Quick Summary
आर्यभट्ट, जो प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलज्ञ थे, का जन्म 476 ईस्वी में हुआ। उनका जन्म बिहार के कुसुमपुर (वर्तमान पटना) में हुआ था। आर्यभट्ट ने पृथ्वी के घूर्णन का सिद्धांत प्रस्तुत किया, सूर्य और चंद्र ग्रहणों की वैज्ञानिक व्याख्या दी, शून्य को स्थानमान प्रणाली के साथ प्रयोग किया, π (पाई) का सटीक मान निकाला और त्रिकोणमिति व बीजगणित के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया। “मात्र 23 वर्ष की आयु में उन्होंने ‘आर्यभटीय’ नाम की एक महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी, जिसमें गणित और खगोल विज्ञान के कई बुनियादी सिद्धांत समाहित हैं।
उन्होंने पाई (π) का मान 3.1416 के करीब निकालने में सफलता प्राप्त की और त्रिकोणमिति में साइन (ज्या) की अवधारणा को विकसित किया। साथ ही, आर्यभट्ट ने पृथ्वी की परिधि का सटीक अंदाजा भी लगाया और ग्रहों की गति के सिद्धांतों को स्पष्ट किया। उनकी गणनाएँ और सिद्धांत भारतीय विज्ञान को समृद्ध करने के साथ-साथ विश्व के वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज भी उनका योगदान विज्ञान के क्षेत्र में मान्यता प्राप्त है। आर्यभट्ट ने पृथ्वी के घूर्णन का सिद्धांत प्रस्तुत किया, सूर्य और चंद्र ग्रहणों की वैज्ञानिक व्याख्या दी, शून्य को स्थानमान प्रणाली के साथ प्रयोग किया, π (पाई) का सटीक मान निकाला और त्रिकोणमिति व बीजगणित के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया।”
उनकी मृत्यु 550 ईस्वी के आसपास हुई थी, लेकिन इसका कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
आर्यभट्ट कौन थे? आर्यभट्ट एक महान भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे जिन्होंने 5वीं शताब्दी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनका जन्म कुसुमपुर (आज का पटना) में हुआ था और वे नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षित हुए थे। उन्होंने खगोल विज्ञान और गणित में क्रांतिकारी योगदान दिया। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति “आर्यभटीय” है, जिसमें उन्होंने ग्रहों की गति, ग्रहण, और ऋतुओं के बारे में अपने विचारों का वर्णन किया है।
आर्यभट्ट का जन्म 476 ईस्वी में हुआ था। उनकी जन्मस्थली मगध (आज का बिहार) मानी जाती है। आर्यभट ने आर्यभटीय में उल्लेख करते हुए खुदको कुसुमपुर (आज का पटना) का निवासी बताया है। लेकिन, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उनका जन्म लल्लक (आज का गया) में हुआ था।
उनकी जन्म तिथि को लेकर कुछ मतभेद हैं, लेकिन अधिकांश इतिहासकार 476 ईस्वी को स्वीकार करते हैं।
आर्यभट्ट प्राचीन भारत के महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे, जिन्हें “शून्य का जनक” और “भारतीय गणित का स्तंभ” कहा जाता है। 5वीं शताब्दी में जन्मे आर्यभट्ट ने मात्र 23 वर्ष की आयु में अपनी अमर कृति आर्यभटीय की रचना की, जिसमें उन्होंने गणित, बीजगणित, त्रिकोणमिति और खगोलशास्त्र से जुड़ी अद्भुत जानकारियाँ दीं। उन्होंने सबसे पहले पृथ्वी के घूर्णन, ग्रहणों की वैज्ञानिक व्याख्या और पाई (π) के सटीक मान को स्पष्ट किया। उनकी खोजों ने न केवल भारत, बल्कि पूरे विश्व के विज्ञान और गणित को नई दिशा दी, इसलिए उन्हें आज भी “भारत का गणित सम्राट” माना जाता है।
आर्यभट्ट का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा काफी दिलचस्प और प्रेरणा देने वाली थी। माना जाता है कि उन्होंने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई पटना में अपने पिता से की, जो एक गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे।
इसके बाद, उन्होंने तक्षशिला और नालंदा जैसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में अध्ययन किया, जहां उन्हें खगोलशास्त्र, गणित और विज्ञान के क्षेत्र में गहरा ज्ञान प्राप्त हुआ। उनकी शिक्षा के दौरान गणित और खगोलशास्त्र का एक विशेष महत्व था, और इन विषयों पर उनके योगदान को अतुलनीय माना जाएगा।
आर्यभट्ट के कार्य और उपलब्धियाँ बहुत विविध हैं। उन्होंने गणित और खगोल विज्ञान में अपनी गहरी समझ के माध्यम से इन क्षेत्रों में अपूर्व योगदान किया। इसमें शामिल हैं:
आर्यभट्ट को शून्य की खोज का श्रेय दिया जाता है, जिन्होंने इसे संख्या प्रणाली में शामिल किया। आर्यभट्ट ने गणित में शून्य के महत्व को समझाया और इसके उपयोग को प्रचलित किया। यह एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी बदलाव था, क्योंकि इससे पहले, भारतीय गणित में शून्य की अवधारणा नहीं थी। उन्होंने शून्य को केवल एक खाली जगह के रूप में नहीं, बल्कि एक संख्या के रूप में भी परिभाषित किया।
उन्होंने ऋणात्मक संख्याओं का भी उपयोग किया, जो उस समय गणित में एक और नया विचार था। आज शून्य का उपयोग स्थानीय मान प्रणाली, ऋणात्मक संख्याएं, अलजेब्रा, खगोल विज्ञान जैसी कई विषयों में किया जा रहा है।
उनकी रचना “आर्यभट्टीय” में दशमलव संख्या प्रणाली का उल्लेख मिलता है, जिसमें उन्होंने संख्याओं को लिखने के लिए दस अंकों (0 से 9) का प्रयोग किया था। उन्होंने शून्य (0) को भी एक अंक के रूप में स्वीकार किया और इसका प्रयोग संख्याओं को लिखने में किया।

आर्यभट्ट ने दशमलव संख्याओं के साथ गणना करने के लिए भी कई तरीके विकसित किए, जैसे कि जोड़, घटाव, गुणा और भाग। उन्होंने वर्गमूल और घनमूल निकालने के लिए भी दशमलव पद्धति का उपयोग किया। उनके योगदान ने दशमलव पद्धति को भारत में लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह प्रणाली बाद में अरबों द्वारा अपनाई गई और 10वीं शताब्दी तक यूरोप में भी फैल गई। आज, दशमलव पद्धति दुनिया भर में सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाली संख्या प्रणाली है।
आर्यभट्ट का योगदान त्रिकोणमिति को एक विकसित गणितीय विषय के रूप में स्थापित करने में बहुत महत्वपूर्ण रहा। उनकी रचना “आर्यभट्टीय” में त्रिकोणमिति के कई महत्वपूर्ण अवधारणाओं का उल्लेख मिलता है, जिनमें शामिल हैं:
उन्होंने त्रिकोणों को सुलझाने के लिए कई सूत्रों का निर्माण किया, जैसे ज्या-ज्या और कोज्या-कोज्या सूत्र। इसके साथ ही, उन्होंने त्रिभुजों के क्षेत्रफल और परिमाण निकालने के लिए भी विभिन्न तरीके तैयार किए।
आर्यभट्टीय, जो कि उनकी प्रमुख कृति है, में साइन (ज्या) फलों की एक तालिका सम्मिलित की गई है, जिसे “आर्यभट्ट की साइन तालिका” कहा जाता है। यह तालिका 0 से 90 डिग्री तक के कोणों के लिए साइन के मान प्रदान करती है। आर्यभट्ट ने साइन के मानों को निकालने के लिए एक नयी पद्धति का विकास किया, जिसे अंतर विधि के नाम से जाना जाता है। इस तकनीक में पिछले कोणों के साइन मानों का उपयोग करके अगले कोण के साइन मान को निकाला जाता है। इसे तालिका के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है:
| क्रम सं० | (A) कोण का मान (डिग्री, आर्कमिनट में ) | आर्यभट द्वारासंख्यात्मक संकेतन में मान (देवनागरीमें) | आर्यभट के अनुसार ‘ज्य’ का मान | ज्या का आधुनिक मान (3438 × sin (A) के अनुसार) |
| 1 | 3° 45’ | मखी | 225′ | 224.8560 |
| 2 | 7° 30’ | भखि | 449′ | 448.7490 |
| 3 | 11° 15’ | फ़ख़ि | 671′ | 670.7205 |
| 4 | 15° 00’ | ढखी | 890′ | 889.8199 |
| 5 | 18° 45’ | आँखि | 1105′ | 1105.1089 |
| 6 | 22° 30’ | धिंखी | 1315′ | 1315.6656 |
| 7 | 26° 15’ | ङखी | 1520′ | 1520.5885 |
| 8 | 30° 00’ | हस्ज़ | 1719′ | 1719.0000 |
| 9 | 33° 45’ | स्की | 1910′ | 1910.0505 |
| 10 | 37° 30’ | किश्ग | 2093′ | 2092.9218 |
| 11 | 41° 15’ | शघकी | 2267′ | 2266.8309 |
| 12 | 45° 00’ | किघ्व | 2431′ | 2431.0331 |
| 13 | 48° 45’ | घ्लकी | 2585′ | 2584.8253 |
| 14 | 52° 30’ | किग्र | 2728′ | 2727.5488 |
| 15 | 56° 15’ | हक्य | 2859′ | 2858.5925 |
| 16 | 60° 00’ | ढकी | 2978′ | 2977.3953 |
| 17 | 63° 45’ | किच | 3084′ | 3083.4485 |
| 18 | 67° 30’ | एसजी | 3177′ | 3176.2978 |
| 19 | 71° 15’ | झश | 3256′ | 3255.5458 |
| 20 | 75° 00’ | ङ्व | 3321′ | 3320.8530 |
| 21 | 78° 45’ | क् | 3372′ | 3371.9398 |
| 22 | 82° 30’ | प | 3409′ | 3408.5874 |
| 23 | 86° 15’ | एफ | 3431′ | 3430.6390 |
| 24 | 90° 00’ | छ | 3438′ | 3438.0000 |
आर्यभट्ट, जो कि एक प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ और खगोलज्ञ थे, ने अंकगणित के क्षेत्र में अनमोल योगदान दिए। उनका मुख्य योगदान ‘अंकगणितीय बुनियादी सिद्धांतों’ की विस्तृत समझ में था। उन्होंने अंकगणितीय क्रियाओं को हल करने के लिए कई नवीन विधियां प्रस्तुत कीं, जैसे कि शून्य का उपयोग और दशमलव प्रणाली का परिचय। आर्यभट्ट ने अंकगणितीय समानताएं और गुणनफल को पहले बार स्पष्ट रूप से परिभाषित किया। उनकी प्रसिद्ध कृति ‘आर्यभटीय’ में, उन्होंने त्रिकोणमिति, गणना और बीजगणित के महत्वपूर्ण पहलुओं पर गहन शोध किया। उनके विचारों ने अन्य गणितज्ञों के लिए प्रेरणा स्रोत का कार्य किया और अंकगणित की गहरी समझ विकसित करने में सहायता प्रदान की।
आर्यभट का गणित में योगदान सर्वोपरि रहा है, इसलिए उन्हें भारतीय गणित के पिता (Father of Indian Mathematics) भी कहा जाता है।
पहले वैज्ञानिकों में से एक थे जिन्होंने यह माना था कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। उन्होंने अपनी रचना “आर्यभट्टीय” में इस विचार का उल्लेख किया था, जो 499 ईस्वी में लिखी गई थी। उस समय, यह व्यापक रूप से माना जाता था कि पृथ्वी स्थिर है और आकाश घूमता है। उनके इस विचार को क्रांतिकारी माना जाता था, और इसे वैज्ञानिक समुदाय में काफी विरोध का सामना करना पड़ा।
आर्यभट्ट के तर्क:
सूर्यमंडल को समझने में आर्यभट्ट का योगदान बेहद महत्वपूर्ण और अद्वितीय रहा है। उनके समय में, खगोलशास्त्र को समझने के तरीके काफी सीमित थे, लेकिन उन्होंने ने अपनी गहरी वैज्ञानिक दृष्टि और गणनाओं से कई महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रस्तुत किए। आइए उनके प्रमुख योगदानों पर नजर डालते हैं:
आर्यभट्ट का सौर और चंद्र ग्रहण को समझने में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनके समय में, ग्रहणों के बारे में कई मिथक और गलत धारणाएँ थीं, लेकिन उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इन खगोलीय घटनाओं को समझाया। आइए उनके प्रमुख योगदानों पर नजर डालें:

यहां पढ़ें ऐसे ही महान लोगो की जीवन की कहानियां जो हमें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।
आर्यभट्ट का जीवन परिचय हमें यह सिखाता है कि ज्ञान और अनुसंधान की कोई सीमा नहीं होती। उनके योगदान ने न केवल भारतीय गणित और खगोल विज्ञान को समृद्ध किया, बल्कि विश्व भर में वैज्ञानिक सोच और समझ को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया। आर्यभट्ट की शिक्षा की विशेषता यह थी कि उन्होंने केवल पारंपरिक शिक्षाओं को ही नहीं अपनाया, बल्कि नए विचारों और सिद्धांतों को भी विकसित किया। उनके विचार और सिद्धांत आज भी उपयुक्त हैं और हमारे जीवन को प्रेरित करते हैं।
इस ब्लॉग में आपने आर्यभट्ट कौन थे, उनका जन्म स्थान, जीवन परिचय, उनके कार्य और उपलब्धियाँ, उनका गणित तथा खगोलशास्त्र में योगदान, उनकी विराशात और आर्यभट्ट के प्रमुख ग्रंथ के बारे में गहराई से जाना।
आर्यभट्ट ने पाई (π) का सटीक मान 3.1416 निकाला, शून्य की अवधारणा को विकसित किया, और त्रिकोणमिति में साइन (ज्या) की अवधारणा को प्रस्तुत किया।
आर्यभट्ट प्राचीन भारत के महान गणितज्ञ, ज्योतिषविद और खगोलशास्त्री थे। उन्होंने ‘आर्यभटीय’ ग्रंथ की रचना की और पाई (π) का सटीक मान निकाला।
आर्यभट्ट प्राचीन भारत के महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे। उनका जन्म 476 ईस्वी में हुआ था। उन्होंने दशमलव प्रणाली और शून्य की अवधारणा दी। उनकी प्रमुख रचना “आर्यभटीय” है, जिसमें गणित और खगोल विज्ञान के सिद्धांत शामिल हैं।
आर्यभट्ट के गुरु के बारे में ऐतिहासिक रूप से कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। हालांकि, यह माना जाता है कि उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की थी, जहाँ उन्हें कई विद्वानों और शिक्षकों का मार्गदर्शन मिला।
आर्यभट्ट ने गणित और खगोल विज्ञान के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण आविष्कार और योगदान दिए। इनमें प्रमुख हैं:
1. पाई (π) का सटीक मान 3.1416।
2. शून्य की अवधारणा।
3. त्रिकोणमिति में साइन (ज्या) की अवधारणा।
4. पृथ्वी की परिधि का सटीक अनुमान।
5. ग्रहों की गति के सिद्धांत।
क्योंकि उन्होंने पहली बार शून्य को संख्याओं की स्थानीय मान पद्धति (Place Value System) में प्रयोग किया और गणित को एक नई दिशा दी।
आर्यभट सिद्धांत उनका एक खगोलशास्त्र संबंधी ग्रंथ था, जिसमें ग्रहों की गति और खगोलीय घटनाओं का वर्णन किया गया था। यह अब उपलब्ध नहीं है।
Authored by, Aakriti Jain
Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.
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