Quick Summary
देश की आजादी के बाद भारत दो हिस्सों में विभाजित हो गया। एक हिस्सा भारत और एक हिस्सा पाकिस्तान बना। भारत के हिस्से में देश का अधिक भाग था। लेकिन पाकिस्तान भारत के कई हिस्सों पर कब्जा करने के लिए भारत पर बार बार हमला करते रहा, जिससे कि दोनों देशों के बीच तनाव का माहौल बना रहता था। इस तनाव को कम करने के लिए दोनों देशों के बीच कई समझौते हुए, जिनमें से एक शिमला समझौता भी है। शिमला समझौता क्या है, शिमला समझौता कब हुआ और शिमला समझौता किसके बीच हुआ, इस बारे में यहां विस्तार से जानेंगे।
शिमला समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच एक शांति समझौता है जो 2 जुलाई 1972 को शिमला में हुआ था। यह समझौता 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश के निर्माण के बाद हुआ था। इस समझौते पर भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किए थे। शिमला समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच तनाव कम करना, युद्धबंदियों की अदला-बदली करना, और भविष्य में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा देना था।
इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच संवाद और सहयोग को बढ़ावा देकर दीर्घकालिक शांति और स्थिरता को बढ़ावा देना था। हालांकि, यह उद्देश्य लंबे समय तक सही से नहीं चल पाया और देश के बीच शांति बनाए रखना मुश्किल हो गया।
| पूरा नाम | भारत सरकार और इस्लामी गणराज्य पाकिस्तान सरकार के बीच द्विपक्षीय संबंधों पर समझौता |
| प्रकार | Peace Treaty (शांति संधि) |
| सन्दर्भ | Bangladesh Liberation War (बांग्लादेश मुक्ति युद्ध) |
| प्रारूपण | 28 June 1972 |
| हस्ताक्षरित(Signed) | 2 जुलाई 1972; 52 वर्ष पूर्व |
| स्थान | Shimla, Barnes court (Raj bhavan) Himachal Pradesh, India |
| मोहरबंदी | 7 August 1972 |
| प्रवर्तित | 4 August 1972 |
| शर्तें | दोनों पक्षों का अनुसमर्थन |
| हर्ताक्षरकर्तागण(Parties Involved) | Indira Gandhi (Prime Minister of India) Zulfiqar Ali Bhutto (President of Pakistan) |
| भागीदार पक्ष | भारत पाकिस्तान |
| संपुष्टिकर्ता | Parliament of India Parliament of Pakistan |
| निक्षेपागार | Governments of Pakistan and India |
| भाषाएँ | हिंदी उर्दू English |
हाल के वर्षों में, पाकिस्तान ने इस समझौते को तोड़ने या स्थगित करने की धमकी दी है, जिससे भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ सकता है।
शिमला समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच 2 जुलाई 1972 को हुआ एक शांति समझौता था। इसका उद्देश्य 1971 के युद्ध के बाद दोनों देशों के संबंधों को सामान्य बनाना और भविष्य में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व सुनिश्चित करना था। यह समझौता भविष्य में दोनों देशों के बीच शांति और स्थिरता बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
शिमला समझौते के उद्देश्य में निम्नलिखित शामिल हैं।
शिमला समझौता 2 जुलाई 1972 को भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ था। यह समझौता प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो के बीच हस्ताक्षरित हुआ था, जिसका मुख्य उद्देश्य 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद शांति और आपसी संबंधों को सामान्य करना था।
शिमला समझौता भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के बीच 2 जुलाई, 1972 हुआ। शिमला समझौते पर भारत और पाकिस्तान सरकार ने शिमला में हस्ताक्षर किए थे, जो उत्तर भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश में स्थित है।
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने अपने देशों के बीच संबंधों को स्थिर करने के लिए इस समझौते की जरूरत को समझा।
1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध, जिसे बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण संघर्ष था जिसके कारण बांग्लादेश का निर्माण हुआ। यह युद्ध पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चले आ रहे तनाव से भड़का था, जो 1970 के चुनावों के बाद पश्चिमी पाकिस्तान द्वारा सत्ता हस्तांतरण से इनकार करने के कारण और भी बढ़ गया था, जिसमें शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व वाली अवामी लीग ने जीत हासिल की थी।
संघर्ष 3 दिसंबर, 1971 को शुरू हुआ, जब पाकिस्तान ने भारतीय वायु सैनिक ठिकानों पर हवाई हमले किए, जिससे पूर्ण पैमाने पर युद्ध छिड़ गया। पूर्वी मोर्चे पर, भारतीय और मुक्ति वाहिनी सेनाएँ तेज़ी से आगे बढ़ीं और 16 दिसंबर को ढाका पर कब्ज़ा कर लिया, जिसके कारण 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया। पश्चिमी मोर्चे पर, भारतीय सेना ने भी महत्वपूर्ण लाभ अर्जित किया। युद्ध बांग्लादेश के निर्माण के साथ समाप्त हुआ और दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक परिदृश्य में एक गहरा बदलाव आया। युद्धोत्तर मुद्दों को सुलझाने तथा भावी संबंधों के लिए रूपरेखा स्थापित करने के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच 1972 में शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किये गये।
शिमला समझौता भारत और पाकिस्तान सरकार के बीच हुआ था। समझौते में भारत की कांग्रेस सरकार और पाकिस्तान के पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के बीच हुआ था। शिमला समझौते पर हस्ताक्षर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नेता में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो शामिल थे।
शिमला समझौते में मुख्य रूप से तीन शर्तों पर फोकस किया गया था, इन शर्तों के बारे में आगे विस्तार से जानेंगे।
1. सीमा का निर्धारण – शिमला समझौते की एक शर्त जम्मू और कश्मीर के विवादित क्षेत्र में नियंत्रण रेखा (एलओसी) का सीमांकन करना था, जिससे भारत और पाकिस्तान प्रशासित क्षेत्रों के बीच एक स्पष्ट सीमा स्थापित हो सके।
2. शांतिपूर्ण वार्ता – शिमला समझौते में जिस दूसरी शर्त पर जोर दिया गया, वह थी भारत और पाकिस्तान के बीच सभी विवादों को शांतिपूर्ण वार्ता और द्विपक्षीय चर्चा के माध्यम से हल करने की प्रतिबद्धता है। इसका उद्देश्य सशस्त्र संघर्ष से बचना और लंबित मुद्दों के कूटनीतिक समाधान को बढ़ावा देना था।
3. स्थायी शांति – शिमला समझौते ने एक-दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए आपसी सम्मान को बढ़ावा देकर क्षेत्र में स्थायी शांति और स्थिरता हासिल करने की भी मांग की। इसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच दीर्घकालिक शांति और सहयोग के लिए अनुकूल माहौल बनाना था।
शिमला समझौता का प्रभाव दोनों देशों बीच सकारात्मक रूप से देखा गया, जो दोनों देश के विकास के लिए जरूरी था।
शिमला समझौता 1972 और शिमला समझौता 1945 दो अलग-अलग घटनाएं हैं। शिमला समझौता 1945 को शिमला सम्मेलन के नाम से जाना जाता है। 1945 का शिमला सम्मेलन ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता पाने के लिए किया गया सम्मेलन है। यह 25 जून से 14 जुलाई तक चला, जिसमें जवाहरलाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना की मुख्य भूमिका रही। साथ ही भारत के वायसराय लॉर्ड वेवेल भी ब्रिटिश शासन प्रतिनिधि के तौर पर उपस्थित थे।
1945 की वेवेल योजना, जिसे वेवेल-ब्राह्मण योजना के रूप में भी जाना जाता है, 1945 में भारत के ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड वेवेल द्वारा प्रस्तुत एक प्रस्ताव था। इसका उद्देश्य भारतीय स्वतंत्रता और पाकिस्तान के निर्माण के मुद्दे पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के बीच राजनीतिक गतिरोध को दूर करना था।
इस योजना में कांग्रेस और लीग दोनों के बराबर प्रतिनिधित्व वाली एक कार्यकारी परिषद के गठन के प्रस्ताव शामिल थे, जिसके अध्यक्ष वायसराय थे।इस योजना को अंततः कांग्रेस और लीग दोनों ने अस्वीकार कर दिया, जिससे राजनीतिक तनाव और बढ़ गया और अंततः 1947 में भारत और पाकिस्तान का विभाजन हो गया।
1971 में भारत-पाक युद्ध के बाद 2 जुलाई 1972 को भारत के शिमला शहर में एक ऐतिहासिक समझौता हुआ, जिसे शिमला समझौता कहा जाता है। इस समझौते पर भारत की ओर से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान की ओर से प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किए।
रिपोर्टों के अनुसार, भारत द्वारा सिंधु जल समझौते पर पुनर्विचार और जल आपूर्ति पर रोक की संभावना के बीच पाकिस्तान अब शिमला समझौता (1972) से पीछे हटने की तैयारी कर रहा है।
भारत और पाकिस्तान के बीच यह ऐतिहासिक समझौता 2 जुलाई 1972 को हुआ था, जो 1971 के युद्ध के बाद संबंधों को सामान्य बनाने और विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने की दिशा में एक बड़ा कदम माना गया था।
इस समझौते के प्रमुख बिंदुओं में शामिल था कि:
पाकिस्तान की यह नई रणनीति न केवल शांति प्रयासों के लिए एक झटका है, बल्कि भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में और तनाव ला सकती है। इससे दोनों देशों के बीच राजनीतिक और कूटनीतिक टकराव की संभावना भी बढ़ जाती है।
अविश्वास प्रस्ताव: अर्थ, नियम और प्रक्रिया
शिमला समझौता एक महत्वपूर्ण राजनीतिक पहल थी, जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांति, स्थिरता और द्विपक्षीय समाधान की संस्कृति को बढ़ावा देना था। हालांकि, पाकिस्तान की तरफ़ से हुए बार-बार के उल्लंघनों ने इस समझौते की गंभीरता और विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए हैं। शिमला सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य युद्ध के बाद राजनीतिक भविष्य पर चर्चा करने लिए हुआ था। इस समझौते का उद्देश्य भारत की स्वतंत्रता के संदर्भ में रियासतों की स्थिति और शक्तियों को स्पष्ट करना था। शिमला सम्मेलन ने नई राजनीतिक संरचना में रियासतों की भागीदारी और भविष्य की भारतीय सरकार के साथ उनके संबंधों की शर्तें निर्धारित कीं। यह समझौता भारत की स्वतंत्रता और 1947 में देश के विभाजन के लिए राजनीतिक बातचीत किया गया।
1972 का शिमला समझौता भारत और पाकिस्तान के इतिहास में एक माइल स्टोन है, जो इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद हस्ताक्षरित इस समझौते ने द्विपक्षीय संबंधों के लिए एक महत्वपूर्ण रूपरेखा प्रदान की, जिसमें बातचीत और वार्ता के माध्यम से विवादों को हल करने के सिद्धांत पर जोर दिया गया।
शिमला समझौता (1972): वर्ष 1971 के युद्ध के बाद हस्ताक्षरित इस समझौते ने भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर में नियंत्रण रेखा (LOC) स्थापित कर दी।
1914 की शिमला संधि एक महत्वपूर्ण समझौता था, जिसे ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों की सहायता से भारत के शिमला में बातचीत करके तय किया गया था। इस संधि का उद्देश्य तिब्बत की सीमाओं को परिभाषित करना और ब्रिटिश भारत और चीन दोनों के साथ इसके संबंधों को रेखांकित करना था।
शिमला समझौता के प्रमुख विषय थे युद्ध बन्दियों की अदला-बदली, पाकिस्तान द्वारा बांग्लादेश को मान्यता का प्रश्न, भारत और पाकिस्तान के राजनयिक सम्बन्धों को सामान्य बनाना, व्यापार फिर से शुरू करना और कश्मीर में नियन्त्रण रेखा स्थापित करना।
शिमला सम्मेलन जून 1972 में आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन का आयोजन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति ज़ुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हुआ था
सम्मेलन के दौरान ‘मुस्लिम लीग’ द्वारा यह शर्त रखी गयी कि वायसराय की कार्यकारिणी परिषद में नियुक्त होने वाले सभी मुस्लिम सदस्यों का चयन वह स्वयं करेगी। ‘मुस्लिम लीग’ का यही अड़ियल रुख़ 25 जून से 14 जुलाई तक चलने वाले ‘शिमला सम्मेलन’ की असफलता का प्रमुख कारण बना।
शिमला समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच एक शांति संधि है, जो 2 जुलाई 1972 को हिमाचल प्रदेश के शिमला में हुई थी। यह समझौता 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का गठन हुआ था। इस समझौते पर भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किए थे।
Authored by, Aakriti Jain
Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.
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