Quick Summary
छायावाद के आधार स्तंभों में से एक माने जाने वाले जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय भी उनकी लेखनी की तरह सरल है| उनका जन्म 30 जनवरी को 1889 में काशी में हुआ था, जिसे आज के वक्त बनारस के नाम से भी जाना जाता है। जयशंकर प्रसाद ने अपने पूरे जीवन काल में हिंदी साहित्य को आगे बढ़ाने की भरपूर कोशिश की। उन्होंने घर पर रहकर ही हिंदी, संस्कृत एवं फ़ारसी भाषा एवं साहित्य की पढ़ाई की।
उनका नजरिया और सोच किसी भी आम लेखक की तुलना में ज्यादा गहरी और दूरगामी थी। जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं पढ़ कर उनकी लेखनी में उनकी साहित्यिक योग्यता देखने को मिलती है। उन्होंने कम उम्र में ही अपना पहला नाटक सज्जन लिखा था, जो बाद में 1910 ई० में प्रकाशित हुआ।
इस ब्लॉग में जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय(Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay) हिंदी में , उनके बाल्यकाल, जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं एवं प्रारंभिक जीवन के बारे में विस्तार से बताया गया है।
| विशेषता | विवरण |
| जन्म | 30 जनवरी, 1889 (वाराणसी, भारत) |
| मृत्यु | 15 नवंबर, 1937 (वाराणसी, भारत) |
| उपनाम | प्रसाद |
| अन्य नाम से जाने जाते हैं | छायावादी कवि |
| पेशा | कवि, नाटककार, उपन्यासकार, कहानी लेखक |
| साहित्यिक आंदोलन | छायावाद (रूमानीवाद) |
| भाषा | हिंदी (खड़ी बोली, हिंदी) |
| प्रसिद्ध रचनाएँ | कविता: कामयानी, कहानी कोन / नाटक: कर्ण कुमारी, स्कंदगुप्त |
| विरासत | हिंदी रूमानीवाद के “चार स्तंभों” में से एक माने जाते हैं। उनकी रचनाओं में प्रेम, राष्ट्रवाद और पौराणिक कथाओं के विषयों को शामिल किया गया। |
जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय में ये पता चलता है कि उनका जन्म और प्रारंभिक जीवन के बारे में जानेगे। काशी में जन्मे जयशंकर प्रसाद एक अच्छे घराने से ताल्लुक रखते थे। उनके परिवार के लोग व्यापार करते थे। जयशंकर प्रसाद के परिवार वाले अपने समय में कितने ज्यादा रईस थे इसका अंदाजा यहीं से लगाया जा सकता है कि पुराने समय में उनका परिवार पैसे और संपत्ति के मामले में सिर्फ काशी नरेश से पीछे था।
जानकारों का कहना है कि जयशंकर प्रसाद के पिता और बड़े भाई की समय से पहले मृत्यु हो गई थी। इसी के चलते जयशंकर प्रसाद को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी थी और वो केवल कक्षा 8 तक ही पढ़ पाए थे। कक्षा 8 में पहुंचते ही उन्हें पढ़ाई छोड़कर ना चाहते हुए भी व्यवसाय में उतरना पड़ा। लेकिन जयशंकर जी को पढ़ाई से बहुत ही ज्यादा लगाव था। इसीलिए उन्होंने ठाना कि उनके हालात कैसे भी हों पर वो किसी भी हालत में अपनी पढ़ाई पूरी करेंगे।
जयशंकर प्रसाद के जीवन परिचय से पता चलता है व्यवसाय की शुरुआत करने के बावजूद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। स्कूल छूट जाने पर उन्होंने खुद से पढ़ना शुरू किया। वो खाली समय में सिर्फ और सिर्फ पढ़ा करते थे। माना जाता है कि जयशंकर प्रसाद ने घर में रहकर ही हिंदी के साथ-साथ संस्कृत और फारसी जैसी भाषाएं सीखी। इतना ही नहीं जयशंकर प्रसाद जी ने घर में रहकर संस्कृत के अलावा फारसी भाषा भी खुद से ही सीखी। भाषा सीखने के साथ-साथ उनकी रुचि हिंदी साहित्य में कब बढ़ी इसका अंदाजा खुद उन्हें भी नहीं हुआ। जयशंकर जी ने साहित्य के साथ-साथ भारतीय दर्शन को भी खूब पढ़ा।
उनके बारे में कहा जाता है कि वो बचपन से ही बहुत ही प्रतिभाशाली बच्चे थे। और उन्होंने सिर्फ 9 वर्ष की आयु में ही अमरकोश के साथ-साथ लघु कौमुदी कंठस्थ कर लिया था। इतना ही नहीं वह 8 से 9 साल की उम्र में वो लिखने भी लगे थे।दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जयशंकर प्रसाद किसी आम बच्चों की तुलना में काफी ज्यादा चतुर, शिक्षित और समझदार थे। और उन्हें बचपन से ही पढ़ने लिखने का शौक रहा। इस शौक के चलते ही उन्होंने आगे चलकर न केवल अपनी बल्कि पूरे हिंदी साहित्य को बदलकर रख दिया।
Jaishankar Prasad ka Sahityik Parichay और कला के बल पर एक आदर्श और सामाजिक सुधारक का पद हासिल किया था। जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं भारत को एक नया आयाम दिया।

जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के प्रमुख लेखकों में से एक थे। उन्होंने कई कहानियाँ लिखीं, जो आज भी बहुत लोकप्रिय हैं। यहाँ उनकी कुछ प्रमुख कहानियों की सूची दी गई है:
| क्रम संख्या | शीर्षक |
|---|---|
| 1 | छोटा जादूगर |
| 2 | गुंडा |
| 3 | ममता |
| 4 | पुरस्कार |
| 5 | आकाशदीप |
| 6 | आंधी |
| 7 | प्रतिध्वनि |
| 8 | ग्राम |
| 9 | जहाँआरा |
| 10 | मदन मृणालिनी |
| 11 | पाप की पराजय |
| 12 | छाया |
| 13 | संगम |
| 14 | संध्या |
| 15 | सुधा |
| 16 | संग्राम |
| 17 | संगीत |
| 18 | सपना |
| 19 | संध्या |
| 20 | संध्या दीप |
| 21 | संध्या राग |
| 22 | संध्या वंदन |
| 23 | संध्या वेला |
| 24 | आकाशदीप |
कविता के अतिरिक्त प्रसाद ने गद्य साहित्य में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। उनके प्रसिद्ध नाटक हैं
‘कामना’, ‘विशाख’, ‘एक घूँट’, ‘अजातशत्रु’, ‘जनमेजय का नाग-यज्ञ’, ‘राज्यश्री’, ‘स्कंदगुप्त’, ‘सज्जन’, ‘चंद्रगुप्त’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, ‘कल्याणी’, ‘प्रायश्चित’।
उनकी कहानियाँ ‘छाया’, ‘आँधी’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘इंद्रजाल’ और ‘आकाशदीप’ नामक संग्रहों में संकलित हैं। उन्होंने ‘कंकाल’, ‘तितली’ और ‘इरावती’ जैसे उपन्यास भी लिखे, जिनमें सामाजिक और मनोवैज्ञानिक तत्वों की गहराई है। साथ ही उनका निबंध-संग्रह ‘काव्य और कला तथा अन्य निबंध’ भी साहित्यिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जयशंकर प्रसाद न केवल छायावाद के श्रेष्ठ कवि थे, बल्कि उन्होंने हिंदी साहित्य को गद्य और पद्य दोनों रूपों में समृद्ध किया। उनके साहित्य में कला, दर्शन और जीवन का सुंदर समन्वय मिलता है।
जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के प्रमुख लेखक थे, जिन्होंने कई महत्वपूर्ण कहानियाँ लिखी हैं। यहाँ उनकी कुछ प्रमुख कहानियों का विवरण दिया गया है:
जयशंकर प्रसाद की कविताएँ हिंदी साहित्य में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। यहाँ उनकी कुछ प्रमुख कविताओं की सूची दी गई है:
जयशंकर प्रसाद की कविताएँ अपने सौंदर्य, भावप्रवणता और दार्शनिक गहराई के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ जयशंकर प्रसाद की कुछ प्रमुख कविताएँ दी गई हैं:
“मानव जीवन वेदी पर, परिणय हो विरह मिलन का। सुख दुख दोनों नाचेंगे, है खेल आँख और मन का॥”
जयशंकर प्रसाद ने कई महत्वपूर्ण नाटक लिखे हैं , जो हिंदी साहित्य में बहुत प्रसिद्ध हैं । यहाँ उनके द्वारा लिखे गए प्रमुख नाटकों की सूची दी गई है

जब भी हिंदी साहित्य में नाटकों की बात आती है, जयशंकर प्रसाद की रचनाएं अनायास ही सामने आ जाती हैं। ने अपने पूरे जीवन काल में कई रचनाओं की उन्होंने कई नाटक लिखे। इसमें जयशंकर प्रसाद की रचनाएं स्कंद गुप्त , चंद्रगुप्त जैसे नाटक आज भी मशहूर है।
जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं बहुत ही रोचक हैं ।
अगर बात करें जयशंकर प्रसाद के महाकाव्य की तो प्रेम पथिक के अलावा लहर जैसे काव्य की रचना की। इसके अलावा उन्होंने झरना और आंसू के साथ-साथ कानन कुसुम और कामयानी को बड़ी खूबसूरती से लिखा है।
जयशंकर प्रसाद की कविताएं ही थी जिनके कारण हिंदी काव्य में छायावाद की स्थापना हुई। यहाँ जयशंकर प्रसाद की रचनाएं सुनने से पता चलता कि वह कितनी दूर की सोचते थे। उनके सामाजिक और ऐतिहासिक नाटकों में मनोवैज्ञानिक तौर पर संघर्ष भी दिखाया जाता था।
जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय में ये पता चलता है कि वे एक अच्छे कवि होने के साथ-साथ एक जागरूक नागरिक भी थे। और इसके लिए भी उन्होंने अपनी लेखनी का इस्तेमाल किया है। जयशंकर जी राष्ट्रीय गौरव और स्वाभिमान को अपने साहित्य में सबसे पहला स्थान देते थे। उनकी रचनाओं को पढ़कर पाठक के मन में राष्ट्रप्रेम की भावना जाग उठती है। जयशंकर जी को पढ़कर आपके अंदर देशभक्ति की भावना न जागे ऐसा हो ही नहीं सकता।
जयशंकर प्रसाद के लेखन की प्रमुख विशेषताएँ और प्रभाव निम्नलिखित बिंदुओं में संक्षेप में:
जयशंकर प्रसाद को हिंदी साहित्य में छायावाद की स्थापना का श्रेय प्राप्त है । उन्होंने खड़ी बोली में ऐसे काव्य की रचना की , जिसमें कोमलता , मधुरता और गहन भावनाओं की रसपूर्ण धारा प्रवाहित हुई । उनके काव्य में न केवल सौंदर्य और कल्पनाशीलता का समावेश हुआ , बल्कि जीवन के सूक्ष्म और व्यापक पहलुओं का प्रभावशाली चित्रण भी देखने को मिलता है ।
उनकी कविताएं प्रेरणा का स्रोत बन गईं और प्रेरक शक्तिकाव्य के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त की, जिसका चरम उत्कर्ष “कामायनी” में देखा जा सकता है। जयशंकर प्रसाद की साहित्यिक प्रतिभा ने हिंदी काव्य को नई दिशा दी। बाद की प्रगतिशील कविता और नई कविता धाराओं के कई प्रमुख साहित्यकारों और आलोचकों ने उनकी लेखनी की प्रशंसा की है। उनके योगदान के कारण ही खड़ी बोली को हिंदी काव्य की प्रमुख और मान्य भाषा के रूप में स्थापित किया गया।
जयशंकर प्रसाद के लेखन ने हिंदी साहित्य को गहराई और व्यापकता प्रदान की। उनकी कविताएं, कहानियां और नाटक विचारशीलता, मानवीयता और आध्यात्मिकता से परिपूर्ण हैं। उनके साहित्य से पाठकों को सौंदर्यबोध, चिंतन और आत्मिक अनुभव का सजीव अहसास होता है। उन्होंने हिंदी साहित्य को न केवल समृद्ध किया, बल्कि उसे एक नई चेतना और संवेदना से भी जोड़ा।
प्रसाद जी की रचनाएं समाज में व्याप्त विषमताओं, अन्याय, स्वतंत्रता, स्त्री सम्मान और धर्म-जाति जैसे विषयों पर गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं। उनका लेखन समाज में संवेदनशीलता और जागरूकता को प्रोत्साहित करता है। उन्होंने साहित्य के माध्यम से सामाजिक सुधार की भूमिका निभाई और जनमानस में सकारात्मक परिवर्तन की लहर उत्पन्न की।
उनकी रचनाओं में आध्यात्मिक तत्वों की प्रधानता है। कामायनी जैसे ग्रंथों में आत्मबोध, ध्यान, प्रेम और आध्यात्मिक अनुशीलन की झलक मिलती है। उन्होंने मानव अस्तित्व से जुड़े गूढ़ प्रश्नों को उठाया और आत्म-विकास तथा अंतर्मन की शांति का मार्ग प्रशस्त किया। उनके लेखन से पाठकों को आध्यात्मिक उन्नति और आंतरिक सौंदर्य का अनुभव होता है।
जयशंकर प्रसाद का साहित्य आज भी उतना ही प्रासंगिक और प्रभावशाली है जितना उनके समय में था। उनके साहित्यिक योगदान ने हिंदी भाषा और साहित्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है और उनका प्रभाव साहित्यिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक स्तर पर दीर्घकालीन रूप से अनुभव किया जाता है।
जयशंकर प्रसाद जी को कामायानी रचना के लिए मंगला पारितोषिक पुरस्कार से नवाजा गया था।
| पुरस्कार | विवरण |
|---|---|
| मंगला प्रसाद पारितोषिक | कामायनी महाकाव्य के लिए हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा 1938 में सम्मानित |
| पद्म भूषण | 1954 में साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए सम्मानित |
बता दें कि कामायनी जयशंकर प्रसाद जी के द्वारा रचा एक महाकाव्य है, जिसे हिंदी साहित्य की सबसे खास और सर्वश्रेष्ठ पुस्तकों में से माना जाता है। इस महाकव्य की रचना जयशंकर प्रसाद जी ने 1936 में की थी। और इस किताब का प्रकाशन 1936 में ही हुआ था। बता दें कि कामयानी कुल 15 वर्गों में विभाजित है, इस महाकव्य को जिस जिसने पढ़ा वो इस किताब की तारीफ करते नहीं थकता।
Jaishankar Prasad ka Janm kab hua Tha? जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी को 1889 में काशी में हुआ था,और उनकी मृत्यु 15 नवंबर 1937 को हुई, जिसने भारतीय साहित्य जगत के साथ साथ पूरे देश को हिलाकर रख दिया।
जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के छायावाद युग के प्रमुख कवि, नाटककार, कहानीकार और उपन्यासकार थे। उन्होंने हिंदी साहित्य को भावनात्मक गहराई, सौंदर्यबोध और दार्शनिक दृष्टिकोण प्रदान किया। उनके साहित्य में मानवता, प्रेम, देशभक्ति और भारतीय संस्कृति की महानता का अद्भुत संगम मिलता है।
उनकी रचनाएँ केवल भावनाओं की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि जीवन दर्शन और आदर्शों की प्रस्तुति भी हैं। उन्होंने भाषा को कोमलता, मधुरता और काव्यात्मक सौंदर्य से समृद्ध किया।
मुख्य कृतियाँ:
प्रसाद जी की काव्य भाषा संस्कृतनिष्ठ, भावपूर्ण और संगीतात्मक है। उनके साहित्य में मानव मन की सूक्ष्म भावनाओं और आदर्शवादी दृष्टिकोण का सुंदर समन्वय मिलता है।
जयशंकर प्रसाद का साहित्य हिंदी भाषा की समृद्धि, संवेदना और भारतीय संस्कृति की गरिमा का प्रतीक है। उन्हें “छायावाद युग का जनक” और “भावनात्मक कवि” के रूप में सदा स्मरण किया जाता है।
जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक थे। उनका जन्म 30 जनवरी 1889 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था। उनके पिता का नाम बाबू देवी प्रसाद और माता का नाम मुंशी देवी था। प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई, जहाँ उन्होंने संस्कृत, हिंदी, उर्दू और फारसी का अध्ययन किया। स्वाध्याय से उन्होंने साहित्य, दर्शन और इतिहास में गहरा ज्ञान प्राप्त किया। प्रसाद जी ने बहुत छोटी आयु से ही कविता लेखन आरंभ कर दिया था। उनकी प्रमुख काव्य रचनाएँ ‘कानन कुसुम’, ‘झरना’, ‘आंसू’ और ‘लहर’ हैं। नाटककार के रूप में भी वे प्रसिद्ध हुए, जिनमें ‘चंद्रगुप्त’, ‘स्कंदगुप्त’, ‘ध्रुवस्वामिनी’ और ‘अजातशत्रु’ उल्लेखनीय हैं। उपन्यासों में ‘कंकाल’, ‘तितली’ और ‘इरावती’ तथा कहानियों में ‘इंद्रजाल’, ‘प्रतिध्वनि’ और ‘आकाशदीप’ का विशेष महत्व है। उनकी रचनाओं में राष्ट्रप्रेम, मानवीय भावनाएँ और प्रकृति चित्रण की झलक मिलती है। उन्होंने हिंदी नाटक और काव्य को नई दिशा दी और साहित्य को राष्ट्रीय चेतना से जोड़ा। 15 नवंबर 1937 को काशी में उनका निधन हो गया। हिंदी साहित्य के इस महान कवि, नाटककार और उपन्यासकार को सदैव अमर रचनाकार के रूप में याद किया जाएगा।
जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के एक महान कवि, नाटककार, कहानीकार और निबंधकार थे। वे छायावाद युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उनका जन्म 30 जनवरी 1889 को वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में एक समृद्ध वैश्य परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम देवकीनंदन प्रसाद और माता का नाम मुन्नी देवी था। प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई, लेकिन परिवारिक परिस्थितियों के कारण उच्च शिक्षा पूरी नहीं कर सके।
जयशंकर प्रसाद ने अपने साहित्य में भारतीय संस्कृति, इतिहास, प्रेम, प्रकृति और मानव जीवन के आदर्शों को गहराई से प्रस्तुत किया। उनकी रचनाओं में कोमल भावनाएँ, सौंदर्यबोध और आध्यात्मिक चेतना का अद्भुत संगम मिलता है।
उनकी प्रमुख कृतियों में कविता-संग्रह “कामायनी”, “आँसू”, “लहर”, “झरना” शामिल हैं। नाटकों में “ध्रुवस्वामिनी”, “चंद्रगुप्त”, “स्कंदगुप्त” और “राज्यश्री” विशेष प्रसिद्ध हैं। उन्होंने कहानी साहित्य को भी नई दिशा दी, जिनमें “आंधी”, “इंद्रजाल” जैसी कहानियाँ उल्लेखनीय हैं।
जयशंकर प्रसाद का साहित्य मानवता, राष्ट्रीयता और आदर्शवाद की भावना से ओत-प्रोत है। उनका निधन 15 नवंबर 1937 को हुआ। हिंदी साहित्य में वे छायावाद युग के जनक और भावनात्मक काव्य के महान निर्माता के रूप में सदैव अमर रहेंगे।
हिंदी साहित्य में रुचि रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए जयशंकर प्रसाद का जीवन और रचनाएँ जानना आवश्यक है। जयशंकर प्रसाद (1889–1937) हिंदी साहित्य के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास और निबंध जैसी विभिन्न विधाओं में उत्कृष्ट योगदान दिया।
जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 को बिहार के सारण (सरान) जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम बाबू देवीप्रसाद जी था। प्रसाद जी अपने आत्मनिष्ठ चिंतन, यथार्थवादी दृष्टिकोण और कलात्मक अभिव्यक्ति के कारण हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं।
वे हिंदी के छायावादी आंदोलन के चार प्रमुख स्तंभों में से एक थे। उन्होंने खड़ी बोली की कविता को नई दिशा दी और उसमें भावनाओं की कोमलता, जीवन के सूक्ष्म अनुभवों तथा गहन दर्शन का सुंदर समन्वय प्रस्तुत किया। उनकी कविताओं में सौंदर्य, संवेदना और दर्शन का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
प्रसाद जी ने खड़ी बोली को हिंदी कविता की सशक्त और प्रभावशाली भाषा के रूप में स्थापित किया। यही कारण है कि प्रगतिवादी और नई कविता के आलोचकों ने भी उनकी रचनात्मक प्रभावशीलता को स्वीकार किया।
उनकी महान कृति ‘कामायनी’ के लिए उन्हें मंगलाप्रसाद पारितोषिक से सम्मानित किया गया।
इस प्रकार, जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय न केवल उनके साहित्यिक योगदान को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि उन्होंने हिंदी साहित्य को भाव, विचार और कला की दृष्टि से नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
यहां पढ़ें ऐसे ही महान लोगो की जीवन की कहानियां जो हमें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।
इस लेख के माध्यम से हमने जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय (Jaishankar Prasad ka jivan parichay) और जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं के बारे में जाना और समझा। जयशंकर प्रसाद जी की अमर कृतियों में उनकी भक्ति, समाज सुधारक दृष्टि और युवा पीढ़ी को देश प्रेम के संदेश हमें आज भी प्रेरित करने जैसी बातें सीखने को मिलती हैं। यही वजह है कि जयशंकर प्रसाद जी को आज भी न केवल देश बल्कि दुनिया भर के सबसे महान लेखकों की श्रेणी में रखा जाता है।
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जयशंकर प्रसाद छायावाद युग के कवि हैं।
जयशंकर प्रसाद प्रमुख रचनाएँ हैं – झरना, ऑसू, लहर, कामायनी, प्रेम पथिक (काव्य) स्कंदगुप्त चंद्रगुप्त, पुवस्वामिनी जन्मेजय का नागयज्ञ राज्यश्री, अजातशत्रु, विशाख, एक घूँट, कामना, करुणालय, कल्याणी परिणय, अग्निमित्र प्रायश्चित सज्जन (नाटक) छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आँधी. इंद्रजाल(कहानी संग्रह) तथा ककाल, तितली इरावती (उपन्यास)।
प्रसाद जी को आधुनिक शैली की कहानियों के क्षेत्र में अग्रणी माना जाता है। उनकी पहली कहानी ‘ग्राम’ सन् 1912 में ‘इन्दु’ पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।
जयशंकर प्रसाद को उनकी रचना ‘कामायानी’ के लिए मंगला पारितोषिक पुरस्कार मिला था। ‘कामायानी’ एक महाकाव्य है, जिसे उन्होंने 1936 में लिखा और उसी वर्ष प्रकाशित किया। यह महाकाव्य 15 वर्गों में विभाजित है।
जयशंकर प्रसाद ने आठ ऐतिहासिक, तीन पौराणिक, दो भावनात्मक , इस प्रकार कुल तेरह नाटक लिखे। नाटकों में “कामना” व “एक घूंट” को छोड़कर अन्य सभी इतिहास पर आधारित है। – उनकी पहली रचना 1918 में प्रकाशित हुई जो उन्होंने ब्रज भाषा में लिखी थी।
हिंदी साहित्य के महान कवि और लेखक जयशंकर प्रसाद का जन्म सन् 1889 ई. में वाराणसी के एक प्रतिष्ठित और समृद्ध परिवार में हुआ था। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनका जीवन कठिनाइयों से अछूता नहीं रहा—बाल्यावस्था में ही उनके पिता का देहांत हो गया, जिससे पारिवारिक जिम्मेदारियों का भार उनके कंधों पर आ गया।
इसके बावजूद उन्होंने साहित्य, कविता, नाटक और कहानी लेखन में असाधारण योगदान दिया। उनकी रचनाओं में संवेदनशीलता, गहराई और आत्मिक अनुभूति की झलक मिलती है। सन् 1937 ई. में उनका निधन हो गया, लेकिन उनका साहित्यिक योगदान आज भी हिंदी साहित्य में अमूल्य धरोहर के रूप में जीवित है।
जयशंकर प्रसाद, आधुनिक हिंदी साहित्य और रंगमंच की एक प्रतिष्ठित हस्ती थे। उन्हें उनके साहित्यिक कलम नाम प्रसाद” के रूप में भी जाना जाता है। अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत में उन्होंने “कलाधर” नाम से लेखन किया और उस समय उनकी रचनाएँ मुख्यतः ब्रजभाषा में होती थीं।
बाद में उन्होंने अपनी भाषा शैली में बदलाव करते हुए संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली हिंदी को अपनाया और छायावादी आंदोलन के प्रमुख कवि बनकर उभरे। इसी कारण उन्हें “छायावादी कवि” के रूप में भी पहचाना जाता है।
जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में हुआ था।
Authored by, Aakriti Jain
Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.
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