Quick Summary
रामचरितमानस में सीता का वनवास
महाभारत में अभिमन्यु का चक्रव्यूह में वध
प्रेमचंद की ‘कफन’ कहानी
सूरदास की यशोदा का श्रीकृष्ण वियोग
करुण रस के 10 उदाहरण हिंदी साहित्य का एक भावप्रधान रस है, जो शोक, दुख और संवेदना की गहन अनुभूति कराता है। जब कोई पात्र दुःख, वियोग, पराजय या पीड़ा का अनुभव करता है, तो पाठक भी उस पीड़ा को आत्मसात कर लेता है।
यह रस न केवल हृदय को स्पर्श करता है, बल्कि उसमें सहानुभूति, दया और संवेदनशीलता जैसे मानवीय गुणों का संचार करता है। करुण रस का प्रयोग कवियों ने शोकांत कथाओं, वियोग प्रसंगों, और दुःखद घटनाओं को दर्शाने के लिए किया है, जिससे साहित्य की मार्मिकता और गहराई और अधिक बढ़ जाती है |
रस का शाब्दिक अर्थ है “स्वाद” या “आनंद”।
काव्यशास्त्र में रस उस भावनात्मक आनंद को कहते हैं जो पाठक या श्रोता को किसी साहित्यिक रचना को पढ़ते या सुनते समय प्राप्त होता है।
परिभाषा (काव्यशास्त्र के अनुसार):
जब किसी कविता, नाटक, कथा आदि में भाव, शब्द, अभिनय और दृश्य के मेल से कोई विशेष भावना पाठक या दर्शक के मन में गहराई से उत्पन्न होती है, और वह उसमें डूब जाता है वही रस कहलाता है। विस्तार में जाने की रस किसे कहते है।
उदाहरण:
जब हम ‘रामचरितमानस’ में सीता के वनवास को पढ़ते हैं, तो हमारे मन में दुख और सहानुभूति जागती है। यह अनुभव करुण रस का परिचायक है।
रस कितने प्रकार के होते हैं कुल 11 प्रमुख रस माने जाते हैं, जिनमें से पहले 9 रस भरतमुनि के अनुसार हैं, और दो (वात्सल्य व भक्ति) को बाद में जोड़ा गया। हर रस का एक स्थायी भाव (शाश्वत भावना) होता है।
रस का नाम | भाव | साहित्यिक उदाहरण |
शृंगार रस(Shringar Ras) | प्रेम, सौंदर्य, मिलन-वियोग | कालिदास की अभिज्ञान शाकुंतलम् में शकुंतला-दुष्यंत का प्रेम |
रौद्र रस( Raudra Ras) | क्रोध, प्रतिशोध, उग्रता | रामायण में लक्ष्मण का शूर्पणखा पर क्रोध |
हास्य रस(Hasya Ras) | विनोद, हँसी, मज़ाक | भारतेंदु हरिश्चंद्र की हास्य रचनाएँ |
वीभत्स रस(Vibhats Ras) | घृणा, जुगुप्सा, विकृति | महाभारत में युद्ध के बाद शवों का वर्णन |
वीर रस(Veer Ras) | पराक्रम, साहस, आत्मबल | पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज की वीरता |
भयानक रस(Bhayanak Ras) | डर, संकट, भय | युद्ध की रात या जंगल में रात्रि का भय |
अद्भुत रस(Adbhut Ras) | चमत्कार, विस्मय, हैरानी | हनुमान द्वारा संजीवनी पर्वत उठाना |
शांत रस(Shaant Ras) | वैराग्य, आत्मज्ञान, संतुलन | भगवद्गीता में श्रीकृष्ण के उपदेश या बुद्ध के विचार |
करुण रस(Karun Ras) | शोक, वियोग, करुणा | रामचरितमानस में सीता का वनवास |
रस कितने प्रकार के होते हैं हिंदी साहित्य में रसों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। रस भावों का वह सजीव अनुभव है जो पाठक या दर्शक के हृदय में उत्पन्न होता है। संस्कृत और हिंदी काव्यशास्त्र में कुल 11 मुख्य रस माने गए हैं, जिनका प्रत्येक का अपना स्थायी भाव (भाव की मूल भावना) होता है। नीचे इन रसों का संक्षिप्त परिचय और उदाहरण प्रस्तुत हैं:
यह रस नायक-नायिका के सौंदर्य और प्रेम संबंधों का वर्णन करता है। इसे रसों का “रसराज” भी कहा गया है। इसका स्थायी भाव “रति” यानी प्रेम होता है।
उदाहरण:
हास्य रस में हास और हंसी की भावना प्रबल होती है। यह रस किसी की वेशभूषा या व्यवहार की विचित्रता देखकर उत्पन्न होने वाली प्रसन्नता को दर्शाता है।
उदाहरण:
इस रस का स्थायी भाव “क्रोध” है। जब किसी अन्याय या अपमान पर क्रोध आता है, तो वह रौद्र रस कहलाता है।
उदाहरण:
करुण रस में शोक और दुःख की भावना होती है। किसी प्रियजन के वियोग या मृत्यु से उत्पन्न वेदना इस रस की पहचान है।
उदाहरण:
वीर रस उत्साह, साहस और वीरता का भाव प्रकट करता है। युद्ध या कठिन कार्य के समय उत्पन्न यह रस उत्साह से भर देता है।
उदाहरण:
इस रस का स्थायी भाव “आश्चर्य” है। जब कोई अजीब, चमत्कारिक या विचित्र दृश्य देख मन आश्चर्यचकित हो, तो यह रस उत्पन्न होता है।
उदाहरण:
वीभत्स रस जुगुप्सा या घृणा का भाव होता है। यह रस घृणित वस्तुओं या अपवित्रताओं को देखकर मन में उठने वाली घृणा को दर्शाता है।
उदाहरण:
इस रस का स्थायी भाव “भय” है। जब भयावह या डराने वाली कोई घटना या वस्तु सामने आती है तो यह रस उत्पन्न होता है।
उदाहरण:
शांत रस में निर्वेद, वैराग्य और मानसिक शांति का भाव होता है। मोक्ष या आत्मज्ञान की स्थिति में मन को जो शांति मिलती है, वह इस रस का स्वरूप है।
उदाहरण:
यह रस माता-पिता, गुरु या बड़ों के बच्चों के प्रति प्रेम और स्नेह को दर्शाता है। वात्सल्य भाव अनुराग और स्नेह का प्रतीक है।
उदाहरण:
भक्ति रस में ईश्वर के प्रति श्रद्धा, प्रेम और समर्पण का भाव व्यक्त होता है। यह रस आध्यात्मिक लगाव का प्रतिनिधित्व करता है।
उदाहरण:
करुण रस किसे कहते हैं? जब किसी काव्य, कथा या दृश्य को पढ़कर या देखकर मन में शोक, वेदना, दुख या वियोग की भावना उत्पन्न होती है, तो उस भाव को करुण रस कहा जाता है। इसका स्थायी भाव “शोक” होता है। यह रस विशेष रूप से तब प्रकट होता है जब किसी प्रियजन की मृत्यु, वियोग या विपत्ति का वर्णन होता है।
करुण रस किसे कहते हैं करुण रस वह रस है जो शोक, दुख, वेदना और वियोग की स्थिति में उत्पन्न होता है। इसका स्थायी भाव “शोक” होता है। यह रस पाठक या दर्शक के मन में संवेदना और करुणा जगाता है।
उदाहरण:
(Karun ras ka udaharan) हिंदी साहित्य में करुण रस का प्रयोग दुःख, पीड़ा और शोक को अभिव्यक्त करने के लिए किया जाता है। यह रस पाठक या श्रोता के हृदय में संवेदना और करुणा उत्पन्न करता है। नीचे करुण रस के 10 उदाहरण (karun ras ka udaharan) दिए गए हैं
1. रामचरितमानस – सीता का वनवास | करुण रस के 10 उदाहरण | Karun ras ka Udaharan
उदाहरण दृश्य: जब श्रीराम गर्भवती सीता को वनवास भेजते हैं।
करुण रस: एक पत्नी का त्याग, पीड़ा और समाज की कठोरता।
पंक्ति:
“चलि पुनि रघुपति कहा सोचू नाहीं।
सीता सहित लखन पठाऊ बन माहीं।”
यह दृश्य पाठक को द्रवित करता है, क्योंकि एक धर्मनिष्ठ राजा अपनी पत्नी को लोकमत के कारण वनवास देता है।
2. महाभारत – अभिमन्यु वध | करुण रस के 10 उदाहरण | Karun ras ka udaharan
उदाहरण दृश्य: चक्रव्यूह में फँसे निहत्थे अभिमन्यु की मृत्यु।
करुण रस: एक योद्धा की असमय मृत्यु, माता सुभद्रा और अर्जुन का दुःख।
यह दृश्य दर्शाता है कि किस प्रकार एक नाबालिग वीर अपने प्राण देश के लिए अर्पण करता है।
3. प्रेमचंद की कहानी ‘कफन’ | Karun ras ka udaharan
उदाहरण दृश्य: अपनी बहू की मृत्यु के बाद पिता-पुत्र शराब पी जाते हैं।
करुण रस: गरीबी, संवेदनहीनता और समाज की त्रासदी।
कहानी में दुख यह है कि इंसान गरीबी से इतना टूट चुका है कि इंसानियत ही मर जाती है।
4. सूरदास – यशोदा का विलाप | करुण रस के 10 उदाहरण
उदाहरण दृश्य: जब बालकृष्ण गोकुल छोड़ते हैं और यशोदा विलाप करती हैं।
पंक्ति:
“जसोदा हरि पालनैं झुलावै, हलरावै दुलराइ मल्हावै।”
माँ का पुत्र से वियोग – एक अटूट करुण भाव का उदाहरण।
5. जयशंकर प्रसाद – ‘नीलकंठ’ | Karun ras ka udaharan
उदाहरण दृश्य: घायल पक्षी नीलकंठ की विवशता और उसके मृत्युपथ का चित्रण।
इस कविता में प्रकृति के प्राणियों की भी पीड़ा दिखती है जो मानवीय संवेदना को जगाती है।
6. महादेवी वर्मा – ‘माँ’ विषयक कविता | करुण रस के 10 उदाहरण
उदाहरण दृश्य: माँ की मृत्यु के बाद का खालीपन।
पंक्ति:
“मैं रोई परदेस की गलियों में, माँ तुम याद बहुत आईं।”
बेटी का माँ के बिना संसार में खुद को बेसहारा महसूस करना – गहन करुण रस।
7. भगवतीचरण वर्मा – ‘अंधों का गीत’ | करुण रस के 10 उदाहरण | Karun ras ka Udaharan
उदाहरण दृश्य: अंधे लोगों की दयनीय स्थिति – समाज से उपेक्षित, असहाय।
जब एक अंधा कहता है – “हमें रौशनी से क्या लेना, जब दुनिया ने हमें देखना ही छोड़ दिया।”
8. मीराबाई का वियोग | करुण रस के 10 उदाहरण
उदाहरण दृश्य: श्रीकृष्ण के बिना जीवन की कल्पना में मीराबाई की पीड़ा।
पंक्ति:
“पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।”
श्रीकृष्ण के वियोग में प्रेम और विरह का अद्वितीय चित्रण – भक्ति में करुण रस।
9. वृंदावनलाल वर्मा – झाँसी की रानी (ऐतिहासिक उपन्यास)
उदाहरण दृश्य: रानी लक्ष्मीबाई का अंतिम युद्ध और उनके पुत्र का वियोग।
मातृत्व, देशभक्ति और आत्मबलिदान का मिला-जुला चित्रण करुण रस को जन्म देता है।
10. आधुनिक फिल्में – ‘माँ’ पर आधारित दृश्य | Karun ras ka udaharan
उदाहरण: फ़िल्म “माँ (1999)” में एक माँ की आत्मा अपनी बेटी को न्याय दिलाने के लिए लौटती है।
बेटी की हत्या और न्याय की पुकार – एक माँ के त्याग और करुणा को दर्शाता है।
भक्ति कविता में करुण रस | करुण रस के 10 उदाहरण | Karun ras ka Udaharan in hindi
भक्ति साहित्य में भी करुण रस की गहरी छाप देखने को मिलती है। भक्त कवियों द्वारा ईश्वर के प्रति प्रेम और विरह की पीड़ा को बहुत मार्मिक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
उदाहरण: मीराबाई के पद, जहाँ वे श्रीकृष्ण के वियोग में आंसू बहाती हैं।
“पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।”
यह भक्ति रस के साथ-साथ करुण रस का भी सुन्दर मिश्रण है।
छायावादी काव्य में करुण चित्रण | करुण रस के 10 उदाहरण
छायावाद काल के कवियों ने करुण रस को प्रकृति, मानव मन और सामाजिक जीवन के दुःखों के रूप में उकेरा। उनके काव्य में अस्तित्ववादी पीड़ा, वेदना और विरह की गहराई मिलती है।
उदाहरण: जयशंकर प्रसाद की कविता ‘नीलकंठ’ जहाँ घायल पक्षी की वेदना दिखाई गई है।
“घायल नीलकंठ व्याकुल है, पंख फैलाये असहाय।”
आधुनिक साहित्य में करुण रस की झलक | Karun ras ka udaharan in hindi
आधुनिक साहित्य में करुण रस सामाजिक और व्यक्तिगत दोनों स्तरों पर प्रकट होता है। गरीबी, असमानता, वियोग और मानवीय त्रासदी को कहानियों और कविताओं में बड़े प्रभावी ढंग से दर्शाया गया है।
उदाहरण: प्रेमचंद की कहानी ‘कफन’ जहाँ गरीबी में इंसानी दुखों का मार्मिक चित्रण है।
फिल्में: ‘माँ’, ‘तुम्हारी सुलु’, जैसी फिल्मों में भी करुण रस की झलक मिलती है।
विभाव दो प्रकार के होते हैं:
अनुभाव वे शारीरिक या वाचिक क्रियाएँ होती हैं जो पात्र के भीतर की पीड़ा को व्यक्त करती हैं।
संचारी भाव वे क्षणिक भाव होते हैं जो मुख्य स्थायी भाव (यहाँ “शोक”) को गहराते हैं और करुण रस को सशक्त बनाते हैं।
करुण रस का स्थायी भाव शोक या दुःख होता है। यह भाव तब उत्पन्न होता है जब किसी प्रियजन के वियोग, मृत्यु, या अन्य दुखद परिस्थिति से गहरा दर्द महसूस होता है। करुण रस हमें मानवीय संवेदना और सहानुभूति से जोड़ता है।
उदाहरण:
रामचरितमानस में सीता का वनवास कराना, जहाँ राम अपनी गर्भवती पत्नी को समाज के विचारों के कारण वनवास भेजते हैं, यह करुण रस की प्रबल अनुभूति देता है।
पंक्ति:
“चलि पुनि रघुपति कहा सोचू नाहीं।
सीता सहित लखन पठाऊ बन माहीं।”
यह दृश्य शोक और पीड़ा को दर्शाता है और पाठक के हृदय में करुणा उत्पन्न करता है।
अनुभाव: दुख की बाहरी अभिव्यक्तियाँ | करुण रस का स्थायी भाव
दुख और करुणा की जो स्पष्ट अभिव्यक्तियाँ होती हैं, उन्हें अनुभाव कहते हैं। जैसे आँसू बहाना, छाती पीटना, विलाप करना, करुणपूर्ण शब्दों का प्रयोग आदि। ये भाव करुण रस को दर्शाने में मुख्य भूमिका निभाते हैं।
संचारी भाव: सहायक मनोभाव
ये वे भाव हैं जो करुण रस की गहराई और प्रभाव को बढ़ाते हैं। जैसे स्मृति (पुरानी यादें), मोह (लगाव), ग्लानि (पश्चाताप), विषाद (गहरा दुःख) आदि। ये भाव करुण रस की संवेदना को और जीवंत बनाते हैं।
कविताएँ: रामचरितमानस
तुलसीदास ने करुण रस को भावनात्मक गहराई के साथ प्रस्तुत किया, विशेष रूप से सीता-राम वियोग और भरत मिलाप प्रसंग में।
1. भरत मिलाप
भरत का श्रीराम के चरणों में गिरना –
“भरत प्रभु पद पंकज परे, प्रेमाति भरि लोचन जरे।”
यह दृश्य भ्रातृ प्रेम की करुण पराकाष्ठा है, जहाँ भरत राम को राजसिंहासन लौटाने आते हैं।
2. सीता-राम वियोग
राम द्वारा सीता को लोकापवाद के कारण वन में भेजना –
“चलि पुनि रघुपति कहा सोचू नाहीं।
सीता सहित लखन पठाऊ बन माहीं॥”
यह प्रसंग सीता की पीड़ा और राम की विवशता के माध्यम से गहरा करुण भाव उत्पन्न करता है।
कविताएँ: साकेत, भारत-भारती
गुप्त जी ने नारी पात्रों की पीड़ा के माध्यम से करुण रस को प्रस्तुत किया।
1. उर्मिला का वियोग (साकेत से)
लक्ष्मण के वन जाने के बाद उर्मिला का त्याग और प्रतीक्षा –
“पति गए बन, मैं रह गई गृह में,
नयन निरंतर राह निहारें।”
यह दृश्य एक पत्नी के प्रेम, त्याग और दर्द को मार्मिकता के साथ दर्शाता है।
आलोचक रूप में दृष्टिकोण:
रामचन्द्र शुक्ल ने करुण रस को नैतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बताया। उनके अनुसार, करुण रस पाठक में संवेदना, दया और आत्मचिंतन को उत्पन्न करता है।
उदाहरण:
शुक्ल जी ने प्रेमचंद की कहानी ‘सद्गति’ जैसे साहित्य को करुण रस का उत्कृष्ट उदाहरण माना है, जिसमें एक दलित की मृत्यु और ब्राह्मण की संवेदनहीनता को दिखाया गया है।
कविताएँ: रसिकप्रिया
केशवदास ने राधा-कृष्ण के वियोग प्रसंगों के माध्यम से करुण रस को सजाया।
1. राधा-कृष्ण वियोग
“राधा बिरहिं ब्याकुल भई, नयन नीर भरि रोइ।
सुनि मुरली की तान को, मन डोलत सब कोई॥”
इस दृश्य में राधा का कृष्ण के बिना रहना और विरह की वेदना, करुण रस का उत्कृष्ट उदाहरण है।
करुण रस का उद्देश्य पाठक के हृदय में सहानुभूति, दया और संवेदना जगाना है। यह समाज की पीड़ा को उजागर कर मानवता और संवेदनशीलता को बढ़ावा देता है।
करुण रस साहित्य को भावनात्मक गहराई देता है, जिससे पाठक पात्रों की पीड़ा को महसूस कर पाते हैं। यह रस पाठक के भीतर दया, करुणा और सहानुभूति जैसे मानवीय भावों को जगाता है।
उदाहरण:
महाभारत में अभिमन्यु वध या प्रेमचंद की ‘कफन’ कहानी दोनों ही पाठक को गहराई से प्रभावित कर पीड़ा का अनुभव कराते हैं।
करुण रस का उद्देश्य केवल भावुकता नहीं, बल्कि पाठक में नैतिक जागरूकता और संवेदना जगाना है। यह दूसरों के दुःख को समझने और उनके प्रति सहानुभूति व करुणा रखने की प्रेरणा देता है।
उदाहरण:
प्रेमचंद की ‘कफन’ कहानी और रामायण में सीता का वनवास दोनों ही करुण रस के माध्यम से पाठक को आत्मचिंतन और सामाजिक अन्याय पर सोचने को प्रेरित करते हैं
करुण रस पाठक के भीतर आत्मचिंतन और आत्मानुभूति की भावना जगाता है। यह न केवल दूसरों के दुःख से जुड़ने की प्रेरणा देता है, बल्कि व्यक्ति को अपने जीवन और संवेदनाओं की ओर भी लौटने का अवसर देता है।
उदाहरण:
महादेवी वर्मा की कविता “मैं रोई परदेस की गलियों में…” केवल माँ के वियोग का वर्णन नहीं, बल्कि हर पाठक को अपने अधूरे रिश्तों की पीड़ा से जोड़ती है।
करुण रस हिंदी साहित्य का भावप्रधान रस है, जो पाठक के मन में दुख, पीड़ा और संवेदना की अनुभूति कराता है। इसका भावात्मक पक्ष मानवीय करुणा, सहानुभूति और दया से जुड़ा होता है।
जब कोई पात्र वियोग या शोक से गुजरता है, तो पाठक भी उसकी पीड़ा को महसूस करता है, जिससे मानवीय मूल्य जैसे संवेदनशीलता और सामाजिक जागरूकता जागृत होती है।
करुण रस का स्थायी भाव शोक होता है, जो दुःख, पीड़ा और वियोग से जुड़ा होता है। जब किसी पात्र की हानि या व्यथा प्रस्तुत की जाती है, तो यह रस पाठक के मन में गहरी संवेदना और सहानुभूति उत्पन्न करता है। यही शोक करुण रस की आत्मा है, जो पूरे साहित्यिक भाव को नियंत्रित करता है।
करुण रस की विशेषता यह है कि यह केवल भावुकता तक सीमित नहीं रहता, बल्कि पाठक के मन में करुणा, दया और मानवता की भावना को जागृत करता है।
यह रस दूसरों के दुःख को समझने, सहानुभूति रखने और मानवीय मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देता है।
करुण रस साहित्य को भावनात्मक गहराई और मानवीय संवेदना से समृद्ध करता है। यह पाठक को भावनात्मक रूप से जोड़ता है और उसे न्याय, करुणा, त्याग और सहिष्णुता जैसे मूल्यों की ओर उन्मुख करता है। करुण रस के माध्यम से साहित्य समाज में नैतिक जागरूकता और सुधार का माध्यम बनता है।
करुण रस का प्रभाव पाठक के हृदय में संवेदनशीलता और सहानुभूति की भावना जागृत करता है। दुखद दृश्य मन को झकझोरते हैं और दूसरों के दुःख को समझने की क्षमता बढ़ाते हैं, जिससे व्यक्ति अधिक दयालु और मानवीय बनता है।
करुण रस साहित्य के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों, अन्याय और मानवता की पीड़ा को उजागर करता है। यह रस पाठकों में सहानुभूति, दया और नैतिकता का संचार करता है और उन्हें सामाजिक अन्याय के खिलाफ जागरूक और संवेदनशील बनाता है। इस प्रकार, करुण रस समाज सुधार और नैतिक शिक्षा का शक्तिशाली साधन है।
करुण रस किसे कहते हैं करुण रस साहित्य में शोक, संवेदना और मानवीय भावनाओं की गहराई को प्रकट करता है। यह पाठक के हृदय में करुणा और आत्मचिंतन की भावना जाग्रत करता है।
आधुनिक संदर्भ में, यह रस आज भी उतना ही प्रभावी है, विशेष रूप से सामाजिक अन्याय, युद्ध और पीड़ा पर आधारित साहित्य में। यह पाठक को भावनात्मक रूप से जोड़कर उसे सोचने पर मजबूर करता है।
करुण रस का दूसरा नाम शोक रस (Shok Ras) होता है।
यह रस दुःख, पीड़ा, करुणा, वियोग, असहायता या जीवन की त्रासदी को व्यक्त करता है। करुण रस का स्थायी भाव शोक (दुख) होता है, इसलिए इसे शोक रस भी कहा जाता है।
रामचरितमानस में मुख्य रूप से शृंगार रस और करुण रस की प्रमुखता है, लेकिन इसमें वीर, भक्ति, शांत, वात्सल्य और अन्य रसों का भी सुंदर समावेश है।
करुण रस के प्रमुख कवि मैथिलीशरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, सूरदास और रहीम थे। इनकी रचनाओं में दुःख, शोक और करुणा की मार्मिक अभिव्यक्ति मिलती है।
करुण रस के अधिष्ठान देवता (देवता या presiding deity) यमराज माने जाते हैं।
यमराज मृत्यु और शोक के देवता हैं, और करुण रस का स्थायी भाव शोक (दुःख) होने के कारण, इस रस में इन्हीं की भावना प्रमुख मानी जाती है।
करुण रस का स्थायी भाव शोक (दुःख) होता है।
यह रस तब उत्पन्न होता है जब किसी काव्य में दुःख, वियोग, पीड़ा या करुणा की स्थिति का वर्णन होता है।
“अबला जीवन हाय! तुम्हारी यही कहानी,
आँचल में है दूध और आँखों में पानी।”
— मैथिलीशरण गुप्त
यह उदाहरण नारी जीवन की पीड़ा और असहायता को दर्शाता है, जो करुण रस की भावनाओं को जाग्रत करता है।
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Authored by, Amay Mathur | Senior Editor
Amay Mathur is a business news reporter at Chegg.com. He previously worked for PCMag, Business Insider, The Messenger, and ZDNET as a reporter and copyeditor. His areas of coverage encompass tech, business, strategy, finance, and even space. He is a Columbia University graduate.
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