Quick Summary
भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध की शुरुआत 3 मई 1999 को हुई थी, जब पाकिस्तानी सैनिकों और घुसपैठियों ने जम्मू-कश्मीर के कारगिल सेक्टर में चुपचाप कब्जा कर लिया। यह संघर्ष 2 महीने और 23 दिन तक चला और आखिरकार 26 जुलाई 1999 को भारत की ऐतिहासिक जीत के साथ समाप्त हुआ। भारत ने साहस और रणनीति से पाकिस्तान को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया, लेकिन इस वीरता की कीमत भी चुकानी पड़ी—527 भारतीय सैनिक शहीद हुए और 1,363 से अधिक जवान घायल हुए।
यह युद्ध भारतीय सेना की वीरता, बलिदान और अटूट संकल्प का प्रतीक बन गया है। 26 जुलाई को हर साल ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है, ताकि इन नायकों को याद किया जा सके जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। कारगिल युद्ध, जो 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ, भारतीय सेना की वीरता, साहस और समर्पण का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है। इस युद्ध में पाकिस्तान ने भारतीय क्षेत्र के कश्मीर के कारगिल जिले में घुसपैठ की, जिसका मुकाबला करने के लिए भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय की शुरुआत की। यह संघर्ष सिर्फ एक सैन्य अभियान नहीं था, बल्कि देश की अखंडता और सुरक्षा के लिए एक ऐतिहासिक लड़ाई थी।
इस युद्ध में भारतीय सैनिकों ने कठिन और दुर्गम पहाड़ी इलाकों में अपनी जान की परवाह किए बिना अपने दुश्मनों का सामना किया। कारगिल युद्ध ने भारतीय सेना की ताकत और रणनीतिक कौशल को दुनिया के सामने लाया, और आज भी यह युद्ध भारतीय इतिहास में शौर्य और बलिदान का प्रतीक बनकर जीवित है।
कारगिल युद्ध (kargil yudh) 3 मई 1999 को भारत के जम्मू और कश्मीर के कारगिल जिले में शुरू हुआ था। याक की खोज में निकले बालटिक के ताशी ने ऊंची पहाड़ियों पर पाकिस्तान के सैनिकों को बंकर बनाते देखा और इसकी सूचना भारतीय सेना को दी।
5 मई 1999 को भारतीय सेना के जवान गश्त के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा पकड़े गए और मारे गए। भारतीय सीमा में कब्जा की गई जगहों को वापस पाने के लिए ‘ऑपरेशन विजय’ चलाया गया। 26 मई 1999 को भारतीय वायुसेना ने ऑपरेशन सफेद सागर शुरू किया, लेकिन बंकरों के कारण यह सफल नहीं हो पाया।भारतीय सेना ने तालोलेंग और प्वॉइंट 5140 पर कब्जा किया। 11 जुलाई 1999 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने युद्ध रोकने की घोषणा की और 26 जुलाई 1999 को युद्ध समाप्त हो गया।
इस लड़ाई की शुरुआत 3 मई 1999 को ही हो गई थी जब पाकिस्तान ने कारगिल की ऊंची पहाडि़यों पर 5 हजार से भी ज्यादा सैनिकों के साथ घुसपैठ कर कब्जा जमा लिया था। भारत सरकार को जब घुसपैठ की जानकारी मिली तब पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने के लिए ऑपरेशन विजय चलाया गया। पाकिस्तान ने दावा किया था कि इस लड़ाई में लड़ने वाले सभी कश्मीरी उग्रवादी हैं, लेकिन युद्ध में बरामद हुए दस्तावेजों और पाकिस्तानी नेताओं के बयानों से साबित हुआ कि पाकिस्तान की सेना प्रत्यक्ष रूप में इस युद्ध में शामिल थी।
पाकिस्तान का मकसद यही था कि भारत की सुदूर उत्तर की टिप पर सियाचिन ग्लेशियर की लाइफ लाइन NH 1 D को किसी तरह काट कर उस पर नियंत्रण किया जाए। पाकिस्तानी सैनिक उन पहाड़ियों पर आना चाहते थे जहां से वे लद्दाख की ओर जाने वाली रसद के जाने वाले काफिलों की आवाजाही को रोक दें और भारत को मजबूर हो कर सियाचिन छोड़ना पड़े। दरअसल, मुशर्रफ को यह बात बहुत बुरी लगी थी कि भारत ने 1984 में सियाचिन पर कब्जा कर लिया था। उस समय वह पाकिस्तान की कमांडो फोर्स में मेजर हुआ करते थे। उन्होंने कई बार उस जगह को खाली करवाने की कोशिश की थी लेकिन कामयाब नहीं हो पाए।
कैप्टन विक्रम बत्रा, (vikram batra) जिन्हें लोग सम्मानपूर्वक ‘शेरशाह’ के नाम से जानते हैं, आज भी देश के युवाओं के लिए प्रेरणा और हीरो बने हुए हैं। 1999 के कारगिल युद्ध में उन्होंने अदम्य साहस का परिचय देते हुए देश की खातिर अपने प्राणों की आहुति दी और उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान को हराया था, और इस संघर्ष में कई भारतीय सैनिक शहीद हुए। भारतीय जवानों ने अपने खून का आखिरी कतरा देश के लिए अर्पित कर दिया। इस युद्ध के कई हीरो थे, जिनकी बहादुरी के कारण भारत ने अपने दुश्मनों को भारतीय सीमा से बाहर खदेड़ दिया।
कैप्टन विक्रम बत्रा को प्वाइंट 5140 और प्वाइंट 4875 पर दुश्मन की स्थिति पर हमला करने का कार्य सौंपा गया था। उन्होंने पहले प्वाइंट 5140 पर कब्जा किया और फिर प्वाइंट 4875 पर दुश्मन से भयंकर संघर्ष के बाद कब्जा किया। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद, उन्होंने अपने सैनिकों को प्रेरित किया और संघर्ष जारी रखा, जिसके कारण उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उनका “शेर शाह” का नाम से प्रसिद्ध होने का कारण उनका अदम्य साहस था।
योगेन्द्र सिंह यादव ने टाइगर हिल पर हमले के दौरान अभूतपूर्व साहस का प्रदर्शन किया। वह युद्ध के मैदान पर अकेले दुश्मन के बंकरों की तरफ बढ़े, और कई दुश्मन सैनिकों को मार गिराया। उन्हें 15 गोलियां लगीं, फिर भी वह अपनी मुहिम में लगे रहे। उनकी वीरता ने उन्हें सबसे कम उम्र में परमवीर चक्र प्राप्त करने वाला सैनिक बना दिया।
लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे ने 3 जुलाई 1999 को खालूबार रिज पर हमले का नेतृत्व किया। अपनी कंपनी पर दुश्मन की गोलाबारी को झेलते हुए, उन्होंने अकेले ही चार दुश्मन सैनिकों को मारा और दो बंकरों को नष्ट किया। घायल होने के बावजूद, उन्होंने अपने सैनिकों के साथ बंकर को खाली किया और चौकी पर कब्जा किया। उनके अद्वितीय साहस और बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया।
लेफ्टिनेंट बलवान सिंह को 3 जुलाई 1999 को टाइगर हिल पर हमला करने की जिम्मेदारी दी गई थी। यह इलाका 16,500 फीट की ऊंचाई पर बर्फ से ढका हुआ था और दुश्मन की गोलीबारी से भरा हुआ था। उन्होंने अपने सैनिकों के साथ 12 घंटे से ज्यादा समय तक कड़ी लड़ाई लड़ी और अंत में टाइगर हिल की चोटी पर विजय प्राप्त की। उनकी वीरता और साहस को देखते हुए उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
मेजर राजेश सिंह अधिकारी ने 30 मई 1999 को टोलोलिंग की चोटी पर कब्जा करने के लिए साहसिक कदम उठाया। दुश्मन की मजबूत स्थिति के बावजूद, उन्होंने अपनी टीम का नेतृत्व किया और कड़ी संघर्ष के बाद दुश्मन के बंकरों को नष्ट किया। हालांकि बाद में वह अपनी गंभीर चोटों के कारण शहीद हो गए, लेकिन उनकी वीरता और नेतृत्व के लिए उन्हें महावीर चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया गया।
राइफलमैन संजय कुमार ने 4 जुलाई 1999 को मुश्कोह घाटी के प्वाइंट 4875 पर हमला करने वाले स्तंभ का नेतृत्व किया। दुश्मन के बंकर से होते हुए, उन्होंने न सिर्फ दुश्मन को हराया, बल्कि गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद अपने सैनिकों का उत्साह बढ़ाया और उन्हें जीत दिलाई। उनका साहस और समर्पण उन्हें परमवीर चक्र से नवाजा गया।
इन वीरों ने अपनी अदम्य साहस, नेतृत्व और बलिदान से भारत को गौरवान्वित किया और उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।
इस युद्ध के दौरान भारतीय सेना के सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। कारगिल युद्ध के हीरो की बहादुरी, साहस और जुनून की कहानियां जीवन से भी बड़ी हैं। कारगिल युद्ध के वीर सैनिकों को परमवीर चक्र और अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।
कारगिल युद्ध भारत की सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई में से एक है। पाकिस्तान का मानना था कि जम्मू और कश्मीर में पकड़ बनाने से दिल्ली कमजोर होगा। पाकिस्तान ने रणनीति बनाकर इस युद्ध को अंजाम दिया था लेकिन भारत ने अपनी बेहतर रणनीति और शानदार संचालन से पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया।
कारगिल की लड़ाई शुरू में भारत के लिए काफी मुश्किल साबित हो रही थी। बोफोर्स और एयर फोर्स ने कारगिल युद्ध की कहानी पूरी तरह से बदलकर रख दी। बोफोर्स तोपों के हमले ने ऊंचाई पर स्थित पाकिस्तान की चौकियों को पूरी तरह से तबाह कर दिया।
कारगिल युद्ध में भारत की रणनीति का सबसे अहम पड़ाव तोलोलिंग पर कब्जा करना रहा। तोलोलिंग चोटी पर कब्जा करने के लिए भारत और पाकिस्तानी सैनिक बेहद पास से लड़ रहे थे। दोनों तरफ गोलियों के साथ-साथ एक-दूसरे को गालियां भी दे रहे थे। तोलोलिंग के लिए लड़ाई लगभग 6 दिन तक चली।
कैप्टन विक्रम बत्रा और उनकी बटालियन ने 29 जून को टाइगर हिल के नजदीक दो महत्वपूर्ण चौकियों पर कब्जा जमा लिया था। 2 जुलाई को कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ टाइगर हिल पर चढ़ाई शुरू कर दी। 4 जुलाई को भारतीय सेना ने टाइगर हिल पर कब्जा कर लिया। टाइगर हिल पर भारत का कब्जा इस युद्ध में एक बड़ी जीत थी।
पाकिस्तान ने इस युद्ध के लिए शानदार प्लानिंग की थी और शुरू में वे अपनी योजनाओं में सफल भी रहे। शुरूआत में भारत को उनकी घुसपैठ के बारे में अंदाजा भी नहीं लगा। उन्होंने कारगिल और लेह के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया।
भारत और पाकिस्तान के बीच यह युद्ध 3 मई 1999 से लेकर 26 जुलाई 1999 तक चला। इसके परिणाम भारत के हक में जरूर रहा लेकिन दोनों देशों को बड़ा नुकसान हुआ।
कारगिल युद्ध का परिणाम भारत के वीर जवानों की पाकिस्तान पर जीत के तौर पर याद किया जाता है। यह युद्ध 68 दिनों तक चला। इस जंग के तात्कालिक और दीर्घकालिक परिणाम भी हुए, जिनके बारे में बताते हैं।
कारगिल विजय दिवस हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है, जो 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध में भारतीय सेना की विजय का प्रतीक है। इस युद्ध में भारतीय सैनिकों ने अदम्य साहस और वीरता का परिचय देते हुए दुश्मन को पराजित किया था। कारगिल विजय दिवस उन वीर जवानों की याद में मनाया जाता है जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की रक्षा की। इस दिन पूरे देश में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन होता है और शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है।
कारगिल युद्ध भारत-पाकिस्तान की वो लड़ाई है जिसमें पलटी हुई बाजी को अपने नाम कर लिया था।इसके राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव भी हुए, जिसके बारे में नीचे बताते हैं।
यह युद्ध भारत-पाकिस्तान के बीच एक संघर्ष था। कारगिल युद्ध के बारे में दुनिया भर में चर्चा हुई। इस जंग के बारे में कई किताबें लिखी गईं और कई फिल्में भी बनीं।
| Book Title | Author(s) |
|---|---|
| कारगिल: युद्ध की अनकही कहानियां | रचना बिष्ट रावत |
| विजयंत एट कारगिल: द बायोग्राफी ऑफ ए वॉर हीरो | कर्नल वीएन थापर और नेहा द्विवेदी़ |
| कारगिल युद्ध: आश्चर्य से विजय तक | जनरल वी.पी. मलिक |
| कारगिल से संदेश | श्रींजय चौधरी |
| कारगिल युद्ध | प्रवीण स्वामी |
| कारगिल गर्ल: एन ऑटोबायोग्राफी | फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्सेना (सेवानिवृत्त) और किरण निर्वाण |
कारगिल युद्ध का बीज 1998 के परमाणु परीक्षणों के साथ बोया गया, जब भारत ने पोखरण-II परीक्षण किया और पाकिस्तान ने भी इसका जवाब चगाई परीक्षण के साथ दिया। इससे दोनों देशों के बीच सैन्य संतुलन बिगड़ गया और तनाव बढ़ गया। फरवरी 1999 में शांति की ओर एक कदम के रूप में लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर हुए, जिसमें दोनों देशों ने कश्मीर मुद्दे को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने की बात कही। लेकिन पाकिस्तानी सेना ने इसी दौरान कारगिल में घुसपैठ की योजना बनाई, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व में समन्वय की कमी थी।
भूमिका
भारत के वीर सैनिकों के अदम्य साहस, शौर्य और बलिदान को याद करने के लिए हर वर्ष 26 जुलाई को “कारगिल विजय दिवस” मनाया जाता है। यह दिन भारत के इतिहास में वीरता, सम्मान और देशभक्ति की अनूठी मिसाल है। यह अवसर हमें यह याद दिलाता है कि हमारी सेना किस प्रकार से राष्ट्र की रक्षा के लिए हर कठिनाई का सामना करने को तैयार रहती है।
कारगिल युद्ध क्या था
कारगिल युद्ध 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ा गया था। पाकिस्तान की सेना ने छिपकर जम्मू-कश्मीर के कारगिल क्षेत्र की ऊँचाई वाली पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया था। जब भारत को इसकी जानकारी मिली, तब हमारी सेना ने तुरंत साहसिक कदम उठाया और इन इलाकों को फिर से अपने नियंत्रण में लिया। यह युद्ध कठिन भू-भाग, ऊँचाई, बर्फ और ठंड में लड़ा गया, जिससे इसकी चुनौतियाँ और भी बढ़ गईं।
भारतीय सेना का पराक्रम
भारतीय सेना ने बेहद विषम परिस्थितियों में लड़ते हुए दुश्मनों को पीछे हटने पर मजबूर किया। टाइगर हिल, तोलोलिंग, द्रास, सियाराम जैसे प्रमुख स्थानों पर कड़ी लड़ाई के बाद भारत ने विजय प्राप्त की। इस युद्ध में भारत के 500 से अधिक सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी।
कैप्टन विक्रम बत्रा, लेफ्टिनेंट मनोज पांडे, ग्रेनेडियर योगेंद्र यादव जैसे वीरों की बहादुरी आज भी लाखों लोगों को प्रेरणा देती है। उन्होंने “यही दिल माँगे मोर” जैसे जज़्बातों से पूरे देश का दिल जीत लिया।
विजय दिवस क्यों मनाया जाता है
कारगिल विजय दिवस केवल एक सैन्य जीत का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह उन बहादुर सैनिकों को श्रद्धांजलि देने का दिन है जिन्होंने अपने प्राणों की परवाह किए बिना देश की रक्षा की। यह दिन हमें यह सिखाता है कि सच्ची देशभक्ति क्या होती है और किस तरह से राष्ट्र के लिए बलिदान दिया जाता है।
इस दिन देश के नागरिकों में एकता, गर्व और सैनिकों के प्रति सम्मान की भावना और मजबूत होती है। यह दिवस हमारे युवाओं को भी प्रेरित करता है कि वे अपने देश के लिए कुछ करने का संकल्प लें।
शहीदों को श्रद्धांजलि
26 जुलाई को पूरे देश में विभिन्न स्थानों पर कारगिल युद्ध के शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है। स्कूलों, कॉलेजों, सरकारी संस्थानों और सैन्य ठिकानों पर विशेष कार्यक्रम, भाषण, निबंध प्रतियोगिताएँ और देशभक्ति गीतों का आयोजन किया जाता है।
अमर जवान ज्योति और विभिन्न वॉर मेमोरियल्स पर लोग पुष्प अर्पित कर अपने वीर सपूतों को नमन करते हैं। उनके पराक्रम को याद करना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है।
इस लेख में कारगिल युद्ध कब हुआ और क्यों हुआ इस बारे में विस्तार से बताया गया है। इसके अलावा कारगिल युद्ध, इसके परिणाम और स्मारक में बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। अब कारगिल युद्ध के निष्कर्ष की बात करें तो कारगिल युद्ध को पाकिस्तान ने अपने बुरे मंसूबों के साथ शुरू किया था। शुरूआत में पाकिस्तान को अपने मंसूबों में सफलता में मिली लेकिन लेकिन धीरे-धीरे भारतीय सैनिकों ने रणनीति और बहादुरी से पाकिस्तानी सेना को खदेड़ दिया। कारगिल युद्ध को भारतीय सैनिकों के साहस, बलिदान और शौर्य के लिए जाना जाता है।
कारगिल विजय दिवस हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है। इस दिन भारतीय सेना ने पाकिस्तान द्वारा की गई घुसपैठ को पूरी तरह से खत्म कर कारगिल युद्ध में विजय प्राप्त की थी। यह दिन भारतीय सेना के शौर्य और बलिदान का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है।
कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना की कमान जनरल वी.पी. मलिक के नेतृत्व में थी। उन्होंने भारतीय सेना की रणनीतिक योजना और ऑपरेशन विजय की योजना को सफलतापूर्वक लागू किया।
कारगिल युद्ध के दौरान 8वीं गोरखा राइफल्स, 11वीं गोरखा राइफल्स, और 14वीं गोरखा राइफल्स जैसी डिवीजन ने प्रमुख लड़ाइयाँ लड़ीं। ये डिवीजन ऊंचाई वाले इलाकों में विशेष युद्ध की तैयारी और अनुभव के लिए जानी जाती हैं।
कारगिल युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच कई शांति प्रयास और वार्ताएं की गईं। इनमें 2001 में आगरा शिखर सम्मेलन और 2004 में दिल्ली-लाहौर शांति प्रक्रिया शामिल हैं। इन प्रयासों का उद्देश्य दोनों देशों के बीच तनाव को कम करना और द्विपक्षीय संबंधों को सुधारना था।
कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने विभिन्न प्रकार के सशस्त्र वाहनों का उपयोग किया, जिनमें मुख्य रूप से टैंक (जैसे कि टी-72 और टी-55), बख्तरबंद वाहनों (जैसे कि बीएमपी-1), और आर्टिलरी गन (जैसे कि होवित्जर) शामिल थे।
कारगिल युद्ध के दौरान भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे।
कारगिल युद्ध में भारत के 527 जवान शहीद हुए थे।
Authored by, Aakriti Jain
Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.
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