Karma Bhagavad Gita Quotes in Hindi

Karma Bhagavad Gita Quotes in Hindi

Published on May 5, 2025
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Karma Bhagavad Gita Quotes in Hindi

Quick Summary

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

अर्थ: कर्म करने का अधिकार तो तुम्हारे पास है, परन्तु उसके फल पर कभी अधिकार नहीं। इसलिए कर्मफल को प्राप्त करने का हेतु मत बनाओ और न ही कर्म में लगाव रखो।

Table of Contents

भगवद गीता, भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का एक अनमोल ग्रंथ है, जिसे स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन को उपदेश के रूप में दिया था। इसे 700 श्लोकों में संकलित किया गया है और यह ज्ञान, भक्ति, और कर्म का अद्भुत संगम है। गीता में कर्म का सिद्धांत बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस ब्लॉग में karma bhagavad gita quotes in hindi , गीता उपदेश इन हिंदी, गीता उपदेश कर्म पर विस्तार से चर्चा की गई है। गीता के उपदेश हमें जीवन में सही मार्ग पर चलने, हर परिस्थिति में संतुलित रहने, और सच्चे आत्म-संयम के साथ जीने की प्रेरणा देते हैं।

Geeta Krishna Quotes in Hindi | Karma Bhagavad Gita quotes in Hindi

भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अनेक ऐसे karma bhagavad gita quotes in hindi दिए हैं, जो जीवन में सही दिशा और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह बताया कि हमारे जीवन का उद्देश्य केवल फल प्राप्त करना नहीं है, बल्कि अपने कर्तव्यों का पालन करना है। geeta krishna quotes in hindi में नीचे भागवत गीता के 10 कोट्स संस्कृत से हिंदी मीनिंग के साथ दिए गए हैं जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को स्पष्ट करते हैं:

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”

अर्थात, “तुम्हारा अधिकार केवल कर्म पर है, उसके फल पर नहीं।” यह गीता का सबसे प्रसिद्ध श्लोक है, जो सिखाता है कि हमें केवल कर्म करना चाहिए, फल की चिंता किए बिना।

“योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय”

मतलब, “हे अर्जुन, योग में स्थित होकर अपने कर्म करो और फल के प्रति आसक्ति त्यागो।”

“सर्व धर्मान परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज”

इसका अर्थ है, “सभी धर्मों को छोड़कर मेरी शरण में आओ।” श्रीकृष्ण का यह कथन भक्ति के महत्व को दर्शाता है और यह बताता है कि अंत में केवल भक्ति ही मुक्ति का मार्ग है।

“संयम की शक्ति से ही व्यक्ति वास्तविकता को देख पाता है।”

यह कथन आंतरिक शक्ति और संयम के महत्व को उजागर करता है, जो हमें किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक है।

“जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च। तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि॥”

जन्मने वाले की मृत्यु निश्चित है और मरने वाले का जन्म निश्चित है इसलिए जो अटल है अपरिहार्य है उसके विषय में तुमको शोक नहीं करना चाहिये।

“देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा। तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति॥”

जैसे इस शरीर में आत्मा (जीव) के लिए बाल्यकाल, युवावस्था और वृद्धावस्था आती है, वैसे ही मृत्यु के बाद वह आत्मा एक नए शरीर को प्राप्त करती है। जो ज्ञानी व्यक्ति है, वह इस परिवर्तन से भ्रमित नहीं होता।

“न जायते म्रियते वा कदाचिन्, नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥”

“आत्मा न कभी जन्म लेती है और न ही कभी मरती है। यह न तो किसी समय उत्पन्न हुई है और न ही भविष्य में कभी उत्पन्न होगी। आत्मा अजन्मा, नित्य, शाश्वत और प्राचीन है। शरीर के नष्ट हो जाने पर भी आत्मा का नाश नहीं होता।”

“नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥”

आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते और न अग्नि इसे जला सकती है जल इसे गीला नहीं कर सकता और वायु इसे सुखा नहीं सकती।

“हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्। तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः॥”

या तो तू युद्ध में मारा जाकर स्वर्ग को प्राप्त होगा अथवा संग्राम में जीतकर पृथ्वी का राज्य भोगेगा।

“सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ। ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि॥”

सुख दुख, लाभ हानि और जय पराजय को समान करके युद्ध के लिये तैयार हो जाओ इस प्रकार तुमको पाप नहीं होगा।

श्रीमद् भगवद् गीता के कुछ प्रमुख उद्धरण (Bhagavad Gita Quotes in Hindi):

  1. तुम्हारा अधिकार केवल कर्म में है, उसके फल में कभी नहीं।
  2. योग कर्मों में कुशलता है।
  3. जो हुआ, वह अच्छे के लिए था; जो हो रहा है, वह अच्छे के लिए हो रहा है; और जो होगा, वह भी अच्छे के लिए ही होगा।
  4. आत्मा नित्य, अविनाशी और अमर है।
  5. क्रोध से भ्रम उत्पन्न होता है, और भ्रम से बुद्धि का नाश होता है।

ये सभी geeta krishna quotes in hindi के महत्वपूर्ण कथन हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने, कर्म करने, और शांत चित्त से रहने की प्रेरणा देते हैं।

श्री कृष्ण अर्जुन गीता उपदेश | Karma Bhagavad Gita quotes in Hindi

अर्जुन, जो महाभारत के युद्ध में पांडवों की ओर से लड़ रहा था, युद्ध के मैदान में अपने रिश्तेदारों को देख कर मानसिक दुविधा में पड़ गया। वह अपने गुरु, भाई, चाचा और मित्रों के साथ युद्ध करने के विचार से विचलित हो गया। इस मनोस्थिति में उसने अपने धनुष-बाण छोड़ दिए और युद्ध न करने का निर्णय लिया। उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने उसे गीता का उपदेश दिया और उसे कर्म के महत्व को समझाया। उन्होंने अर्जुन से कहा कि वह एक योद्धा है और उसका धर्म, उसका कर्म युद्ध करना है।

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सिखाया कि हमें अपने कर्मों को निष्काम भाव से करना चाहिए, यानी फल की चिंता किए बिना। इसके साथ ही, उन्होंने बताया कि हर व्यक्ति का जीवन में एक उद्देश्य होता है, और उसे उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। गीता के इस उपदेश के माध्यम से श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म, भक्ति, और ज्ञान का सही अर्थ समझाया और उसे युद्ध के मैदान में अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए प्रेरित किया।

प्रेरणादायक गीता उपदेश कर्म

यहाँ “प्रेरणादायक कर्म उपदेश” के मुख्य बिंदु और उनके अर्थ को विस्तार से समझाया गया है-

  • निस्वार्थ कर्म का महत्व- गीता के अनुसार, असली प्रेरणादायक कर्म वही है जो निस्वार्थता से किया जाए, अर्थात् बिना किसी स्वार्थ या व्यक्तिगत लाभ की इच्छा के। श्रीकृष्ण बताते हैं कि सच्चा कर्म वही है जो आत्मिक उन्नति और समाज की सेवा के उद्देश्य से किया गया हो। इससे व्यक्ति न केवल अपने जीवन को उन्नत करता है, बल्कि समाज पर भी सकारात्मक प्रभाव डालता है।
  • हर कर्म का समाज पर प्रभाव- गीता सिखाती है कि हमारे सभी कार्यों का प्रभाव हमारे आसपास के समाज पर भी पड़ता है। यदि हम निस्वार्थ भाव से और ईमानदारी से कर्म करेंगे, तो हमारा कार्य समाज को प्रेरित करेगा और सकारात्मक बदलाव लाने में मदद करेगा।
  • कर्म में समर्पण और ईमानदारी का महत्व- श्रीकृष्ण के अनुसार, अपने कार्यों में संपूर्ण समर्पण और ईमानदारी बनाए रखना आवश्यक है। चाहे वह कोई भी कार्य हो, उसे पूरे मनोयोग से और बिना किसी फल की अपेक्षा के करना चाहिए। समर्पण का अर्थ है कि अपने कार्य को पूरी निष्ठा से करना, और ईमानदारी का मतलब है कि हम जो भी करें, उसमें सच्चाई और लगन हो।
  • शिक्षक का निस्वार्थ भाव से सिखाना- गीता के अनुसार, एक शिक्षक का कार्य न केवल ज्ञान देना है, बल्कि अपने विद्यार्थियों के भविष्य के सुधार की भावना से उन्हें शिक्षा देना है। यदि शिक्षक बिना किसी लाभ की इच्छा से, केवल अपने विद्यार्थियों के विकास की भावना से उन्हें सिखाते हैं, तो यह निस्वार्थ कर्म है और समाज में एक सशक्त नींव तैयार करता है।
  • डॉक्टर का निस्वार्थ सेवा भाव- डॉक्टर का कार्य केवल मरीज का इलाज करना नहीं है, बल्कि उनकी सेवा करना और स्वास्थ्य की रक्षा करना भी है। एक अच्छा डॉक्टर वही है जो अपने कार्य को समर्पण और ईमानदारी के साथ निभाए, बिना इस बात की परवाह किए कि उसे इसके लिए क्या लाभ मिलेगा। ऐसा निस्वार्थ भाव से किया गया कार्य समाज और व्यक्ति दोनों के लिए लाभकारी होता है।
  • सच्ची सफलता और संतोष का स्रोत- गीता में कहा गया है कि जब व्यक्ति निस्वार्थ भाव से और पूरी निष्ठा से अपने कर्तव्यों का पालन करता है, तो उसे सच्ची सफलता और आत्मिक संतोष की प्राप्ति होती है। गीता के अनुसार, सच्ची सफलता केवल धन और मान-सम्मान में नहीं है, बल्कि आत्मिक शांति और संतोष में है, जो निस्वार्थ कर्मों से ही प्राप्त होता है।
  • कर्म का फल और उसकी अनासक्ति- गीता का उपदेश है कि हमें केवल अपने कर्मों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और उनके परिणामों की चिंता छोड़ देनी चाहिए। कर्म का असली उद्देश्य फल नहीं, बल्कि समाज में योगदान और आत्म-उन्नति होना चाहिए। फल की अपेक्षा से मुक्त होकर किए गए कर्म ही सच्चे निस्वार्थ कर्म माने जाते हैं।

ये सभी बातें karma bhagavad gita quotes in hindi को स्पष्ट करते हैं और बताते हैं कि किस प्रकार निस्वार्थ भाव से किए गए कर्म हमें सच्ची सफलता और संतोष की ओर ले जाते हैं।

गीता उपदेश इन हिंदी | Karma Bhagavad Gita quotes in Hindi

यहाँ “गीता उपदेश इन हिंदी” या karma bhagavad gita quotes in hindi के मुख्य बातें और उनका विवरण इस प्रकार हैं-

सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः।
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्॥

हिंदी अनुवाद:
सभी उपनिषद् गाय हैं, भगवान कृष्ण ग्वाले हैं, अर्जुन बुद्धिमान बछड़ा हैं और भगवद्गीता का अमृत महान दूध है।

जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि॥ २-२७

हिंदी अनुवाद:
जन्मने वाले की मृत्यु निश्चित है और मरने वाले का जन्म निश्चित है इसलिए जो अटल है अपरिहार्य है उसके विषय में तुमको शोक नहीं करना चाहिये।

नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।
न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम्॥ २-६६

हिंदी अनुवाद:
संयमरहित अयुक्त पुरुष को आत्म ज्ञान नहीं होता और अयुक्त को भावना और ध्यान की क्षमता नहीं होती। भावना रहित पुरुष को शान्ति नहीं मिलती अशान्त पुरुष को सुख कहाँ?

यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्गः समाचर॥ ३-९

हिंदी अनुवाद:
यज्ञ के लिये किये हुए कर्म के अतिरिक्त अन्य कर्म में प्रवृत्त हुआ यह पुरुष कर्मों द्वारा बंधता है इसलिए हे कौन्तेय आसक्ति को त्यागकर यज्ञ के निमित्त ही कर्म का सम्यक आचरण करो।

न जायते म्रियते वा कदाचिन्
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥ २-२०

हिंदी अनुवाद:
आत्मा किसी काल में भी न जन्मता है और न मरता है और न यह एक बार होकर फिर अभावरूप होने वाला है। आत्मा अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है, शरीर के नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता।

योगयुक्तो विश‍ुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रिय:।
सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते॥ ५-७

हिंदी अनुवाद:
जो भक्ति में कर्म करता है, जो पवित्र आत्मा है, जो अपने मन और इन्द्रियों को वश में करता है, वह सबका प्रिय है और उसे सब प्रिय हैं। ऐसा व्यक्ति कर्म करते हुए भी कभी नहीं बँधता।

ये सभी बातें karma bhagavad gita quotes in hindi का सार प्रस्तुत करते हैं और यह बताते हैं कि गीता का ज्ञान हमारे जीवन को संतुलित, शांतिपूर्ण और सफल बनाने में कैसे मदद करता है।

गीता उपदेश कर्म | Karma Bhagavad Gita quotes in Hindi

यहाँ “गीता उपदेश कर्म” के मुख्य बिंदुओं का विवरण दिया गया है-

कर्म और उसका फल

  • निष्काम भाव से कर्म करना- गीता में बताया गया है कि हमें किसी भी कार्य को निष्काम भाव से, बिना किसी स्वार्थ या फल की इच्छा के करना चाहिए। निष्काम कर्म का अर्थ है अपने कार्य में पूरी निष्ठा से जुटना, लेकिन परिणामों की अपेक्षा या लालसा से दूर रहना।
  • कर्म ही जीवन का आधार- गीता सिखाती है कि कर्म ही जीवन का मुख्य आधार है और हमें जीवन में निरंतर कर्म करते रहना चाहिए। यह समझना ज़रूरी है कि कर्म से ही व्यक्ति अपने जीवन का विकास और समाज की सेवा कर सकता है।

गीता के अनुसार कर्म के प्रकार

  • सत्कर्म (पवित्र कर्म)- ऐसे कर्म जो निस्वार्थ भाव, ईमानदारी और परोपकार की भावना से किए जाते हैं। ये कर्म समाज और आत्मिक उन्नति के लिए हितकारी होते हैं।
  • विकर्म (गलत कर्म)- ऐसे कर्म जो स्वार्थ, लालच या अन्य नकारात्मक भावनाओं से प्रेरित होकर किए जाते हैं। यह कर्म न केवल व्यक्ति बल्कि समाज के लिए भी हानिकारक साबित होते हैं।
  • अकर्म (कर्म न करना)- कर्म न करना या निष्क्रियता का प्रतीक, जिसमें व्यक्ति अपने कर्तव्यों को टालता है। गीता के अनुसार, निष्क्रियता अपनाना जीवन के उद्देश्य के विरुद्ध है, और यह आत्मिक विकास में बाधा डालता है।

कर्म और फल का संबंध

श्रीकृष्ण के अनुसार, हमारे पास केवल कर्म करने का अधिकार है, लेकिन उसके फल की चिंता हमें नहीं करनी चाहिए। कर्म का फल किस रूप में मिलेगा, यह हमारे हाथ में नहीं होता; यह ईश्वर की इच्छा पर निर्भर करता है।

फल की अपेक्षा न करने का संदेश

गीता सिखाती है कि फल की अपेक्षा किए बिना केवल कर्म पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह संदेश हमें जीवन में तनावमुक्त और संतुलित रहने में सहायक होता है, क्योंकि हम केवल कर्म में ध्यान देते हैं, न कि परिणामों की चिंता में।

ये सभी बिंदु गीता के कर्म सिद्धांत को स्पष्ट करते हैं और यह बताते हैं कि निष्काम भाव से कर्म करना, सत्कर्म को प्राथमिकता देना, और परिणामों की चिंता किए बिना कर्म में मन लगाना ही सच्ची सफलता का मार्ग है।

कर्म और भाग्य का संबंध

  • कर्म और भाग्य का संबंध – गीता के अनुसार, कर्म और भाग्य का संबंध गहरा और सीधा है। यहाँ इसे विस्तार से समझाया गया है-
  • कर्म ही भाग्य का निर्माण करता है- गीता सिखाती है कि हमारा भाग्य हमारे वर्तमान के कर्मों का परिणाम होता है। यदि हम अच्छे कर्म करते हैं, तो वह अच्छे परिणामों की ओर ले जाते हैं, और बुरे कर्म हमें नकारात्मक परिणामों का सामना करवा सकते हैं।
  • भाग्य में परिवर्तन संभव है- गीता के अनुसार, किसी का भाग्य स्थिर नहीं होता। यह हमेशा हमारे कर्मों द्वारा प्रभावित होता है। अच्छे कर्म करने से भाग्य को बदला जा सकता है, जबकि बुरे कर्म से भाग्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • कर्म का प्रभाव तत्काल नहीं होता- श्रीकृष्ण कहते हैं कि कभी-कभी अच्छे कर्मों का परिणाम तुरंत नहीं दिखता, लेकिन निश्चित रूप से समय के साथ अच्छा फल मिलेगा। इसी प्रकार, बुरे कर्मों का प्रभाव समय के साथ धीरे-धीरे सामने आता है।
  • भाग्य के बजाय कर्म पर ध्यान केंद्रित करें- गीता का उपदेश है कि हमें अपने कर्मों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, क्योंकि कर्म के फल पर हमारी कोई पकड़ नहीं होती। भाग्य की चिंता करने के बजाय हमें अपने कर्मों को पूरी निष्ठा से करना चाहिए।
  • निष्कलंक कर्म के परिणाम- गीता में यह भी बताया गया है कि निष्कलंक और निष्काम कर्मों का फल हमेशा शुभ होता है, और यही हमारे भविष्य को उज्जवल बनाता है। जब हम कर्म करते हैं बिना किसी स्वार्थ के, तो ईश्वर भी हमारी मदद करता है और अच्छे परिणाम देता है।
  • कर्म और भाग्य के चक्र को समझना- गीता का यह संदेश है कि कर्म और भाग्य एक चक्र की तरह हैं, जिसमें हमारा वर्तमान कर्म हमारे भविष्य के भाग्य को निर्धारित करता है। प्रत्येक कर्म का हमारे जीवन पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है और यह भाग्य को आकार देता है।
  • भाग्य को अपने हाथ में लेना- गीता सिखाती है कि हम अपने कर्मों द्वारा अपने भाग्य को अपने हाथ में ले सकते हैं। अच्छे कर्मों से हम अपने भाग्य को सुधार सकते हैं और बुरे कर्मों से भाग्य को बिगाड़ सकते हैं। इसलिए, हमें अपने कर्मों को सजगता और विवेक से चुनना चाहिए ताकि हमारे भाग्य में सुधार हो सके।

निष्कर्ष

भगवद गीता के उपदेश जीवन को एक नई दृष्टि से देखने की प्रेरणा देते हैं। श्रीकृष्ण ने गीता के माध्यम से कर्म का वास्तविक अर्थ समझाया है। गीता का यह उपदेश हमारे दैनिक जीवन में बहुत ही उपयोगी है और हमें तनाव मुक्त और संतुलित जीवन जीने में सहायता करता है। इस लेख में geeta krishna quotes in hindi, गीता उपदेश कर्म, karma bhagavad gita quotes in hindi, गीता उपदेश इन हिंदी को विस्तार से बताया गया है। गीता का यह ज्ञान मानवता के लिए एक अमूल्य धरोहर है, जो आने वाले समय में भी लोगों को जीवन के सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता रहेगा।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

कर्म के बारे में गीता क्या कहती है?

गीता के अनुसार जो कर्म निष्काम भाव से ईश्वर के लिए जाते हैं वे बंधन नहीं उत्पन्न करते। वे मोक्षरूप परमपद की प्राप्ति में सहायक होते हैं। इस प्रकार कर्मफल तथा आसक्ति से रहित होकर ईश्वर के लिए कर्म करना वास्तविक रूप से कर्मयोग है और इसका अनुसरण करने से मनुष्य को अभ्युदय तथा नि:श्रेयस की प्राप्ति होती है।

भगवद गीता के अनुसार कर्म योग क्या है?

भगवद गीता में कृष्ण के अनुसार, कर्म योग “दूसरों के लाभ के लिए किए गए निस्वार्थ कर्म” की आध्यात्मिक साधना है।

गीता का शक्तिशाली श्लोक कौन सा है?

“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत! अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्भ” गवद गीता के सबसे प्रसिद्ध श्लोकों में से एक है।

भगवद गीता के 5 सत्य क्या हैं?

यहां भगवद गीता के 5 महत्वपूर्ण सत्यों का उल्लेख किया गया है:

कर्मयोग: गीता कर्मयोग का महत्व बताती है। इसका मतलब है कि हमें अपने कर्मों को निष्काम भाव से करते रहना चाहिए। फल की चिंता किए बिना कर्म करते रहना ही सच्चा धर्म है।

अध्यात्म: गीता आत्मा और परमात्मा के संबंध को स्पष्ट करती है। यह बताती है कि आत्मा अमर है और शरीर नश्वर है। आत्मा को परमात्मा से जोड़ने से ही मुक्ति मिलती है।

ज्ञानयोग: गीता ज्ञानयोग का भी महत्व बताती है। ज्ञानयोग के माध्यम से हम अपने अहंकार को त्याग कर सच्चे ज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं।

भक्ति योग: भगवान श्रीकृष्ण भक्ति योग को सबसे उत्तम मार्ग मानते हैं। भक्ति के माध्यम से हम भगवान से जुड़ सकते हैं और मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।

कर्मफल: गीता कर्मफल के सिद्धांत को भी स्पष्ट करती है। हमारे कर्मों के अनुसार ही हमें फल मिलते हैं। अच्छे कर्मों का फल अच्छा होता है और बुरे कर्मों का फल बुरा।

कर्म का श्लोक क्या है?

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥”
“नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः। शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मणः॥”

भगवद गीता के तीसरे अध्याय का श्लोक क्या है?

भगवद गीता के तीसरे अध्याय का श्लोक 3.1 है:
“अर्जुन उवाच | ज्यायसी चेत्त्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन | तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव ||”
अर्थ:-अर्जुन ने कहा, “हे जनार्दन! यदि बुद्धिमत्ता से कर्मों में कोई श्रेष्ठता है, तो आप मुझे क्यों घोर कर्मों में प्रवृत्त कर रहे हैं?

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Authored by, Amay Mathur | Senior Editor

Amay Mathur is a business news reporter at Chegg.com. He previously worked for PCMag, Business Insider, The Messenger, and ZDNET as a reporter and copyeditor. His areas of coverage encompass tech, business, strategy, finance, and even space. He is a Columbia University graduate.