2 दिसंबर 1984 की रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड प्लांट में मिथाइल आइसोनेट (एमआईसी) के रिसाव के कारण तुरंत 2660 निर्दोष व्यक्तियों की जान चली गई।
इसके अतिरिक्त, आसपास के क्षेत्रों में दस हजार से अधिक लोग शारीरिक रूप से विकलांग हो गए।
इस दुर्घटना के परिणामस्वरूप लगभग पांच लाख लोग एमआईसी के रिसाव से प्रभावित हुए।
यह घटना न केवल मानव जीवन के लिए एक बड़ा संकट थी, बल्कि इसके दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावों ने भी प्रभावित लोगों के जीवन को गंभीर रूप से बदल दिया। यह त्रासदी आज भी लोगों के दिलों में एक गहरी छाप छोड़ती है।
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भोपाल गैस त्रासदी, मानव इतिहास की सबसे भयानक औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक है, जिसने लाखों लोगों की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया। 2-3 दिसंबर 1984 की रात, मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) के कीटनाशक संयंत्र से मीथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ। जिससे तुरंत कम से कम 3,800 लोगों की मौत हो गई और कई हजारों लोगों की महत्वपूर्ण रुग्णता तथा अकस्मात रासायनिक रोगों के उत्पन्न होने से हज़ारो लोगो की समय से पहले मौत हो गई।
इस लेख में भोपाल गैस काण्ड, union carbide bhopal, भोपाल गैस त्रासदी के प्रभाव पर विस्तार से चर्चा की गई है। कैसे इतिहास की सबसे भयानक औद्योगिक दुर्घटना में शामिल कंपनी ने तुरंत खुद को कानूनी जिम्मेदारी से अलग करने की कोशिश की।
भोपाल गैस त्रासदी कब हुई थी?
भोपाल गैस काण्ड 2 दिसंबर 1984 की रात को लगभग 11:00 बजे यूनियन कार्बाइड के संयंत्र से जहरीली गैस का रिसाव शुरू हुआ। अगले कुछ घंटों में भोपाल की हवा में ज़हर फैल गया। करीब 500,000 लोग इस गैस के संपर्क में आए, जिनमें से हजारों ने अपनी जान गंवाई।
यूनियन कार्बाइड भोपाल संयंत्र | Union Carbide Bhopal
यूनियन कार्बाइड का परिचय
यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) एक अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (UCC) की सहायक कंपनी थी। union carbide bhopal की कंपनी 1934 में भारत में स्थापित हुई थी और इसका मुख्य उद्देश्य देश की कृषि और औद्योगिक जरूरतों को पूरा करना था। भोपाल में स्थित इस संयंत्र में मुख्य रूप से कीटनाशक ‘सेविन’ (Carbaryl) का उत्पादन किया जाता था। ‘सेविन’ एक अत्यधिक प्रभावी कीटनाशक था, जो किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय था। इस कीटनाशक के निर्माण में मुख्य घटक मीथाइल आइसोसाइनेट (MIC) का उपयोग होता था।
भोपाल संयंत्र का महत्व
भोपाल संयंत्र को भारत के लिए कृषि क्षेत्र में क्रांति लाने वाले एक महत्वपूर्ण कारखाने के रूप में देखा गया। यह संयंत्र रोजगार प्रदान करने के साथ-साथ कृषि उत्पादन को बढ़ाने में सहायक था। लेकिन इसके साथ ही, संयंत्र में सुरक्षा उपायों की भारी कमी और प्रबंधन की लापरवाही ने इसे एक ticking time bomb बना दिया।
भोपाल गैस काण्ड के मुख्य कारण
1. तकनीकी खामियाँ
यूनियन कार्बाइड भोपाल संयंत्र में कई तकनीकी खामियाँ थीं, जो इस त्रासदी का मुख्य कारण बनीं-
सुरक्षा उपकरणों की खराब स्थिति- संयंत्र में लगाए गए सुरक्षा उपकरण जैसे वेंट गैस स्क्रबर, फ्लेयर टावर और कूलिंग सिस्टम खराब हालत में थे।
सुरक्षा प्रणाली की विफलता- गैस रिसाव को रोकने वाले उपकरण लंबे समय से ठीक से काम नहीं कर रहे थे। उदाहरण के लिए, फ्लेयर टावर, जो गैस को जलाकर बेअसर करता था, दुर्घटना के समय बंद था।
मीथाइल आइसोसाइनेट (MIC) के टैंक का रखरखाव- MIC को ठंडा रखने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला कूलिंग सिस्टम बंद कर दिया गया था, जिससे टैंक में तापमान बढ़ गया।
2. लापरवाही
यूनियन कार्बाइड प्रबंधन और कर्मचारियों द्वारा की गई लापरवाही ने त्रासदी की संभावना को बढ़ा दिया-
सुरक्षा मानकों की अनदेखी- संयंत्र में सुरक्षा मानकों का पालन नहीं किया गया। कर्मचारी सुरक्षा प्रोटोकॉल के प्रति लापरवाह थे और कई बार छोटे रिसावों को नजरअंदाज कर दिया गया।
चेतावनी के संकेतों की अनदेखी- संयंत्र में पहले भी गैस रिसाव की घटनाएँ हो चुकी थीं, लेकिन प्रबंधन ने इन घटनाओं को गंभीरता से नहीं लिया।
प्रशिक्षण की कमी- संयंत्र के कर्मचारी गैस की विषाक्तता और उससे निपटने के तरीकों के बारे में पूरी तरह प्रशिक्षित नहीं थे।
3. कम लागत में संचालन
यूनियन कार्बाइड ने संयंत्र की लागत को कम करने के लिए कई जोखिम भरे कदम उठाए:
पुराने उपकरणों का उपयोग- संयंत्र में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरण लंबे समय से बदले नहीं गए थे। इनमें से कई उपकरण खराब स्थिति में थे।
रखरखाव में कटौती- संयंत्र में रखरखाव कार्य के लिए बजट में कटौती की गई, जिससे सुरक्षा उपाय कमजोर हो गए।
घरेलू उत्पादन को प्राथमिकता- कंपनी ने भारत में उत्पादन लागत को कम करने के लिए सस्ते स्थानीय उपकरणों और सामग्रियों का इस्तेमाल किया। इससे संयंत्र की सुरक्षा और विश्वसनीयता पर असर पड़ा।
4. पानी का टैंक में जाना और रासायनिक प्रतिक्रिया
दुर्घटना की रात, टैंक E610 में पानी जाने से मीथाइल आइसोसाइनेट (MIC) के साथ रासायनिक प्रतिक्रिया हुई।
रासायनिक प्रतिक्रिया- पानी और MIC के संपर्क में आने से तापमान 200 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया और गैस का दबाव कई गुना बढ़ गया।
गैस का रिसाव- इस रासायनिक प्रक्रिया के कारण MIC गैस को रोकने वाली प्रणाली फेल हो गई, और जहरीली गैस वातावरण में फैलने लगी।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
गैस का प्रभाव- MIC गैस अत्यधिक जहरीली थी, और हवा में फैलते ही लोगों को सांस लेने में कठिनाई, आंखों में जलन और घुटन महसूस हुई।
रिसाव का समय- दुर्घटना रात को हुई, जब ज्यादातर लोग सो रहे थे, जिससे बचने की संभावना और कम हो गई।
भोपाल गैस काण्ड की घटनाएँ: Union Carbide Bhopal
शोध से संबंधित अन्य तथ्य
भोपाल गैस त्रासदी के कई पहलुओं को लेकर समय-समय पर शोध और अध्ययन किए गए, लेकिन इस घटना से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य भोपाल गैस काण्ड से पहले ही नजरअंदाज कर दिए गए थे:
1. MIC गैस की विषाक्तता पर अपर्याप्त अध्ययन-
मीथाइल आइसोसाइनेट (MIC) एक अत्यधिक विषैला रसायन है। इसका उपयोग कीटनाशकों के उत्पादन में होता था।
यूनियन कार्बाइड द्वारा MIC की विषाक्तता के प्रभावों का गहराई से अध्ययन नहीं किया गया।
संयंत्र के आसपास रहने वाले लोगों को इस गैस के संभावित खतरों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई थी।
MIC गैस के रिसाव के प्रभावों को लेकर पहले से कोई चेतावनी प्रणाली या सामुदायिक जागरूकता अभियान नहीं चलाया गया।
2. समुदाय को अंधकार में रखना-
संयंत्र के आसपास रहने वाले लोगों को रसायन और उससे जुड़े जोखिमों के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई थी।
न तो गैस के रिसाव से बचाव के उपाय बताए गए और न ही इसके प्रभावों को कम करने के तरीकों पर कोई प्रशिक्षण दिया गया।
यहां तक कि संयंत्र के कर्मचारियों को भी MIC गैस के विषैले प्रभावों की पूरी जानकारी नहीं थी।
3. गैस का तात्कालिक प्रभाव-
रिसाव होते ही गैस आसपास के क्षेत्रों में तेजी से फैल गई।
लोग सो रहे थे और उन्हें सांस लेने में दिक्कत, आंखों में जलन और घुटन महसूस होने लगी।
कई लोगों ने घबराकर अपने घरों से बाहर भागने की कोशिश की, लेकिन जहरीली गैस के संपर्क में आने से उनकी तुरंत मौत हो गई।
कई गर्भवती महिलाओं का गर्भपात हो गया, और बच्चों में जन्म दोष जैसे गंभीर प्रभाव देखे गए।
सरकार और प्रशासन की भूमिका
भोपाल गैस त्रासदी के बाद सरकार और प्रशासन की भूमिका पर कई सवाल उठे। यह स्पष्ट हुआ कि इस आपदा से निपटने के लिए सरकार और प्रशासन बिल्कुल भी तैयार नहीं थे।
1. पहले से तैयारी की कमी-
आपातकालीन योजना का अभाव- ऐसी बड़ी औद्योगिक दुर्घटना से निपटने के लिए कोई ठोस आपातकालीन योजना नहीं थी।संयंत्र के आसपास रहने वाले लोगों को ऐसी स्थिति से बचाव के उपायों की जानकारी नहीं दी गई थी।
खतरे का आकलन न करना- यूनियन कार्बाइड संयंत्र के संचालन के दौरान सुरक्षा मानकों की अनदेखी और प्रशासन की निष्क्रियता ने स्थिति को और गंभीर बना दिया। संयंत्र की निगरानी और नियमित जांच में भारी चूक हुई।
2. अस्पतालों की स्थिति–
स्वास्थ्य सेवाओं की कमी- भोपाल के अस्पतालों में इस तरह की आपात स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त दवाइयाँ, ऑक्सीजन सिलेंडर, और एंटी-डॉट उपलब्ध नहीं थे। डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी MIC गैस के प्रभावों के बारे में अपर्याप्त जानकारी रखते थे।
असहाय स्थिति- अस्पतालों में बेड की कमी थी और मरीजों की भीड़ इतनी ज्यादा थी कि इलाज कर पाना लगभग असंभव हो गया। हजारों लोगों की मौत उपचार की कमी और समय पर मदद न मिलने के कारण हुई।
3. जांच और कार्रवाई में देरी-
जांच की धीमी प्रक्रिया- त्रासदी के तुरंत बाद, मामले की जांच में देरी हुई। यह सुनिश्चित करने के लिए कि पीड़ितों को न्याय मिले, कोई ठोस कदम तुरंत नहीं उठाए गए।
यूनियन कार्बाइड पर कार्रवाई- यूनियन कार्बाइड के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया बेहद धीमी रही। कंपनी के तत्कालीन सीईओ वॉरेन एंडरसन को गिरफ्तार करने और भारत लाने के प्रयास असफल रहे।
न्याय में देरी- पीड़ितों को मुआवजा देने में भी कई साल लग गए। राहत और पुनर्वास योजनाएँ आधी-अधूरी रह गईं, जिससे पीड़ितों में आक्रोश और हताशा बढ़ी।
सरकार की आलोचना और प्रतिक्रिया
भोपाल गैस त्रासदी के बाद, सरकार की निष्क्रियता पर देश और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कड़ी आलोचना हुई।
सुरक्षा नियमों में बदलाव- इस घटना के बाद, औद्योगिक सुरक्षा मानकों को सुधारने और कठोर बनाने की दिशा में कदम उठाए गए।
कानूनी सुधार- ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए पर्यावरण संरक्षण और औद्योगिक आपदा प्रबंधन से जुड़े कानूनों को सख्त किया गया।
भोपाल गैस त्रासदी के प्रभाव
1. पर्यावरणीय प्रभाव
भोपाल गैस त्रासदी का पर्यावरण पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा, जो आज भी महसूस किया जा सकता है। भोपाल गैस त्रासदी के प्रभाव:
हवा का प्रदूषण- त्रासदी के दौरान मीथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस हवा में फैल गई, जिससे आसपास के क्षेत्र में जहरीला वातावरण बन गया।
पानी और मिट्टी का प्रदूषण- संयंत्र में इस्तेमाल होने वाले रसायन और कचरे के कारण आसपास की मिट्टी और भूजल जहरीले हो गए। पानी में जहरीले पदार्थ घुलने से पीने योग्य पानी की गुणवत्ता खराब हो गई, जो आज भी समस्या है। मछलियों और अन्य जलीय जीवों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
पौधों और जीव-जंतुओं पर असर- संयंत्र के आसपास की वनस्पतियाँ और फसलें नष्ट हो गईं। पक्षी और छोटे जीव गैस के प्रभाव से तुरंत मर गए। जमीन की उपजाऊ क्षमता भी कम हो गई, जिससे कृषि पर बुरा असर पड़ा।
जहरीला कचरा- संयंत्र के परिसर में जहरीला कचरा आज भी मौजूद है, जो धीरे-धीरे मिट्टी और पानी में घुलकर पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहा है।
2. भोपाल की स्थिति आज
भोपाल गैस त्रासदी के कई दशकों बाद भी, इसका दुष्प्रभाव शहर और उसके निवासियों पर देखा जा सकता है।
अगली पीढ़ियों पर प्रभाव- गैस के संपर्क में आए लोगों की अगली पीढ़ियों में जन्म दोष और गंभीर बीमारियाँ आम हो गई हैं। कई बच्चे शारीरिक और मानसिक विकलांगताओं के साथ पैदा हो रहे हैं।
पानी की गुणवत्ता- प्रभावित क्षेत्रों में पीने का पानी अब भी दूषित है। लोगों को मजबूरी में यह जहरीला पानी पीना पड़ रहा है, जिससे उनकी स्वास्थ्य समस्याएँ बढ़ रही हैं।
स्वास्थ्य समस्याएँ- सैकड़ों लोग आज भी सांस की बीमारी, त्वचा रोग, आंखों की समस्याएँ और कैंसर जैसी बीमारियों से जूझ रहे हैं। मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर पड़ा है, जिससे लोग तनाव, अवसाद और चिंता का शिकार हो रहे हैं।
3. पीड़ितों का जीवन संघर्ष
भोपाल गैस त्रासदी के प्रभाव लाखों लोगों की जिंदगी को मुश्किलों से भर दिया।
शारीरिक और मानसिक बीमारियाँ- गैस के संपर्क में आए हजारों लोग शारीरिक कमजोरी, दृष्टिहीनता, और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों का सामना कर रहे हैं।
आर्थिक असुरक्षा- गैस त्रासदी ने कई परिवारों के मुख्य कमाने वाले सदस्यों को छीन लिया, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई।
बेरोजगारी और शिक्षा की कमी- प्रभावित परिवारों के बच्चों को शिक्षा और नौकरी के समान अवसर नहीं मिले। गरीबी और बेरोजगारी ने इन परिवारों के जीवन संघर्ष को और कठिन बना दिया।
4. आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
भोपाल गैस त्रासदी का आर्थिक और सामाजिक ताने-बाने पर भी गहरा असर पड़ा।
स्थानीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव- त्रासदी के कारण भोपाल के व्यापार और उद्योगों को भारी नुकसान हुआ। पर्यावरण के प्रदूषित होने से कृषि और अन्य व्यवसायों पर नकारात्मक असर पड़ा।
सामाजिक असमानता- गैस पीड़ितों के पुनर्वास और मुआवजे में भेदभाव ने समाज में असमानता को बढ़ावा दिया। अमीर और गरीब के बीच खाई और गहरी हो गई, जिससे सामाजिक तनाव पैदा हुआ।
भोपाल गैस काण्ड के लिए न्याय और मुआवजा
यूनियन कार्बाइड के खिलाफ मुकदमे
भोपाल गैस त्रासदी के बाद यूनियन कार्बाइड और उसके अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की गई, लेकिन न्याय प्रक्रिया में गंभीर खामियाँ और देरी देखने को मिली।
वॉरेन एंडरसन पर आरोप- यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (UCC) के तत्कालीन सीईओ वॉरेन एंडरसन को इस त्रासदी के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार ठहराया गया। एंडरसन पर “गैर इरादतन हत्या” और अन्य अपराधों का आरोप लगाया गया। त्रासदी के तुरंत बाद एंडरसन को भोपाल लाया गया और गिरफ्तार किया गया, लेकिन कुछ ही घंटों में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया और वह अमेरिका वापस लौट गए।
भारत लाने की असफल कोशिशें- भारत सरकार ने एंडरसन के प्रत्यर्पण की कई कोशिशें कीं, लेकिन अमेरिका ने उसे भारत भेजने से इनकार कर दिया। एंडरसन ने अपने जीवन के बाकी साल अमेरिका में बिताए और कभी भी मुकदमे का सामना नहीं किया।
कंपनी पर आरोप- यूनियन कार्बाइड कंपनी और उसके अधिकारियों पर भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज किए गए। कंपनी ने सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन न करने और त्रासदी के प्रति लापरवाह रवैया अपनाने के आरोपों को खारिज कर दिया।
न्याय में देरी- त्रासदी के बाद पीड़ितों को न्याय दिलाने की प्रक्रिया बेहद धीमी रही। कई दशकों तक चले मुकदमों के बावजूद पीड़ितों को संतोषजनक न्याय नहीं मिला।
मुआवजा और राहत कार्य
यूनियन कार्बाइड द्वारा दिया गया मुआवजा और सरकार द्वारा चलाए गए राहत कार्य त्रासदी के प्रभावों को कम करने में पूरी तरह नाकाम रहे।
1989 में मुआवजा- 1989 में, भारत सरकार और यूनियन कार्बाइड के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत कंपनी ने $470 मिलियन (लगभग 715 करोड़ रुपये) का मुआवजा दिया। इस राशि को पीड़ितों के पुनर्वास और मुआवजे के लिए इस्तेमाल किया जाना था।
मुआवजे की अपर्याप्तता- त्रासदी के बड़े पैमाने पर प्रभावों को देखते हुए यह मुआवजा बेहद कम था। लाखों पीड़ितों के बीच इस राशि का बंटवारा करने के बाद, प्रत्येक व्यक्ति को औसतन मात्र 25,000-50,000 रुपये मिले, जो उनकी चिकित्सा और जीवनयापन की जरूरतों के लिए अपर्याप्त था।
राहत कार्यों में अनियमितताएँ- राहत कार्यों में भ्रष्टाचार और देरी ने पीड़ितों की समस्याएँ और बढ़ा दीं। कई पीड़ितों को मुआवजा नहीं मिला, और जो मिला भी, वह उनकी जरूरतों के हिसाब से काफी कम था। पुनर्वास के लिए किए गए प्रयास आधे-अधूरे और असंगठित थे।
स्वास्थ्य सेवाओं की कमी- पीड़ितों के इलाज के लिए विशेष अस्पताल बनाए गए, लेकिन इनमें दवाइयों और सुविधाओं की भारी कमी थी।
पारित कानून
भोपाल गैस रिसाव आपदा (दावों का प्रसंस्करण) अधिनियम, 1985: इसने केंद्र सरकार को दावों से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति के स्थान पर प्रतिनिधित्व करने और कार्य करने का “विशेष अधिकार” दिया।
पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986: इसने पर्यावरण और सार्वजनिक सुरक्षा हेतु प्रासंगिक उपाय करने एवं औद्योगिक गतिविधि को विनियमित करने के लिये केंद्र सरकार को अधिकृत किया।
सार्वजनिक दायित्व बीमा अधिनियम, 1991: यह किसी खतरनाक पदार्थ के रखरखाव के दौरान होने वाली दुर्घटना से प्रभावित व्यक्तियों को तत्काल राहत प्रदान करने हेतु सार्वजनिक देयता बीमा प्रदान करता है।
परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्व अधिनियम (CLNDA): भारत ने वर्ष 2010 में CLNDA को परमाणु दुर्घटना के पीड़ितों हेतु एक त्वरित मुआवज़ा तंत्र स्थापित करने के लिये अधिनियमित किया। यह परमाणु संयंत्र के संचालक पर सख्त एवं बिना किसी गलती के दायित्व का प्रावधान करता है, जहाँ उसे अपनी ओर से किसी भी अन्य बातों की परवाह किये बिना क्षति हेतु उत्तरदायी ठहराया जाएगा।
भोपाल गैस त्रासदी पर देश और विदेश में प्रतिक्रिया
मानवाधिकार संगठनों की भूमिका- संगठनों ने मुआवजे की अपर्याप्तता और राहत कार्यों की धीमी प्रक्रिया पर सवाल उठाए। “एमनेस्टी इंटरनेशनल” और “ग्रीनपीस” जैसे संगठनों ने पीड़ितों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई।
एनजीओ और कार्यकर्ताओं का योगदान- कई एनजीओ और सामाजिक कार्यकर्ता पीड़ितों के समर्थन में आगे आए। भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन (BGIA) जैसे संगठनों ने पीड़ितों की आवाज अंतर्राष्ट्रीय मंचों तक पहुँचाई।
मीडिया का प्रभाव– त्रासदी के बारे में लिखे गए लेखों, डॉक्यूमेंटरी और रिपोर्ट्स ने औद्योगिक सुरक्षा मानकों में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया।
निष्कर्ष (Conclusion)
भोपाल गैस त्रासदी एक दुखद याद है, जो हमें सिखाती है कि औद्योगिक विकास के साथ सुरक्षा और जिम्मेदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। यह त्रासदी न केवल लापरवाही और असंवेदनशीलता का उदाहरण है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे एक घटना लाखों जिंदगियों को प्रभावित कर सकती है। आज भी, पीड़ित न्याय और राहत के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि ऐसे हादसों से सबक लें और भविष्य में इस तरह की त्रासदी को रोकने के लिए सख्त कदम उठाएँ।
भोपाल गैस त्रासदी में मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) नामक एक अत्यंत जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। यह गैस कीटनाशक बनाने में इस्तेमाल होती है।
2. 3 दिसंबर 1984 को क्या हुआ था?
3 दिसंबर, 1984 की रात को भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कीटनाशक संयंत्र से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का भारी मात्रा में रिसाव हुआ। इस गैस के संपर्क में आने से हजारों लोगों की मौत हो गई और लाखों लोग गंभीर रूप से बीमार हो गए। इस गैस ने भोपाल शहर के एक बड़े हिस्से को जहरीले बादल से ढक दिया था।
3. भोपाल गैस त्रासदी के लिए कौन जिम्मेदार है?
भोपाल गैस त्रासदी के लिए मुख्य रूप से अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड को जिम्मेदार माना जाता है। संयंत्र में सुरक्षा उपायों की कमी और गैस टैंक में खराबी के कारण यह दुर्घटना हुई थी।
4. भोपाल गैस त्रासदी में कितने लोगों की मृत्यु हुई थी?
2-3 दिसंबर 1984 की रात को यूनियन कार्बाइड कीटनाशक फैक्ट्री से अत्यधिक जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट लीक हुई थी, जिससे लगभग 5479 लोगों की मौत हो गई थी और 5 लाख से अधिक लोग सेहत संबंधी समस्याओं और विकलांगताओं से ग्रसित हो गए थे।