Quick Summary
छोटे संस्कृत श्लोक:
इस दुनिया की सबसे पुरानी पुस्तकें ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, भारत की देन है। लेकिन आश्चर्य की बात है कि इन चारों ग्रंथों में श्लोक ही श्लोक लिखे हुए हैं। वह भी देव लिपि संस्कृत में। इससे यह तो पता चलता है कि संस्कृत करोड़ों साल पुरानी भाषा है।
भारत में संस्कृत भाषा में लिखे गए श्लोक की संख्या करोड़ों में है चाहे वो श्लोक महापुराण से हो या गीता से। लेकिन इन सभी श्लोक का मकसद एक है, लोगों के बीच मानव धर्म को जिंदा रखना। आज इस ब्लॉग में हम ऐसे ही कुछ छोटे संस्कृत श्लोक पेश करेंगे और 10 श्लोक संस्कृत में, प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक, धैर्य पर संस्कृत श्लोक पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
अगर आप गीता या पुराण को खोलकर देखेंगे तो उसमें ऐसे कई श्लोक हैं जो इंसान को प्रेरणा देने के लिए लिखे गए हैं। वैसे तो इन शोक की संख्या बहुत ज्यादा है और एक-एक श्लोक काफी लंबे हो सकते हैं लेकिन हम आपके लिए लेकर आए हैं 10 श्लोक संस्कृत में जो न सिर्फ छोटे हैं बल्कि उनके पाठ से आपके मन में भक्ति भाव, आत्मविश्वास और समर्पण का भाव जागृत होगा।
निम्नलिखित छोटे संस्कृत श्लोक आपके मन में ज्ञान का स्रोत और शिक्षा के प्रति निष्ठा जागने में प्रबल है। इन श्लोक का अर्थ भी दिया गया है:
न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि।
व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्॥
क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत्।
क्षणे नष्टे कुतो विद्या कणे नष्टे कुतो धनम्॥
नहि ज्ञानेन सदृशं।
कहते हैं कि कामकाज मैं व्यस्त रहने वाला इंसान कभी दुखी नहीं होता है। काम करने की प्रेरणा जगाने के लिए छोटे संस्कृत श्लोक निम्नलिखित हैं जिनके अर्थ भी साथ में दिए गए हैं:
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपु:।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
अलसस्य कुतः विद्या अविद्यस्य कुतः धनम्।
अधनस्य कुतः मित्रम् अमित्रस्य कुतः सुखम्।।
आत्मविश्वास किसी भी मनुष्य के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक आत्मविश्वास से मनुष्य को खुद पर भरोसा होता है और वह नकारात्मक विचारों से दूर रहता है। आत्मविश्वास पर कुछ छोटे संस्कृत श्लोक निम्नलिखित है:
यथा द्यौश्च पृथिवी च न बिभीतो न रिष्यतः।
एवा मे प्राण मा विभेः।।
स्वावलम्बनमेव शूरस्य बलं न अन्यस्य।।
नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते मृगैः।
विक्रमार्जितसत्त्वस्य स्वयमेव मृगेंद्रता॥
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।
क्षुरासन्नधारा निशिता दुरत्यद्दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति॥
तो यह थे 10 श्लोक संस्कृत में जो आपके जीवन के हर पद में सहायक का काम करेंगे।

कार्य पुरुषकारेण लक्ष्यं सम्पद्यते।
जो व्यक्ति अपने प्रयासों और मेहनत से काम करता है, वही अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है।
भवत: लक्ष्यं भवत: जीवनम् अस्ति।
आपका जीवन वही है जो आपका लक्ष्य है; लक्ष्य ही जीवन को दिशा देता है।
कालवित् कार्यं साधयेत्।
जो व्यक्ति समय का सही उपयोग करता है, वह अपने कार्यों में निश्चित सफलता प्राप्त करता है।
आत्मायत्तौ वृद्धिविनाशौ।
आत्म-नियंत्रण में वृद्धि और जीवन में स्थिरता होती है, वहीं आलस्य और असंयम विनाश की ओर ले जाते हैं।
| संस्कृत श्लोक | अर्थ |
|---|---|
| सत्यमेव जयते नानृतम् | केवल सत्य की ही विजय होती है, असत्य कभी सफल नहीं होता। |
| कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन | तुम्हारा केवल कर्म करने में अधिकार है, उसके फल में कभी नहीं। |
| धैर्यं सर्वत्र साधनम् | धैर्य हर कार्य में सफलता पाने का माध्यम है। |
| विद्या ददाति विनयं | ज्ञान व्यक्ति को विनम्रता प्रदान करता है। |
| सर्वे भवन्तु सुखिनः | सभी लोग सुखी और शांत रहें। |
भारतीय समाज में गुरु का स्थान भगवान के समान माना जाता है। किसी भी कला या विद्या में पारंगत होने के लिए गुरु का आशीर्वाद आवश्यक है। गुरु की इस महिमा की अभिव्यक्ति छोटे संस्कृत श्लोक के तहत निम्नलिखित की गई है:
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव॥
कहते हैं की माता-पिता के चरणों में ही स्वर्ग का सुख है। और इस बात की पुष्टि हजारों सालों से संस्कृत श्लोक द्वारा की जा रही है। इनमें से कुछ श्लोक निम्नलिखित है:
पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः।
पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवताः॥
सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमयः पिता।
मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत्॥
जीवन में प्रेरणा की कमी सभी मनुष्य को एक न एक समय पर महसूस होती है। ऐसे समय में कई लोग प्रेरणा का स्रोत अपने अंदर ढूंढने का प्रयास करते हैं तो कुछ लोग पुराने संस्कृत ग्रंथों को पढ़कर अपनी प्रेरणा की तलाश करते हैं। अब प्रेरणा कई सारी चीजों के लिए इकट्ठी की जा सकती है जैसे शांति, धैर्य, सदाचारी आदि। इनमें से कुछ चीजों को लक्षित करके श्लोक नीचे दिए गए हैं।
जीवन में जब तक मनुष्य सकारात्मक तरीके से नहीं सोचेगा तब तक उसकी उन्नति नहीं हो सकती। और इसी सकारात्मक सोच को बढ़ावा देने के लिए कुछ निम्नलिखित छोटे संस्कृत श्लोक दिए गए हैं:
हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।
तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥
चिन्तया जायते दुःखं नान्यथेहेति निश्चयी।
तया हीनः सुखी शान्तः सर्वत्र गलितस्पृहः॥
दूसरों के प्रति सदाचार का भाव रखने से न सिर्फ सामने वाले के साथ आपके रिश्ते सुधारते हैं बल्कि दूसरों की नजरों में आपका सम्मान भी बढ़ता है। सदाचार से जुड़े कुछ छोटे संस्कृत श्लोक कुछ इस प्रकार है:
परो अपि हितवान् बन्धुः बन्धुः अपि अहितः परः।
अहितः देहजः व्याधिः हितम् आरण्यं औषधम्॥
यथा चित्तं तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रियाः।
चित्ते वाचि क्रियायांच साधुनामेक्रूपता॥

जिंदगी में किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संघर्ष और विद्या जितनी जरूरी है उतना ही जरूरी है धैर्य और दृढ़ता। और इस धैर्य को अपने जिंदगी में कायम रखने के लिए धैर्य पर छोटे संस्कृत श्लोक नीचे दिए गए हैं:
धैर्यं सर्वत्र साधनम् विनयं सर्वत्र रक्षणम्॥
ज्ञानं सर्वत्र पूज्यते।
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥
आज के समय में धैर्य बहुत ही दुर्लभ चीज है। हमारे आसपास हमेशा एक अस्थिरता और जल्दबाजी का माहौल बना रहता है जिसकी वजह से हमारे धैर्य में बाधा पड़ती है। धैर्य के गुण को अपने अंदर समाहित करने के लिए निम्नलिखित श्लोक दिए गए हैं:
शनैः पन्थाः शनैः कन्था शनैः पर्वत लंघनम्।
शनैर्विद्या शनैर्वित्तं पञ्चतानि शनैः शनैः॥
निन्दन्तु नीति निपुणाः यदि वा स्तुवन्तु, लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्।
अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा, न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः।
“क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत्।
क्षणे नष्टे कुतो विद्या कणे नष्टे कुतो धनम्॥”समय का एक भी क्षण व्यर्थ नहीं करना चाहिए। हर पल का सदुपयोग करके ज्ञान अर्जित करना चाहिए और धन संचय करना चाहिए।
“स जातो येन जातेन याति वंशः समुन्नतिम्।
परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते।।”जिसका जन्म कुल और समाज के उन्नति के लिए होता है, वही जन्म सफल होता है। अन्यथा सब जन्म और मृत्यु के चक्र में आते हैं।
“अकामां कामयानस्य शरीरमुपतप्यते।
इच्छतीं कामयानस्य प्रीतिर्भवति शोभना।।”कार्य वह करना चाहिए जिसमें रुचि हो। जो काम पसंदीदा हो वही आनंद और सफलता देता है
“सन्मार्गेण गन्तव्यं लक्ष्यं भवतु दूरंगम्।
स्वे कुटुम्बे सदा स्थेयं वैरं भवतु यादृशम्।।”सही मार्ग पर चलो। चाहे लक्ष्य दूर हो, और चाहे कितनी भी मुश्किलें हों, परिवार के साथ स्थिर रहो और शत्रुता से बचो
“निन्दाभयात् मा गच्छतु यतः।
ये निन्दन्ति लक्ष्यं प्राप्तमात्रेण मतम् परिवर्तते।।”निंदा से भयभीत होकर अपने लक्ष्य से भटकना नहीं चाहिए। आलोचना करने वालों की राय समय के साथ बदल जाती है।
वैसे तो वेद और पुराणों में लिखे गए संस्कृत श्लोक का महत्व काफी हद तक धर्म से जुड़े कर्मकांड और अनुष्ठानों तक सीमित रह गया है। लेकिन अभी भी ऐसे कुछ ग्रंथ मौजूद है जैसे गीत जो छोटे संस्कृत श्लोक को इंसान के जीवनी से जोड़कर उन्हें एक नए मायने देने का प्रयास करती आ रही है। इसीलिए आपने अक्सर अपने घर में अपनी माताओं को या समृद्ध से समृद्ध लोगों को श्लोक का पाठ करते हुए देखा होगा।
ज्ञान और प्रेरणादायक छोटे संस्कृत श्लोक हर व्यक्ति को कंठस्थ होना चाहिए। ऐसा क्यों इसके निम्नलिखित कारण दिए गए हैं:
धार्मिक और नैतिक मूल्यों का विकास
महाभारत के युद्ध के बीच भी कृष्ण अर्जुन को छोटे संस्कृत श्लोक के माध्यम से धार्मिक और नैतिक मूल्य का ज्ञान दे रहे हैं। और इस कलयुग में तो हमारा एक नहीं बल्कि कई सारे शत्रु है जो हमें हमारे लक्ष्य से भटकने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। ऐसी स्थिति में धार्मिक और नैतिक मूल्यों से जुड़े छोटे संस्कृत श्लोक का पाठ करने से आपको:
हजारों वर्षों से यह श्लोक सिर्फ याद करने की वस्तु नहीं है, तभी तो इन्हें ग्रहण करते हुए लोगों ने आध्यात्मिक ज्ञान भी प्राप्त किया है। आपको ऐसे कई संस्कृत श्लोक मिल जाएंगे जहां शिक्षा, योग, गुरु की महिमा, भक्ति और आदि की महत्ता का गुणगान किया गया है। इनके लाभ यह है कि:
यह कहना गलत नहीं होगा कि आज के समय में संस्कृत बहुत ही कम लोग जानते हैं। और जो लोग जानते हैं वह भी धीरे-धीरे इससे कट रहे हैं और इसका गहन अध्ययन कोई नहीं कर रहा है। यही कारण है कि जब संस्कृत श्लोक याद करने की बड़ी आती है तो लोग अक्सर डर जाते हैं। लेकिन इन लोगों को समझना पूर्वक याद करने के लिए कई सारे नुस्खे भी मौजूद हैं।
अगर आप जिस भी श्लोक को कंठस्थ करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको:
अब संस्कृत में संस्कृत श्लोक का अर्थ समझना सबके बस की बात नहीं। इसलिए आपको क्या करना है कि:
लोग को प्रेरणादायक कहानी से जोड़ने के लिए आपको:
किसी भी चीज को सीखने के लिए समूह में अभ्यास करना सबसे अच्छा उपाय है। ऐसा इसलिए क्योंकि:
कहते हैं जब लिखने की कला का आविष्कार नहीं हुआ था तब इसी तरह बोल-बोलकर चीज याद करवाई जाती थी। और इस कार्य में संस्कृत श्लोक ने अपना पूरा योगदान निभाया है। हमारा आज का समाज भी इससे नैतिक सीख ले सकता है। जैसे कि इस ब्लॉग से प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक, धैर्य पर संस्कृत श्लोक, गुरु, माता पिता, धैर्य से जुड़ी कितनी ही अच्छी बातें सीखें। इसके अलावा हमने 10 श्लोक संस्कृत में भी सीखें। अगर आप इन प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक को जरूरत के समय पढ़ेंगे तो आपके लिए यह बहुत फायदेमंद साबित होगा।
येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः। ते मृत्युलोके भुवि भारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।।
अर्थ : जिसके पास विद्या, तप, ज्ञान, शील, गुण और धर्म में से कुछ नहीं वह मनुष्य ऐसा जीवन व्यतीत करते हैं जैसे एक मृग।
“अहिंसा परमो धर्मः”
अर्थ – अहिंसा सर्वोच्च गुण है।
प्रेरणा के लिए संस्कृत श्लोक:
“उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः। न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।”
“अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवम् रत्नधातमम्।”
इसका सामान्य अर्थ है: मैं यज्ञ के पुरोहित, देवता अग्नि को प्रणाम करता हूँ, जो धन का दाता है।
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।”
इस श्लोक का अर्थ है: कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, लेकिन कर्म के फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म करो, फल की चिंता मत करो।
Authored by, Aakriti Jain
Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.
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