Quick Summary
दांडी मार्च, जिसे नमक सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। महात्मा गांधी के नेतृत्व में 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से शुरू हुई यह यात्रा 24 दिनों में 240 मील की दूरी तय कर 6 अप्रैल 1930 को दांडी पहुंची। इस मार्च का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के नमक कानून का विरोध करना था, जो भारतीयों को अपने ही देश में नमक बनाने से रोकता था। गांधीजी और उनके अनुयायियों ने समुद्र तट पर नमक बनाकर इस कानून को तोड़ा।
यह मार्च सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत बन गया। इस आंदोलन से प्रेरित होकर देशभर में हजारों लोगों ने नमक कानून का उल्लंघन किया। उन्होंने सरकारी नमक कारखानों के सामने शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन किया। साथ ही, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया गया और किसानों ने भूमि पर लगने वाले कर (लगान) को चुकाने से इंकार कर दिया।
इस अहिंसक आंदोलन ने न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में ब्रिटिश शासन के खिलाफ जन जागरूकता और समर्थन को बढ़ावा दिया। दांडी मार्च ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी और लाखों लोगों को प्रेरित किया।
दांडी मार्च को लेकर “दांडी मार्च कब शुरू हुआ”, “दांडी यात्रा में कितने लोग थे” और “दांडी यात्रा कहाँ से शुरू हुई” ये अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न हैं। इन प्रश्नों के विस्तार निम्नलिखित हैं।
दांडी यात्रा को लेकर पहला सवाल यह होता है की “दांडी मार्च कब हुआ था?” नमक सत्याग्रह या दांडी सत्याग्रह, 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुआ था और 5 अप्रैल 1930 को दांडी, गुजरात में जाकर खत्म हुआ।
नमक भारतीयों के लिए एक बुनियादी ज़रूरत थी, फिर भी अंग्रेजों ने इस पर भारी कर लगाया, जिससे गरीबों पर बोझ पड़ा। इसके विरोध में गाँधी जी ने ब्रिटिश शासन के वाइसराय लार्ड इरविन को नमक कर रद्द करने के लिए खत लिखा जिसे उन्होंने 23 जनवरी 1930 अस्वीकृत कर दिया। इसके बाद 12 मार्च 1930 को इस टैक्स के विरोध में अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन दांडी मार्च की शुरुआत हुई।
साबरमती आश्रम से दांडी तक का मार्ग जिस मार्ग में दांडी यात्रा हुई थी उसे अब एक ऐतिहासिक विरासत मार्ग घोषित कर दिया गया है और अब उस मार्ग को दांडी पथ के नाम से जाना जाता है।
इस मार्च का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए नमक टैक्स का विरोध करना था। यह टैक्स भारतीयों के लिए बहुत बोझिल था, खासकर गरीबों के लिए। गांधी जी का मानना था कि यह टैक्स अन्यायपूर्ण और अहिंसक था। हालांकि, दांडी मार्च के कई अन्य उद्देश्य भी थें।
घटना | विवरण |
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दांडी मार्च की शुरुआत | महात्मा गांधी ने 12 मार्च, 1930 को साबरमती आश्रम से दांडी यात्रा शुरू की। |
नमक कानून तोड़ना | 6 अप्रैल, 1930 को दांडी पहुंचकर गांधी जी ने समुद्र तट पर नमक बनाकर ब्रिटिश सरकार के नमक कानून का उल्लंघन किया। |
देशव्यापी सविनय अवज्ञा आंदोलन | दांडी मार्च के बाद पूरे देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ। लोगों ने नमक बनाया, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और कर नहीं दिया। |
हजारों की गिरफ्तारी | आंदोलन के दौरान हजारों लोगों को ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार किया। |
आंदोलन का प्रभाव | दांडी मार्च ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी और दुनिया भर में भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्थन जुटाया। |
गांधी जी ने 23 जनवरी 1930 को वायसराय लॉर्ड इरविन को एक पत्र लिखकर नमक टैक्स को रद्द करने की मांग की थी। जब उनकी मांगों को खारिज कर दिया गया, तो उन्होंने दांडी मार्च शुरू करने का फैसला किया। इस मार्च की योजना गांधी जी और उनके समर्थकों द्वारा सबरमती आश्रम में बनाई थी। उन्होंने नमक सत्याग्रह के बारे में लोगों को शिक्षित करने और उन्हें आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित करने के लिए कई बैठकें और सभाएं आयोजित कीं।
गांधी जी और उनके समर्थकों ने गुजरात के कई गांवों और शहरों का दौरा किया। उन्होंने जन जागरूकता के लिए सभाएं कीं और भाषण दिए, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश शासन की अन्यायपूर्ण नीतियों की आलोचना की और भारतीय स्वतंत्रता का आह्वान किया। हजारों भारतीय गांधी जी के समर्थन में शामिल हुए और नमक सत्याग्रह में भाग लिया। ब्रिटिश सरकार ने यात्रियों को रोकने की कोशिश की, लेकिन वे अहिंसक रहें और आगे बढ़ते रहें।
5 अप्रैल 1930 को गांधी जी ने दांडी के लिए आखिरी चरण की यात्रा शुरू की।ब्रिटिश सरकार के नमक कानून के अनुसार बिना ब्रिटिश सरकार के अनुमति के और टैक्स भरे बिना कोई भी सागर के पानी से नमक का उत्पाद नहीं कर सकता था। महात्मा गांधी और उनके अनुयायियों ने 5 अप्रैल 1930 को समुद्र तट पर पहुंचकर सुबह के करीब 8.30 बजे वास्पीकरण विधि द्वारा सागर के पानी से नमक बनाया, जो अंग्रेजों के नमक कानून का सीधा उल्लंघन था।
यह घटना न केवल प्रतीकात्मक थी, बल्कि इससे लोगों को यह संदेश मिला कि अंग्रेजी शासन के अन्यायपूर्ण कानूनों का विरोध कैसे किया जा सकता है। इस अंतिम चरण ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा और दिशा दी, और पूरे देश में विरोध प्रदर्शनों की लहर दौड़ गई।
इस कदम से भारतीय जनता को यह विश्वास हुआ कि वे अपने अधिकारों के लिए खड़े हो सकते हैं और ब्रिटिश शासन के अन्यायपूर्ण कानूनों का अहिंसात्मक तरीके से विरोध कर सकते हैं।
नमक सत्याग्रह आंदोलन 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी द्वारा दांडी यात्रा के साथ शुरू हुआ और 6 अप्रैल 1930 को नमक कानून तोड़ने के साथ अपने प्रमुख चरण में पहुंचा। यह आंदोलन ब्रिटिश नमक कानून के विरोध में किया गया था और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना।
दांडी यात्रा के दौरान ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में हो रहे सत्याग्रह को दबाने के लिए कठोर उपाय अपनाए। यात्रा के बाद, गांधी सहित हजारों नेताओं को गिरफ्तार किया गया और नमक कानूनों का उल्लंघन करने वालों पर कड़ी सजा दी गई। ब्रिटिश अधिकारियों ने यात्रा के दौरान भारतीयों पर निगरानी रखी और सत्याग्रह को दबाने के लिए हिंसक तरीकों का सहारा लिया।
दांडी यात्रा के समय ब्रिटिश भारत के वायसराय लॉर्ड इरविन (उर्फ विलियम रॉबर्ट फिलिप जॉर्ज, 1931 तक) थे। उन्होंने गांधी से वार्ता करने के बाद कई कड़े कदम उठाए, लेकिन आंदोलन का प्रभाव लंबे समय तक रहा।
भारत की आज़ादी में दांडी मार्च का ऐतिहासिक महत्व बहुत गहरा है। यह मार्च न केवल अंग्रेजी हुकूमत के अन्याय के खिलाफ एक शांतिपूर्ण विरोध था, बल्कि इसने भारत की स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। यही कारण है कि आज़ादी के 75 वर्ष पूरे होने पर अमृत महोत्सव की शुरुआत इसी दिन को याद करके की गई।
महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से 79 अनुयायियों के साथ दांडी यात्रा की शुरुआत की। उन्होंने 24 दिन में 241 किलोमीटर की पदयात्रा पूरी कर 6 अप्रैल को दांडी तट पर नमक कानून तोड़ा। यह कानून अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर थोपे गए शोषण का प्रतीक था। गांधी जी ने नमक कानून को तोड़कर दुनिया को यह दिखाया कि सत्य और अहिंसा से भी अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी जा सकती है।
गांधी जी ने यात्रा से पहले लॉर्ड इरविन को पत्र लिखकर अपनी मंशा स्पष्ट की, जिसमें धमकी नहीं बल्कि एक सत्याग्रही की चेतावनी थी। उनका मकसद था गरीबों के अधिकार की रक्षा करना, क्योंकि नमक आम जनता की जरूरत थी जिसे अंग्रेजों ने अपने नियंत्रण में ले लिया था।
दांडी यात्रा के दौरान गांधी जी हर पड़ाव पर लोगों को संबोधित करते, जिससे जनजागरण हुआ और राष्ट्रीय चेतना की लहर दौड़ पड़ी। यात्रा में भाग लेने वाले सत्याग्रही पहले से एक प्रतिज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर करते थे, जिसमें वे जेल जाने और अन्य सज़ाओं को सहर्ष स्वीकार करने को तैयार रहते थे।
गांधी जी की गिरफ्तारी के बाद भी आंदोलन रुका नहीं, बल्कि और तेज़ हो गया। विदेशी पत्रकारों ने भी इस आंदोलन को एक ऐतिहासिक क्षण माना। लंदन टेलीग्राफ के संवाददाता ने लिखा था कि “गांधी की गिरफ्तारी कोई साधारण बात नहीं, वे आज करोड़ों भारतीयों की नज़र में एक महात्मा हैं।”
आज भी दांडी यात्रा स्वतंत्रता संग्राम की प्रतीक बनकर लोगों को त्याग और आत्मबल की प्रेरणा देती है। यही कारण है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसी मार्ग पर अमृत महोत्सव के अवसर पर पदयात्रा की, तो उन्होंने कहा कि अब भारत आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान के रास्ते पर है। देश अब दुनिया के सामने दाता की भूमिका में खड़ा है, और जब आज़ादी का शताब्दी वर्ष मनाया जाएगा, तब भारत की सांस्कृतिक गरिमा और वैभव विश्व भर में गूंजेगा।
अहिंसक विरोध को लेकर दांडी मार्च काफी महत्वपूर्ण था। महात्मा गांधी ने इस मार्च के माध्यम से यह दिखाया की बिना हिंसा के भी अन्यायपूर्ण कानूनों का विरोध किया जा सकता है। लोग बिना हथियार उठाए, सिर्फ अपने साहस और दृढ़ संकल्प से अन्याय के खिलाफ खड़े हो सकते हैं। दांडी मार्च ने अहिंसक प्रतिरोध की ताकत को साबित किया। इसने दुनिया को दिखाया कि अहिंसक प्रतिरोध भी शक्तिशाली हो सकता है।
इस तरह, दांडी मार्च को लेकर ब्रिटिश की प्रतिक्रिया कड़ी थी, लेकिन यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा और दिशा देने में सफल रहा।
दांडी मार्च ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ लाया। महात्मा गांधी के नेतृत्व में इस अहिंसक आंदोलन ने ब्रिटिश शासन के अन्यायपूर्ण नमक कानून का विरोध किया और भारतीयों को आत्मनिर्भरता का संदेश दिया। इस मार्च ने न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में ब्रिटिश शासन के खिलाफ जन जागरूकता और समर्थन को बढ़ावा दिया। दांडी मार्च ने स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी और लाखों लोगों को प्रेरित किया, यह दर्शाते हुए कि सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर भी बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं। इसने भारतीयों के आत्मसम्मान और स्वतंत्रता की भावना को मजबूत किया और स्वतंत्रता प्राप्ति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।
दांडी मार्च ब्रिटिश नमक कानून के खिलाफ महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुआ एक अहिंसक आंदोलन था। इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी और वैश्विक जन जागरूकता बढ़ाई।
दांडी मार्च 24 दिनों तक चला था। यह 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से शुरू हुआ और 6 अप्रैल 1930 को दांडी पहुंचा था।
दांडी मार्च, महात्मा गांधी के नेतृत्व में 12 मार्च 1930 को शुरू हुआ एक अहिंसक आंदोलन था। इसका उद्देश्य ब्रिटिश नमक कानून का विरोध करना था। गांधीजी और अनुयायियों ने 240 मील की यात्रा कर समुद्र तट पर नमक बनाकर इस कानून को तोड़ा।
महात्मा गांधी ने दांडी की ओर मार्च ब्रिटिश सरकार के अन्यायपूर्ण नमक कानून का विरोध करने के लिए किया था। यह कानून भारतीयों को अपने ही देश में नमक बनाने से रोकता था, जिससे उन्हें ब्रिटिश सरकार से महंगा नमक खरीदना पड़ता था। गांधीजी ने इस कानून को तोड़ने के लिए 240 मील की यात्रा कर दांडी में समुद्र तट पर नमक बनाया, जिससे ब्रिटिश शासन के खिलाफ जन जागरूकता और समर्थन बढ़ा।
दांडी मार्च का दूसरा नाम नमक सत्याग्रह है।
दांडी यात्रा में महिलाएं शामिल नहीं थीं। महात्मा गांधी के साथ 12 मार्च 1930 को शुरू हुई इस यात्रा में केवल 79 पुरुष सत्याग्रही थे। हालांकि, बाद में सारोजिनी नायडू जैसी महिला नेताओं ने नमक सत्याग्रह में सक्रिय भाग लिया और आंदोलन को आगे बढ़ाया।
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Authored by, Amay Mathur | Senior Editor
Amay Mathur is a business news reporter at Chegg.com. He previously worked for PCMag, Business Insider, The Messenger, and ZDNET as a reporter and copyeditor. His areas of coverage encompass tech, business, strategy, finance, and even space. He is a Columbia University graduate.
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