बक्सर का युद्ध

बक्सर का युद्ध क्यों हुआ? | Battle of Buxar in Hindi

Published on August 14, 2025
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बक्सर का युद्ध

Quick Summary

  • बक्सर का युद्ध 22 और 23 अक्टूबर, 1764 को लड़ा गया था।
  • इस युद्ध में एक तरफ ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी थी और दूसरी तरफ बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजा-उद-दौला और मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय थे।
  • ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहती थी और बंगाल, बिहार और उड़ीसा पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहती थी।
  • बंगाल के नवाब मीर कासिम अंग्रेजों के बढ़ते हुए हस्तक्षेप से नाखुश थे और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया।
  • अवध के नवाब शुजा-उद-दौला और मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय भी अंग्रेजों के खिलाफ इस युद्ध में शामिल हुए थे।

Table of Contents

बक्सर का युद्ध 22 और 23 अक्टूबर 1764 को ईस्ट इंडिया कंपनी और भारतीय शासकों के गठबंधन के बीच लड़ा गया। इस संघर्ष में भारतीय शासकों की संयुक्त सेना को ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों पराजय का सामना करना पड़ा। यह लड़ाई हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी, और अवध के नवाब शुजा-उद-दौला, बंगाल के नवाब मीर कासिम, और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय के बीच हुई थी। इस लड़ाई में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की निर्णायक जीत हुई, जिससे उन्हें बंगाल पर तरह से अधिकार मिल गया और बंगाल प्रेसीडेंसी की स्थापना हुई |

यह लड़ाई इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके बाद ब्रिटिश शासन की शुरुआत हुई। इस लड़ाई के बाद, कंपनी बंगाल और बिहार में प्रमुख शक्ति बन गई। इसने भारत के बड़े हिस्से को अपने नियंत्रण में ले लिया। आइए जानते हैं कि बक्सर का युद्ध कब हुआ? बक्सर का युद्ध कहां हुआ था? और बक्सर का युद्ध के कारण? तो चलिए इस युद्ध के बारे में विस्तार से जानते हैं।

बक्सर का युद्ध संक्षिप्त में | Battle of Buxar

बक्सर का युद्ध
तिथि22/23 अक्टूबर 1764
स्थानबक्सर के पास
परिणामब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी की जीत
बक्सर का युद्ध संक्षिप्त में

बक्सर की लड़ाई 22 अक्टूबर, 1764 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी, जिसका नेतृत्व मेजर हेक्टर मुनरो कर रहे थे, और अवध के नवाब शुजा-उद-दौला, बंगाल के नवाब मीर कासिम और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना के बीच हुई थी। यह लड़ाई ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए एक निर्णायक जीत थी, जिसके कारण अंततः बंगाल पर उनका आधिपत्य स्थापित हुआ और बंगाल प्रेसीडेंसी की स्थापना हुई।

बक्सर की लड़ाई उस समय लड़ी गई थी जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में अपने क्षेत्रों का विस्तार कर रही थी। 1757 में, उन्होंने प्लासी की लड़ाई जीत ली थी, जिसके परिणामस्वरूप बंगाल में उनका शासन स्थापित हो गया था। हालाँकि, यह जीत अपनी चुनौतियों के बिना नहीं थी। कंपनी की सेना लगातार फ्रांसीसी और उनके सहयोगियों के साथ-साथ स्वदेशी सेनाओं के हमले का सामना कर रही थी। 1764 में बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब वजीर शुजा-उद-दौला और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय ने अंग्रेजों को बंगाल से बाहर खदेड़ने के लिए गठबंधन किया।

बक्सर का युद्ध भारतीय इतिहास में एक अहम turning point था, क्योंकि इसने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में अपने शासन की नींव मजबूत करने का अवसर दिया। इस युद्ध के बाद कंपनी ने धीरे-धीरे भारत में अपना प्रभाव और नियंत्रण बढ़ाया और अंततः 1857 तक देश के अधिकांश हिस्से पर शासन स्थापित कर लिया।

बक्सर के युद्ध का इतिहास | Historical Background Of Battle Of Buxar

  • 1757 में प्लासी की लड़ाई में जीत हासिल करने के बाद, ब्रिटिश सेना ने बंगाल की धरती पर अपनी स्थिति को मजबूत कर लिया। इस युद्ध के परिणामस्वरूप, सिराज-उद-दौला को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने मीर जाफर के कमांडर के साथ बदल दिया, जिससे वह एक कठपुतली सम्राट बन गए। मीर जाफर ने जब गद्दी संभाली, तो वह अंग्रेजों की लगातार बढ़ती मांगों का सामना नहीं कर सके। इसके परिणामस्वरूप, उन्होंने डच ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ गठबंधन कर लिया और विद्रोह कर दिया।
  • मीर जाफर गद्दी पर बैठने के बाद अंग्रेजों की लगातार बढ़ती मांगों का सामना नहीं कर सका। फलस्वरूप उसने डच ईस्ट इंडिया कंपनी से हाथ मिला लिया और विद्रोह कर दिया।
  • इसने अंग्रेजों को मीर जाफर को रुपये की पेंशन के साथ इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया। 1760 में वार्षिक पेंशन के रूप में 15000।
  • अब, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया ने मीर जाफर के दामाद मीर कासिम को बंगाल का नया नवाब बनाया।

बक्सर का युद्ध कब हुआ? | Baksar ka Yuddh kab Hua?

बक्सर की लड़ाई: 22 अक्टूबर 1764 को बक्सर की लड़ाई लड़ी गई।

बक्सर का युद्ध किसके बीच हुआ: इस लड़ाई में मीर कासिम, शुजाउद्दौला, और शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना का सामना ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना से हुआ। इस युद्ध में कंपनी की सेना ने निर्णायक विजय प्राप्त की। हार के परिणामस्वरूप, मीर कासिम को स्थायी रूप से सत्ता से बेदखल कर दिया गया, शुजाउद्दौला को अंग्रेजों के साथ संधि करनी पड़ी और शाह आलम द्वितीय को भी ईस्ट इंडिया कंपनी के संरक्षण में रहना पड़ा।

 बक्सर का युद्ध कहां हुआ था? | बक्सर का युद्ध क्यों हुआ?

बक्सर का युद्ध किसके बीच हुआ
बक्सर का युद्ध किसके बीच हुआ

आइए अब जानते हैं कि बक्सर कहाँ हुआ था? बक्सर का युद्ध भारत के बक्सर नामक स्थान पर हुआ था, जो कि गंगा नदी के दक्षिणी तट पर स्थित है, और वर्तमान में बिहार राज्य में स्थित है।

 बक्सर युद्ध का घटनाक्रम

  1. मीर कासिम: मीर कासिम बंगाल के नवाब थे, जिन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1760 में नवाब बनाया था। लेकिन जब उन्होंने कंपनी के व्यापारिक विशेषाधिकारों का विरोध किया, तो उनका और कंपनी के बीच संघर्ष बढ़ गया। अंततः, मीर कासिम को 1763 में अपनी गद्दी छोड़नी पड़ी और उन्होंने शरण लेने के लिए अवध का रुख किया। मीर कासिम की मृत्यु 8 मई 1777 को दिल्ली के पास कोतवाल में हुई, और माना जाता है कि उनकी मौत जलोदर रोग से हुई थी। वह 1760 से 1763 तक बंगाल के नवाब रहे थे।
  2. अवध के नवाब शुजाउद्दौला: मीर कासिम ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला से मदद मांगी। शुजाउद्दौला ने मीर कासिम का समर्थन किया और इस तरह ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ एक गठबंधन बना।
  3. मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय: इस गठबंधन में मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय भी शामिल हो गए, जो उस समय कंपनी के बढ़ते प्रभाव से चिंतित थे।

इसी प्रकार इस समय तक आते-आते अंग्रेजों ने अपने यूरोपीय प्रतिद्वंद्वियों पर विजय प्राप्त कर चुके थे, और इसके अलावा बंगाल में भी उन्होंने भारतीय सेना को भी कुचल दिया था। बक्सर युद्ध के बाद अब अंग्रेज बंगाल के निर्विरोध शासक बनने की राह पर आगे बढ़ चुके थे।

बक्सर का युद्ध के कारण | Causes of Battle of Buxar

बक्सर के युद्ध के कारण
बक्सर के युद्ध के कारण

बक्सर का युद्ध (Battle of Buxar) 22 अक्टूबर 1764 को लड़ा गया था। इस युद्ध के मुख्य कारणों को भौगोलिक और राजनीतिक कारणों में विभाजित किया जा सकता है। बक्सर के युद्ध (1764) के दौरान वेन्सिटार्ट 1760 से 1765 तक राज्यपाल थे।

नवाब मीर कासिम बंगाल में ब्रिटिश प्रभाव को समाप्त कर एक स्वतंत्र शासक के रूप में शासन करना चाहते थे। उन्होंने अपने शासन को मजबूत और संगठित करने का प्रयास किया। मीर कासिम ने ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा “दस्तक” (कर-मुक्त व्यापार पास) और “फरमान” के दुरुपयोग के खिलाफ कड़ा विरोध किया, जिससे कंपनी के व्यापार को नुकसान पहुंचा और वह असंतुष्ट हो गई।

अपने प्रशासनिक सुधारों के दौरान, मीर कासिम ने राजमहल और दरबार के खर्चों में कटौती की और राजस्व प्रणाली में सुधार किया। इससे स्थानीय व्यापारी और आम जनता को लाभ मिला, लेकिन इस सुधार ने अंग्रेजों के स्वार्थों पर भी चोट की।

इस दौरान, मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय और अवध के नवाब शुजाउद्दौला को ईस्ट इंडिया कंपनी की बढ़ती शक्ति और उसके मनमाने व्यापारिक नीतियों के चलते असंतोष महसूस होने लगा। उन्हें यह महसूस हुआ कि कंपनी का विस्तार उनके राजनीतिक और आर्थिक हितों के लिए एक गंभीर खतरा बनता जा रहा है। इसलिए, मीर कासिम, शाह आलम द्वितीय, और शुजाउद्दौला ने मिलकर कंपनी के खिलाफ एक साझा मोर्चा खड़ा किया।

ब्रिटिश कंपनी चाहती थी कि मीर कासिम उन्हें कुछ विशेष व्यापारिक लाभ प्रदान करें, लेकिन उन्होंने इस मांग को अस्वीकार कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, कंपनी को काफी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ा। इससे अंग्रेजों को यह सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि यदि वे बंगाल में अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं।

मीर कासिम ने अपनी सेना को सशक्त बनाने के लिए विदेश से आए कुछ विशेषज्ञों को नियुक्त किया, जिनमें से कुछ ब्रिटिश राज का विरोध कर रहे थे। यह बात अंग्रेजों के लिए एक स्पष्ट संदेश थी, जो यह दर्शाता था कि मीर कासिम उनसे सीधे चुनौती दे रहे हैं।

भौगोलिक कारण

  • बक्सर की रणनीतिक स्थिति: बक्सर, गंगा नदी के किनारे स्थित था, जो एक महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग था। इस स्थान का नियंत्रण व्यापार और सैन्य अभियानों के लिए महत्वपूर्ण था।
  • बंगाल, बिहार और अवध का मिलन बिंदु: बक्सर उन क्षेत्रों के संगम पर स्थित था जहां से बंगाल, बिहार और अवध मिलते थे। इस कारण यह क्षेत्र व्यापारिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण था।
  • जल और स्थल मार्गों का नियंत्रण: गंगा नदी के किनारे स्थित होने के कारण, बक्सर का जल मार्गों पर नियंत्रण था जो कि सैनिक और व्यापारिक गतिविधियों के लिए आवश्यक था।

राजनीतिक कारण

  • अंग्रेजों का बढ़ता प्रभाव: प्लासी के युद्ध (1757) के बाद, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था। इससे मीर कासिम, शुजाउद्दौला, और शाह आलम द्वितीय को कंपनी की बढ़ती शक्ति से खतरा महसूस होने लगा।
  • मीर कासिम की नाराजगी: मीर कासिम, बंगाल के नवाब, ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ असंतोष जताया जब उन्होंने पाया कि कंपनी उनके राज्य के संसाधनों का दोहन कर रही है। उन्होंने अंग्रेजों के साथ संघर्ष किया और अंततः उन्हें भागकर अवध में शरण लेनी पड़ी।
  • शुजाउद्दौला का समर्थन: मीर कासिम ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला से मदद मांगी, जो अंग्रेजों के बढ़ते प्रभाव से चिंतित थे। शुजाउद्दौला ने मीर कासिम का समर्थन किया और इस प्रकार एक गठबंधन बना।
  • मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय का समर्थन: शाह आलम द्वितीय भी अंग्रेजों के प्रभाव से चिंतित थे और उन्होंने इस गठबंधन में शामिल होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई का समर्थन किया।
  • ईस्ट इंडिया कंपनी की आर्थिक नीतियाँ: कंपनी की आर्थिक नीतियों ने भारतीय व्यापारियों और किसानों पर भारी कर लगाया, जिससे असंतोष बढ़ा। मीर कासिम ने इन नीतियों का विरोध किया और इसे लेकर संघर्ष बढ़ा।

 बक्सर के युद्ध का महत्व

बक्सर का युद्ध (22 अक्टूबर 1764) भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। इसका महत्व कई दृष्टिकोणों से समझा जा सकता है:

  • ब्रिटिश प्रभुत्व की स्थापना: इस युद्ध में अंग्रेजों की विजय ने भारत में उनके राजनीतिक और सैन्य प्रभुत्व को मजबूत किया। इसने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, बिहार, और उड़ीसा के विशाल क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित करने में सहायता की।
  • भारतीय रियासतों की कमजोर स्थिति: इस युद्ध ने स्पष्ट कर दिया कि भारतीय रियासतें और मुगल साम्राज्य ब्रिटिश सैन्य शक्ति का मुकाबला करने में असमर्थ थे। इससे भारतीय रियासतों की स्थिति कमजोर हो गई और अंग्रेजों के प्रति निर्भरता बढ़ गई।
  • कंपनी की राजनीतिक शक्ति: युद्ध के बाद, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी सिर्फ एक व्यापारिक संस्था से बढ़कर एक राजनीतिक शक्ति बन गई। इसे बंगाल के दीवानी अधिकार (राजस्व संग्रह का अधिकार) प्राप्त हुए, जिससे कंपनी की वित्तीय स्थिति भी मजबूत हुई।
  • प्रशासनिक सुधार: अंग्रेजों ने प्रशासनिक सुधार लागू किए, जिससे उनका नियंत्रण और प्रभाव और अधिक मजबूत हुआ। इससे भारत में ब्रिटिश शासन का आधार तैयार हुआ।

बक्सर का युद्ध के बाद हुए परिवर्तन | Changes After The Battle of Buxar

बक्सर की लड़ाई ने भारतीय इतिहास में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन किए।

  1. इसने भारत में मुगल साम्राज्य के शासन को समाप्त कर दिया।
  2. इसने मराठा साम्राज्य के उदय को जन्म दिया।
  3. इसने भारत में ब्रिटिश शासन की शुरुआत को चिह्नित किया।

बक्सर की लड़ाई भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी और इसके दूरगामी परिणाम थे।

बक्सर के युद्ध के बाद की स्थिति

बक्सर के युद्ध के बाद भारतीय उपमहाद्वीप की स्थिति में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए:

  • बंगाल में ब्रिटिश प्रभुत्व: बंगाल में मीर कासिम की हार और अंग्रेजों की जीत के बाद, बंगाल में कंपनी का प्रभाव बढ़ गया। मीर जाफर को पुनः बंगाल का नवाब बनाया गया, जो कंपनी का एक कठपुतली नवाब था।
  • मुगल सम्राट की स्थिति: शाह आलम द्वितीय को अंग्रेजों की शरण में आना पड़ा और उन्हें ब्रिटिश संरक्षण में रहना पड़ा। इससे मुगल साम्राज्य की शक्ति और प्रतिष्ठा में कमी आई।
  • अवध की स्थिति: शुजाउद्दौला को अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा और उसे भारी जुर्माना भरना पड़ा। अंग्रेजों ने अवध को एक बफर स्टेट के रूप में इस्तेमाल किया।

बक्सर के युद्ध के बाद की संधि: इलाहाबाद संधि (Treaty of Allahabad)

बक्सर के युद्ध के बाद 1765 में इलाहाबाद में दो महत्वपूर्ण संधियाँ संपन्न हुईं:

  • शाह आलम द्वितीय के साथ संधि: शाह आलम द्वितीय ने अंग्रेजों से दीवानी अधिकार (बंगाल, बिहार और उड़ीसा का राजस्व संग्रह करने का अधिकार) स्वीकार किया। इसके बदले में, अंग्रेजों ने उन्हें इलाहाबाद और कड़ा का क्षेत्र दिया और वार्षिक पेंशन भी सुनिश्चित की।
  • शुजाउद्दौला के साथ संधि:शुजाउद्दौला ने अंग्रेजों को भारी हर्जाना देने और अपनी सेना को अंग्रेजों की सेवा में रखने पर सहमति दी। उन्होंने अंग्रेजों को इलाहाबाद और कड़ा का क्षेत्र भी सौंपा।

बक्सर का युद्ध का प्रभाव और परिणाम

बक्सर का युद्ध (22 अक्टूबर 1764) भारत में ब्रिटिश सत्ता के विस्तार और स्थायित्व के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस युद्ध में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने मीर कासिम, शुजाउद्दौला और मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना को पराजित किया। इस विजय ने ब्रिटिश सत्ता को कई महत्वपूर्ण परिणाम दिए:

ब्रिटिश सत्ता पर बक्सर के युद्ध के परिणाम

  • दीवानी अधिकार: इलाहाबाद संधि (1765) के तहत, मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, बिहार, और उड़ीसा का दीवानी अधिकार (राजस्व संग्रह का अधिकार) सौंप दिया। इससे कंपनी को राजस्व का बड़ा स्रोत मिला, जिससे उनकी वित्तीय स्थिति मजबूत हुई और प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित हुआ।
  • प्रशासनिक नियंत्रण: कंपनी ने बंगाल में प्रशासनिक और न्यायिक सुधार लागू किए, जिससे उनका क्षेत्रीय नियंत्रण और सुदृढ़ हुआ। उन्होंने मीर जाफर को फिर से बंगाल का नवाब बनाया, जो एक कठपुतली नवाब था और कंपनी के निर्देशों पर काम करता था।
  • सैन्य शक्ति: बक्सर की विजय ने कंपनी की सैन्य शक्ति को प्रमाणित किया। इसने अन्य भारतीय रियासतों को भी संदेश दिया कि अंग्रेजों से टकराना कठिन है, जिससे ब्रिटिश सैन्य प्रभाव और प्रभुत्व बढ़ा।
  • राजनीतिक प्रभुत्व: बक्सर की लड़ाई ने कंपनी को एक व्यापारिक संगठन से एक राजनीतिक शक्ति में बदल दिया। इससे उन्होंने भारतीय राजनीति में सीधे हस्तक्षेप करना शुरू किया और अपने हितों के अनुसार शासन को नियंत्रित करना शुरू किया।

भारतीय राजाओं पर बक्सर के युद्ध के परिणाम

बक्सर का युद्ध भारतीय राजाओं और रियासतों पर पर गहरा प्रभाव दाल कर गया। इस युद्ध ने भारतीय राजाओं की शक्ति को कमजोर किया और उनकी राजनीतिक स्थिति को प्रभावित किया:

  • मुगल साम्राज्य की गिरावट: शाह आलम द्वितीय को अंग्रेजों की शरण में आना पड़ा और उन्होंने इलाहाबाद संधि के तहत दीवानी अधिकार कंपनी को सौंप दिए। इससे मुगल साम्राज्य की प्रतिष्ठा और शक्ति में भारी कमी आई और वे मात्र नाममात्र के सम्राट रह गए।
  • अवध की स्थिति: नवाब शुजाउद्दौला को अंग्रेजों के साथ संधि करने पर मजबूर होना पड़ा। उन्हें भारी जुर्माना भरना पड़ा और अपनी सेना को अंग्रेजों की सेवा में रखना पड़ा। इससे अवध की स्वतंत्रता पर अंकुश लगा और वे ब्रिटिश संरक्षण में आ गए।
  • स्थानीय शासकों की निर्भरता: मीर कासिम, जो बंगाल के नवाब थे, को अपनी सत्ता से हाथ धोना पड़ा और उन्हें भागकर अन्यत्र शरण लेनी पड़ी। इससे स्थानीय शासकों को यह संकेत मिला कि अंग्रेजों से संघर्ष में उनकी स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है।
  • राजनीतिक अस्थिरता: भारतीय रियासतों में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ गई। स्थानीय शासक अंग्रेजों की सत्ता और शक्ति से भयभीत हो गए और उनमें से कई ने अंग्रेजों के साथ संधियाँ करके अपने राज्यों को बचाने की कोशिश की।

इलाहाबाद की संधि(1765) क्या है?

रॉबर्ट क्लाइव, शुजा-उद-दौला और शाह आम-द्वितीय के बीच इलाहाबाद में दो महत्वपूर्ण संधियाँ संपन्न हुईं। इलाहाबाद की संधि के मुख्य बिंदु नीचे दिए गए हैं:

इलाहाबाद की पहली संधि (12 अगस्त, 1765)

  • इस संधि के माध्यम से अंग्रेजों ने मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय से बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी प्राप्त कर ली थी। यानी अब इन तीनों क्षेत्रों में राजस्व वसूल करने का कार्य ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया गया था।
  • बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी प्राप्त करने के बदले कंपनी ने यह स्वीकार किया कि वह इसके बदले मुगल बादशाह को प्रतिवर्ष 26 लाख रुपए देगी।
  • कंपनी ने अवध के नवाब से इलाहाबाद व कड़ा का क्षेत्र छीन कर मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय को सौंप दिया था।
  • इसके अलावा, मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय ने नजमुद्दौला को बंगाल का नया नवाब स्वीकार कर लिया था।

इलाहाबाद की दूसरी संधि (16 अगस्त, 1765)

  • इस संधि के तहत अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने इलाहाबाद और कड़ा के क्षेत्र मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय को दे दिए थे।
  • अंग्रेजों को इस संधि के तहत अवध के क्षेत्र में मुक्त व्यापार करने की अनुमति भी अवध के नवाब की ओर से दे दी गई थी।
  • इस संधि के तहत अवध के नवाब शुजाउद्दौला को युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में कंपनी को 50 लाख रुपए देने थे। यह राशि अवध के नवाब को दो किस्तों में चुकानी थी।
  • इसके तहत अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने बनारस के जागीरदार बलवंत सिंह को उसकी जागीर वापस लौटा दी थी।

इलाहाबाद की संधियों के परिणाम

  • इलाहाबाद की संधि के परिणाम स्वरूप अंग्रेजों को बंगाल, बिहार और उड़ीसा में राजस्व वसूल करने के कानूनी अधिकार प्राप्त हो गए थे। इसके बाद अंग्रेजों को अब भारत में अपना व्यापार करने के लिए ब्रिटेन से राशि या अन्य कीमती धातुएं लाने की आवश्यकता नहीं रह गई थी
  • अब अंग्रेज बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी से वसूली गई राशि के माध्यम से ही भारत से सस्ती दरों पर वस्तुएं खरीदते थे और उन्हें ब्रिटेन के बाजार में महंगे दाम पर बेच देते थे। इससे कंपनी को भारी मुनाफा होता था।
  • इसके अलावा, अब इन क्षेत्रों के दीवानी अधिकारों से प्राप्त हुए राजस्व के माध्यम से कंपनी भारत में कच्चा माल खरीदी थी और ब्रिटेन की कंपनियों को उसकी आपूर्ति करती थी। और फिर ब्रिटिश कंपनियों में निर्मित हुए माल को भारतीय बाजार में लाकर बेच देती थी। इसके परिणाम स्वरूप भारत में ना सिर्फ हस्तशिल्प उद्योग का पतन होता चला गया, बल्कि भारतीय संसाधनों का ब्रिटेन की ओर प्रवाह भी तेज हो गया।

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1. इलाहाबाद की संधि (1765)

  • युद्ध के बाद अगस्त 1765 में इलाहाबाद की संधि हुई।
  • शाह आलम द्वितीय ने ईस्ट इंडिया कंपनी को दीवानी अधिकार (बंगाल, बिहार और उड़ीसा में राजस्व वसूली का अधिकार) दिया और बदले में वार्षिक पेंशन तय हुई।
  • शुजा-उद-दौला को भारी जुर्माना भरना पड़ा और कुछ क्षेत्रों का नुकसान हुआ।
  • इससे ईस्ट इंडिया कंपनी एक व्यापारिक संस्था से राजनीतिक सत्ता में बदल गई।

2. प्रशासनिक प्रभाव

  • दीवानी अधिकार मिलने से कंपनी को आर्थिक और प्रशासनिक नियंत्रण मिला।
  • प्लासी (1757) के बाद सैन्य शक्ति के साथ-साथ अब नागरिक प्रशासन पर भी उनका सीधा अधिकार हो गया।

3. युद्ध से पहले की पृष्ठभूमि

  • प्रतियोगी आर्टिकल्स में मीर कासिम की नियुक्ति, उसके सुधारात्मक कदम और अंग्रेजों से असंतोष के कारण विस्तार से बताए गए हैं।
  • अनुचित व्यापारिक नीतियां, अत्यधिक कर और राजनीतिक साजिशें युद्ध के मुख्य कारण थे।

4. बक्सर का भौगोलिक महत्व

  • बक्सर, बंगाल, बिहार और अवध के संगम पर स्थित था, जिससे व्यापारिक मार्गों और सैन्य रणनीति में इसका विशेष महत्व था।

5. ऐतिहासिक महत्व

  • इतिहासकार मानते हैं कि वास्तविक सत्ता परिवर्तन का निर्णायक मोड़ प्लासी नहीं बल्कि बक्सर का युद्ध था।
  • इसने मुगलों और क्षेत्रीय शासकों की अंतिम प्रभावशाली शक्ति को तोड़ दिया।

6. मुख्य सैन्य नेता

  • अंग्रेजों की सेना का नेतृत्व मेजर हेक्टर मुनरो ने किया।
  • भारतीय पक्ष में मीर कासिम, शुजा-उद-दौला और शाह आलम द्वितीय शामिल थे।

7. युद्ध के बाद का असर

  • मुगल साम्राज्य का पतन और शाह आलम द्वितीय की अंग्रेजों पर निर्भरता बढ़ी।
  • अवध की स्वतंत्रता कम हुई और नवाब को अंग्रेजी शर्तें माननी पड़ीं।

निष्कर्ष

बक्सर के युद्ध के दौरान बंगाल का नवाब मीर जाफर था, लेकिन फरवरी 1765 में उसकी मृत्यु हो गई, फिर इलाहाबाद की संधि पर हस्ताक्षर होने के बाद यह निश्चित हो गया कि अंग्रेजों को इससे अधिकतम लाभ मिलने वाला था। बक्सर का युद्ध ईस्ट इंडिया कंपनी की जीत और शाह आलम (द्वितीय) के कब्जे के साथ समाप्त हुआ, और जाने से पहले ही ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था।

परिणाम: ईस्ट इंडिया कंपनी की विजय, जिसके बाद कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा में अपनी ताकत को मजबूत करने में सहायता मिली। इस ब्लॉग में अपने जाना की बक्सर का युद्ध क्यों हुआ, बक्सर युद्ध कब हुआ, बक्सर का युद्ध कहां हुआ था, और किसके साथ हुआ था, इलाहाबाद की संधि क्या थी और उसके क्या – क्या परिणाम रहे।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

बक्सर के युद्ध में ब्रिटिश कमांडर कौन था?

बक्सर के युद्ध में ब्रिटिश कमांडर लेफ्टिनेंट कर्नल हैस्टिंग्स था।

बक्सर के युद्ध के बाद बंगाल का शासक कौन बन गया?

युद्ध के बाद बंगाल का शासक मीर कासिम को हटाकर नवाब नजमुद्दीन को स्थापित किया गया।

बक्सर के युद्ध के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने कौन से नए कानून लागू किए?

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने इलाहाबाद संधि के तहत कई प्रशासनिक और आर्थिक सुधार लागू किए, जिसमें कर प्रणाली और व्यापार नियम शामिल थे।

बक्सर के युद्ध के प्रमुख अंग्रेज़ नेता कौन थे जिन्होंने भारतीय शासकों के खिलाफ अभियान चलाया?

प्रमुख अंग्रेज़ नेता जनरल रॉबर्ट क्लाइव और लेफ्टिनेंट कर्नल ब्राउन थे जिन्होंने भारतीय शासकों के खिलाफ अभियान चलाया।

बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों की सेना की संख्या कितनी थी?

बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों की सेना की संख्या लगभग 7,000 सैनिक थी।

बक्सर विद्रोह के नेता कौन थे?

बक्सर के युद्ध में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व मेजर हेक्टर मुनरो ने किया था।

प्लासी और बक्सर के युद्ध में क्या अंतर था?

बक्सर की लड़ाई ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना और नवाब मीर कासिम के बीच लड़ी गई थी, जिसमें दोनों पक्षों को “आकस्मिक सहयोगी” माना जाता है। 2) प्लासी की लड़ाई बंगाल में मुगलों की कमजोरी और पतन की एक लंबी अवधि के अंत में लड़ी गई थी।

Authored by, Aakriti Jain
Content Curator

Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.

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