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क्या आपने कभी सोचा है कि इतिहास की घटनाओं और पुरानी जानकारियों को कैसे सुरक्षित रखा जाता था? इसका जवाब है “अभिलेख”। लेकिन आख़िर अभिलेख किसे कहते हैं? सरल शब्दों में, अभिलेख वह दस्तावेज़ या रिकॉर्ड होते हैं, जिनमें किसी घटना, जानकारी या तथ्य को स्थायी रूप से दर्ज किया जाता है। ये प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक जानकारी को संरक्षित रखने का सबसे विश्वसनीय तरीका रहे हैं। ऐसे में आपको अभिलेख किसे कहते हैं और इससे जुड़े अन्य पहलुओं के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए।
इस ब्लॉग में आपको अभिलेख किसे कहते हैं, अभिलेखों के प्रकार, अभिलेखों का क्या महत्व है, प्राचीन भारत के प्रमुख अभिलेख और प्राचीन भारतीय इतिहास में अभिलेखों की क्या भूमिका रही है के बारे में विस्तार से जानने को मिलेगा।
अभिलेख किसी भी ऐसे दस्तावेज़ या रिकॉर्ड को कहते हैं जिसमें किसी महत्वपूर्ण जानकारी या घटना का विवरण संरक्षित और सुरक्षित रखा जाता है। ये किसी भी रूप में हो सकते हैं – जैसे कागज़ पर लिखे हुए, पत्थर में किए हुए, डिजिटल फॉर्मेट में, फोटो या वीडियो में।
अभिलेख के कुछ उदाहरण | अभिलेख किसे कहते हैं? :
इन अभिलेखों का मुख्य उद्देश्य महत्वपूर्ण जानकारी को लंबे समय तक सुरक्षित रखना और भविष्य में उपयोग के लिए संरक्षित करना होता है।
अभिलेख in english:
अभिलेख किसे कहते हैं जानने के बाद अभिलेख in english के बारे में जानना भी बेहद जरूरी हो जाता है। अभिलेख को इंग्लिश में Inscriptions कहा जाता है।
अभिलेख किसे कहते हैं और अभिलेख in english जानने के बाद अभिलेखों के प्रकार के बारे में जानना काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। प्राचीन समय से अभी तक अभिलेखों के प्रकार में पाषाण अभिलेख, ताम्रपत्र अभिलेख, चमड़े के अभिलेख, दीवार अभिलेख, सिल्वर और अन्य धातु के अभिलेख तथा कागज के अभिलेख देखने को मिले हैं।
पाषाण अभिलेख प्राचीन काल में पत्थरों पर उत्कीर्ण किए गए लेख होते थे। ये हमारे इतिहास के महत्वपूर्ण साक्ष्य हैं, जो हमें हमारे पूर्वजों के जीवन, संस्कृति, राजनीति और धर्म के बारे में जानकारी देते हैं।
इन अभिलेखों से हमें प्राचीन लिपियों और भाषाओं के विकास का पता चलता है। कुछ अभिलेखों में कलात्मक नक्काशी भी होती है, जिससे हमें उस समय की कला और संस्कृति की झलक मिलती है।
पाषाण अभिलेख बनाने के लिए पत्थर की सतह को साफ किया जाता था। फिर, एक नुकीली औज़ार की मदद से, उस पर लेख उत्कीर्ण किए जाते थे। ये लेख अक्सर राजाओं, शासकों या धार्मिक संस्थाओं द्वारा बनवाए जाते थे। ashok ke shilalekh और हरप्पन सभ्यता के मोहर प्रमुख पाषाण अभिलेख हैं जो प्राचीन भारत के प्रमुख अभिलेखों का उदाहरण हैं।
ताम्रपत्र अभिलेख प्राचीन काल में तांबे की पत्तियों पर लिखे गए महत्वपूर्ण दस्तावेज़ होते थे। ये पत्तियां मजबूत और टिकाऊ होती थीं, जिसकी वजह से इन पर लिखी गई बातें सदियों तक सुरक्षित रह पाईं।
कई ताम्रपत्रों में भूमि दान, गांव दान या अन्य संपत्ति दान करने के बारे में जानकारी होती है। इससे हमें उस समय के दान-पुण्य और समाज सेवा के बारे में पता चलता है। ताम्रपत्रों से हमें विभिन्न राजवंशों के उद्भव, पतन और उनके बीच हुए युद्धों के बारे में पता चलता है।
ताम्रपत्र अभिलेख बनाने के लिए तांबे की पत्तियों को पहले चिकना किया जाता था और फिर उन पर एक नुकीली औज़ार से लेख लिखे जाते थे। इन लेखों को अक्सर राजाओं, शासकों या धार्मिक संस्थाओं द्वारा बनवाया जाता था। ताम्रपत्रों को मोड़कर और सील करके सुरक्षित रखा जाता था, ताकि वे खराब न हों।
भारत में कई जगहों पर ताम्रपत्र अभिलेख मिले हैं। ये अभिलेख हमें गुप्त काल, चालुक्य काल और कई अन्य राजवंशों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं। इन अभिलेखों में संस्कृत भाषा में लिखे हुए लेख मिलते हैं, जो उस समय की भाषा और साहित्य के बारे में भी हमें बताते हैं।
चमड़े के अभिलेख वास्तव में इतिहास के सबसे पुराने और महत्वपूर्ण दस्तावेजों में से एक थे। ये विशेष प्रकार के अभिलेख होते थे। जिन्हें चमड़े पर लिखा और संरक्षित किया जाता था।
प्राचीन काल में इस्तेमाल होने वाले ये अभिलेख बहुत टिकाऊ और मजबूत होते थें। ये नमी और क्षति से बचने की क्षमता रखते थें और कागज से ज्यादा लंबे समय तक चल सकते थें।
ऐतिहासिक रूप से, चमड़े के अभिलेख कई सभ्यताओं में महत्वपूर्ण दस्तावेजों जैसे संधियों, कानूनी अधिकारों और धार्मिक ग्रंथों को लिखने और संरक्षित करने में उपयोग किए जाते थे।
दीवार के अभिलेख प्राचीन काल से ही इतिहास को दर्ज करने का एक महत्वपूर्ण तरीका रहे हैं। ये अभिलेख मंदिरों, महलों, किलों और अन्य ऐतिहासिक इमारतों की दीवारों पर उत्कीर्ण किए जाते थे।
दीवार के अभिलेख बनाने के लिए दीवार की सतह को पहले साफ किया जाता था। फिर, एक नुकीले औज़ार की मदद से, उस पर लेख उत्कीर्ण किए जाते थे। ये लेख अक्सर राजाओं, शासकों या धार्मिक संस्थाओं द्वारा बनवाए जाते थे। इन अभिलेखों को बनाने में पत्थर, ईंट या अन्य मजबूत सामग्री का उपयोग किया जाता था।
धातु के अभिलेख किसे कहते हैं? ये अभिलेख चांदी, सोना, तांबा और अन्य धातुओं पर उत्कीर्ण किए जाते थे। धातु के अभिलेख उस समय के समाज के दर्पण की तरह होते हैं। इनसे हमें उस समय के लोगों के जीवन, उनके विचारों और उनकी मान्यताओं के बारे में पता चलता है।
धातु के अभिलेख बनाने के लिए धातु की प्लेट को पहले चिकना किया जाता था। फिर, एक नुकीले औज़ार की मदद से, उस पर लेख उत्कीर्ण किए जाते थे। ये लेख अक्सर राजाओं, शासकों या धार्मिक संस्थाओं द्वारा बनवाए जाते थे। इन अभिलेखों को बनाने में चांदी, सोना, तांबा और अन्य धातुओं का उपयोग किया जाता था।
कागज के अभिलेख हमारे इतिहास को समझने के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्रोत हैं। ये अभिलेख विभिन्न प्रकार के कागजों पर लिखे जाते थे और इनमें राजाओं के आदेश, धार्मिक ग्रंथ, साहित्यिक रचनाएं, व्यापारिक लेन-देन के रिकॉर्ड और व्यक्तिगत पत्र आदि शामिल होते थे। इन अभिलेखों में कई प्राचीन साहित्यिक रचनाएं, कविताएं और कहानियां भी मिलती हैं।
कागज के अभिलेख बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के कागजों का उपयोग किया जाता था। ये कागज पेड़ों की छाल, कपड़े के टुकड़ों या अन्य वनस्पति पदार्थों से बनाए जाते थे। इन कागजों पर स्याही या रंगीन पदार्थों से लिखा जाता था। आज भी कागज के अभिलेखों का काफी इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, कागज के अभिलेख समय के साथ खराब हो जाते हैं और कई बार अभिलेख पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं।
अभिलेख का महत्व कई क्षेत्रों में देखा जा सकता है जैसे:
भारत में कई ऐसे अभिलेख पाएं गए हैं जो उस प्राचीन भारत की भाषा, संस्कृति और जीवन के बारे में जानकारी देते हैं। इसमें से कुछ प्रमुख ashok ke shilalekh, इलाहाबाद स्तंभ लेख, मेहरौली लौह स्तंभ, मंडसौर अभिलेख और अजन्ता अभिलेख हैं।
ashok ke shilalekh प्राचीन भारत के सबसे महत्वपूर्ण अभिलेखों में से एक हैं। ये शिलालेख मौर्य सम्राट अशोक द्वारा विभिन्न स्थानों पर पत्थरों और स्तंभों पर खुदवाए गए थे। इनका मुख्य उद्देश्य अशोक के धर्म, नीतियों और उनके शासन के संदेशों को जनता तक पहुँचाना था।
ashok ke shilalekho में बौद्ध धर्म के सिद्धांतों, अहिंसा, सह-अस्तित्व और दया जैसे विषयों पर जोर दिया गया है। इनमें अशोक के धार्मिक दृष्टिकोण और उनके द्वारा किए गए सामाजिक और नैतिक सुधारों का वर्णन मिलता है।
शिलालेखों की विशेषताएँ:
प्रमुख शिलालेख:
इलाहाबाद स्तंभ लेख (जिसे प्रयागराज स्तंभ लेख भी कहा जाता है) भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण शिलालेख है। यह स्तंभ उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (पुराने नाम इलाहाबाद) में स्थित है। यह स्तंभ मौर्य सम्राट अशोक के समय का है और इसे भारतीय पुरातत्व का एक अद्भुत उदाहरण माना जाता है।
इलाहाबाद स्तंभ की विशेषताएँ
प्रमुख शिलालेख:
दिल्ली के कुतुब परिसर में स्थित मेहरौली लौह स्तंभ भारतीय वास्तुकला और विज्ञान का एक अद्वितीय उदाहरण है। यह स्तंभ लगभग 1600 साल पुराना है और इसे गुप्त साम्राज्य के राजा चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के शासनकाल में बनवाया गया था। इसकी ऊंचाई लगभग 7.2 मीटर और वजन 6.5 टन है।
स्तंभ पर संस्कृत भाषा में ब्राह्मी लिपि में लिखे गए शिलालेख हैं। इनमें राजा चंद्रगुप्त द्वितीय के पराक्रम और उनकी विजय का वर्णन किया गया है। यह शिलालेख उस समय की राजनीति और समाज की जानकारी भी देते हैं।
मेहरौली लौह स्तंभ की विशेषताएँ
मध्य प्रदेश के मंडसौर में स्थित यह अभिलेख भारतीय इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। इसे 5वीं शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के समय राजा कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल में लिखा गया था। यह अभिलेख भगवान सूर्य को समर्पित एक मंदिर के निर्माण और उस समय की सामाजिक व्यवस्था का वर्णन करता है।
मंडसौर अभिलेख की विशेषताएँ
अजन्ता अभिलेख भारतीय इतिहास और कला का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये अभिलेख महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित प्रसिद्ध अजन्ता गुफाओं में पाए जाते हैं। ये गुफाएँ 2वीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर 6वीं शताब्दी तक की बौद्ध संस्कृति और वास्तुकला को दर्शाती हैं।
अजन्ता अभिलेखों में राजा हरिषेण का उल्लेख प्रमुख है, जिन्होंने वाकाटक वंश के दौरान इन गुफाओं के निर्माण में योगदान दिया। इन अभिलेखों में बौद्ध धर्म के महायान और हीनयान संप्रदायों के विकास का भी वर्णन मिलता है।
अजन्ता अभिलेख की विशेषताएँ
प्राचीन भारतीय इतिहास में अभिलेखों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है। अभिलेखों के कारण ही आज हम प्राचीन भारत की राजनीतिक व्यवस्था, सामाजिक संरचना, आर्थिक व्यवस्था, सांस्कृतिक और धार्मिक प्रभाव को समझ पाए हैं।
अभिलेख हमारे इतिहास, संस्कृति और प्रशासन की अमूल्य धरोहर हैं। ये न केवल प्राचीन समय की घटनाओं और नीतियों का दस्तावेजीकरण करते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए सीख और संदर्भ का स्रोत भी बनते हैं। “अभिलेख किसे कहते हैं” यह समझना हमें हमारे अतीत से जोड़ता है और वर्तमान में बेहतर निर्णय लेने में मदद करता है।
इस ब्लॉग में आपने अभिलेख किसे कहते हैं, अभिलेखों के प्रकार, अभिलेखों का क्या महत्व है, प्राचीन भारत के प्रमुख अभिलेख और प्राचीन भारतीय इतिहास में अभिलेखों की क्या भूमिका रही है के बारे में विस्तार से जाना।
शिलालेख: शिलालेख एक प्रकार का अभिलेख होता है जिसे किसी कठोर सतह जैसे पत्थर, धातु या मिट्टी की पट्टी पर उत्कीर्ण किया जाता है। ये आमतौर पर राजाओं, शासकों या धार्मिक संस्थानों द्वारा अपने कार्यों, आदेशों या उपलब्धियों को दर्ज करने के लिए बनाए जाते थे।
अभिलेख: अभिलेख एक व्यापक शब्द है जो किसी भी प्रकार के लिखित या उत्कीर्ण रिकॉर्ड को संदर्भित करता है। इसमें शिलालेख, ताम्रपत्र, मुद्राएं, और अन्य प्रकार के दस्तावेज शामिल हो सकते हैं।
दुनिया भर में लाखों, यदि नहीं करोड़ों, अभिलेख हैं। नए अभिलेख लगातार खोजे जा रहे हैं और पुराने अभिलेखों का अध्ययन किया जा रहा है।
अशोक के शिलालेख को भारत के सबसे पुराने और महत्वपूर्ण अभिलेखों में से एक माना जाता है।
अशोक का 13वां शिलालेख सबसे बड़ा शिलालेख है।
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Authored by, Amay Mathur | Senior Editor
Amay Mathur is a business news reporter at Chegg.com. He previously worked for PCMag, Business Insider, The Messenger, and ZDNET as a reporter and copyeditor. His areas of coverage encompass tech, business, strategy, finance, and even space. He is a Columbia University graduate.
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