कबीर दास का जीवन परिचय

कबीर दास का जीवन परिचय- साधारण जन्म, असाधारण विचार वाले महान कवि की अमर कहानी

Published on October 28, 2025
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कबीर दास का जीवन परिचय

Quick Summary

  • कबीर दास 15वीं सदी के एक महान संत, कवि और समाज सुधारक थे।
  • कबीर अंधविश्वास, व्यक्ति पूजा, पाखंड और ढोंग के विरोधी थे। उन्होने भारतीय समाज में जाति और धर्मों के बंधनों को गिराने का काम किया।
  • कबीर दास ने जाति-पाति, धर्म और ऊंच-नीच के भेदभाव का खंडन किया। उनके अनुसार, सभी मनुष्य एक हैं और ईश्वर सबमें समान रूप से विद्यमान है।
  • कबीर दास ने अपनी रचनाओं में सरल और सहज भाषा का प्रयोग किया। उनके दोहे और पद बहुत ही लोकप्रिय हुए और आम लोगों ने उन्हें आसानी से समझा।

Table of Contents

कबीर दास 15वीं सदी के प्रसिद्ध संत, कवि और समाज सुधारक थे। उनका जन्म लगभग 1398 ईस्वी में वाराणसी (काशी) में हुआ था, और उनका पालन-पोषण नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपत्ति ने किया। उन्होंने समाज में व्याप्त जातिवाद, पाखंड और अंधविश्वास का विरोध किया तथा ‘राम-राम’ नाम के एकमात्र परमात्मा की उपासना को महत्व दिया। उनकी रचनाओं में साखी, सबद, और रमैनी प्रमुख हैं, जो सधुक्कड़ी भाषा में लिखी गई हैं। कबीर दास का निधन 1518 ईस्वी में मगहर में हुआ।

कबीर दास का जीवन परिचय

उन्होंने समाज में प्रचलित अंधविश्वासों, पाखंड और जाति-धर्म के भेदभाव का विरोध किया। कबीरदास ने अपने दोहों, साखियों और रमैणियों के माध्यम से सरल भाषा में प्रेम, समानता और एकता का संदेश दिया। उनकी रचनाएँ गुरु ग्रंथ साहिब में भी शामिल हैं और उनकी शिक्षाओं से प्रेरित कबीर पंथ आज भी उनके विचारों का प्रसार करता है।

लोगों को जागरूक करने के लिए कितने बहुमूल्य कदम उठाए इसका अंदाजा यही से लगाया जा सकता है कि लोग आज भी इस कवि को नहीं भूले हैं। इस कवि ने Kabir Das Ke Dohe आम जनमानस के सामने उनकी समस्याओं को उजागर कर उनका भला करने की कोशिश की। इस कवि ने एक समाज सुधारक के तौर पर आम जनमानस के सामने उनकी समस्याओं को उजागर कर उनका भला करने की कोशिश की। Kabir das ji ka jivan parichay और यही चीज उनकी कविताओं में भी देखने को मिलती है।

कबीरदास का जीवन परिचय और प्रारंभिक जीवन | Kabir Das ka Jivan Parichay

कबीर दास का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ | Kabir Das ka Jivan Parichay
नामसंत कबीर दास
जन्म1455 (1398 AD)
वाराणसी, (अब उत्तर प्रदेश, भारत)
पिता का नामनीरू
माता का नामनीमा
पत्नी का नामलोई
संतानकमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री)
मुख्य रचनाएंसाखी, सबद, रमैनी
कालभक्तिकाल
भाषाअवधी, सुधक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी भाषा
मौत1551 (1494 AD)
मगहर, (अब उत्तर प्रदेश, भारत)

कबीर दास का जन्म और परिवार | Kabir Das ka Janm kab hua tha

ऐसा माना जाता है कि महान कवि और समाज सुधारक कबीर दास जी का जन्म 1398 ई० के करीब ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा सोमवार के दिन हुआ था। ऐसा अंदाजा लगाया जाता है कि कबीर दास जी का जन्म काशी में हुआ था। ग्रगॉरीअन कैलेंडर के अनुसार, कबीर दास जयंती मई या जून के महीने में मनाया जाता है।

कबीर दास जी की कम उम्र में शादी करा दी गई थी। उनकी पत्नी का नाम लोई था, जो कि कबीर दास की तरह एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखती थीं। शादी होने के कुछ सालों के अन्दर ही इस जाने माने कवि को दो संतानों का पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

कबीर दास का जीवन परिचय में उनका जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने अपनी शिक्षा एक हिन्दू गुरु से प्राप्त किया था। फिर भी, उन्होंने खुद को इन दोनों धर्मों के बीच के भेदभाव से बचाए रखा। वो खुद को दोनों, “अल्लाह का बेटा” और “राम का बेटा” कहते थे। कबीर दास की मृत्यु होने पर दोनों ही, हिन्दू और मुस्लिम धर्म के लोगों ने उनके अंतिम संस्कार के लिए उनके पार्थिव शरीर को लेकर विवाद खड़ा हो गया।

शिक्षा और प्रारंभिक अध्ययन

कबीर जी के पिता पेशे से जुलाहा थे। उनकी आमदनी भी कुछ खास नहीं थी। कहा जाता है कि कबीर दास जी के पिता इतने गरीब थे कि परिवार के लिए दो वक्त रोटी जुटाने के लिए भी उनको सोचना पड़ता था। इस गरीबी के चलते कबीर दास जी अपने बचपन में कभी भी किसी स्कूल या मदरसे में जाकर शिक्षा नहीं पा सके। कबीर दास बचपन से लेकर किशोरावस्था में पहुंचने तक अनपढ़ रहे और उन्होंने कभी भी स्कूली शिक्षा नहीं हासिल की। कबीर दास जी अपने पूरे जीवन काल में अनपढ़ ही रहे।

कबीर दास के दोहे में इतनी गहराई है कि दुनिया भर के साहित्यकार आज भी कबीर जी की रचनाओं के बारे में और ज्यादा जानने की कोशिश कर रहे हैं। कबीर दास के द्वारा लिखी गई कबीर दास के मशहूर दोहे पर आज भी रिसर्च चल रही है।

सूत्रों की माने तो कबीर दास जी ने अपना एक भी ग्रंथ अपने हाथों से नहीं लिया। उन्होंने जितने भी ग्रंथों को रचा उन सारे ग्रंथों को कबीर दास जी ने अपने शिष्यों को मुंह जबानी बोला और सारे ग्रंथ उनके शिष्यों ने लिखे।

कबीर दास का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ | Kabir Das ki Jivani Aur Dohe

कबीर दास जी के दोहे

अपने पूरे जीवनकाल में कबीर दास जी ने 72 से भी ज्यादा रचनाएँ की Kabir Das Ke Dohe, जो आज भी दुनिया के अलग-अलग कोनों में पढ़े जाते हैं। कबीर दास के 10 दोहे जिन्हें आज भी दोहराए जाते हैं-

कबीर दास के 10 दोहे अर्थ सहित:-

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥

  • अर्थ: कबीर कहते हैं कि जब मैं इस दुनिया में बुराई खोजने गया, तो मुझे कुछ भी बुरा नहीं मिला और जब मैंने खुद के अंदर झांका तो मुझसे खुद से ज्यादा बुरा कोई इंसान नहीं मिला।

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥

  • अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि धैर्य रखें धीरे-धीरे सब काम पूरे हो जाते हैं, क्योंकि अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा।

चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए।
वैद बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए॥

  • अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि चिंता एक ऐसी डायन है जो आदमी के कलेजे को काट कर खा जाती है। इसका इलाज वैद्य नहीं कर सकता। वो कितनी दवा लगाएगा। यानी चिंता जैसी खतरनाक बीमारी का कोई इलाज नहीं है।

गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविन्द दियो बताय॥

  • अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि गुरु और भगवान अगर साथ में खड़े हैं तो सबसे पहले गुरु के चरण छूने चाहिए, क्योंकि प्रभु तक पहुंचने का रास्ता भी गुरु ही दिखाते हैं।

साईं इतना दीजिए, जो मे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय॥

  • अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि प्रभु तुम मुझे इतना दो कि जिसमें मेरा गुजरा चल जाए, मैं खुद अपना पेट पाल सकूं और आने वाले मेहमानों को भी भोजन करा सकूं।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥

  • अर्थ: जिस प्रकार खजूर का पेड़ इतना ऊंचा होने के बावजूद आते-जाते राही को छाया नहीं दे सकता है और उसके फल तो इतने ऊपर लगते हैं कि आसानी से तोड़े भी नहीं जा सकते हैं। उसी तरह आप कितने भी बड़े आदमी क्यों न बन जाए लेकिन आपके अंदर विनम्रता नहीं है और किसी की मदद नहीं करते हैं तो आपका बड़ा होने का कोई अर्थ नहीं है।

ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए॥

  • अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं आदमी को बोली हमेशा ऐसी होनी चाहिए जो कि सामने वाले को अच्छा लगे और खुद को भी आनंद की अहसास हो।

जीवन में मरना भला, जो मरि जानै कोय।
मरना पहिले जो मरै, अजय अमर सो होय॥

  • अर्थ: जीते जी ही जो कोई मृत्यु को जान लेता है। मरने से पहले ही वो अमर हो जाता है। शरीर रहते-रहते जिसके सारे घमंड खत्म हो गए, वे वासना – विजयी ही जीवन मुक्त होते हैं।

मैं जानूँ मन मरि गया, मरि के हुआ भूत।
मूये पीछे उठि लगा, ऐसा मेरा पूत॥

  • अर्थ: भूलवश मैंने जाना था कि मेरा मन भर गया, परन्तु वह तो मरकर प्रेत हुआ। मरने के बाद भी उठकर मेरे पीछे लग पड़ा, ऐसा यह मेरा मन बालक की तरह है।

शब्द विचारी जो चले, गुरुमुख होय निहाल।
काम क्रोध व्यापै नहीं, कबूँ न ग्रासै काल॥

  • अर्थ: गुरु शब्दों को मान कर जो चलता है, उसे मुक्ति मिल जाती है। उसे काम क्रोध नहीं सताते और उसे मन कल्पनाओं छुटकारा मिल जाता है।

कबीर दास का जीवन परिचय से पता चलता है कि एक संत और कवि होने के साथ साथ समाज सुधारक भी थे। Kabir Das Ke Mashhur Dohe की हर एक पंक्ति में अंधविश्वास और जात पात जैसे मुद्दों को चोट करने की कोशिश की।

कबीर का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ: भक्ति के संदेश

भक्ति काल के कवि कबीर दास जी के दोहे आज भी बच्चों को पढ़ाई जाते हैं ‘गुरु गोविंद दोऊं खड़े, काके लागूं पांय…’। 4 जून 2023 को संत कबीर दास की जयंती मनाई जा रही है। संत कबीरदास भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं।

कबीरदास की रचनाएं

कबीर की वाणी का संग्रह `बीजक’ के नाम से प्रसिद्ध है। इसके तीन भाग हैं-

रचनाअर्थप्रयुक्त छंदभाषा
रमैनीरामायणचौपाई और दोहाब्रजभाषा और पूर्वी बोली
सबदशब्दगेय पदब्रजभाषा और पूर्वी बोली
साखीसाक्षीदोहाराजस्थानी पंजाबी मिली खड़ी बोली

भक्ति के संदेश

  • कबीर दास जी की सबसे बड़ी खासियत ये थी कि वो जिस भी भाषा में किसी किताब को लिखते थे। उसमें उस भाषा के स्थानीय शब्दों का इस्तेमाल करना नहीं भूलते थे। यही कारण है कि कबीर दास जी के दोहे आज भी देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग पुस्तकों की वजह से पहचाने जाते हैं।
  • कबीर दास जी का मानना था कि ईश्वर संसार के कण कण में समाया हुआ है। हर मन में परमेश्वर का निवास है। इसलिए ईश्वर को ढूंढने की आवश्यकता नहीं है। ईश्वर को एकाग्र मन से याद करने की आवश्यकता है।
  • कबीर जी का कहना था कि गुरु से बड़ा कुछ भी नहीं होता। इसीलिए अपने गुरु की तन मन धन से सेवा करना और गुरु के वचनों पर विश्वास करना एक भक्त का कर्तव्य होता है। इसके अलावा किसी भी तरह की मुसीबत आने पर आपको सिर्फ और सिर्फ अपने गुरु को याद करना चाहिए। इस दौरान आपको किसी और के बारे में ज़रा भी नहीं सोचना चाहिए।
  • कबीर ने कहा है कि आपको साधु गुरु की सेवा सद्भाव और प्रेम से करनी चाहिए। साथ ही गुरु गुण से संपन्न साधु को आपको अपने गुरु के समान समझना चाहिए। कबीर ने इसी तरह के कई और बहुमूल्य भक्ति से जुड़े संदेश दिए हैं।

कबीर दास की रचनाएं | Kabir Das ki Rachnayen

  • वहीं बात करें (kabir das ki rachnaen) कबीर की रचनाओं की तो कबीर दास जी ने अपने पूरे जीवनकाल में कई ऐसी रचनाएं लिखीं जिसको पढ़कर लोग आज भी मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
  • कबीर दास जी भक्ति काल के अकेले ऐसे कवि थे जिन्होंने समाज को सुधारने और लंबे समय से चली आ रही कुरीतियों पर चोट करने की कोशिश की। लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए कबीर दास जी ने कालजयी साहित्य को लिखा। इसीलिए उन्हें निर्गुण धारा के सबसे प्रमुख कवियों में से एक माना जाता है। कबीर दास के दोहे और कविताएं आज के समय में भी इतनी ज्यादा मार्मिक लगती है कि जिसने भी कबीर दास के दोहे अर्थ सहित पढ़ा उसने बार-बार उनकी किताबें का य किया।
  • अपनी रचनाओं के माध्यम से कबीर दास ने अंधविश्वास के साथ-साथ जात-पात और छुआछूत जैसे मुद्दों के बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाने की कोशिश की। उनके द्वारा लिखे गए दोहे सीधे और कटाक्ष भरे होते हैं। कबीर दास के मशहूर दोहे आम जनमानस को धर्म और जाति से परे एक साथ जोड़ने की कोशिश की है। इन्हीं खूबियों के चलते कबीर दास को एक शानदार कवि के साथ-साथ अच्छा समाज सुधारक भी माना जाता है।

कबीर दास जी के भजन | कबीर के भजन

ऐसा कोई ना मिला, समुझै सैन सुजान | Aisa Koi Na Mila, Samjhay Sain Sujaan

ऐसा कोई ना मिला, समुझै सैन सुजान।
ढोल बाजता ना सुनै, सुरति-बिहूना कान।।

ऐसा कोई ना मिला, हम को देइ पहिचान।
अपना करि किरपा करै, ले उतार मैदान।।

हम देखत जग जात है, जग देखत हम जाहिं।
ऐसा कोई ना मिला, पकरि छुड़ावै बाहिं।।

प्रेमी ढूँढत मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोय।
प्रेमी से प्रेमी मिले, विष से अमृत होय।।

सिश तो ऐसा चाहिये, गुरु को सब कुछ देय।
गुरु तो ऐसा चाहिये, सिश से कछु न लेय।।

हेरत हेरत हेरिया, रहा कबीर हिराय।
बुंद समानी समुंद में, सो कित हेरी जाय।।

हेरत हेरत हे सखी, रहा कबीर हिराय।
समुंद समाना बुंद में, सो कित हेरा जाय।।

हरि बिन कौन सहाई मन का | Hari Bin Kaun Sahaee

हरि बिन कौन सहाई मन का।

1. मात पिता भाई सुत बनिता, हित लागो सब फन का।

2. आगे को कुछ तुलहा बांधो, क्या मरवासा मन का।

3. कहा बिसासा इस भांडे का, इत्र नक लागै टन का।

4. सगल धर्म पुण्य पावहुं, धर बांछहू सब जन का।

5. कहै कबीर सुनो रे संतो, मन उड़त पखेरू बन का।

बरजी मैं काहूकी नाहिं रहूं | Barji Main Kahuki Nahin Rahoon

बरजी मैं काहूकी नाहिं रहूं।
सुणो री सखी तुम चेतन होयकै मनकी बात कहूं॥

1. साध संगति कर हरि सुख लेऊं जगसूं दूर रहूं।
तन धन मेरो सबही जावो भल मेरो सीस लहूं॥

2. मन मेरो लागो सुमरण सेती सबका मैं बोल सहूं।
मीरा के प्रभु हरि अविनासी सतगुर सरण गहूं॥

कबीर दास का सामाजिक और धार्मिक संदेश

कबीरदास के जन्म के समय भारत की हालत बहुत खराब थी। एक तरफ मुसलमान शासकों की कट्टरता से लोग परेशान थे, और दूसरी तरफ हिंदू धर्म के पाखंड और कर्मकांड से धर्म कमजोर हो रहा था। लोगों में भक्ति की भावना नहीं थी और पंडितों के पाखंडपूर्ण बातें समाज में फैल रहे थे। ऐसे कठिन समय में कबीरदास का जन्म हुआ।

Kabirdas जिस समय आए, उससे कुछ पहले भारत में एक बड़ी घटना हुई थी—इस्लाम धर्म का आगमन। इसने भारतीय समाज और धर्म को हिला कर रख दिया था। जाति व्यवस्था को पहली बार कड़ी चुनौती मिली थी। पूरे देश में हलचल और अशांति थी। कबीर दास जी की इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर उनके बारे में कहा जाता है कि वह जितने अच्छे कवि थे उससे कहीं अच्छे समाज सुधारक थे।

सभ्यता और जातिवाद के खिलाफ

आम जीवन के साथ-साथ कबीर दास जी के दोहे ने भी जातिवाद का डटकर विरोध किया है। इतना ही नहीं उन्होंने हिंसा के साथ-साथ क्रूरता और अन्याय के खिलाफ भी आवाज उठाई है। उन्होंने सच्चाई की लाठी का सहारा लेकर समाज का कल्याण करने की कोशिश की है, जिससे लोगों के मन से छल कपट और अहंकार जैसी भावना हमेशा हमेशा के लिए गायब हो जाए। इसी वजह से कबीर दास जी के बारे में कहा जाता है कि वो अपने समय से आगे के लेखक थे।

एकता और समरसता का संदेश

  • कबीर दास का जीवन परिचय – कबीर दास हमेशा से चाहते थे कि देश और समाज का हर नागरिक अपने आप को किसी धर्म या जात-पात के झूठे खांचे में ढालने से बचे।
  • ऐसा करके लोगों के मन में अपने आप एकता की भावना पनपने लगेगी। कुछ ऐसा ही छुआछूत के मामले में भी है जिसके चलते किसी एक जाति या धर्म का इंसान खुद को दूसरी जाति या धर्म के इंसान से ऊंचा मानकर उसे छूने तक से कतराता है।
  • कबीर दास जी का कहना था कि इस तरह की चीज समाज को जोड़ने की बजाय तोड़ने का काम करती हैं। और हमें इस तरह की चीजों से बचना चाहिए।

कबीर दास का जीवन परिचय 100 शब्दों में

कबीर दास हिंदी साहित्य के महान संत, कवि और समाज सुधारक थे। उनका जन्म 1398 ई. में बनारस (वाराणसी) में हुआ। वे जुलाहा परिवार में जन्मे थे। कबीर दास ने अपने जीवन को साधु जीवन और भक्ति के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने राम और कृष्ण भक्ति के साथ-साथ ईश्वर के प्रति समान दृष्टि का संदेश दिया। उनकी रचनाएँ सरल और प्रभावशाली भाषा में हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ साखी, दोहा और भजन हैं। कबीर ने जातिवाद और अंधविश्वास के खिलाफ लिखा। उनका निधन 1518 ई. में हुआ। उन्हें भक्ति काल के महान संत कवि माना जाता है।

कबीर दास का जीवन परिचय 300 शब्दों में

कबीर दास हिंदी साहित्य के महान संत, कवि और समाज सुधारक थे। उनका जन्म 1398 ई. में बनारस (वाराणसी) में एक जुलाहा परिवार में हुआ। बचपन से ही कबीर में अद्भुत धार्मिक और आध्यात्मिक रुचि थी। उन्होंने समाज में व्याप्त जातिवाद, अंधविश्वास और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ अपने दोहों और भजनों के माध्यम से लोगों को जागरूक किया।

कबीर दास का जीवन भक्ति, साधना और ईश्वर के प्रति प्रेम से भरा हुआ था। उन्होंने केवल राम और कृष्ण की भक्ति ही नहीं, बल्कि ईश्वर के प्रति समान दृष्टि और सरल भक्ति का संदेश भी दिया। उनके भक्ति काव्य में सत्य, प्रेम, करुणा और समाज सुधार की झलक मिलती है। कबीर की भाषा सरल और सर्वजन के लिए समझने योग्य थी, यही कारण है कि उनकी रचनाएँ आज भी अत्यंत लोकप्रिय हैं।

कबीर दास के बारे में 10 मुख्य बातें | Kabir Das ki 10 Visheshtaye

  1. सत्य की पहचान के लिए Kabir Das ने ‘अहं’ या स्वयं के अभिमान को त्यागने का उपदेश दिया।
  2. भक्तिकाल के इस असाधारण कवि ने अनेक विस्मयकारी काव्य रचनाएँ प्रस्तुत कीं।
  3. कबीर की कविताएँ हिंदी की विविध बोलियों जैसे ब्रज, भोजपुरी और अवधी में मिलती हैं।
  4. ऐसी मान्यता है कि कबीर दास जी का जन्म 1398 ईस्वी में लहरतारा के पास, काशी (वाराणसी) में हुआ था।
  5. संत कबीर दास का लालन-पालन नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपति ने किया।
  6. Kabir Das का विवाह लोई नामक महिला से हुआ, जिनसे उनके दो बच्चे, कमाल और कमाली, हुए।
  7. कबीर दास प्रसिद्ध वैष्णव संत रामानंद जी को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे।
  8. वे एकेश्वरवादी थे और हर प्रकार के कर्मकांड के विरोधी थे।
  9. कहा जाता है कि कबीर दास अपने अंतिम दिनों में मगहर चले गए थे, जहाँ 1518 ईस्वी में उनका देहांत हुआ।
  10. रामानंद जी, जो एक जाने-माने वैष्णव संत थे, Kabir Das के गुरु थे।

कबीर दास की प्रमुख रचनाएँ साखी, दोहा और भजन हैं। उन्होंने समाज में समानता और धार्मिक एकता का संदेश फैलाया। उनका साहित्य केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। कबीर दास का निधन 1518 ई. में हुआ। उन्हें भक्ति काल के महान संत कवि के रूप में हमेशा याद किया जाता है।

कबीर दास का जीवन परिचय 500 शब्दों में | Kabir Das ka Jivan Parichay

प्रस्तावना:

कबीर दास जी (जन्म लगभग 1440 ईस्वी, वाराणसी) मध्यकालीन भारत के एक महान संत, कवि और समाज सुधारक थे। उनके जन्म का विवरण रहस्यमय है, लेकिन उनका लालन-पालन नीरू और नीमा नामक एक गरीब मुस्लिम जुलाहा दंपति द्वारा किया गया। एक साधारण परिवेश में हिंदू और मुस्लिम, दोनों संस्कृतियों के बीच पले-बढ़े कबीर ने बचपन से ही धार्मिक आडंबरों और सामाजिक भेदभाव पर सवाल उठाए।

संत कबीर दास(kabirdas) भारतीय साहित्य और अध्यात्म के महान कवियों में गिने जाते हैं। उनका पालन-पोषण एक जुलाहा दंपत्ति, नीरू और नीमा ने किया था। कबीर दास ने भारतीय समाज में आध्यात्मिक जागृति का नवचेतन प्रवाह शुरू किया। वे 15वीं सदी के प्रमुख रहस्यवादी संत और कवि थे, जिनकी रचनाओं ने भक्ति आंदोलन को गहराई से प्रभावित किया। कबीर दास को न केवल हिंदू, बल्कि मुस्लिम और सिख समुदायों द्वारा भी समान रूप से सम्मान दिया जाता है।

प्रमुख योगदान और पहचान

कबीर ने भक्ति आंदोलन में एक अग्रणी भूमिका निभाई। उन्होंने स्थानीय जनभाषा हिंदी का उपयोग करते हुए कालजयी दोहे और कविताएँ लिखीं, जिनमें उन्होंने निम्नलिखित विषयों को प्रमुखता दी:

  • धार्मिक रूढ़िवादिता की आलोचना: उन्होंने मूर्तिपूजा, कर्मकांड, और अंधविश्वासों पर कठोर प्रहार किया।
  • सामाजिक समानता का प्रचार: उन्होंने जाति और धर्म पर आधारित भेदभाव का खंडन किया, और सभी मनुष्यों के बीच एकता और प्रेम का संदेश फैलाया।
  • निर्गुण भक्ति: उन्होंने निराकार (फॉर्मलेस) ईश्वर की उपासना पर ज़ोर दिया।

निजी जीवन और निर्भीक संदेश

कबीर ने अपने व्यक्तिगत जीवन में भी सादगी और आध्यात्मिक मूल्यों को महत्व दिया। उनका विवाह लोई से हुआ और उनके पुत्र कमाल थे, लेकिन उन्होंने कभी भी भौतिक मोह-माया को प्राथमिकता नहीं दी। उन्होंने हिंदू या मुस्लिम किसी भी पहचान से बंधने से इनकार कर दिया और सत्य तथा करुणा के पक्षधर के रूप में अपनी निर्भीक आवाज़ उठाई। विरोध और अत्याचारों का सामना करने के बावजूद, उन्होंने प्रेम और धार्मिक सद्भाव का संदेश फैलाना जारी रखा।

विरासत और प्रभाव

आज भी कबीर का प्रभाव व्यापक है। उनकी शिक्षाओं ने भारत में धार्मिक सद्भाव और सामाजिक समानता को बढ़ावा दिया है। उनकी विरासत निम्नलिखित माध्यमों से जीवित है:

  • उनके अनुयायियों द्वारा स्थापित कबीर पंथ।
  • उनकी रचनाओं का सिखों के पवित्र ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में शामिल होना।
  • साहित्य, दर्शन और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में उनका योगदान आज भी प्रासंगिक है।

कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे | Kabir Das ke Dohe

  1. गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय, बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय। (गुरु और गोविंद दोनों खड़े हैं, किसके चरणों में लगूँ? हे गुरु, मैं तुझ पर बलिहारी हूँ, जिसने गोविंद का मार्ग बताया।)
  2. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। (पुस्तकें पढ़ते-पढ़ते संसार थक गया, कोई पंडित नहीं हुआ। जिसने प्रेम के ढाई अक्षर पढ़ लिए, वही सच्चा ज्ञानी है।)
  3. माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर। (युग बीत गया माला फेरते हुए, पर मन का भाव नहीं बदला। हाथ की माला को छोड़ दे, मन की माला को फेर।)
  4. जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान। (साधु की जाति मत पूछो, उसका ज्ञान जान लो। तलवार का मोल करो, म्यान को पड़ा रहने दो।)
  5. जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय, यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय। (जगत में कोई शत्रु नहीं, यदि मन शांत हो। इस अहंकार को त्याग दो, सब कोई दया करेंगे।)
  6. साईं इतना दीजिए, जा में कुटुंब समाय, मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय। (हे प्रभु, मुझे इतना दीजिए जिसमें मेरा परिवार समा जाए, मैं भी भूखा न रहूं और साधु भी भूखा न जाए।)
  7. तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई, सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ। (शरीर को तो सब जोगी बनाते हैं, मन का जोगी कोई विरला होता है। सारी सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं, यदि मन जोगी हो जाए।)
  8. माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर, आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर। (माया मरी न मन मरा, शरीर मर-मर कर चला गया, आशा और तृष्णा नहीं मरी, ऐसा कबीर कह गए।)
  9. बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर, पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर। (बड़ा होकर भी क्या हुआ जैसे खजूर का पेड़, जो न पंथी को छाया देता है और न फल आसानी से लगते हैं।)
  10. जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही, सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही। (जब मेरे अंदर अहंकार था तब हरि नहीं थे, अब हरि हैं तो मैं नहीं हूँ। दीपक के दर्शन से सारा अंधकार मिट गया।)
  11. “माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे । एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे।” (मिट्टी कुम्हार से कहती है, तू मुझे क्या रौंदता है? एक दिन ऐसा आएगा जब मैं तुझे रौंदूंगी।)
  12. “पाथर पूजे हरी मिले, तो मै पूजू पहाड़ ! घर की चक्की कोई न पूजे, जाको पीस खाए संसार !!” (यदि पत्थर पूजने से हरि मिलते हैं, तो मैं पहाड़ पूज लूँगा! घर की चक्की को कोई नहीं पूजता, जिससे सारा संसार पीस कर खाता है!)
  13. “गुरु गोविंद दोऊ खड़े ,काके लागू पाय । बलिहारी गुरु आपने , गोविंद दियो मिलाय।।” (गुरु और गोविंद दोनों खड़े हैं, किसके चरणों में लगूँ? हे गुरु, मैं तुझ पर बलिहारी हूँ, जिसने गोविंद से मिलाया।)
  14. “यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।” (यह शरीर विष की बेल है, गुरु अमृत की खान हैं। यदि गुरु मिल जाएँ तो शीश देना भी सस्ता जानो।)
  15. “उजला कपड़ा पहरि करि, पान सुपारी खाहिं । एकै हरि के नाव बिन, बाँधे जमपुरि जाहिं॥” (उजले कपड़े पहनकर और पान सुपारी खाकर भी, हरि के नाम के बिना वे यमपुरी में बंधे जाएँगे।)
  16. “निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें । बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए।” (निंदक को अपने पास रखो, आँगन में कुटिया छवाकर। वह बिना पानी और साबुन के तुम्हारे स्वभाव को निर्मल करेगा।)
  17. “प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए । राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए।” (प्रेम न खेत में उगता है, न बाजार में बिकता है। राजा हो या प्रजा, जिसे भी रुच जाए, वह अपना शीश देकर इसे ले जाता है।)
  18. “ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये । औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।” (ऐसी वाणी बोलिए जिससे आपका अहंकार दूर हो जाए और वह दूसरों को शांति दे और आपको भी शांति मिले।)
  19. “जिनके नौबति बाजती, मैंगल बंधते बारि । एकै हरि के नाव बिन, गए जनम सब हारि॥” (जिनके यहाँ नौबत बजती है और द्वार पर मंगल गीत गाए जाते हैं, वे भी हरि के नाम के बिना अपना पूरा जीवन हार जाते हैं।)
  20. “कबीर’ नौबत आपणी, दिन दस लेहु बजाइ । ए पुर पाटन, ए गली, बहुरि न देखै आइ॥” (कबीर कहते हैं, अपनी नौबत दस दिन बजा लो। यह शहर, यह गलियाँ फिर देखने को नहीं मिलेंगी।)
  21. “जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप । जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप।” (जहाँ दया है वहाँ धर्म है, जहाँ लोभ है वहाँ पाप है। जहाँ क्रोध है वहाँ काल है, जहाँ क्षमा है वहाँ आप (ईश्वर) हैं।)

कबीर दास जी के बारे में कुछ अनजाने तथ्य

  • जन्म और पालन-पोषण का रहस्य:
    • माना जाता है कि उनका जन्म 1398 ई. में काशी (वाराणसी) के लहरतारा तालाब के पास एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था, जिसने लोक-लाज के भय से उन्हें त्याग दिया था।
    • उनका पालन-पोषण एक मुस्लिम जुलाहा दंपति नीरू और नीमा ने किया था।
    • इसलिए, उनके जन्म और परिवार को लेकर हमेशा से एक रहस्य बना रहा है।
  • अशिक्षा और ज्ञान:
    • कबीर दास जी स्वयं कहते थे कि उन्होंने कभी कागज नहीं छुआ और न ही कलम पकड़ी (“मसि कागद छुयौ नहीं, कलम गही नहिं हाथ”)।
    • इसके बावजूद, उनके पास अद्भुत आत्मज्ञान और अनुभव पर आधारित ज्ञान था, जिसे उन्होंने अपनी साखियों, सबदों और रमैनी के माध्यम से अभिव्यक्त किया।
  • मृत्यु स्थान का महत्व:
    • उस समय यह अंधविश्वास प्रचलित था कि काशी में मरने से मोक्ष मिलता है और मगहर में मरने से नरक मिलता है।
    • इस अंधविश्वास को तोड़ने के लिए कबीर दास जी अपने अंतिम समय में काशी छोड़कर मगहर (उत्तर प्रदेश) चले गए और वहीं पर देह त्याग किया।
  • गुरु का महत्व:
    • कबीर जी के गुरु स्वामी रामानंद थे, जो हिंदू परंपरा के एक प्रसिद्ध संत थे, जबकि कबीर का पालन-पोषण मुस्लिम परिवार में हुआ था। यह उस समय की सांप्रदायिक सद्भाव की एक अनूठी मिसाल है।
  • रचनाओं का संग्रह:
    • कबीर की वाणियों का संग्रह मुख्य रूप से ‘बीजक’ (साखी, सबद, रमैनी) में है।
    • इसके अलावा, उनकी कई रचनाएँ सिखों के ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ और दादू दयाल के ‘दादू पंथ’ में भी सम्मिलित की गई हैं।
  • जीवन पर संकट:
    • कुछ मान्यताओं के अनुसार, कबीर को अपने जीवनकाल में अपने सच्चे ज्ञान का प्रमाण देने के लिए 52 बार कसौटी से गुजरना पड़ा, यानी उन्हें मारने के 52 असफल प्रयास किए गए थे।
  • कबीर पंथ:
    • कबीर दास जी की शिक्षाओं और सिद्धांतों को मानने वाले एक अलग धार्मिक संप्रदाय को ‘कबीर पंथ’ कहा जाता है, जिसके अनुयायी आज भी बड़ी संख्या में मौजूद हैं।
  • भाषा शैली:
    • उनकी भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ या ‘पंचमेल खिचड़ी’ कहा जाता है, क्योंकि इसमें ब्रज, अवधी, भोजपुरी, पंजाबी और राजस्थानी सहित कई भाषाओं के शब्द मिलते हैं।

कबीरदास जी का जीवन परिचय | Kabir Das ka Jivan Parichay Class 9

Kabirdas जी भक्ति काल के महान संत, कवि और समाज सुधारक थे। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से लोगों को सच्चाई, प्रेम, ईमानदारी और भगवान की भक्ति का रास्ता दिखाया।

कबीरदास का जन्म 15वीं शताब्दी में हुआ था। कुछ लोग मानते हैं कि वे काशी (वर्तमान वाराणसी) में जन्मे थे। कहा जाता है कि उनका पालन-पोषण एक मुस्लिम जुलाहा परिवार ने किया था, जिनका नाम नीरू और नीमा था। उनका जीवन बहुत साधारण था, वे जुलाहा (कपड़ा बुनने का काम) करते थे।

कबीरदास जी ने समाज में फैली कुरीतियों, अंधविश्वासों और बाहरी दिखावे का विरोध किया। उन्होंने हिंदू और मुसलमान, दोनों धर्मों की कट्टरता पर सवाल उठाए और एक ऐसे ईश्वर की भक्ति पर ज़ोर दिया जो सबके भीतर बसता है। उनका मानना था कि मंदिर और मस्जिद में भगवान को खोजने के बजाय अपने भीतर झांकना चाहिए।

उनकी भाषा सरल, सधी हुई और लोगों की बोलचाल की भाषा थी, जिसमें सधुक्कड़ी, अवधी और भोजपुरी का मिश्रण था। उन्होंने अपने दोहों और साखियों में जीवन की सच्चाइयों को बहुत आसान तरीके से समझाया।

कबीर के प्रमुख ग्रंथों में ‘बीजक’, ‘साखी ग्रंथ’, ‘कबीर ग्रंथावली’ प्रमुख हैं। उनके दोहे आज भी बहुत लोकप्रिय हैं, जैसे:

“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।”

Kabirdas जी का संदेश था – सभी धर्मों का आदर करो, और सत्य, प्रेम और ईश्वर की भक्ति का रास्ता अपनाओ। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सच्चा भक्ति भाव बाहरी दिखावे में नहीं, बल्कि दिल की सच्चाई में होता है।

उनका निधन मगहर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था, लेकिन उनकी वाणी आज भी लोगों को मार्ग दिखा रही है।

कबीर दास की विरासत और प्रभाव | Kabir Das in Hindi

संत कबीर प्रभाव-कबीर दास का जीवन परिचय
  • कबीर दास की लेखनी का भक्ति आंदोलन पर एक खास असर देखने को मिला, जिसके चलते बीजक के साथ-साथ कबीर ग्रंथावली और सखी ग्रंथ को धरोहर के रूप में शामिल किया गया है।
  • कबीर दास जी की लेखनी का इस्तेमाल गुरु ग्रंथ में भी किया गया है। कबीर के द्वारा लिखे गए कुछ छंद को गुरु ग्रंथ साहिब में एक खास जगह दी गई है।
  • आपको बता दे कि कबीर दास के प्रमुख कार्यों का संकलन पांचवें सिख गुरु, अर्जुन देव जी द्वारा किया गया था। ऐसे में आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि कबीर का विरासत पर कितना गहरा असर है।

आधुनिक समाज पर प्रभाव

कबीर दास जी ने अपनी वाणी के बल पर, अपनी लेखनी और अपने विचारों के बल पर समाज में फैल रही कुरीतियों और बुराइयों को दूर करने में एक अहम किरदार अदा किया है। कबीर दास जी ने धार्मिक पाखंड और कुरीतियों को जड़ से उखाड़ फेंकने की कोशिश की है। उनका कहना है कि भगवान को पाने के लिए आपको कहीं बाहर जाने या उसे बाहरी दुनिया में ढूंढने की जरूरत नहीं। भगवान आपके अंदर ही है।

कबीर दास के रचनात्मक और सामाजिक योगदान का महत्व

कबीर दास(Kabir Das)जी सामाजिक समूह के साथ-साथ जाति और धर्म से जुड़े गंभीर मुद्दों पर अपनी रचनाओं की मदद से चोट करते हुए नजर आते हैं। इसके अलावा उनकी रचनाओं का आज के व्यवसाय और शिक्षा प्रणाली पर भी गहरा असर देखने को मिलता है। इन्हीं वजहों के चलते कबीर दास जी को संसार सुधारक के तौर पर जाना जाता है। कबीर दास जी के विचार इतने ज्यादा प्रखर थे कि उनको पढ़कर आज भी लोगों की जिंदगियां सुधर रही हैं।

सभी धर्मों में समानता:

कबीर दास जी की लेखन शैली जितनी ज्यादा सरल और सादगी से भरपूर थी। उन्होंने आम जनमानस की जिंदगी को भी ऐसे ही सरल और सादगी भरपूर बनाने की कोशिश की है। कबीर दास की मृत्यु 15 जनवरी 1518 में हुई।

कबीर ने सभी धर्मों की समानता पर ज़ोर दिया और यह कहा कि हर धर्म का मूल संदेश एक ही है।

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निष्कर्ष

इस लेख के माध्यम से हमने कबीर दास का जीवन परिचय / Kabir Das ka Jivan Parichay और उनके काव्य की अनूठी रचनाओं को देखा। कबीर दास जी के अमर काव्यों में उनकी भक्ति, समाज सुधारक दृष्टि और सहिष्णुता के संदेश हमें आज भी प्रेरित कर रहे हैं। यही वजह है कि कबीर दास जी को आज भी न केवल देश बल्कि दुनिया भर के सबसे महान कवियों की श्रेणी में रखा जाता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

कबीर दास के जीवन में महत्वपूर्ण अनुयायी कौन-कौन थे?

कबीर दास के जीवन में उनके अनुयायी प्रमुख रूप से कबीर पंथी थे, जिन्होंने उनकी शिक्षाओं को फैलाने और उनके भजनों का प्रचार करने का कार्य किया।

कबीर दास के जीवन के प्रमुख स्थल कौन से हैं? 

कबीर दास के जीवन के प्रमुख स्थल में काशी (वाराणसी), जहां उनका जन्म हुआ, और मगहर, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली, शामिल हैं।

कबीर दास के जीवन में क्या प्रमुख संघर्ष थे? 

कबीर दास के जीवन में प्रमुख संघर्ष धार्मिक आडंबर, जातिवाद, और समाज के पिछड़े वर्गों के प्रति भेदभाव के खिलाफ थे।

कबीर दास के विचारों को कौन-कौन से प्रमुख दार्शनिकों ने प्रभावित किया?

कबीर दास के विचारों को प्रमुख रूप से संत शंकराचार्य, रामानंद, और अन्य भक्ति संतों द्वारा प्रभावित किया गया था।

कबीर दास की शिक्षाओं में प्रमुख विषय क्या थे?

कबीर दास की शिक्षाओं में प्रमुख विषय ईश्वर की निराकारता, धार्मिक एकता, और सामाजिक समानता शामिल थे।

भगत कबीर का धार्मिक संबंध किससे था?

भगत कबीर का धार्मिक संबंध किसी एक धर्म तक सीमित नहीं था।
वे ऐसे संत थे जिन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों की रूढ़ियों की आलोचना की और एक ऐसा मार्ग अपनाया जो भक्ति और सूफी परंपराओं का समन्वय था। उन्होंने ईश्वर की भक्ति को सबसे ऊपर रखा और कहा कि भगवान एक ही हैं, चाहे उन्हें राम कहा जाए या रहीम। उनके विचारों में जाति, पंथ और धार्मिक भेदभाव के खिलाफ स्पष्ट विरोध था।
इसलिए कबीर को एक ऐसे संत के रूप में जाना जाता है जो धर्मों के पार जाकर आध्यात्मिक एकता की बात करते थे।

कबीर दास का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

उनका जन्म लगभग 1398 ईस्वी में काशी (वाराणसी) के पास लहरतारा तालाब में हुआ माना जाता है।

कबीर की पत्नी और बच्चों के नाम क्या थे?

उनकी पत्नी का नाम लोई और उनके दो बच्चे- पुत्र कमाल और पुत्री कमाली थे।

कबीर किस काल के कवि थे?

वे हिंदी साहित्य के भक्तिकाल की निर्गुण धारा (ज्ञानमार्गी शाखा) के प्रमुख कवि थे।

Authored by, Aakriti Jain
Content Curator

Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.

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