Quick Summary
रहीम के दोहे भारतीय साहित्य के अनमोल रत्न हैं, जो सदियों से लोगों को प्रेरित और मार्गदर्शित करते आ रहे हैं। इन दोहों में जीवन के गहन सत्य और नैतिक मूल्यों को अत्यंत सरल और सुबोध भाषा में प्रस्तुत किया गया है, जो इन्हें हर आयु वर्ग के लिए सुलभ बनाता है।
रहीम के दोहे न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि जीवन के हर पहलू पर गहन मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। ये दोहे मानव जीवन के विभिन्न आयामों – व्यक्तिगत, सामाजिक, नैतिक और आध्यात्मिक – को स्पर्श करते हैं, और हर पाठक को कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। आइए रहीम के दोहों के विभिन्न पहलुओं को समझें और उनकी गहराई में जाएं, जो न केवल हमारी भाषाई समझ को बढ़ाता है, बल्कि हमें जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण भी प्रदान करता है।
रहीम के दोहे और उनके भावार्थ : रहीम के दोहे गहन अर्थ रखते हैं और जीवन के अलग-अलग पहलुओं को छूते हैं। यहां कुछ रहीम के दोहे की व्याख्या प्रस्तुत है:
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥
इस रहीम के दोहे की व्याख्या है: हीम कहते हैं कि प्रेम एक धागे के समान है। इस धागे को जल्दबाजी में मत तोड़ो। एक बार टूट जाने पर यह धागा फिर से नहीं जुड़ पाता। अगर किसी तरह जोड़ भी दिया जाए तो उसमें एक गाँठ रह जाती है, जो इस बात का प्रतीक है कि रिश्ता पहले जैसा कभी नहीं रह पाएगा।
खीरा मुख से काटिए, मलिए नमक लगाय।
रहिमन करुवे मुखन को, चाहिए यही उपाय॥
इस रहीम के दोहे की व्याख्या है: यह दोहा मानवीय व्यवहार पर केंद्रित है। रहीम कहते हैं कि जैसे कड़वे खीरे को काटकर नमक लगाने से खाया जा सकता है, उसी तरह कटु बोलने वालों के साथ भी नम्रता से व्यवहार करना चाहिए।
अब्दुर रहीम खान-ए-खाना, जिन्हें रहीम के नाम से जाना जाता है, मुगल साम्राज्य के एक प्रमुख कवि और सेनापति थे। उनका जन्म 17 दिसंबर 1556 को लाहौर में हुआ था। रहीम अकबर के नवरत्नों में से एक थे और उन्होंने कई भाषाओं में काव्य रचना की। उनके दोहे हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। रहीम के दोहे समाज के हर वर्ग को प्रभावित करते हैं और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं।
रहीम के दोहे समय पर हमें समय के महत्व को बखूबी समझाते हैं। वे हमें सिखाते हैं कि समय का सदुपयोग करना चाहिए और उसे व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। रहीम के दोहे समय पर हमें ये भी सीखते हैं कि जीवन में सफलता पाने के लिए समय का सही प्रबंधन आवश्यक है।
रहीम के दोहे समय पर हमें समय के महत्व को समझाने के लिए रहीम ने कई दोहे लिखे। यहां कुछ प्रमुख दोहे और ये रहीम के दोहे अर्थ सहित प्रस्तुत हैं:
रहिमन वा दिन का क्या कहना।
जब दिन होत न आपनो, अपनो कहत न कौन॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि जब समय अनुकूल नहीं होता, तब कोई भी अपना नहीं रहता। इसलिए अच्छे समय का महत्व समझना चाहिए।
काल करै सो आज कर, आज करै सो अब।
पल में परलय होयगी, बहुरि करेगा कब॥
अर्थ: इस दोहे में रहीम समय के सदुपयोग पर जोर देते हैं। वे कहते हैं कि जो काम कल करना है, उसे आज कर लो, और जो आज करना है, उसे अभी कर लो। क्योंकि पता नहीं कब विनाश हो जाए और फिर मौका न मिले।
रहीम के दोहे class 5 के विद्यार्थियों के लिए रहीम के कुछ सरल और शिक्षाप्रद दोहे:
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग॥
अर्थ: अच्छे स्वभाव वाले व्यक्ति पर बुरी संगति का कोई असर नहीं होता।
व्याख्या: इस दोहे में रहीम कहते हैं कि जिस प्रकार चंदन के पेड़ पर सांप लिपटा रहता है, लेकिन चंदन अपनी सुगंध नहीं खोता, उसी प्रकार अच्छे स्वभाव वाले व्यक्ति पर बुरी संगति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह दोहा बच्चों को सिखाता है कि अच्छे गुणों को बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती मानुस चून॥
अर्थ: पानी (जल) को संभालकर रखना चाहिए क्योंकि पानी के बिना सब कुछ व्यर्थ है।
व्याख्या: रहीम इस दोहे में पानी के महत्व को समझाते हैं। वे कहते हैं कि पानी के बिना मोती, मनुष्य और चूना सभी नष्ट हो जाते हैं। यह दोहा बच्चों को जल संरक्षण का महत्व सिखाता है।
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥
अर्थ: प्रेम के संबंध को धागे की तरह नाजुक समझकर उसे सावधानी से संभालना चाहिए।
व्याख्या: यह दोहा रिश्तों के महत्व और उन्हें संभालने की आवश्यकता पर जोर देता है। रहीम बताते हैं कि एक बार टूटे रिश्ते को जोड़ना मुश्किल होता है, और अगर जुड़ भी जाए तो गाँठ (कटुता) रह जाती है।
ये रहीम के दोहे class 5 के बताते हैं कि रहीम के दोहे न केवल साहित्यिक महत्व रखते हैं, बल्कि वे बच्चों के व्यक्तित्व विकास और नैतिक शिक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
रहीम के दोहे class 6 के लिए:
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम परकाज हित, संपति संचहि सुजान॥
अर्थ: बुद्धिमान लोग दूसरों की भलाई के लिए धन जमा करते हैं।
व्याख्या: रहीम इस दोहे में बताते हैं कि जैसे पेड़ अपने फल नहीं खाता और तालाब अपना पानी नहीं पीता, वैसे ही समझदार लोग अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों की मदद के लिए धन इकट्ठा करते हैं। यह दोहा परोपकार का महत्व सिखाता है।
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि॥
अर्थ: बड़ों को देखकर छोटों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
व्याख्या: इस दोहे में रहीम सिखाते हैं कि हर चीज का अपना महत्व होता है। जैसे सुई का काम तलवार नहीं कर सकती, वैसे ही छोटे लोगों को भी कम नहीं समझना चाहिए। यह दोहा हर व्यक्ति के महत्व को समझने की सीख देता है।
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बांटि न लैहैं कोय॥
अर्थ: अपने मन की व्यथा को मन में ही छिपाकर रखना चाहिए।
व्याख्या: रहीम इस दोहे में सलाह देते हैं कि अपने दुख को सबके सामने नहीं बताना चाहिए। वे कहते हैं कि लोग सुनकर हंसेंगे, लेकिन कोई तुम्हारा दुख बांटने नहीं आएगा। यह दोहा आत्मसंयम और धैर्य का पाठ सिखाता है।
ये रहीम के दोहे class 6 के दर्शाते हैं कि रहीम के दोहे न केवल साहित्यिक महत्व रखते हैं, बल्कि वे बच्चों के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, उनके व्यक्तित्व को आकार देते हैं और उन्हें जीवन के लिए तैयार करते हैं।
ये कुछ रहीम के दोहे class 7 के लिए है:
खैर, खून, खांसी, खुशी, बैर, प्रीति, मद, पान।
रहिमन दाबे ना दबै, जानत सकल जहान॥
अर्थ: कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें दबाने से वे और अधिक बढ़ जाती हैं।
व्याख्या: रहीम इस दोहे में बताते हैं कि खैर का पेड़, खून, खांसी, खुशी, वैर, प्रेम, नशा और पान – इन्हें दबाने की कोशिश करने पर ये और अधिक प्रबल हो जाते हैं। यह दोहा कुछ प्राकृतिक प्रवृत्तियों और भावनाओं के बारे में गहन समझ प्रदान करता है।
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगै, बढ़े अँधेरो होय॥
अर्थ: कुलीन परिवार का कुपूत दीपक की लौ के समान होता है।
व्याख्या: इस दोहे में रहीम एक रोचक तुलना करते हैं। वे कहते हैं कि जैसे दीपक छोटा होने पर अधिक प्रकाश देता है और बड़ा होने पर अंधेरा कर देता है, उसी प्रकार कुलीन परिवार का कुपूत भी अपने परिवार के नाम को बदनाम करता है। यह दोहा अच्छे आचरण के महत्व को समझाता है।
करि न सकै नैनन बिना, रहिमन कोउ सिंगार।
दरपन लखै न आपको, कुल को लखै कुम्हार॥
अर्थ: आंखों के बिना कोई श्रृंगार नहीं किया जा सकता।
व्याख्या: रहीम इस दोहे में कहते हैं कि जैसे आंखों के बिना कोई अपना श्रृंगार नहीं देख सकता, दर्पण अपने आप को नहीं देख सकता, और कुम्हार मिट्टी के बर्तन की जाति नहीं देख सकता, वैसे ही कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें समझने के लिए गहरी अंतर्दृष्टि की आवश्यकता होती है। यह दोहा आत्म-जागरूकता और गहन समझ के महत्व को दर्शाता है।
“बड़े बड़ाई ना करैं, बड़ो न बोलैं बोल।
रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका मेरो मोल॥”अर्थ: सच्चे महान लोग कभी अपनी तारीफ़ स्वयं नहीं करते। जैसे हीरा कभी अपनी कीमत खुद नहीं बताता, वैसे ही श्रेष्ठ व्यक्ति अपने गुणों की डींग नहीं हाँकते।
व्याख्या: रहीम इस दोहे में कहते हैं कि जैसे आंखों के बिना कोई अपना श्रृंगार नहीं देख सकता, दर्पण अपने आप को नहीं देख सकता, और कुम्हार मिट्टी के बर्तन की जाति नहीं देख सकता, वैसे ही कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें समझने के लिए गहरी अंतर्दृष्टि की आवश्यकता होती है। यह दोहा आत्म-जागरूकता और गहन समझ के महत्व को दर्शाता है।
“रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि॥”अर्थ: छोटी चीज़ों को कभी कमतर न आँको। जिस जगह काम सुई से ही बन सकता है, वहाँ तलवार बेकार साबित होती है। हर वस्तु का अपना महत्व है।
व्याख्या: इस दोहे में रहीम छोटे और बड़े के महत्त्व को समझाते हैं। वे कहते हैं कि किसी बड़ी और मूल्यवान वस्तु को पाकर कभी भी छोटी वस्तु को तुच्छ नहीं समझना चाहिए। हर वस्तु की अपनी उपयोगिता और महत्व होता है। जैसे जहाँ बारीकी के काम में सुई की आवश्यकता होती है, वहाँ तलवार काम नहीं आ सकती। उसी प्रकार जीवन में छोटी वस्तुएँ, साधन या व्यक्ति भी विशेष अवसर पर अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।
ये रहीम के दोहे class 7 दर्शाते हैं कि रहीम के दोहे कक्षा 7 के विद्यार्थियों के लिए न केवल साहित्यिक ज्ञान प्रदान करते हैं, बल्कि उनके व्यक्तित्व विकास, नैतिक मूल्यों और सामाजिक समझ को भी समृद्ध करते हैं।
“रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय॥”
अर्थ: अपने मन का दुःख दूसरों को बताना व्यर्थ है, क्योंकि लोग उस पर हँसी-ठट्ठा करेंगे लेकिन कोई भी उस दुख को कम साझा नहीं करेगा।
“बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय॥”
अर्थ: गलत कदम उठाने पर बात बिगड़ने के बाद फिर संभलाना कठिन हो जाता है। जैसे फटा हुआ दूध चाहे जितना मथो, उसमें से मक्खन नहीं निकलता।
“चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के साह॥”
अर्थ: जिसकी इच्छाएँ समाप्त हो जाती हैं, उसके जीवन से चिंता भी मिट जाती है। इच्छा-रहित व्यक्ति ही सच्चा राजा है।
“सीत हरत, तम हरत नित, भुवन भरत नहिं चूक।
रहिमन तेहि रबि को कहा, जो घटि लखै उलूक॥”अर्थ: सूर्य शीत और अंधकार हरता है और पूरे जगत का पालन करता है। यदि उल्लू उसे घटिया समझता है, तो इससे सूर्य की महिमा कम नहीं होती।
“रूप, कथा, पद, चारु पट, कंचन, दोहा, लाल।
ज्यों ज्यों निरखत सूक्ष्मगति, मोल रहीम बिसाल॥”अर्थ: सुंदर रूप, कथा, कविता, सोना और मोती जैसी वस्तुओं की कीमत ज्यों-ज्यों गहराई से परखी जाती है, उसका महत्व और बढ़ जाता है। सच्चा मूल्य पारखी नजर को ही दिखता है।
यहां कुछ और रहीम के दोहे अर्थ(Rahim ke dohe ka arth) सहित प्रस्तुत हैं:
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बांटि न लैहैं कोय॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि अपने मन की व्यथा को मन में ही छिपाकर रखो। लोग सुनकर हंसेंगे, लेकिन कोई तुम्हारा दुख बांटने नहीं आएगा।
बड़े बड़ाई न करैं, बड़े न बोलैं बोल।
रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका मो मोल॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि बड़े लोग अपनी बड़ाई नहीं करते और न ही बड़े-बड़े वचन बोलते हैं। क्या कभी हीरा कहता है कि मेरा मूल्य लाखों रुपये है?
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे पे फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय।।
अर्थ: प्रेम का संबंध बहुत नाज़ुक होता है। यदि इसे तोड़ दिया जाए तो वह पहले जैसा नहीं जुड़ता। जुड़ भी जाए तो उसमें गांठ रह जाती है।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।
अर्थ: केवल ऊँचा होने से कोई महान नहीं हो जाता। जैसे खजूर का पेड़ ऊँचा तो है, पर न छाया देता है न फल आसानी से मिलते हैं।
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती मानुष चून।।
अर्थ: पानी (सम्मान या शीतलता) बनाए रखना ज़रूरी है। पानी के बिना सब कुछ व्यर्थ है — चाहे वह मोती हो, इंसान हो या आटा।
दोनों रहिमन एक से, जाको कहिए नीच।
उनको संग न कीजिए, जामें दूषन नीच।।
अर्थ: जो नीच हैं, उनसे दूरी बनाना ही बेहतर है क्योंकि उनके साथ रहना भी दोष पैदा करता है।
रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय।
सुनी इठलैहैं लोग सब, बाँट न लेहैं कोय।।
अर्थ: अपने दिल की पीड़ा अपने तक ही रखनी चाहिए, क्योंकि लोग सिर्फ मज़ाक उड़ाते हैं, कोई सहानुभूति नहीं देता।
रहिमन वे नर मर चुके, जे कहुँ माँगन जायं।
उनसे पहिले वे मुए, जिन मुख निकसै नाहिं।।
अर्थ: जो व्यक्ति मांगने जाता है, वह मरा हुआ ही है, लेकिन उससे भी पहले मरे हुए वे हैं जो देने से इनकार करते हैं।
सीखे रहिमन कठिन जगत, सहज करै न कोय।
सहज बिचारे जो करै, साधु जानिए सोय।।
अर्थ: इस दुनिया में सभी कार्य कठिन बनकर किए जाते हैं। जो सरलता से काम करे, वही सच्चा साधु है।
निज मन निर्मल भया, ज्यों गंगा नीर।
पाछे पाछे हरि फिरें, कहत रहीम कबीर।।
अर्थ: यदि मन निर्मल हो जाए, जैसे गंगा का जल, तो भगवान भी पीछे-पीछे आते हैं।
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।
अर्थ: जो उत्तम स्वभाव का होता है, उसे बुरी संगति भी नहीं बदल सकती, जैसे चंदन में साँप लिपटे रहते हैं लेकिन उसे विषाक्त नहीं करते।
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवार।।
अर्थ: बड़े को देखकर छोटे को मत छोड़िए। जैसे सुई के काम तलवार नहीं कर सकती।
दोहा:
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहाँ करे तलवारि।।
अर्थ:
रहीम कहते हैं कि बड़े लोगों को देखकर छोटे को तुच्छ मत समझो। जैसे काम सुई से ही होता है, तलवार वहाँ काम नहीं आती। यानी हर छोटे-बड़े का अपना महत्व होता है।
दोहा:
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संचित करहि सुजान।।
अर्थ:
पेड़ अपने फल स्वयं नहीं खाता, तालाब अपने जल को स्वयं नहीं पीता। ठीक उसी तरह समझदार मनुष्य अपनी संपत्ति और विद्या का संचय दूसरों के भले के लिए करता है।
दोहा:
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।।
अर्थ:
प्रेम का बंधन धागे की तरह नाजुक होता है। इसे तोड़ना नहीं चाहिए, क्योंकि टूटने के बाद यदि जोड़ा भी जाए तो उसमें गाँठ रह जाती है। यानी प्रेम में टूटन आने पर पहले जैसी सरलता और विश्वास नहीं रहता।
दोहा:
रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानव, चून।।
अर्थ:
रहीम कहते हैं कि पानी (यहाँ “लज्जा, शील और सम्मान”) को हमेशा बनाए रखना चाहिए। पानी चला जाए तो सब व्यर्थ हो जाता है। मोती अपनी चमक पानी से पाता है, मनुष्य अपनी इज्ज़त से और चूना अपनी सफेदी से।
दोहा:
रहिमन बिपदा हू भली, जो थोरे दिन होय।
हित-अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय।।
अर्थ:
रहीम कहते हैं कि थोड़े समय की विपत्ति (कष्ट) भी अच्छी होती है। इससे यह पता चल जाता है कि कौन अपना है और कौन पराया। यानी विपत्ति सच्चे और झूठे मित्रों की पहचान करा देती है।
दोहा:
रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गई सरग पताल।
आप तो कहि भीतर रही, जाति खात कपाल।।
अर्थ:
रहीम कहते हैं कि जीभ बड़ी बावली होती है। यह स्वर्ग-नरक तक की बातें कह डालती है, लेकिन स्वयं मुँह के भीतर ही छिपी रहती है, और उसका फल (अच्छा या बुरा) पूरे शरीर को भोगना पड़ता है।
दोहा:
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुतेरि रीत।
बिपति कसौटी जे कसे, ते ही साँचो मीत।।
अर्थ:
रहीम कहते हैं कि संपत्ति और सुख-समृद्धि के समय बहुत रिश्तेदार और मित्र बनने लगते हैं। लेकिन असली मित्र वही है जो विपत्ति रूपी कसौटी पर खरा उतरता है।
रहीम के दोहे शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये दोहे न केवल भाषा और साहित्य के ज्ञान को बढ़ाते हैं, बल्कि नैतिक मूल्यों और जीवन कौशल को भी सिखाते हैं। रहीम के दोहे विद्यार्थियों को जीवन के विभिन्न पहलुओं पर सोचने और समझने के लिए प्रेरित करते हैं।
शिक्षक रहीम के दोहों का उपयोग कई तरह से कर सकते हैं:
नैतिक शिक्षा में दोहों का महत्व बहुत अधिक है। रहीम के दोहे इस संदर्भ में विशेष रूप से प्रासंगिक हैं। यहां कुछ और बिंदु जो इस विषय को और विस्तृत करते हैं:
रहीम के दोहे भारतीय साहित्य और संस्कृति का अमूल्य खजाना हैं। ये दोहे जीवन के हर पहलू पर मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, समय के महत्व, नैतिक मूल्यों और जीवन कौशल को सरल भाषा में समझाते हैं। शिक्षा प्रणाली में इनका उपयोग छात्रों के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। रहीम के दोहे विभिन्न कक्षाओं के पाठ्यक्रम में शामिल हैं, जो छात्रों को धीरे-धीरे गहन विचारों और जटिल भाषा से परिचित कराते हैं।
रहीम के दोहे छात्रों को भारतीय संस्कृति और परंपराओं से जोड़ते हैं, भाषा के सौंदर्य को समझाते हैं, और आलोचनात्मक सोच विकसित करते हैं। रहीम के दोहों की सार्वभौमिकता उन्हें आज भी प्रासंगिक बनाती है। वे मानवीय मूल्यों और व्यवहार पर केंद्रित हैं, जो समय के साथ नहीं बदलते। इन दोहों का अध्ययन छात्रों को बेहतर मनुष्य और जिम्मेदार नागरिक बनने में मदद करता है, जो शिक्षा प्रणाली का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए।
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ परि जाय।। यह रहीम के दोहे सबसे ज़ादा प्रसिद्ध है।
रहीम के 5 दोहे:
1. मन चंगा तो कठिन काम आसान
2. जिस दिन मुस्कराना भूल जाओगे, समझ लेना जिंदगी जीना भूल गए
3. जो दिखता है, सोई चीज नहीं। जो छिपा है, सोई चीज है
4. रहीमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय, टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय
5. पानी पी पीकर मगरमच्छ रोता है
कबीर के 5 दोहे:
1. पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई अक्षर प्रेम का, मो को आये गोय
2. कबीर सब मिलन को आए, मिलन को सब जाए। एक अणु आया था, एक अणु हो जाए
3. मानसरोवर का जल पिया, पाप का दाग न गया। अंतर का भाव पवित्र कर, तब तो पाप गया
4. कबीर ऐसा बान चलावे, निशाना लग जाय। एक बार तीर चलावे, फिर बान न लाय
5. जिस दिन मुस्कराना भूल जाओगे, समझ लेना जिंदगी जीना भूल गए
रहीम की दोहावली में कुल 300 दोहे हैं।
प्रमुख रचनाएं: रहीम दोहावली, बरवै, नायिका भेद
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उनकी मृत्यु 1 अक्तूबर 1627, आगरा में हुई थी, जहां वे अकबर के दरबार में रहते थे।
Authored by, Aakriti Jain
Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.
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