Quick Summary
भारत छोड़ो आंदोलन, जिसे अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया यह आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक निर्णायक संघर्ष था। ‘करो या मरो’ के नारे के साथ, गांधीजी ने भारतीय जनता को स्वतंत्रता के लिए एकजुट किया।
इस आंदोलन ने न केवल भारतीयों के मनोबल को ऊंचा किया, बल्कि ब्रिटिश सरकार को भी हिला कर रख दिया। लाखों भारतीयों ने इस आंदोलन में भाग लिया, जिसमें कई प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी और जनता पर कठोर दमन शामिल था। यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ और 1947 में भारत की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया।
भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement 1942 in Hindi), जिसे अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है, 8 अगस्त 1942 को आरंभ हुआ था। इसका मुख्य उद्देश्य भारत से ब्रिटिश शासन को तुरंत समाप्त करना था। यह आंदोलन महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए सविनय अवज्ञा आंदोलन की एक महत्वपूर्ण कड़ी था, जिसमें उन्होंने जनता से विदेशी शासन के विरुद्ध पूर्ण असहयोग का आह्वान किया था।
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भारत छोड़ो आंदोलन कब शुरू हुआ? भारत छोड़ो आंदोलन 8 अगस्त 1942 को शुरू हुआ था। यह महात्मा गांधी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बम्बई अधिवेशन में शुरू किया गया था। इस आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश शासन से पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करना था।
गांधीजी ने ग्वालिया टैंक मैदान, जिसे आज अगस्त क्रांति मैदान के नाम से जाना जाता है, में एक ऐतिहासिक भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने “करो या मरो” का नारा दिया था। यह नारा पूरे देश में गूंज उठा और लाखों भारतीयों को आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
| गांधीजी का भाषण | 8 अगस्त 1942 को मुंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में महात्मा गांधीजी ने “करो या मरो” का नारा दिया। |
| गिरफ्तारियाँ | 9 अगस्त को गांधीजी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और अन्य प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। |
| जन आंदोलनों का उभार | पूरे देश में बड़े पैमाने पर धरने, हड़तालें और प्रदर्शनों की शुरुआत हुई। |
| युवाओं की भागीदारी | विशेष रूप से युवा और विद्यार्थी वर्ग ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। |
भारत छोड़ो आंदोलन कब समाप्त हुआ?: Bharat Chhodo Aandolan Kab Hua? भारत छोड़ो आंदोलन की समाप्ति 1945 में स्वतंत्रता सेनानियों की रिहाई के बाद हुई।

| प्रमुख नेता | योगदान |
| महात्मा गांधी | भारत छोड़ो आंदोलन के मुख्य प्रेरणा स्रोत और नेता थे।उन्होंने “करो या मरो” का नारा दिया और लोगों को अहिंसक प्रतिरोध के लिए प्रेरित किया।सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व पूरे देश में किया। |
| जवाहरलाल नेहरू | कांग्रेस के सबसे युवा और लोकप्रिय नेताओं में से एक थे।“भारत छोड़ो” प्रस्ताव के प्रारूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।पूरे देश में आंदोलन को संगठित करने और प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। |
| सरदार वल्लभभाई पटेल | “सरदार” के नाम से जाने जाते थे, वे कांग्रेस के एक मजबूत नेता थे।उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान किसानों और मजदूरों को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।स्वतंत्रता के बाद, उन्होंने भारत के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। |
| मौलाना अबुल कलाम आजाद | भारत के एक प्रसिद्ध विद्वान और मुस्लिम नेता थे।उन्होंने “भारत छोड़ो” प्रस्ताव का समर्थन किया और मुसलमानों को आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।स्वतंत्रता के बाद, वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने। |
| अरुणा आसफ अली | आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी को प्रेरित करने और उनका नेतृत्व करने वाली एक प्रमुख नेता थीं।”दिल्ली छोड़ो” आंदोलन का नेतृत्व किया और ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के दौरान भूमिगत रहकर काम किया। |
| सुभाष चंद्र बोस | भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) का गठन किया, जिसने बर्मा में ब्रिटिश सेना से लड़ाई लड़ी।भारत को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।आंदोलन के लिए देश के बाहर से भी मदद जुटाई। अंग्रेजो को कई तरह से नुकसान पहुंचाया। |
यह सिर्फ कुछ ही महान लोगों के नाम हैं, जिन्होंने आंदोलन में अपना योगदान दिया। इनके अलावा भारत के और भी कई वीर सपूत थे, जिन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन का महत्व को जाना और अपना योगदान दिया था।
| नारे | भारत छोड़ो | यह आंदोलन का मुख्य नारा था, जिसे महात्मा गांधी ने दिया था। |
| करो या मरो | यह एक और प्रसिद्ध नारा था, जिसे गांधीजी ने ग्वालियर में अपने भाषण में दिया था। | |
| आज़ादी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है | यह नारा जवाहरलाल नेहरू ने दिया था। | |
| अंग्रेजों भारत छोड़ो | यह एक लोकप्रिय नारा था जो पूरे देश में प्रदर्शनों में इस्तेमाल किया जाता था। | |
| तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा | यह नारा सुभाष चंद्र बोस जी ने दिया था। | |
| प्रतीक | तिरंगा | भारत छोड़ो आंदोलन का प्रतीक “तिरंगा”। इसे घरों, दुकानों और सार्वजनिक स्थानों पर फहराया जाता था और आज भी पूरे भारत में फहराया जाता है। |
| चरखा | चरखा आत्मनिर्भरता और स्वदेशी का प्रतीक था। गांधीजी ने चरखे को प्रोत्साहित किया और लोगों को आत्मनिर्भर बनकर खुद के लिए खुद ही कपड़ा बनाने के लिए कहा। | |
| भारत छोड़ो बैज | लोग “भारत छोड़ो” लिखे हुए बैज पहनते थे। | |
| अहिंसक विरोध प्रदर्शन | भारत छोड़ो आंदोलन अहिंसक विरोध प्रदर्शनों के लिए जाना जाता था। लोगों ने जुलूस, हड़ताल, और बहिष्कार जैसे अहिंसक तरीकों का इस्तेमाल किया। |
भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख और निर्णायक चरण था, जिसे महात्मा गांधी ने 8 अगस्त 1942 को बॉम्बे (अब मुंबई) में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सत्र में शुरू किया था।
भारत छोड़ो प्रस्ताव 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में पारित हुआ। यह बैठक मुंबई के गवालिया टैंक मैदान (जिसे अब अगस्त क्रांति मैदान से जाना जाता है) में आयोजित की गई थी। इस प्रस्ताव का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश शासन को समाप्त कर भारत को स्वतंत्र करना था। महात्मा गांधी ने इस बैठक में “करो या मरो” का नारा दिया, जिससे जनता को प्रेरणा मिली। प्रस्ताव में लिखा गया कि अंग्रेजों को भारत छोड़ना चाहिए और भारतीयों को अपने देश का शासन खुद चलाना चाहिए।
प्रस्ताव पारित होने के बाद, ब्रिटिश सरकार ने कड़ा रुख अपनाया और प्रमुख नेताओं को तुरंत गिरफ्तार कर लिया। इसके बावजूद, पूरे देश में आंदोलन तेज हो गया और जनता ने विभिन्न तरीकों से ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए।
9 अगस्त 1942 को प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी के बाद लोगों ने “भारत छोड़ो आंदोलन का महत्व” जाना और ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया, जिनमें हड़तालें, धरने, और जुलूस शामिल थे। रेलवे स्टेशन, टेलीग्राफ ऑफिस और सरकारी इमारतों को निशाना बनाया गया। छात्रों और युवाओं ने आंदोलन में हिस्सा लिया। हालाकि, यह एक अहिंसक आंदोलन था लेकिन कई स्थानों पर तोड़फोड़ की घटनाएँ भी हुईं।

अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी और उषा मेहता जैसी महिलाओं ने नेतृत्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अरुणा आसफ अली ने बॉम्बे के गोवालिया टैंक मैदान में भारतीय ध्वज फहराया था।
क्रिप्स मिशन की विफलता, जो भारत की समस्याओं का कोई प्रभावी संवैधानिक समाधान प्रस्तुत करने में असफल रहा, भारत छोड़ो आंदोलन के पीछे एक प्रमुख कारण बनी।
कांग्रेस नेतृत्व का मानना था कि जापान के संभावित आक्रमण के मद्देनज़र भारतीय जनता को तैयार करना आवश्यक है।
यह आंदोलन अचानक नहीं हुआ, बल्कि इसकी पृष्ठभूमि कांग्रेस से जुड़े विभिन्न संगठनों द्वारा गत तीन दशकों में चलाए गए तुलनात्मक रूप से अधिक उग्र जन आंदोलनों ने तैयार की थी।
भारत छोड़ो आंदोलन के कारण और परिणाम कई सारे थे, भारत छोड़ो आंदोलन के प्रमुख कारणों में राजनीतिक कारण, आर्थिक कारण और सामाजिक कारण शामिल है। जिसके कारण भारत छोड़ो आंदोलन का महत्व लोगों को समझ आया और उन्होंने इस आंदोलन में भागीदारी ली। भारत छोड़ो आंदोलन के प्रमुख कारण कुछ इस प्रकार हैं:
| राजनीतिक कारण | द्वितीय विश्व युद्ध में भारत की भागीदारी के बावजूद स्वतंत्रता नहीं मिली।क्रिप्स मिशन का विफल होना।बढ़ती निराशा और क्रांतिकारी भावना। |
| आर्थिक कारण | युद्ध के कारण भारी महंगाई और अनाज की कमी।गरीबी और भुखमरी में वृद्धि।ब्रिटिश नीतियों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था का पतन। |
| सामाजिक कारण | भारतीयों के साथ भेदभाव और अपमान।सामाजिक न्याय और समानता का अभाव।ब्रिटिश शासन के प्रति बढ़ता असंतोष। |
सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए मार्श स्मिथ और नीदरसोल के नेतृत्व में सेना भेजी। लूटपाट, आगजनी, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार जैसी हिंसक घटनाओं के परिणामस्वरूप लगभग 127 लोग मारे गए और 274 लोग घायल हुए। भारी संपत्ति को लूटकर नीलाम कर दिया गया। एक मंदिर को केवल इसलिए नष्ट कर दिया गया क्योंकि उस पर कांग्रेस का झंडा फहरा रहा था। ढाई सौ मकान जला दिए गए, महिलाओं के साथ बलात्कार किए गए, और पांच से छह सौ लोगों को जेल में डाल दिया गया। बावजूद इसके, बलिया की जनता ने साहसपूर्वक प्रतिरोध किया, और अंग्रेजों को बलिया पर पूरी तरह से नियंत्रण स्थापित करने में एक महीने का समय लगा।
चित्तू पांडे की तलाश में अंग्रेजों ने कई गाँव जला दिए, लेकिन वह उनके हाथ नहीं लगे। बलिया का आंदोलन ग़ाज़ीपुर तक फैल गया, जहां 19 अगस्त से 21 अगस्त तक ग़ाज़ीपुर भी आज़ाद रहा। यहाँ भी वही क्रूरता और दमन की घटनाएँ घटित हुईं – 167 लोग मारे गए, 3000 लोग गिरफ्तार हुए और 32 लाख रुपये की संपत्ति नष्ट की गई, तब जाकर ग़ाज़ीपुर पर फिर से अंग्रेजों का नियंत्रण स्थापित हो सका।
सीमावर्ती राज्य बिहार में भी राष्ट्रीय सरकार बनाने की कोशिशें हुईं। पटना में लगभग तीन दिन तक ब्रिटिश प्रशासन ठप रहा, मुंगेर में कई थाने कुछ समय के लिए जनता के नियंत्रण में रहे, और चंपारण, बेतिया, भागलपुर, मोतीहारी, सुल्तानपुर, संथाल परगना जैसे क्षेत्रों में आंदोलनकारियों ने थोड़े समय के लिए नियंत्रण स्थापित किया, हालांकि ये प्रयास दीर्घकालिक नहीं हो सके।
बंगाल के मिदनापुर ज़िले के तमलुक और कोनताई तालुका के लोग पहले से ही ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतुष्ट थे। जापानी सेना के समुद्र मार्ग से इन क्षेत्रों में आने की आशंका के कारण अंग्रेज़ों ने यहां से सभी प्रकार के वाहनों पर रोक लगा दी थी और चावल के परिवहन पर भी कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे। इसके अलावा, कोनताई-रांची मार्ग पर हवाई अड्डे के लिए ज़मीनें अधिग्रहित की गई थीं, जिससे स्थानीय किसान भी नाराज़ थे। न तो उन्हें उचित मज़दूरी मिली थी, न ही ज़मीनों का सही मुआवजा दिया गया था।
यहां, आंदोलन की तैयारी पहले से ही शुरू हो चुकी थी। कांग्रेस ने 5000 युवाओं का एक दल संगठित किया था, एक कताई केंद्र खोला गया, और रोज़गार से वंचित 4000 लोगों को रोजगार दिया गया। इसके साथ ही एक एम्बुलेंस की व्यवस्था भी की गई थी। 9 अगस्त से आंदोलन की शुरुआत हो गई, जिसमें सामूहिक प्रदर्शन, शैक्षणिक संस्थाओं में हड़ताल, बहिष्कार और डाकघरों और थानों पर नियंत्रण की कोशिश की गई। हालाँकि, आंदोलन ने तब तेज़ गति पकड़ी जब लोगों ने अंग्रेज़ी प्रशासन को चावल बाहर ले जाने से रोक दिया।
8 सितंबर को ब्रिटिश सेना ने जनता पर गोली चलाई, लेकिन इसके बाद प्रतिरोध और भी सशक्त हुआ। अगले बीस दिनों में, लोगों ने पूरी तैयारी की और 28 सितंबर की रात सड़कों पर पेड़ काटकर, 30 पुलियाँ तोड़कर, टेलीग्राफ के तार काटकर और 194 खंभे उखाड़कर अंग्रेज़ों के संचार नेटवर्क को तोड़ दिया। तमलुक रेल से भी नहीं जुड़ा था, जिससे देश से इस क्षेत्र का संपर्क पूरी तरह से टूट गया।
अगले दिन लगभग 20,000 लोगों की भीड़ ने तीन थानों पर हमला किया। इस संघर्ष में एक नौजवान रामचन्द्र बेरा की मृत्यु हो गई। अदालत की ओर जा रहे जुलूस का नेतृत्व कर रही 62 वर्षीय मातंगिनी हाज़रा ने दोनों हाथों और माथे पर गोली लगने के बावजूद कांग्रेस का झंडा नहीं छोड़ा। इस दिन 44 लोग शहीद हो गए और कई लोग घायल हुए, लेकिन आंदोलनकारी तमलुक और कोनताई में ताम्रलिप्ता जातीय सरकार स्थापित करने में सफल रहे, जो अगस्त 1945 में महात्मा गांधी द्वारा कांग्रेस कार्यकर्ताओं से भूमिगत आंदोलन समाप्त करने की अपील तक चलती रही।
भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय था। इस आंदोलन ने न केवल ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी, बल्कि भारतीय जनता को एकजुट और प्रेरित किया। आखिरकार, इस संघर्ष और बलिदान की गाथा ने भारत को स्वतंत्रता की राह पर अग्रसर किया। भारत छोड़ो आंदोलन हमें आंदोलन के दौरान वीर शहीदों की याद दिलाता है तथा एकजुटता और दृढ़ संकल्प की प्रेरणा देता है।
भारत छोड़ो आंदोलन 8 अगस्त 1942 को मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया था। इस आंदोलन का उद्देश्य भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करना था। महात्मा गांधी ने इस आंदोलन में ‘करो या मरो’ का नारा दिया था।
महात्मा गांधी ने 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत करते हुए एक महत्वपूर्ण भाषण दिया। इस भाषण में उन्होंने भारतीयों से दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ने का आह्वान किया और ‘करो या मरो’ का नारा दिया।
1942 में भारत के वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो थे। उन्होंने 1936 से 1944 तक इस पद पर कार्य किया, और इसी दौरान भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई थी।
इसका उद्देश्य जनता को ब्रिटिश शासन के खिलाफ अधिक मुखर रुख अपनाने के लिए एकजुट करना था, भले ही इसका मतलब उनका अंत हो। हालाँकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जवाहरलाल नेहरू जैसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अन्य नेताओं ने भी महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं। प्रस्ताव पारित होने के समय नेहरू कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष थे।
भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत 8 अगस्त 1942 को मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) के गवालिया टैंक मैदान से हुई थी।
Authored by, Aakriti Jain
Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.
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