Quick Summary
मुस्लिम लीग की स्थापना का आंदोलन उन मुस्लिम नेताओं ने प्रारम्भ किया था जो चाहते थे की ब्रिटिश भारत के अंदर मुसलमानों की नींव को जमा दिया जाये। मुस्लिम लीग की स्थापना 1905 के बंगाल विभाजन से संबंध रखती है। इतिहासकारों से पता चलता है की बंगाल विभाजन करने का ख़ास मकसद जनता में फूट डालना था। पश्चिमी भाग में हिन्दुओं का बहुमत और पूर्वी बंगाल में मुसलमानों का बहुमत बनाना था।
Akhil Bhartiya Muslim League (AIML) एक राजनीतिक पार्टी थी, जिसकी स्थापना 1906 में ढाका, ब्रिटिश भारत में मुस्लिम समुदाय के हितों की रक्षा करने के उद्देश्य से की गई थी।
ढाका के नवाब आगा खान और नवाब मोहसिन-उल-मुल्क के नेतृत्व में 30 दिसंबर 1906 को मुस्लिम लीग की स्थापना की गई थी। इस दिन को “All India Muslim League” के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा को ध्यान में रखते हुए मुस्लिम लीग का गठन किया गया था। शुरू में अंग्रेजों द्वारा इसका बहुत समर्थन किया गया। लेकिन 1913 में संगठन ने भारत के लिए स्वशासन अपना लिया।
प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के पश्चात, भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर स्वशासन की मांग को लेकर मुस्लिम लीग ने कांग्रेस के साथ सहयोग किया। कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में पहले ही स्वशासन प्रदान किया जा चुका था, जिससे भारतीयों में भी स्वशासन की आकांक्षाएँ जागृत हुईं।
1920 में, महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। यह आंदोलन जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में और खिलाफत आंदोलन के समर्थन में था। गांधीजी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सविनय अवज्ञा की नीति अपनाई, जिसमें सरकारी उपाधियों का बहिष्कार, विदेशी वस्त्रों की होली, और सरकारी संस्थाओं का बहिष्कार शामिल था।
हालांकि, मुस्लिम लीग ने इस आंदोलन का विरोध किया, क्योंकि उन्हें यह दृष्टिकोण बहुत कट्टरपंथी लगा। इसी वर्ष, मुहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था, क्योंकि वे असहयोग आंदोलन की नीति से सहमत नहीं थे। इस प्रकार, 1920 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के दृष्टिकोण में अंतर स्पष्ट हुआ, जिससे भविष्य में विभाजन की प्रक्रिया की नींव पड़ी।
All India Muslim League was Founded by “नवाब सलीमुल्लाह खान” द्वारा की गई थी।

इनके साथ मुस्लिम लीग की स्थापना किसने की? तो लीग में नवाब सलीमुल्लाह खान के साथ आगा खां और मोहम्मद अली जिन्ना भी शामिल थे। भारतीय विभाजन होने के बाद “ऑल इंडिया मुस्लिम लीग” सिर्फ “इण्डियन यूनियन मुस्लिम लीग” के रूप में स्थापित हुई। यह एक तरह की सामाजिक और राजनीतिक लीग थी। जिसे भारत की मुस्लिम यूनिटी के हितों की रक्षा करने के लिए बनाया गया था।
मुस्लिम लीग की स्थापना करने में बहुत से नेताओं ने अपनी भूमिका निभाई है। जिनमें प्रमुख मुस्लिम लीग संस्थापक निम्न है।
मुस्लिम लीग की स्थापना में बहुत से नेताओं की अहम भूमिका रही है।
| प्रमुख नेता | नेताओं की भूमिका |
| नवाब सलीमुल्लाह खान | यह सबसे स्पष्टवादी समर्थकों में से एक थे। नवाब सलीमुल्ला खान के कारण लीग का निर्माण हुआ। |
| सर सैयद अहमद खान | यह ब्रिटिश साम्राज्य के समर्थक थे। उन्होंने मुस्लिम हितों के लिए बहुत से आवश्यक कार्य किये और मुस्लिम लीग के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। |
| आगा खान III | मुस्लिम लीग के प्रारंभिक अध्यक्ष के रूप में आगा खान III ने अपना महत्वपूर्ण नेतृत्व किया और वैचारिक दिशा भी दी। |
| नवाब मोहसिन-उल-मुल्क और अन्य | ऐसे कई अन्य मुस्लिम नेताओं ने भी संगठनात्मक आधार तैयार करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। |
भारत को 1947 में आजादी मिलने के बाद मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान का गठन किया। इसका नाम अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के बाद ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग कर दिया गया। अब मुस्लिम लीग पाकिस्तान और भारत में पृथक रूप से राजनीतिक पार्टियों के रूप में है।
मुस्लिम लीग की स्थापना किसने की? तो मुस्लिम लीग को बनाने में बहुत से नेताओं ने अपना विशेष योगदान दिया है। मुस्लिम लीग संस्थापक में नवाब सलीमुल्लाह, मोहम्मद अली जिन्ना, आगा खान III, मोहसिन-उल-मुल्क की सबसे प्रमुख भूमिका रही है।
अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के अध्यक्ष काफी लम्बे समय तक इन पदों पर कार्यरत रहें। इन चार दशक के समय में मुस्लिम लीग का नेतृत्व करने के लिए लीग के पास हर साल एक निर्वाचित अध्यक्ष जरूर होता था। चलिए जानते है मुस्लिम लीग के अध्यक्षों के बारे में।
सर सुल्तान मुहम्मद शाह (आगा खान III)
सर सुल्तान मुहम्मद शाह ‘अखिल भारतीय मुस्लिम लीग’ के पहले स्थायी अध्यक्ष थे। वह ब्रिटिश भारत में मुस्लिम एजेंडे को प्रगति करते हुए देखना चाहते थे। उनका लक्ष्य था मुस्लिम अधिकारों की सुरक्षा करना। आगा खान ने भारत में ही मुसलमानों को ब्रिटिश राज से अलग राष्ट्र मानने की मांग की।
मुस्लिम लीग के प्रथम अध्यक्ष के रूप में वह मुसलमानों को शिक्षित करना चाहते थे और महिला शिक्षा में भी तरक्की हो इसमें रुचि व्यक्त की। 1937 से 1938 तक राष्ट्र संघ के अध्यक्ष के रूप में भी योगदान देकर कार्यभार संभाला। आगा खान III ने 1912 में पद से इस्तीफा दिया था।
मुस्लिम लीग में कई अध्यक्ष रहे हैं। इस लीग के अन्य अध्यक्ष इस प्रकार है।
मुस्लिम लीग की स्थापना मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के हितों के लिए की गई थी।
मुख्य उद्देश्य इस प्रकार है:
राजनीतिक अधिकार सभी नागरिकों का मौलिक अधिकार है। इस अधिकार में न्याय, समानता और स्वतंत्रता मुख्य रूप से होती हैं। मुसलमानों को भी यह अधिकार मिलने में, सामाजिक और आर्थिक विकास करने में, समाज में स्थान बनाने में सहायता मिलनी चाहिए।
सबसे जरुरी है हर व्यक्ति के धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों का सम्मान करना। किसी भी समुदाय के खिलाफ हो रहे भेदभाव और अन्याय को रोकना चाहिए। इस तरह एक समृद्ध और संतुलित समाज बन सकता है।
मुसलमानों के हितों की रक्षा करना एक महत्वपूर्ण विषय है जिस पर विचार करना आवश्यक है।
मुस्लिम लीग का प्रारंभिक कार्य मुस्लिम समाज के हक़ की रक्षा करना है।
मुस्लिम लीग की भारतीय राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बने और मुस्लिमों की हितैषी राजनीति करें।
इस लीग का प्रमुख लक्ष्य था मुस्लिम समुदाय को शिक्षा के क्षेत्र में उनके अधिकार मिलें और हितों की रक्षा हो। जिससे उनका सामाजिक और आर्थिक विकास हो सके। सामाजिक बदलाव लाना ताकि वे बेहतरीन जीवन शैली अपना सके।
ब्रिटिश सरकार से संवाद करके मुस्लिम समुदाय के हित में कार्य करना। मुस्लिम लीग ने अपने उद्देश्य के लिए ब्रिटिश सरकार के साथ संवाद और समझौते की कोशिश की।
मुस्लिम लीग की भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण संस्था के रूप में अपनी जगह है। साथ ही लीग ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मुस्लिम लीग भारतीय राजनीति का एक अहम हिस्सा रही है। जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी की और पाकिस्तान की स्थापना में विशेष भूमिका निभाई।
मुस्लिम लीग भारतीय उपमहाद्वीप पर विभिन्न प्रभाव डालती है। मुस्लिम लीग का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव भारतीय राजनीति और समाज पर हुआ है। विशेष रूप से भारतीय मुस्लिम समुदाय पर। इस प्रकार मुस्लिम लीग ने भारतीय उपमहाद्वीप पर अपनी कार्यक्षमता के माध्यम से गहरा प्रभाव डाला है।
मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। खासकर पाकिस्तान के विभाजन और आजादी के समय में। मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के हक़ में राजनीतिक एवं सामाजिक प्रस्थान बनाने के लिए भी कार्य किए है।
मुस्लिम लीग का प्रभाव भारतीय राजनीति पर अधिक पड़ा है। साथ ही इसका मुख्य प्रभाव ब्रिटिश उपनिवेश भारत के विभाजन के रूप में एक अलग पाकिस्तान और भारत में देखा जा सकता है।
कुछ इस तरह के प्रभाव भी हुए :
मुस्लिम लीग ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

| खिलाफत आंदोलन | मुस्लिम लीग ने खिलाफत आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। |
| अली ब्रदर्स और मोहम्मद अली जिन्ना | मुस्लिम लीग के प्रमुख नेता मोहम्मद अली जिन्ना और उनके भाई आगा खान ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में अपनी भूमिका निभाई। |
| लाहौर अधिवेशन (1940) | मुस्लिम लीग ने 1940 में लाहौर में आयोजित अधिवेशन में ‘पाकिस्तान’ की मांग को लेकर अपना प्रस्ताव पेश किया। |
भारतीय उपमहाद्वीप का विभाजन और पाकिस्तान की स्थापना 1947 में हुई थी। विभाजन दो भागों में हुआ जिसमें हिन्दू बहुल भाग में एक लोकतांत्रिक भारत और इस्लामी अल्पसंख्यक भाग में एक अलग निर्णायक भारत निर्मित हुआ।
1913 में मुहम्मद अली जिन्ना ने अखिल भारतीय मुस्लिम लीग में शामिल होकर उसका नेतृत्व किया। उनकी नेतृत्व क्षमता और राजनीतिक समझ ने मुस्लिम लीग को एक प्रभावशाली राजनीतिक दल में परिवर्तित किया। उनके मार्गदर्शन में, लीग ने ब्रिटिश शासन के साथ सहयोग बनाए रखा और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा प्रस्तुत सामाजिक सुधारों की आलोचना की। इसने भारतीयों के बीच एकता और राष्ट्रवाद की भावना को बाधित किया, जिसे कांग्रेस नागरिकों के बीच स्थापित करना चाहती थी।
जिन्ना ने “दो-राष्ट्र सिद्धांत” प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने हिंदू और मुसलमानों को अलग-अलग राष्ट्र के रूप में परिभाषित किया। उनका मानना था कि दोनों समुदायों की धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान अलग है, और इसलिए उन्हें अलग-अलग राष्ट्रों के रूप में पहचान मिलनी चाहिए। इस सिद्धांत ने पाकिस्तान के निर्माण की नींव रखी।
23 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग के लाहौर सत्र में लाहौर प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को एक स्वतंत्र और संप्रभु राज्य के रूप में गठित करने की मांग की गई। इस प्रस्ताव के अनुसार, पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत (अब खैबर पख्तूनख्वा) जैसे क्षेत्र शामिल थे।
1920 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन की नीति से असहमत होकर, मुहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। उनका मानना था कि असहयोग आंदोलन मुस्लिम समुदाय के हितों के लिए हानिकारक हो सकता है।
1947 में पाकिस्तान के गठन के साथ ही मुस्लिम लीग का उद्देश्य पूरा हुआ। इसके बाद, मुस्लिम लीग का अस्तित्व समाप्त हो गया, और पाकिस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित हुआ।
मुस्लिम लीग की स्थापना का मुख्य उद्देश्य मुसलमानों के हक़ और हितों को बरक़रार रखना था। भारत में मुस्लिम समुदाय की राजनीतिक एकता स्थापित हो सके। भारत के मुस्लिम समुदाय के अधिकारों को स्थान मिले। मुस्लिम लीग की स्थापना करने में मुस्लिम लीग संस्थापक ने महान कार्य किये है और अपना अहम योगदान दिया।
आज के इस ब्लॉग में आपने मुस्लिम लीग से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की। मुस्लिम लीग की स्थापना कब हुई, मुस्लिम लीग की स्थापना किसने की, मुस्लिम लीग संस्थापक कौन थे, मुस्लिम लीग के प्रथम अध्यक्ष कौन थे और साथ ही विभिन्न नेताओं की इसमें क्या भूमिका रही। इन सबके बारे में जाना।
कई मुस्लिम नेताओं को ढाका में बैठक के लिए आमंत्रित किया गया। उन्होंने वकार-उल-मुल्क की अध्यक्षता में बैठक की, जिन्होंने मुसलमानों को एक अलग निकाय में संगठित करने के तर्क को प्रस्तुत किया। इस विषय पर विस्तृत चर्चा के बाद, 1906 में “ढाका के नवाब आगा खान” और नवाब मोहसिन-उल-मुल्क के नेतृत्व में मुस्लिम लीग की स्थापना की गई।
मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए अलग राज्य की मांग 23 मार्च 1940 को लाहौर प्रस्ताव में की थी। इस प्रस्ताव में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को एक स्वतंत्र राज्य बनाने की बात की गई, जो बाद में पाकिस्तान के गठन का आधार बना।
मुस्लिम लीग के मुख्य उद्देश्य थे:
मुसलमानों के राजनीतिक अधिकारों की रक्षा: भारत में मुस्लिम समुदाय की सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक पहचान की सुरक्षा।
स्वतंत्र राज्य की स्थापना: मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र, जिसे बाद में पाकिस्तान के रूप में मान्यता मिली।
मुसलमानों के हितों की रक्षा: हिंदू बहुल भारतीय राजनीति में मुसलमानों के अधिकारों को सुनिश्चित करना।
मुस्लिम लीग के संस्थापक अली जिन्ना, नवाब सलीमुल्लाह खान, और सर सय्यद अहमद खान माने जाते हैं। हालांकि, अली जिन्ना को पार्टी के प्रमुख नेता के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और पाकिस्तान के निर्माण में योगदान दिया।
मुस्लिम लीग ने 23 मार्च 1940 को लाहौर में एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें पाकिस्तान की मांग की गई थी। इस प्रस्ताव को “लाहौर प्रस्ताव” के नाम से भी जाना जाता है, और यह ब्रिटिश भारत के मुसलमानों के लिए एक अलग मातृभूमि की स्थापना के पक्ष में था।
मुस्लिम लीग का पहला सम्मेलन 1906 में ढाका, बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) में आयोजित हुआ था।
पाकिस्तान शब्द का निर्माता रहमत अली थे। उन्होंने 1933 में इस शब्द को सबसे पहले प्रयोग में लाया, जो एक स्वतंत्र मुस्लिम राष्ट्र की अवधारणा को व्यक्त करता था।
जिन्ना और नेहरू के बीच राजनीतिक रिश्ते थे। दोनों भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता थे, लेकिन उनके दृष्टिकोण और नीतियाँ अलग थीं। जहां नेहरू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता और एकता के पक्षधर थे, वहीं जिन्ना मुस्लिम लीग के नेता थे और उन्होंने मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र, पाकिस्तान की मांग की। उनके विचारों में गहरी राजनीतिक और धार्मिक भिन्नताएँ थीं, जो अंततः भारत के विभाजन का कारण बनीं।
Authored by, Aakriti Jain
Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.
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