मानवाधिकार

मानवाधिकार क्या है? | Manav Adhikar kya Hai?

Published on June 9, 2025
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मानवाधिकार

Quick Summary

  • मानवाधिकार वे मूलभूत अधिकार हैं, जो हर व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के प्राप्त होते हैं।
  • ये अधिकार जन्म से ही मिलते हैं और इन्हें किसी भी सरकार या संस्था द्वारा छीना नहीं जा सकता।
  • इसमें स्वतंत्रता, समानता, सम्मान, शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार जैसे अधिकार शामिल हैं।
  • मानवाधिकारों की रक्षा करना और सुनिश्चित करना समाज की जिम्मेदारी है।

Table of Contents

Manav Adhikar kya Hai- मानवाधिकार (Human Rights) ऐसे मौलिक अधिकार हैं जो प्रत्येक व्यक्ति को केवल इस कारण प्राप्त होते हैं क्योंकि वह एक इंसान है। ये अधिकार किसी सरकार या राष्ट्र द्वारा दिए नहीं जाते, बल्कि ये हर मानव के अस्तित्व के साथ स्वाभाविक रूप से जुड़े होते हैं।

जब भी कहीं युद्ध में मानवता का नुकसान होता है या किसी के साथ अन्याय होता है, चाहे वो अन्याय हमारे क्षेत्र, राज्य, देश या कहीं दूर किसी देश में क्यों ना हो रहा हो एक शब्द की हमेशा गुहार लगाई जाती है और वह शब्द है मानवधिकार। हमेशा से ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार पर बहस अपने चरम पर रही है और इसकी रक्षा के विषय में आए दिन बातें होती है। इस ब्लॉग में आप जानेंगें आख़िर यह मानवाधिकार क्या है और इसका हमारे जीवन में कितना महत्व है? इसकी विशेषताएं क्या है, मानवधिकार आयोग क्या है और मानवधिकार दिवस कब और क्यों मनाया जाता है।

मानवाधिकारों की उत्पत्ति | Manvadhikar kya Hai

Manvadhikar kya Hai- ‘मानवाधिकार’ शब्द का प्रयोग 20वीं शताब्दी में शुरू हुआ, जबकि इससे पहले इन्हें ‘प्राकृतिक अधिकार’ या ‘व्यक्ति के अधिकार’ कहा जाता था। 17वीं शताब्दी में प्रसिद्ध विचारकों ग्रोशियस, हॉब्स और लॉक ने प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा को प्रस्तुत किया। उनका मानना था कि प्राकृतिक कानून प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे के जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति का सम्मान करने का निर्देश देते हैं। जॉन लॉक ने अपनी प्रसिद्ध कृति “Two Treatises of Government” में इन अधिकारों का उल्लेख किया।

इसके अतिरिक्त, 1776 में अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा में कहा गया था कि “सभी मनुष्य समान पैदा होते हैं और सृष्टिकर्ता ने उन्हें जीवन, स्वतंत्रता और सुख की खोज जैसे कुछ अछिन्न (अविच्छेद्य) अधिकार प्रदान किए हैं।” 1789 में फ्रांस के मानव और नागरिक अधिकारों के घोषणापत्र ने भी इन्हीं विचारों की पुनः पुष्टि की। इन घोषणाओं के अनुसार, ये अधिकार नागरिकों को राज्य के आधार पर नहीं, बल्कि उनके मानव होने के नाते दिए गए थे।

मानवाधिकार क्या है? | मानवाधिकार की परिभाषा

मानवधिकार नैतिक सिद्धान्त और मौलिक अधिकारों का एक ऐसा संग्रह हैं जो प्रत्येक व्यक्ति को उसके जन्म से ही मिलता है। बिना किसी भेदभाव के हर मानव को यह अधिकार मिलते है, मानव चाहे किसी भी देश, धर्म, संस्कृति, भाषा, लिंग या रंग का हो मानवाधिकार पाने की मूल आवश्यकता बस मनुष्य होना है। न छीने जाने योग्य ये अधिकार व्यक्ति की गरिमा, स्वतंत्रता, समानता और न्याय की रक्षा करने के लिए आवश्यक माने जाते हैं। मानवधिकारों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी व्यक्तियों को एक समान सम्मान और अवसर मिले।

मानवाधिकार से आप क्या समझते हैं? | Manav Adhikar se aap kya Samajhte Hain

मानवाधिकार उन अधिकारों को कहते हैं जो प्रत्येक व्यक्ति को उसकी जाति, लिंग, राष्ट्रीयता, धर्म या किसी अन्य स्थिति की परवाह किए बिना प्राप्त होते हैं। ये अधिकार सार्वभौमिक होते हैं, जिन्हें न तो कोई सरकार और न ही कोई व्यक्ति छीन सकता है, और ये सभी को बिना किसी भेदभाव के समान रूप से मिलते हैं। इसके अलावा मानवधिकार क्या है? मानवाधिकार वो कवच है जो मनुष्य को उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ कार्य करवाए जाने पर उसे बचाता है। यह वो दावा है जो नैतिकता से जीने के लिए मनुष्य हक़ से कर सकता है।

विशेषताविवरण
निहित अधिकारये अधिकार जन्म से प्राप्त होते हैं और व्यक्ति की जाति, धर्म, लिंग, भाषा, या राष्ट्रीयता के आधार पर छीने नहीं जा सकते।
सार्वभौमिकये सभी लोगों पर, हर जगह समान रूप से लागू होते हैं, चाहे वे किसी भी देश या परिस्थिति में हों।
नैतिक और कानूनीमानवाधिकार नैतिक मूल्यों पर आधारित होते हैं और इन्हें कानून द्वारा भी संरक्षित किया जाता है।
संरक्षणमानवाधिकारों की रक्षा स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुनिश्चित की जाती है।

भारत में मानवाधिकार के प्रकार

भारत में 7 प्रमुख मानवाधिकार निम्नलिखित हैं, जिन्हें भारतीय संविधान और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार सिद्धांतों के आधार पर मान्यता प्राप्त है:

  1. जीवन का अधिकार (Right to Life)
    हर व्यक्ति को सुरक्षित, सम्मानजनक और गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार प्राप्त है।
  2. स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom)
    व्यक्ति को विचार, अभिव्यक्ति, आंदोलन, धर्म और संघ बनाने की स्वतंत्रता है।
  3. समानता का अधिकार (Right to Equality)
    सभी नागरिक कानून की नजर में समान हैं और किसी के साथ जाति, धर्म, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।
  4. निर्दोष होने तक दोषमुक्ति का अधिकार (Right to be Presumed Innocent Until Proven Guilty)
    कोई भी व्यक्ति तब तक दोषी नहीं माना जाएगा जब तक अदालत द्वारा उसका अपराध सिद्ध न हो जाए।
  5. शोषण से मुक्ति का अधिकार (Right against Exploitation)
    किसी को भी बंधुआ मजदूरी, मानव तस्करी, बाल मजदूरी जैसे शोषण के रूपों से मुक्त रहने का अधिकार है।
  6. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion)
    प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने, पालन करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता है।
  7. संवैधानिक उपचार का अधिकार (Right to Constitutional Remedies)
    यदि किसी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो वह सीधे उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है।

मानवधिकारों को मुख्यतः दो प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:

  • नागरिक और राजनीतिक अधिकार 
  • आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार

दोनों श्रेणियां महत्वपूर्ण हैं और मानव की भलाई और समाज के न्यायपूर्ण संचालन के लिए आवश्यक हैं।

1. नागरिक और राजनीतिक अधिकार

नागरिक और राजनीतिक अधिकार किसी भी देश के नागरिकों के उन अधिकारों का समूह माना जाता है जो व्यक्ति की स्वतंत्रता और सुरक्षा की रक्षा करते हैं, राजनीतिक अधिकार देश की सरकार से भी कई हद तक सम्बंध रखतें है और उन्हें सरकार और अन्य व्यक्तियों के अत्याचार से बचाते हैं। ये अधिकार “पहली पीढ़ी के अधिकार” भी कहलाते हैं और इनमें निम्नलिखित मानवधिकार शामिल होते हैं:

  • जीवन का अधिकार: प्रत्येक व्यक्ति को जीवन जीने का अधिकार होता है, यह अधिकार प्रथम मनवाधिकार भी माना जाता है और यह अधिकार व्यक्ति से किसी भी सरकार या दूसरे व्यक्ति द्वारा अन्यायपूर्ण ढंग से छीनना अमानवीय कृत्य हैं। किसी के जीवन जीने के अधिकार का हनन करने पर कठोर कानूनी करवाई की जाती है।
  • स्वतंत्रता का अधिकार: इसमें हर वह स्वतंत्रता शामिल है जो नैतिक रूप से सही है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता, विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, आंदोलन की स्वतंत्रता, और शांतिपूर्ण असेंबली और संगठनों की स्वतंत्रता ये सब व्यक्ति को अधिकार के रूप में मिलती है।
  • निर्वाचन का अधिकार: किसी भी व्यक्ति को उसकी मर्ज़ी के विरुद्ध चुनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। व्यक्तियों को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों में मतदान करने और अपने प्रतिनिधियों को चुनने का सम्पूर्ण अधिकार होता है।
  • न्याय का अधिकार: मानवधिकार के रूप में मानव को न्यायिक प्रक्रिया का अधिकार, निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार, और कानून के समक्ष समानता का अधिकार मिलता है। इस अधिकार की बदौलत ग़लत आरोपों में फँसा व्यक्ति स्वयं को सही साबित कर पता है।
  • बेदखली और उत्पीड़न से सुरक्षा: किसी व्यक्ति को अन्यायपूर्ण गिरफ्तारी, हिरासत, या उत्पीड़न से सुरक्षा मिलनी चाहिए यह अधिकार न्यायिक अधिकार का हिस्सा है जो मानवीयता के प्रति जिम्मेदारी बनाए रखता है।

2. आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार

आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार वे अधिकार हैं जो व्यक्ति की भौतिक और सांस्कृतिक भलाई को सुनिश्चित करते हैं। ये “दूसरी पीढ़ी के अधिकार” कहलाते हैं और इनमें निम्नलिखित शामिल होते हैं:

  • शिक्षा का अधिकार: प्रत्येक व्यक्ति को बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है, यह सुनिश्चित करना राज्य या राष्ट्र सरकार की जिम्मेदारी है कि शिक्षा सुलभ और समावेशी हो।
  • स्वास्थ्य का अधिकार: प्रत्येक व्यक्ति को स्वास्थ्य सेवाओं और चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंच का अधिकार है, जिससे वे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रख सकें।
  • रोजगार का अधिकार: प्रत्येक व्यक्ति को रोजगार के अवसर प्राप्त करने का अधिकार है, और कार्यस्थल में उचित और सुरक्षित परिस्थितियों में काम करने का अधिकार है।
  • आवास का अधिकार: प्रत्येक व्यक्ति को एक सुरक्षित और पर्याप्त आवास का अधिकार है, जो उनकी भौतिक और मानसिक भलाई के लिए आवश्यक है।
  • संस्कृति का अधिकार: प्रत्येक व्यक्ति को अपनी संस्कृति, भाषा और परंपराओं को बनाए रखने और उसमें भाग लेने का अधिकार है।

मानव अधिकार की विशेषताएं क्या हैं? Manav Adhikar ki Visheshtaen kya Hai?

मानवाधिकारों की विशेषताएं मानवीयता में निहित है, मानवधिकार की विशेषता इनके महत्व और प्रभावशीलता को रेखांकित करती हैं। ये विशेषताएं मानवधिकारों का संरक्षण और पालन सुनिश्चित करती हैं। कुछ मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

1. सार्वभौमिकता 

मानवाधिकार के संदर्भ में सार्वभौमिक मानवधिकार अर्थात ये हर मनुष्य को समान रूप से प्राप्त होते हैं, चाहे व्यक्ति किसी भी जाति, धर्म, लिंग, राष्ट्रीयता, का हो या उसकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो, उसे ये अधिकार प्राप्त होते हैं। 1948 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाए गए मानवधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा इस अवधारणा की पुष्टि करती है कि मानवधिकार सभी मनुष्यों के लिए समान हैं।

2. अविभाज्यता 

मानवाधिकार अविभाज्य होते हैं, अर्थात ये एक दूसरे से अलग नहीं किए जा सकते। नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक अधिकार सभी आपस में जुड़े होते हैं और एक साथ मिलकर व्यक्ति की पूर्ण गरिमा और विकास को सुनिश्चित करते हैं। किसी एक अधिकार का हनन अन्य अधिकारों के प्रभावशीलता को भी कम करता है।

3. अलाभकारी

कुछ मानवाधिकार ऐसे होते हैं जो किसी भी परिस्थिति में निलंबित या सीमित नहीं किए जा सकते। जैसे कि जीवन का अधिकार, यातना से मुक्ति का अधिकार, और विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। ये अधिकार इतने महत्वपूर्ण होते हैं कि इन्हें किसी भी स्थिति में सीमित नहीं किया जा सकता, यहां तक कि आपातकालीन स्थिति में भी नहीं।

4. अविच्छेद्य 

मानवाधिकार अविच्छेद्य होते हैं, मानव के जन्म से लेकर मृत्यु तक मानवधिकार उसके साथ रहते है अर्थात इन्हें किसी भी व्यक्ति से छीना नहीं जा सकता। ये अधिकार व्यक्ति को जन्म से ही मिलते हैं और इन्हें न तो बेचा जा सकता है, न ही किसी को हस्तांतरित किया जा सकता है। दास प्रथा इस अधिकार का उल्लंघन करने वाली प्रथा थी जिस पर पूरे विश्व में पाबंदी लगा दी गयी।

5. समानता

हर व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के मानवाधिकारों का समान रूप से लाभ उठाने का अधिकार है।

6. परस्पर निर्भरता

मानवाधिकार एक-दूसरे से जुड़े होते हैं और एक का उपयोग दूसरे की पूर्ति में सहायक होता है।

7. गैर-भेदभाव

हर इंसान के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए, किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए।

8. अधिकारों के साथ कर्तव्य भी

मानवाधिकारों का उपयोग करते समय हर व्यक्ति का दायित्व है कि वह दूसरों के अधिकारों का सम्मान करे और उनका उल्लंघन न करे।

मानवाधिकार आयोग 

मानवाधिकार आयोग– व्यक्तियों को मिले जन्मजात नैतिक और मौलिक अधिकार जिन्हें हम मानवधिकार के रूप में समझतें है, उन मूलभूत अधिकारों के बारे में जागरूकता लाने, उनके संरक्षण करने और पालन के लिए प्रतिबद्ध एक संस्था की स्थापना की गई जिसे हम मानवाधिकार आयोग कहते है। मानवधिकार आयोग क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काम करता है। यह एक ग़ैर लाभकारी संगठन है जो सार्वभौमिक घोषणा को मानव जीवन में लागू करना और मानवधिकारों पर निगरानी रखना है। 

मानवधिकार आयोग उन लोगों की आवाज़ बनता है जिनके मूल अधिकारों का हनन हुआ है तथा उन्हें सरकार की नज़र में लाकर इंसाफ दिलाता है,  मानवाधिकार आयोग बड़े पैमाने पर हो रहे मानवधिकार उल्लंघन पर अंतर्राष्ट्रीय ध्यान केंद्रित करता है और एक मशाल वाहक के रूप में शांति का प्रस्ताव रखता है।मानवधिकार आयोग विभिन्न शिकायतों की जांच करता है, मानवाधिकारों के उल्लंघन की रिपोर्ट करता है, और सरकारों को नीतिगत सलाह देता है ताकि मानवधिकारों की सुरक्षा और प्रोत्साहन सुनिश्चित हो सके। 

मानवधिकार आयोग की स्थापना राष्ट्रीय स्तर पर होती है, कई देश ऐसे है जहां आज भी मानवाधिकार आयोग नहीं है। भारत में राष्ट्रीय मानवधिकार आयोग के सदस्य मुख्यतः सरकारी सेवानिवृत्त न्यायाधीश होते है। आयोग की अध्यक्षता ऐसा व्यक्ति करता है जो किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश रह चुका हो। अध्यक्ष के साथ एक सक्रिय सदस्य होता है जिसके पास जिला न्यायाधीश के रूप में कम से कम सात वर्ष का अनुभव हो। सभी सदस्यों का चयन सरकार द्वारा किया जाता है। भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को लोक न्यायालय की शक्तियाँ प्रदान की गयी है।

मानवाधिकार आयोग की आवश्यकता

मानवधिकार आयोग की स्थापना और कार्य प्रणाली का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक व्यक्ति को उसके मूलभूत अधिकारों का संरक्षण मिले। मानवधिकार आयोग की आवश्यकता को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:

  1. मानवाधिकारों की रक्षा: मानवाधिकार आयोग का प्रमुख कार्य मानवधिकारों की रक्षा करना है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न हो और उन्हें न्याय मिले।
  2. शिकायत निवारण: नागरिकों को अपने मानवधिकारों के उल्लंघन की शिकायत दर्ज कराने के लिए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष मंच उपलब्ध कराना आवश्यक है। मानवधिकार आयोग इस भूमिका को निभाता है और शिकायतों की जांच करता है।
  3. जागरूकता और शिक्षा: मानवाधिकारों के बारे में जनता में जागरूकता फैलाना और शिक्षा कार्यक्रमों का आयोजन करना आवश्यक है ताकि लोग अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझ सकें। आयोग विभिन्न कार्यक्रमों और अभियानों के माध्यम से यह कार्य करता है।
  4. सरकारी नीतियों की निगरानी: आयोग सरकार की नीतियों और कार्यों की निगरानी करता है और यह सुनिश्चित करता है कि वे मानवाधिकार के अनुकूल हों। यह नीतिगत सलाह और सिफारिशें देकर सरकार की सहायता करता है।
  5. विधिक सुधार: मानवाधिकार आयोग विभिन्न कानूनों और नीतियों की समीक्षा करता है और आवश्यकतानुसार विधिक सुधार की सिफारिश करता है ताकि वे अधिक मानवाधिकारों के अनुकूल बन सकें।
  6. वंचित समूहों की रक्षा: समाज के वंचित और कमज़ोर समझे जाने वाले समूहों, जैसे कि महिलाओं, बच्चों, अनुसूचित जातियों और जनजातियों, अल्पसंख्यकों और विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें न्याय दिलाना आयोग का महत्वपूर्ण कार्य है।
  7. मानवाधिकार उल्लंघन की रोकथाम: मानवाधिकार आयोग संभावित मानवाधिकार उल्लंघनों की पहचान करता है और उन्हें रोकने के लिए समय पर हस्तक्षेप करता है। यह विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं के साथ समन्वय करके कार्य करता है।
  8. अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन: मानवाधिकार आयोग अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों और सम्मेलनों का पालन सुनिश्चित करने में सहायता करता है। यह सुनिश्चित करता है कि देश की नीतियां और कानून अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हों। मानवाधिकार आयोग की आवश्यकता इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि लोकतंत्र और न्याय का सिद्धांत मजबूत हो, और हर व्यक्ति को गरिमा, सम्मान और समानता प्राप्त हो सके। इसके बिना, मानवाधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण कठिन हो सकता है।

मानवाधिकार दिवस

मानवाधिकार दिवस हर वर्ष 10 दिसंबर को मनाया जाता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य विश्वभर में मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाना और लोगों को उनके अधिकारों के प्रति सचेत करना है। इस दिवस को मनाने की शुरुआत 10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा को अपनाए जाने के उपलक्ष्य में की गई थी।

इस घोषणा पत्र में सभी मनुष्यों के लिए बुनियादी अधिकार और स्वतंत्रता को स्पष्ट किया गया है, जैसे कि जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, समानता का अधिकार, और अत्याचार व उत्पीड़न से मुक्ति का अधिकार। मानवाधिकार दिवस पर विभिन्न कार्यक्रमों, सेमिनारों, प्रदर्शनों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, ताकि लोगों में मानवाधिकारों के महत्व और उनकी सुरक्षा के प्रति जागरूकता फैलाई जा सके।

मानवाधिकार के उल्लंघन

मानवाधिकारों का उल्लंघन विभिन्न स्तरों पर हो सकता है, और इसके परिणामस्वरूप लोगों को अनेक प्रकार की कठिनाइयों और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। यहां हम तीन प्रमुख स्तरों पर मानवाधिकार उल्लंघनों का विवरण प्रस्तुत करेंगे:

1. सामाजिक स्तर पर उल्लंघन

  • जातिवाद और नस्लवाद: कई समाजों में जाति और नस्ल के आधार पर भेदभाव होता है। उदाहरण के लिए, दलितों के साथ भारत में और अश्वेत लोगों के साथ कई पश्चिमी देशों में भेदभाव किया जाता है।
  • लिंग भेद: महिलाओं और लड़कियों को शिक्षा, रोजगार, और स्वास्थ्य सेवाओं में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। उन्हें घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न का भी शिकार होना पड़ता है।
  • धार्मिक असहिष्णुता: विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच मतभेद और संघर्ष होते हैं। अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के साथ भेदभाव और उत्पीड़न के उदाहरण मिलते हैं।
  • शारीरिक एवं मानसिक विकलांगता: विकलांग व्यक्तियों को समाज में भेदभाव और बहिष्करण का सामना करना पड़ता है। उन्हें रोजगार और शिक्षा में उचित अवसर नहीं मिलते हैं।

2. क्षेत्रीय स्तर पर उल्लंघन

  • आदिवासी और स्वदेशी समुदायों का उत्पीड़न: कई देशों में आदिवासी और स्वदेशी समुदायों के भूमि अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है। उनकी संस्कृति और जीवनशैली को नष्ट करने के प्रयास किए जाते हैं।
  • शरणार्थियों और आंतरिक विस्थापितों की स्थिति: युद्ध, संघर्ष और प्राकृतिक आपदाओं के कारण लोग अपने घरों से विस्थापित हो जाते हैं। शरणार्थियों को अन्य देशों में बुनियादी अधिकारों और सेवाओं से वंचित रहना पड़ता है।
  • बस्तियों और स्लम्स में रहने वाले लोगों की स्थिति: शहरी इलाकों में गरीब बस्तियों में रहने वाले लोग स्वच्छ पानी, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित होते हैं।

3. राजनीतिक स्तर पर उल्लंघन

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन: सरकारें कई बार अपने आलोचकों की आवाज दबाने के लिए मीडिया, पत्रकारों, और सामाजिक कार्यकर्ताओं को निशाना बनाती हैं। उन्हें जेल में बंद किया जाता है या उनके खिलाफ झूठे आरोप लगाए जाते हैं।
  • मतदान अधिकारों का उल्लंघन: कुछ सरकारें अपने नागरिकों के मतदान के अधिकार को सीमित करती हैं या चुनावी प्रक्रिया में धांधली करती हैं। इससे लोगों की राजनीतिक सहभागिता में कमी आती है।
  • तानाशाही और अधिनायकवादी शासन: कुछ देशों में सरकारें नागरिकों की स्वतंत्रता पर कठोर प्रतिबंध लगाती हैं। वहां मानवाधिकारों का व्यापक हनन होता है, जैसे कि गिरफ्तारी, यातना और बिना मुकदमे के हिरासत।
  • सांप्रदायिक और जातीय संघर्ष: राजनीतिक लाभ के लिए कुछ नेताओं द्वारा सांप्रदायिक और जातीय मतभेदों को बढ़ावा दिया जाता है, जिससे समाज में हिंसा और मानवाधिकार हनन के मामले बढ़ जाते हैं।

मानवाधिकारों से संबंधित कोन-सी नए चुनौतियाँ हैं?

राज्य जानबूझकर मानवाधिकारों का उल्लंघन कर सकता है या लापरवाही से ऐसा कर सकता है, इस प्रकार कि नयी चुनौतियां को निचे विस्तार से उजागर है।

  • गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार:
    • हाथ से मैला उठाना एक गंभीर समस्या है। इस मुद्दे के समाधान के लिए भारत सरकार ने कई नीतियाँ विकसित की हैं, फिर भी कुछ क्षेत्रों में अभी भी मैला ढोने की घटनाएँ देखने को मिल रही हैं। यह स्थिति समाज के लिए चिंता का विषय बनी हुई है और इसे समाप्त करने के लिए और प्रयासों की आवश्यकता है।
    • पशु-संरक्षित क्षेत्रों से आदिवासियों को हटाना उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन है, उनकी पहचान और संस्कृति को खतरा है, क्योंकि उनकी जीवनशैली और अधिकारों की अनदेखी की जाती है।
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार की गारंटी देता है, लेकिन शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण प्रदूषण में वृद्धि हुई है, मानव अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा हुई हैं और सामाजिक असमानता बढ़ी है।
  • महिलाओं के मानवाधिकार:
    • हमारे समाज में महिलाओं को अक्सर कमजोर समझा जाता है और उन्हें बुनियादी मानवाधिकारों से वंचित रखा जाता है। उन्हें समाज में हिंसा का सामना करना पड़ता है, चाहे वह अपने घर की सीमाओं के भीतर हो या फिर कार्यस्थल पर। यह स्थिति न केवल उनके अधिकारों का उल्लंघन करती है, बल्कि उनके आत्म-सम्मान और स्वतंत्रता को भी प्रभावित करती है। महिलाओं के प्रति यह भेदभाव समाज के विकास में एक बड़ी बाधा है।
  • कैदियों के अधिकार:
    • कैदियों के बुनियादी मानवाधिकारों का जबरन श्रम, यातना, पुलिस दुर्व्यवहार, अमानवीय व्यवहार, बलात्कार, खराब खाद्य गुणवत्ता और पानी की आपूर्ति की कमी के माध्यम से उल्लंघन किया जाता है, जिससे ऐसे अत्याचारों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
    • भारतीय सर्वोच्च न्यायालय कैदियों के मानवाधिकार उल्लंघन के मुद्दे पर सक्रियता से विचार कर रहा है, तथा उल्लंघन के प्रति गहरी जागरूकता प्रदर्शित कर रहा है।
  • शासन में भ्रष्टाचार:
    • भ्रष्टाचार प्रतिस्पर्धा को विकृत करता है, आर्थिक प्रगति में बाधा डालता है, लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्थिरता को खतरे में डालता है, तथा समाज के नैतिक आधार के साथ-साथ कानून के शासन, लोकतंत्र और मानवाधिकारों को भी प्रभावित करता है।
    • आतंकवाद विरोधी कानून के प्रावधानों का दुरुपयोग होने की संभावना है, संभवतः अल्पसंख्यकों पर ध्यान केंद्रित करके या राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर इसे लागू करके।

निष्कर्ष

मानवाधिकार के बारे में हमने जो भी अभी तक जाना उससे हमें यह ज्ञान होता है कि मानवाधिकारों का महत्व किसी भी समाज के न्यायपूर्ण विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। मानवाधिकार हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है, जो उसे गरिमामय जीवन जीने का अधिकार देता है यह अधिकार सभी को समान रूप से मिलते है।मानवाधिकार का संरक्षण मानवाधिकार का मुख्य लक्ष्य है तथा मानवाधिकार का उल्लंघन एक गंभीर मुद्दा है, जो व्यक्तियों और समुदायों को समान अवसरों से वंचित करता है और समाज में असमानता और असंतोष पैदा करता है।यह मानवाधिकार की विशेषताएं ही है जो मानव को एक बेहतर जीवन की तरफ ले जाती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रथम मानवाधिकार अध्यक्ष कौन है?

प्रथम मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति रगुनाथ मिश्र थे। उन्होंने 12 अक्टूबर 1993 को इस पद की शपथ ली थी।

मानवाधिकार आयोग का नाम बदलकर क्या रखा गया?

2006 में, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (UNCHR) में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया और इसका नाम बदलकर मानवाधिकार परिषद (HRC) कर दिया गया।

मानवाधिकार संरक्षण के लिए प्रमुख संगठनों के नाम क्या हैं?

प्रमुख मानवाधिकार संगठनों में “अम्नेस्टी इंटरनेशनल,” “ह्यूमन राइट्स वॉच,” और “फ्रंट लाइन डिफेंडर्स” शामिल हैं।

“मौलिक अधिकार” और “मानवाधिकार” में क्या अंतर है?

“मौलिक अधिकार” संविधान द्वारा प्रदान किए गए अधिकार होते हैं, जो किसी देश के नागरिकों को मिलते हैं, जबकि “मानवाधिकार” वे अधिकार हैं जो सभी मानव जाति को स्वाभाविक रूप से मिलते हैं, चाहे वे किसी भी देश के हों।

मानवाधिकार उल्लंघनों की रिपोर्टिंग के लिए कौन से प्रमुख दस्तावेज़ उपयोग किए जाते हैं?

प्रमुख दस्तावेज़ों में जांच रिपोर्ट, साक्षात्कार ट्रांसक्रिप्ट, और कानूनी दावे शामिल हैं।

मानव अधिकार में कुल कितने अधिकार हैं?

मानवाधिकारों की कुल संख्या संयुक्त राष्ट्र की घोषणा के अनुसार 30 है।

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Authored by, Amay Mathur | Senior Editor

Amay Mathur is a business news reporter at Chegg.com. He previously worked for PCMag, Business Insider, The Messenger, and ZDNET as a reporter and copyeditor. His areas of coverage encompass tech, business, strategy, finance, and even space. He is a Columbia University graduate.