Quick Summary
प्रेमचंद (1880–1936) हिंदी और उर्दू साहित्य के महान कथाकार, उपन्यासकार, निबंधकार और पत्रकार थे, जिन्हें आदरपूर्वक “उपन्यास सम्राट” कहा जाता है। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, किंतु साहित्य जगत में वे प्रेमचंद नाम से विख्यात हुए। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से भारतीय समाज की गरीबी, शोषण, जातिगत भेदभाव, किसान जीवन, नारी-समस्या और स्वतंत्रता संघर्ष जैसी ज्वलंत समस्याओं को यथार्थ रूप में सामने रखा।

उनकी रचनाओं में आदर्श और यथार्थ का अद्भुत संतुलन देखने को मिलता है। उपन्यास, कहानी, नाटक, लेख, संपादन और पत्रकारिता—साहित्य की लगभग हर विधा में उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी। उनकी रचनाओं का अनुवाद अनेक भाषाओं में हुआ और उन पर फिल्में, धारावाहिक और नाट्य-मंचन भी हुए। साहित्य में उनके योगदान को देखते हुए उनके समय को ही “प्रेमचंद युग” कहा जाता है। Munshi Premchand, जिन्हें हिंदी साहित्य के स्तंभों में से एक माना जाता है, उन्हें इस क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण हस्तियों में से एक माना जाता हैं।
प्रेमचंद का जीवन परिचय एक प्रेरणादायक साहित्यिक यात्रा है। प्रेमचंद अपनी कहानियों में भारतीय समाज के चित्रण के लिए उन्हें “उपन्यास सम्राट” और “हिंदी साहित्य का मुर्शिद” भी कहा जाता है। उनका साहित्य न केवल मनोरंजन करता है बल्कि समाज के विभिन्न पहलुओं, खासकर ग्रामीण जीवन, गरीबी, शोषण और सामाजिक मुद्दों पर भी प्रकाश डालता है। प्रेमचंद साहित्यिक रचनाओं और उनके द्वारा समाज को दिए गए योगदान को दो महत्वपूर्ण पहलुओं, साहित्यिक और सामाजिक दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करता है। प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं के माध्यम से न केवल साहित्यिक उत्कृष्टता प्राप्त की, बल्कि सामाजिक परिवर्तन और सुधार के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
आगे हम Premchand ka jivan parichay और उनके बाल्यकाल एवं प्रारंभिक जीवन के बारे में विस्तार से जानेंगे।
| प्रेमचंद का जीवन परिचय(Premchand ka Jivan Parichay) | |
| नाम | धनपत राय श्रीवास्तव (प्रेमचंद) |
| जन्मदिन और स्थान | 31 जुलाई 1880 लमही, बनारस रियासत, ब्रिटिश राज वर्तमान – लमही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत |
| पिता का नाम | अजायब राय |
| माता का नाम | आनंदी देवी |
| पत्नी का नाम | शिवरानी देवी |
| संतान | श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव |
| भाषा | उर्दू, हिंदी |
| मौत | 8 अक्टूबर 1936 (उम्र 56) |
| पेशा | अध्यापक, लेखक, पत्रकार |
| राष्ट्रीयता | भारतीय |
| विधा | कहानी और उपन्यास |
| विषय | सामाजिक और कृषक-जीवन |
| आंदोलन | आदर्शोन्मुख यथार्थवाद (आदर्शवाद व यथार्थवाद) अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ |
| रचनायें | • गोदान • कर्मभूमि • रंगभूमि • सेवासदन • निर्मला • मानसरोवर आदि। |
(Premchandra ka jivan parichay)हिन्दी साहित्य के युगांतरकारी लेखक मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले स्थित लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनका असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। उनके पिता मुंशी अजायबराय डाक विभाग में कार्यरत थे और माता का नाम आनंदी देवी था। प्रेमचंद की प्रारंभिक शिक्षा फ़ारसी भाषा में हुई।
प्रेमचंद के जीवन की परिस्थितियाँ प्रारंभ से ही संघर्षपूर्ण रहीं। जब वे मात्र सात वर्ष के थे, तभी उनकी माता का देहांत हो गया। पंद्रह वर्ष की उम्र में उनका विवाह कर दिया गया और सोलह वर्ष की अवस्था में उन्होंने अपने पिता को भी खो दिया। विवाह के संबंध में प्रेमचंद ने स्वयं लिखा है कि “पिताजी ने जीवन के अंतिम समय में एक भारी भूल की और केवल स्वयं ही नहीं गिरे, बल्कि मुझे भी साथ में डुबो दिया; premchand ji ka jivan parichayउन्होंने मेरी शादी बिना समझे-बूझे करा दी।”
प्रसिद्ध साहित्यकार रामविलास शर्मा के अनुसार, प्रेमचंद का बचपन अनेक सामाजिक और पारिवारिक विसंगतियों से भरा था सौतेली माँ का व्यवहार, अल्पायु में विवाह, कर्मकांडों का दिखावा, किसानों और निम्न मध्यम वर्ग की पीड़ाएँ, इन सबका अनुभव उन्होंने बहुत कम उम्र में ही कर लिया था, और यही अनुभव उनकी रचनाओं में प्रखर यथार्थ के रूप में सामने आए।
प्रेमचंद बचपन से ही पढ़ने में रुचि रखते थे। 13 वर्ष की आयु में उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा जैसे ग्रंथ पढ़ लिए थे और वे उर्दू के प्रमुख उपन्यासकारों जैसे रतननाथ ‘शरसार’, मिर्ज़ा हादी रुस्वा, और मौलाना शरर की रचनाओं से भी परिचित हो चुके थे।
प्रेमचंद का दूसरा विवाह 1906 में शिवरानी देवी से हुआ, जो एक शिक्षित बाल विधवा थीं। उन्होंने प्रेमचंद के पारिवारिक जीवन पर आधारित प्रेमचंद घर में नामक पुस्तक भी लिखी। (Premchand ji ka jivan parichay)इस दंपत्ति के तीन संतानें हुईं श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव।
1898 में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद प्रेमचंद ने एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक के रूप में कार्य करना प्रारंभ किया। नौकरी के साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। 1910 में उन्होंने अंग्रेज़ी, दर्शन, फ़ारसी और इतिहास विषयों के साथ इंटरमीडिएट किया और 1919 में बी.ए. की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्हें शिक्षा विभाग में स्कूल इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्त किया गया।
1921 में जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन के तहत सरकारी नौकरियाँ छोड़ने का आह्वान किया, तो प्रेमचंद ने भी 23 जून 1921 को अपने पद से त्यागपत्र दे दिया और साहित्य को अपना जीवन-ध्येय बना लिया। इसके बाद उन्होंने मर्यादा, माधुरी जैसी पत्रिकाओं में संपादकीय कार्य किया और सरस्वती प्रेस की स्थापना कर हंस तथा जागरण पत्रिकाओं का प्रकाशन भी शुरू किया। दुर्भाग्यवश प्रेस उनके लिए आर्थिक रूप से लाभकारी नहीं रहा।
1933 में कर्ज़ चुकाने के उद्देश्य से उन्होंने बंबई की सिनेटोन फिल्म कंपनी में कहानी लेखक के रूप में कार्य करना स्वीकार किया, परंतु फिल्मी दुनिया उन्हें रास नहीं आई। वे एक साल का अनुबंध भी पूरा नहीं कर पाए और दो महीने का वेतन छोड़कर बनारस लौट आए।
धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य गिरने लगा और लंबी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को प्रेमचंद का निधन हो गया।

प्रेमचंद, जिनका जन्म नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, इनका जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के पास एक छोटे से गाँव में हुआ था। उनका बचपन बेहद गरीबी से भरा हुआ था। उनके पिता, एक पोस्ट मास्टर के रूप में सरकारी नौकरी करते थे, लेकिन कुछ समय बाद उनका निधन हो गया। पिता का निधन हो जाने के बाद प्रेमचंद को कम उम्र में ही स्कूल छोड़ना पड़ा और परिवार को चलाने के लिए काम करना शुरू कर दिया।
इस परेशानी के समय ने प्रेमचंद के लाइफ पर इसका गहरा असर छोड़ा। उन्होंने गरीबी और लोगो के बर्ताव को करीबी से देखा, जिसने उनके अंदर के लेखक को आकार देने में मेन रोल प्ले किया था। प्रेमचंद ने स्कूल छूट जाने के बाद भी शिक्षा प्राप्त करने का ट्राई किया और खुद भी पढ़ने लगा। उन्होंने उर्दू में लिखना शुरू किया और 1907 में प्रेमचंद का पहला उपन्यास “मैना” पब्लिश हुआ था।
हालाँकि, प्रेमचंद को जल्द ही ऐसा महसूस हुआ कि हिंदी लोगों तक उनकी बात पहुंचाने के लिए उन्हें हिंदी में लिखना जरूरी है। इसलिए 1910 से उन्होंने हिंदी में लिखना शुरू किया और तब से वह अपने कलम नाम ‘प्रेमचंद’ को अपने हिंदी साहित्य पर लिखने लगे थे।
premchand ka jivan parichay में प्रेमचंद की बचपन मे ही पढ़ाई छूट गयी थी, क्योंकि उनके पिता का निधन हो गया था। स्कूल छोड़कर वह काम करने लगे। पर फिर भी उन्हें जब भी समय मिलता खुद से पढ़ते, ताकि उनकी पढ़ाई कैसे भी न रुके।
शुरुआत उर्दू से करने के बाद हिंदी में भी उन्होंने लिखना शुरू किया। उनकी पूरी लाइफ सिर्फ कानपुर,बनारस और अलाहाबाद तक ही सीमित थी। उन्होंने कई सालों तक शिक्षा विभाग में नौकरी की। जिस दौरान प्रेमचंद का साहित्यिक परिचय को बढ़ा दिया।
प्रमुख कृतियाँ
उपन्यास : सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, प्रतिज्ञा, गबन, कर्मभूमि, गोदान, मंगलसूत्र (अपूर्ण)।
कहानी-संग्रह : सप्तसरोज, नवनिधि, समरयात्रा, मानसरोवर (आठ खंडों में प्रकाशित)।
चर्चित कहानियाँ : दो बैलों की कथा, ईदगाह, ठाकुर का कुआँ, पूस की रात, कफ़न, बूढ़ी काकी, पंच परमेश्वर, दो बैलों की कथा, बड़े घर की बेटी, नमक का दारोग़ा, कर्मों का फल, बलिदान, शतरंज के खिलाड़ी।
नाटक : संग्राम, कर्बला, बलिदान।
बाल-साहित्य : रामकथा, कुत्ते की कहानी, मनमोदक।
प्रेमचंद ने अपने जीवन की शुरुआत एक अध्यापक के रूप में की। उन्हें मात्र 18 रुपए मासिक वेतन पर पहली नौकरी मिली। प्रारंभ में उन्होंने बहराइच, गोरखपुर, कानपुर और इलाहाबाद जैसे विभिन्न शहरों के स्कूलों में अध्यापन कार्य किया। धीरे-धीरे अपनी मेहनत और प्रतिभा के बल पर वे उच्च पदों पर पहुँचे और उन्हें स्कूल इंस्पेक्टर (School Inspector) के रूप में प्रोन्नति प्राप्त हुई। इसी बीच, 1904 में उन्होंने वर्नाकुलर परीक्षा उत्तीर्ण की, जिसने उनके करियर को और मजबूत आधार प्रदान किया।
धनपत राय का साहित्यिक नाम प्रेमचंद था। सरकारी नौकरी के दौरान कहानी लिखना शुरू किया। उस समय वह नवाब नायक नाम से लिखते थे। उनके जानने वाले उन्हें अंत तक नवाब नायक नाम से ही बुलाते थे। इनका पहला कहानी संग्रह “सोजे वतन’ भारत सरकार द्वारा बैन कर दी गई थी। इसी कारण उन्हें नवाब राय नाम छोड़ना पड़ा।
प्रेमचंद का जीवन परिचय/Premchand ka jivan parichay से यह पता चलता है कि वो एक ऐसे लेखक थे जो हमेशा लिखते रहते थे। उन्होंने उपन्यास, कहानियां, निबंध और नाटक सहित कई तरह की रचनाएं लिखीं। उनकी रचनाओं में सच्चाई की झलक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
प्रेमचंद की कृतियां भगवान शंकर से प्रभावित जान पड़ती है। प्रेमचंद जी भूतकाल और भविष्य काल पर ध्यान नहीं दिए। वे वर्तमान काल पर ही अपनी कृतियों लिखते रहें।
| क्रमांक | कहानी का नाम | संक्षिप्त विवरण / विषय-वस्तु |
|---|---|---|
| 1. | ईदगाह | छोटे बच्चे हामिद की संवेदनशील कहानी, जो अपनी दादी के लिए चिमटा खरीदता है। |
| 2. | दो बैलों की कथा | जानवरों (हीरा और मोती) के माध्यम से मानवीय संवेदनाओं और वफ़ादारी का चित्रण। |
| 3. | पूस की रात | गरीब किसान हल्कू की गरीबी और मजबूरी, जो ठंड में खेत की रखवाली करता है। |
| 4. | कफन | सामाजिक यथार्थ का करुण चित्रण; गरीब ग़ासी और माधव शराब के लिए पत्नी/बहू के कफन के पैसे खर्च कर देते हैं। |
| 5. | बूढ़ी काकी | परिवार में बुज़ुर्गों की उपेक्षा और उनकी असहाय स्थिति। |
| 6. | पंच परमेश्वर | मित्रता और न्याय की सीख; जब न्याय करना होता है तो मित्रता भी आड़े नहीं आती। |
| 7. | ठाकुर का कुआँ | छुआछूत और जातिगत भेदभाव पर आधारित मार्मिक कहानी। |
| 8. | बड़े घर की बेटी | संयुक्त परिवार और स्त्री के संघर्षपूर्ण जीवन की झलक। |
| 9. | नमक का दारोग़ा | ईमानदारी और भ्रष्टाचार की लड़ाई; दरोग़ा मुंशी वंशीधर का आदर्श चरित्र। |
| 10. | शतरंज के खिलाड़ी | अवध के नवाबों के पतनशील और विलासी जीवन पर व्यंग्य। |

प्रेमचंद की रचनायें प्रेमचंद का जीवन परिचय देते हुए उसके एक बड़े हिस्से को दर्शाती है। इससे हमे यह भी पता चलता है के वे किन चीज़ों में विश्वास करते थे।
प्रेमचंद की लिखाई बहुत बड़ी है, जैसे कि प्रेमचंद की किताबें, कहानीयो का संग्रह, निबंध और नाटक। उनकी लिखाई में उन्होंने समाज को बदलने की बात की है और सच्चाई को दिखाया है। कुछ बार उन्होंने अपनी लिखाई में हास्य भी किया है। प्रेमचंद का जीवन परिचय तो जान लिया अब उनकी कुछ पॉपुलर क्रिएशन पर नजर डालते हैं।
| क्रम | रचना का नाम | प्रकाशन वर्ष | विधा | संक्षिप्त विवरण |
|---|---|---|---|---|
| 1 | सेवासदन | 1918 | उपन्यास | यह उपन्यास नारी स्वतंत्रता और वेश्यावृत्ति जैसे सामाजिक मुद्दों पर आधारित है; पहले बाजारे-हुस्न नाम से उर्दू में प्रकाशित हुआ था। |
| 2 | गोदान | 1936 | उपन्यास | प्रेमचंद का अंतिम और सबसे प्रसिद्ध उपन्यास, जो किसानों की दुर्दशा और ग्रामीण जीवन की सच्चाई को उजागर करता है। |
| 3 | कर्मभूमि | 1932 | उपन्यास | इसमें गांधीवाद, सत्याग्रह और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है। |
| 4 | निर्मला | 1925 | उपन्यास | दहेज प्रथा और उम्र के असंतुलन पर आधारित यह उपन्यास नारी पीड़ा को बेहद मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करता है। |
| 5 | कफ़न | 1936 | कहानी | यह एक अत्यंत चर्चित कहानी है, जो गरीबों की विवशता और संवेदनहीनता पर व्यंग्य करती है। |
| 6 | किशना | 1907 | कहानी | प्रेमचंद की शुरुआती कहानियों में से एक, जो भावनात्मक संवेदना से भरी है। |
| 7 | रूठी रानी | 1907 | कहानी | यह कहानी भी प्रेमचंद की आरंभिक लेखनी का हिस्सा है जिसमें कल्पना और भावुकता की झलक मिलती है। |
| 8 | प्रेमाश्रम | 1922 | उपन्यास | यह उपन्यास जमींदारी व्यवस्था, धार्मिक पाखंड और सामाजिक विषमता की गहराइयों में जाता है। |
| 9 | रंगभूमि | 1925 | उपन्यास | एक अंधे भिखारी ‘सूरदास’ की संघर्षपूर्ण कथा जो पूंजीवाद और धर्म के टकराव को दर्शाती है। |
| 10 | कायाकल्प | 1926 | उपन्यास | इसमें आध्यात्मिकता, सामाजिक कुरीतियाँ और प्रेम का सुंदर समन्वय है। |
| 11 | जलवए ईसार | 1912 | कहानी/उपन्यास | यह प्रेमचंद की प्रारंभिक उर्दू रचना है, जिसका विषय धार्मिकता और मानवीय मूल्यों से |

प्रेमचंद की कुछ कहानियों के नाम इस प्रकार है:
| क्रम | मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ | क्रम | मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ |
| 1 | अन्धेर | 21 | क्रिकेट मैच |
| 2 | अनाथ लड़की | 22 | कवच |
| 3 | अपनी करनी | 23 | कातिल |
| 4 | अमृत | 24 | कोई दुख न हो तो बकरी खरीद ला |
| 5 | अलग्योझा | 25 | कौशल़ |
| 6 | आखिरी तोहफ़ा | 26 | खुदी |
| 7 | आखिरी मंजिल | 27 | गैरत की कटार |
| 8 | आत्म-संगीत | 28 | गुल्ली डण्डा |
| 9 | आत्माराम | 29 | घमण्ड का पुतला |
| 10 | दो बैलों की कथा | 30 | ज्योति |
| 11 | आल्हा | 31 | जेल |
| 12 | इज्जत का खून | 32 | जुलूस |
| 13 | इस्तीफा | 33 | झाँकी |
| 14 | ईदगाह | 34 | ठाकुर का कुआँ |
| 15 | ईश्वरीय न्याय | 35 | तेंतर |
| 16 | उद्धार | 36 | त्रिया-चरित्र |
| 17 | एक आँच की कसर | 37 | तांगेवाले की बड़ |
| 18 | एक्ट्रेस | 38 | तिरसूल |
| 19 | कप्तान साहब | 39 | दण्ड |
| 20 | कर्मों का फल | 40 | दुर्गा का मन्दिर |
प्रेमचंद के कुछ निबन्धों की सूची निम्नलिखित है-
प्रेमचंद अपनी कहानियों में इंसान के स्वभाव को बहुत अच्छे से उजागर किया है। इसका उदाहरण है नमक का दरोगा यह एक ईमानदार और कर्तव्य परायण व्यक्ति की कहानी है। इसके अलावा पंच परमेश्वर के द्वारा गांव के सकारात्मक परिवेश को उजागर किया है।
2. पूस की रात
3. कफन
4. बूढ़ी काकी
5. पंच परमेश्वर
प्रेमचंद का साहित्यिक योगदान विशेष रूप से उनकी कहानियों और उपन्यासों के लिए प्रसिद्ध है, जो सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर प्रकाश डालते हैं:
सामाजिक चित्रण: उपन्यास में वेश्यावृत्ति, सामाजिक सुधार, और नैतिकता के मुद्दों को उकेरा गया है। यह उपन्यास समाज में व्याप्त नैतिक दुविधाओं और सुधारों की आवश्यकता को दर्शाता है।
प्रेमचंद की कहानी और प्रेमचंद की किताबें सिर्फ हिंदी में ही नही हैं, बल्कि उनका अनुवाद कई अलग अलग भाषाओं में भी किया गया है। दुनिया भर के लोग उनकी लिखाई को पढ़ सकते हैं और समझ सकते हैं। आज भी प्रेमचंद की लिखाई बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्होंने जो भी लिखा है वो आज भी समाज में हो रहा है। उन्होंने गरीबों, गरीबों और अन्याय का शिकार होने वाले लोगों की बात लिखी है और उनकी कहानियाँ आज भी हमें सोचने पर मजबूर करती हैं।
उसके बाद इन्होंने अपना साहित्य प्रेमचंद के नाम से लिखा। इसके बाद प्रेमचंद बड़े पैमाने पर कहानियां और उपन्यास पढ़ने लगे। शुरुआती दौर में वे एक तंबाकू विक्रेता की दुकान पर जाकर ‘तिलस्म होशरुबा’ का पाठ सुने। इसको फैजी ने अकबर के मनोरंजन के लिए लिखा था। इन्हीं कहानियों से प्रेमचंद को कहानी लिखने की प्रेरणा मिली।
उत्तर प्रदेश के एक पुस्तक विक्रेता से उनकी दोस्ती हुई प्रेमचंद इसकी इनकी दुकान में अपनी पुस्तक बेचा करते थे। भुगतान में यहां से कुछ कहानियां और उपन्यास अपने पढ़ने के लिए ले जाते थे। ऐसे ही शुरुआती दिनों में वे सैकड़ों कहानियां और उपन्यास पढ़े। इसके बाद गोरखपुर में उन्होंने अपने साहित्य कृतियों को रूप दिया।
प्रेमचंद की साहित्यिक यात्रा 1900 के दशक की शुरुआत में उर्दू भाषा में लिखने के साथ हुई। प्रेमचंद का पहला उपन्यास, “मैना” था, जो 1907 में पब्लिश हुआ था। इस दौरान, उन्होंने कई स्टोरीज और नोवेल्स लिखे, जिनमें सामाजिक अन्याय, गरीबी और कोलोनियल रूल उनके मेन सब्जेक्ट्स थे।
1910 के दशक में, उन्होंने हिंदी में लिखना शुरू किया और “प्रेमचंद” के नाम से अपनी पहचान बनाई। उनकी पहली हिंदी नॉवेल, “सेवासदन” थी जो 1918 में बनी थी। जिसने उन्हें साहित्यिक जगत में पॉपुलैरिटी दिलाई। यह कृति उस समय के भारतीय समाज में मौजूद सामाजिक बुराइयों, जैसे वेश्यावृत्ति और महिला उत्पीड़न, पर तीखी टिप्पणी करती है।
जीवन के प्रति उनकी अगाढ़ आस्था थी लेकिन जीवन की विषमताओं के कारण वह कभी भी ईश्वर के बारे में आस्थावादी नहीं बन सके। धीरे – धीरे वे अनीश्वरवादी से बन गए थे। एक बार उन्होंने जैनेन्दजी को लिखा “तुम आस्तिकता की ओर बढ़े जा रहे हो – जा रहीं रहे पक्के भग्त बनते जा रहे हो। मैं संदेह से पक्का नास्तिक बनता जा रहा हूँ।“
मृत्यू के कुछ घंटे पहले भी उन्होंने जैनेन्द्रजी से कहा था – “जैनेन्द्र, लोग ऐसे समय में ईश्वर को याद करते हैं मुझे भी याद दिलाई जाती है। पर मुझे अभी तक ईश्वर को कष्ट देने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई।“
प्रेमचंद ने अपने साहित्य के माध्यम से सामाजिक सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया। वे समाज में हो रही कुरीतियों, अंधविश्वास और असमानताओं के खिलाफ थे। उनके लेखन में सामाजिक न्याय, समानता और मानवीय गरिमा के प्रति जागरूकता का संदेश मिलता है।
प्रेमचंद ने अपने लेखन में किसानों और मजदूरों की समस्याओं को प्रमुखता से उठाया। उनकी रचनाओं में मजदूर वर्ग के संघर्ष और शोषण का वास्तविक चित्रण है। उन्होंने समाज के निम्नवर्ग की आवाज को प्रमुखता दी और उनके अधिकारों की बात की।
प्रेमचंद के साहित्य में नारी सशक्तिकरण का भी महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने स्त्रियों की समस्याओं, उनके संघर्षों और समाज में उनके योगदान को उजागर किया। उनकी रचनाओं में नारी पात्र सशक्त और आत्मनिर्भर दिखाई देते हैं।
प्रेमचंद का जीवन परिचय/Premchand ka jivan parichay से यह समझ आता है कि उनका विचार दृष्टिकोण मानवतावाद, समाजवाद और राष्ट्रीयता से गहराई से जुड़ा हुआ था।
अपनी लेखनी के जरिए सामाजिक रूढ़ियों के खिलाफ आवाज उठाई। विवाह से संबंधित रूढ़ियों जैसे बहु विवाह, बेमेल विवाह, अभिभावक द्वारा आयोजित विवाह, दहेज प्रथा, विधवा विवाह, वृद्ध विवाह, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, पतिव्रता धर्म के विषय में और सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया। सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ उन्होंने अपनी कहानी ‘तीतर’ में विरोध किया। आर्थिक समस्या के बावजूद अतिथि सत्कार का उन्होंने पुरजोर विरोध किया।
साहित्य आज भी बहुत महत्वपूर्ण है, जैसे कि ये पहले था। सिर्फ कहानियां पढ़ने से हमारी जानकारी बढ़ती है, हम खुद के बारे में सोचते हैं और समाज में बदलाव लाने के लिए प्रेरित होते हैं।
साहित्य आधुनिक समाज में ज्ञान, मनोरंजन और आत्म-विकास का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। यह हमें समाज को समझने, संवेदनशील बनने और सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रेरित करता है।
प्रेमचंद की पहली शादी लगभग 15 साल की उम्र में, उनके परिवार द्वारा तय की गई थी। यह शादी सफल नहीं रही और कुछ समय बाद उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर चली गईं। बाद में, 1906 में, प्रेमचंद ने दूसरी शादी की। उनकी दूसरी पत्नी का नाम शिवरानी देवी था, जो एक बाल विधवा थीं। शिवरानी देवी ने प्रेमचंद के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनकी साहित्यिक यात्रा में भी सहयोग दिया। उन्होंने “प्रेमचंद घर में” नामक पुस्तक लिखी, जिसमें प्रेमचंद के व्यक्तिगत जीवन के बारे में जानकारी मिलती है।

प्रेमचंद का जीवन परिचय देखें तो पता चलता है कि प्रेमचंद की पहली शादी बहुत कम उम्र में, लगभग 15 साल की उम्र में, उनके परिवार द्वारा तय की गई थी। यह शादी सफल नहीं रही और कुछ समय बाद उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर चली गईं। बाद में, 1906 में, प्रेमचंद ने दूसरी शादी की। उनकी दूसरी पत्नी का नाम शिवरानी देवी था, जो एक बाल विधवा थीं। शिवरानी देवी ने प्रेमचंद के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनकी साहित्यिक यात्रा में भी सहयोग दिया। उन्होंने “प्रेमचंद घर में” नामक पुस्तक लिखी, जिसमें प्रेमचंद के व्यक्तिगत जीवन के बारे में जानकारी मिलती है।
प्रेमचंद का निधन 8 अक्टूबर 1936 को वाराणसी में हुआ। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे और आर्थिक कठिनाइयों का भी सामना कर रहे थे। और इस तरह उनकी मृत्यु के साथ प्रेमचंद का जीवन परिचय समात होता है लेकिन उनके प्रभाव की सिर्फ शुरुआत हुई थी। उनके निधन के बाद, उनकी साहित्यिक कृतियों का महत्व और भी अधिक बढ़ गया और वे हिंदी साहित्य के स्तंभों में से एक माने जाते हैं।
प्रेमचंद का जीवन संघर्षपूर्ण था, लेकिन उनके साहित्य ने भारतीय समाज में सुधार और जागरूकता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी रचनाएं आज भी पाठकों और विद्वानों के बीच लोकप्रिय हैं और समाज के विभिन्न पहलुओं को समझने का महत्वपूर्ण स्रोत मानी जाती हैं।
प्रेमचंद का जीवन परिचय और उनकी रचनाएं पाठकों को न सिर्फ मनोरंजन करती हैं, बल्कि उन्हें अपने आसपास की दुनिया के प्रति जागरूक बनाती है। उनकी कहानियां पाठकों में करुणा और सहानुभूति की भावना जगाती हैं, जो एक समावेशी और न्यायसंगत समाज के निर्माण के लिए आवश्यक हैं।
प्रेमचंद हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कथाकार, उपन्यासकार और समाज सुधारक थे। उनका असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, और वे “प्रेमचंद” नाम से प्रसिद्ध हुए। उनका जन्म 31 जुलाई 1880 को लमही (वाराणसी, उत्तर प्रदेश) में हुआ था।
प्रेमचंद ने अपने साहित्य के माध्यम से समाज में फैली गरीबी, अन्याय, शोषण और भेदभाव को उजागर किया। उन्होंने किसानों, मजदूरों और आम लोगों के जीवन की सच्चाइयों को अपनी कहानियों और उपन्यासों में बहुत ही सरल और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया।
उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं गोदान, गबन, कर्मभूमि, सेवासदन, पूस की रात आदि। वे “उपन्यास सम्राट” के नाम से जाने जाते हैं।
प्रेमचंद का निधन 8 अक्टूबर 1936 को हुआ। उन्होंने अपने यथार्थवादी लेखन से हिंदी साहित्य को नई दिशा दी।
प्रेमचंद हिंदी साहित्य के यथार्थवादी और जनसाधारण के प्रिय लेखक थे। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, परंतु वे साहित्य जगत में “प्रेमचंद” नाम से प्रसिद्ध हुए। उनका जन्म 31 जुलाई 1880 को लमही गाँव (वाराणसी, उत्तर प्रदेश) में हुआ था। उनके पिता मुंशी अजायब राय डाकघर में क्लर्क थे और माता आनंदी देवी धर्मपरायण महिला थीं। बचपन में ही माता-पिता का निधन हो जाने से प्रेमचंद का जीवन संघर्षमय रहा।
उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी से प्राप्त की और बाद में अंग्रेज़ी, उर्दू तथा हिंदी भाषा का गहन अध्ययन किया। उन्होंने अध्यापन कार्य से अपने जीवन की शुरुआत की, लेकिन बाद में पूरी तरह से लेखन को ही अपना लक्ष्य बना लिया।
प्रेमचंद ने समाज में फैली गरीबी, अन्याय, जातिवाद, और शोषण की सच्चाइयों को अपने साहित्य के माध्यम से उजागर किया। उनकी रचनाओं में किसान, मजदूर और आम जनता का यथार्थ जीवन चित्रित होता है। उनके उपन्यासों में नैतिकता, मानवता और सामाजिक सुधार का सशक्त संदेश मिलता है।
उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं गोदान, गबन, कर्मभूमि, सेवासदन, निर्मला, और रंगभूमि। प्रेमचंद को “उपन्यास सम्राट” कहा जाता है। उनका निधन 8 अक्टूबर 1936 को हुआ। वे आज भी अपने सामाजिक यथार्थवादी साहित्य के लिए याद किए जाते हैं।
Premchand ka Vishesh Mahatva kis roop mein hai प्रेमचंद का हिंदी साहित्य में विशेष महत्व यथार्थवादी लेखक, समाज सुधारक और मानवता के प्रवक्ता के रूप में है। उन्होंने साहित्य को केवल मनोरंजन का माध्यम न मानकर समाज सुधार का सशक्त उपकरण बनाया।
उनकी रचनाओं में किसानों, मजदूरों, स्त्रियों और गरीबों के संघर्षपूर्ण जीवन का सजीव चित्रण मिलता है। प्रेमचंद ने पहली बार साहित्य को जनजीवन से जोड़ा और समाज की सच्चाइयों को यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया।
उन्होंने अपने उपन्यासों और कहानियों के माध्यम से अन्याय, शोषण, अंधविश्वास, और भेदभाव के विरुद्ध आवाज़ उठाई। उनकी भाषा सरल, भावपूर्ण और जनसुलभ है, जिससे वे आम लोगों के हृदय से सीधे जुड़ते हैं।
प्रेमचंद का विशेष महत्व इस रूप में है कि उन्होंने साहित्य को जनजीवन का दर्पण बनाया और हिंदी कथा साहित्य को नैतिकता, संवेदना और सामाजिक चेतना की नई दिशा दी। इसलिए उन्हें “उपन्यास सम्राट” और हिंदी साहित्य का यथार्थवादी निर्माता कहा जाता है।
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के लमही गाँव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, पर वे अपने साहित्यिक नाम “प्रेमचंद” से प्रसिद्ध हुए। उनके पिता आज़ाद राय डाक विभाग में क्लर्क थे और माता आनंदी देवी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद उन्होंने शिक्षा प्राप्त की और जीवन में अनेक संघर्षों का सामना किया।
उन्होंने अपने लेखन की शुरुआत उर्दू भाषा से “नवाब राय” नाम से की, पर बाद में हिंदी साहित्य के सबसे महान यथार्थवादी लेखक बने। प्रेमचंद ने समाज की सच्चाइयों, गरीबी, किसानों की पीड़ा, स्त्रियों की स्थिति और नैतिक मूल्यों को अपनी कहानियों और उपन्यासों में बड़े ही प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया। उनकी प्रमुख रचनाओं में गोदान, गबन, सेवासदन, कर्मभूमि, ईदगाह, कफन और नमक का दारोगा शामिल हैं।
प्रेमचंद की भाषा सरल, सहज और जनजीवन से जुड़ी हुई थी। उन्हें “उपन्यास सम्राट” की उपाधि से सम्मानित किया गया। 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हुआ, लेकिन वे आज भी अपने अमर साहित्य के माध्यम से जीवित हैं। उनका जीवन सादगी, संघर्ष और समाजसेवा की प्रेरणा देता है।
मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य के यथार्थवादी युग के अग्रणी लेखक थे। उन्होंने कहानी और उपन्यास दोनों विधाओं में समाज के यथार्थ को अत्यंत सजीव रूप में प्रस्तुत किया। उनके साहित्य में गरीबी, शोषण, किसान जीवन, स्त्रियों की दशा, जातिगत असमानता और नैतिक मूल्यों का पतन जैसे विषय प्रमुख रूप से मिलते हैं।
प्रेमचंद ने अपने लेखन की शुरुआत उर्दू भाषा से “नवाब राय” नाम से की। उनकी पहली कहानी दुनिया का सबसे अनमोल रतन थी और पहला उपन्यास असरारे मआबिद। बाद में उन्होंने हिंदी में लेखन प्रारंभ किया और सामाजिक यथार्थवाद को साहित्य की मुख्यधारा बनाया।
उनकी प्रमुख कहानी रचनाएँ हैं ईदगाह, कफन, पूस की रात, नमक का दारोगा, बड़े घर की बेटी आदि।
उनके मुख्य उपन्यास हैं गोदान, गबन, सेवासदन, कर्मभूमि, रंगभूमि और प्रतिज्ञा।
प्रेमचंद की भाषा अत्यंत सरल, सहज और जनसाधारण की बोलचाल के निकट है। उन्होंने साहित्य को मनोरंजन का माध्यम न मानकर समाज सुधार का साधन बनाया।
उनकी रचनाओं में यथार्थवाद, करुणा, मानवीय संवेदना और नैतिकता का गहरा प्रभाव दिखाई देता है।
इसी कारण उन्हें हिंदी का “उपन्यास सम्राट” कहा जाता है।
प्रेमचंद का जीवन परिचय में हमने जाना कि वह हिंदी साहित्य जगत के एक शिखर पुरुष हैं, जिन्होंने अपने लेखन के माध्यम से न सिर्फ मनोरंजन किया बल्कि समाज को दिशा भी दी। उपन्यास सम्राट के रूप में विख्यात, उन्होंने यथार्थवादी शैली में रचनाएँ कर साहित्य में एक नया आयाम स्थापित किया।
प्रेमचंद की कहानी की विशेषता है सामाजिक सरोज़ारों को केंद्रीय स्थान देना। उन्होंने गरीबी, असमानता, शोषण और न्याय जैसी समस्याओं को बेबाकी से उजागर किया। उनकी कहानियां ग्रामीण जीवन की कठिनाइयों, जमींदारी प्रथा के कुचक्र और राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के चित्रों को रीडर्स के सामने लाती है।
प्रेमचंद का साहित्य परिचय समाज सुधार का एक साक्षात उपकार है। उन्होंने अपनी रचनाओ में दहेज प्रथा, बाल विवाह और छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों पर प्रहार किया। वंचित वर्गों को वाणी देकर उन्होंने रीडर्स में करुणा और सहानुभुति जगाई। उनका मानना था कि साहित्य का दायित्व सिर्फ मनोरंजन करना ही नही, बल्कि समाज को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करना भी है।
प्रेमचंद का साहित्य परिचय, हिंदी साहित्य को दिया गया योगदान अमूल्य है। उनकी रचनाएँ ना सिर्फ साहित्यिक कृतियाँ हैं,बल्कि समाज का आईना भी हैं, जिसके माध्यम से हम अपने अतीत को समझ सकते हैं और भविष्य के लिए दिशा निर्धारण कर सकते हैं।
उनके पिता अजायब राय एक डाकमुंशी थे, और माता आनन्दी देवी धार्मिक स्वभाव की थीं।
उन्होंने 1901 में “सरस्वती” पत्रिका में “सरस्वती” नामक कहानी के साथ अपना साहित्यिक करियर शुरू किया।
उनकी पहली प्रकाशित कहानी का नाम “दुनिया का सबसे अनमोल रतन” था।
उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ कहा जाता है क्योंकि उन्होंने भारतीय सामाजिक जीवन के यथार्थवादी चित्रण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रेमचंद के लेखन पर रूसी लेखक टॉल्सटॉय और गोरकी का गहरा प्रभाव था।
प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था।
Authored by, Aakriti Jain
Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.
Editor's Recommendations
Chegg India does not ask for money to offer any opportunity with the company. We request you to be vigilant before sharing your personal and financial information with any third party. Beware of fraudulent activities claiming affiliation with our company and promising monetary rewards or benefits. Chegg India shall not be responsible for any losses resulting from such activities.
Chegg India does not ask for money to offer any opportunity with the company. We request you to be vigilant before sharing your personal and financial information with any third party. Beware of fraudulent activities claiming affiliation with our company and promising monetary rewards or benefits. Chegg India shall not be responsible for any losses resulting from such activities.