तीस्ता नदी

तीस्ता नदी | एक प्राकृतिक धरोहर की कहानी

Published on August 26, 2025
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तीस्ता नदी

Quick Summary

  • तीस्ता नदी हिमालय की दार्जिलिंग पहाड़ियों से निकलती है।

  • यह नदी भारत के दो राज्यों से होकर बहती है: सिक्किम और पश्चिम बंगाल।

  • तीस्ता नदी, तीस्ता-ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन का हिस्सा है।

  • अंततः यह नदी बंगाल की खाड़ी में गिरती है।

Table of Contents

तीस्ता नदी उत्तर-पूर्वी भारत और बांग्लादेश के बीच बहने वाली एक ऐसी नदी है जो इन दोनों ही देशों के लिए बहुत महत्त्व रखती है। अगर हम बात करे उद्गम स्थल की तो ये नदी हिमालय की बर्फ़ीली पहाड़ियों से निकलकर ब्रह्मपुत्र नदी में जाकर समा जाती है। यह नदी भारत और बांग्लादेश, दोनों ही देशों की आर्थिक गतिविधियों, कृषि और उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण रही है, इसलिए इसके पानी के बटवारे को लेकर दोनों देशो में विवाद रहा है। इस आर्टिकल में इस नदी के इतिहास, जल समझौता, आर्थिक महत्व, विवाद और समाधान के बारे में विस्तार से जानेंगे।

तीस्ता नदी कहां बहती है? | तीस्ता नदी का उद्गम स्थल

तीस्ता नदी का उद्गम स्थल भारत के सिक्किम में “त्सो ल्हामो” झील है। कुल 315 किलोमीटर लंबाई की ये नदी भारत के सिक्किम और  पश्चिम बंगाल से चलकर बांग्लादेश तक जाती है और ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती है। यह नदी, सिक्किम और पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले से होते हुए, बांग्लादेश के रंगपुर पहुँचती है और वहां से आगे बढ़ती हुई, ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती है।

तीस्ता नदी

तीस्ता नदी का इतिहास

इस नदी का इतिहास बहुत पुराना है क्योंकि इसका वर्णन हिन्दू पुराणों में भी मिलता है।  इस नदी का उद्गम स्थल सिक्किम की पहाड़ियों में स्थित त्सोमगो झील है। यह नदी सिक्किम, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश से होकर बहती है और ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती है। इस आर्टिकल में हम तीस्ता नदी का प्राचीन, मध्य और आधुनिक इतिहास को समझने की कोशिश करेंगे।

प्राचीन इतिहास

तीस्ता नदी का इतिहास बहुत पुराना है। हिन्दू पुराणों के अनुसार माना जाता है कि इस नदी का उद्गम स्थल, देवी पार्वती के स्तन है, ऐसी मान्यता है। अगर हम ‘तिस्ता’ का अर्थ देखे तो तीस्ता का मतलब ‘त्रि-स्रोता’ या ‘तीन-प्रवाह’ होता है। प्राचीन काल में ये नदी जनजाति समाज के लिए जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है।

मध्यकालीन इतिहास

मध्य-कालीन समय में तीस्ता नदी का महत्व और भी ज़्यादा हो गया था क्योंकि ब्रिटिश शासन में इस नदी का उपयोग व्यापार और यातायात के लिए किया जाता था। अंग्रेजों ने इसपर कई पुल, बांध और बंदरगाह बनाए थे, जो सामान इधर से उधर लाने ले जाने में यूस आते थे। इसी समय में इस नदी के आसपास कई छोटे-बड़े बाज़ार भी विकसित हुए थे।

आधुनिक इतिहास

भारत को आजादी मिलने के बाद से इस नदी का हमारे देश के लिए महत्व और भी बढ़ गया है। भारत सरकार की कई महत्वपूर्ण बिजली योजनाये इसी नदी के किनारो पर चल रही है और स्थानीय लोगों को बिजली और रोजगार उपलब्ध करा रही है। दरअसल तीस्ता नदी भारत और बांग्लादेश, दोनों के लिए ही बहुत मह्त्वपूर्ण है और इसीलिए दोनों देशों के बीच इस नदी के पानी के बटवारें को लेकर अक्सर विवाद होता रहता है।

तीस्ता नदी की सहायक नदियाँ

  1. रानी खोला नदी: यह नदी सिक्किम राज्य में बहती है और तीस्ता नदी में मिलती है।
  2. रांगपो नदी: यह नदी भी सिक्किम में बहती है और तीस्ता की एक महत्वपूर्ण सहायक नदी है।
  3. लांचू नदी: यह नदी सिक्किम के पहाड़ी क्षेत्रों से होकर बहती है और तीस्ता में मिलती है।
  4. दिक्षु नदी: यह नदी भी सिक्किम में बहती है और तीस्ता नदी की एक सहायक नदी है।

तीस्ता नदी जल समझौता

तीस्ता नदी का पहला जल समझौता भारत और बांग्लादेश के बीच एक महत्वपूर्ण और विवादित मुद्दा रहा है। इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच जल वितरण को सही और तरीके से निर्धारित करना है, ताकि दोनों देशों के किसानों और जनता को पर्याप्त पानी मिल सके।

समझौता का इतिहास

घटनाविवरण
पहला तीस्ता नदी जल समझौता (1815)नेपाल के राजा ने नदी का बड़ा हिस्सा अंग्रेजों को सौंपा।
1947 की मांगऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी को पूर्वी पाकिस्तान में शामिल करने की मांग की।
कांग्रेस और हिंदू महासभा का विरोधकांग्रेस और हिंदू महासभा ने इस मांग का विरोध किया, जिससे तीस्ता का ज्यादातर हिस्सा भारत को मिला।
1971 में मामला उभराबांग्लादेश के गठन के बाद पानी के बंटवारे का मामला फिर से उभरा।
संयुक्त नदी आयोग (1972)भारत-बांग्लादेश संयुक्त नदी आयोग का गठन।
अस्थाई सहमति (1983)इस नदी का 36% पानी बांग्लादेश और 39% पानी भारत को मिला, बाकी अन-डिवाइडेड रहा।

तीस्ता नदी की विशेषता

तीस्ता नदी भारत और बांग्लादेश दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह नदी न केवल दोनों देशों के लिए जल का एक बड़ा सोर्स है, बल्कि तीस्ता दोनों देशों में खेती, बिजली, मछलीपालन, व्यापार और रोजगार की दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। नीचे दी गई जानकारी में हम खेती और सिंचाई, बिजली परियोजनाएँ, मछली पालन, पर्यटन उद्योग, और नदी परिवहन और व्यापार में इस नदी की भूमिका पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

कृषि और सिंचाई

  • तीस्ता नदी का पानी भारत और बांग्लादेश दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।
  • इसके पानी से दोनों देशों में हजारों एकड़ खेती की जमीन की सिंचाई होती है।
  • पश्चिम बंगाल के पूर्वी हिस्से के किसान सिंचाई के लिए तीस्ता नदी पर निर्भर रहते हैं।
  • तीस्ता बैराज परियोजना से हज़ारों हेक्टेयर खेती को सिंचाई के लिए पानी मिलता है।
  • पश्चिम बंगाल के किसान धान, गेहूँ, मक्का, और सब्जियाँ उगाते हैं।
  • बांग्लादेश के उत्तरी हिस्सों में भी तीस्ता नदी का पानी कृषि के लिए महत्वपूर्ण है।
  • बांग्लादेश में तीस्ता के पानी से हजारों हेक्टेयर खेती की सिंचाई होती है।
  • बांग्लादेश की कृषि अर्थव्यवस्था में तीस्ता का महत्वपूर्ण योगदान है, विशेषकर धान की खेती में।

जलविद्युत परियोजनाओं में योगदान

  • भारत सरकार ने तीस्ता नदी पर कई महत्वपूर्ण जलविद्युत योजनाएँ स्थापित की हैं।
  • ये योजनाएँ बिजली उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • ये योजनाएँ स्थानीय रोजगार भी प्रदान करती हैं।
  • पश्चिम बंगाल और सिक्किम में तीस्ता नदी पर III, IV, और VI चरण में जलविद्युत योजनाएँ शुरू की गई हैं।
  • इन योजनाओं से दोनों राज्यों की बिजली मांग और रोजगार की जरूरतें पूरी होती हैं।
  • बांग्लादेश में तीस्ता नदी से बनने वाली बिजली की संख्या बहुत कम है।
  • बांग्लादेश में इस नदी के विकास की बहुत संभावनाएँ हैं।
  • बांग्लादेश सरकार तीस्ता नदी पर बांध बनाकर बिजली घर बनाने पर विचार कर रही है।

मत्स्य पालन और स्थानीय अर्थव्यवस्था

  • यह नदी मछलियों का एक समृद्ध स्रोत है।
  • इस नदी से निकलने वाली मछलियाँ स्थानीय लोगों को भोजन और रोजगार प्रदान करती हैं।
  • यह नदी भारत और बांग्लादेश के किसानों के साथ-साथ मछुआरों के लिए भी महत्वपूर्ण है।
  • मछली से जुड़े उद्योगों के लिए तीस्ता नदी वरदान के समान है।

पर्यटन उद्योग

  • तीस्ता नदी की प्राकृतिक सुंदरता लोगों को आकर्षित करती है।
  • स्थानीय प्रशासन ने नदी के आसपास राफ्टिंग और ट्रैकिंग प्लेस विकसित किए हैं।
  • पर्यटक तीस्ता नदी की खूबसूरती के साथ-साथ राफ्टिंग और ट्रैकिंग का आनंद ले सकते हैं।
  • यहाँ कैम्पिंग की सुविधा भी उपलब्ध है।

नदी परिवहन और व्यापारिक मार्ग

  • किसी भी देश की नदी उसकी रीढ़ होती है।
  • तीस्ता नदी भारत और बांग्लादेश की प्यास मिटाने के साथ-साथ जल-परिवहन का महत्वपूर्ण साधन है।
  • नदियों में पानी के साथ-साथ सामान का भी परिवहन होता है।
  • तीस्ता नदी लकड़ी, कोयला, कृषि उत्पाद और अन्य जरूरी सामान के परिवहन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

तीस्ता नदी जल विवाद

विषयविवरण
विवाद का परिचय1. भारत और बांग्लादेश के बीच इस नदी के पानी के बटवारे का विवाद कई दशकों पुराना है।
2.1983 में एक अस्थाई समझौता हुआ था जिसमें बांग्लादेश को 36% और भारत को 39% पानी दिया जाना था, जबकि 25% पानी मानसून के दौरान छोड़ा जाना था।
3. यह समझौता स्थायी समाधान नहीं बन सका और विवाद जारी है।
विवाद के प्रमुख मुद्दे1. जल वितरण की असमानता: बांग्लादेश का कहना है कि भारत द्वारा बनाए गए बैराज और नहर के कारण उन्हें पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता, जिससे उनकी कृषि और सिंचाई प्रभावित होती है।
2. पानी की कमी: सूखे मौसम में तीस्ता नदी का पानी बहुत कम हो जाता है, जिससे दोनों देशों में जल संकट उत्पन्न हो जाता है।
3. बैराज और नहरें: गजोलडोबा बैराज (भारत) और तीस्ता बैराज (बांग्लादेश) दोनों ही देशों में सिंचाई के लिए बनाए गए हैं, जिससे पानी की कमी का सामना करना पड़ता है।
विवाद का प्रभाव1. कृषि पर प्रभाव: तीस्ता नदी का पानी न मिलने से बांग्लादेश में कृषि उत्पादन पर प्रभाव पड़ा है।
2. आर्थिक प्रभाव: जल विवाद के कारण दोनों देशों की आर्थिक गतिविधियों पर असर पड़ता है। 3. राजनीतिक तनाव: तीस्ता जल विवाद दोनों देशों के बीच राजनीतिक तनाव का कारण बना हुआ है।
समाधान के प्रयास1. वार्ता और समझौते: कई बार वार्ता और समझौतों के प्रयास किए गए हैं, लेकिन स्थायी समाधान नहीं निकल सका है।
2. संयुक्त जल प्रबंधन: विशेषज्ञों का मानना है कि तीस्ता नदी के पानी का प्रबंधन ठीक ढंग से किया जाना चाहिए।
3. वैकल्पिक फसलों की खेती: कम जल-उपयोग वाली फसलों की खेती को बढ़ावा देना चाहिए।

जलवायु परिवर्तन और तीस्ता नदी विवाद पर प्रभाव (सरल और मानवीय शैली में)

1. ग्लेशियरों का तेज़ी से पिघलना:
तीस्ता नदी की शुरुआत सिक्किम की त्सो ल्हामो झील से होती है, जो बर्फीले ग्लेशियरों से जुड़ी है। लेकिन पिछले कुछ सालों में जलवायु परिवर्तन की वजह से ये ग्लेशियर पहले से ज़्यादा तेज़ी से पिघलने लगे हैं। इसका असर सीधा नदी के बहाव पर पड़ता है — कभी बहुत ज़्यादा पानी, तो कभी बिल्कुल कम।

2. मौसम के साथ पानी का बिगड़ता संतुलन:

  • गर्मियों में, जब बर्फ पिघलती है, तो तीस्ता में अचानक पानी का बहाव इतना बढ़ जाता है कि बाढ़ जैसी स्थिति बन जाती है।
  • वहीं सर्दियों या सूखे के दिनों में, नदी में पानी इतना कम हो जाता है कि खेत सूखने लगते हैं और लोगों को ज़रूरत भर का पानी भी नहीं मिल पाता।

3. जल बंटवारे की योजना पर असर:
ऐसे अस्थिर हालात में यह अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल हो गया है कि नदी में कितना पानी रहेगा। भारत और बांग्लादेश, दोनों ही देश पानी के सही बंटवारे की कोशिश करते हैं, लेकिन जब खुद नदी का स्वभाव ही बदल रहा हो, तो कोई भी योजना पूरी तरह कारगर नहीं हो पाती।

4. आम लोगों पर सीधा असर:

  • बांग्लादेश में, खासकर उत्तर के इलाकों में, जब पानी नहीं आता, तो किसान बेहाल हो जाते हैं। फसलें सूख जाती हैं, और रोज़मर्रा की ज़िंदगी मुश्किल हो जाती है।
  • वहीं, भारत के कुछ इलाकों में पानी इतना ज़्यादा हो जाता है कि बाढ़ से नुकसान होता है, पुल टूटते हैं और गाँवों का संपर्क कट जाता है।

5. विवाद को और उलझा देता है जलवायु बदलाव:
तीस्ता नदी का जल विवाद कोई नया मुद्दा नहीं है, लेकिन अब जलवायु परिवर्तन ने इसे और भी पेचीदा बना दिया है। दोनों देश चाहते हैं कि पानी का बँटवारा न्यायपूर्ण हो और भविष्य के लिए कोई स्थायी समाधान निकले, लेकिन बदलते मौसम और बहाव की अनिश्चितता इस राह को मुश्किल बना देती है।

राजनीतिक दृष्टिकोण और पश्चिम बंगाल की भूमिका (बिंदुवार में)

तीस्ता नदी
  • 2011 में तीस्ता जल समझौता लगभग तय हो गया था, जिससे बांग्लादेश को उम्मीद थी कि उसे पर्याप्त जल मिलेगा।
  • लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसका विरोध किया, जिससे समझौता अंतिम रूप नहीं ले सका।
  • ममता बनर्जी ने आशंका जताई कि अधिक जल देने से उत्तर बंगाल के किसानों को सिंचाई में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
  • उनका कहना था कि इससे राज्य की कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
  • यह विरोध भारत की केंद्र और राज्य सरकार के बीच अधिकारों और जिम्मेदारियों के संतुलन को उजागर करता है।
  • चूंकि जल राज्य सूची का विषय है, इसलिए केंद्र सरकार किसी भी अंतरराष्ट्रीय जल संधि पर राज्य सरकार की सहमति के बिना निर्णय नहीं ले सकती।
  • इस वजह से तीस्ता विवाद केवल भारत-बांग्लादेश के बीच का मुद्दा न होकर, भारत के संघीय ढांचे की जटिलता से भी जुड़ गया है।
  • अब यह स्पष्ट है कि इस विवाद का समाधान तभी संभव है जब राज्य और केंद्र दोनों मिलकर कोई साझा रणनीति बनाएं।

स्थानीय समुदायों पर प्रभाव (विस्तृत रूप में)

1. बांग्लादेश के ग्रामीण इलाकों में सूखे की मार:
बांग्लादेश के रंगपुर, नीलफामारी और लालमोनिरहाट जैसे जिलों के किसान तीस्ता नदी पर सिंचाई के लिए पूरी तरह निर्भर हैं।

  • जब नदी में पानी कम हो जाता है, तो इन इलाकों में धान और सब्ज़ियों की खेती प्रभावित होती है।
  • किसान अक्सर कर्ज में डूब जाते हैं, क्योंकि पानी की कमी से फसलें नहीं हो पातीं और उनकी मेहनत बेकार चली जाती है।
  • यह स्थिति खासकर सर्दियों (रबी मौसम) में ज्यादा गंभीर हो जाती है, जब नदी में पानी बहुत कम रह जाता है।

2. भारत के सीमावर्ती जिलों की स्थिति:
भारत के जलपाईगुड़ी, कूचबिहार और अलीपुरद्वार जैसे जिलों में भी तीस्ता नदी एक प्रमुख जल स्रोत है।

  • यहां के किसान सिंचाई के लिए गजोलडोबा बैराज से निर्भर रहते हैं, जो तीस्ता पर ही बना है।
  • बारिश न होने या नदी में बहाव कम होने पर पेयजल और खेती दोनों पर संकट मंडराने लगता है।
  • इसके कारण कई बार किसानों को डीजल पंप या टैंकरों से पानी लेना पड़ता है, जो आर्थिक रूप से बोझ बढ़ाता है।

3. मछुआरे और मजदूर वर्ग की चुनौतियाँ:

  • तीस्ता नदी में मत्स्य पालन से हज़ारों परिवारों की रोज़ी-रोटी जुड़ी हुई है, खासकर सिक्किम, बंगाल और बांग्लादेश में।
  • जब पानी कम होता है या नदी में बहाव असामान्य होता है, तो मछलियों की संख्या घट जाती है, जिससे मछुआरों की आमदनी पर असर पड़ता है।
  • नदी किनारे रहने वाले मजदूरों को भी निर्माण, राफ्टिंग, नाव चलाने जैसे कार्यों में रोजगार मिलता है, जो जल संकट के समय ठप हो जाते हैं।

4. सामाजिक तनाव और पलायन का खतरा:

  • जल संकट के कारण कई परिवार दूसरे इलाकों की ओर पलायन करने को मजबूर हो जाते हैं।
  • ग्रामीण इलाकों में सामाजिक असंतोष, जल विवाद और सरकार के प्रति नाराजगी भी बढ़ जाती है।

निष्कर्ष

तीस्ता नदी केवल एक जलधारा नहीं है, बल्कि यह लाखों लोगों की जीवन रेखा है। इसका ऐतिहासिक, आर्थिक और सामाजिक महत्व है। इस नदी के पानी पर भारत और बांग्लादेश, दोनों ही देशों के हजारों लोग निर्भर है इसलिए तीस्ता नदी जल विवाद का समाधान दोनों देशों के हित में होगा और इससे क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा मिलेगा। हमें इस प्राकृतिक धरोहर को सहेज कर रखना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इसका लाभ उठा सकें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

तीस्ता नदी कहाँ स्थित है?

यह नदी भारत के सिक्किम और पश्चिम बंगाल राज्यों के साथ-साथ बांग्लादेश से होकर बहती है।

तीस्ता नदी कौन से ग्लेशियर से निकलती है?

यह नदी का उद्गम सिक्किम में स्थित त्सो ल्हामो झील से होता है.

क्या तीस्ता पहले गंगा की सहायक नदी थी?

तीस्ता ब्रह्मपुत्र नदी की सहायक नदी है। दिबांग, लोहित, धनसिरी, सुबानसिरी और मानस भी ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियाँ हैं। यह नदी मानसरोवर झील के पास चेमायुंगडुंग ग्लेशियर से निकलती है। इसे तिब्बत में त्सांगपो, अरुणाचल प्रदेश में दिहांग या सियांग, असम में ब्रह्मपुत्र और बांग्लादेश में जमुना के नाम से जाना जाता है।

तीस्ता नदी जल विवाद क्या है?

हिमालय से निकलने वाली यह नदी, जो सिक्किम और पश्चिम बंगाल से होकर असम में ब्रह्मपुत्र (बांग्लादेश में जमुना) में मिलती है, के जल का बंटवारा भारत और बांग्लादेश के बीच संभवतः सबसे बड़ा विवाद है।

क्या तीस्ता नदी ने कभी पर्यावरणीय संकट उत्पन्न किया है?

हाँ, तीस्ता नदी पर बने बांधों और जल बंटवारे के कारण इसके प्राकृतिक बहाव में बदलाव आया है। इससे पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित हुआ है — मछलियों की प्रजातियाँ घटी हैं, जैव विविधता कम हुई है और कई इलाकों में भूमि कटाव भी देखा गया है। इंसानी हस्तक्षेप से नदी का संतुलन बिगड़ता जा रहा है, जो पर्यावरण के लिए चिंता का विषय है।

Authored by, Aakriti Jain
Content Curator

Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.

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