Quick Summary
आज के समय में, जब हम पर्यावरण संरक्षण और स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक हो रहे हैं, ऑर्गेनिक फार्मिंग या जैसा कि हिंदी में कहा जाता है। जैविक खेती, एक महत्वपूर्ण विकल्प के रूप में सामने आ रही है। जैविक खेती क्या है? ये एक ऐसी कृषि पद्धति है, जो प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हुए, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के बिना, गुणवत्तापूर्ण खाद्य उत्पादन पर केंद्रित है।
जैविक खेती एक ऐसी प्रणाली है, जो पूरी तरह से प्राकृतिक प्रक्रियाओं और संसाधनों पर आधारित होती है, जिसमें रासायनिक या कृत्रिम पदार्थों का कोई उपयोग नहीं किया जाता। इसका उद्देश्य मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखना, जैव विविधता को बढ़ावा देना और एक संतुलित व स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित रखना है। जैविक खेती का मूल लक्ष्य है – पौष्टिक और रसायन-मुक्त खाद्य पदार्थों का उत्पादन।
जैविक खेती ऐसी कृषि पद्धति है (Jaivik krishi kise kahate hain) जिसमें फसलों की खेती बिना रासायनिक उर्वरकों (fertilizers), कीटनाशकों (pesticides) और हानिकारक रसायनों के की जाती है। इसमें केवल प्राकृतिक खाद जैसे गोबर की खाद, कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद, नीम की खली और प्राकृतिक कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है।
ऑर्गेनिक फार्मिंग को jaivik kheti हिंदी में कहा जाता है। जैविक खेती क्या है? | Jaivik kheti kya Hai, ये एक ऐसी कृषि प्रणाली है जिसमें रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMOs) का उपयोग नहीं किया जाता है। इसके बजाय, ये प्राकृतिक प्रक्रियाओं, जैविक खाद, और पारिस्थितिक संतुलन पर निर्भर करती है। जैविक खेती का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के अनुकूल तरीके से स्वस्थ और पोषक खाद्य पदार्थों का उत्पादन करना है।
| क्रम संख्या | जैविक खेती का प्रकार | परिभाषा / विवरण |
|---|---|---|
| 1 | पारंपरिक जैविक खेती | इसमें स्थानीय संसाधनों और पारंपरिक तकनीकों का उपयोग किया जाता है, जैसे गोबर, नीम, हरी खाद आदि। |
| 2 | समन्वित खेती (Integrated Farming) | फसल, पशुपालन, मछली पालन आदि को एक साथ मिलाकर किया जाता है ताकि संसाधनों का अधिकतम उपयोग हो सके। |
| 3 | बायोडायनामिक खेती | यह खेती चंद्रमा और ग्रहों की गति के अनुसार की जाती है और इसमें विशेष बायोडायनामिक तैयारियाँ (जैसे BD-500) उपयोग होती हैं। |
| 4 | प्राकृतिक खेती | इसमें मानव हस्तक्षेप बहुत कम होता है और खेती पूरी तरह से प्रकृति के नियमों पर आधारित होती है। |
| 5 | वर्मी कंपोस्ट आधारित खेती | इसमें जैविक कचरे को केंचुओं की सहायता से खाद (वर्मी कंपोस्ट) में बदलकर प्रयोग किया जाता है। |
| 6 | जैव उर्वरक आधारित खेती | इस पद्धति में रासायनिक उर्वरकों की जगह नाइट्रोजन-फिक्सिंग जीवाणु, फॉस्फेट सॉल्यबिलाइजिंग बैक्टीरिया आदि का प्रयोग होता है। |
| 7 | कृषिपारिस्थितिक खेती (Agroecology) | इसमें पर्यावरण की जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को ध्यान में रखते हुए खेती की जाती है। |
जैविक खेती के प्रकार जो अलग-अलग परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुसार अपनाए जाते हैं। जैविक खेती के दो मुख्य प्रकार हैं:
शुद्ध जैविक खेती क्या है? शुद्ध जैविक खेती में, कृषि उत्पादन के सभी चरणों में किसी भी प्रकार के सिंथेटिक रसायन का उपयोग नहीं किया जाता है। पौधों को पोषण देने के लिए खाद, वर्मीकम्पोस्ट और अन्य जैविक पदार्थों का उपयोग किया जाता है। कीटों को नियंत्रित करने के लिए जैविक कीटनाशकों, जैसे नीम का तेल, लहसुन का अर्क आदि का उपयोग किया जाता है। वहीँ, खरपतवारों को हटाने के लिए हाथ से निराई या घास काटने जैसी यांत्रिक विधियों का उपयोग किया जाता है।
एकीकृत जैविक खेती क्या है? एकीकृत जैविक खेती में, जैविक और पारंपरिक खेती के सिद्धांतों का संयोजन किया जाता है। यह खेती की एक अधिक लचीली विधि है, जो विभिन्न परिस्थितियों और किसानों की जरूरतों के अनुकूल हो सकती है।
यह खेती कीटों, रोगों और खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए जैविक और रासायनिक दोनों विधियों का उपयोग करती है। यह खेती पारंपरिक खेती की तुलना में अधिक लागत प्रभावी हो सकती है।
जैविक खेती की विशेषताएं जैविक खेती को पारंपरिक कृषि पद्धतियों से अलग करती हैं। आइए इन विशेषताओं पर विस्तार से चर्चा करें। जैविक खेती की विशेषताएं इस प्रकार हैं:
जैविक खेती की विशेषताएं में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग न करना शामिल है जिसमे रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर कंपोस्ट, हरी खाद, प्राकृतिक जैविक उर्वरक, लाभदायक सूक्ष्मजीवों के जैव उर्वरक, और फसल चक्रीकरण का उपयोग किया जाता है। ये विकल्प मिट्टी की उर्वरता को प्राकृतिक रूप से बढ़ाते हैं, पर्यावरण के अनुकूल हैं, और दीर्घकालिक मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखते हैं।
कीटनाशकों का प्राकृतिक विकल्प भी जैविक खेती की विशेषताएं में शामिल है, जिससे जैविक खेती में कीट नियंत्रण के लिए प्राकृतिक विधियाँ जैसे जैविक कीटनाशक, परभक्षी कीड़े, फेरोमोन ट्रैप, फसल रोटेशन और अंतर-फसल का उपयोग किया जाता है। ये तरीके पर्यावरण के अनुकूल हैं और हानिकारक कीटों को नियंत्रित करते हुए लाभदायक जीवों की रक्षा करते हैं।
मिट्टी की उर्वरता का संरक्षण जैविक खेती की विशेषताएं में से एक है जिसमे, जैविक खेती में मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के मुख्य तरीके:
जैविक खेती में जल संरक्षण के लिए कई प्रभावी तरीके अपनाए जाते हैं। इनमें ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर जैसी कुशल सिंचाई प्रणालियाँ, वर्षा जल संचयन, मिट्टी में जैविक पदार्थों की वृद्धि, सूखा प्रतिरोधी फसलों का चयन, और मल्चिंग शामिल हैं। ये तकनीकें पानी की बर्बादी को कम करते हुए, मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ाते हैं और कृषि में पानी के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करती हैं। जल संसाधनों का संरक्षण भी जैविक खेती की विशेषताएं में से इसकी ख़ास विशेषता है।
जैविक खेती के लाभ की बात करें तो जैविक खेती के कई महत्वपूर्ण लाभ हैं जो इसे एक आकर्षक विकल्प बनाते हैं:
पर्यावरण के लिए अनुकूल:
जैविक खेती में रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता, जिससे मिट्टी, जल और वायु प्रदूषित नहीं होते। यह पर्यावरण की सुरक्षा में सहायक है।
स्वस्थ और पौष्टिक भोजन:
जैविक खेती से प्राप्त खाद्य पदार्थ रसायन-मुक्त और पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं।
स्थायी कृषि प्रणाली:
यह खेती मिट्टी की उर्वरता बनाए रखती है और जैव विविधता को बढ़ावा देती है, जिससे लंबे समय तक निरंतर फसल उत्पादन संभव होता है।
आर्थिक रूप से फायदेमंद:
Jaivik kheti की लागत अपेक्षाकृत कम होती है और जैविक उत्पादों की बाजार में मांग अधिक होती है, जिससे किसानों को अच्छा आर्थिक लाभ मिल सकता है।
जैविक खेती के सिद्धांत कुछ इस प्रकार है:
जैविक खेती के उद्देश्य इस कृषि पद्धति के मूल दर्शन को प्रतिबिंबित करते हैं। आइए इन उद्देश्यों पर विस्तार से चर्चा करें। जैविक खेती के उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
जैविक खेती के उद्देश्य में स्वास्थ्यवर्धक और सुरक्षित खाद्य पदार्थों का उत्पादन करना शामिल है:
जैविक खेती पर्यावरण संरक्षण को एक जैविक खेती के उद्देश्य के रूप में रखती है:
जैविक खेती के उद्देश्य में जैविक खेती का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है, एक ऐसी कृषि प्रणाली विकसित करना जो लंबे समय तक चल सके:
इन जैविक खेती के उद्देश्य के माध्यम से, जैविक खेती न केवल गुणवत्तापूर्ण खाद्य उत्पादन सुनिश्चित करती है, बल्कि एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाती है जो पर्यावरण, समाज और अर्थव्यवस्था के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास करता है। यह एक ऐसी कृषि प्रणाली है जो वर्तमान की जरूरतों को पूरा करते हुए भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी संसाधनों को सुरक्षित रखती है।
| जैविक खाद का प्रकार | अनुमानित कीमत (₹ प्रति किलो) | विशेषताएँ |
|---|---|---|
| वर्मी कम्पोस्ट | ₹5 – ₹15 | केंचुओं से बनी, पोषक तत्वों से भरपूर |
| गोबर की खाद (सूखी/सड़ी) | ₹2 – ₹6 | आसानी से उपलब्ध, मिट्टी की संरचना सुधारती |
| हरी खाद | ₹1 – ₹3 | खेत में ही उगाई जाती है, सस्ती और उपयोगी |
| जैव उर्वरक (राइजोबियम आदि) | ₹10 – ₹30 | सूक्ष्म जीवाणुओं पर आधारित, फसल-विशेष प्रभाव |
| बायोगैस स्लरी | ₹1 – ₹4 | बायोगैस संयंत्र से प्राप्त, तरल रूप में भी उपलब्ध |
| पंचगव्य | ₹20 – ₹40 | देसी गाय के उत्पादों से बनी, जैविक शक्ति बढ़ाती |
नीचे जैविक खेती की तकनीकों को संक्षेप में तालिका-रूप में प्रस्तुत किया गया है। प्रत्येक बिंदु टिकाऊ/जैविक कृषि सिद्धांतों से संरेखित है।
| श्रेणी | तकनीक/कदम | संक्षिप्त विवरण |
|---|---|---|
| मिट्टी प्रबंधन | जैविक पदार्थ बढ़ाएँ | गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट, नाडेप/घना कम्पोस्ट से कार्बनिक पदार्थ व सूक्ष्मजीव सक्रियता बढ़ाएँ। |
| कवर क्रॉप/हरी खाद | ढैंचा, सनै, क्लोवर, अल्फाल्फा जैसी नाइट्रोजन-फिक्सिंग फसलें बोकर जुताई से मिलाएँ। | |
| मल्चिंग | सूखी घास/फसल-अवशेष से नमी-संरक्षण, खरपतवार दमन और कटाव में कमी। | |
| फसल विविधता | फसल चक्र | दलहन–अनाज–तिलहनी का रोटेशन कर कीट/रोग दबाव घटाएँ और पोषण संतुलन रखें। |
| मिश्रित/अंतरवर्तीय खेती | सहफसली संयोजनों से संसाधन-उपयोग व जोखिम-वितरण बेहतर करें। | |
| उर्वरक | कम्पोस्ट/खाद | अच्छी तरह सड़ी खाद का प्रयोग; कच्चे गोबर का सीधा प्रयोग सीमित रखें। |
| जैव उर्वरक | राइजोबियम, पीएसबी, एज़ोटोबैक्टर/एज़ोस्पिरिलम से बीज/मृदा उपचार करें। | |
| बीज व उपचार | प्रमाणित/देशी बीज | रसायन-मुक्त/जैविक स्रोत के बीज; स्थानीय अनुकूलन वाली किस्में चुनें। |
| जैव/प्राकृतिक बीजोपचार | ट्राइकोडर्मा, पीएसबी, नीम-लहसुन अर्क, छाछ आधारित घोल का उपयोग। | |
| कीट-रोग प्रबंधन | जैविक कीटनाशक | नीम तेल/खली, Bt, पाइरेथ्रम; लक्ष्यित और कम-आवृत्ति स्प्रे। |
| जैव नियंत्रण | लेडीबर्ड बीटल जैसे परभक्षी, ट्राइकोग्रामा जैसे परजीवी ततैया का उपयोग/संरक्षण। | |
| सांस्कृतिक उपाय | समय पर बुवाई, प्रतिरोधी किस्में, फेरोमोन/स्टिकी ट्रैप, साफ़ खेत सीमाएँ। | |
| खरपतवार | निराई-गुड़ाई | शुरुआती 30–45 दिनों में नियमित मैनुअल/यांत्रिक निराई। |
| मल्च/स्मदर क्रॉप | मल्च व तेज़ बढ़वार वाली कवर/स्मदर फसलों से खरपतवार दबाएँ। | |
| जल प्रबंधन | सूक्ष्म सिंचाई | ड्रिप/स्प्रिंकलर से जल-बचत व सटीक पोषण (जैव घोल फर्टिगेशन)। |
| वर्षाजल-संचयन | खेत-तालाब, कंटूर बंडिंग, गली-प्लग से नमी व रिचार्ज बढ़ाएँ। | |
| जुताई/संरक्षण | कम जुताई/नॉटिल | मिट्टी संरचना व कार्बन संरक्षण; कटाव घटाएँ, जैविकता बढ़ाएँ। |
| अवशेष प्रबंधन | फसल-अवशेष लौटाकर कार्बनिक पदार्थ/नमी धारण क्षमता बढ़ाएँ। | |
| पशुपालन एकीकरण | फार्म-लूप पोषण | गोबर-गोमूत्र, बायोगैस स्लरी, पोल्ट्री लीद को खाद/कम्पोस्ट में बदलें। |
| रोटेशनल ग्रेज़िंग | नियंत्रित चराई से चरागाह पुनर्जनन व मिट्टी स्वास्थ्य बेहतर करें। | |
| पोस्ट-हार्वेस्ट/मार्केट | स्वच्छ हैंडलिंग | सफाई, ग्रेडिंग, पैकेजिंग से गुणवत्ता व मूल्य-वृद्धि। |
| प्रमाणन/PGS | समूह प्रमाणन/PGS या तृतीय-पक्ष प्रमाणन से बाज़ार पहुँच बढ़ाएँ। | |
| कम-लागत जैव घोल | नीम अर्क/नीम खली | चूसक/काटने वाले कीटों पर प्रभावी; 2–3% घोल सामान्य। पहले छोटे प्लॉट पर परीक्षण। |
| छाछ/दूध घोल | कुछ फफूंद रोगों में सहायक; स्थानीय मानक के अनुसार प्रयोग करें। | |
| आरंभिक कदम | मृदा परीक्षण | पोषण-योजना व फसल चक्र चुनने का आधार; मौसमी SOP तय करें। |
| चरणबद्ध अपनाना | छोटे डेमो-प्लॉट से जैव-इनपुट/प्रथाएँ जाँचकर विस्तार करें। |
जैविक खेती में मृदा स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए रासायनिक उर्वरकों के बजाय प्राकृतिक और जैविक उर्वरकों का उपयोग किया जाता है:
जैविक खेती में कीट नियंत्रण के लिए प्राकृतिक और जैविक विधियों का उपयोग किया जाता है:
फसल चक्रीकरण और मिश्रित फसल प्रणाली दो महत्वपूर्ण तकनीकें हैं जो जैविक खेती में फसल विविधता बनाये रखने के लिए व्यापक रूप से उपयोग की जाती हैं:
खरपतवार प्रबंधन जैविक खेती में एक महत्वपूर्ण चुनौती है। खरपतवार उन पौधों को कहा जाता है जो बिना बुलाए उग जाते हैं और फसलों के साथ पोषक तत्वों, पानी और सूर्य के प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।
जैविक खेती में रासायनिक खरपतवारनाशकों का उपयोग प्रतिबंधित है, इसलिए खरपतवार प्रबंधन के लिए प्राकृतिक और यांत्रिक विधियों का उपयोग किया जाता है।जैसे कि:
| जैविक खेती की प्रमुख चुनौतियाँ और समाधान | |||
| क्रमिक | कारक | चुनौती | समाधान |
| 1 | उत्पादकता | शुरुआती कम उपज | मिट्टी सुधार, जैव उर्वरक, फसल चक्रीकरण |
| 2 | कीट नियंत्रण | रासायनिक कीटनाशकों के बिना कठिनाई | जैविक कीटनाशक, परभक्षी कीड़े, रोग प्रतिरोधी किस्में |
| 3 | खरपतवार | श्रम-गहन नियंत्रण | मैकेनिकल वीडिंग, मल्चिंग, कवर क्रॉप्स |
| 4 | प्रमाणीकरण | जटिल और महंगी प्रक्रिया | सरकारी सहायता, सामूहिक प्रमाणीकरण |
| 5 | बाजार | सीमित पहुंच | स्थानीय बाजार, ई-कॉमर्स, उपभोक्ता जागरूकता |
| 6 | लागत | उच्च प्रारंभिक लागत | सब्सिडी, मूल्य वर्धित उत्पाद, स्थानीय संसाधन |
| 7 | ज्ञान | तकनीकी ज्ञान की कमी | प्रशिक्षण, किसान-से-किसान शिक्षण, डिजिटल प्लेटफॉर्म |
| 8 | जलवायु परिवर्तन | अतिरिक्त जोखिम | जलवायु-अनुकूल किस्में, जल संरक्षण |
| 9 | संक्रमण अवधि | कठिन परिवर्तन | चरणबद्ध योजना, वित्तीय सहायता |
| 10 | उपभोक्ता धारणा | कीमत और दिखावट संबंधी चिंताएं | जागरूकता अभियान, गुणवत्ता नियंत्रण. |
इन चुनौतियों के समाधान से जैविक खेती को बढ़ावा मिल सकता है, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
जैविक खेती सिर्फ़ खेती का तरीका नहीं, बल्कि मिट्टी, सेहत और भविष्य के प्रति ज़िम्मेदारी है। आज जब रसायनों पर निर्भरता मिट्टी की जान और भोजन की गुणवत्ता दोनों छीन रही है, तब प्राकृतिक संसाधनों, जैविक खादों और स्थानीय जैव-विविधता पर लौटना ही स्थायी समाधान है। किसान तभी सशक्त होंगे जब उत्पादन के साथ मिट्टी का स्वास्थ्य, पानी की बचत और बाज़ार में उचित मूल्य- तीनों साथ चलें। मेरी कोशिश है कि हर किसान सरल तरीकों से ऑर्गेनिक प्रैक्टिस अपनाए: कंपोस्टिंग, फसल चक्र, जैविक कीटनाशक, और प्रमाणन की ओर छोटे-छोटे कदम बढ़ाए। यही कदम खेत को उपजाऊ, भोजन को पौष्टिक और आमदनी को टिकाऊ बनाते हैं।
आकृति जैन
ऑर्गेनिक फार्मिंग यानि जैविक खेती क्या है? ये एक ऐसी कृषि पद्धति है जो पर्यावरण संरक्षण और स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता के इस युग में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। यह प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हुए गुणवत्तापूर्ण खाद्य उत्पादन पर केंद्रित है। स्थलीय, जलीय और मिश्रित जैसे विभिन्न प्रकार की जैविक खेती विभिन्न परिस्थितियों में अपनाई जाती है। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का त्याग, मिट्टी की उर्वरता का संरक्षण, और जल संसाधनों का कुशल उपयोग इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं।
जैविक खेती के पर्यावरणीय, स्वास्थ्य और आर्थिक लाभ महत्वपूर्ण हैं, हालांकि शुरुआती कम उत्पादकता, कीट नियंत्रण की कठिनाइयाँ, और बाजार तक सीमित पहुंच जैसी चुनौतियाँ भी हैं। उचित तकनीकों, प्रशिक्षण और सरकारी समर्थन से इन चुनौतियों का सामना किया जा सकता है। जैविक खेती न केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए स्वस्थ खाद्य उत्पादन सुनिश्चित करती है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्थायी कृषि प्रणाली का मार्ग प्रशस्त करती है।
जैविक खेती कृषि की वह विधा है जिसमें मृदा को स्वस्थ व जीवंत रखते हुए केवल जैव अवशिष्ट, जैविक तथा जीवाणु खाद के प्रयोग से प्रकृति के साथ समन्वय रख कर टिकाऊ फसल उत्पादन किया जाता है।
जैविक खेती के प्रकार:
1. एकीकृत जैविक खेती
2. शुद्ध जैविक खेती
जैविक खेती के कई फायदे हैं, जैसे कि मृदा की गुणवत्ता में सुधार, पर्यावरण की सुरक्षा, रासायनिक प्रदूषण से मुक्ति और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी। यह कृषि उत्पादन में जैविक तरीकों से बढ़ोतरी करता है, जिससे रासायनिक खादों और कीटनाशकों का उपयोग कम होता है। हालांकि, इसके कुछ नुकसान भी हैं, जैसे उत्पादन की कम दर, अधिक श्रम, और उच्च लागत, जिससे इसे अपनाना महंगा पड़ सकता है।
ब्रिटिश वनस्पतिशास्त्री सर अल्बर्ट हॉवर्ड को अक्सर आधुनिक जैविक कृषि का जनक कहा जाता है।
जैविक चिन्ह एक प्रमाणपत्र है जो यह दर्शाता है कि कोई उत्पाद जैविक तरीके से उत्पादित किया गया है। यह चिन्ह उपभोक्ताओं को यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि वे प्राकृतिक और स्वस्थ खाद्य उत्पाद खरीद रहे हैं।
इसे कभी-कभी प्राकृतिक खेती (Natural Farming) या हरित खेती के रूप में भी जाना जाता है, विशेष रूप से पारंपरिक संदर्भों में।
जैविक कृषि एक ऐसी खेती पद्धति है जिसमें रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक और कृत्रिम रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता। इसमें केवल प्राकृतिक खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद, गोबर, वर्मी कम्पोस्ट और जैविक कीटनाशक का प्रयोग होता है।
शुरुआती वर्षों में उत्पादन कम हो सकता है।
अधिक मेहनत और समय की आवश्यकता होती है।
कीट व रोग नियंत्रण कठिन हो सकता है।
जैविक खेती में फसल चक्र, हरी खाद, वर्मी कम्पोस्ट, जैविक कीटनाशक, और प्राकृतिक सिंचाई जैसी तकनीकों का प्रयोग किया जाता है।
Authored by, Aakriti Jain
Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.
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