भारत के आर्थिक विकास में पंचवर्षीय योजनाओं का अहम योगदान रहा है।
ये योजनाएं भारत सरकार द्वारा देश के आर्थिक, सामाजिक और औद्योगिक विकास के लिए बनाई गई दीर्घकालिक रणनीतियां होती हैं।
आमतौर पर ये योजनाएं पाँच साल की अवधि के लिए बनाई जाती हैं, इसलिए इन्हें पंचवर्षीय योजना कहा जाता है।
Table of Contents
पंचवर्षीय योजना, जिसे अंग्रेजी में फाइव ईयर प्लान कहा जाता है, भारत सरकार द्वारा देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति को बढ़ावा देने के लिए हर पाँच साल में तैयार की जाने वाली एक महत्वपूर्ण योजना है। इन योजनाओं का मुख्य लक्ष्य भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करना और नागरिकों के जीवन स्तर को बेहतर बनाना है।
भारत में आर्थिक विकास की दिशा में पंचवर्षीय योजनाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन योजनाओं का प्राथमिक उद्देश्य आर्थिक, सामाजिक और बुनियादी ढांचे के विकास को प्रोत्साहित करना है। स्वतंत्रता के बाद, भारत ने 1951 में अपनी पहली पंचवर्षीय योजना शुरू की, और तब से अब तक कुल 12 पंचवर्षीय योजनाएं लागू की जा चुकी हैं। इस ब्लॉग में हम पंचवर्षीय योजना की परिभाषा, इसके उद्देश्य, विभिन्न योजनाओं की सूची और इससे संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियों पर चर्चा करेंगे।
पंचवर्षीय योजना क्या है? | Panchvarshiya Yojanaen Kya Hai
सबसे पहले हम ये समझने की कोशिश करेंगे कि पंचवर्षीय योजना क्या है पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य क्या होता है? दरअसल पंच वर्षीय योजना एक ऐसी योजना होती है जिसमे अगले पांच वर्षो के विकास कार्यो का रोडमैप तैयार किया जाता है। इन योजनाओं के माध्यम से सरकार कृषि, उद्योग, विज्ञान, तकनीकी, शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में विकास के लक्ष्यों को निर्धारित करती है और उन्हें प्राप्त करने के लिए आवश्यक नीतियाँ बनाती है।
वर्तमान में, भारत सरकार ने 2017 से नीति आयोग के जरिए ‘आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए राष्ट्रीय रणनीति’ को लागू किया है।
पंचवर्षीय योजनाओं का इतिहास | Panchvarshiya Yojanaen History in Hindi
अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिये नियोजन के विचार को 1940 और 1950 के दशक में पूरे विश्व में जनसमर्थन मिला था।
वर्ष 1944 में उद्योगपतियों का एक समूह एकजुट हुआ जिसने भारत में नियोजित अर्थव्यवस्था की स्थापना हेतु एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया। इसे ‘बॉम्बे प्लान’ कहा जाता है।
भारत की स्वतंत्रता के बाद ही नियोजित विकास को देश के लिये एक महत्त्वपूर्ण विकल्प के रूप में देखा जाने लगा।
जोसेफ स्टालिन प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने सोवियत संघ में वर्ष 1928 में पंचवर्षीय योजना को लागू किया।
भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था के निर्माण और विकास को प्राप्त करने के लिये स्वतंत्रता के बाद पंचवर्षीय योजनाओं (FYPs) की एक शृंखला शुरू की।
पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य
पंच वर्षीय योजनाओं का मुख्य उद्देश्य देश के आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देना है। इन योजनाओं के कुछ मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
आर्थिक और सामाजिक विकास
पंचवर्षीय योजनाओं का मुख्य उद्देश्य देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करना और समाज के सभी वर्गों को लाभ पहुंचाना है। इसमें रोजगार सृजन, गरीबी उन्मूलन, और समृद्धि बढ़ाने के लिए नीतियाँ बनाई जाती हैं।
सामाजिक विकास: गरीबी में कमी लाना, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और बुनियादी ढांचे को सुधारना।
बुनियादी ढांचे का विकास
पंच वर्षीय योजनाओं के तहत सड़कों, पुलों, बांधों, रेलवे, बिजली, और पानी की सुविधाओं का विकास किया जाता है। इससे देश के बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाया जाता है और औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
विज्ञान और तकनीकी प्रगति
विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में प्रगति करना भी पंच वर्षीय योजनाओं का महत्वपूर्ण उद्देश्य है। इसके तहत अनुसंधान और विकास, नई तकनीकी का उपयोग, और विज्ञान के क्षेत्र में नवाचार को प्रोत्साहित किया जाता है।
आत्मनिर्भरता: देश को आत्मनिर्भर बनाना, अर्थात् विदेशी निर्भरता को कम करना।
मानव संसाधन का विकास
मानव संसाधन का विकास पंच वर्षीय योजनाओं का एक और महत्वपूर्ण उद्देश्य है। इसके तहत शिक्षा, स्वास्थ्य, और कौशल विकास के कार्यक्रम चलाए जाते हैं ताकि मानव संसाधनों की गुणवत्ता को बढ़ाया जा सके और उन्हें राष्ट्र निर्माण में शामिल किया जा सके।
आर्थिक विकास: उत्पादन, आय और रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना, जिससे देश की अर्थव्यवस्था सशक्त हो सके।
पंचवर्षीय योजनाओं की उपलब्धियाँ | Five Year Plan in Hindi
घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिए आयात पर शुल्क लगाया गया।
लक्षित वृद्धि दर 4.5% थी, जबकि वास्तविक विकास दर 4.27% रही।
3. तृतीय पंचवर्षीय योजना (1961-1966) | 3rd Panchvarshiya Yojana Model in Hindi
नेतृत्व- जवाहरलाल नेहरू
इस योजना ने कृषि और गेहूँ के उत्पादन में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया। राज्यों को विकास संबंधी अतिरिक्त उत्तरदायित्व सौंपे गए।
ज़मीनी स्तर तक लोकतंत्र की पहुंच बढ़ाने के लिए पंचायत चुनाव की शुरुआत की गई।
लक्षित वृद्धि दर 5.6% थी, जबकि वास्तविक विकास दर केवल 2.4% रही।
योजना अवकाश (1966-69) की घोषणा की गई।
4. चतुर्थ पंचवर्षीय योजना (1969-1974)
नेतृत्व- इंदिरा गांधी
इसे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान पेश किया गया।
स्थिरता के साथ विकास और आत्मनिर्भरता पर जोर दिया गया।
14 प्रमुख भारतीय बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया।
हरित क्रांति ने कृषि को बढ़ावा दिया।
सूखा संभावित क्षेत्र कार्यक्रम (Drought Prone Area Programme) शुरू किया गया।
लक्षित वृद्धि दर 5.6% थी, जबकि वास्तविक विकास दर 3.6% रही।
5. पाँचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-1978)
इस योजना ने रोजगार बढ़ाने और गरीबी उन्मूलन पर जोर दिया।
विद्युत आपूर्ति अधिनियम में संशोधन किया गया, जिससे केंद्र सरकार बिजली उत्पादन और पारेषण में प्रवेश कर सकी।
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्रणाली की शुरुआत की गई। न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम (Minimum Needs Programme-MNP) शुरू किया गया।
लक्षित विकास दर 4.4% थी, जबकि वास्तविक विकास दर 4.8% रही।
वर्ष 1978 में मोरारजी देसाई सरकार ने इस योजना को खारिज कर दिया।
5.5 रोलिंग प्लान (1978-1980)
यह अस्थिरता का दौर था। जनता पार्टी सरकार ने पाँचवीं पंचवर्षीय योजना को खारिज कर दिया और एक नई छठी पंचवर्षीय योजना प्रस्तुत की।
इंदिरा गांधी के पुनः प्रधानमंत्री बनने पर, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इसे खारिज कर दिया।
रोलिंग प्लान की प्रभावशीलता का मूल्यांकन वार्षिक रूप से किया जाता था।
6. छठी पंचवर्षीय योजना (1980-1985)
नेतृत्व- इंदिरा गांधी
इसने आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की।
नेहरूवादी समाजवाद का अंत हुआ।
परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू किया गया।
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक- नाबार्ड की स्थापना की गई।
लक्षित विकास दर 5.2% थी, जबकि वास्तविक विकास दर 5.7% रही।
7. सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90)
नेतृत्व- राजीव गांधी
यह योजना प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान प्रस्तुत की गई।
प्रौद्योगिकी के उपयोग से औद्योगिक उत्पादकता में सुधार पर जोर दिया गया।
गरीबी-विरोधी कार्यक्रमों और आधुनिक प्रौद्योगिकी के उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया गया।
लक्षित वृद्धि दर 5.0% थी, जबकि वास्तविक विकास दर 6.01% रही।
7.5 वार्षिक योजनाएँ(1990-1992)
आठवीं पंचवर्षीय योजना वर्ष 1990 में शुरू नहीं की गई।
आर्थिक अस्थिरता के कारण, भारत ने उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की शुरुआत की।
8. आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-1997)
नेतृत्व- पी.वी. नरसिम्हा राव
उद्योगों के आधुनिकीकरण को बढ़ावा दिया।
1 जनवरी, 1995 को भारत WTO का सदस्य बना।
जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने, गरीबी कम करने, रोजगार सृजन और बुनियादी ढाँचे के विकास पर जोर दिया।
लक्षित वृद्धि दर 5.6% थी, जबकि वास्तविक विकास दर 6.8% रही।
9. नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002)
नेतृत्व- अटल बिहारी वाजपेयी
स्वतंत्रता के पचास वर्षों को चिह्नित किया गया।
गरीबी उन्मूलन, सामाजिक क्षेत्रों के लिए समर्थन और तीव्र विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया।
लक्षित विकास दर 7.1% थी, जबकि वास्तविक विकास दर 6.8% रही।
10. दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-2007)
नेतृत्व- अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह
समावेशी और समान विकास को बढ़ावा दिया।
प्रति वर्ष 8% GDP विकास दर का लक्ष्य रखा।
गरीबी को 50% तक कम करना और रोजगार का सृजन करना था।
लक्षित विकास दर 8.1% थी, जबकि वास्तविक वृद्धि 7.6% रही।
11. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012)
नेतृत्व- मनमोहन सिंह
उच्च शिक्षा और दूरस्थ शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया।
तीव्र और अधिक समावेशी विकास को प्राथमिकता दी गई।
पर्यावरणीय स्थिरता और लैंगिक असमानता में कमी लाने पर जोर दिया गया।
लक्षित विकास दर 9% थी, जबकि वास्तविक विकास दर 8% रही।
12. बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017)
नेतृत्व- मनमोहन सिंह
तीव्र, अधिक समावेशी और धारणीय विकास” पर ध्यान केंद्रित किया।
बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को मज़बूत करना और सभी गाँवों को बिजली आपूर्ति प्रदान करना था।
स्कूल में प्रवेश के संदर्भ में लैंगिक और सामाजिक अंतराल को दूर करना था।
लक्षित वृद्धि दर 9% थी, लेकिन राष्ट्रीय विकास परिषद ने 8% की वृद्धि दर को मंज़ूरी दी।
पंचवर्षीय योजना नोट्स | Panchvarshiya Yojanaen Notes
पंचवर्षीय योजनाएं भारत के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं। लेकिन, इन योजनाओं की सफलता या असफलता कई अलग-अलग कारकों पर निर्भर करती है। कुछ योजनाएं अपने निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल रहीं, वहीं अन्य योजनाएं विभिन्न कारणों से अपने उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पाईं।
योजनाओं की सफलता और असफलताएं
पंच वर्षीय योजनाओं की सफलता और असफलता निम्न है-
सफलताएं
कृषि उत्पादन में वृद्धि: पहली और दूसरी पंच वर्षीय योजनाओं के तहत कृषि उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
हरित क्रांति: चौथी पंच वर्षीय योजना के दौरान हरित क्रांति की शुरुआत हुई जिससे भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बना।
औद्योगिक विकास: दूसरी और तीसरी योजनाओं के दौरान भारी उद्योगों की स्थापना से औद्योगिक क्षेत्र में विकास हुआ।
रोजगार सृजन: छठी और सातवीं योजनाओं के तहत राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम (NREGP) और अन्य रोजगार सृजन योजनाएं शुरू की गईं।
मानव संसाधन विकास: आठवीं और नौवीं योजनाओं के दौरान शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए कई कार्यक्रम चलाए गए।
असफलताएं
वित्तीय संसाधनों की कमी: कई योजनाएं वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण अपने लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पाईं।
नीति निर्धारण में समस्याएं: नीति निर्धारण में समस्याओं के कारण कई योजनाओं का कार्यान्वयन प्रभावी नहीं हो पाया।
भ्रष्टाचार: भ्रष्टाचार के कारण कई योजनाएं अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में असफल रहीं।
प्राकृतिक आपदाएं: प्राकृतिक आपदाओं के कारण भी कई योजनाएं अपने लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकीं।
प्रशासनिक विफलताएं: प्रशासनिक ढांचे की कमजोरियों के कारण भी कई योजनाओं का सफल कार्यान्वयन नहीं हो पाया।
पंचवर्षीय योजनाओं की चुनौतियाँ और सुधार
पंचवर्षीय योजनाओं के सामने कई चुनौतियाँ रही हैं, जिनमें आर्थिक अस्थिरता, राजनीतिक अड़चने, और क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार शामिल हैं। सुधार प्रक्रिया के तहत, अधिक पारदर्शिता, प्रभावशाली योजना प्रबंधन, और नीतिगत सुधारों की आवश्यकता महसूस की जा रही है, ताकि योजनाओं का सही और प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन सुनिश्चित हो सके।
योजनाओं की कार्यान्वयन में बाधाएँ
वित्तीय संसाधनों की कमी: योजनाओं के कार्यान्वयन में वित्तीय संसाधनों की कमी एक प्रमुख बाधा होती है। वित्तीय संसाधनों का सही उपयोग और वितरण सुनिश्चित करना आवश्यक होता है।
भ्रष्टाचार: भ्रष्टाचार भी योजनाओं के कार्यान्वयन में एक बड़ी बाधा है। इससे योजनाओं के लक्ष्यों को प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है।
नीति निर्धारण में समस्याएं: नीति निर्धारण में समस्याओं के कारण भी योजनाओं का कार्यान्वयन प्रभावी नहीं हो पाता।
प्रशासनिक ढांचे की कमजोरियां: प्रशासनिक ढांचे की कमजोरियों के कारण भी कई योजनाओं का सफल कार्यान्वयन नहीं हो पाता।
प्राकृतिक आपदाएं: प्राकृतिक आपदाएं भी योजनाओं के कार्यान्वयन में बाधा डालती हैं।
योजनाओं का वित्तीय प्रबंधन
पंचवर्षीय योजनाओं का वित्तीय प्रबंधन एक महत्वपूर्ण चुनौती होती है। वित्तीय संसाधनों का सही उपयोग और वितरण सुनिश्चित करना आवश्यक होता है ताकि योजनाओं के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके। वित्तीय प्रबंधन के तहत निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
वित्तीय निगरानी: योजनाओं के लिए वित्तीय संसाधनों की निगरानी और उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए मजबूत वित्तीय निगरानी तंत्र की आवश्यकता होती है।
पारदर्शिता: वित्तीय संसाधनों के उपयोग में पारदर्शिता सुनिश्चित करना आवश्यक होता है ताकि भ्रष्टाचार को रोका जा सके।
वित्तीय योजना: वित्तीय योजना बनाते समय सभी संभावित वित्तीय संसाधनों का आकलन और उनके सही उपयोग की योजना बनाई जानी चाहिए।
वित्तीय संसाधनों का वितरण: वित्तीय संसाधनों का सही वितरण सुनिश्चित करना आवश्यक होता है ताकि सभी क्षेत्रों को समान रूप से विकास का लाभ मिल सके।
वित्तीय प्रबंधन का प्रशिक्षण: वित्तीय प्रबंधन के क्षेत्र में प्रशासनिक कर्मचारियों को प्रशिक्षण देना आवश्यक होता है ताकि वे योजनाओं का सही तरीके से प्रबंधन कर सकें।
पोस्ट-प्लान युग: पॉलिसी का नया ढांचा
भारत में 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012–17) समाप्त होने से ही पंचवर्षीय योजनाएं बंद कर दी गईं। इससे योजना आयोग (Planning Commission) का अस्तित्व समाप्त हो गया और 1 जनवरी 2015 से इसे NITI Aayog ने प्रतिस्थापित किया I
अब पंचवर्षीय योजनाओं की जगह 3‑साल कार्ययोजना, 7‑साल रणनीति दस्तावेज़ और 15‑साल विजन डॉक्यूमेंट जैसे लम्बी अवधि की रूपरेखाएँ काम कर रही हैं I
NITI Aayog vs Planning Commission — नया मॉडल
बिंदु
Planning Commission
NITI Aayog
स्थापना
15 मार्च 1950
1 जनवरी 2015
भूमिका
केंद्र सरकार के अधीन योजना निर्माण एवं निधि आवंटन
सलाहकार संस्था, ‘Bottom‑Up’ दृष्टिकोण, राज्यों की भागीदारी
वित्तीय अधिकार
मंत्रालयों व राज्यों को सीधे फंड देना
वित्तीय अधिकार वित्त मंत्रालय के पास; नीति मार्गदर्शन प्रदान करता है
पंचवर्षीय योजना से जुड़े महत्वपूर्ण अतिरिक्त विषय | Panchvarshiya Yojana in hindi
1. राज्य-स्तरीय दृष्टिकोण
भारत की पंचवर्षीय योजनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर बनीं, लेकिन उनका असर राज्यों पर अलग-अलग दिखा।
पंजाब और हरियाणा → हरित क्रांति से कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी।
केरल → शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन।
महाराष्ट्र → औद्योगिक विकास पर विशेष ध्यान।
2. योजना आयोग और नीति आयोग की संरचना
योजना आयोग (1950–2014) – प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष होते थे, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य इसमें शामिल होते थे। इसका काम योजनाओं का प्रारूप बनाना और संसाधनों का आवंटन करना था।
नीति आयोग (2015–वर्तमान) – यहाँ bottom-up approach अपनाई जाती है यानी राज्यों की भागीदारी अधिक होती है। इसमें तीन-वर्षीय कार्य योजना, सात-वर्षीय रणनीति और पंद्रह-वर्षीय दृष्टि दस्तावेज़ तैयार किए जाते हैं।
3. फंड आवंटन का सूत्र
गाडगिल फार्मूला (1969) – राज्यों में संसाधन बाँटने के लिए जनसंख्या, पिछड़ेपन और कर-संग्रह जैसे मानदंड अपनाए गए।
बाद में इसे संशोधित कर गाडगिल-मुखर्जी फार्मूला बनाया गया, जिससे वित्तीय वितरण और अधिक संतुलित हुआ।
4. मूल्यांकन और समीक्षा
पंचवर्षीय योजनाओं की मध्यावधि समीक्षा (Mid-Term Appraisal) की जाती थी।
संसद और स्वतंत्र समितियों के जरिए प्रगति की रिपोर्ट तैयार होती थी।
5. आपदा और बाहरी प्रभाव
1962 का चीन युद्ध और 1965-71 के पाकिस्तान युद्ध ने योजनाओं को बाधित किया।
1973 का तेल संकट और 1979 का सूखा भी योजनाओं की सफलता को प्रभावित करने वाले कारक रहे।
6. केस स्टडी
चौथी योजना → हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया।
छठी योजना → ग्रामीण रोजगार योजनाओं (NREGP) पर जोर दिया गया।
नवीं योजना → शिक्षा और स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया गया।
7. आलोचना और सीमाएँ
योजनाएँ अत्यधिक केंद्रीकृत थीं और कई बार जमीनी स्तर पर सही अमल नहीं हुआ।
भ्रष्टाचार, संसाधनों का दुरुपयोग और लक्ष्य व वास्तविकता में अंतर अक्सर सामने आया।
8. आधुनिक संदर्भ
बारहवीं योजना (2012–2017) के बाद पंचवर्षीय योजनाएँ बंद हो गईं।
अब विकास के लिए तीन-वर्षीय कार्य योजना, सात-वर्षीय रणनीति और पंद्रह-वर्षीय विज़न डॉक्युमेंट तैयार किए जाते हैं।
9. डेटा और विज़ुअलाइजेशन
योजनाओं की सफलता को तालिकाओं और ग्राफ़ के जरिए दिखाया जा सकता है।
उदाहरण: GDP वृद्धि दर (लक्ष्य बनाम वास्तविक), कृषि/उद्योग/सेवा क्षेत्र में निवेश।
10. प्रशासनिक परिवर्तन
योजना आयोग से नीति आयोग में बदलाव ने नीति-निर्माण की प्रक्रिया को ज्यादा सहभागितापूर्ण बना दिया।
अब राज्यों और केंद्र के बीच सहयोग को प्राथमिकता दी जाती है।
निष्कर्ष
इस ब्लॉग में हम पंचवर्षीय योजना क्या है, पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य, पंचवर्षीय योजनाएं पंचवर्षीय योजना नोट्स, पंचवर्षीय योजना लिस्ट और पंचवर्षीय योजना क्या है इसके बारे में विस्तार से जानेंगे।
पंचवर्षीय योजनाएं भारत के विकास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन योजनाओं के जरिए देश ने कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय उन्नति की है। हालाँकि, इन योजनाओं की सफलता के लिए ठीक नीति निर्माण, वित्तीय प्रबंधन, और प्रभावी निगरानी तंत्र की आवश्यकता होती है। देश को आत्मनिर्भर बनाने और समाज के विभिन्न वर्गों को लाभ पहुंचाने के लिए लगातार प्रयास करना आवश्यक है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
भारत में पंचवर्षीय योजनाएं कितनी हैं?
भारत में अब तक कुल 12 पंच-वर्षीय योजनाएं लागू की गई हैं। जिनमें से अंतिम 2012-2017 थी।
पंच-वर्षीय योजना का मुख्य उद्देश्य क्या था?
पंच-वर्षीय योजनाओं का मुख्य उद्देश्य देश के आर्थिक विकास को गति देना था। इन योजनाओं के माध्यम से देश में उद्योगों का विकास, कृषि उत्पादन बढ़ाना, बेरोजगारी कम करना, गरीबी दूर करना और देश को आत्मनिर्भर बनाना जैसे लक्ष्य निर्धारित किए गए थे।
सबसे सफल पंचवर्षीय योजना कौन सी थी?
प्रथम, तीसरी और छठी पंच-वर्षीय योजनाएं अपने समय में काफी सफल मानी जाती थीं।
13वीं पंचवर्षीय योजना क्या है?
भारत में अभी तक 12 पंचव-र्षीय योजनाएं लागू की गई हैं। 13वीं पंच-वर्षीय योजना अभी तक लागू नहीं हुई है।
प्रथम पंचवर्षीय योजना के जनक कौन थे?
प्रथम भारतीय प्रधान मंत्री, जवाहरलाल नेहरू ने भारत की संसद को पहली पंच-वर्षीय योजना प्रस्तुत की थी।
भारत में पंचवर्षीय योजना की अवधारणा कहां से अपनाई गई?
भारत में पंचवर्षीय योजना की अवधारणा सोवियत संघ (USSR) से अपनाई गई थी। सोवियत संघ ने 1928 में अपनी पहली पंचवर्षीय योजना शुरू की थी, और इसके सफल अनुभवों को देखते हुए भारत ने 1951 में अपनी पहली पंचवर्षीय योजना शुरू की। इसका उद्देश्य देश के आर्थिक और सामाजिक विकास को गति देना था।
श्वेत क्रांति का जनक किसे माना जाता है?
श्वेत क्रांति का जनक डॉ. वर्गीज कुरियन को माना जाता है। उन्हें “मिल्कमैन ऑफ इंडिया” के रूप में भी जाना जाता है। डॉ. कुरियन ने भारत में दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सहकारी समाजों की नींव रखी और ‘आंनद’ मॉडल की स्थापना की, जिससे भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बन गया।
भारत में कुल कितनी पंचवर्षीय योजनाएँ बनीं?
भारत में अब तक कुल 12 पंचवर्षीय योजनाएँ बनीं (1951 से 2017 तक)। इसके बाद पंचवर्षीय योजनाओं को समाप्त कर दिया गया।
पंचवर्षीय योजनाओं को समाप्त क्यों किया गया?
पंचवर्षीय योजनाएँ केंद्रीकृत और समय लेने वाली थीं। बदलती आर्थिक परिस्थितियों और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को देखते हुए 2015 में इन्हें समाप्त कर नीति आयोग द्वारा अधिक लचीला और सहभागितापूर्ण मॉडल अपनाया गया।
Authored by, Aakriti Jain Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.