सूरदास का जीवन परिचय

सूरदास का जीवन परिचय- कृष्ण भक्ति के अमर कवि और वात्सल्य रस के सम्राट की प्रेरक कहानी

Published on October 28, 2025
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सूरदास का जीवन परिचय

Quick Summary

  • सूरदास भक्ति काल के प्रमुख कवियों में से एक का है, जिन्होंने कृष्ण भक्ति को नई ऊँचाइयाँ दीं।
  • उनका जन्म 1478 ईस्वी में आगरा के पास रुनकता गाँव में हुआ था।
  • सूरदास भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे और उनकी कविताएँ कृष्ण की बाल लीलाओं व प्रेम रस से भरी हुई हैं।
  • उन्हें “वात्सल्य रस के सम्राट” कहा जाता है।
  • उनकी प्रमुख रचना “सूरसागर” भक्ति, प्रेम और करुणा का अद्भुत ग्रंथ है।

Table of Contents

सूरदास (1478–1583 ई.) भक्ति काल के महान कवि, गायक और संत थे। सूरदास भक्ति काल के प्रसिद्ध संत और कवि थे, जिनका जन्म लगभग 1478 ईस्वी में आगरा के निकट रुनकता गाँव में हुआ। वे भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। उनकी रचनाओं में मुख्यतः कृष्ण की बाल लीलाएँ, प्रेम और भक्ति भाव का अद्भुत चित्रण मिलता है। सूरदास जन्म से नेत्रहीन होकर भी अपनी रचनाओं जैसे सूरसागर में श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं, रास-लीलाओं और वात्सल्य भाव का मधुर चित्रण करते हैं।

सूरदास हिन्दी साहित्य और भक्ति आन्दोलन के ऐसे महाकवि थे, जिन्होंने नेत्रहीन होकर भी अपने अद्भुत काव्य और मधुर भक्ति पदों के माध्यम से श्रीकृष्ण के प्रेम, वात्सल्य और रास-लीलाओं को जन-जन तक पहुँचाया; उनका जीवन दर्शन, काव्य प्रतिभा और भक्ति भाव आज भी भारतीय संस्कृति के लिए अमिट प्रेरणा स्रोत हैं। उनकी भाषा ब्रजभाषा सरल, सहज और भक्तिमय है, जिससे वे “अष्टछाप” के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं। सूरदास को “वात्सल्य रस के सम्राट” के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है।

सूरदास का जीवन परिचय और प्रारंभिक जीवन | Surdas Ji ka Jivan Parichay

नाम (Name)सूरदास(Surdas)
जन्म तारीख (Birth Date)1478 ई०
जन्म स्थान (Birth Place)रुनकता ग्राम
मृत्यु का स्थान (Death)पारसौली
पिता का नाम (Father’s Name)पंडित रामदास
माता का नाम (Mother’s Name)जमुनादास बाई
सूरदास किसके शिष्य थे? (Mentor)आचार्य बल्लभाचार्य
भक्तिकृष्ण की भक्ति
भाषा की शैलीब्रज
रचनाएँ (Creations)सूरसागर
सूरसारावली
साहित्य लहरी
कृष्ण की बाल- लीलाओं
कृष्ण लीलाओं का चित्रण
मृत्यु1583 ई., परसोली, मथुरा के निकट
सूरदास का जीवन परिचय | Surdas jivan parichay in hindi

सूरदास कौन थे?

सूरदास को भारत का और भक्ति काल का सूर्य भी कहा जाता है। सूरदास का जीवन परिचय और उनकी रचनाएं पूरी तरीके से कृष्ण भक्ति को समर्पित की जाती है। सूरदास पंद्रहवीं शताब्दी के उत्तर भारत में एक संत, संगीतकार और कवि थे। कृष्ण के वात्सल्य को जन-जन के मन में बसा देने का काम सूरदास जी ने बड़ी भली भांति किया है। उनके बारे में ऐसी बहुत सी रोचक बातें हैं जिनके बारे में अगर पढ़ने बैठ तो पूरी उम्र कम पड़ सकती है। फिर भी उनके जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों के ऊपर चली नजर डालते हैं।

सूरदास का जन्म | Surdas ka Janm kab Hua Tha

  • अधिकांश विद्वान सूरदास का जन्म 1478 ईस्वी मानते हैं।
  • कुछ इतिहासकारों के अनुसार उनका जन्म 1483 ईस्वी में हुआ।
  • वहीं दूसरी और साहित्य लहरी के अंतिम एक पद के मुताबिक सूरदास जी पृथ्वीराज के कवि चंदवरदाई के वंशज रहे थे। इन कवियों के कुल में से एक थे, हरिचंद जिनके सात बेटे थे और सबसे छोटा बेटा सूरजदास या सूरदास था। माना जाता है कि जब छह बड़े भाई मुसलमानों के साथ युद्ध करते हुए मारे गए थे, तब अंधे सूरदास बहुत दिनों तक इधर-उधर भटक रहे थे। भटकते हुए वो एक कुएं में भी गिर गए और 6 दिनों तक वहीं पड़े रहे। इस दौरान उन्होंने भक्ति भावना से सिर्फ भगवान श्री कृष्ण को पुकारा और सातवें दिन में भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें दर्शन दिए और उससे कहा दक्षिण में उन्हें विद्या मिलेगी।
  • सूरदास ने उनसे मांगा कि जिन आंखों से उन्होंने अपने भगवान को देखा है वो आंखें अब और कभी कुछ न देख पाए। कृष्ण जी ने उन्हें कुएं से निकालते हुए उनकी आंखें सदा के लिए बंद कर दी। कई बार सूरदास के अंधेपन को लेकर भी लोगों के मन में सवाल उठते आए हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने अपनी रचनाओं में जिस तरह के सुंदर दृश्य और प्रकृति का चित्रण किया है, वैसा कर पाना किसी अंधे इंसान के लिए असंभव है।
  • मृत्यु तिथि भी विवादित है – सामान्यत: 1583 ईस्वी मानी जाती है, लेकिन अन्य स्रोत अलग-अलग वर्ष बताते हैं।

सूरदास किसके शिष्य थे?

  • बात करें कि सूरदास किसके शिष्य थे तो बता दें कि सूरदास के एकमात्र गुरु थे आचार्य वल्लभाचार्य जी। चौरासी वैष्णव की वार्ता से पता चलता है कि सूरदास पहले गऊघाट गए थे और वहां साधु के रूप में रहते थे।
  • सूरदास के गुरु का नाम वल्लभाचार्य था। एक बार वल्लभाचार्य जी श्रीनाथजी के मंदिर से उतर रहे थे कि सूरदास ने उन्हें अपना पद गाकर सुनाया। वल्लभाचार्य को उनका गया हुआ पर इतना अच्छा लगा कि उन्होंने उसे अपना शिष्य बना लिया और उसे श्रीनाथजी के मंदिर में कीर्तन सेवा करने का मौका दिया।
  • इसी दौरान वल्लभाचार्य ने उन्हें पद रचना और भक्ति की कथाओं को लिखने और गाने की योग्यता सिखाएं। सूरदास की भक्ति भावना उजागर होने लगी। उनका ज्यादातर समय तो सूरदास की रचना करने में और भगवान का भजन कीर्तन करने में ही बीतने लगा।

सूरदास जी का साहित्यिक परिचय | Surdas ji ka Sahityik Parichay

सूरदास हिंदी साहित्य के महान कवि और भक्ति संत थे। वे भगवान कृष्ण के परम भक्त थे और उनकी भक्ति में अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनका साहित्य मुख्यतः भक्ति साहित्य के अंतर्गत आता है। सूरदास ने ब्रजभाषा में अपने भक्ति गीत और कविताएँ लिखीं, जो आज भी आम जनता और भक्तों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हैं।

सूरदास की रचनाओं में कृष्ण भक्ति, प्रेम, रासलीला, बालकृष्ण की लीलाएँ और भक्तियोग प्रमुख विषय हैं। उन्होंने सरल, भावपूर्ण और मधुर भाषा में ऐसे पद रचे, जो लोगों के हृदय को सीधे छू जाते हैं। उनकी कविता में करुणा, भक्ति, प्रेम और आध्यात्मिकता का सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है।

उनकी प्रमुख कृति सूरसागर है, जिसमें भगवान कृष्ण के जीवन और लीलाओं का विस्तृत विवरण है। इसके अलावा उन्होंने सूरसप्तक, सूरसप्तशती और सुरसिंहावलोकन जैसी रचनाएँ भी लिखीं। सूरदास की रचनाएँ केवल साहित्यिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं।

सूरदास का जीवन प्रेरणादायक था। सूरदास की रचनाएँ और कृष्ण भक्ति आज भी लोगों के दिलों में विशेष स्थान रखती हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ और भक्ति का वर्णन इस प्रकार हैं:

सूरदास की कृष्ण भक्ति और उनकी रचनाएँ

  1. सूरसागर – यह सूरदास की सबसे प्रसिद्ध कृति है जिसमें श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं, रास-लीलाओं और भक्त-भाव का अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण वर्णन मिलता है। इसे कृष्ण भक्ति साहित्य का अमूल्य ग्रंथ माना जाता है।
  2. सूरसारावली – इस कृति में सूरदास ने सृष्टि की रचना, भगवान की महिमा और भक्ति मार्ग का दार्शनिक चित्रण किया है। इसमें 118 कविताओं का संग्रह है।
  3. साहित्य लहरी – यह कृति साहित्यिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसमें भक्ति, नीति और जीवन-दर्शन के पद शामिल हैं। इसमें सूरदास ने भक्ति और ज्ञान दोनों का संतुलित स्वरूप प्रस्तुत किया है।

सूरदास की अन्य प्रचलित रचनाएँ

  1. ब्याहलो – इस कृति में विवाह और उसके रीति-रिवाजों का वर्णन मिलता है। इसमें लोकजीवन और संस्कृति की झलक दिखाई देती है।
  2. नल-दमयंती – इसमें महाभारत की प्रसिद्ध कथा नल और दमयंती का काव्यात्मक रूप में चित्रण है। इसमें प्रेम, वियोग और पुनर्मिलन की भावनाएँ अत्यंत मार्मिक ढंग से व्यक्त की गई हैं।

सूरदास की कृष्ण भक्ति का वर्णन

कृष्ण जी की लीलाओं का वर्णन तो रहता है लेकिन उन्हें देखकर किसी दूसरे छोटे बच्चों की मानसिकता का अनुमान लगाया जा सकता है। सूरदास सुर दोहावली पुस्तक में ये लोकप्रिय पद लिखते हुए कहते हैं:

मैया कबहुं बढ़ैगी चोटी।
किती बेर मोहि दूध पियत भइ यह अजहूं है छोटी॥

इस पद से कृष्ण की सरलता का पता चलता है जहां वह बहुत प्यार से अपनी मां से पूछते हैं की मां मेरी चोटी कब बढ़ेगी? तुमने इतना मुझे दूध पिलाया लेकिन ये अब भी छोटी सी है।

सूरदास जी की अपनी लेखनी में बाल कृष्ण की लीलाओं का वर्णन, कृष्ण की माखन चोरी की लीलाएँ, गोपियों के साथ रासलीला, राधा-कृष्ण के प्रेम का मार्मिक चित्रण, गहरी भक्ति और आध्यात्मिक भाव का सुन्दर प्रस्तुत किया है।

कृष्ण के इस मनोहर रूप का चित्रण और सूरदास की भक्ति भावना को स्पष्ट तरीके से लोगों को समझने के लिए, सूरदास ने कुछ रचनाएं की जो है सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो आदि।

प्रमुख काव्य कृतियाँ और उनका प्रभाव | Surdas kavi parichay

अगर सूरदास के प्रमुख काव्य कृतियों की बात करें तो उसमें सबसे प्रचलित है भ्रमरगीत। बहुत से लोगों ने इसे एक कविता संकलन माना है और कई लोग मानते हैं कि ये गाए जाने वाली कविताओं में से हैं। सूरदास जी की कविताओं को अलग-अलग राग रागिनियों में गया जा सकता है।

इसमें लिखी गई सारी कविताएं विरह के ऊपर है। वो भी गोपियों और कृष्ण के बीच का बिरह। लेकिन सूरदास के विरह चित्रण में भी एक तरह की शांति गोपियों में देखने को मिलती है क्योंकि उन्होंने कृष्ण को अपना मान लिया है और उसके पास रहने या दूर जाने से उनके प्रेम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

सूरदास जी अपनी रचनाओं के जरिए आम लोगों के सामने प्रेम का एक ऐसा रूप लेकर आना चाहते हैं जो स्वार्थी नहीं है और जिसमें भक्ति भी मिली हुई है। उनका मानना है, कि आपका आराध्य आपके लिए कुछ भी हो सकता है अगर आप उस सच्चे तरीके से प्रेम और भक्ति करते हैं तो।

सूरदास का जीवन परिचय एवं रचनाएँ | Surdas ki Rachnaye

सूरदास जी, भक्ति काल के एक महान कवि थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं से कृष्ण भक्ति को जन-जन तक पहुंचाया। उनकी रचनाओं में कृष्ण के बाल रूप और उनकी लीलाओं का सुंदर वर्णन मिलता है। सूरदास जी की प्रमुख रचनाएँ (surdas ji ki rachnaen) इस प्रकार हैं।

कृति का नामसंक्षिप्त विवरण
सूरसागर• सूरदास की सबसे प्रसिद्ध कृति• लगभग 1,00,000 पद बताए जाते हैं, पर आज लगभग 7,000 ही उपलब्ध हैं
• इसमें श्रीकृष्ण के बाल्यकाल, रासलीला और भक्तिभाव का विस्तृत चित्रण
सूरसारावली• इसमें ब्रह्म और जीव के सम्बन्ध का दार्शनिक विवेचन
• भक्ति और अध्यात्म का समन्वय
साहित्य लहरी• इसमें 118 पद्य संग्रहित
• काव्यशास्त्र, रस और अलंकारों पर आधारित कृति
नल-दमयंती रति-रैणु• नल और दमयंती की प्रेमकथा का चित्रण
बिहार चंपू• कृष्ण और राधा की रासलीला का संगीतमय चित्रण
भ्रमरगीत सार• इसे सूरदास की श्रेष्ठ रचनाओं में गिना जाता है
• श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने पर गोपियों के विरह और उनके द्वारा उद्गार व्यक्त करना इसमें मुख्य है
• गोपियों ने श्रीकृष्ण के संदेशवाहक उद्धव से संवाद करते हुए भ्रमर (भौंरे) को अपना साक्षी और माध्यम बनाया
• इसमें भक्ति, प्रेम और विरह का गहन दर्शन है
• इसे उद्धव-गोपि संवाद भी कहते हैं

सूरसागर किसकी रचना है | Surasagar kiski Rachna Hai

Surasagar kiski rachna hai? सूरदास द्वारा रचित सूरसागर उनकी सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक मानी जाती है। कहते हैं अगर किसी को Surdas ka Jivan Parichay(सूरदास का जीवन परिचय) एवं रचनाओं के संबंध में जानना है तो उसे इसी किताब से मदद मिल सकती है।

सूरदास की रचना

सूरसागर को 12 स्कंधों में बांटा गया है जैसा श्रीमद् भागवत गीता में भी देखा जाता है। लोगों के मुताबिक इसमें कुल 4926 पद लिखे गए हैं। इन स्कंधों में ही सिर्फ कृष्ण और सूरदास की भक्ति भावना के बारे में नहीं बल्कि अन्य भक्तों और भगवानों के बारे में भी बताया गया है।

कृष्ण लीलाओं का चित्रण

सूरसागर की दृष्टि से इसमें कृष्ण के बाल रूप का सबसे सुंदर वर्णन मिलता है। कृष्ण के बाल लीलाओं की चर्चा सूरसागर में दसवें स्कंद से शुरू होती है जिसमें कुल 1000 से ज्यादा पद मिलते हैं। इसमें कृष्ण के बाल जीवन के अलावा उनके द्वारका जाने से लेकर अंत तक की कथा मिलती है। इस दसवें स्कंद में मूल रूप से पांच बातें आपको देखने को मिल जाएंगे और वह पांच बातें हैं बाल लीला, गोचारण, वंशीवादन, रासलीला और भ्रमरगीत।

सूरसागर में सूरदास का वात्सल्य वर्णन और कृष्ण की बाल लीला पर सबसे अधिक पद मिलते हैं। इसमें दिखाया जाता है कि कैसे कृष्ण बचपन से ही राक्षसों को मारते आए हैं और बड़े होने के साथ द्वारा का जाकर कंस का वध करने का दायित्व भी वह पूरा करते हैं।

बाल लीला और वात्सल्य वर्णन के अलावा इसमें श्रृंगार का भी बहुत महत्वपूर्ण भाग दिखाता है। सूरदास ने दिखाया है कि बहुत लंबे समय बाद कृष्ण और राधा का मेल कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद होता है। इस मिलन में श्रृंगार और प्रेम का ऐसा रूप सूरदास सामने लेकर आते हैं जो भक्तों को पूरी तरीके से मोहित करने के लिए काफी है।

सामाजिक और आध्यात्मिक संदेश | Surdas ka Parichay

  1. अगर सूरदास से जुड़ी कोई भी आलोचना की किताब पढ़ेंगे, तो आपको पता चलेगा कि सूरदास को ज्यादातर लोग उनकी भक्ति तथा वात्सल्य से पूर्ण रचनाओं के लिए ही जानते हैं। लेकिन उनके पदों में स्पष्ट रूप से ना सही लेकिन सांकेतिक रूप में कई तरह के सामाजिक प्रसंग सामने उठकर आते हैं।
  2. आज जिस नारी चेतना तथा नारी सशक्तिकरण के ऊपर इतनी बातें खुलकर होती है, उसका उल्लेख सूरदास ने बहुत पहले ही अपनी रचनाओं के जरिए पेश किया था। सूरदास की सबसे प्रमुख रचना भ्रमरगीत में दिखाया जाता है की कैसे कृष्ण की गोपियों अपना प्रेमी चुनने के लिए स्वतंत्र है और अगर कोई उन्हें तर्क देकर भी कृष्ण के प्रेम से हटाना चाहे तब भी वह उनका जवाब तड़क और व्यंग्य से देती है। इससे यह स्पष्ट होता है कि सूरदास स्त्रियों को अबला नहीं मानते थे। उन्हें यह चीज बहुत पहले ही मालूम थी कि स्त्रियों के पास भी बुद्धि है और वह अपने बुद्धि के बल पर निर्णय ले सकती हैं।
  3. सूरदास कृष्ण के के माध्यम से और रूपकों के इस्तेमाल से समाज के कई सारे बड़े समस्याओं को हमारे सामने लेकर आते हैं जैसे: किसानों का शोषण, साहूकार और जमींदारों का झूठा वही लिखना तथा उनका अत्याचार। सूरदास इन बातों के बारे में सूरसागर में लिखते हैं कि-

भोहरिल पांच सार्थ करर हदने, नतनकी बड़ी षवर्रीनत।
जिम्मे उनके, मांग मोतै, यि तो बड़ी अनीनत
पांच-पचिस सार्थ अगवानी, सब मिली काज बिगारै
सुनी तागीरी, बबसरर गईं सुधी, मो ताजी भए नियारे।

तुलसीदास या कबीर की तरह सूरदास की रचनाओं में सामाजिक समस्या भले ही मुखर तरीके से सामने ना आए लेकिन सामने जरूर आती है। सूरदास अपनी सभी रचनाओं में यही बताते हैं कि अगर इन सभी तरीके के दुखों से छुटकारा पाना है तो आपको सच्चा भक्त बनना पड़ेगा। और सच्चा भक्त बनने के लिए सच्ची भक्ति करनी आवश्यक है।

सूरदास की भाषा और काव्यगत विशेषताएँ

  • भाषा की विशेषताएँ
    • सूरदास ने मुख्य रूप से ब्रजभाषा का प्रयोग किया, जो सरल, मधुर और भावप्रवण है।
    • उनकी भाषा में लोकजीवन की सहजता और ग्रामीण संस्कृति की झलक मिलती है।
    • संस्कृत और अरबी-फ़ारसी शब्दों का प्रयोग बहुत कम है, जिससे उनकी रचनाएँ आम जनता तक आसानी से पहुँचीं।
    • उपमा, रूपक, अनुप्रास और दृष्टांत जैसे अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है।
  • काव्यगत विशेषताएँ
    • सूरदास के काव्य का प्रमुख विषय श्रीकृष्ण भक्ति है।
    • उन्होंने बाललीला, माखन-चोरी, गोपी-प्रेम, और राधा-कृष्ण की रासलीलाएँ बड़े ही जीवंत ढंग से चित्रित की हैं।
    • उनके पदों में मानवीय भावनाओं – प्रेम, विरह, वात्सल्य और भक्ति – का अद्भुत समन्वय है।
    • सूरदास की रचनाओं में मानवीकरण और भावनात्मक चित्रण इतनी गहराई से मिलता है कि पात्र जीवंत प्रतीत होते हैं।
    • वेदांत और भक्ति आंदोलन की शिक्षाओं का गहरा प्रभाव दिखता है।
    • उनके काव्य को “भक्ति युग का अमूल्य रत्न” कहा जाता है।
  • रचनात्मक शैली
    • सूरदास ने अपनी कविता में श्रृंगार रस और वात्सल्य रस को सर्वाधिक महत्व दिया।
    • उनकी कल्पना शक्ति अत्यंत प्रखर थी, जिसके कारण कृष्ण की बाल-छवियाँ मानो आंखों के सामने उतर आती हैं।
    • गीतात्मकता और संगीतमयता उनके काव्य की विशेष पहचान है।

सूरदास के दोहे(Surdas ke Dohe) | Surdas ke Pad

जो पै जिय लज्जा नहीं, कहा कहौं सौ बार।
एकहु अंक न हरि भजे, रे सठ ‘सूर’ गँवार॥

सूरदास जी कहते हैं कि हे गँवार दुष्ट, अगर तुझे अपने दिल में शर्म नहीं है, तो मैं तुझे सौ बार क्या कहूँ क्योंकि तूने तो एक बार भी भगवान् का भजन नहीं किया।

सुनि परमित पिय प्रेम की, चातक चितवति पारि।
घन आशा सब दुख सहै, अंत न याँचै वारि॥

प्रिय के प्रेम के या परिणाम की महत्ता को जानकर या सुनकर पपीहा बादल की ओर निरंतर देखता रहता है। उसी मेघ की आशा से सब दु:ख सहता है पर मरते दम तक भी पानी के लिए प्रार्थना नहीं करता। सच्चा प्रेम अपने प्रेमी से कभी कुछ नहीं माँगता या चाहता।

मीन वियोग न सहि सकै, नीर न पूछै बात।
देखि जु तू ताकी गतिहि, रति न घटै तन जात॥

चाहे पानी मछली की बात भी नहीं पूछता फिर भी मछली तो पानी का वियोग नहीं सह सकती। तुम मछली के प्रेम की निराली गति को देखो कि इसका शरीर चला जाता है तो भी उसका पानी के प्रति प्रेम रत्ती-भर भी कम नहीं होता।

जिन जड़ ते चेतन कियो, रचि गुण तत्व विधान।
चरन चिकुर कर नख दिए, नयन नासिका कान॥

जिस ईश्वर ने सत्व, रज, तम—इन तीन गुणों तथा पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश—इन पाँच तत्वों के द्वारा जड़ से चेतन बना दिया और हाथ, पाँव, आँख, नाक, बाल और नाखून दिए (बड़े दु:ख की बात है मनुष्य उसके गुणों का स्मरण नहीं करता)।

“चरण कमल बंदौ हरि राई, जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै,
अंधा को सब कछु दरसाई।” 

मैं भगवान श्रीहरि के कमल जैसे चरणों की वंदना करता हूँ। उनकी कृपा इतनी महान है कि अगर वे कृपा कर दें तो एक अपंग (लंगड़ा) व्यक्ति भी पहाड़ को पार कर सकता है।

“अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।।” 

अब राम नाम का जप मेरे जीवन का हिस्सा बन गया है। मुझे इसकी आदत पड़ गई है – यह रट अब कैसे छूटेगी?

सूरदास की अंधता और उनकी रचनात्मकता | Surdas ka Jivan Parichay Class 10

अंधता के प्रभाव पर चर्चा

  • सूरदास का जीवन परिचय(Surdas ka Jivan Parichay) अगर ध्यान से देखा जाए तो एक बात तो सच है कि वह अंधे तो अवश्य थे। लेकिन सोचने वाली बात है कि अंधे होने के बावजूद उन्होंने इतनी रचनाएं आंखें कैसे की होगी?
  • माना जाता है कि सूरदास अंधे होने के साथ-साथ अनपढ़ भी थे। लेकिन उनके गीतों और कविताओं का जब वो उच्चारण करते तब उनके ही शिष्य में से कोई उन कविताओं को लिख लिया करता था।
  • प्रचलित मान्यताओं के मुताबिक दिल्ली के बादशाह अकबर ने भी उनकी रचनाओं को लिखकर एक संकलन बनाने का आदेश दिया था।बादशाह अकबर सूरदास की प्रतिभा से प्रसन्न थे और वह चाहते थे कि सूरदास उनके दरबार का हिस्सा बने।
  • सूरदास ने उनके इस आमंत्रण को मना कर दिया और इस मंदिर में कीर्तन करते रहे। अकबर ने भी उनके इस निर्णय का पूरा सम्मान किया था। इस कथा की पूरी तरह से पुष्टि तो नहीं होती है लेकिन अकबरनामा में सूरदास नामक एक व्यक्ति का नाम जरूर मिलता है।
  • ऐसा माना जाता है कि अंधे होने के बावजूद सूरदास की भक्ति भावना इतनी ज्यादा प्रबल थी कि उन्हें एक बार नहीं लेकिन कई बार कृष्ण के और राधा के भी दर्शन हुए थे। हालांकि उन्होंने कृष्ण को देखा सिर्फ एक ही बार था लेकिन उन्हें कृष्ण और राधा से जुड़ी अनुभूतियां समय-समय पर होती रही थी।

आध्यात्मिक अनुभव और उनका काव्य में प्रतिबिंब

  • एक समय के बाद सूरदास ने अपने आप को कृष्ण की भक्ति में ऐसा ली कर लिया था कि उनकी कृष्ण से मिलने की व्याकुलता बढ़ती जा रही थी।
  • उन्होंने अपनी कई रचनाओं में लिखा है, कि वह अपने आपको भाग्यशाली मानेंगे अगर उन्हें कृष्ण के चरणों की धूल मिल जाती है तो या वह वृंदावन की नदी के तट पर बसाना चाहते हैं, ताकि वह कृष्ण की लीलाओं को हर रोज आंखों के सामने देख सके।
  • सूरदास ने अपनी रचनाओं में कृष्ण की कई महत्वपूर्ण लीला जैसे कालिया दमन गोवर्धन पर्वत प्रसंग और पूतना वाद का भी उल्लेख किया है।
  • इसके अलावा उन्होंने कृष्ण और गोपियों के बीच प्रेम का जो संबंध स्थापित किया है वह असल में भक्त और प्रभु के बीच का संबंध जाहिर करता है।
  • जिस तरह गोपिया कृष्ण को हमेशा अपने के लिए या देखने के लिए उसकी धुन में मगन रहती है। उसके खिलाफ कोई भी बुरी बात नहीं सुन सकती हैं इस तरह भक्त भी अपने आराध्य या भगवान के करीब जाने के लिए उनसे मिलने के लिए उनकी पूजा वंदना करते रहते हैं।

सूरदास और अकबर का सम्बन्ध (दरबारी संगीतज्ञ के रूप में)

  • अकबर के दरबार से जुड़ाव
    • प्रसिद्ध ग्रंथ आइने-ए-अकबरी और मुतख़ब-उत-तवारीख में सूरदास का उल्लेख एक दरबारी गायक के रूप में मिलता है।
    • उन्हें सम्राट अकबर ने अपने दरबार के नवरत्नों में शामिल नहीं किया, लेकिन दरबारी संगीतज्ञ के रूप में मान्यता दी।
  • संगीत और काव्य की ख्याति
    • सूरदास ब्रजभाषा के महान कवि तो थे ही, साथ ही संगीत की गहरी समझ रखते थे।
    • उनकी मधुर गायकी से प्रभावित होकर अकबर ने उन्हें विशेष सम्मान दिया।
  • भक्ति और दरबार का संतुलन
    • भले ही सूरदास का जीवन भक्ति मार्ग से जुड़ा था, लेकिन उनकी कला और संगीत ने उन्हें शाही दरबार तक पहुँचाया।
    • वे दरबार में रहते हुए भी अपने कृष्ण-भक्ति और रचनात्मक कार्यों को जारी रखते रहे।
  • इतिहासकारों की मान्यता
    • कुछ विद्वान मानते हैं कि सूरदास का अकबर से सीधा संबंध नहीं था, बल्कि यह केवल लोककथाओं और उल्लेखों पर आधारित है।
    • फिर भी, साहित्य और इतिहास में उन्हें अकबर के दरबार के प्रख्यात गायक के रूप में याद किया जाता है।
surdas ki jivani

सूरदास की मृत्यु

सूरदास जी का निधन लगभग 1583 ईस्वी में हुआ था। उनके जीवन और मृत्यु के सटीक विवरण पर मतभेद हैं, परंतु वे अपने जीवन के अंतिम समय में गौतम तीर्थ (गोवर्धन के निकट) में निवास करते थे। यह गांव ही उनकी अंतिम निवास स्थान था। उनकी मृत्यु स्वाभाविक थी, क्योंकि उनकी उम्र 100 वर्ष से अधिक थी।

सूरदास की विरासत और उनका प्रभाव

भक्ति आंदोलन में योगदान

जब भक्ति आंदोलन अपने चरण पर था, तब सूरदास जी शगुन काव्यधारा के कृष्ण काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि के रूप में सामने आए थे। उनकी रचनाओं की भाषा इतनी सरल और सुंदर होती थी कि आम जनता को उन्हें समझने में कोई दिक्कत नहीं पहुंचती थी।

भक्ति आंदोलन के दौरान जहां देश में एक अशांति का माहौल बना हुआ था वही सूरदास की रचनाएं इन्हीं अशांत दिलों में प्रेम और भक्ति के भाव को बढ़ावा दे रही थी। सूरदास अकेले नहीं बल्कि उनके गुरु श्री वल्लभाचार्य के अन्य शिष्यों के साथ मिलकर कृष्ण भक्ति का प्रचार पूरे भारत में करने की कोशिश कर रहे थे।

आधुनिक साहित्य पर प्रभाव

सूरदास ने सिर्फ भक्ति के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि हिंदी साहित्य के क्षेत्र में भी बहुत नाम कमाया है। आज भी जब कोई महान कवियों की गिनती करता है तो सूरदास का नाम उस लिस्ट में जरूर मिलता ही है। ऐसा इसलिए क्योंकि सूरदास के पद की व्याख्या से हमें उस समय के साहित्य स्थिति का ज्ञान होता है साथ ही उनके पदों में जिस तरह के अलंकार और रस मिलते हैं उनका महत्व हिंदी साहित्य में बहुत अधिक है। सूरदास ने अपनी रचना में संस्कृत का उपयोग न करके अवधि भाषा का सहारा लिया जिसकी मदद से हिंदी भाषा आगे चलकर और भी ज्यादा साफ और प्रखर तरीके से लोगों के सामने आ पाई।

सूरदास का जीवन परिचय कक्षा 10 | Surdas ka Jivan Parichay Class 10

सूरदास हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि और भक्ति संत थे। वे भगवान कृष्ण के परम भक्त थे और उनकी भक्ति में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। सूरदास का जन्म संवत 1478 (सन् 1478 ई.) में हुआ था। उनके पिता का नाम रामदयाल था। कुछ विद्वान उनके जन्मस्थान को हिंदी क्षेत्र के उज्जैन मानते हैं।

सूरदास बचपन में ही दृष्टिहीन हो गए थे, लेकिन इससे उनकी भक्ति और रचनात्मकता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वे बालकृष्ण और कृष्ण लीला के कवि माने जाते हैं। उनकी रचनाओं में प्रेम, भक्ति और करुणा का अद्भुत संगम मिलता है।

उनकी प्रमुख रचना सूरसागर है, जिसमें भगवान कृष्ण के जीवन और लीलाओं का वर्णन है। इसके अलावा उन्होंने सूरसप्तक, सूरसप्तशती और सुरसिंहावलोकन जैसी रचनाएँ भी लिखीं। उनकी भाषा सरल, भावपूर्ण और आम जनता के लिए सुगम है।

सूरदास का निधन संवत 1583 (सन् 1583 ई.) में हुआ। उन्हें हिंदी साहित्य में भक्ति काल के महान कवि और कृष्ण भक्त कवि के रूप में हमेशा याद किया जाता है।

सूरदास का जीवन परिचय कक्षा 11 | Surdas Ka Jivan Parichay Class 11

सूरदास हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि और भक्ति संत थे। वे भगवान कृष्ण के परम भक्त थे और उनकी भक्ति में उन्होंने अपने जीवन को पूर्णतः समर्पित कर दिया। सूरदास को विशेषकर बृजभाषा में रचित उनकी रचनाओं के लिए जाना जाता है। उनका जन्म संवत 1478 (सन् 1478 ई.) में हिंदी क्षेत्र के उज्जैन या अज्ञात स्थान में हुआ था। उनके पिता का नाम रामदयाल था।

सूरदास बचपन में ही दृष्टिहीन हो गए थे, परन्तु उनकी आंतरिक दृष्टि और भक्ति की गहराई अद्वितीय थी। वे कृष्ण लीला और बालकृष्ण के प्रेम के कवि माने जाते हैं। उनकी रचनाएँ मुख्यतः कृष्ण भक्ति, प्रेम, रासलीला और भक्तियोग से भरपूर हैं।

सूरदास की प्रमुख कृति सूरसागर है, जिसमें 100,000 से अधिक पद हैं। इसके अलावा उन्होंने सूरसप्तक, सूरसप्तशती और सुरसिंहावलोकन जैसी रचनाएँ भी लिखीं। उनकी कविताएँ सरल, भावपूर्ण और लोकजीवन से जुड़ी हुई हैं।

सूरदास का निधन संवत 1583 (सन् 1583 ई.) में हुआ। उन्हें हिंदी साहित्य में भक्ति काल के महान कवि और कृष्ण भक्त कवि के रूप में हमेशा स्मरण किया जाता है।

सूरदास का जीवन परिचय | Surdas ka Jivan Parichay Short Mein

सूरदास हिंदी साहित्य के महान कवि और भक्ति संत थे। उनका जन्म संवत 1478 (सन् 1478 ई.) में हुआ। वे बचपन में दृष्टिहीन हो गए, लेकिन इससे उनकी भक्ति और लेखन क्षमता पर कोई असर नहीं पड़ा। सूरदास भगवान कृष्ण के परम भक्त थे और उनकी भक्ति में अपना जीवन समर्पित कर दिया।

उनकी प्रमुख रचना सूरसागर है, जिसमें कृष्ण की लीलाएँ और भक्ति का सुंदर चित्रण है। इसके अलावा उन्होंने सूरसप्तक और सूरसप्तशती जैसी रचनाएँ भी लिखीं। उनकी भाषा सरल, मधुर और भावपूर्ण है।

सूरदास का निधन संवत 1583 (सन् 1583 ई.) में हुआ। उन्हें हिंदी साहित्य में भक्ति काल के महान कवि और कृष्ण भक्त कवि के रूप में हमेशा याद किया जाता है।

यहां पढ़ें ऐसे ही महान लोगो की जीवन की कहानियां जो हमें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।

लेखक का संदेश (Author’s Message) –

नमस्ते प्यारे पाठकों,

मैं आपको बताना चाहती हूँ, कि सूरदास का जीवन सिर्फ एक कवि की कहानी नहीं है, बल्कि यह भक्ति, संघर्ष और आत्मबल का प्रतीक है। उन्होंने अपनी रचनाओं में श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं, प्रेम और वात्सल्य को इस तरह उतारा कि वह आज भी करोड़ों लोगों के दिलों में गूंजता है।

यही कारण है कि मैंने यह लेख लिखा है, ताकि सूरदास का जन्म, शिक्षा, गुरु, रचनाएँ और योगदान का संपूर्ण परिचय आपके साथ बाँट सकूँ। यह केवल इतिहास नहीं, बल्कि वह प्रेरणा है जो हमें सिखाती है कि जीवन की कठिनाइयों के बावजूद मनुष्य अपने कर्म और श्रद्धा से अमर हो सकता है।

मेरा दिल चाहता है कि जब आप इस पेज को पढ़ें, तो आपको भी वह भक्ति, वह ऊर्जा और वह प्रेरणा मिले जो सूरदास के जीवन से मिलती है।

आपकी साथी और शुभचिंतक,
आकृति जैन।

निष्कर्ष

इस पूरे लेख को ध्यान में रखते हुए कह सकते हैं कि सूरदास साफ ब्रजभाषा का प्रयोग करते थे। उन्हें ब्रजभाषा का सर्वश्रेष्ठ कवि कहा जाता है। कृष्ण के बाल का लीलाओं का, राधा कृष्ण के प्रेम का और गोपियों के साथ विरह वेदना का दिल को दिल को छू जाने वाली मार्मिक चित्रण सूरदास जी ने बड़ी सफलतापूर्वक किया है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. सूरदास के जीवन की प्रमुख घटनाएँ कौन सी हैं?

    बल्लभाचार्य से भेंट, कृष्ण भक्ति की शुरुआत और सूरसागर की रचना प्रमुख घटनाएँ हैं।

  2. सूरदास के प्रमुख शिष्यों में कौन-कौन थे?

    सूरदास के प्रमुख शिष्य नागरीदास और मीराबाई थीं।

  3. सूरदास के साहित्य में किस प्रकार के धार्मिक अनुष्ठानों का वर्णन है?

    सूरदास के साहित्य में होली, जन्माष्टमी, और रास लीला जैसे धार्मिक अनुष्ठानों का वर्णन है।

  4. सूरदास के साहित्य में किस प्रकार का नैतिक उपदेश है?

    उनके साहित्य में नैतिकता, सच्चाई और धर्म की शिक्षा दी गई है।

  5. सूरदास की मृत्यु कब हुई?

    सूरदास की मृत्यु की तारीख पर विभिन्न मत हैं, लेकिन यह माना जाता है कि उन्होंने 16वीं सदी के अंत में या 17वीं सदी की शुरुआत में परलोक गमन किया।

  6. Surdas kis kaal ke kavi Hain?

    सूरदास भक्तिकाल के कवि हैं। भक्तिकाल हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण युग है, जो लगभग 1350 ई. से 1700 ई. तक माना जाता है। इस काल में कविता का मुख्य उद्देश्य था – ईश्वर की भक्ति, और इसी कारण इसे “भक्ति युग” कहा गया।

  7. सूरदास का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

    सूरदास का जन्म लगभग 1478 ईस्वी में आगरा के पास रुनकता गाँव में हुआ था। वे भक्ति काल के प्रमुख कवियों में से एक थे और भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे।

  8. सूरदास को अष्टछाप का कवि क्यों कहा जाता है?

    संत वल्लभाचार्य द्वारा श्रीनाथजी की सेवा के लिए चुने गए आठ कवियों को “अष्टछाप” कहा गया। सूरदास इनमें सबसे प्रमुख और श्रेष्ठ कवि माने जाते हैं।

  9. सूरदास किस कारण प्रसिद्ध हैं?

    सूरदास भक्ति काल के महान कवि थे। वे अपनी रचनाओं जैसे सूरसागर में श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं, रास-लीलाओं और वात्सल्य रस के अद्भुत चित्रण के लिए प्रसिद्ध हैं।

  10. क्या सूरदास जन्म से अंधे थे?

    सूरदास जन्म से ही नेत्रहीन (अंधे) थे।
    इसी कारण उन्हें जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन अपनी असाधारण स्मरण शक्ति और भक्ति भाव से उन्होंने सूरसागर जैसी अमर कृतियों की रचना की और भक्ति आंदोलन के महान कवि बने।

  11. सूरदास किसके भक्त थे?

    सूरदास भगवान कृष्ण के परम भक्त थे। उन्होंने अपने जीवन और काव्य में कृष्ण भक्ति का सर्वोच्च स्थान दिया और उनकी लीलाओं, बाललीला और रासलीला को अपने गीतों और कविताओं में व्यक्त किया।

  12. सूरदास के प्रमुख ग्रंथ कौन-कौन से हैं?

    सूरदास की प्रमुख रचनाएँ हैं- सूरसागर, सूरसारावली, और साहित्य लहरी। इनमें से सूरसागर उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति है, जिसमें श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का अद्भुत वर्णन मिलता है।

  13. सूरदास को ‘वात्सल्य रस का सम्राट’ क्यों कहा जाता है?

    सूरदास को “वात्सल्य रस का सम्राट” इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने कृष्ण की बाल लीलाओं और यशोदा के मातृत्व भाव को अत्यंत कोमलता और प्रेम के साथ चित्रित किया है।

Authored by, Aakriti Jain
Content Curator

Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.

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