Quick Summary
पाषाण काल, जिसे स्टोन एज के नाम से भी जाना जाता है, मानव सभ्यता का सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण काल है। यह काल लगभग 2.5 मिलियन वर्ष पूर्व से शुरू हुआ और लगभग 3,000 ईसा पूर्व तक चला। इस काल में मनुष्यों ने पत्थरों से बने औजारों का उपयोग करना शुरू किया और उनके जीवन में कई महत्वपूर्ण बदलाव आए। पाषाण काल की गहराई से समझ हमें मानव विकास के प्रारंभिक चरणों की पहचान करने में मदद करती है।
पाषाण काल ब्लॉग में हम पाषाण युग किसे कहते हैं, पाषाण युग के औजार, पाषाण काल की विशेषताएं, पाषाण युग का अर्थ और पाषाण युग नोट्स को विस्तार से समझने की कोशिश करेंगे।
पाषाण युग किसे कहते हैं (pashan yug kise kahate hain) यह सवाल तब उठता है जब हम मानव इतिहास के प्राचीनतम काल की बात करते हैं। पाषाण का अर्थ होता है, पत्थर इसलिए पाषाण युग वह अवधि है जब मानव ने पत्थरों से औजार बनाना और उनका उपयोग करना शुरू किया। इस काल की विशेषता यह है कि इसमें मनुष्य ने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा किया। पाषाण युग में ही मनुष्य ने प्रारंभिक सभ्यता की नींव रखी थी।
पत्थरों का युग (Pashan ka arth) । यह मानव इतिहास का वह प्राचीन काल है जब इंसानों ने पत्थरों के औजारों और हथियारों का उपयोग शुरू किया था।
“पाषाण” का मतलब होता है पत्थर, और “काल” का मतलब होता है समय या युग।
इसलिए वह समय था जब मनुष्य मुख्य रूप से पत्थर के औजारों का उपयोग करके शिकार करता था, आग जलाना सीख रहा था, और धीरे-धीरे सभ्यता की ओर बढ़ रहा था।
यह काल मानव इतिहास की सबसे लंबी अवधि में से एक है और इसे तीन भागों में बांटा गया है:
| काल | समय सीमा | विशेषताएँ |
| पुरापाषाण काल (Paleolithic Age) | 500,000 – 10,000 ईसा पूर्व | मोटे पत्थर के औजार, शिकार और संग्रहण, गुफा चित्रण |
| मध्यपाषाण काल (Mesolithic Age) | 10,000 – 6,000 ईसा पूर्व | परिष्कृत पत्थर के औजार, सूक्ष्म औजारों का उपयोग |
| नवपाषाण काल (Neolithic Age) | 6,000 – 1,000 ईसा पूर्व | कृषि और पशुपालन की शुरुआत, स्थायी आवास, उन्नत औजार |
| प्रारंभिक पुरापाषाण काल | 1. पंजाब में सोहन घाटी (अब पाकिस्तान में) 2. कश्मीर और थार रेगिस्तान 3. उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में बेलन घाटी 4. राजस्थान में बिडवाना 5. नर्मदा घाटी |
| मध्य पुरापाषाण काल | 1. नर्मदा नदी घाटी 2. तुंगभद्रा नदी घाटी |
| उच्च पुरापाषाण काल | 1. आंध्र प्रदेश 2. कर्नाटक 3. एमपी 4. महाराष्ट्र 5. दक्षिणी उत्तर प्रदेश 6. दक्षिण बिहार पठार |
पाषाण युग के तीन चरण मानव सभ्यता के प्रारंभिक विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कदम थे। ये चरण—पुरापाषाण युग, मध्यपाषाण युग, और नवपाषाण युग—प्राचीन मानव के औजारों, तकनीकों, और जीवनशैली में बदलावों को दर्शाते हैं। प्रत्येक चरण में मानव ने नए आविष्कार और खोजें कीं, जो उनकी जीवनशैली और समाजिक संरचना को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाईं। पाषाण काल ब्लॉग में हम तीनों कालों के पाषाण काल नोट्स जानेंगे।
| उप-काल | समय सीमा | विशेषताएँ |
| प्रारंभिक पुरापाषाण (Early Paleolithic) | 500,000 – 50,000 ईसा पूर्व | मोटे और असंसाधित पत्थर के औजार, शिकार और संग्रहण, गुफा चित्रण की शुरुआत |
| मध्य पुरापाषाण (Middle Paleolithic) | 50,000 – 40,000 ईसा पूर्व | पत्थर के औजारों का परिष्करण, निअंडरथल मानव की उपस्थिति, उन्नत शिकार विधियाँ |
| उच्च पुरापाषाण (Upper Paleolithic) | 40,000 – 10,000 ईसा पूर्व | उन्नत पत्थर के औजार, सजावटी वस्त्र, जटिल गुफा चित्रण, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास |
पुरापाषाण युग (लगभग 500,000 – 50,000 ईसा पूर्व) मानव इतिहास का सबसे पुराना चरण है। इस युग में मनुष्य ने पत्थरों के मोटे और भारी औजार बनाए और उनका उपयोग शिकार, मांस काटने और गुफा की सुरक्षा के लिए किया।
मध्यपाषाण युग (लगभग 10,000 ईसा पूर्व से 8,000 ईसा पूर्व) में पत्थरों के औजारों में सुधार हुआ। इस युग में पत्थरों को और अधिक धारदार और छोटे आकार में बनाया गया। इस समय में मनुष्य ने शिकारी और संग्रहकर्ता के रूप में जीवन व्यतीत किया।
नवपाषाण युग (लगभग 8,000 ईसा पूर्व से 3,000 ईसा पूर्व) वह समय है जब मानव ने कृषि करना शुरू किया। इस युग में पत्थरों के औजार और अधिक परिष्कृत और उपयोगी हो गए। मनुष्य ने पशुपालन और खेती शुरू की, जिससे समाजिक जीवन में स्थायित्व आया।
पाषाण युग का अर्थ जानने के बाद अब हम पाषाण युग की विशेषताएं जानेंगे।
इन विशेषताओं के माध्यम से, हम पाषाण काल के जीवन और सामाजिक संरचना को समझ सकते हैं। पाषाण काल नोट्स निम्न है
| युग | काल | औजार | अर्थव्यवस्था | शरण स्थल | समाज | धर्म |
| पाषाण युग | पुरापाषाण काल | हाथ से बने अथवा प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग: भाला, कुल्हाड़ी, धनुष, तीर, सुई, गदा | शिकार एवं खाद्य संग्रह | अस्थाई जीवन शैली – गुफा, अस्थाई झोपड़ीयां, मुख्यतः नदी एवं झील के किनारे | 25-100 लोगों का समूह (अधिकांशतः एक ही परिवार के सदस्य) | मध्य पुरापाषाण काल के आसपास मृत्यु पश्चात जीवन में विश्वास के साक्ष्य कब्र एवं अन्तिम संस्कार के रूप में मिलते हैं। |
| मध्यपाषाण काल | मध्यपाषाण काल | हाथ से बने अथवा प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग: धनुष, तीर, मछली के शिकार एवं भंडारण के औजार, नौका | कबिले एवं परिवार समूह | – | – | – |
| नवपाषाण काल | नवपाषाण काल | हाथ से बने अथवा प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग: चिसल (लकड़ी एवं पत्थर छीलने के लिए), खेती में प्रयुक्त होने वाले औजार, मिट्टी के बरतन, हथियार | खेती, शिकार, खाद्य संग्रह, मछली का शिकार और पशुपालन | खेतों के आस-पास बसी छोटी बस्तियों से लेकर काँस्य युग के नगरों तक | कबीले से लेकर काँस्य युग के राज्यों तक | – |
पाषाण युग के औजार अत्यंत महत्वपूर्ण थे। इस काल में औजारों का निर्माण पत्थरों से किया जाता था। ये औजार मुख्यतः शिकार, मांस काटने, और दैनिक जीवन की अन्य गतिविधियों के लिए उपयोग किए जाते थे। शुरुआती औजार मोटे और भारी होते थे, लेकिन समय के साथ इनका डिजाइन और उपयोग में सुधार हुआ।
शिकार और संग्रहणपाषाण युग की महत्वपूर्ण गतिविधियाँ थीं। मनुष्य जानवरों का शिकार करता और वनस्पतियों, फलों, और जड़ों का संग्रह करता था। इस गतिविधि ने उन्हें अपनी भोजन की जरूरतों को पूरा करने में मदद की और उनके जीवन को स्थिरता प्रदान की।
गुफा चित्रण पाषाण युग की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी। मनुष्यों ने गुफाओं की दीवारों पर चित्र बनाए, जो उनके जीवन और शिकार गतिविधियों का चित्रण करते थे। ये चित्रण उस समय की कला और संस्कृति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।
आग का उपयोग पाषाण युग की एक क्रांतिकारी खोज थी। आग का उपयोग भोजन पकाने, गर्मी प्राप्त करने, और सुरक्षा के लिए किया जाता था। यह खोज मनुष्यों के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, जिसने उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया।
हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि पुरापाषाण युग के सबसे महत्वपूर्ण विकासों में से एक भाषा का विकास था। उस युग के लोग व्यापार में लगे हुए थे, बस्तियाँ बना रहे थे और रीति-रिवाजों और सभ्यताओं का पालन कर रहे थे। यह दर्शाता है कि इन सभी कार्यों को पूरा करने के लिए, व्यक्तियों को संचार कौशल हासिल करना पड़ा। संचार के बिना व्यापार करना या किसी भी संस्कृति का पालन करना कठिन है। इसके अतिरिक्त, खोपड़ी की जांच से भाषण से जुड़े मस्तिष्क क्षेत्रों के विकास को दिखाया गया है। लेकिन इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं है कि मनुष्य कैसे बोलने में सक्षम हुए।
भारत में पाषाण काल मानव इतिहास का वह प्रारंभिक चरण है जब मनुष्य ने पत्थरों के औज़ार बनाकर अपने जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करना शुरू किया। इस काल की विशेषता यह थी कि मनुष्य शिकारी-संग्रहकर्ता था और भोजन, आश्रय तथा सुरक्षा के लिए प्राकृतिक साधनों पर निर्भर रहता था। पत्थरों को तराशकर बनाए गए औज़ार शिकार करने, पशुओं की खाल निकालने, लकड़ी काटने और भोजन तैयार करने के लिए उपयोग किए जाते थे।
1. भीमबेटका (मध्य प्रदेश)
भीमबेटका गुफाएँ भारत के सबसे प्रसिद्ध पाषाण कालीन स्थल हैं, जिन्हें यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया है। यहाँ हजारों गुफाएँ हैं जिनमें शैलचित्र (Rock Paintings) पाए जाते हैं। ये चित्र शिकार, नृत्य और दैनिक जीवन की झलक दिखाते हैं। भीमबेटका से विभिन्न प्रकार के औज़ार भी मिले हैं जैसे कुल्हाड़ी, खुरचनी और ब्लेड, जो यह दर्शाते हैं कि यहाँ प्रागैतिहासिक मनुष्य शिकार और भोजन संग्रह करता था।
2. सोन घाटी (बिहार)
सोन नदी घाटी से निम्न पाषाण काल से लेकर मध्य पाषाण काल तक के औज़ार मिले हैं। यहाँ हाथ-कुल्हाड़ियाँ, छेनी और खुरचनी जैसे उपकरण पाए गए। सोन घाटी के औज़ार यह साबित करते हैं कि भारत में पाषाण कालीन सभ्यता बहुत लंबी अवधि तक विकसित रही और यहाँ के लोग धीरे-धीरे शिकार के साथ-साथ कृषि की ओर भी बढ़ रहे थे।
3. बेलन घाटी (उत्तर प्रदेश)
बेलन घाटी से मध्य पाषाण काल और नवपाषाण काल दोनों कालों के साक्ष्य मिले हैं। यहाँ से पत्थरों के बने औज़ारों के साथ-साथ कृषि और पशुपालन के प्रारंभिक प्रमाण भी मिले हैं। यह स्थान इस बात का प्रमाण है कि भारतीय उपमहाद्वीप में मनुष्य धीरे-धीरे शिकारी-संग्रहकर्ता से कृषक बनने की ओर बढ़ा।
4. आदमगढ़ (मध्य प्रदेश)
आदमगढ़ गुफाओं से पाषाण काल के औज़ार और शैलचित्र दोनों मिले हैं। यहाँ पाए गए औज़ारों में चाकू, खुरचनी और ब्लेड प्रमुख हैं। गुफा चित्रों से हमें उस समय के मनुष्य के धार्मिक विश्वास और सामाजिक जीवन की झलक भी मिलती है।
5. नर्मदा घाटी (मध्य प्रदेश)
नर्मदा घाटी भारतीय पाषाण काल का एक प्रमुख केंद्र है। यहाँ से नर्मदा मानव (Homo erectus) की खोपड़ी के जीवाश्म मिले हैं, जो भारत में मानव विकास का महत्वपूर्ण प्रमाण माने जाते हैं। इस क्षेत्र से हाथ-कुल्हाड़ियाँ, गदा, और अन्य उपकरण मिले हैं, जो बताते हैं कि यह क्षेत्र पाषाण कालीन गतिविधियों का एक बड़ा केंद्र था।
पाषाण युग का महत्व इस काल के द्वारा किए गए विभिन्न विकासों को उजागर करता है। इस काल में प्रौद्योगिकी के विकास, आधुनिक मानव के उद्भव, और कृषि की शुरुआत जैसी महत्वपूर्ण घटनाएँ हुईं। ये सभी घटनाएँ मानव सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
प्रौद्योगिकी का विकास पाषाण युग में हुआ जब मनुष्यों ने पत्थरों से औजार बनाए और उनका उपयोग किया। यह विकास उन्हें शिकार, भोजन संग्रहण, और अन्य कार्यों में सहायता प्रदान करता था। प्रौद्योगिकी के इस विकास ने मानव जीवन को सरल और सुरक्षित बनाने में मदद की।
आधुनिक मानव का उद्भव पाषाण युग में हुआ। इस काल के दौरान मनुष्यों ने नई तकनीकों और औजारों का विकास किया, जिससे वे अधिक कुशल और सक्षम बन सके। यह काल मानव सभ्यता के विकास में एक महत्वपूर्ण चरण था।
कृषि की शुरुआत नवपाषाण युग में हुई। मनुष्यों ने खेती करना शुरू किया और पशुपालन भी किया, जिससे स्थायी आवास और समाज का विकास हुआ। कृषि की शुरुआत ने मानव जीवन में स्थायित्व और सामाजिक संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव किए।
पाषाण युग की महत्वपूर्ण खोजें मानव सभ्यता के विकास में मील का पत्थर साबित हुईं। इस काल में लोगों ने विभिन्न तकनीकी और सांस्कृतिक नवाचार किए, जो उनके दैनिक जीवन को सरल और सुरक्षित बनाने में मददगार रहे। ये खोजें न केवल उनके जीवन को सुधारने में सहायक रहीं बल्कि भविष्य की सभ्यताओं की नींव भी रखीं।
पाषाण युग में आग की खोज मानव इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण खोजों में से एक थी। इस खोज ने न केवल भोजन पकाने और गर्मी प्रदान करने में मदद की, बल्कि जंगली जानवरों से सुरक्षा के लिए भी आग का उपयोग किया गया। आग की मदद से मानव ने रात में प्रकाश प्राप्त किया, ठंड से बचाव किया और सामाजिक गतिविधियाँ विकसित कीं। आग की खोज ने पाषाण युग के मनुष्य के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे वह अधिक सुरक्षित, संगठित और विकसित जीवन जीने की दिशा में बढ़ सका।
हालांकि पहिया की खोज पाषाण युग के अंत में हुई, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण खोज थी। पहिए का उपयोग परिवहन और कृषि में क्रांतिकारी बदलाव लाने में सहायक था। इसने मानव सभ्यता को तकनीकी दृष्टिकोण से एक नई दिशा दी।
पाषाण युग के अंत में, लोगों ने धातु की खोज की। धातु का उपयोग औजारों और हथियारों के निर्माण में किया गया, जिससे उनकी कार्यक्षमता और प्रभावशीलता में वृद्धि हुई। यह खोज पाषाण युग से धातु युग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
घुमंतू जीवन से स्थायी जीवन की ओर बढ़ते हुए, मनुष्य ने महसूस किया कि जानवरों को पालतू बनाकर उनके दूध, मांस, खाल और शक्ति का उपयोग किया जा सकता है।
पहले कुत्ते को पालतू बनाया गया, जो शिकार और सुरक्षा में सहायक था।
इसके बाद बकरी, भेड़, गाय, बैल और सूअर को पालतू बनाया गया।
खेती के लिए बैल और परिवहन के लिए घोड़ा, गधा और ऊँट का प्रयोग शुरू हुआ।
पाषाण युग के औजार इस काल की तकनीकी क्षमताओं को दर्शाते हैं। विभिन्न युगों में औजारों का विकास और उनकी उपयोगिता में सुधार हुआ।
पुरापाषाण काल के औजार मोटे और भारी पत्थरों से बनाए जाते थे। ये औजार मुख्यतः शिकार और मांस काटने के लिए उपयोग किए जाते थे। पुरापाषाण काल के औजारों में पत्थर की धारदार धारियाँ, हथियार और औजार शामिल थे।
मध्यपाषाण काल के औजार अधिक परिष्कृत और छोटे आकार के थे। इन औजारों को विभिन्न कार्यों के लिए उपयोग किया जाता था, जैसे शिकार, लकड़ी काटना, और मांस तैयार करना। पत्थरों को अधिक धारदार और प्रभावी बनाने के लिए नई तकनीकों का विकास किया गया।
नवपाषाण काल के औजार और भी अधिक परिष्कृत थे। इस काल में कृषि और पशुपालन के लिए विशेष उपकरण बनाए गए। पत्थरों को चिकना और धारदार बनाया गया, जिससे खेती और निर्माण कार्य में सुविधा हुई। नवपाषाण काल के औजारों में पत्थर की कुल्हाड़ी, रेक, और धारदार चाकू शामिल थे।
भारत में पाषाण काल के प्रमुख साक्ष्य विभिन्न पुरातात्विक स्थलों से प्राप्त हुए हैं। ये स्थल तीनों पाषाण युगों – पुरापाषाण, मध्यपाषाण और नवपाषाण – से जुड़े हुए हैं और भारत के विभिन्न भागों में फैले हुए हैं। नीचे उन्हें काल के अनुसार वर्गीकृत किया गया है:
| स्थान | राज्य | विशेषताएँ |
|---|---|---|
| भीमबेटका | मध्य प्रदेश | गुफाओं की चित्रकारी, शिकार दृश्यों के भित्ति चित्र। |
| हुनsgi और बेदिचिक्कनहल्ली | कर्नाटक | पाषाण औजार और हाथ से बने हथियार। |
| नर्मदा घाटी | मध्य प्रदेश | मानव कंकाल, औजार और जानवरों के अवशेष। |
| सोन घाटी | बिहार और मध्य प्रदेश | पत्थर के औजार, प्रमुख पुरापाषाण स्थल। |
| अटीरमपक्कम | तमिलनाडु | दक्षिण भारत का प्रमुख पुरापाषाण स्थल, आदी मानव के औजार मिले। |
| खैदराबाद, बेल्लारी | तेलंगाना/कर्नाटक | विभिन्न प्रकार के औजार मिले हैं। |
| स्थान | राज्य | विशेषताएँ |
|---|---|---|
| बागोर | राजस्थान | जानवरों को पालने के साक्ष्य, सूक्ष्म औजार। |
| सरायनाहर राय | उत्तर प्रदेश | सूक्ष्म पत्थर के औजार, मछली पकड़ने के उपकरण। |
| दमदामा | उत्तर प्रदेश | हड्डियों के औजार और मानव अवशेष। |
| लंगहनाज | गुजरात | पशुपालन के प्रारंभिक प्रमाण। |
| नवासा | महाराष्ट्र | मध्यपाषाण युगीन संस्कृति के अवशेष। |
| स्थान | राज्य | विशेषताएँ |
|---|---|---|
| महागर | उत्तर प्रदेश | कृषि, पशुपालन, मिट्टी के मकान और बर्तन। |
| चिरांद | बिहार | धान की खेती, मृदभांड और हड्डियों के औजार। |
| बुरज़होम | जम्मू और कश्मीर | खुदे हुए गड्ढों में मकान, पशुपालन, शिकारी जीवन। |
| हल्लूर | कर्नाटक | कृषि, मिट्टी के बर्तन और उन्नत औजार। |
| पैयमपल्ली | तमिलनाडु | नवपाषाण से लौह युग में संक्रमण के प्रमाण। |
पाषाण युग के समय स्थिति सामाजिक, सांस्कृतिक, और आवासीय जीवन को दर्शाती है। इस काल में समाज, कला, धार्मिकता, और आवास की स्थिति ने मानव जीवन की दिशा को आकार दिया।
समाज और संस्कृति पाषाण युग में सरल और प्राकृतिक थीं। लोग छोटे-छोटे समूहों में रहते थे और शिकारी-संग्रहकर्ता के रूप में जीवन यापन करते थे। समाज में समानता और सहयोग की भावना प्रमुख थी, और संस्कृति की शुरुआत गुफा चित्रण और अन्य कलात्मक गतिविधियों से हुई।
कला और धार्मिकता पाषाण युग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। गुफाओं में बने चित्र और मूर्तियाँ उस समय की कला और धार्मिक विश्वासों को दर्शाते हैं। ये चित्रण न केवल शिकार की गतिविधियों को दर्शाते हैं बल्कि धार्मिक अनुष्ठान और सामाजिक परंपराओं का भी प्रतीक होते हैं।
आवासन पाषाण युग में मुख्य रूप से गुफाओं में होता था। गुफाएँ प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करती थीं और इन्हें आवास के रूप में उपयोग किया जाता था। नवपाषाण काल के दौरान, लोगों ने मिट्टी और पत्थरों से बने घरों का निर्माण शुरू किया, जिससे स्थायी आवास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया।
पाषाण युग की सामाजिक संरचना उस समय के समाज की विविधताओं और प्राथमिकताओं को दर्शाती है। समाज का संगठन और उसकी दैनिक गतिविधियाँ इस काल की सामाजिक संरचना को स्पष्ट करती हैं।
परिवार और समुदाय पाषाण युग में महत्वपूर्ण थे। लोग छोटे परिवारों में रहते थे और एक-दूसरे की सहायता करते थे। सामूहिक जीवन और सहयोग की भावना समाज की नींव को मजबूत करती थी। परिवार की संरचना और समुदाय की गतिविधियाँ इस काल की सामाजिक संरचना को उजागर करती हैं।
आदिवासी जीवन और परंपराएँ पाषाण युग में विकसित हुईं। आदिवासी जीवन की आदतें, परंपराएँ और सांस्कृतिक गतिविधियाँ इस काल की सामाजिक पहचान का हिस्सा थीं। ये परंपराएँ आज भी कुछ आदिवासी समुदायों में जीवित हैं और पाषाण काल की सांस्कृतिक धरोहर को बनाए रखती हैं।
पाषाण युग में चिकित्सा और स्वास्थ्य की स्थिति भी इस काल के विकास को दर्शाती है।
औषधि का उपयोग पाषाण युग में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों और पौधों से किया जाता था। मनुष्यों ने प्राकृतिक चिकित्सा विधियों का उपयोग किया और विभिन्न बीमारियों का इलाज किया। इन औषधियों का उपयोग स्वास्थ्य को बनाए रखने और बीमारियों को दूर करने के लिए किया जाता था।
पाषाण काल में स्वास्थ्य की स्थिति आज के आधुनिक स्वास्थ्य विज्ञान जैसी नहीं थी, लेकिन उस समय के मानव के जीवन और शरीर की बनावट से जुड़ी कुछ बातें हम आज शोधों और अवशेषों के माध्यम से समझ पाते हैं। पाषाण काल मुख्य रूप से तीन भागों में बाँटा जाता है – पुरापाषाण काल (Old Stone Age), मध्यपाषाण काल (Middle Stone Age), और नवपाषाण काल (New Stone Age)। इन सभी कालों में स्वास्थ्य की स्थिति प्राकृतिक जीवनशैली पर आधारित थी।
पाषाण काल ब्लॉग में हमने पाषाण काल किसे कहते हैं, पाषाण काल के औजार, पाषाण काल की विशेषताएं, पाषाण काल का अर्थ और पाषाण काल नोट्स को विस्तार से समझने की कोशिश की।
पाषाण काल मानव इतिहास का एक महत्वपूर्ण और प्राचीन काल है, जो मनुष्यों की विकास यात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस काल में पत्थरों से औजारों का निर्माण, शिकार और संग्रहण की गतिविधियाँ, गुफा चित्रण, और आग का उपयोग हुआ। पाषाण काल के औजार, सामाजिक संरचना, और स्वास्थ्य देखभाल इस काल की विविधताओं को उजागर करते हैं, जो आज भी मानव इतिहास के महत्वपूर्ण अध्यायों में शामिल हैं।
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पाषाण युग की शुरुआत लगभग 30,000 ईसा पूर्व हुई और यह 3,000 ईसा पूर्व तक जारी रहा, लेकिन कुछ विद्वानों का दावा है कि पाषाण काल का समय लगभग 2.5 मिलियन वर्ष पूर्व से लेकर लगभग 10,000 वर्ष पूर्व तक है।
रॉबर्ट ब्रूस फूटे 1863 में भारत में पुरापाषाण काल की खोज करने वाले पहले व्यक्ति थे।
पाषाण काल में मानव गुफाओं, खुले स्थानों, और प्राकृतिक आश्रयों में रहता था। गुफाएँ उनके लिए शरण स्थली का काम करती थीं, जबकि खुले स्थानों पर वे शिकार और संग्रहण के लिए रहते थे।
पाषाण युग को तीन मुख्य चरणों में बाँटा जाता है:
1. पूर्वपाषाण काल (Paleolithic Age): इसमें मानव ने मुख्य रूप से कच्चे पत्थरों से औजार बनाए और शिकार करके अपना जीवन यापन किया।
2. मध्यपाषाण काल (Mesolithic Age): इसमें मानव ने उन्नत औजारों का निर्माण किया और मांसाहारी व वनस्पति आधारित आहार को अपनाया।
3. नवपाषाण काल (Neolithic Age): यह कृषि और स्थायी बस्तियों का काल था। इस युग में मनुष्य ने कृषि, पशुपालन, और बुनाई आदि की शुरुआत की।
मानव ने सबसे पहले आग को प्राकृतिक रूप में देखा – जैसे:
जंगलों में बिजली गिरने से आग लगना
ज्वालामुखी से निकलती आग
पेड़ों के आपसी रगड़ से उत्पन्न गर्मी से जलना
धीरे-धीरे मनुष्य ने यह समझा कि दो पत्थरों (फ्लिंट स्टोन) को आपस में घिसने या टकराने से चिंगारी निकलती है, जिसे सूखे पत्तों और लकड़ियों पर गिराकर आग उत्पन्न की जा सकती है।
पाषाण युग के लोग शुरुआत में गुफाओं, चट्टानों की दरारों और वृक्षों के नीचे रहते थे। पुरापाषाण काल में वे अस्थायी आवास बनाते थे, जबकि नवपाषाण काल में उन्होंने मिट्टी, लकड़ी और पत्थर से स्थायी घर बनाना शुरू किया। जैसे-जैसे जीवन स्थिर हुआ, लोगों ने गाँवों में बसना शुरू किया। भारत में भीमबेटका (मध्य प्रदेश) और बुर्जहोम (जम्मू-कश्मीर) जैसे स्थलों से उनके आवास के प्रमाण मिले हैं।
Authored by, Aakriti Jain
Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.
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