhte Hain

नर्मदा बचाओ आंदोलन को राज्य द्वारा दमन का सामना करना पड़ा है, जिसमें गिरफ्तारी, पुलिस की क्रूरता और कानूनी उत्पीड़न शामिल हैं। 1991 में, मेधा पाटकर को बांध के खिलाफ विरोध करने के कारण गिरफ्तार किया गया और उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया। उन्हें कई महीनों बाद जमानत पर रिहा किया गया, लेकिन उनके खिलाफ लगाए गए आरोप कभी भी वापस नहीं लिए गए। इस आंदोलन ने न केवल स्थानीय लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष किया, बल्कि यह भी दर्शाया कि कैसे राज्य की शक्ति का दुरुपयोग किया जा सकता है।

  • NBA पिछले कुछ सालों में विभाजित रहा है। कुछ सदस्य ज़्यादा कट्टरपंथी रणनीति के पक्षधर हैं, जबकि अन्य ज़्यादा उदारवादी दृष्टिकोण के पक्षधर हैं। इस विभाजन ने आंदोलन को कमज़ोर कर दिया है और इसके लक्ष्यों को हासिल करना ज़्यादा मुश्किल बना दिया है।
  • एनबीए का मुकाबला राज्य की सत्ता से है, जो बांधों के निर्माण का समर्थन कर रही है। सरकार के पास आंदोलन को कुचलने के लिए संसाधन हैं, अगर वह ऐसा करना चाहे।
  • बांधों का मुद्दा जटिल है और इस पर कई अलग-अलग दृष्टिकोण हैं। एनबीए को बांधों का समर्थन करने वालों के तर्कों से जूझना पड़ता है।
  • एनबीए की चिंताओं को दूर करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। आंदोलन के कड़े विरोध के बावजूद भी सरकार बांध परियोजना में कोई भी बदलाव करने में अनिच्छुक रही है।

नर्मदा बचाओ आंदोलन किसके विरोध में हुआ था | Narmada Bachao Andolan kiske Virodh Mein Hua Tha

नर्मदा बचाओ आंदोलन मुख्य रूप से सरदार सरोवर बांध और नर्मदा नदी पर बनाए जा रहे अन्य बड़े बांधों के विरोध में शुरू हुआ था।

इस आंदोलन का उद्देश्य इन बांधों के कारण होने वाले बड़े पैमाने पर विस्थापन, पर्यावरणीय क्षति, और पुनर्वास नीतियों की खामियों का विरोध करना था। आंदोलन ने विकास परियोजनाओं के सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों को उजागर किया और प्रभावित लोगों के अधिकारों की रक्षा की मांग की।

नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें

नर्मदा नदी और उसकी सहायक नदियाँ:
नर्मदा नदी भारत की एक प्रमुख पश्चिम प्रवाही नदी है, जिसकी प्रमुख सहायक नदी तवा नदी है। तवा नदी मध्य प्रदेश में सतपुड़ा श्रेणी से निकलती है और होशंगाबाद जिले में नर्मदा में मिलती है।

आदिवासी और किसान:
इस आंदोलन में आदिवासी समुदायों और किसानों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही, क्योंकि बांधों के निर्माण का सबसे सीधा प्रभाव इन्हीं लोगों पर पड़ा था। वे अपने घर, जमीन और जीवनशैली से वंचित हो रहे थे।

पर्यावरण:
आंदोलन ने बांध परियोजनाओं से पर्यावरण को होने वाले नुकसान की ओर ध्यान खींचा, विशेष रूप से नर्मदा नदी के पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को उजागर किया।

मानवाधिकार:
इसने विस्थापित लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा और उनके लिए उचित पुनर्वास नीति की मांग को प्रमुख मुद्दा बनाया, जिससे सामाजिक न्याय की आवश्यकता को सामने लाया गया।

अदालती कार्रवाई:
आंदोलन के तहत कई बार न्यायालयों का सहारा लिया गया, जिससे बांधों के निर्माण को चुनौती दी जा सके और प्रभावित लोगों के अधिकारों की रक्षा हो सके।

सामाजिक प्रभाव:
नर्मदा बचाओ आंदोलन भारत में विकास और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर गंभीर बहस का कारण बना और इसे देश के प्रमुख सामाजिक आंदोलनों में एक माना जाता है।

नर्मदा बचाओ आंदोलन के नारे

नर्मदा बचाओ आंदोलन के नारे निम्नलिखित हैं:

  1. विकास चाहिए, विनाश नहीं
  2. कोई नहीं हटेगा, बंद नहीं बनेगा
  3. नर्मदा बचाओ, मानव बचाओ

नर्मदा बचाओ आंदोलन की सफलता और उपलब्धियां

नर्मदा बचाओ आंदोलन (Narmada Bachao Andolan in Hindi) (एनबीए) ने सरदार सरोवर और अन्य नर्मदा परियोजनाओं के पर्यावरण, पुनर्वास और राहत पहलुओं के बारे में जागरूकता बढ़ाकर देश की बहुत सेवा की है।

  • एनबीए अपनी विभिन्न कार्यकारी, विधायी और न्यायिक रणनीतियों में प्रभावी रहा है, बड़े बांधों के कारण होने वाले विनाश और विस्थापन के खिलाफ अभियान चलाया है और प्रभावित लोगों – किसानों, मजदूरों, आदिवासियों, मछुआरों और अन्य के अधिकारों की वकालत की है।
  • इसे दुनिया भर से समर्थन मिला है।
  • नर्मदा बचाओ आंदोलन का संघर्ष और गौरव सामाजिक और पर्यावरणीय न्याय के लिए वैश्विक संघर्ष का प्रतीक है।
  • 1993 में, विश्व बैंक ने सरदार सरोवर से हाथ खींच लिया।
  • सुप्रीम कोर्ट ने आंदोलन के पक्ष में फैसला सुनाया और संबंधित राज्यों को पुनर्वास और प्रतिस्थापन प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया।
  • 1999 और 2001 के बीच, विदेशी निवेशकों ने महेश्वर बांध से हाथ खींच लिया।
  • कुछ हद तक, यह लोगों के पुनर्वास में सफल रहा है।

नर्मदा बचाओ आंदोलन पर निबंध 100 | 200 | 300 शब्दों में

प्रस्तावना

नर्मदा बचाओ आंदोलन भारत के इतिहास में एक प्रमुख सामाजिक और पर्यावरणीय आंदोलन रहा है। यह आंदोलन मुख्य रूप से नर्मदा नदी पर बनाए जा रहे बड़े-बड़े बांधों के खिलाफ शुरू हुआ था, जिनसे लाखों लोगों के विस्थापन और पर्यावरण को नुकसान होने की संभावना थी। इस आंदोलन ने भारत में विकास, पर्यावरण और मानवाधिकार के मुद्दों को लेकर नई सोच की शुरुआत की।

आंदोलन की शुरुआत

नर्मदा बचाओ आंदोलन की शुरुआत वर्ष 1985 में हुई थी। इसका नेतृत्व सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर और बाबा आमटे ने किया। यह आंदोलन मुख्य रूप से सरदार सरोवर बांध के विरोध में था, जो नर्मदा नदी पर बनाया जा रहा था। इस बांध से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के हजारों गाँव जलमग्न हो सकते थे और लाखों लोगों को अपने घरों से बेघर होना पड़ता।

मुख्य उद्देश्य

इस आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य था —

  • बांधों के कारण विस्थापित हुए लोगों के उचित पुनर्वास की व्यवस्था कराना।
  • परियोजना के पर्यावरणीय प्रभावों की समीक्षा कराना।
  • बिना सामाजिक न्याय के विकास परियोजनाओं का विरोध करना।

रणनीतियाँ और गतिविधियाँ

नर्मदा बचाओ आंदोलन ने अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए कई अहिंसात्मक तरीकों को अपनाया —

  • धरना और प्रदर्शन
  • भूख हड़तालें
  • जन जागरूकता अभियान
  • अदालती लड़ाई

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी स्थाओं पर दबाव डाला गया। इसके फलस्वरूप, 1993 में विश्व बैंक ने परियोजना से अपना हाथ खींच लिया।

प्रमुख योगदानकर्ता

  • मेधा पाटकर — आंदोलन की मुख्य प्रवक्ता और नेता।
  • बाबा आमटे — सामाजिक न्याय के लिए जीवन समर्पित करने वाले महान कार्यकर्ता।
  • आंदोलन को अरुंधति रॉय जैसे लेखकों और कई फिल्मी हस्तियों का भी समर्थन मिला।

आंदोलन का प्रभाव

  • इस आंदोलन ने भारत में विकास बनाम पर्यावरण की बहस को जन्म दिया।
  • कई मामलों में बांधों के निर्माण में देरी हुई और पुनर्वास पर ध्यान दिया गया।
  • आंदोलन ने सामाजिक आंदोलनों की ताकत को उजागर किया और लोकतांत्रिक दबाव की शक्ति को साबित किया।

आंदोलन की वर्तमान स्थिति:

नर्मदा बचाओ आंदोलन आज भी सक्रिय है और नर्मदा नदी पर बनाए जा रहे बांधों के विरोध में अपनी आवाज़ उठाता रहा है।
इस आंदोलन ने बांध निर्माण के खिलाफ कानूनी लड़ाई भी लड़ी है।
साथ ही, इससे प्रभावित लोगों की सहायता के लिए कई सामाजिक और आर्थिक कार्यक्रमों की शुरुआत भी की गई है।

निष्कर्ष

अब आपको जानकारी मिल गई होगी की नर्मदा बचाओ आंदोलन कब शुरू हुआ और नर्मदा बचाओ आंदोलन किससे संबंधित है। जैसा की नर्मदा बचाओ आंदोलन एक लंबे समय तक चलने वाला और सशक्त आंदोलन रहा है। यह आंदोलन जल और पर्यावरण संरक्षण की जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण था। आज के इस ब्लॉग में आपने नर्मदा बचाओ आंदोलन की पूरी जानकारी प्राप्त की जैसे: नर्मदा नदी कहां है, नर्मदा बचाओ आंदोलन कब हुआ आदि।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

नर्मदा बचाओ आंदोलन के परिणामस्वरूप कौन-कौन सी रिपोर्टें प्रकाशित हुईं?

आंदोलन के दौरान और बाद में कई रिपोर्टें प्रकाशित की गईं, जैसे कि “नर्मदा बागायती रिपोर्ट” और “सर्वे रिपोर्ट्स,” जिन्होंने बांधों के सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण किया।

नर्मदा बचाओ आंदोलन में भूख हड़ताल का क्या महत्व था?

भूख हड़ताल ने आंदोलन को प्रमुखता प्रदान की और नियोक्ता और सरकार पर दबाव बनाया। यह आंदोलन के प्रमुख रणनीतिक औजारों में से एक था, जिससे आंदोलक अपनी मांगों को सार्वजनिक रूप से पेश कर सके।

नर्मदा बचाओ आंदोलन के दौरान कौन से प्रमुख कानूनी निर्णय दिए गए?

सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णयों में 1994 में सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई सीमित करने और 2000 में पुनर्वास योजनाओं को लागू करने के निर्देश शामिल हैं। इन निर्णयों ने आंदोलन की प्रमुख मांगों को मान्यता दी।

नर्मदा बचाओ आंदोलन में महिलाओं के योगदान से संबंधित कौन-कौन सी डॉक्यूमेंट्रीज़ बनीं?

महिलाओं के योगदान पर आधारित डॉक्यूमेंट्रीज़ में “रिवर एंड द वॉर: द स्टोरी ऑफ़ द नर्मदा” और “नर्मदा: द साउंड ऑफ़ साइलेंस” जैसी फिल्में शामिल हैं, जो आंदोलन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं।

नर्मदा बचाओ आंदोलन में महिलाओं की भूमिका पर आधारित प्रमुख पुस्तकें और लेख कौन-कौन से हैं?

प्रमुख पुस्तकें और लेखों में “सिस्टम ऑफ़ असेंबली: द रिवर ऑफ़ वॉर” और “मेडा पाटकर: द एंडल्स ऑफ़ नर्मदा” शामिल हैं, जो महिलाओं की भूमिका और उनके योगदान का विश्लेषण करते हैं।

नर्मदा बचाओ आंदोलन का नेतृत्व किन प्रमुख व्यक्तियों ने किया था?

नर्मदा बचाओ आंदोलन का नेतृत्व प्रमुख रूप से मेधा पाटकर और बाबा आमटे ने किया था। इनके अलावा कई अन्य सामाजिक कार्यकर्ता, पर्यावरणविद और मानवाधिकार कार्यकर्ता भी इस आंदोलन से जुड़े हुए थे। मेधा पाटकर आंदोलन की मुख्य प्रवक्ता और नेतृत्वकर्ता के रूप में सबसे अधिक सक्रिय रहीं।

नर्मदा नदी की सबसे प्रमुख सहायक नदी कौन सी है?

नर्मदा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी तवा नदी है, जो मध्य प्रदेश में बहती है। इसका स्रोत सतपुड़ा पर्वतमाला में स्थित है। यह नदी नर्मदा में होशंगाबाद जिले के पास आकर मिलती है।

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Authored by, Amay Mathur | Senior Editor

Amay Mathur is a business news reporter at Chegg.com. He previously worked for PCMag, Business Insider, The Messenger, and ZDNET as a reporter and copyeditor. His areas of coverage encompass tech, business, strategy, finance, and even space. He is a Columbia University graduate.