पूंजीवाद क्या है

पूंजीवाद क्या है?: विशेषता अर्थ गुण दोष

Published on July 15, 2025
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पूंजीवाद क्या है

Quick Summary

  • पूंजीवाद एक आर्थिक प्रणाली है जिसमें निजी स्वामित्व, मुक्त बाजार और प्रतिस्पर्धा का प्रमुख स्थान होता है।
  • यह उत्पादन और वितरण को बाजार बलों के माध्यम से संचालित करता है।
  • पूंजीवाद आर्थिक विकास और नवाचार को बढ़ावा देता है।
  • इसके साथ असमानता और संसाधनों के दुरुपयोग जैसी चुनौतियाँ भी जुड़ी होती हैं।
  • यह प्रणाली आधुनिक समाज की आर्थिक आधारशिला है।

Table of Contents

पूंजीवाद एक आर्थिक प्रणाली है जो निजी संपत्ति और बाजार की स्वतंत्रता पर आधारित है। इसमें उत्पादन के साधनों का स्वामित्व व्यक्तियों या कंपनियों के पास होता है, जो लाभ के लिए वस्त्र और सेवाओं का उत्पादन करते हैं। पूंजीवादी समाज में बाजार मूल्य, आपूर्ति और मांग के सिद्धांतों द्वारा निर्धारित होते हैं, जिससे प्रतियोगिता और नवाचार को बढ़ावा मिलता है। यह प्रणाली आर्थिक विकास और सामाजिक गतिशीलता के लिए अवसर प्रदान करती है, लेकिन इसके साथ ही असमानता और संसाधनों के दुरुपयोग जैसी समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं।

आज के इस लेख में हम जानेंगे पूंजीवाद से क्या आशय है, पूंजीवाद अर्थव्यवस्था क्या है, पूंजीवाद की परिभाषा, पूंजीवाद से क्या आशय है, पूंजीवाद की विशेषताएं, पूंजीवाद के प्रकार कितने हैं?

पूंजीवाद क्या है?

पूंजीवाद एक ऐसी आर्थिक व्यवस्था है जिसमें उत्पादन और व्यापार से जुड़ी संपत्तियों का स्वामित्व निजी व्यक्तियों या कंपनियों के पास होता है। इस व्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें मुख्य रूप से मांग और आपूर्ति के आधार पर तय होती हैं। पूंजीवाद का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है, और यह मुक्त बाजार, प्रतियोगिता, नवाचार और उपभोक्ता की पसंद पर आधारित होता है।

हालाँकि, इसमें आय की असमानता, श्रमिक शोषण और पर्यावरणीय समस्याएं जैसी चुनौतियाँ भी देखी जाती हैं। इसलिए कई देशों में पूंजीवादी व्यवस्था को सामाजिक कल्याणकारी नीतियों के साथ संतुलित किया जाता है ताकि आर्थिक विकास के साथ सामाजिक न्याय भी सुनिश्चित किया जा सके

पूंजीवाद की परिभाषा | पूंजीवाद क्या है | Poonjiwadi kise kahate hain

पूंजीवाद की परिभाषा की बात करें, तो यह एक तरह की अर्थव्यवस्था है, जिसमें लाभ को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इस पूरी व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना ही होता है। पूंजीवाद की परिभाषा को आप इस तरह से समझ सकते हैं। पूंजीवाद के प्रकार भी हैं और पूंजीवाद की विशेषताएं भी हैं और वहीं पूंजीवाद की कुछ खामिया भी हैं। विभिन्न दार्शनिकों ने पूंजीवाद की परिभाषा अपने हिसाब से दी है। पूंजीवाद पर कई बड़े दार्शनिकों के अपने अलग-अलग विचार भी हैं।

पूंजीवाद से क्या आशय है? | पूंजीवाद क्या है

पूंजीवाद क्या है इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि पूंजीवाद में उत्पादन के साधन और संसाधन निजी व्यक्तियों या कंपनियों के स्वामित्व में होते हैं। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में सरकार की भूमिका सीमित होती है जो प्रबंधन और नियंत्रण उपायों तक सीमित होती है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था एक उदार अर्थव्यवस्था है। वर्तमान वैश्विक अर्थव्यवस्था में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था सबसे प्रमुख है। जर्मनी, जापान, सिंगापुर, अमेरिका और ब्रिटेन पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के प्रमुख उदाहरण हैं।

पूंजीवाद अर्थव्यवस्था क्या है? | पूंजीवाद क्या है

पूंजीवाद अर्थव्यवस्था क्या है: पूंजीवाद अर्थव्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें लाभ कमाना प्राथमिक उद्देश्य होता है। व्यवसायों और कंपनियों का मुख्य लक्ष्य अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करना होता है। पूंजीवाद अर्थव्यवस्था क्या है आपको इससे समझने में मदद मिल सकती है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में बाजार स्वतंत्र होता है और मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया बाजार की मांग और आपूर्ति के आधार पर होती है।

पूंजीवाद की विशेषताएं | पूंजीवाद क्या है

निजी संपत्ति का अधिकार

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों जैसे भूमि, कारखानों और संसाधनों का स्वामित्व निजी व्यक्तियों और व्यवसायों के पास होता है। व्यक्ति संपत्ति अर्जित कर सकता है, उसका उपयोग अपनी इच्छानुसार कर सकता है, और उसे उत्तराधिकार में प्राप्त या हस्तांतरित भी कर सकता है।

मुक्त बाजार और प्रतिस्पर्धा

पूंजीवादी प्रणाली में बाजार स्वतंत्र होता है, जहाँ सरकार की भूमिका सीमित होती है। वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें मांग और आपूर्ति के अनुसार तय होती हैं, न कि किसी सरकारी नियंत्रण से। इस प्रणाली में प्रतिस्पर्धा एक मुख्य विशेषता है, जो व्यवसायों को अपने उत्पादों और सेवाओं की गुणवत्ता सुधारने और कीमतें प्रतिस्पर्धात्मक बनाए रखने के लिए प्रेरित करती है। इससे उपभोक्ताओं को अधिक विकल्प, बेहतर गुणवत्ता और उचित मूल्य मिलते हैं। यही बाजार स्वतंत्रता और प्रतिस्पर्धा पूंजीवाद की मूल विशेषताएं हैं।

लाभ का उद्देश्य

पूंजीवाद में लाभ कमाना मुख्य उद्देश्य होता है। व्यवसाय अधिक लाभ के लिए उत्पादों की गुणवत्ता सुधारते हैं और लागत घटाते हैं। यह प्रवृत्ति प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देती है और बाजार में बेहतर विकल्प व संसाधन उपलब्ध कराती है।

न्यूनतम सरकारी हस्तक्षेप

पूंजीवाद में, हर व्यक्ति बिना किसी हस्तक्षेप के अपने आर्थिक विकल्प चुनने के लिए स्वतंत्र है। इसमें उपभोक्ता और उत्पादक दोनों शामिल हैं। पूंजीवाद की विशेषताएं देखें, तो इसकी सबसे बड़ी विशेषता यही है कि इसमें न्यूनतम सरकारी हस्तक्षेप देखने को मिलता है। जिसकी वजह से पूंजीवति वर्ग बेहतर और खुले तरीके से काम कर पाता है।

निवेश और पूंजी संचय

पूंजीवाद में निवेश और पूंजी का महत्वपूर्ण स्थान होता है। पूंजीपति और निवेशक अपने पूंजी का निवेश नए व्यवसायों और उद्योगों में करते हैं, जो आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करता है। इससे उन्हें अपने व्यव्सायों को आगे बढ़ाने और विकास करने में मदद मिलती है। इस वजह से ये कहना गलत नहीं होगा कि निवेश और पूंजी संचय पूंजीवाद का महत्वपूर्ण बिंदु है।

पूंजीवाद के प्रकार | Punjiwaad ke Prakar |पूंजीवाद क्या है

पूंजीवाद के प्रकार की बात करें, तो पूंजीवाद के 4 प्रकार बताए गए हैं। पूंजीवाद के प्रकार से आपको समझने में मदद मिल सकती है कि आखिर पूंजीवाद अर्थव्यवस्था क्या है, पूंजीवाद से क्या आशय है और पूंजीवाद क्या है।

1. उदार पूंजीवाद (Liberal Capitalism)

उदार पूंजीवाद (Liberal Capitalism) एक आर्थिक व्यवस्था है, जिसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता, निजी संपत्ति के अधिकार और बाजार अर्थव्यवस्था को सर्वोच्च महत्व दिया जाता है। उदार पूंजीवाद व्यवस्था पूंजीवाद का एक रूप है, जिसमें सरकार का हस्तक्षेप न्यूनतम होता है और बाजार को स्वतंत्र रूप से कार्य करने दिया जाता है।

2. कल्याणकारी पूंजीवाद (Welfare Capitalism)

कल्याणकारी पूंजीवाद (Welfare Capitalism) एक आर्थिक और सामाजिक प्रणाली है जो पूंजीवाद के आर्थिक लाभकारी सिद्धांतों को अपनाते हुए, समाज के कल्याण और सामाजिक न्याय की दिशा में भी ध्यान देती है। कल्याणकारी पूंजीवाद में बाजार की स्वतंत्रता और निजी स्वामित्व की मान्यता होती है, लेकिन इसे सामाजिक सुरक्षा, कल्याण योजनाओं, और सार्वजनिक सेवाओं के माध्यम से संतुलित किया जाता है।

3. राज्य पूंजीवाद (State Capitalism)

राज्य पूंजीवाद (State Capitalism) एक आर्थिक प्रणाली है, जिसमें राज्य या सरकार उत्पादन के साधनों जैसे कि उद्योग, कंपनियों और संसाधनों पर मालिकाना हक रखती है और आर्थिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल होती है। हालांकि इसमें पूंजीवादी सिद्धांतों को अपनाया जाता है, जैसे कि लाभ कमाना और बाजार की प्रतिस्पर्धा, लेकिन राज्य का सीधा हस्तक्षेप और नियंत्रण होता है। राज्य पूंजीवाद का एक प्रमुख उदाहरण चीन है, जहाँ राज्य की कंपनियाँ और सरकारी नियंत्रण वाली नीतियाँ आर्थिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। चीन में सरकारी कंपनियाँ राष्ट्रीय विकास की योजनाओं को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जबकि निजी क्षेत्र को भी आर्थिक गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति है।

4. कॉर्पोरेट पूंजीवाद (Corporate Capitalism)

कॉर्पोरेट पूंजीवाद (Corporate Capitalism) एक आर्थिक प्रणाली है जिसमें बड़े निगमों और कंपनियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस प्रणाली में उत्पादन, वितरण और व्यापार के अधिकांश संसाधन और निर्णय बड़े व्यवसायिक निगमों के नियंत्रण में होते हैं। कॉर्पोरेट पूंजीवाद प्रणाली पूंजीवाद के सिद्धांतों पर आधारित होती है, लेकिन इसमें विशेष रूप से निगमों और उनके आर्थिक प्रभाव पर जोर दिया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान जैसे देशों में कॉर्पोरेट पूंजीवाद का प्रभाव स्पष्ट है। अमेरिका में, बड़ी कंपनियाँ जैसे कि Apple, Google, और Microsoft बाजार की दिशा और अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं।

पूंजीवाद के गुण और दोष | पूंजीवाद क्या है

पूंजीवाद एक आर्थिक प्रणाली है, जो निजी स्वामित्व और लाभ की प्रवृत्ति पर आधारित होती है। पूंजीवाद के लाभ और हानियाँ विभिन्न हैं, जो इसके सिद्धांतों और कार्यप्रणाली पर निर्भर करती हैं। जानिए पूंजीवाद के लाभ और हानियाँ क्या हैं।

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के लाभ

  1. आर्थिक समृद्धि: पूंजीवाद में निजी कंपनियाँ और उद्यमी नवाचार और नई तकनीकों को प्रोत्साहित करते हैं। लाभ की प्रवृत्ति व्यवसायों को नए और बेहतर उत्पाद और सेवाएँ विकसित करने के लिए प्रेरित करती है, जिससे आर्थिक समृद्धि होती है। पूंजीवाद में आर्थिक समृद्धि सबसे बड़ा लाभ है।
  2. व्यक्तिगत स्वतंत्रता: पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में व्यक्तियों को अपने आर्थिक निर्णय लेने की व्यक्तिगत स्वतंत्रता होती है। वे अपनी पूंजी का उपयोग करने, व्यवसाय शुरू करने और उपभोक्ता विकल्प चुनने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र होते हैं।
  3. नवाचार: प्रतिस्पर्धा के कारण नई तकनीकों और उत्पादों का विकास होता है। पूंजीवाद नवाचार का जन्म देता है। पूंजीवाद में नवाचार का अर्थ है, इससे विकास के नए-नए अवसर पैदा होते हैं। इससे प्रतिस्पर्धा के कारण बाजार में नए उत्पाद आते हैं और नए व्यवसायों को पनपने का मौका भी मिलता है।

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के दोष

  1. सामाजिक असमानता: पूंजीवाद में अक्सर समाज के कमजोर वर्गों के लिए पर्याप्त सामाजिक और सार्वजनिक सेवाओं की कमी हो सकती है। शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में असमानता उत्पन्न हो सकती है। पूंजीवाद को लेकर अक्सर ये मत दिया जाता है कि ये सामाजिक असमानता को जन्म देता है। इस व्यवस्था के कारण समाज में काफी परेशानियां भी आती हैं। इसी तरह पूंजीवाद की सबसे बड़ी हानि सामाजिक असमानता को माना गया है। पूंजीवाद हमेशा सामाजिक कल्याण पर ध्यान केंद्रित नहीं करता है। पूंजीवाद केवल मुनाफे की पीछे भागता है।
  2. आर्थिक अस्थिरता: पूंजीवाद में आर्थिक अस्थिरता काफी ज्यादा होती है। बाजार की अस्थिरता और आर्थिक संकट के समय पूंजीवादी तंत्र की स्थिति कमजोर हो सकती है। आर्थिक चक्रवात और मंदी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। साथ ही बाजार की ताकतें आर्थिक उतार-चढ़ाव का कारण बन सकती हैं। इसकी वजह से कई बार बड़े पूंजीपतियों और उद्योगपतियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। इससे उन्हें भारी नुकसान होता है। वहीं, कई बार भारी लाभ भी मिलता है। पूंजीवाद में आर्थिक अस्थिरता एक बड़ा मुद्दा है। आर्थिक अस्थिरता हानि की एक बड़ी वजह भी है।

पूंजीवाद के प्रभाव | पूंजीवाद क्या है

आर्थिक विकास और नवाचार

  • पूंजीवाद आर्थिक विकास और नवाचार को प्रोत्साहित करता है।
  • निजी कंपनियाँ और उद्यमी लाभ की अधिकतम चाह में नए उत्पाद और सेवाएँ विकसित करने की कोशिश करते हैं।
  • प्रतिस्पर्धा की प्रवृत्ति कंपनियों को अपने प्रौद्योगिकी और उत्पादों को सुधारने के लिए प्रेरित करती है।
  • इस प्रक्रिया में निवेश, अनुसंधान और विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
  • तकनीकी उन्नति और उत्पादकता में वृद्धि होती है।
  • पूंजीवाद आर्थिक विकास को गति देता है और नवाचार को बढ़ावा देता है।
  • समग्र अर्थव्यवस्था को लाभ होता है।

उपभोक्ता स्वतंत्रता और पसंद

  • पूंजीवाद उपभोक्ता स्वतंत्रता और पसंद को बढ़ावा देता है।
  • प्रतिस्पर्धा के कारण कंपनियाँ अपनी उत्पादों और सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए प्रेरित होती हैं।
  • उपभोक्ताओं को विभिन्न विकल्प उपलब्ध होते हैं।
  • उपभोक्ता अपने व्यक्तिगत पसंद और बजट के अनुसार उत्पाद और सेवाएँ चुन सकते हैं।
  • कंपनियाँ बाजार में बने रहने के लिए नए और बेहतर उत्पाद पेश करती हैं।
  • उपभोक्ताओं को अधिक चयन की स्वतंत्रता मिलती है।
  • पूंजीवाद उपभोक्ता स्वतंत्रता को बढ़ाता है।
  • उपभोक्ताओं को अपनी पसंद के अनुसार निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करता है।

सामाजिक असमानता

  • पूंजीवाद के प्रभाव केवल सकारात्मक ही नहीं बल्कि नकारात्मक भी हैं।
  • पूंजीवाद सामाजिक असमानता को बढ़ावा देता है।
  • इसमें आर्थिक संसाधनों का असमान वितरण होता है।
  • अमीर और गरीब के बीच अंतर बढ़ सकता है।
  • बड़े निगम और उद्यमी अधिक लाभ प्राप्त करते हैं, जबकि गरीब वर्ग को कम लाभ होता है।
  • निजी स्वामित्व और प्रतिस्पर्धा के चलते समृद्ध वर्ग को बेहतर जीवनशैली, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधा मिलती है।
  • गरीब वर्ग इन सुविधाओं से वंचित रहता है।
  • पूंजीवाद आर्थिक असमानता को गहरा कर सकता है।
  • समाज में सामाजिक तनाव उत्पन्न कर सकता है।
  • गरीब और गरीब बनता चला जाता है, जबकि अमीर और अमीर बनता जाता है।

पूंजीवाद के प्रमुख स्तंभ | Punjiwaad ke pramukh estambh

पूंजीवादी व्यवस्था कुछ मूलभूत सिद्धांतों या स्तंभों पर आधारित होती है, जो इस आर्थिक ढांचे की नींव को परिभाषित करते हैं:

  1. निजी संपत्ति का अधिकार:
    व्यक्ति को मूर्त (जैसे ज़मीन, मकान) और अमूर्त (जैसे स्टॉक, बांड) संपत्तियों के स्वामित्व का अधिकार होता है। यह अधिकार आर्थिक स्वतंत्रता की बुनियाद है।
  2. स्वार्थ प्रेरणा (Self-Interest):
    पूंजीवाद में लोग अपने निजी हितों को प्राथमिकता देते हैं। हालांकि यह स्वार्थी प्रवृत्ति दिखती है, परंतु जैसा कि एडम स्मिथ ने ‘वेल्थ ऑफ नेशंस’ (1776) में कहा, यह अदृश्य हाथ के समान कार्य करती है जो अंततः पूरे समाज को लाभ पहुँचाती है।
  3. प्रतिस्पर्धा:
    बाजार में कंपनियों के प्रवेश और निकास की स्वतंत्रता प्रतिस्पर्धा को जन्म देती है, जिससे उत्पादकता बढ़ती है और उपभोक्ता तथा उत्पादक दोनों को लाभ होता है।
  4. बाजार तंत्र:
    मूल्य निर्धारण विकेन्द्रीकृत प्रणाली से होता है, जहाँ खरीदार और विक्रेता मिलकर वस्तुओं, सेवाओं और श्रम के दाम तय करते हैं। यही कीमतें संसाधनों के आवंटन को निर्देशित करती हैं।
  5. चयन की स्वतंत्रता:
    उपभोक्ता अपनी पसंद के अनुसार वस्तुएँ चुन सकते हैं, निवेशक लाभदायक क्षेत्रों में निवेश कर सकते हैं, और श्रमिक बेहतर अवसरों के लिए नौकरी बदल सकते हैं।
  6. सीमित सरकारी हस्तक्षेप:
    सरकार की भूमिका सीमित होती है, जो मुख्य रूप से कानून-व्यवस्था बनाए रखने, नागरिक अधिकारों की रक्षा करने और बाजार संचालन के लिए उचित ढांचा उपलब्ध कराने तक सीमित होती है।

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निष्कर्ष

पूंजीवाद क्या है पूंजीवाद एक ऐसा आर्थिक तंत्र है जो नवाचार, प्रतिस्पर्धा, और उत्पादकता को बढ़ावा देता है, लेकिन इसमें आर्थिक असमानता, पर्यावरणीय समस्याएँ, और सामाजिक चुनौतियाँ भी होती हैं। आज के इस लेख में हमने जाना पूंजीवाद अर्थव्यवस्था क्या है, पूंजीवाद की परिभाषा, पूंजीवाद से क्या आशय है, पूंजीवाद की विशेषताएं, पूंजीवाद के प्रकार कितने हैं। पूंजीवाद की परिभाषा हालांकि बेहद सरल है, लेकिन पूंजीवाद अपने आप में एक जटिल विषय है। विभिन्न देशों में पूंजीवाद के विभिन्न स्वरूप देखने को मिलते हैं, जो उनके आर्थिक, सामाजिक, और राजनीतिक संदर्भ पर निर्भर करते हैं। यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, जर्मनी, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, और स्विट्ज़रलैंड जैसे कई बड़े देश पूंजीवाद अर्थव्यवस्था का सफल उदाहरण हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

पूंजीवाद से आप क्या समझते हैं?

पूंजीवाद एक आर्थिक प्रणाली है जहां निजी स्वामित्व, प्रतिस्पर्धा और बाजार बलों के माध्यम से वस्त्र और सेवाओं का उत्पादन और वितरण होता है, जिससे आर्थिक विकास और नवाचार को बढ़ावा मिलता है।

पूंजीवाद का जनक कौन था?

पूंजीवाद का जनक माना जाने वाला अर्थशास्त्री एडम स्मिथ हैं, जिन्होंने अपनी पुस्तक “द वेल्थ ऑफ नेशंस” (1776) में बाजार अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों का विस्तृत वर्णन किया। उन्होंने स्वतंत्र बाजार और प्रतिस्पर्धा के महत्व पर जोर दिया।

पूंजीवाद का दूसरा नाम क्या है?

पूंजीवाद का दूसरा नाम “बाजार अर्थव्यवस्था” या “निजी अर्थव्यवस्था” भी कहा जा सकता है। इसे कभी-कभी “स्वतंत्र व्यापार प्रणाली” के रूप में भी संदर्भित किया जाता है, जिसमें व्यक्तिगत स्वामित्व और प्रतिस्पर्धा की प्रमुखता होती है।

पूंजीवादी देश कौन सा है?

कुछ प्रमुख पूंजीवादी देशों में अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया और जापान शामिल हैं। इन देशों में निजी संपत्ति, मुक्त बाजार और प्रतिस्पर्धा की व्यवस्था प्रमुखता रखती है।

पूंजीवादी समाज क्या होता है?

पूंजीवादी समाज एक ऐसी सामाजिक और आर्थिक संरचना होती है जिसमें उत्पादन के साधनों (जैसे– ज़मीन, फैक्ट्री, मशीन, पूंजी) का स्वामित्व निजी व्यक्तियों या कंपनियों के पास होता है, और समाज का संचालन लाभ कमाने की प्रवृत्ति पर आधारित होता है। इस व्यवस्था में आर्थिक गतिविधियाँ मुख्य रूप से बाज़ार की मांग और आपूर्ति द्वारा नियंत्रित होती हैं, न कि सरकार द्वारा।

पूंजीवादी से क्या तात्पर्य है?

पूंजीवादी शब्द का तात्पर्य उस व्यक्ति, विचारधारा या व्यवस्था से है जो पूंजीवाद (Capitalism) का समर्थक या अनुयायी हो। इसमें मुख्य रूप से आर्थिक गतिविधियाँ लाभ कमाने, निजी स्वामित्व और मुक्त बाजार व्यवस्था पर आधारित होती हैं।

Authored by, Aakriti Jain
Content Curator

Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.

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