Quick Summary
चौपाई (Chaupai) हिंदी साहित्य का एक प्रमुख छंद है, जो विशेष रूप से रामचरितमानस जैसी रचनाओं में देखने को मिलता है। इसमें चार पंक्तियाँ होती हैं और हर पंक्ति में 16 मात्राएँ निर्धारित होती हैं। चौपाई का उदाहरण – चौपाई एक सममात्रिक छंद है, जिसमें प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं और कुल चार चरण होते हैं। यह छंद हिंदी कविता में विशेष रूप से लोकप्रिय है और गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ में Chaupai ki Paribhasha का व्यापक उपयोग हुआ है।
चौपाई छंद की विशेषता है कि इसके प्रत्येक चरण में यति (ठहराव) होती है, और चरणों के अंत में गुरु या लघु वर्ण नहीं होते, लेकिन दो गुरु या दो लघु हो सकते हैं। यह छंद सरलता और लयबद्धता के कारण भक्तिपूर्ण रचनाओं में प्रमुखता से प्रयोग होता है। इस छंद का प्रसिद्ध उदाहरण श्री हनुमान चालीसा में देखने को मिलता है, चौपाई का उदाहरण:-
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बलधामा।
अंजनि पुत्र पवन सुत नामा॥
उपयुक्त Chaupai ka Udaharan हनुमान जी के गुणों का वर्णन करता है। चौपाई छंद की यह विशेषता इसे हिंदी काव्य में एक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करती है।
हिंदी काव्य की परंपरा में चौपाई सिर्फ एक छंद नहीं, एक आस्था की ध्वनि है। Chaupai Chhand ki Paribhasha चार पंक्तियों में होती है, प्रत्येक पंक्ति में 16 मात्राएँ होती हैं, जिससे यह छंद संतुलित और गेय बनता है। तुलसीदास ने चौपाई को जन-जन तक पहुँचाया, खासकर रामचरितमानस और हनुमान चालीसा में।
रामचरितमानस से लिया गया चौपाई का उदाहरण:
"राम नाम बिनु गति नहीं कोई। यह सुमति जान लेहु सब कोई॥"
(अर्थ: राम का नाम ही जीवन की दिशा है, यह बुद्धिमान बात सब जान लें।)
चौपाई की खास बात यह है कि यह गंभीर भावों को सरल शब्दों में कह देती है—भक्ति हो या नीति, वीरता हो या प्रेम। यही इसकी साहित्यिक और सांस्कृतिक महत्ता है। आज भी चौपाई सिर्फ कविता नहीं, जीवन की प्रेरणा बनकर जीवित है।
चौपाई हिंदी कविता का एक लोकप्रिय और प्राचीन छंद है, जो विशेष रूप से भक्ति साहित्य में प्रयुक्त होता है। चौपाई छंद सरलता, लयबद्धता और भावनात्मक प्रभाव के कारण बहुत प्रभावशाली माना जाता है।
Chaupai Chhand ke Udaharan सबसे प्रसिद्ध गोस्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस और हनुमान चालीसा में देखने को मिलता है। यह छंद धार्मिक, नैतिक और भावनात्मक विषयों को सहजता से अभिव्यक्त करने में सक्षम होता है।
इसकी खास बात यह है कि यह कम शब्दों में गहरी बात कह देता है — जैसे नीति, प्रेम, भक्ति या जीवन के सिद्धांत।
चौपाई छंद हिंदी साहित्य की एक ऐसी विधा है, जिसने भक्ति, नीति और दर्शन को सरल भाषा में जन-जन तक पहुँचाने का कार्य किया है।
चौपाई हिंदी कविता का एक प्रसिद्ध छंद होता है, जिसमें हर पंक्ति में 16 मात्राएँ होती हैं और यह चार पंक्तियों में लिखा जाता है। चौपाई छंद में तुकांत (अंत में तुक मिलती है) और लयबद्धता होती है, जिससे इसे पढ़ने और गाने में आसानी होती है।
चौपाई वह कविता होती है जो चार पंक्तियों की होती है और हर पंक्ति में 16 मात्राएँ होती हैं।
चौपाई एक प्रमुख हिंदी छंद है जिसमें चार चरण होते हैं और हर चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। इसका उपयोग विशेष रूप से भक्ति, नीति और वीर रस की कविताओं में किया जाता है। चौपाई के मुख्य अंग हैं – चार चरण, 16-16 मात्राएँ, लयबद्धता और स्पष्ट यति। इसके भेद विषयवस्तु के आधार पर होते हैं, जैसे भक्ति चौपाई, नीति चौपाई, वीर चौपाई आदि। वहीं प्रकार की दृष्टि से साधारण चौपाई, श्लेषमयी चौपाई और श्रृंगारिक चौपाई प्रमुख हैं। तुलसीदास की रामचरितमानस चौपाई छंद के सबसे उत्कृष्ट चौपाई का उदाहरण में गिनी जाती है।
चौपाई हिंदी कविता की एक महत्वपूर्ण छंद विधा है, जो अपनी लयबद्धता और सरलता के लिए जानी जाती है। चौपाई का उदाहरण विशेष स्वरूप इसे अन्य छंदों से अलग बनाता है। चौपाई के निर्माण में कुछ मुख्य अंग होते हैं, जो इसकी छंदबद्ध संरचना और भावपूर्ण अभिव्यक्ति को सुनिश्चित करते हैं।
चौपाई के मुख्य अंग
चौपाई हिंदी छंद साहित्य की एक प्रमुख शैली है, जिसका प्रयोग विशेष रूप से भक्ति, नीति और लोकगीतों में व्यापक रूप से किया जाता है। इसकी विविधता और बहुआयामी प्रकृति इसे हिंदी काव्य में विशिष्ट स्थान प्रदान करती है। समय, उद्देश्य और भावानुसार चौपाई के कई प्रकार विकसित हुए हैं, जो इसके प्रभाव और सौंदर्य को और भी समृद्ध बनाते हैं।
चौपाई के प्रमुख प्रकार:
प्रयोजन | चौपाई का उदाहरण | अर्थ/भावार्थ |
विद्या प्राप्ति के लिए | विद्या दानं परमं धनं, सदा सुखदं मनोहरम्।सर्वतो भूषणं विद्यां, नताः सर्व जगत्सरम्।। | विद्या सबसे बड़ा सुखदायक धन है, जो हर जगह शोभा देती है और सभी को आकर्षित करती है। |
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए | महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं, महा काम रूपिणि।सर्वसंपदा प्रदायिनि, भुक्ति सुख दायिनि।। | महालक्ष्मी को प्रणाम, जो सभी इच्छाएं पूर्ण करती हैं और सुख-संपत्ति प्रदान करती हैं। |
पुत्र प्राप्ति के लिए | पुत्रदेवाय नमो नमः, जनकाय शुभंकराय।पुत्र समृद्धि दायिनि मे, सकल पाप हरिणि।। | पुत्र सुख देने वाले देवता को प्रणाम, जो पापों का नाश करते हैं और संतान सुख देते हैं। |
संकट हरण के लिए | संकट से संकट मिटे मेरे, सदा आपका ही सहारा।शत्रु भय न हो कभी मेरा, हो कृपा आपका सारा।। | प्रभु के सहारे सभी संकट दूर हों और शत्रुओं से कोई भय न रहे। |
विवाह के लिए | विवाह मंगल हो सदा, जीवन में सुख–शांति पाए।द्वारा मिलें दो मन एक, प्रेम से जीवन संवराए।। | विवाह सदैव मंगलमय हो, जीवन प्रेम और शांति से भरा रहे। |
शत्रु नाश के लिए | शत्रु विनाश हो मेरे, वीरता से मेरा संरक्षण।सदैव विजय हो मेरी, रक्षा करें प्रभु सदा शरण।। | शत्रु नष्ट हों, प्रभु सदैव मेरी रक्षा करें और मैं विजयी रहूं। |
जन्मोत्सव (लड़के) के लिए | संतान सुख का स्रोत है, बालक हमारा वरदान।जन्मोत्सव हो धूमधाम से, जीवन में हो आनन्द।। | संतान सुखदायक होती है; जन्मोत्सव आनंदपूर्वक मनाएं |
श्रीरामचन्द्र कृपालु भजुमन, हरण भव भय दारुणम्।
नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणम्।।
चौपाई का भावार्थ:
यह चौपाई गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामाष्टक का प्रारंभिक छंद है। इसमें श्रीरामचंद्र जी के दिव्य रूप और गुणों का वर्णन किया गया है। तुलसीदासजी कहते हैं: हे मेरे मन! तू श्रीराम का भजन कर, क्योंकि वे जन्म-मरण के भयानक भय का नाश करने वाले हैं।
राम राज बैठे त्रैलोका।
हरषित भए गए सब सोका।।
चौपाई का भावार्थ:
जब राम राज्य स्थापित हुआ तो तीनों लोकों में आनंद फैल गया और सभी के दुःख समाप्त हो गए।
बिनु हरि भजन न जोग सिय, बिनु राम भजन न ज्ञान।
बिनु राम नाम साधनु नहिं, नहिं भव तारण ठाँव।।
चौपाई का भावार्थ:
बिना श्रीराम के भजन के कोई साधना या ज्ञान नहीं है। राम नाम ही मोक्ष का एकमात्र मार्ग है।
प्रेम भक्ति जल बिनु रघुबर, न पिघलहि मनुज कठोर।
जैसे हिम उपजै न बिनु, जल बिनु रवि की कोर।।
चौपाई का भावार्थ:
बिना प्रेम और भक्ति के श्रीराम का कठोर मन नहीं पिघलता, जैसे बर्फ बिना पानी के नहीं बनती।
ग्यान गुण सागर, करुना अरु प्रीति के धाम।
राम भगति बिनु नाहीं कछु, बिनु भजन नाहीं बिनु राम।।
चौपाई का भावार्थ:
ज्ञान, गुण, करुणा और प्रेम सभी श्रीराम में हैं, परंतु केवल भक्ति के माध्यम से ही उनका अनुभव किया जा सकता है।
चौपाई छंद न केवल हिंदी साहित्य की एक विधा है, बल्कि यह जनमानस की सांस्कृतिक स्मृति का हिस्सा बन चुका है। धार्मिक ग्रंथों से लेकर लोकगीतों तक, इसका सहज प्रवाह और गहराई इसे आज भी प्रासंगिक और प्रभावशाली बनाए हुए हैं, विशेषकर भक्ति काव्य में।
चौपाई छंद भारतीय काव्य परंपरा का वह अमूल्य रत्न है, जिसके माध्यम से संत, कवि और भक्तों ने भगवान की महिमा, लोकमंगल की भावना और सामाजिक मूल्यों को अत्यंत प्रभावी रूप में व्यक्त किया है। विशेषकर रामचरितमानस, भक्ति-साहित्य और लोककथाओं में चौपाइयों का उपयोग बड़े ही लयबद्ध, भावगर्भित और जनसमर्थक शैली में हुआ है।
यहाँ हम रामचरितमानस और अन्य भक्तिपरक स्रोतों से चौपाई का उदाहरण 10 प्रसिद्ध चौपाइयों के अनुसार समझेंगे:
चौपाई छंद हिंदी काव्य परंपरा में एक अत्यंत लोकप्रिय और सुव्यवस्थित छंद है, जिसमें प्रत्येक चरण (पंक्ति) में 16-16 मात्राएँ होती हैं। इसमें लय, गति और तुकांत की संरचना इतनी सटीक होती है कि पाठक को सहजता से भावानुभूति हो जाती है। चौपाई का सौंदर्य उसकी वर्ण योजना और मात्रा विन्यास में छिपा होता है।
मूल अर्थ:
यह पंक्ति गुरु के चरणों की वंदना में कही गई है। गुरु के चरणों की धूल (रज) को कोमल और सुंदर अंजन (काजल) की तरह बताया गया है, जिससे अज्ञान रूपी अंधकार दूर होता है।
मात्रा और वर्ण संयोजन:
गु-ru-प-द-र-ज-मृ-दु-मं-जु-ल-अं-ज-न
इस पंक्ति में कुल 16 वर्ण (स्वर और व्यंजन संयोजन सहित) हैं, और 16 मात्राएँ पूर्ण रूप से संतुलित हैं।
विशेषता:
यहाँ ध्वनि-संयोजन इतना मधुर है कि पंक्ति पढ़ते ही संगीतात्मक प्रभाव उत्पन्न होता है। “मृदु”, “मंजुल”, “अंजन” जैसे शब्दों के प्रयोग से सौंदर्य और भक्ति की अनुभूति एकसाथ होती है।
मूल अर्थ:
इस पंक्ति में जीवन में प्रतिदिन भगवान का भजन करने की प्रेरणा दी गई है, और मन की कुटिलता (धोखेबाज़ प्रवृत्ति) को त्यागने का आग्रह किया गया है।
मात्रा और वर्ण संयोजन:
नि-त्य-भ-जि-य-त-जि-म-न-कु-टि-ला-ई
यहाँ भी कुल 16 मात्राएँ हैं, जो चौपाई छंद की मूल संरचना को पूरा करती हैं।
विशेषता:
“नित्य भजिय” और “तजि मन कुटिलाई” में उच्चारित ध्वनियाँ मन में स्थायित्व और वैराग्य का भाव जाग्रत करती हैं। यह संयोजन पाठक को आध्यात्मिक पथ की ओर प्रेरित करता है।
चौपाई छंद का भारतीय साहित्य और भक्ति आंदोलन में एक अत्यंत समृद्ध और प्रभावशाली स्थान है। यह छंद अपनी सरलता, लयात्मकता और भाव-प्रवणता के कारण शास्त्रीय कविता से लेकर जनभाषा के काव्य तक लोकप्रिय रहा है। विशेषतः भक्ति काल के कवियों ने अपने आध्यात्मिक विचारों को सहज और प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करने हेतु चौपाई छंद को माध्यम बनाया।
यह छंद शिल्प में संतुलित, भाव में सघन, और प्रस्तुति में स्पष्ट होता है। यह आम जनता को गहराई से प्रभावित करता है, इसीलिए यह धार्मिक ग्रंथों, कथाओं और जनश्रुतियों में खूब प्रयोग हुआ है।
गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस जैसे महान ग्रंथ में चौपाई छंद का अत्यधिक और कुशलतापूर्वक प्रयोग किया। चौपाइयों के माध्यम से उन्होंने श्रीराम के चरित्र, नीति, धर्म और भक्ति को जनसामान्य तक पहुँचाया। प्रत्येक चौपाई में 16-16 मात्राओं की संरचना तुलसी की भाषा-कुशलता और कथानक की गति को बनाए रखती है।
चौपाई का उदाहरण:
“राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।”
(भावार्थ: हे देवताओं के राजा! श्रीराम, लक्ष्मण और सीता सहित मेरे हृदय में वास करें।)
यह चौपाई भावनात्मक गहराई के साथ भक्तिपूर्ण विनय की अभिव्यक्ति है। तुलसीदास ने चौपाइयों को कथा के क्रम में इस तरह जोड़ा कि वे लोकभाषा में धर्म का सार बन गईं।
मलिक मुहम्मद जायसी, सूरदास, नंददास, और अन्य भक्ति युगीन कवियों ने भी चौपाई का प्रयोग अपने साहित्य में प्रभावी ढंग से किया।
चौपाई का उदाहरण:
“जसोदा हरि पालनैं झुलावै। मुलुक त मोती मुख महि खवावै॥”
(भावार्थ: यशोदा श्रीकृष्ण को पालने में झुलाती हैं और मोती जैसे पदार्थ उनके मुख में डालकर खिलाती हैं।
चौपाई, दोहा, सोरठा, और रोला जैसे छंद भारतीय काव्य-परंपरा की नींव हैं, जिनके माध्यम से कवियों ने न केवल भाव व्यक्त किए, बल्कि शिल्प, लय और रस की सुंदर समरसता भी प्रस्तुत की। प्रत्येक छंद की अपनी संरचना, प्रभावशीलता और उद्देश्य होता है, जिससे वे विभिन्न भावों को अभिव्यक्त करने में विशिष्ट बनते हैं।
चौपाई छंद की सबसे बड़ी विशेषता है इसकी सरलता और स्थायित्व। इसमें न तो लंबी यति की आवश्यकता होती है और न ही जटिल लय की। इसकी चार चरणों वाली संरचना कथा को गहराई और स्पष्टता से प्रस्तुत करने के लिए उपयुक्त होती है।
चौपाई छंद न केवल मध्यकालीन भक्तिकाव्य का आधार रहा है, बल्कि आज भी इसका प्रयोग विविध रूपों में जीवित और सशक्त है। आधुनिक युग में चौपाई का स्वरूप केवल साहित्यिक सीमाओं में नहीं बँधा, बल्कि यह धार्मिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक और सामाजिक संदर्भों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है।
चौपाई का सबसे सशक्त और निरंतर प्रयोग आज भी धार्मिक ग्रंथों में होता है। विशेषतः रामचरितमानस, हनुमान चालीसा, सुन्दरकाण्ड, तथा विनयपत्रिका जैसे ग्रंथों में चौपाई का उपयोग भावों की सहज अभिव्यक्ति, कथा-वर्णन और भक्तिभाव के संप्रेषण के लिए होता है।
आधुनिक शिक्षा प्रणाली, विशेष रूप से भारतीय काव्यशास्त्र और हिंदी साहित्य की पढ़ाई में, चौपाई को अध्ययन और विश्लेषण के महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में देखा जाता है।
आज के आधुनिक युग में भी चौपाई का महत्व कम नहीं हुआ है। यह छंद आज भी धार्मिक अनुष्ठानों, भजन-कीर्तन, कथा प्रवचनों और शिक्षण क्षेत्र में प्रयुक्त हो रहा है। साहित्यिक दृष्टि से, यह छंद सृजनात्मक लेखन, काव्यशास्त्र के अध्ययन, छंदमुक्त कविता की तुलना और भावव्यक्तिकी के विश्लेषण में सहायक है। चौपाई का उदाहरण रामचरितमानस, विनय पत्रिका और हनुमान चालीसा में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जहाँ यह गहरी आस्था और भावपूर्ण अभिव्यक्ति का माध्यम बनता है। वहीं संस्कृति की दृष्टि से, यह लोगों को अपनी परंपरा, धर्म और भाषा से जोड़े रखने का कार्य करता है।
चौपाई के प्रमुख प्रकार हैं – साधारण चौपाई, मुक्तक चौपाई, तुकबंदी वाली चौपाई, नीति चौपाई, और भक्ति चौपाई।
चौपाई में चार चरण होते हैं और हर चरण में 16 मात्राएँ होती हैं, जबकि दोहा दो पंक्तियों में लिखा जाता है – पहली में 13+11 और दूसरी में 13+11 मात्राएँ होती हैं।
रामचरितमानस में लगभग 10,902 चौपाइयाँ (लगभग 10,900 से अधिक) हैं। यह संख्या अलग-अलग संस्करणों में थोड़ा अंतर रख सकती है, लेकिन सामान्य रूप से इसे करीब 10,902 चौपाइयों का ग्रंथ माना जाता है।
चौपाई लिखने के लिए छंदशास्त्र का ज्ञान आवश्यक है — विशेषकर मात्राओं की गिनती (16-16), तुकांत का चयन और भाव की स्पष्टता महत्वपूर्ण होती है।
“राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।
बसहु सदा उर भीतर, करत सदा सुख रूप॥”
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Authored by, Amay Mathur | Senior Editor
Amay Mathur is a business news reporter at Chegg.com. He previously worked for PCMag, Business Insider, The Messenger, and ZDNET as a reporter and copyeditor. His areas of coverage encompass tech, business, strategy, finance, and even space. He is a Columbia University graduate.
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