आर्टिकल 21

भारतीय संविधान मे आर्टिकल 21 का महत्त्व | Article 21(अनुच्छेद 21) in Hindi

Published on July 24, 2025
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आर्टिकल 21

Quick Summary

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण” करता है।
  • इसके अनुसार, किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से केवल विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जा सकता है।
  • यह अनुच्छेद नागरिकों को गरिमा और सम्मान के साथ जीने का अधिकार प्रदान करता है।
  • 2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को भी इसमें शामिल किया।

Table of Contents

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21, जिसे “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण” कहा जाता है, हर नागरिक के लिए एक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है। यह अनुच्छेद सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जा सकता है। इसका मतलब है कि किसी भी व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता को केवल कानूनी प्रक्रिया के तहत ही सीमित किया जा सकता है। अनुच्छेद 21 न केवल शारीरिक सुरक्षा की गारंटी देता है, बल्कि इसमें निजता का अधिकार भी शामिल है। यह अधिकार नागरिकों को किसी भी प्रकार के क्रूर, अमाननीय उत्पीड़न या अपमानजनक व्यवहार से बचाता है।

आर्टिकल 21 क्या है? | Article 21 kya hai | Anuched 21 in Hindi

आर्टिकल 21(Article 21 in Hindi) भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण अनुच्छेद है, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। इसके अनुसार, “किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता, सिवाय विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के।”

यह मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) का हिस्सा है, जो भारतीय संविधान के भाग III में शामिल हैं। मूल अधिकार नागरिकों को उनके बुनियादी अधिकारों की सुरक्षा प्रदान करते हैं, जैसे कि समानता, स्वतंत्रता, धार्मिक स्वतंत्रता, और शोषण से सुरक्षा। आर्टिकल 21(Article 21 in Hindi) जीवन और स्वतंत्रता को संरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण है, जो संविधान द्वारा दी गई मूलिक अधिकारों का अभिन्न हिस्सा है।

आर्टिकल 21(Article 21 in Hindi) में क्या है? | Dhara 21 Kya Hai

भारतीय संविधान के भाग 21 में क्या है अनुच्छेद 21 में निम्नलिखित अधिकार शामिल हैं:

  1. किसी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करने के लिए केवल विधि द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया जा सकता है।
  2. यह अनुच्छेद मनमानी या अवैध गिरफ्तारी और हिरासत से सुरक्षा प्रदान करता है।
  3. व्यक्ति को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार होता है।
  4. किसी अपराध के आरोपित व्यक्ति को कानूनी सहायता प्राप्त करने का अधिकार होता है।
  5. व्यक्ति को अपनी रक्षा में साक्ष्य प्रस्तुत करने का अधिकार होता है।
  6. यह अधिकार नागरिकों के साथ-साथ गैर-नागरिकों को भी उपलब्ध है।

अनुच्छेद 21 किस – किस पर लागू हो सकता है?

इस अनुच्छेद का अधिकार क्षेत्र बहुत ही व्यापक है, और यह नियम उन सभी व्यक्तियों पर लागू होता है, जो कि भारत के मूल निवासी हैं, और जिनके पास भारत देश की नागरिकता है। इसमें किसी भी व्यक्ति के लिए कोई रोक – टोक नहीं होती है, सभी को समानता का अधिकार है।

अनुच्छेद 21 में क्या प्रावधान है?

आर्टिकल 21(Article 21 in Hindi) के प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि हर व्यक्ति का जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता सुरक्षित रहे। आर्टिकल 21 हमें निम्नलिखित अधिकार प्रदान करता है-

“कोई भी व्यक्ति जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता, सिवाय कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के।”

इसका मतलब है कि किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से तब तक वंचित नहीं किया जा सकता जब तक कि वह किसी उचित और विधिक

प्रक्रिया के तहत न हो। इस प्रावधान के अंतर्गत भारतीय नागरिकों को उनके जीवन, शारीरिक स्वतंत्रता, और व्यक्तिगत अधिकारों का संरक्षण प्राप्त होता है।

अनुच्छेद 21 में जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार इतना व्यापक है कि भारतीय न्यायपालिका ने इसे कई मामलों में जीवन के अधिकार के तहत स्वास्थ्य, स्वच्छता, पर्यावरण, शिक्षा आदि जैसे अधिकारों तक विस्तारित किया है।

इसका उद्देश्य यह है कि राज्य अपने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करे और किसी भी प्रकार की अत्याचार या अन्याय से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करे।

  1. जीवन का अधिकार: अनुच्छेद 21 भारत के प्रत्येक नागरिक को जीवन जीने का अधिकार प्रदान करता है, जो केवल शारीरिक अस्तित्व तक सीमित नहीं है बल्कि एक गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करता है।
  2. व्यक्तिगत स्वतंत्रता: यह अनुच्छेद किसी भी व्यक्ति को अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करने के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है, जब तक कि कानून द्वारा ऐसा न किया जाए।
  3. कानूनी प्रक्रिया द्वारा संरक्षण: अनुच्छेद 21 यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी स्वतंत्रता से वंचित करने की प्रक्रिया सिर्फ कानून के अनुसार ही होनी चाहिए। 
  4. मानव गरिमा की रक्षा: यह अनुच्छेद व्यक्ति की गरिमा की सुरक्षा करता है और उसे सम्मानजनक जीवन जीने की अनुमति देता है। 
  5. बाल अधिकारों की सुरक्षा: अनुच्छेद 21 के अंतर्गत बाल अधिकारों की रक्षा की जाती है, जिससे बाल श्रम और शोषण को रोकने में मदद मिलती है।
  6. महिलाओं की सुरक्षा: महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और अन्य प्रकार के शोषण से सुरक्षा के लिए यह अनुच्छेद महत्वपूर्ण है।
  7. समानता और न्याय: यह अनुच्छेद सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों को समानता और न्याय का लाभ मिले, और किसी भी तरह के भेदभाव के खिलाफ सुरक्षा मिले।

आर्टिकल 21 का इतिहास | History of Article 21(1) in hindi

आर्टिकल 21 का इतिहास बहुत पुराना है और इसका संबंध भारत की स्वतंत्रता संग्राम से भी है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अनेक नेताओं ने इस अधिकार के महत्व को समझा और इसे संविधान में शामिल करने की मांग की। संविधान सभा में इस पर व्यापक चर्चा हुई और अंततः इसे संविधान में शामिल किया गया। आर्टिकल 21 का इतिहास दर्शाता है कि यह अधिकार हमें हमारी स्वतंत्रता और गरिमा को बनाए रखने में सहायता करता है।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, भारतीय नेताओं ने देखा कि कैसे ब्रिटिश शासन ने भारतीयों के मौलिक अधिकारों का हनन किया था, और इसलिए स्वतंत्रता के बाद एक ऐसा संविधान तैयार किया गया जो नागरिकों के अधिकारों की रक्षा कर सके।

न्यायपालिका ने इस अनुच्छेद की व्याख्या समय-समय पर विभिन्न मामलों में की है, जिससे हम इसकी व्यापकता और गहराई को समझ सकते हैं।

आर्टिकल 21 से जुड़े महत्वपूर्ण मामले

1. मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978)

इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 21 का अर्थ केवल शारीरिक अस्तित्व से नहीं है, बल्कि इसका मतलब सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार भी है। न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति को अपनी स्वतंत्रता से वंचित करने के लिए केवल विधिक प्रक्रिया का पालन करना चाहिए।

2. कोहलि बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1973)

इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा कि किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तारी से पहले उचित कारण और सुनवाई का अधिकार मिलना चाहिए। इसके तहत गिरफ्तारी और हिरासत को केवल न्यायिक आदेश के तहत ही वैध माना गया।

3. हेबियस कॉर्पस (1976)

इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार केवल तभी निलंबित किया जा सकता है जब कोई राष्ट्रीय आपातकाल घोषित हो। यह आदेश उस समय के आपातकाल के संदर्भ में था, जब नागरिकों को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के हिरासत में लिया गया था।

4. राजीव गांधी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1994)

इस मामले में, न्यायालय ने यह कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता को विधिक प्रक्रिया द्वारा सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इसके अंतर्गत, किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेने से पहले यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि उस पर आरोप लगे और कानूनी प्रक्रिया का पालन हो।

5. सुहागिन बनाम दिल्ली सरकार (1982)

इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा कि जीवन के अधिकार में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा भी शामिल है, और इसे अवहेलना करना संविधान के खिलाफ है।

आर्टिकल 21 का महत्व | Importance of Anuchchhed 21

आर्टिकल 21 का महत्व अनेक स्तरों पर है। यह न केवल व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करता है, बल्कि उसे एक सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार भी देता है। इसके माध्यम से हमें यह सुनिश्चित करने का अधिकार मिलता है कि हमारी स्वतंत्रता और जीवन का हनन न हो। आर्टिकल 21 के तहत मिलने वाले अधिकार –

  • जीवन का अधिकार
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता
  • न्यायिक समीक्षा का अधिकार
  • स्वास्थ्य और शिक्षा का अधिकार
  • महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा
  • मानव गरिमा की रक्षा
  • इच्छामृत्यु और सम्मानजनक मृत्यु का अधिकार
  • समानता और न्याय

आर्टिकल 21 का भारतीय संविधान में अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि यह जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को संरक्षित करता है। इसका महत्व निम्नलिखित बिंदुओं में स्पष्ट होता है:

1. व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा:

आर्टिकल 21 किसी भी व्यक्ति के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ी सभी प्रकार की कार्रवाई को बिना किसी वैध कानूनी प्रक्रिया के प्रतिबंधित करने से रोकता है। इसका मतलब यह है कि किसी व्यक्ति को उसके जीवन, शारीरिक स्वतंत्रता, या व्यक्तिगत अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता, सिवाय कानून द्वारा निर्धारित उचित प्रक्रिया के।

2. न्यायिक विवेचना का विस्तार:

आर्टिकल 21 का प्रयोग न्यायालयों द्वारा नागरिकों के बुनियादी अधिकारों की रक्षा के लिए किया गया है। सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों ने इसे विस्तार से व्याख्यायित किया और इसके तहत विभिन्न अधिकारों को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार में समाहित किया। उदाहरण के तौर पर, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छ पर्यावरण, और शारीरिक सुरक्षा जैसे अधिकारों को भी इस अधिकार में शामिल किया गया।

3. लोकतंत्र और राज्य की जिम्मेदारी:

आर्टिकल 21 यह सुनिश्चित करता है कि राज्य नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन न करे। यह लोकतांत्रिक समाज की एक अहम नींव है, क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि सत्ता में बैठे लोग नागरिकों की स्वतंत्रता और उनके अधिकारों का सम्मान करें। अगर राज्य नागरिकों के जीवन या स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है, तो नागरिक न्यायालय में इसकी चुनौती दे सकते हैं।

4. नैतिक और सामाजिक न्याय:

इस अनुच्छेद का उद्देश्य केवल कानूनी न्याय नहीं है, बल्कि सामाजिक और नैतिक न्याय भी है। उदाहरण स्वरूप, अगर किसी व्यक्ति के जीवन को खतरा होता है या उसके पास न्यूनतम जीवनस्तरीय संसाधन नहीं होते, तो राज्य को यह सुनिश्चित करना होता है कि नागरिक को वह सभी आवश्यक सुविधाएं प्राप्त हों।

5. सुप्रीम कोर्ट की निर्णयों में विस्तृत परिभाषा:

सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 21 के तहत कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं, जिनमें यह माना गया कि “जीवन” का अर्थ केवल शारीरिक अस्तित्व तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सम्मानजनक जीवन जीने के अधिकार को भी शामिल करता है। कुछ महत्वपूर्ण फैसलों में जैसे कि मनeka Gandhi v. Union of India (1978), Francis Coralie Mullin v. Union Territory of Delhi (1981) और Unnikrishnan JP v. State of Andhra Pradesh (1993) शामिल हैं, जिनमें अदालत ने इस अनुच्छेद को विस्तृत रूप से व्याख्यायित किया।

6. समानता और गरिमा का अधिकार:

आर्टिकल 21 यह भी सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक नागरिक को गरिमामय जीवन जीने का अधिकार मिले। इसमें किसी भी व्यक्ति को अपमानित करने या अवैध तरीके से दबाने का कोई स्थान नहीं है। इसे भारतीय संविधान में एक नैतिक और सशक्त प्रावधान के रूप में देखा जाता है।

आर्टिकल 21 का प्रभाव | Impact of Article in Hindi

आर्टिकल 21 का प्रभाव हमारे जीवन के प्रत्येक पहलू पर पड़ता है। यह न केवल हमें स्वतंत्रता और जीवन का अधिकार देता है, बल्कि हमें न्यायिक समीक्षा और विस्तारित अधिकारों का भी लाभ देता है। इसके प्रभाव से हमारा समाज अधिक न्यायपूर्ण और समान बनता है।

न्यायिक समीक्षा

  • आर्टिकल 21 के अंतर्गत न्यायिक समीक्षा का अधिकार हमें यह सुनिश्चित करने का अधिकार देता है कि कोई भी कानून या सरकारी कार्रवाई हमारी स्वतंत्रता और जीवन का हनन न करे।
  • न्यायालय के माध्यम से हम किसी भी अनुचित कानून या कार्रवाई को चुनौती दे सकते हैं।
  • न्यायिक समीक्षा के माध्यम से नागरिकों को यह सुनिश्चित करने का अवसर मिलता है कि सरकार उनके अधिकारों का उल्लंघन न करे।
  • यदि सरकार उनके अधिकारों का उल्लंघन करती है, तो उन्हें न्याय मिल सके।

विस्तारित अधिकार

  • आर्टिकल 21 के अंतर्गत हमें विस्तारित अधिकार मिलते हैं, जैसे:
    • स्वास्थ्य का अधिकार
    • शिक्षा का अधिकार
    • सम्मानपूर्वक मरने का अधिकार
  • ये सभी अधिकार हमारे जीवन को बेहतर बनाने में सहायक होते हैं और हमें एक गरिमापूर्ण जीवन जीने का अवसर प्रदान करते हैं।
  • न्यायपालिका ने समय-समय पर आर्टिकल 21 की व्याख्या करते हुए विभिन्न अधिकारों को इसमें शामिल किया है।
  • इस प्रक्रिया से आर्टिकल 21 का दायरा और अधिक विस्तारित हो गया है।

आर्टिकल 21 के तहत अधिकारों का विस्तार

स्वास्थ्य का अधिकार

स्वास्थ्य का अधिकार आर्टिकल 21 के अंतर्गत आता है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति को स्वास्थ्य सेवाओं का उचित और सुलभता के साथ प्राप्ति हो। यह अधिकार हमें यह सुनिश्चित करने का अधिकार देता है कि हम स्वस्थ जीवन जी सकें और हमारी स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर उच्च हो। सर्वोच्च न्यायालय ने कई मामलों में यह स्पष्ट किया है कि स्वास्थ्य का अधिकार जीवन के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है और सरकार का यह दायित्व है कि वह नागरिकों को आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करे।

शिक्षा का अधिकार

शिक्षा का अधिकार भी आर्टिकल 21 के अंतर्गत आता है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक बच्चे को शिक्षा का अधिकार मिले। यह अधिकार हमें यह सुनिश्चित करने का अवसर देता है कि हमारा समाज शिक्षित हो और हर व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार हो। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21A के माध्यम से, 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार दिया गया है। यह आर्टिकल 21 के व्यापक दायरे को और अधिक मजबूती प्रदान करता है।

इच्छामृत्यु(Euthanasia) और अनुच्छेद 21: एक जटिल मुद्दा

इच्छामृत्यु(Euthanasia) या दया मृत्यु की अवधारणा एक जटिल अवधारणा है, जिसके नैतिक, कानूनी और नैतिक निहितार्थ हैं। जबकि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, सर्वोच्च न्यायालय ने इच्छामृत्यु पर एक सूक्ष्म रुख अपनाया है।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अरुणा शानबाग मामले में सख्त दिशा-निर्देशों के तहत निष्क्रिय इच्छामृत्यु को वैध बनाया। इसका मतलब है कि परिवार या मेडिकल बोर्ड की सहमति से लगातार वनस्पति अवस्था में रोगियों से जीवन समर्थन वापस लिया जा सकता है। 

हालाँकि, न्यायालय ने सक्रिय इच्छामृत्यु को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया है, जिसमें घातक साधनों के माध्यम से जानबूझकर जीवन को समाप्त करना शामिल है। इसलिए, जबकि सम्मानजनक मृत्यु के अधिकार को अनुच्छेद 21 का एक हिस्सा माना जाता है, भारत वर्तमान में केवल विशिष्ट परिस्थितियों में निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति देता है।

आर्टिकल 21 की चुनौतियाँ

आर्टिकल 21 की चुनौतियाँ भी अनेक हैं। इनमें प्रमुख है कानूनों और प्रक्रियाओं का सही तरीके से पालन न होना, न्यायिक प्रक्रियाओं में देरी, और अधिकारों का हनन। हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि आर्टिकल 21 का सही तरीके से पालन हो और हमारे अधिकारों की रक्षा हो। न्यायालयों में मामलों की भारी संख्या, न्यायिक प्रक्रियाओं की जटिलता, और संसाधनों की कमी जैसे मुद्दे आर्टिकल 21 की प्रभावशीलता को चुनौती देते हैं।

आर्टिकल 21 की चुनौतियों में अन्य बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • कानून का दुरुपयोग: कभी-कभी सरकारी एजेंसियों द्वारा कानून का दुरुपयोग किया जाता है जिससे व्यक्ति के अधिकारों का हनन होता है।
  • समाजिक और आर्थिक असमानता: समाजिक और आर्थिक असमानता के कारण सभी व्यक्तियों को समान अधिकार नहीं मिल पाते।
  • न्यायिक प्रक्रियाओं में देरी: न्यायिक प्रक्रियाओं में देरी के कारण कई बार व्यक्ति को समय पर न्याय नहीं मिल पाता।
  • सूचना और जागरूकता की कमी: नागरिकों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी भी एक बड़ी चुनौती है।

निष्कर्ष

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 हर नागरिक के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। यह अनुच्छेद सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या स्वतंत्रता से केवल कानूनी प्रक्रिया के तहत ही वंचित किया जा सकता है। इसके तहत न केवल शारीरिक सुरक्षा की गारंटी दी जाती है, बल्कि निजता का अधिकार भी शामिल है, जो नागरिकों को किसी भी प्रकार के क्रूर या अपमानजनक व्यवहार से बचाता है। इस प्रकार, अनुच्छेद 21 हर व्यक्ति को गरिमा और सम्मान के साथ जीने का अधिकार प्रदान करता है, जो एक न्यायपूर्ण और समतामूलक समाज की नींव है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

संविधान का आर्टिकल 21 क्या कहता है?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण” करता है। इसके अनुसार, किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से केवल विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जा सकता है। यह अनुच्छेद नागरिकों को गरिमा और सम्मान के साथ जीने का अधिकार प्रदान करता है।

आर्टिकल 21A में क्या लिखा है?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21A के तहत, 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्राप्त है। यह अधिकार संविधान के 86वें संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया था।

आर्टिकल 21 राइट टू प्राइवेसी क्या है?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत “निजता का अधिकार” मौलिक अधिकार है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति की निजी जानकारी और व्यक्तिगत जीवन का सम्मान किया जाए, और बिना सहमति के उसकी जानकारी साझा न की जाए। यह अधिकार 2017 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मान्यता प्राप्त हुआ।

आर्टिकल 20 और 21 में क्या है?

अनुच्छेद 20 अपराधों के लिए दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण प्रदान करता है, जबकि अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण करता है। ये दोनों अनुच्छेद नागरिकों को कानूनी सुरक्षा और गरिमा के साथ जीने का अधिकार प्रदान करते हैं।

Authored by, Aakriti Jain
Content Curator

Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.

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