चौपाई का उदाहरण

चौपाई का उदाहरण | Chaupai ka Udaharan- सरल हिंदी में

Published on July 1, 2025
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चौपाई का उदाहरण

Quick Summary

  • इस लेख में चौपाई छंद की परिभाषा, रचना शैली और साहित्यिक महत्त्व को सरल भाषा में समझाया गया है।
  • तुलसीदास, कबीर, सूरदास और अन्य कवियों द्वारा रचित प्रसिद्ध चौपाई का उदाहरण विस्तार से प्रस्तुत किया गया है।
  • चौपाई के अंग, प्रकार, ऐतिहासिक योगदान और आधुनिक उपयोग को व्यावहारिक दृष्टिकोण से समझाया गया है।
  • यह लेख छात्रों, प्रतियोगी परीक्षा अभ्यर्थियों, साहित्य प्रेमियों और अध्यापकों के लिए अत्यंत उपयोगी व संग्रहणीय सामग्री प्रदान करता है।

Table of Contents

चौपाई (Chaupai) हिंदी साहित्य का एक प्रमुख छंद है, जो विशेष रूप से रामचरितमानस जैसी रचनाओं में देखने को मिलता है। इसमें चार पंक्तियाँ होती हैं और हर पंक्ति में 16 मात्राएँ निर्धारित होती हैं। चौपाई का उदाहरण – चौपाई एक सममात्रिक छंद है, जिसमें प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं और कुल चार चरण होते हैं। यह छंद हिंदी कविता में विशेष रूप से लोकप्रिय है और गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ में Chaupai ki Paribhasha का व्यापक उपयोग हुआ है।

चौपाई छंद की विशेषता है कि इसके प्रत्येक चरण में यति (ठहराव) होती है, और चरणों के अंत में गुरु या लघु वर्ण नहीं होते, लेकिन दो गुरु या दो लघु हो सकते हैं। यह छंद सरलता और लयबद्धता के कारण भक्तिपूर्ण रचनाओं में प्रमुखता से प्रयोग होता है। इस छंद का प्रसिद्ध उदाहरण श्री हनुमान चालीसा में देखने को मिलता है, चौपाई का उदाहरण:-

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बलधामा।
अंजनि पुत्र पवन सुत नामा॥

उपयुक्त Chaupai ka Udaharan हनुमान जी के गुणों का वर्णन करता है। चौपाई छंद की यह विशेषता इसे हिंदी काव्य में एक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करती है।

चौपाई का उदाहरण: परिभाषा और महत्व | Chaupai kya Hai?

हिंदी काव्य की परंपरा में चौपाई सिर्फ एक छंद नहीं, एक आस्था की ध्वनि है। Chaupai Chhand ki Paribhasha चार पंक्तियों में होती है, प्रत्येक पंक्ति में 16 मात्राएँ होती हैं, जिससे यह छंद संतुलित और गेय बनता है। तुलसीदास ने चौपाई को जन-जन तक पहुँचाया, खासकर रामचरितमानस और हनुमान चालीसा में।

रामचरितमानस से लिया गया चौपाई का उदाहरण:

"राम नाम बिनु गति नहीं कोई। यह सुमति जान लेहु सब कोई॥"
(अर्थ: राम का नाम ही जीवन की दिशा है, यह बुद्धिमान बात सब जान लें।)

चौपाई की खास बात यह है कि यह गंभीर भावों को सरल शब्दों में कह देती है—भक्ति हो या नीति, वीरता हो या प्रेम। यही इसकी साहित्यिक और सांस्कृतिक महत्ता है। आज भी चौपाई सिर्फ कविता नहीं, जीवन की प्रेरणा बनकर जीवित है।

चौपाई की परिभाषा? | Chaupai ki Paribhasha

चौपाई हिंदी कविता का एक लोकप्रिय और प्राचीन छंद है, जो विशेष रूप से भक्ति साहित्य में प्रयुक्त होता है। चौपाई छंद सरलता, लयबद्धता और भावनात्मक प्रभाव के कारण बहुत प्रभावशाली माना जाता है।

Chaupai Chhand ke Udaharan सबसे प्रसिद्ध गोस्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस और हनुमान चालीसा में देखने को मिलता है। यह छंद धार्मिक, नैतिक और भावनात्मक विषयों को सहजता से अभिव्यक्त करने में सक्षम होता है।

इसकी खास बात यह है कि यह कम शब्दों में गहरी बात कह देता है — जैसे नीति, प्रेम, भक्ति या जीवन के सिद्धांत।

चौपाई का महत्व

चौपाई छंद हिंदी साहित्य की एक ऐसी विधा है, जिसने भक्ति, नीति और दर्शन को सरल भाषा में जन-जन तक पहुँचाने का कार्य किया है।

  1. चौपाई को हिंदी साहित्य और भक्ति काव्य की आत्मा माना जाता है।
  2. इसकी सबसे बड़ी विशेषता है – सरलता में गहराई।
  3. बड़े विचार, भावनाएँ और शिक्षाएँ चौपाई के माध्यम से आम जन तक सहजता से पहुँचती हैं।
  4. तुलसीदास, कबीर और रहीम जैसे संत कवियों ने चौपाई का उपयोग कर भक्ति, नीति, प्रेम और दर्शन को जनमानस तक पहुँचाया।
  5. रामचरितमानस की चौपाइयाँ केवल पठन सामग्री नहीं, बल्कि लोगों के जीवन का प्रेरणा स्रोत और मार्गदर्शक बन चुकी हैं।
  6. चौपाई छंद में लय, भाव और अर्थ का अद्भुत संगम होता है।
  7. यही संगम इसे आज भी लोकप्रिय और प्रभावशाली बनाए हुए है।
  8. चौपाई न केवल धार्मिक ग्रंथों में, बल्कि लोकगीतों और कथाओं में भी सक्रिय रूप से जीवित है।

चौपाई किसे कहते हैं? | Chaupai kise kahate Hain

चौपाई हिंदी कविता का एक प्रसिद्ध छंद होता है, जिसमें हर पंक्ति में 16 मात्राएँ होती हैं और यह चार पंक्तियों में लिखा जाता है। चौपाई छंद में तुकांत (अंत में तुक मिलती है) और लयबद्धता होती है, जिससे इसे पढ़ने और गाने में आसानी होती है।

चौपाई वह कविता होती है जो चार पंक्तियों की होती है और हर पंक्ति में 16 मात्राएँ होती हैं।

प्रमुख विशेषताएँ:

  • प्रत्येक पंक्ति में 16 मात्राएँ
  • कुल चार पंक्तियाँ
  • तुकबंदी और लय स्पष्ट होती है।
  • धार्मिक और भक्ति काव्य में इसका खूब उपयोग हुआ है।

चौपाई छंद के लक्षण

  • चौपाई एक सम मात्रिक छंद है, जिसमें सभी चरणों (पंक्तियों) में समान मात्राएँ (16) होती हैं।
  • प्रत्येक चरण का अंत गुरु (S) वर्ण पर होता है।
  • पहले और दूसरे चरण की तुकांत आपस में मिलती है, और तीसरे व चौथे चरण की तुक भी एक समान होती है।
  • चरण के अंत में जगण (⏑⏑–) या तगण (–⏑⏑) नहीं होना चाहिए।

चौपाई के अंग | प्रकार

चौपाई एक प्रमुख हिंदी छंद है जिसमें चार चरण होते हैं और हर चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। इसका उपयोग विशेष रूप से भक्ति, नीति और वीर रस की कविताओं में किया जाता है। चौपाई के मुख्य अंग हैं – चार चरण, 16-16 मात्राएँ, लयबद्धता और स्पष्ट यति। इसके भेद विषयवस्तु के आधार पर होते हैं, जैसे भक्ति चौपाई, नीति चौपाई, वीर चौपाई आदि। वहीं प्रकार की दृष्टि से साधारण चौपाई, श्लेषमयी चौपाई और श्रृंगारिक चौपाई प्रमुख हैं। तुलसीदास की रामचरितमानस चौपाई छंद के सबसे उत्कृष्ट चौपाई का उदाहरण में गिनी जाती है।

चौपाई के अंग – चरण, मात्रा, यति, तुकांत, भाव

चौपाई हिंदी कविता की एक महत्वपूर्ण छंद विधा है, जो अपनी लयबद्धता और सरलता के लिए जानी जाती है। चौपाई का उदाहरण विशेष स्वरूप इसे अन्य छंदों से अलग बनाता है। चौपाई के निर्माण में कुछ मुख्य अंग होते हैं, जो इसकी छंदबद्ध संरचना और भावपूर्ण अभिव्यक्ति को सुनिश्चित करते हैं।

चौपाई के मुख्य अंग

  1. चरण (Lines): चौपाई में कुल चार चरण होते हैं, जिनमें प्रत्येक चरण अपने आप में एक पूर्ण अर्थ और विचार प्रकट करता है। ये चार चरण मिलकर छंद की समग्रता बनाते हैं।
  2. मात्रा (Matra): प्रत्येक चरण में कुल 16 मात्राएँ होती हैं, जो छंद की लय और ताल को व्यवस्थित करती हैं। मात्राओं की यह सटीक संख्या चौपाई की लयबद्धता की आधारशिला है।
  3. यति (Pause): यति या विराम छंद की पठनीयता और स्पष्टता के लिए आवश्यक होता है। यह पाठ में विराम देकर भाव की पकड़ को मजबूत बनाता है और लय को संतुलित करता है।
  4. तुकांत (Rhyme): चौपाई में तुकांत का विशेष स्थान है। यह छंद को संगीतात्मक बनाता है और पाठक या श्रोता के मन में छंद की छाप को गहरा करता है।
  5. भाव (Emotion/Meaning): प्रत्येक चरण में एक विशेष भाव, संदेश या शिक्षात्मक विचार संक्षिप्त और प्रभावी रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिससे छंद का उद्देश्य स्पष्ट होता है।

चौपाई के प्रकार

चौपाई हिंदी छंद साहित्य की एक प्रमुख शैली है, जिसका प्रयोग विशेष रूप से भक्ति, नीति और लोकगीतों में व्यापक रूप से किया जाता है। इसकी विविधता और बहुआयामी प्रकृति इसे हिंदी काव्य में विशिष्ट स्थान प्रदान करती है। समय, उद्देश्य और भावानुसार चौपाई के कई प्रकार विकसित हुए हैं, जो इसके प्रभाव और सौंदर्य को और भी समृद्ध बनाते हैं।

चौपाई के प्रमुख प्रकार:

  • साधारण चौपाई: यह सबसे सामान्य प्रकार है, जिसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। इसे अधिकतर भक्ति काव्य और धार्मिक ग्रंथों में प्रयोग किया जाता है।
  • मुक्तक चौपाई: इस प्रकार की चौपाई स्वतंत्र छंद के रूप में होती है, जिसका कोई नियमबद्ध तुकांत या विशेष मात्रा पैटर्न नहीं होता। यह भाव प्रकट करने के लिए अधिक स्वतंत्रता देती है।
  • तुकबंदी वाली चौपाई: इसमें प्रत्येक चरण या पंक्ति के अंत में निश्चित तुकांत होते हैं, जिससे छंद में संगीतात्मकता और लय का विशेष प्रभाव बनता है। तुलसीदास की चौपाइयाँ इसी प्रकार की होती हैं।
  • नीतिगत चौपाई: ये चौपाइयाँ नीति और उपदेशात्मक भाव से भरपूर होती हैं, जिनका उद्देश्य जीवन के मार्गदर्शन और शिक्षाओं को सरल भाषा में प्रस्तुत करना होता है।
  • भक्ति चौपाई: यह भक्ति रस से ओतप्रोत होती है, जिसमें भगवान की स्तुति, आराधना और भक्तिपूर्ण भावों का संकलन होता है।

चौपाई का उदाहरण | Chaupai ka Udaharan

प्रयोजनचौपाई का उदाहरणअर्थ/भावार्थ
विद्या प्राप्ति के लिएविद्या दानं परमं धनं, सदा सुखदं मनोहरम्।सर्वतो भूषणं विद्यां, नताः सर्व जगत्सरम्।।विद्या सबसे बड़ा सुखदायक धन है, जो हर जगह शोभा देती है और सभी को आकर्षित करती है।
लक्ष्मी प्राप्ति के लिएमहालक्ष्मी नमस्तुभ्यं, महा काम रूपिणि।सर्वसंपदा प्रदायिनि, भुक्ति सुख दायिनि।।महालक्ष्मी को प्रणाम, जो सभी इच्छाएं पूर्ण करती हैं और सुख-संपत्ति प्रदान करती हैं।
पुत्र प्राप्ति के लिएपुत्रदेवाय नमो नमः, जनकाय शुभंकराय।पुत्र समृद्धि दायिनि मे, सकल पाप हरिणि।।पुत्र सुख देने वाले देवता को प्रणाम, जो पापों का नाश करते हैं और संतान सुख देते हैं।
संकट हरण के लिएसंकट से संकट मिटे मेरे, सदा आपका ही सहारा।शत्रु भय हो कभी मेरा, हो कृपा आपका सारा।।प्रभु के सहारे सभी संकट दूर हों और शत्रुओं से कोई भय न रहे।
विवाह के लिएविवाह मंगल हो सदा, जीवन में सुखशांति पाए।द्वारा मिलें दो मन एक, प्रेम से जीवन संवराए।।विवाह सदैव मंगलमय हो, जीवन प्रेम और शांति से भरा रहे।
शत्रु नाश के लिएशत्रु विनाश हो मेरे, वीरता से मेरा संरक्षण।सदैव विजय हो मेरी, रक्षा करें प्रभु सदा शरण।।शत्रु नष्ट हों, प्रभु सदैव मेरी रक्षा करें और मैं विजयी रहूं।
जन्मोत्सव (लड़के) के लिएसंतान सुख का स्रोत है, बालक हमारा वरदान।जन्मोत्सव हो धूमधाम से, जीवन में हो आनन्द।।संतान सुखदायक होती है; जन्मोत्सव आनंदपूर्वक मनाएं
चौपाई का उदाहरण 10 | चौपाई छंद का उदाहरण

रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई का उदाहरण: श्रीरामचन्द्र कृपालु भजुमन

श्रीरामचन्द्र कृपालु भजुमन, हरण भव भय दारुणम्।
नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणम्।।

चौपाई का भावार्थ:
यह चौपाई गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामाष्टक का प्रारंभिक छंद है। इसमें श्रीरामचंद्र जी के दिव्य रूप और गुणों का वर्णन किया गया है। तुलसीदासजी कहते हैं: हे मेरे मन! तू श्रीराम का भजन कर, क्योंकि वे जन्म-मरण के भयानक भय का नाश करने वाले हैं।

राम राज बैठे त्रैलोका।
हरषित भए गए सब सोका।।

चौपाई का भावार्थ:
जब राम राज्य स्थापित हुआ तो तीनों लोकों में आनंद फैल गया और सभी के दुःख समाप्त हो गए।

बिनु हरि भजन न जोग सिय, बिनु राम भजन न ज्ञान।
बिनु राम नाम साधनु नहिं, नहिं भव तारण ठाँव।।

चौपाई का भावार्थ:
बिना श्रीराम के भजन के कोई साधना या ज्ञान नहीं है। राम नाम ही मोक्ष का एकमात्र मार्ग है।

प्रेम भक्ति जल बिनु रघुबर, न पिघलहि मनुज कठोर।
जैसे हिम उपजै न बिनु, जल बिनु रवि की कोर।।

चौपाई का भावार्थ:
बिना प्रेम और भक्ति के श्रीराम का कठोर मन नहीं पिघलता, जैसे बर्फ बिना पानी के नहीं बनती।

ग्यान गुण सागर, करुना अरु प्रीति के धाम।
राम भगति बिनु नाहीं कछु, बिनु भजन नाहीं बिनु राम।।

चौपाई का भावार्थ:
ज्ञान, गुण, करुणा और प्रेम सभी श्रीराम में हैं, परंतु केवल भक्ति के माध्यम से ही उनका अनुभव किया जा सकता है।

चौपाई छंद का उपयोग और लोकप्रियता

चौपाई छंद न केवल हिंदी साहित्य की एक विधा है, बल्कि यह जनमानस की सांस्कृतिक स्मृति का हिस्सा बन चुका है। धार्मिक ग्रंथों से लेकर लोकगीतों तक, इसका सहज प्रवाह और गहराई इसे आज भी प्रासंगिक और प्रभावशाली बनाए हुए हैं, विशेषकर भक्ति काव्य में।

  1. चौपाई छंद का उपयोग मुख्यतः भक्ति काव्य, धार्मिक ग्रंथों, और लोक परंपराओं में किया जाता रहा है।
  2. इसकी विशेषता यह है कि यह भावनाओं को सरल, लयबद्ध और संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करता है।
  3. गोस्वामी तुलसीदास ने चौपाई का उदाहरण रामचरितमानस, विनय पत्रिका, और हनुमान चालीसा जैसी रचनाओं में अत्यधिक किया।
  4. इन रचनाओं के माध्यम से चौपाई छंद जन-जन तक पहुँचा और व्यापक रूप से लोकप्रिय हुआ।
  5. चौपाई की लोकप्रियता का मुख्य कारण है — सरलता, प्रवाह, और भावनात्मक गहराई।
  6. यह छंद आज भी कथाओं के संवादों, नीति-सूक्तियों, प्रार्थनाओं, और भक्ति गीतों में प्रयुक्त होता है।
  7. गाँव की चौपालों से लेकर मंदिरों की आरतियों तक, चौपाई आज भी हमारी सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न हिस्सा बनी हुई है।

प्रसिद्ध चौपाई छंद के 10 उदाहरण | Chaupai Chhand ka Udaharan

चौपाई छंद भारतीय काव्य परंपरा का वह अमूल्य रत्न है, जिसके माध्यम से संत, कवि और भक्तों ने भगवान की महिमा, लोकमंगल की भावना और सामाजिक मूल्यों को अत्यंत प्रभावी रूप में व्यक्त किया है। विशेषकर रामचरितमानस, भक्ति-साहित्य और लोककथाओं में चौपाइयों का उपयोग बड़े ही लयबद्ध, भावगर्भित और जनसमर्थक शैली में हुआ है।

यहाँ हम रामचरितमानस और अन्य भक्तिपरक स्रोतों से चौपाई का उदाहरण 10 प्रसिद्ध चौपाइयों के अनुसार समझेंगे:

  1. “जब ते राम ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए।।”
     
    भावार्थ: जब श्रीराम विवाह के पश्चात अयोध्या लौटे, तब प्रतिदिन नगर में नए-नए मंगल कार्य और उत्सव की लहर उठी।
  2. “रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई। उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई।।”
     
    भावार्थ: सुख, समृद्धि और सिद्धियाँ सरिता के समान उमड़कर अयोध्या में समुद्र की ओर चली आईं। यह नगर की आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है।
  3. “राम सिया रघुवीर की लीला। समुझि सकल भ्रम जाई हीला।।”
     भावार्थ: श्रीराम और सीता की दिव्य लीलाओं को समझकर सभी प्रकार के सांसारिक भ्रम दूर हो जाते हैं।
  4. “देखि सुभाय अति सुंदर साना। मन हरषित मुदित गवँ गाना।।”
     
    भावार्थ: राम को बालरूप में देखकर सभी का मन हर्षित हो उठा और सब लोग मंगल गीत गाने लगे।
  5. “जौं प्रभु मोहि नाथ निहोरा। तौं न जाहुँ सरित पुनि मोरा।।”
     भावार्थ: जब प्रभु श्रीराम ने विनती की, तब सरयू नदी ने उत्तर दिया—यदि आप मुझे रोकें, तो मैं लौट नहीं सकती।
  6. “कहहु राम की कथा सुहाई।”
    भावार्थ: आइए, भगवान राम की मधुर और पवित्र कथा को सुनें और कहें—यह मन, वाणी और आत्मा को पवित्र करती है
  7. “बंदौं राम नाम रघुबर को।”
    भावार्थ: मैं श्रीराम के पावन नाम की वंदना करता हूँ, जो रघुवंश के नायक हैं और सभी संकटों का नाश करते हैं।
  8. “राम नाम बिनु गिरा न बानी। बिनु जल वारि न चालै पानी।।”
    भावार्थ: जैसे जल के बिना पानी नहीं चल सकता, वैसे ही राम नाम के बिना वाणी भी निष्प्रभावी है।
  9. “संत हृदय नवनीत समाना।”
     
    भावार्थ: संतों का हृदय मक्खन की तरह कोमल होता है, जिसमें करुणा और दया का वास रहता है।
  10. “रामहि केवल प्रेम पियारा। जानि लेहु जो जाननिहारा।।”
     
    भावार्थ: भगवान राम को केवल प्रेम प्रिय है। जो जानने योग्य है, वह यही समझ ले।

चौपाई वर्णों का संयोजन | चौपाई का उदाहरण मात्रा सहित

चौपाई छंद हिंदी काव्य परंपरा में एक अत्यंत लोकप्रिय और सुव्यवस्थित छंद है, जिसमें प्रत्येक चरण (पंक्ति) में 16-16 मात्राएँ होती हैं। इसमें लय, गति और तुकांत की संरचना इतनी सटीक होती है कि पाठक को सहजता से भावानुभूति हो जाती है। चौपाई का सौंदर्य उसकी वर्ण योजना और मात्रा विन्यास में छिपा होता है।

1. “गुरु-पद-रज-मृदु-मंजुल-अंजन”

मूल अर्थ:
यह पंक्ति गुरु के चरणों की वंदना में कही गई है। गुरु के चरणों की धूल (रज) को कोमल और सुंदर अंजन (काजल) की तरह बताया गया है, जिससे अज्ञान रूपी अंधकार दूर होता है।

मात्रा और वर्ण संयोजन:
गु-ru-प-द-र-ज-मृ-दु-मं-जु-ल-अं-ज-न
इस पंक्ति में कुल 16 वर्ण (स्वर और व्यंजन संयोजन सहित) हैं, और 16 मात्राएँ पूर्ण रूप से संतुलित हैं।

विशेषता:
यहाँ ध्वनि-संयोजन इतना मधुर है कि पंक्ति पढ़ते ही संगीतात्मक प्रभाव उत्पन्न होता है। “मृदु”, “मंजुल”, “अंजन” जैसे शब्दों के प्रयोग से सौंदर्य और भक्ति की अनुभूति एकसाथ होती है।

2. “नित्य-भजिय-तजि-मन-कुटिलाई”

मूल अर्थ:
इस पंक्ति में जीवन में प्रतिदिन भगवान का भजन करने की प्रेरणा दी गई है, और मन की कुटिलता (धोखेबाज़ प्रवृत्ति) को त्यागने का आग्रह किया गया है।

मात्रा और वर्ण संयोजन:
नि-त्य-भ-जि-य-त-जि-म-न-कु-टि-ला-ई
यहाँ भी कुल 16 मात्राएँ हैं, जो चौपाई छंद की मूल संरचना को पूरा करती हैं।

विशेषता:
“नित्य भजिय” और “तजि मन कुटिलाई” में उच्चारित ध्वनियाँ मन में स्थायित्व और वैराग्य का भाव जाग्रत करती हैं। यह संयोजन पाठक को आध्यात्मिक पथ की ओर प्रेरित करता है।

चौपाई का ऐतिहासिक और साहित्यिक महत्व

चौपाई छंद का भारतीय साहित्य और भक्ति आंदोलन में एक अत्यंत समृद्ध और प्रभावशाली स्थान है। यह छंद अपनी सरलता, लयात्मकता और भाव-प्रवणता के कारण शास्त्रीय कविता से लेकर जनभाषा के काव्य तक लोकप्रिय रहा है। विशेषतः भक्ति काल के कवियों ने अपने आध्यात्मिक विचारों को सहज और प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करने हेतु चौपाई छंद को माध्यम बनाया।

यह छंद शिल्प में संतुलित, भाव में सघन, और प्रस्तुति में स्पष्ट होता है। यह आम जनता को गहराई से प्रभावित करता है, इसीलिए यह धार्मिक ग्रंथों, कथाओं और जनश्रुतियों में खूब प्रयोग हुआ है।

गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रामचरितमानस  में चौपाई का उदाहरण

गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस जैसे महान ग्रंथ में चौपाई छंद का अत्यधिक और कुशलतापूर्वक प्रयोग किया। चौपाइयों के माध्यम से उन्होंने श्रीराम के चरित्र, नीति, धर्म और भक्ति को जनसामान्य तक पहुँचाया। प्रत्येक चौपाई में 16-16 मात्राओं की संरचना तुलसी की भाषा-कुशलता और कथानक की गति को बनाए रखती है।

चौपाई का उदाहरण:

“राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।”
(भावार्थ: हे देवताओं के राजा! श्रीराम, लक्ष्मण और सीता सहित मेरे हृदय में वास करें।)

यह चौपाई भावनात्मक गहराई के साथ भक्तिपूर्ण विनय की अभिव्यक्ति है। तुलसीदास ने चौपाइयों को कथा के क्रम में इस तरह जोड़ा कि वे लोकभाषा में धर्म का सार बन गईं।

जायसी, सूरदास, नंददास जैसे अन्य कवियों द्वारा उपयोग

मलिक मुहम्मद जायसी, सूरदास, नंददास, और अन्य भक्ति युगीन कवियों ने भी चौपाई का प्रयोग अपने साहित्य में प्रभावी ढंग से किया।

  • जायसी ने पद्मावत जैसे सूफी काव्य ग्रंथ में कथानक के प्रवाह के लिए चौपाइयों का इस्तेमाल किया।
  • सूरदास ने सूरसागर में भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं और प्रेम भाव को सरल, सुंदर चौपाइयों में प्रस्तुत किया।
  • नंददास ने कृष्ण भक्ति से जुड़ी रचनाओं में चौपाई को माधुर्य भाव के साथ गूंथा।

चौपाई का उदाहरण:

“जसोदा हरि पालनैं झुलावै। मुलुक त मोती मुख महि खवावै॥”
(भावार्थ: यशोदा श्रीकृष्ण को पालने में झुलाती हैं और मोती जैसे पदार्थ उनके मुख में डालकर खिलाती हैं।

चौपाई और अन्य छंदों की तुलना

चौपाई, दोहा, सोरठा, और रोला जैसे छंद भारतीय काव्य-परंपरा की नींव हैं, जिनके माध्यम से कवियों ने न केवल भाव व्यक्त किए, बल्कि शिल्प, लय और रस की सुंदर समरसता भी प्रस्तुत की। प्रत्येक छंद की अपनी संरचना, प्रभावशीलता और उद्देश्य होता है, जिससे वे विभिन्न भावों को अभिव्यक्त करने में विशिष्ट बनते हैं।

चौपाई की विशेषता और उपयोगिता

चौपाई छंद की सबसे बड़ी विशेषता है इसकी सरलता और स्थायित्व। इसमें न तो लंबी यति की आवश्यकता होती है और न ही जटिल लय की। इसकी चार चरणों वाली संरचना कथा को गहराई और स्पष्टता से प्रस्तुत करने के लिए उपयुक्त होती है।

चौपाई का आधुनिक उपयोग

चौपाई छंद न केवल मध्यकालीन भक्तिकाव्य का आधार रहा है, बल्कि आज भी इसका प्रयोग विविध रूपों में जीवित और सशक्त है। आधुनिक युग में चौपाई का स्वरूप केवल साहित्यिक सीमाओं में नहीं बँधा, बल्कि यह धार्मिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक और सामाजिक संदर्भों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है।

धार्मिक ग्रंथों, भजन, कीर्तन में उपयोग

चौपाई का सबसे सशक्त और निरंतर प्रयोग आज भी धार्मिक ग्रंथों में होता है। विशेषतः रामचरितमानस, हनुमान चालीसा, सुन्दरकाण्ड, तथा विनयपत्रिका जैसे ग्रंथों में चौपाई का उपयोग भावों की सहज अभिव्यक्ति, कथा-वर्णन और भक्तिभाव के संप्रेषण के लिए होता है।

  • भजन और कीर्तन में चौपाइयाँ गाई जाती हैं क्योंकि इनमें सरल लय, स्पष्ट शब्द और जनमानस से जुड़ाव होता है।
  • धार्मिक समारोहों, कथा प्रवचनों और मंदिरों में चौपाई शैली के श्लोकों का उच्चारण वातावरण को भक्तिमय बना देता है।
  • हनुमान चालीसा, जो केवल चौपाइयों में रचित है, आज भी हर आयु वर्ग में सर्वाधिक पढ़ी और गाई जाने वाली रचना है।

शिक्षा व प्रतियोगी परीक्षा में उपयोगिता

आधुनिक शिक्षा प्रणाली, विशेष रूप से भारतीय काव्यशास्त्र और हिंदी साहित्य की पढ़ाई में, चौपाई को अध्ययन और विश्लेषण के महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में देखा जाता है।

  • चौपाई छंद का वर्णिक और मात्रिक विश्लेषण हिंदी साहित्य की परीक्षा और प्रतियोगी परीक्षाओं (जैसे UGC-NET, TGT, PGT, UPSC) में प्रमुख विषय बन चुका है।
  • छात्रों को छंद-रचना, छंद पहचान, और साहित्यिक शैली में तुलना के लिए चौपाई का प्रयोग कर सृजनात्मक लेखन सिखाया जाता है।
  • यह छंद पठन कौशल, लयबद्ध स्मृति और सृजनात्मक अभिव्यक्ति को भी प्रोत्साहित करता है।

निष्कर्ष | Conclusion

आज के आधुनिक युग में भी चौपाई का महत्व कम नहीं हुआ है। यह छंद आज भी धार्मिक अनुष्ठानों, भजन-कीर्तन, कथा प्रवचनों और शिक्षण क्षेत्र में प्रयुक्त हो रहा है। साहित्यिक दृष्टि से, यह छंद सृजनात्मक लेखन, काव्यशास्त्र के अध्ययन, छंदमुक्त कविता की तुलना और भावव्यक्तिकी के विश्लेषण में सहायक है। चौपाई का उदाहरण रामचरितमानस, विनय पत्रिका और हनुमान चालीसा में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जहाँ यह गहरी आस्था और भावपूर्ण अभिव्यक्ति का माध्यम बनता है। वहीं संस्कृति की दृष्टि से, यह लोगों को अपनी परंपरा, धर्म और भाषा से जोड़े रखने का कार्य करता है।

चौपाई के कितने प्रकार होते हैं?

चौपाई के प्रमुख प्रकार हैं – साधारण चौपाई, मुक्तक चौपाई, तुकबंदी वाली चौपाई, नीति चौपाई, और भक्ति चौपाई।

चौपाई और दोहा में क्या अंतर है?

चौपाई में चार चरण होते हैं और हर चरण में 16 मात्राएँ होती हैं, जबकि दोहा दो पंक्तियों में लिखा जाता है – पहली में 13+11 और दूसरी में 13+11 मात्राएँ होती हैं।

रामचरितमानस में कुल कितनी चौपाई है?

रामचरितमानस में लगभग 10,902 चौपाइयाँ (लगभग 10,900 से अधिक) हैं। यह संख्या अलग-अलग संस्करणों में थोड़ा अंतर रख सकती है, लेकिन सामान्य रूप से इसे करीब 10,902 चौपाइयों का ग्रंथ माना जाता है।

चौपाई लिखने की कोई खास तकनीक है?

चौपाई लिखने के लिए छंदशास्त्र का ज्ञान आवश्यक है — विशेषकर मात्राओं की गिनती (16-16), तुकांत का चयन और भाव की स्पष्टता महत्वपूर्ण होती है।

चौपाई का उदाहरण क्या है?

“राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।
बसहु सदा उर भीतर, करत सदा सुख रूप॥”

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Authored by, Amay Mathur | Senior Editor

Amay Mathur is a business news reporter at Chegg.com. He previously worked for PCMag, Business Insider, The Messenger, and ZDNET as a reporter and copyeditor. His areas of coverage encompass tech, business, strategy, finance, and even space. He is a Columbia University graduate.