Quick Summary
चंद्रशेखर आजाद का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है। उनकी वीरता और साहस के कारण वे आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भाबरा गाँव में हुआ था। उनका असली नाम चंद्रशेखर तिवारी था। वे एक भारतीय क्रांतिकारी थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने 1920 के दशक में असहयोग आंदोलन में भाग लिया और बाद में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के एक प्रमुख नेता बने।
आज़ाद ने यह प्रण लिया था, कि वे कभी गिरफ्तार नहीं होंगे और 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में उन्होंने खुद को गोली मारकर शहादत दी, ताकि वे जीवित न पकड़े जाएँ।इस ब्लॉग में हम चंद्रशेखर आजाद के विचारों और उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। साथ ही जानेंगे चंद्रशेखर आजाद के बारे में 10 लाइनें जो बहुत महत्वपूर्ण है।
| विवरण | जानकारी |
| पूरा नाम | चन्द्रशेखर तिवारी |
| जन्म | 23 जुलाई 1906, भाबरा गाँव (अब चन्द्रशेखर आजादनगर), अलीराजपुर, मध्य प्रदेश |
| माता-पिता | पिता: पंडित सीताराम तिवारी, माता: जगरानी देवी |
| प्रारंभिक शिक्षा | भाबरा गाँव में, उच्च शिक्षा के लिए काशी विद्यापीठ, वाराणसी |
| प्रमुख आंदोलन | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, असहयोग आंदोलन |
| प्रमुख संगठन | हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA), हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) |
| प्रसिद्ध घटनाएँ | काकोरी काण्ड, सॉण्डर्स की हत्या, असेम्बली बम काण्ड |
| मृत्यु | 27 फरवरी 1931, चन्द्रशेखर आजाद पार्क, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश |
| मृत्यु का कारण | ब्रिटिश पुलिस से बचने के लिए आत्महत्या |
| उपनाम | आज़ाद |
| प्रभावित व्यक्ति | महात्मा गांधी, राम प्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह |
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भाबरा गांव में हुआ था। यह गांव अब चंद्रशेखर आजाद नगर के नाम से जाना जाता है। उनके जन्म स्थान को एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल माना जाता है और यहां हर साल उनकी जयंती पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। उनका यह जन्म स्थान एक प्रेरणास्त्रोत है और उनके जीवन के बारे में जानने के लिए यहां लोग आते हैं। उनके जन्म स्थान पर कई स्मारक बनाए गए हैं जो उनकी वीरता और साहस की याद दिलाते हैं।
बनारस में पढ़ाई के दौरान चंद्रशेखर आजाद ने असहयोग आंदोलन में भाग लिया। इस आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में उन्होंने अपना नाम ‘आजाद’ बताया, जिससे उनका नाम चंद्रशेखर आजाद पड़ा। जेल से रिहा होने के बाद वे पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। आजाद ने कसम खाई कि वे कभी अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार नहीं होंगे और हमेशा ‘आजाद’ रहेंगे। उन्होंने कई क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया और अपने साहसिक निर्णयों से ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख दिया।

चंद्रशेखर आजाद ने असहयोग आंदोलन में भाग लिया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में उन्होंने अपना नाम ‘आजाद’ बताया और कहा कि वे हमेशा आजाद रहेंगे। उनकी यह दृढ़ता और साहस ने उन्हें क्रांतिकारियों के बीच लोकप्रिय बना दिया। जेल में बिताए समय के दौरान उन्हें कोड़े मारे गए, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनकी इस दृढ़ता ने उन्हें एक प्रेरणास्त्रोत बना दिया और कई युवा क्रांतिकारी उनके साथ जुड़ने लगे।
चंद्रशेखर आजाद ने रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) में शामिल हुए। HRA का उद्देश्य था ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना और भारत को स्वतंत्र बनाना। इस संगठन में आजाद ने प्रमुख भूमिका निभाई और कई क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया। उन्होंने संगठन के लिए धन एकत्रित करने के लिए कई योजनाएँ बनाई और सफलतापूर्वक उन्हें अंजाम दिया। उनके नेतृत्व में संगठन ने कई साहसिक और सफल अभियानों को अंजाम दिया।
प्रमुख क्रांतिकारी गतिविधियाँ और घटनाएँ:-
चंद्रशेखर आज़ाद का प्रसिद्ध नारा (slogan) था – “हम आज़ाद हैं और आज़ाद रहेंगे!” या हिंदी में: “मुझे पकड़ नहीं सकते, मैं आज़ाद था, आज़ाद हूँ और आज़ाद ही रहूँगा।”
यह नारा उनके अटूट साहस, देशभक्ति और स्वतंत्रता के प्रति समर्पण का प्रतीक था। उन्होंने यह भी प्रण लिया था कि – “ब्रिटिश सरकार मुझे कभी ज़िंदा नहीं पकड़ पाएगी।”
साथियों के साथ आजाद के संबंध
चंद्रशेखर आजाद के साथी उन्हें बहुत सम्मान देते थे। भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु जैसे प्रमुख क्रांतिकारियों के साथ उनके घनिष्ठ संबंध थे। आजाद ने हमेशा अपने साथियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया और उनकी सुरक्षा का ख्याल रखा। उनके नेतृत्व में सभी साथी एकजुट होकर संघर्ष करते थे और एक दूसरे के प्रति गहरी निष्ठा रखते थे। उनकी इस नेतृत्व क्षमता ने संगठन को मजबूती प्रदान की और उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
चंद्रशेखर आजाद का बलिदान 27 फरवरी 1931 को हुआ। इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में जब वे पुलिस से घिर गए, तो उन्होंने अपनी आखिरी गोली खुद पर चलाकर अपनी आजादी को बरकरार रखा। उनका यह बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ गया। इस घटना ने उन्हें अमर बना दिया और उनका नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गया। उनकी इस वीरता और साहस की कहानियां आज भी युवाओं को प्रेरित करती हैं।
चंद्रशेखर आजाद एक कुशल नेता थे। उनके नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने कई महत्वपूर्ण अभियानों को अंजाम दिया। उनके विचारों में स्वतंत्रता, देशभक्ति और साहस प्रमुख थे। वे हमेशा अपने साथियों को स्वतंत्रता की कीमत समझाते और उन्हें संघर्ष के लिए प्रेरित करते रहे। उनके नेतृत्व में संगठन ने कई साहसिक और सफल अभियानों को अंजाम दिया, जिसने अंग्रेजों को हिलाकर रख दिया। उनके विचार और उनकी दृष्टि ने संगठन को एकजुट किया और उन्हें ब्रिटिश शासन के खिलाफ मजबूत बनाया।
चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु के बाद भी उनके विचार और उनके बलिदान ने क्रांतिकारियों को प्रेरित किया। उनकी मौत ने स्वतंत्रता संग्राम को और भी मजबूती दी और युवाओं में देशभक्ति की भावना को प्रज्वलित किया। आज भी उनके बलिदान को याद कर नई पीढ़ी प्रेरणा लेती है। उनकी मृत्यु के बाद भी, उनकी वीरता और साहस के किस्से स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और उसके बाद भी क्रांतिकारियों को प्रेरित करते रहे। उनकी इस विरासत ने स्वतंत्रता संग्राम को मजबूती दी और उनके विचार आज भी युवाओं को प्रेरित करते हैं।
चंद्रशेखर आजाद की विरासत आज भी जीवित है। उनकी वीरता और साहस के किस्से हर भारतीय को गर्व महसूस कराते हैं। वे स्वतंत्रता संग्राम के एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी इस विरासत को हर भारतीय गर्व से याद करता है और उनकी कहानियाँ आज भी प्रेरणास्त्रोत बनी हुई हैं। उनकी इस वीरता और साहस की कहानियाँ हमें सिखाती हैं कि स्वतंत्रता के लिए संघर्ष और बलिदान आवश्यक है। उनकी इस विरासत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी और युवाओं को प्रेरित किया।
चंद्रशेखर आजाद के विचारों में स्वतंत्रता, देशभक्ति और साहस प्रमुख थे। वे मानते थे कि बिना संघर्ष के स्वतंत्रता नहीं मिल सकती। उनका मानना था कि युवाओं को देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। उनके विचार आज भी युवाओं को प्रेरित करते हैं। उन्होंने हमेशा अपने साथियों को प्रेरित किया और उन्हें संघर्ष के लिए तैयार रहने की शिक्षा दी। उनके विचार और उनकी दृष्टि ने उन्हें एक महान नेता बनाया और उनके बलिदान ने उन्हें अमर बना दिया।
चंचंद्रशेखर आजाद के विचार थे कि स्वतंत्रता के लिए हर प्रकार का बलिदान देना चाहिए। वे देशभक्ति को सबसे बड़ा धर्म मानते थे और युवाओं को साहस के साथ संघर्ष करने के लिए प्रेरित करते थे। उनका मानना था कि देश की स्वतंत्रता के लिए किसी भी प्रकार का बलिदान छोटा नहीं होता। उनके इस दृष्टिकोण ने उन्हें एक महान नेता और प्रेरणास्त्रोत बनाया। उनके विचार और उनकी दृष्टि ने उन्हें अमर बना दिया और उनके बलिदान ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख योद्धा बना दिया।
चंद्रशेखर आजाद की प्रेरणा उनके बचपन से ही मिली थी। उनके पिता एक स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने आजाद को हमेशा देशभक्ति की शिक्षा दी। चंद्रशेखर आजाद के विचार और उनके संघर्ष ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण योद्धा बनाया। उनकी प्रेरणा ने उन्हें एक महान नेता और प्रेरणास्त्रोत बनाया। उनके इस प्रेरणास्त्रोत ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख योद्धा बना दिया और उनके बलिदान ने उन्हें अमर बना दिया।
चंद्रशेखर आजाद के बारे में 20 लाइन में उनकी पूरी जिंदगी को बताना कठिन है क्योंकि उनके जीवन की हर घटना महत्वपूर्ण है, पर जब भी यह प्रश्न पूछा जाये कि चंद्रशेखर आजाद के बारे में 20 लाइन बताइए तो आप यह जवाव दे सकते हैं –
चंद्रशेखर आजाद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक महान क्रांतिकारी थे, जिन्होंने ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के माध्यम से देश की आजादी के लिए साहसपूर्वक संघर्ष किया। उनके शौर्य और दृढ़ निश्चय ने स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा दी। उनका जीवन आदर्शों और देशभक्ति की मिसाल था। ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लड़ते हुए उन्होंने अपने प्राण न्योछावर कर दिए और ‘आजाद’ के नाम से अमर हो गए। उनका त्याग और संघर्ष हमें आजादी की कीमत का एहसास कराते हैं और पीढ़ियों को प्रेरणा देते हैं। वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अमर नायक हैं।
चंद्रशेखर आजाद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक महान क्रांतिकारी और निडर सेनानी थे। उनका जन्म 23 जुलाई 1906 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के भाबरा गाँव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम ‘चंद्रशेखर तिवारी’ था, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने ‘आजाद’ के नाम से ख्याति प्राप्त की।
आजाद का बचपन कठिनाइयों से भरा था, फिर भी उन्होंने शुरू से ही देशभक्ति और आजादी के प्रति गहरा समर्पण दिखाया। उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया, लेकिन बाद में वे क्रांतिकारी मार्ग की ओर अग्रसर हुए। उन्होंने ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ (HSRA) का गठन किया और ब्रिटिश शासन के विरुद्ध अनेक क्रांतिकारी कार्रवाइयों में भाग लिया।
चंद्रशेखर आजाद ने कभी भी अंग्रेजी हुकूमत के आगे घुटने नहीं टेके। 27 फरवरी 1931 को जब इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में वे ब्रिटिश पुलिस से घिर गए, तब उन्होंने पकड़े जाने के बजाय अपनी आखिरी गोली खुद को मारकर अपनी प्रतिज्ञा निभाई। उनका यह बलिदान स्वतंत्रता संग्राम को नई प्रेरणा और दिशा देने वाला सिद्ध हुआ।
चंद्रशेखर आजाद का जीवन साहस, त्याग और देशभक्ति का प्रतीक है। उनका संघर्ष और बलिदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा और हमें यह याद दिलाता रहेगा कि स्वतंत्रता की कीमत क्या होती है और अपने कर्तव्यों के प्रति कितने दृढ़ रहना चाहिए।
चंद्रशेखर आज़ाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान क्रांतिकारी और वीर योद्धा थे। उनका जीवन ऐसे प्रेरक उदाहरणों से भरा हुआ है, जो न केवल भारतवासियों को अंग्रेज़ी हुकूमत के विरुद्ध संघर्ष हेतु प्रेरित करते हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि सच्ची स्वतंत्रता की कीमत क्या होती है। उनका जन्म 23 जुलाई 1906 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) जिले के भाबरा गाँव में हुआ था। उनका मूल नाम ‘चंद्रशेखर तिवारी’ था, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने स्वयं को ‘आज़ाद’ के नाम से पहचान दिलाई। उनका जीवन यह संदेश देता है कि – “स्वतंत्रता के लिए आत्मबलिदान आवश्यक है।”
चंद्रशेखर आज़ाद का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक रहा है। उन्होंने केवल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तक सीमित न रहकर 1928 में ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन‘ (HSRA) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति करना था। इस संगठन के माध्यम से उन्होंने कई क्रांतिकारी योजनाओं का संचालन किया, जिनमें काकोरी कांड तथा लाला लाजपत राय की मृत्यु के पश्चात सॉन्डर्स की हत्या जैसी घटनाएँ प्रमुख हैं। उनका यह संगठन स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा देने में सहायक सिद्ध हुआ।
आजाद का जीवन केवल अंग्रेज़ों के विरुद्ध नहीं, बल्कि सामाजिक अन्याय और असमानता के विरुद्ध भी संघर्ष का प्रतीक था। उन्होंने क्रांतिकारी साथियों को न केवल संगठनात्मक दिशा दी, बल्कि नैतिक मूल्यों और आदर्शों की शिक्षा भी दी। उन्होंने कभी भी व्यक्तिगत हितों को राष्ट्रसेवा से ऊपर नहीं रखा और अंततः अपने आदर्शों के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
चंद्रशेखर आज़ाद की वीरता केवल युद्धकौशल तक सीमित नहीं थी, बल्कि उनका साहस, नेतृत्व और संकल्प भी अत्यंत अद्वितीय था। उन्होंने अंग्रेज़ी सत्ता के समक्ष कभी आत्मसमर्पण नहीं किया। गिरफ्तारी के समय उन्होंने मजिस्ट्रेट के समक्ष अपना नाम ‘आज़ाद’, पिता का नाम ‘स्वतंत्रता’ और निवास ‘जेल’ बताया। 27 फरवरी 1931 को जब वे इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क (अब चंद्रशेखर आज़ाद पार्क) में ब्रिटिश पुलिस से घिर गए, तो उन्होंने अपने सिद्धांतों पर कायम रहते हुए खुद को गोली मार ली, ताकि वे जीवित पकड़े न जाएं।
ऐसे ही महान लोगो की जीवन की कहानियां जो हमें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।
चंद्रशेखर आज़ाद का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। उनका साहस, बलिदान और आदर्श आज भी युवाओं को देशभक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। उन्होंने यह सिखाया कि स्वतंत्रता केवल एक अधिकार नहीं, बल्कि उसके लिए समर्पण और बलिदान की आवश्यकता होती है। उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमर प्रेरणा बना रहेगा।
इसके अलावा, चंद्रशेखर आजाद के विचार भी प्रेरणादायक हैं। उनका प्रसिद्ध उद्धरण, “मैं आज़ाद था, आज़ाद हूँ और हमेशा आज़ाद रहूँगा,” उनके दृढ़ संकल्प और आत्म-निर्भरता को दर्शाता है। उनके विचार हमें सिखाते हैं कि स्वतंत्रता की रक्षा करना हमारी जिम्मेदारी है। उनकी वीरता और साहस की कहानियाँ हमें गर्व और प्रेरणा देती हैं, और उनका बलिदान स्वतंत्रता की कीमत को समझाने में मदद करता है।
चंद्रशेखर आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारी थे, जिनका जन्म 23 जुलाई 1906 को हुआ। उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़कर सशस्त्र संघर्ष किया। 27 फरवरी 1931 को अल्फ्रेड पार्क में पुलिस मुठभेड़ में शहीद हुए, और आज भी उनकी विरासत युवाओं को प्रेरित करती है।
चंद्रशेखर का नाम “आजाद” उन्होंने स्वयं अपनाया। जब वे युवा थे, उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेते हुए यह तय किया कि वे कभी भी ब्रिटिश पुलिस के हाथ नहीं आएंगे। गिरफ्तारी से बचने के लिए उन्होंने अपने नाम के साथ “आजाद” जोड़ा, जिसका अर्थ है “स्वतंत्र”। यह नाम उनके साहस और स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक बन गया।
चंद्रशेखर आजाद, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारी, 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद हुए। जब ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें घेर लिया, तो उन्होंने गिरफ्तारी से बचने के लिए आत्मगति की। आजाद ने जीवनभर स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया और अपने नाम को सार्थक बनाए रखा। उनकी वीरता और बलिदान आज भी हमें प्रेरित करते हैं।
चंद्रशेखर आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी थे। उनका जन्म 23 जुलाई 1906 को हुआ और वे युवा अवस्था से ही स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए। उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) से जुड़कर सशस्त्र संघर्ष किया।
आजाद का नाम “आजाद” उन्होंने खुद रखा, ताकि यह दर्शा सके कि वे कभी भी British पुलिस के हाथ नहीं आएंगे। वे 27 फरवरी 1931 को अल्फ्रेड पार्क, इलाहाबाद में शहीद हुए, जब पुलिस ने उन्हें घेर लिया। उन्होंने अपने सिद्धांतों और स्वतंत्रता की चाह के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनका बलिदान और साहस आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं।
चंद्रशेखर आजाद का पूरा नाम चंद्रशेखर तिवारी था। उन्होंने “आजाद” उपनाम अपनाया, जिसका अर्थ है “स्वतंत्र,” ताकि यह दर्शा सकें कि वे कभी भी ब्रिटिशपुलिस के हाथ नहीं आएंगे।
चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में हुई। जब ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें घेर लिया, तो उन्होंने गिरफ्तारी से बचने के लिए आत्मगति का निर्णय लिया। उनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अमिट है।
मैं आजाद हूँ, आजाद रहूँगा और आजाद ही मरूंगा
चंद्रशेखर आज़ाद का नाम “आजाद” इसलिए पड़ा क्योंकि जब वे मात्र 15 वर्ष की उम्र में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण ब्रिटिश पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए, तो उन्हें कोर्ट में मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया।
मजिस्ट्रेट ने उनसे उनका नाम, पिता का नाम और पता पूछा, तब उन्होंने बहुत साहस के साथ जवाब दिया:
नाम: आजाद
पिता का नाम: स्वतंत्रता
पता: जेल
Authored by, Aakriti Jain
Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.
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