khilafat andolan

khilafat andolan: कारण, आंदोलन का प्रसार, प्रभाव, महत्वपूर्ण नेता और ऐतिहासिक महत्व 

Published on June 25, 2025
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khilafat andolan

Quick Summary

  • खिलाफत आंदोलन 1919 में भारतीय मुसलमानों द्वारा तुर्की के खलीफा की सत्ता की रक्षा के लिए शुरू किया गया एक राजनीतिक-धार्मिक आंदोलन था।
  • महात्मा गांधी ने इसे असहयोग आंदोलन से जोड़कर हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया। यह आंदोलन भारत के स्वतंत्रता संग्राम में मुस्लिम समुदाय की सक्रिय भागीदारी और राजनीतिक चेतना का प्रतीक बना।

Table of Contents

खिलाफत आंदोलन क्या था? | khilafat andolan kya tha? 

खिलाफत आंदोलन क्या था, यह समझना जरूरी है कि यह 20वीं सदी की शुरुआत में भारत में उभरा एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और धार्मिक आंदोलन था। इसका मुख्य उद्देश्य तुर्की के खलीफा की सत्ता की रक्षा करना था। यह आंदोलन 1919 में तब शुरू हुआ जब भारतीय मुसलमानों ने ब्रिटिश सरकार के उस निर्णय का विरोध किया, जिसमें खलीफा की पदवी समाप्त करने की बात कही गई थी।

यह आंदोलन केवल धार्मिक भावना का प्रतीक नहीं था, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में मुस्लिम समुदाय की सक्रिय भागीदारी भी दर्शाता था। मौलाना मोहम्मद अली, शौकत अली और डॉ. अंसारी जैसे नेताओं ने इसे संगठित किया, वहीं महात्मा गांधी ने इसे असहयोग आंदोलन से जोड़कर राष्ट्रव्यापी बना दिया। 

आंदोलन का मूल अर्थ और उद्देश्य  | khilafat andolan

खिलाफत आंदोलन का मूल अर्थ था—तुर्की के खलीफा की धार्मिक सत्ता की रक्षा करना, जिसे इस्लामी जगत का आध्यात्मिक प्रमुख माना जाता था। प्रथम विश्व युद्ध के बाद जब ब्रिटिश और सहयोगी देशों ने तुर्की साम्राज्य को विभाजित करने और खलीफा की सत्ता को समाप्त करने की योजना बनाई, तो भारतीय मुसलमानों की धार्मिक भावनाएँ आहत हुईं। 

इस आंदोलन का उद्देश्य था: 

  • खलीफा की सत्ता को बनाए रखने के लिए ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाना। 
  • मुस्लिम समुदाय की धार्मिक अस्मिता की रक्षा करना। 
  • औपनिवेशिक शासन के विरोध को संगठित रूप देना। 

Khilafat Andolan का उद्देश्य धार्मिक भावनाओं की रक्षा के साथ भारत में राजनीतिक चेतना को भी जगाना था। 

 “खलीफा” शब्द का ऐतिहासिक और धार्मिक संदर्भ 

“खलीफा” अरबी शब्द है, जिसका अर्थ है “उत्तराधिकारी”। इस्लाम में खलीफा को पैगंबर मुहम्मद का प्रतिनिधि माना जाता है, जो धार्मिक और राजनीतिक नेतृत्व करता है। तुर्की का खलीफा, उस्मानी साम्राज्य के अंतर्गत, इस्लामी दुनिया का धार्मिक प्रमुख था। प्रथम विश्व युद्ध के बाद जब खलीफा की सत्ता ख़त्म होने लगी, तो भारतीय मुसलमानों में असंतोष फैला और khilafat andolan की शुरुआत हुई। 

खिलाफत आंदोलन का क्या कारण था? | khilafat andolan ka kya karan tha? 

खिलाफत आंदोलन के प्रमुख कारणों में प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव और तुर्की के खलीफा के प्रति भारतीय मुसलमानों की गहरी निष्ठा शामिल थे। 

प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव 

  • विजेता शक्तियों ने तुर्की को विभाजित कर खलीफा की सत्ता समाप्त करने की योजना बनाई। 
  • खलीफा को इस्लामी दुनिया का आध्यात्मिक नेता माना जाता था, जिससे भारतीय मुसलमानों की धार्मिक भावनाएँ आहत हुईं। 
  • ब्रिटिशों ने युद्ध के समय खलीफा की रक्षा का वादा किया था, लेकिन बाद में उसे तोड़ दिया। 
  • इस धोखे से मुसलमानों में असंतोष और ब्रिटिश सरकार के प्रति आक्रोश बढ़ा, जिससे खिलाफत आंदोलन को बल मिला।  

तुर्की के खलीफा के प्रति भारतीय मुसलमानों की निष्ठा | khilafat andolan

भारतीय मुसलमानों ने तुर्की के खलीफा को इस्लाम का धार्मिक नेता माना। जब ब्रिटिश सरकार ने खलीफा की सत्ता खत्म करने की कोशिश की, तो इसे धार्मिक अधिकारों पर हमला माना गया। इसी भावना से khilafat andolan शुरू हुआ, जो धार्मिक अस्मिता की रक्षा और ब्रिटिश विरोध का प्रतीक बन गया। 

 
प्रथम विश्व युद्ध और उसके परिणाम 

  • प्रथम विश्व युद्ध (1914–1918) के बाद तुर्की का उस्मानी साम्राज्य हार गया, जिससे खलीफा की सत्ता खतरे में पड़ गई। 
  • खलीफा, इस्लामी दुनिया के धार्मिक प्रमुख थे, इसलिए उनकी सत्ता पर संकट ने भारतीय मुसलमानों की भावनाओं को गहरा आहत किया। 
  • ब्रिटिश सरकार ने युद्ध के दौरान खलीफा की रक्षा का आश्वासन दिया था, लेकिन बाद में उसने उसे हटाने का समर्थन किया। 
  • यह ब्रिटिश धोखा भारतीय मुसलमानों को असहनीय लगा और उन्होंने इसे धार्मिक विश्वासघात माना। 
  • नतीजतन, मुस्लिम समुदाय संगठित हुआ और धार्मिक-पॉलिटिकल संघर्ष के रूप में khilafat andolan की शुरुआत हुई। 
  • यह आंदोलन भारत के स्वतंत्रता संग्राम में मुस्लिम भागीदारी का प्रतीक बना। 

 
मुसलमानों की धार्मिक भावना पर प्रभाव 

प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की की हार से खलीफा की सत्ता कमजोर पड़ी, जिससे भारतीय मुसलमानों की धार्मिक भावनाएं आहत हुईं। इसे धार्मिक पहचान और एकता पर संकट मानते हुए उन्होंने खिलाफत आंदोलन की शुरुआत की। 

ब्रिटिश नीति और धोखा

प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिशों ने खलीफा की रक्षा का वादा किया था, लेकिन बाद में उसे कमजोर करने की नीति अपनाई। इस विश्वासघात ने मुसलमानों को आक्रोशित किया और खिलाफत आंदोलन को बल मिला। 

भारत में खिलाफत आंदोलन का उदय और प्रसार | khilafat andolan kab hua 

खिलाफत आंदोलन कब हुआ, यह जानना महत्वपूर्ण है कि भारत में इसकी शुरुआत 1919 में हुई थी। यह आंदोलन मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय द्वारा तुर्की के खलीफा की सत्ता की रक्षा के लिए आरंभ किया गया था, लेकिन जल्द ही यह एक व्यापक राष्ट्रीय आंदोलन बन गया।

खिलाफत आंदोलन की समयरेखा (1919–1922) 

वर्ष प्रमुख घटना विवरण 
1919 खिलाफत समिति की स्थापना दिल्ली में अली बंधुओं (मौलाना मोहम्मद अली और शौकत अली) ने आंदोलन की नींव रखी। 
1920 असहयोग आंदोलन से गठजोड़ महात्मा गांधी ने खिलाफत आंदोलन को असहयोग आंदोलन से जोड़ा, जिससे इसे राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक समर्थन मिला। 
1922 चौरी-चौरा कांड उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा में हिंसा के चलते गांधीजी ने आंदोलन को वापस ले लिया, जिससे खिलाफत आंदोलन भी धीरे-धीरे समाप्त हो गया। 

खिलाफत आंदोलन के परिणाम | khilafat andolan ke prabhav 

राजनीतिक प्रभाव 

खिलाफत आंदोलन ने भारतीय राजनीति को गहराई से प्रभावित किया और स्वतंत्रता संग्राम की दिशा को नया मोड़ दिया। इसके दो प्रमुख राजनीतिक प्रभाव निम्नलिखित हैं: 

 
राष्ट्रीय आंदोलन में मुस्लिम भागीदारी 

  • खिलाफत आंदोलन ने मुस्लिम समुदाय को सक्रिय रूप से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ा। 
  • इससे पहले, राष्ट्रीय आंदोलन में मुस्लिम भागीदारी सीमित थी, लेकिन खलीफा के समर्थन के सवाल ने मुस्लिम जनमानस को एकजुट कर दिया। 
  • मौलाना मोहम्मद अली, शौकत अली और डॉ. अंसारी जैसे मुस्लिम नेता पहली बार अखिल भारतीय स्तर पर उभरे। 
  • यह आंदोलन धार्मिक आधार पर शुरू हुआ था, लेकिन धीरे-धीरे यह राजनीतिक रंग में रंग गया और ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध व्यापक विरोध का हिस्सा बना। 

 असहयोग आंदोलन को मिली मजबूती 

  • महात्मा गांधी ने खिलाफत आंदोलन को असहयोग आंदोलन से जोड़कर हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बनाया। 
  • दोनों आंदोलनों का एक साथ चलना स्वतंत्रता संग्राम के लिए ऐतिहासिक मोड़ था। 
  • इससे असहयोग आंदोलन को गांव-गांव तक पहुंचने में मदद मिली और अधिक व्यापक जन समर्थन मिला। 
  • गांधीजी ने इसे “धार्मिक और राजनीतिक एकता का सुनहरा अवसर” बताया। 
  • यह एकता भारत में ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध पहली बार इतने संगठित और समन्वित प्रयास के रूप में देखी गई। 

धार्मिक और सामाजिक प्रभाव 

खिलाफत आंदोलन का धार्मिक और सामाजिक प्रभाव गहरा लेकिन दोधारी था। एक ओर इसने सांप्रदायिक एकता का दुर्लभ अवसर पैदा किया, वहीं दूसरी ओर भविष्य में सांप्रदायिक तनाव की नींव भी रख दी। 

 
हिंदू-मुस्लिम एकता का क्षणिक उदय 

  • खिलाफत आंदोलन और असहयोग आंदोलन के संयुक्त प्रयासों ने पहली बार हिंदू-मुस्लिम समुदायों को एक मंच पर लाया। 
  • महात्मा गांधी ने इस एकता को भारत की आज़ादी के लिए अनिवार्य माना और मुसलमानों की धार्मिक मांगों का समर्थन किया। 
  • देशभर में दोनों समुदायों ने मिलकर रैलियाँ, सभाएं और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए। 
  • यह समय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सांप्रदायिक एकता का एक ऐतिहासिक लेकिन क्षणिक अध्याय बना। 

 
सांप्रदायिक तनाव की शुरुआत 

  • खलीफा की सत्ता समाप्त होने के बाद खिलाफत आंदोलन कमजोर पड़ गया और मुस्लिम नेतृत्व बिखरने लगा। 
  • आंदोलन की असफलता से दोनों समुदायों के बीच अविश्वास बढ़ने लगा। 
  • कुछ स्थानों पर धार्मिक असंतोष और हिंसा की घटनाएं भी सामने आईं। 
  • हिंदू और मुस्लिम नेताओं के बीच उद्देश्य और प्राथमिकताओं में मतभेद बढ़े, जिसने आगे चलकर सांप्रदायिक राजनीति को जन्म दि 

नेताओं की छवि और भूमिका में बदलाव 

खिलाफत आंदोलन ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में नेताओं की छवि और भूमिका को गहराई से प्रभावित किया। यह आंदोलन केवल धार्मिक भावना से जुड़ा नहीं था, बल्कि इसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को नया आयाम दिया। 

  • गांधीजी की लोकप्रियता में वृद्धि खिलाफत आंदोलन में सक्रिय भागीदारी से महात्मा गांधी राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख नेता बनकर उभरे। उन्होंने धार्मिक एकता पर ज़ोर देते हुए हिंदू-मुस्लिम समुदायों को एक मंच पर लाने की कोशिश की। इससे उनकी छवि सिर्फ एक राजनेता नहीं, बल्कि एक जननायक के रूप में स्थापित हुई। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में उनकी स्वीकार्यता और प्रभाव में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। 
  • मुस्लिम नेतृत्व का बिखराव खिलाफत आंदोलन की समाप्ति के बाद मुस्लिम नेतृत्व में एकता की कमी दिखने लगी। अली बंधु जैसे नेता धीरे-धीरे सक्रिय राजनीति से दूर हो गए या अलग मार्ग अपनाने लगे। आंदोलन की विफलता से कुछ मुस्लिम नेताओं का कांग्रेस से मोहभंग हुआ, जिससे बाद में मुस्लिम लीग जैसे संगठनों को बढ़ावा मिला। इससे स्वतंत्रता संग्राम में मुस्लिम नेतृत्व की भूमिका असमंजसपूर्ण हो गई। 

खिलाफत आंदोलन का महत्व | khilafat andolan ka mahatva 

खिलाफत आंदोलन भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय था। इसने पहली बार धार्मिक मुद्दे को राष्ट्रीय राजनीति से जोड़ा और हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश की। 

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान 

स्वतंत्रता संग्राम में मुस्लिम समुदाय की भागीदारी 

  • खिलाफत आंदोलन ने मुस्लिम समुदाय को पहली बार बड़े पैमाने पर स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ा। 
  • इससे यह संदेश गया कि आज़ादी की लड़ाई केवल एक धर्म या वर्ग की नहीं, बल्कि पूरे देश की है। 

 
असहयोग आंदोलन के साथ एकीकरण 

  • महात्मा गांधी ने खिलाफत आंदोलन को असहयोग आंदोलन के साथ जोड़कर देशव्यापी आंदोलन की रूपरेखा बनाई। 
  • इससे हिंदू और मुस्लिम समुदायों ने मिलकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज़ बुलंद की, जिससे ब्रिटिश सरकार पर दबाव बढ़ा। 

धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक 

  • Khilafat andolan kya tha, यह समझना ज़रूरी है क्योंकि यह वह समय था जब हिंदू और मुस्लिम समुदाय पहली बार एकजुट होकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़े। खलीफा के समर्थन में शुरू हुआ आंदोलन, जब गांधीजी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन से जुड़ा, तब यह सांप्रदायिक सीमाओं से ऊपर उठ गया। यह भारत में धार्मिक एकता का ऐतिहासिक उदाहरण बना। 
  • खिलाफत आंदोलन के प्रभाव में एक महत्वपूर्ण पहलू यह था कि मुस्लिमों की धार्मिक आस्था को राष्ट्रीय राजनीति से जोड़ा गया। गांधीजी ने धार्मिक मुद्दे को स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बनाया, जिससे आंदोलन को व्यापक जनसमर्थन मिला। यह पहली बार था जब धार्मिक भावनाएं राजनीतिक चेतना में बदल गईं। 

महात्मा गांधी की रणनीति में बदलाव | khilafat andolan

 गांधीजी का आंदोलन में सक्रिय सहयोग 

जब khilafat andolan शुरू हुआ, तो गांधीजी ने इसे सिर्फ मुसलमानों का धार्मिक मुद्दा नहीं माना, बल्कि उसे भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई से जोड़ने का फैसला किया। उनका मानना था कि अगर हिंदू और मुस्लिम एकजुट होकर अंग्रेजों का विरोध करें, तो स्वतंत्रता की राह आसान हो सकती है। इस सोच के तहत उन्होंने न केवल आंदोलन का समर्थन किया, बल्कि स्वयं इसे नेतृत्व भी दिया। 

सत्याग्रह और अहिंसा को व्यापक समर्थन 

गांधीजी ने खिलाफत आंदोलन के दौरान भी अपने प्रमुख हथियार — सत्याग्रह और अहिंसा — को आगे रखा। उन्होंने इस आंदोलन को एक शांतिपूर्ण विरोध के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे आम जनता को भी इससे जोड़ना आसान हुआ। इससे सत्याग्रह की अवधारणा को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली और अहिंसात्मक आंदोलन की जड़ें और मजबूत हुईं। 

युवाओं और बुद्धिजीवियों में चेतना का संचार

 छात्र और युवा वर्ग की भागीदारी 

  • Khilafat andolan के दौरान युवाओं में देशभक्ति की भावना तेज़ी से बढ़ी। 
  • कई छात्र पढ़ाई छोड़कर आंदोलन में शामिल हुए और सभाओं, जुलूसों व प्रचार कार्यों में सक्रिय भागीदारी निभाई। 
  • यह पहली बार था जब मुस्लिम और हिंदू युवाओं ने एक साझा राजनीतिक मंच पर मिलकर आवाज़ उठाई।  

राजनीतिक शिक्षा का आरंभ

  •  इस आंदोलन ने युवाओं और बुद्धिजीवियों को भारतीय राजनीति की गहराई से परिचित कराया। 
  • खिलाफत आंदोलन के प्रभाव के रूप में राजनीतिक विचारधारा, स्वराज, असहयोग और नागरिक अधिकार जैसे विषयों पर जागरूकता बढ़ी। 
  • युवाओं ने समझा कि ब्रिटिश शासन के विरुद्ध शांतिपूर्ण विरोध और एकजुटता कैसे कारगर हथियार बन सकते हैं। 

आंदोलन के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया | khilafat andolan

जनता का समर्थन और विरोध 

Khilafat andolan को देशभर में व्यापक जनसमर्थन मिला, विशेषकर मुस्लिम समुदाय ने इसे धार्मिक आस्था से जोड़कर पूरी निष्ठा के साथ अपनाया। गांधीजी के जुड़ने के बाद हिंदू समाज का एक बड़ा वर्ग भी इस आंदोलन का हिस्सा बना। हालांकि, कुछ बुद्धिजीवी वर्गों और शिक्षित मध्यमवर्गीय लोगों ने इसका विरोध भी किया। उनका मानना था कि धार्मिक मुद्दों को राष्ट्रीय राजनीति से जोड़ना उचित नहीं है। 

ब्रिटिश सरकार की प्रतिक्रिया 

खिलाफत आंदोलन के प्रभाव ने ब्रिटिश सरकार को चिंतित कर दिया था। सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए दमनकारी नीतियाँ अपनाईं—नेताओं को गिरफ़्तार किया गया, सभाओं पर प्रतिबंध लगाए गए, और प्रेस की स्वतंत्रता सीमित की गई। इसके बावजूद, यह आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक संगठित जनप्रतिरोध के रूप में सामने आया, जिसने स्वतंत्रता संघर्ष को नई ऊर्जा दी। 

खिलाफत आंदोलन के महत्वपूर्ण नेता | khilafat andolan ke mahatvapurna neta 

मौलाना मोहम्मद अली 

मौलाना मोहम्मद अली khilafat andolan के सबसे प्रमुख चेहरों में से थे। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ तीव्र विरोध जताया और मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ा। उनका लेखन और भाषण आंदोलन को दिशा देने में बेहद प्रभावशाली रहा। 

मौलाना शौकत अली 

मोहम्मद अली के भाई, शौकत अली भी इस आंदोलन के अगुआ नेताओं में शामिल थे। दोनों भाइयों ने मिलकर खिलाफत समिति की स्थापना की और देशभर में आंदोलन को फैलाया। वे मस्जिदों, सभाओं और प्रेस के माध्यम से जनता को जागरूक करने में सक्रिय रहे। 

महात्मा गांधी 

हालाँकि गांधीजी स्वयं हिंदू थे, लेकिन उन्होंने खिलाफत आंदोलन को समर्थन देकर हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश की। उनका उद्देश्य इसे राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ना और असहयोग आंदोलन को मजबूत बनाना था। उनके नेतृत्व ने आंदोलन को अखिल भारतीय स्वरूप दिया। 

डॉ. अंसारी 

डॉ. अंसारी एक शिक्षित और प्रभावशाली मुस्लिम नेता थे, जिन्होंने आंदोलन को संगठित करने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने राजनीतिक मंचों पर मुस्लिम हितों की मजबूती से वकालत की और गांधीजी के साथ मिलकर सांप्रदायिक एकता को बढ़ावा दिया। 

खिलाफत आंदोलन से जुड़े मुद्दे | khilafat andolan se jude mudd 

खिलाफत दिवस का आयोजन 

919 में 17 अक्टूबर को पूरे भारत में खिलाफत दिवस मनाया गया। इस दिन मुसलमानों ने अपनी दुकानों को बंद रखा और सभाओं में भाग लेकर तुर्की के खलीफा के प्रति समर्थन जताया। यह पहली बार था जब धार्मिक मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर पर संगठित विरोध दर्ज किया गया। 

मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच संवाद 

Khilafat andolan ने मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच संवाद और सहयोग की एक नई शुरुआत की। इस आंदोलन ने गांधीजी और मुस्लिम नेताओं को एक मंच पर लाकर हिंदू-मुस्लिम एकता की दिशा में एक ऐतिहासिक प्रयास किया। 

ब्रिटिश नीतियों के विरुद्ध विरोध 

ब्रिटिश सरकार द्वारा तुर्की को युद्ध में हराने के बाद खलीफा की सत्ता को समाप्त करना भारतीय मुसलमानों को अस्वीकार्य था। इसके विरोध में देशभर में धरने, जुलूस, और सभाएं आयोजित की गईं। खिलाफत आंदोलन के प्रभाव ने ब्रिटिश नीतियों को लेकर जनता में आक्रोश को तीव्र किया और असहयोग की भावना को मजबूती दी। 

निष्कर्ष | Conclusion 

खिलाफत आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय था, जिसने धार्मिक भावना और राजनीतिक संघर्ष को एक मंच पर लाकर राष्ट्रीय आंदोलन को मजबूती दी। गांधीजी के सहयोग से यह आंदोलन असहयोग आंदोलन से जुड़ा और हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बना। 

हालांकि यह एकता स्थायी नहीं रही, फिर भी आंदोलन ने युवाओं, बुद्धिजीवियों और आम जनता में राजनीतिक चेतना का संचार किया। इसके माध्यम से भारतीय मुसलमानों की भागीदारी बढ़ी और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ व्यापक विरोध का आधार तैयार हुआ। इतिहास में यह आंदोलन एक प्रेरणास्रोत के रूप में याद किया जाता है, जिसने आज़ादी की राह को मजबूत किया। 

1920 में खिलाफत आंदोलन किसने शुरू किया था?

खिलाफत आंदोलन की शुरुआत मोहम्मद अली और शौकत अली (जिन्हें आमतौर पर अली बंधु कहा जाता है), अबुल कलाम आज़ाद, हसरत मोहानी और अन्य नेताओं के नेतृत्व में हुई थी।

खिलाफत आंदोलन से आप क्या समझते हैं? (कक्षा 10)

खिलाफत आंदोलन एक ऐसा आंदोलन था जिसकी शुरुआत अली बंधुओं—शौकत अली और मोहम्मद अली—ने की थी।
(i) इस आंदोलन का उद्देश्य प्रथम विश्व युद्ध के बाद मुसलमानों की वफादारी उस्मानी साम्राज्य के प्रमुख खलीफा के प्रति प्रकट करना था।
(ii) यह आंदोलन खलीफा को बचाने के लिए शुरू किया गया था, जिसे ब्रिटिश सरकार ने प्रथम विश्व युद्ध के बाद हटा दिया था।

गांधीजी ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन क्यों किया?

गांधीजी ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन इसलिए किया क्योंकि वे इसे हिंदू-मुस्लिम एकता को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण अवसर मानते थे। उनका मानना था कि यदि मुस्लिमों को हिंदुओं के साथ मिलकर ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ संगठित किया जाए, तो स्वतंत्रता आंदोलन और अधिक सशक्त और एकजुट हो सकता है।

खिलाफत आंदोलन को किसने समाप्त किया?

खिलाफत आंदोलन उस समय कमजोर पड़ गया जब 1922 में मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने पश्चिमी एशिया माइनर से यूनानियों को हरा दिया और उसी वर्ष तुर्की के सुल्तान महमूद VI को पद से हटा दिया। अंततः 1924 में जब अतातुर्क ने खलीफा पद को पूरी तरह से समाप्त कर दिया, तब यह आंदोलन पूरी तरह खत्म हो गया।

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Authored by, Amay Mathur | Senior Editor

Amay Mathur is a business news reporter at Chegg.com. He previously worked for PCMag, Business Insider, The Messenger, and ZDNET as a reporter and copyeditor. His areas of coverage encompass tech, business, strategy, finance, and even space. He is a Columbia University graduate.