मौलिक अधिकार

भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकार | Fundamental Rights In Hindi

Published on September 10, 2025
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मौलिक अधिकार

Quick Summary

  1. मौलिक अधिकार भारत के संविधान के भाग 3 (अनुच्छेद 12 से 35) में वर्णित हैं।
  2. ये अधिकार भारतीय नागरिकों को दिए गए हैं और सामान्य स्थिति में सरकार द्वारा सीमित नहीं किए जा सकते।
  3. ये अधिकार व्यक्तियों को स्वतंत्रता से सोचने, बोलने, लिखने और अभिव्यक्ति की अनुमति देते हैं।
  4. ये सभी नागरिकों को समानता प्रदान करते हैं, चाहे उनकी जाति, धर्म, लिंग या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो।
  5. मौलिक अधिकारों की कुछ प्रमुख श्रेणियां हैं, जैसे:
    • समानता का अधिकार
    • भाषा और विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता का अधिकार
    • आस्था और अंतःकरण की स्वतंत्रता
    • किसी भी वर्ग के नागरिकों को अपनी संस्कृति सुरक्षित रखने का अधिकार

Table of Contents

मौलिक अधिकार क्या हैं? अक्सर आपने देखा होगा कि लोग छोटी-छोटी बातों पर अपने अधिकारों का बखान करने लगते हैं। हालांकि, उन्हें भी अपने अधिकारों के बारे में पूरी तरह पता नहीं होता है। दरअसल, भारत सरकार ने सभी को कई तरह के अधिकार दिए है, जिसे मौलिक अधिकार कहा जाता है। 

भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकार देश के लोकतांत्रिक ढांचे का आधार हैं, जो ये सुनिश्चित करते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को कुछ स्वतंत्रता और सुरक्षा प्राप्त हो। भारतीय संविधान के भाग III में निहित, ये अधिकार सभी नागरिकों की गरिमा, स्वतंत्रता और समानता की रक्षा के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, चाहे उनकी पृष्ठभूमि या स्थिति कुछ भी हो।

भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकार
भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकार

भारतीय नागरिक के मौलिक अधिकार क्या है? | Maulik Adhikar kya hai?

मौलिक अधिकार वह अधिकार होते हैं, जो हर व्यक्ति को जन्म से ही प्राप्त होते हैं। ये अधिकार संविधान, कानून या आम संगठनित नियमों द्वारा प्राप्त नहीं किए जाते हैं। ये अधिकार स्वाभाविक रूप से हर व्यक्ति को प्राप्त होते हैं। इनमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता, न्याय, स्वतंत्र विचार, धार्मिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विचार और धार्मिक धारणा, संघ की स्वतंत्रता, और संघ करने की स्वतंत्रता शामिल होते हैं। ये अधिकार भारतीय संविधान, अंतर्राष्ट्रीय संधियों, नैतिकता, और मानव अधिकारों के सिद्धांतों के अनुसार संरक्षित होते हैं।

मौलिक अधिकारों का महत्व 

भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार निम्नलिखित दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण हैं:

  • लोकतांत्रिक आधारशिला: ये अधिकार लोकतांत्रिक व्यवस्था की आधारशिला को मजबूत करते हैं और लोगों को राजनीतिक-प्रशासनिक प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर प्रदान करते हैं।
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा: ये राज्य की तानाशाही पर नियंत्रण रखते हुए व्यक्तिगत स्वतंत्रता और कानून के शासन की रक्षा करते हैं।
  • सामाजिक न्याय: मौलिक अधिकार सामाजिक न्याय की नींव रखते हैं और व्यक्तियों की गरिमा को सुनिश्चित करते हैं।
  • अल्पसंख्यकों की रक्षा: ये अधिकार अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों के हितों की रक्षा करते हैं और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देते हैं।
  • धर्मनिरपेक्षता की पुष्टि: ये अधिकार राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को सुदृढ़ करते हैं।

मौलिक अधिकारों की आवश्यकता | Importance of Fundamental Rights

मौलिक अधिकार ( 6 maulik adhikar) लोकतांत्रिक समाज में कई महत्वपूर्ण विचारों की पूर्ति करते हैं, जैसे:

  • सरकारी अत्याचार के विरुद्ध सुरक्षा: ये अधिकार सरकार द्वारा उत्पीड़न और अत्याचार से बचाते हैं।
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय: ये व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देते हैं।
  • लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करना: ये अधिकार लोकतांत्रिक मूल्यों को सुदृढ़ करते हैं और भेदभाव और अन्याय को रोकते हैं।
  • कानून का शासन सुनिश्चित करना: ये अधिकार कानून का शासन सुनिश्चित करते हैं और सामाजिक प्रगति को सुगम बनाते हैं।

भारतीय संविधान के अनुसार मौलिक अधिकार | Maulik Adhikar Kitne Hote Hai

भाग III (अनुच्छेद 14 से 32) में निहित मौलिक अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता और स्वतंत्रता की सुरक्षा एवं संवर्धन के लिए आवश्यक माने जाते हैं। संविधान के भाग III को ‘भारत का मैग्नाकार्टा’ की संज्ञा दी गई है।

‘मैग्नाकार्टा’ अधिकारों का वह प्रपत्र है, जिसे इंग्लैंड के किंग जॉन द्वारा 1215 में सामंतों के दबाव में जारी किया गया था। यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों से संबंधित पहला लिखित प्रपत्र था।

भारतीय संविधान के अनुसार मौलिक अधिकार की सूची में इस प्रकार है:

मौलिक अधिकारअनुच्छेद
समानता का अधिकारअनुच्छेद 14-18
स्वतंत्रता का अधिकारअनुच्छेद 19-22
शोषण के विरुद्ध अधिकारअनुच्छेद 23-24
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकारअनुच्छेद 25-28
सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारअनुच्छेद 29-30
संवैधानिक उपचारों का अधिकारअनुच्छेद 32
मौलिक अधिकार की सूची

6 Important Fundamental Rights of India in Hindi मूलतः संविधान में संपत्ति का अधिकार (अनुच्छेद 31) भी शामिल था। हालाँकि इसे 44वें संविधान अधिनियम, 1978 द्वारा मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया गया था। इसे संविधान के भाग XII में अनुच्छेद 300 (A) के तहत कानूनी अधिकार बना दिया गया है।

भारतीय नागरिक पर मौलिक अधिकारों का प्रभाव

मौलिक अधिकारों का समाज पर गहरा और दूरगामी प्रभाव है। ये अधिकार किसी राष्ट्र के सामाजिक-राजनीतिक ढांचे और समग्र कल्याण को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

समाज पर मौलिक अधिकारों का प्रभाव

  • मौलिक अधिकार यह सुनिश्चित करते हैं कि लोगों को खुद को अभिव्यक्त करने, अपने धर्म का पालन करने, शांतिपूर्वक इकट्ठा होने और डर के बिना राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने की स्वतंत्रता है।
  • इन अधिकारों में जाति, लिंग, धर्म, या सामाजिक स्थिति की परवाह किए बिना, कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करने का उद्देश्य भी शामिल होता है।
  • प्रत्येक व्यक्ति की अंतर्निहित गरिमा की रक्षा करके, मौलिक अधिकार एक ऐसे समाज के निर्माण में योगदान करते हैं, जो हर व्यक्ति के मूल्य का सम्मान करता है।
  • इसके अलावा, मौलिक अधिकार न्याय प्रशासन और उचित प्रक्रिया की सुरक्षा के लिए एक रूपरेखा प्रदान करते हैं, जिसमें निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार, कानूनी प्रतिनिधित्व तक पहुंच और मनमानी हिरासत या सजा के खिलाफ सुरक्षा शामिल है।

व्यक्तिगत स्वतंत्रता और विकास में मौलिक अधिकारों की भूमिका

मौलिक अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने और कई मायनों में विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये अधिकार सुनिश्चित करते हैं कि व्यक्तियों को खुद को अभिव्यक्त करने, अपनी मान्यताओं को आगे बढ़ाने, दूसरों के साथ जुड़ने, और व्यक्तिगत पूर्ति एवं विकास के लिए आवश्यक गतिविधियों में संलग्न होने की स्वायत्तता प्राप्त है। 

मौलिक अधिकार कितने है? भारतीय नागरिक के 6 मौलिक अधिकार

Maulik adhikar kitne hain?(article 14 se 32 in hindi)अगर आप उलझन में हैं कि 6 मौलिक अधिकार कौन-कौन से हैं, तो यह आम तौर पर अधिकारों और स्वतंत्रताओं की एक श्रृंखला है जिन्हें समाज के भीतर व्यक्तियों की भलाई और सम्मान के लिए आवश्यक माना जाता है। इनमें नागरिक अधिकार, राजनीतिक अधिकार, सामाजिक अधिकार, आर्थिक अधिकार, सांस्कृतिक अधिकार, और पर्यावरणीय अधिकार शामिल होते हैं।

maulik adhikar kya hai
maulik adhikar kya hai

6 मौलिक अधिकारों में सबसे पहला है समानता का अधिकार। यह मौलिक मानवाधिकार सभी व्यक्तियों के लिए निष्पक्षता, बिना भेदभाव और समान व्यवहार सुनिश्चित करता है, चाहे उनकी जाति, जातीयता, लिंग, धर्म या जन्मस्थान कुछ भी हो। यह लोकतांत्रिक समाजों की आधारशिला के रूप में कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार उपकरणों और राष्ट्रीय संविधानों में निहित है। 

समानता की परिभाषा

भारत के संविधान में समानता का अधिकार एक प्रमुख मौलिक अधिकार है, जिसे अनुच्छेद 14 से 18 तक विस्तृत रूप में परिभाषित किया गया है।

अनुच्छेद 14: विधि के समक्ष समानता

यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि राज्य भारत के क्षेत्र के भीतर किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानूनों से समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। यह राज्य द्वारा मनमाने भेदभाव को प्रतिबंधित करता है और समान परिस्थितियों में समान व्यवहार की गारंटी प्रदान करता है।

आर्टिकल 15: धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध

भेदभाव का निषेध: यह प्रावधान केवल धर्म, मूलवंश , जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी नागरिक को केवल इन आधारों पर किसी अयोग्यता, दायित्व या प्रतिबंध के अधीन नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 16: सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता

यह प्रावधान सार्वजनिक रोजगार या नियुक्ति के मामलों में अवसर की समानता की गारंटी प्रदान करता है। यह इन मामलों में केवल धर्म, जाति, मूलवंश, लिंग, वंश, जन्म स्थान या निवास स्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।

अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का उन्मूलन

अस्पृश्यता का उन्मूलन: यह प्रावधान अस्पृश्यता को समाप्त करता है और किसी भी रूप में इसके अभ्यास को प्रतिबंधित करता है। यह अस्पृश्यता को एक सामाजिक बुराई के रूप में मान्यता देता है और भारतीय समाज में इस भेदभावपूर्ण प्रथा के उन्मूलन को सुनिश्चित करता है।

अनुच्छेद 18: उपाधियों का उन्मूलन

उपाधियों का उन्मूलन: यह प्रावधान राज्य को व्यक्तियों को सैन्य और शैक्षणिक विशिष्टताओं को छोड़कर उपाधियाँ प्रदान करने से प्रतिबंधित करता है। यह किसी विदेशी राज्य से या उसके अधीन कोई उपाधि, उपहार, परिलब्धियाँ या कार्यालय स्वीकार करने के संबंध में कुछ प्रावधान भी करता है।

संवैधानिक अधिकार | मौलिक अधिकार इन हिंदी | Fundamental Rights in Hindi

भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत प्रत्येक नागरिक को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है।

जाति, धर्म, लिंग और जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव समाप्त करें

समानता के अधिकार को पूर्ण अर्थों में साकार करने के लिए जाति, धर्म, लिंग और जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव को समाप्त करना आवश्यक है। भेदभाव को समाप्त करने के लिए सरकारों, संस्थानों द्वारा समाज में बड़े पैमाने पर सक्रिय कदम उठाए जा रहे हैं। 

छह अधिस्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom) – अनुच्छेद 19 से 22

अनुच्छेद 19 – विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

यह केवल भारतीय नागरिकों को प्राप्त है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित छह स्वतंत्रताएँ दी गई हैं:

  1. विचारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
  2. शांतिपूर्ण सभा करने की स्वतंत्रता
  3. संघ, संगठन या यूनियन बनाने की स्वतंत्रता
  4. भारत के किसी भी भाग में आने-जाने की स्वतंत्रता
  5. भारत में कहीं भी निवास करने की स्वतंत्रता
  6. किसी भी पेशे, व्यापार या व्यवसाय को अपनाने की स्वतंत्रता

सरकार इन स्वतंत्रताओं पर उचित प्रतिबंध लगा सकती है, जैसे – राष्ट्र की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, आदि के हित में।

अनुच्छेद 20 – आपराधिक मामलों में संरक्षण

यह तीन प्रकार के संरक्षण प्रदान करता है:

  1. पूर्वव्यापी दंड से सुरक्षा (Ex-post facto law)
  2. दोहरी सजा से सुरक्षा (Double jeopardy)
  3. आत्म-साक्षीकरण से मुक्ति (Self-incrimination)

अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार

कोई भी व्यक्ति विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही अपने जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जा सकता है।
यह अधिकार नागरिक और गैर-नागरिक, दोनों को प्राप्त है।
इस अनुच्छेद के अंतर्गत निम्न अधिकारों का विकास हुआ है:

  • गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार
  • स्वास्थ्य का अधिकार
  • शिक्षा का अधिकार
  • निजता का अधिकार (2017 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मान्यता प्राप्त)

अनुच्छेद 22 – गिरफ्तारी और निरोध के मामलों में संरक्षण

इस अनुच्छेद के अंतर्गत दो प्रकार की सुरक्षा दी जाती है:

निवारक निरोध (Preventive Detention) के मामलों में भी कुछ सीमित अधिकार प्राप्त हैं

सामान्य गिरफ्तारी के मामलों में अधिकार – जैसे कि वकील की मदद लेना, 24 घंटे के भीतर न्यायालय में पेश होना

शोषण के विरुद्ध अधिकार भारत के संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों में से एक है। यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 23 और 24 में वर्णित है, जो शोषण के सभी प्रकारों से व्यक्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।

शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right Against Exploitation) – अनुच्छेद 23 और 24

अनुच्छेद 23 – मानव तस्करी और बलात् श्रम का निषेध

  1. यह अनुच्छेद मानव तस्करी, जबरन बेगारी (मुफ्त में काम कराना), और दास प्रथा जैसे शोषण के कार्यों को अवैध घोषित करता है।
  2. यदि कोई व्यक्ति किसी से जबरन काम करवाता है (चाहे वह बिना वेतन हो या कम वेतन पर), तो यह संविधान के विरुद्ध है।
  3. यह अधिकार भारत के सभी नागरिकों तथा गैर-नागरिकों को भी प्राप्त है।
  4. संसद को यह अधिकार है कि वह ऐसे अपराधों को रोकने के लिए कानून बना सके।

उदाहरण:

  • अगर किसी गरीब मजदूर से जबरदस्ती काम करवाया जाए बिना उसकी इच्छा के, तो वह अनुच्छेद 23 का उल्लंघन है।

अनुच्छेद 24 – बाल श्रम का निषेध

  1. यह अनुच्छेद 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कारखानों, बाल श्रम, खदानों या अन्य खतरनाक कार्यों में नियोजित करने पर प्रतिबंध लगाता है।
  2. इसका उद्देश्य बच्चों को शिक्षा और सुरक्षित बचपन का अधिकार देना है।
  3. यह प्रावधान बच्चों के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास की रक्षा करता है।

उदाहरण:

  • अगर किसी होटल, कारखाने या ईंट-भट्टे में 10 साल का बच्चा काम करता पाया गया, तो यह संविधान के अनुच्छेद 24 का उल्लंघन है।

अनुच्छेद 25 – अंत:करण, धर्म और धार्मिक आचरण की स्वतंत्रता

  1. हर व्यक्ति को अपने विवेक के अनुसार धर्म मानने, धर्म का पालन करने, और उसका प्रचार करने का अधिकार है।
  2. यह अधिकार व्यक्ति आधारित है, यानी सभी नागरिकों और गैर-नागरिकों को प्राप्त है।
  3. लेकिन यह स्वतंत्रता सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है।
  4. सरकार को यह अधिकार है कि वह धार्मिक स्थलों में सामाजिक सुधारों के लिए कानून बना सके।

उदाहरण:
कोई व्यक्ति हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई या किसी अन्य धर्म को अपनाने, छोड़ने या उसका प्रचार करने के लिए स्वतंत्र है।

अनुच्छेद 26 – धार्मिक संस्थाओं की स्वतंत्रता

  1. प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय को यह अधिकार है कि वह अपने धार्मिक कार्यों को स्वतंत्र रूप से संचालित कर सके।
  2. वे संस्थाएँ
    • धार्मिक कार्य कर सकती हैं
    • अपनी संपत्ति का प्रबंधन कर सकती हैं
    • धार्मिक उद्देश्य से संस्थान चला सकती हैं

उदाहरण:
कोई मंदिर, मस्जिद, चर्च या गुरुद्वारा अपनी परंपराओं के अनुसार पूजा-पद्धति चला सकता है।

अनुच्छेद 27 – धार्मिक करों का निषेध

  1. किसी भी व्यक्ति को उस धर्म के प्रचार या पालन के लिए कर चुकाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, जिसे वह स्वयं नहीं मानता।

उदाहरण:
अगर आप किसी विशेष धर्म को नहीं मानते, तो सरकार आपसे उस धर्म के धार्मिक कार्यों के लिए कर नहीं वसूल सकती।

अनुच्छेद 28 – धार्मिक शिक्षा से संबंधित अधिकार

  1. सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में किसी भी प्रकार की धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।
  2. लेकिन ऐसे निजी संस्थान जो पूरी तरह धार्मिक संस्थाओं द्वारा चलाए जाते हैं, वे अपनी मान्यता के अनुरूप धार्मिक शिक्षा दे सकते हैं।

उदाहरण:
एक सरकारी स्कूल में धार्मिक पाठ्यक्रम अनिवार्य नहीं हो सकता, लेकिन किसी मिशनरी स्कूल में बाइबिल की शिक्षा दी जा सकती है।

  • अनुच्छेद 29:
    • विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति वाले नागरिकों को संरक्षित करने का अधिकार प्रदान करता है और धर्म, जाति या भाषा के आधार पर प्रवेश से वंचित नहीं किया जा सकता।
  • अनुच्छेद 30:
    • अल्पसंख्यकों को उनकी भाषा और संस्कृति के अनुसार शिक्षण संस्थान स्थापित और संचालित करने का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 32:
    • मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर सर्वोच्च न्यायालय में जाने का अधिकार प्रदान करता है। सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए आदेश और रिट जारी कर सकता है।

रिट क्षेत्राधिकार: यह न्यायालय द्वारा जारी किया जाने वाला एक कानूनी आदेश है। सर्वोच्च न्यायालय (अनुच्छेद 32) एवं उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 226) रिट जारी कर सकते हैं। ये हैं- बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण एवं अधिकार पृच्छा।

  • अनुच्छेद 33: सशस्त्र बलों और समान बलों के सदस्यों के मौलिक अधिकारों को संशोधित या प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 34: मार्शल लॉ के संचालन के दौरान मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध की व्यवस्था करता है।
  • अनुच्छेद 35: मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए कानून बनाने का अधिकार केवल संसद को देता है, जिससे अधिकारों की एकरूपता सुनिश्चित होती है।

मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर न्यायालय में जाने का अधिकार:

मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर अदालत जाने का अधिकार व्यक्तियों को सरकार या किसी अन्य इकाई द्वारा उनके अधिकारों का उल्लंघन होने पर कानूनी सहारा लेने में सक्षम बनाता है। यह अधिकार सुनिश्चित करता है कि नागरिकों को न्याय मिले और वे अपने संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले किसी भी कार्य के लिए अधिकारियों को जवाबदेह ठहरा सकें।

निष्कर्ष

संवैधानिक उपचारों और सामाजिक न्याय का अधिकार एक लोकतांत्रिक और अधिकारों का सम्मान करने वाले समाज का एक महत्वपूर्ण घटक है। यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को संविधान के तहत गारंटीकृत अपने मौलिक अधिकार की सुरक्षा और कार्यान्वयन के लिए न्यायपालिका का सहारा लेना होगा। जब नागरिक अपने अधिकारों का उल्लंघन देखते हैं, तो वे न्यायपालिका के समक्ष जाकर अपने अधिकारों की पुनर्स्थापना की मांग कर सकते हैं। इससे सरकार और अन्य संस्थाओं पर जवाबदेही बढ़ती है, और यह सुनिश्चित होता है कि कोई भी व्यक्तियों की स्वतंत्रता और सम्मान का उल्लंघन नहीं कर सकता।

इसके अलावा, यह अधिकार न केवल मौलिक अधिकारों की सुरक्षा करता है बल्कि समाज में समानता और न्याय को भी बढ़ावा देता है। इससे कानून के शासन की स्थापना होती है और समाज में एक समान, निष्पक्ष और समावेशी व्यवस्था की दिशा में योगदान होता है। यह लोकतंत्र और मानवाधिकारों के सिद्धांतों की रक्षा करता है और नागरिकों को उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाने की शक्ति प्रदान करता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

भारत के 6 मौलिक अधिकार कौन से है ?

मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण
समानता का अधिकार : अनुच्छेद 14 से 18 तक।
स्वतंत्रता का अधिकार : अनुच्छेद 19 से 22 तक।
शोषण के विरुध अधिकार : अनुच्छेद 23 से 24 तक।
धार्मिक स्वतंत्रता क अधिकार : अनुच्छेद 25 से 28 तक।
सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बंधित अधिकार : अनुच्छेद 29 से 30 तक।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार : अनुच्छेद 32.

भारतीय संविधान में कितने मौलिक अधिकार उल्लेखित हैं?

संविधान द्वारा मूल रूप से 7 मूल अधिकार प्रदान किए गए थे- समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धर्म, संस्कृति एवं शिक्षा की स्वतंत्रता का अधिकार, संपत्ति का अधिकार तथा संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

मौलिक अधिकार क्या है समझाएं?

मौलिक अधिकार किसी भी देश के नागरिक को दिए गए ऐसे अधिकार होते हैं जो मुख्य रूप से व्यक्तियों को राज्य की मनमानी कार्रवाइयों से बचाते हैं। ये अधिकार संविधान द्वारा गारंटीकृत होते हैं और सरकार या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा इनका हनन नहीं किया जा सकता।

भारत के 7 मौलिक अधिकार कौन कौन से है ?

1. समानता का अधिकार
2. स्‍वतंत्रता का अधिकार
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
5. संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार
6. कुछ विधियों की व्यावृत्ति
7. संवैधानिक उपचारों का अधिकार

कुल कितने मौलिक कर्तव्य है?

भारतीय संविधान में कुल 11 मौलिक कर्तव्य हैं।

Authored by, Aakriti Jain
Content Curator

Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.

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