Quick Summary
महादेवी वर्मा (26 मार्च 1907 – 11 सितंबर 1987) हिंदी साहित्य की एक प्रसिद्ध कवयित्री, निबंधकार और लघु कथाकार थीं। वे छायावाद युग की प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। साहित्य में उनके योगदान के कारण उन्हें “आधुनिक मीरा” की उपाधि से भी सम्मानित किया गया।
हिन्दी साहित्य के महान कवि-कवयित्री में महादेवी वर्मा जी का नाम आगे आता है । आज हम महादेवी वर्मा का जीवन परिचय हिंदी में देखेंगे और जानेंगे महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएं, उनकि छायावादी कविता की सफलता में उनका योगदान कितना महत्वपूर्ण है। महादेवी वर्मा का जीवन परिचय (Mahadevi Verma ka Jivan Parichay) पढ़ने पर पता चलता है कि उन्होंने स्वतंत्रता से पहले और बाद का भी भारत देखा है। वे उन कवियों में से एक हैं जिन्होंने समाज में काम करते हुए भारत के भीतर मौजूद हाहाकार और रुदन को देखा, समझा और करुणा के साथ अंधकार को दूर करने की दृष्टि देने का प्रयास किया।
| श्रेणी | विवरण |
|---|---|
| पूरा नाम | महादेवी वर्मा |
| जन्म तिथि | 26 मार्च 1907 |
| जन्म स्थान | फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत |
| मृत्यु तिथि | 11 सितंबर 1987 |
| मृत्यु स्थान | इलाहाबाद (अब प्रयागराज), उत्तर प्रदेश |
| आयु (मृत्यु के समय) | 80 वर्ष |
| पिता का नाम | गोविंद प्रसाद वर्मा |
| माता का नाम | हेमरानी देवी |
| शिक्षा | एम.ए. (संस्कृत) – इलाहाबाद विश्वविद्यालय |
| पति का नाम | स्वामी श्री स्वरूप नारायण वर्मा |
| मुख्य कविताएँ | निहार, रश्मि, नीरजा, सन्ध्यागीत, दीपशिखा, यामा |
| प्रमुख रचनाएँ (गद्य) | अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, मृदुला की आत्मकथा |
| साहित्यिक योगदान | छायावादी काव्यधारा की प्रमुख कवयित्री, लेखिका, शिक्षाविद् और समाजसेविका |
| प्रमुख पुरस्कार | पद्म भूषण (1956), ज्ञानपीठ पुरस्कार (1982), पद्म विभूषण (1988, मरणोपरांत) |
हिंदी साहित्य की महान कवयित्री, निबंधकार, शिक्षाविद् और भारत की आधुनिक युग की ‘मीरा’ मानी जाती हैं। वे छायावाद आंदोलन की प्रमुख स्तंभों में से एक थीं, जिनकी रचनाओं में करुणा, संवेदना, आत्मा की पुकार और नारी चेतना की झलक मिलती है।
महादेवी जी का जन्म 26 मार्च 1907 को सुबह 8 बजे उत्तर प्रदेश के फ़र्रुख़ाबाद में हुआ था। उनके परिवार में लगभग दो सौ वर्षों या सात पीढ़ियों बाद किसी पुत्री का जन्म हुआ था, जिससे उनके दादा बाबू बाँके बिहारी जी अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने अपनी पोती को घर की देवी मानकर उसका नाम महादेवी रखा।
महादेवी जी के पिता श्री गोविंद प्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थे। उनकी माता का नाम हेमरानी देवी था, जो धर्मपरायण, भावुक, कर्मनिष्ठ और पूर्णतः शाकाहारी थीं। विवाह के समय वे अपने साथ सिंहासनासीन भगवान की मूर्ति भी लाई थीं और प्रतिदिन कई घंटे पूजा-पाठ करती थीं। वे रामायण, गीता और विनय पत्रिका का नियमित पाठ करती थीं और संगीत में भी उनकी गहरी रुचि थी।
इसके विपरीत, उनके पिता गोविंद प्रसाद वर्मा एक सुंदर, विद्वान, नास्तिक, और संगीत तथा शिकार के शौकीन, मांसाहारी तथा हँसमुख स्वभाव के व्यक्ति थे।
महादेवी वर्मा के मानस बंधु सुमित्रानंदन पंत और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला थे, जो जीवनभर उनसे राखी बंधवाते रहे। विशेष रूप से निराला जी से उनका अत्यंत घनिष्ठ संबंध था — महादेवी जी ने उनकी पुष्ट कलाइयों में लगभग चालीस वर्षों तक राखी बाँधी।
9 साल की उम्र में ही महादेवी जी का बाल विवाह हो गया था, इस कारण इनकी शिक्षा कुछ समय तक रुक गयी। दरअसल सन् 1916 में दादा जी श्री बाँके बिहारी ने इनका विवाह बरेली के पास नवाबगंज कस्बे के निवासी श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कर दिया।
महादेवी वर्मा जी की प्रारंभिक शिक्षा इन्दौर में मिशन स्कूल से हुई। इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद के क्रॉस्थवेट गर्ल्स कॉलेज में दाखिला लिया। क्रॉस्थवेट के छात्रावास में रहकर उन्होंने एकता की ताकत सीखी। यहां वो सबसे छुपाकर कविता लिखने लगी।उनकी रूममेट और सीनियर सुभद्रा कुमारी चौहान ने उनकी छुपी कविताओं को खोज निकाला। तब जाकर उनकी छिपी साहित्यिक प्रतिभा का खुलासा हुआ। सुभद्रा खड़ी बोली में लिखती थी जल्द ही महादेवी भी खड़ी बोली में लिखना शुरू कर दिया।
महादेवी वर्मा जी के शिक्षा जीवन से जुड़ी मुख्य बातें:
महादेवी और सुभद्रा कुमारी साप्ताहिक पत्रिकाओं प्रकाशित करने के लिए अपनी कविताएँ भेजती रहती थीं। उनकी कुछ कविताएँ प्रकाशित भी हो गई। दोनों नई कवयित्रियों ने कविता संगोष्ठियों में भी भाग लिया, वहां उनकी मुलाकात बड़े बड़े हिंदी कवियों से हुई और लोगों के सामने अपनी कविताएँ सुनाई।
| महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएं | प्रकाशन वर्ष |
|---|---|
| निहार | 1930 |
| रश्मि | 1932 |
| नीरजा | 1933 |
| संध्यागीत | 1935 |
| अतीत के चलचित्र | 1941 |
| दीपशिखा | 1942 |
| स्मृति की रेखाएँ | 1943 |
| पथ के साथी | 1956 |
| अग्निरेखा | 1990 (मरणोपरांत) |
पथ के साथी, मेरा परिवार, स्मृति की राहे, और अतीत के चलचित्रों की सीरीज़ महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएं हैं। उन्हें भारत में नारीवाद की अग्रदूत भी माना जाता है।
महादेवी वर्मा का कार्यक्षेत्र अत्यंत व्यापक रहा उन्होंने लेखन, सम्पादन और शिक्षण के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने इलाहाबाद स्थित प्रयाग महिला विद्यापीठ के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई, जो उस समय महिला शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी पहल थी। वे इस संस्थान की प्रधानाचार्या और कुलपति भी रहीं।
साल 1923 में उन्होंने प्रसिद्ध महिला पत्रिका ‘चाँद’ का संपादन कार्य संभाला। बाद में, उनके चार प्रमुख कविता संग्रह
महादेवी वर्मा ने कविता, गद्य, शिक्षा और चित्रकला जैसे विविध क्षेत्रों में नए मानदंड स्थापित किए। उनकी 18 से अधिक काव्य एवं गद्य रचनाएँ प्रकाशित हुईं, जिनमें प्रमुख हैं:-
1955 में उन्होंने इलाहाबाद में ‘साहित्यकार संसद’ की स्थापना की और पंडित इलाचंद्र जोशी के सहयोग से ‘साहित्यकार’ पत्रिका का संपादन भी संभाला, जो इस संस्था का मुखपत्र थी।
उन्होंने भारत में महिला कवि सम्मेलनों की परंपरा की शुरुआत की। ऐसा पहला अखिल भारतीय कवि सम्मेलन 15 अप्रैल 1933 को प्रयाग महिला विद्यापीठ में आयोजित हुआ, जिसकी अध्यक्षता सुभद्राकुमारी चौहान ने की थी।
महादेवी वर्मा को हिंदी साहित्य में रहस्यवाद की प्रवर्तक भी माना जाता है। वे बौद्ध दर्शन से गहराई से प्रभावित थीं और महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने जनसेवा का संकल्प लिया। उन्होंने झूसी क्षेत्र में सामाजिक कार्य किए और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया।
साल 1936 में उन्होंने नैनीताल के पास रामगढ़ के उमागढ़ गाँव में एक बंगला बनवाया, जिसका नाम ‘मीरा मंदिर’ रखा। वहाँ रहते हुए उन्होंने गाँव की शिक्षा, विशेष रूप से महिलाओं की शिक्षा और आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए उल्लेखनीय कार्य किए। वर्तमान में यह स्थान ‘महादेवी साहित्य संग्रहालय’ के रूप में जाना जाता है।
उनकी प्रसिद्ध कृति ‘शृंखला की कड़ियाँ’ में उन्होंने स्त्री-मुक्ति और विकास के लिए जिस साहस और दृढ़ता से आवाज़ उठाई है, वह उन्हें महिला मुक्ति आंदोलन की प्रभावशाली लेखिका के रूप में प्रतिष्ठित करता है। समाज की रूढ़ियों का उन्होंने दृढ़ता से विरोध किया, जिसके कारण उन्हें समाज-सुधारक भी माना जाता है।
महादेवी वर्मा के सम्पूर्ण गद्य साहित्य में पीड़ा या निराशा नहीं, बल्कि एक सृजनात्मक विद्रोह, समाज में परिवर्तन की तीव्र आकांक्षा और विकास के प्रति स्वाभाविक जुड़ाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
महादेवी वर्मा के जीवन परिचय में mahadevi verma ke bare mein पता चलता है कि साहित्य जगत में महादेवी वर्मा का उदय एक सशक्त क्रांति के समान था। महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएं में कोमलता को प्रस्तुत किया, जो उस समय एक महत्वपूर्ण पहल थी। महादेवी वर्मा ने भारतीय दर्शन को आत्मसात करने वाले गीतों का समृद्ध भंडार हमें सौंपा। उनकी रचनाओं के माध्यम से उन्होंने भाषा, साहित्य और दर्शन के क्षेत्रों में ऐसा महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसने आने वाली पीढ़ियों को गहराई से प्रभावित किया।
महादेवी वर्मा का कार्यक्षेत्र लेखन, संपादन और अध्यापन तक विस्तृत था। उन्होंने महिला शिक्षा के क्षेत्र में भी अनेक क्रांतिकारी कार्य किए।
महादेवी जी का (Mahadevi Verma ka Sahityik Parichay) हमें बताता है, की उन्होंने बहुत छोटी उम्र में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था पर उनकी कविताओं में बड़े अनुभवी कवियों के लेखन की तरह गहन संवेदनशीलता और भावनात्मकता थी। इनकी लेखन शैली सरल और सजीव थी साथ ही कविताओं में प्रेम, वेदना, और आत्मसंघर्ष शामिल था।
महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएं(Mahadevi Verma Ki Pramukh Rachnaen) निम्न प्रकार है –
महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएं गद्य साहित्य में इस प्रकार है:-
| रचना का नाम | प्रकार | विवरण |
|---|---|---|
| यम | कविता संग्रह | गहरी भावनाओं और मानवीय अनुभवों को अभिव्यक्त करने वाला प्रसिद्ध कविता संग्रह। |
| निहार | कविता संग्रह | उनकी साहित्यिक यात्रा का महत्वपूर्ण कविता संग्रह। |
| रश्मि | कविता संग्रह | प्रकाश, सुंदरता और प्रकृति पर आधारित कविताओं का संकलन। |
| सप्तपदी | कविता संग्रह | प्रेम और व्यक्तिगत अनुभवों पर केंद्रित कविताओं का संग्रह। |
| मैं तो भूल चली | लघु कथा | मानव स्वभाव की गहरी समझ और उनकी साहित्यिक शैली को दर्शाने वाली लघु कथा। |
| आंसू | कविता संग्रह | दुख, संघर्ष और जीवन के दर्द को संवेदनशीलता के साथ व्यक्त करने वाला संग्रह। |
| विशाल | निबंध | दार्शनिक और साहित्यिक दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने वाला निबंध। |
| अज्ञातवास | कविता संग्रह | जीवन की अनजानी और कठिन यात्रा पर आधारित कविताओं का संग्रह। |
| सफर | कविता संग्रह | जीवन की यात्रा, उसके उतार-चढ़ाव और अनुभवों को चित्रित करने वाला संग्रह। |
| सखी | कविता संग्रह | दोस्ती और साथ चलने के महत्व को उजागर करने वाला संग्रह। |
| सुख-दुख | कविता संग्रह | जीवन के सुख और दुख को गहन भावनाओं के साथ अभिव्यक्त करने वाला संग्रह। |
| सुख और दुख | कविता संग्रह | सुख-दुख की अनिवार्यता और उनके प्रभावों को दर्शाने वाला संग्रह। |
महादेवी वर्मा ने नारी जगत को भारतीय संदर्भ में मुक्ति का संदेश दिया। उनके विचार में, भारत की स्त्री भारत माँ की प्रतीक है और वह अपनी सभी संतानों को सुखी देखना चाहती है। स्त्रियों को स्वतंत्र करने में ही उनकी सच्ची मुक्ति है।
महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएं मैत्रेयी, गोपा, सीता और महाभारत अनेक स्त्री पात्रों का उदाहरण देकर यह बताती है कि ये सभी पात्र पुरुषों की साथी थीं, केवल छाया नहीं। छाया और साथी में अंतर स्पष्ट है – छाया का काम अपने आधार में इस तरह मिल जाना है कि वह उसी का हिस्सा लगने लगे, जबकि साथी का काम अपने सहयोगी की हर कमी को पूरा कर उसके जीवन को अधिक पूर्ण बनाना है।
आधुनिक समाज के लिए भी महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएं एक विशेष महत्व रखती है। महादेवी वर्मा का नारी चिंतन समाज केन्द्रित है। वे नारी जीवन की समस्याओं के लिए केवल पुरुषों को ही दोष नहीं देती बल्कि महिलाओं को भी समान रूप से उत्तरदायी ठहराती है।

‘अपनी बात’ में महदेवी वर्मा कहती है, समस्या का समाधान समस्या के ज्ञान पर निर्भर करता है और यह ज्ञान ज्ञाता की अपेक्षा रखता है। अतः अधिकार के इच्छुक व्यक्ति को अधिकारी भी होना चाहिए । सामान्यतः भारतीय नारी में इसी विशेषता का अभाव मिलेगा।

| वर्ष | पुरस्कार/सम्मान | प्रदान करने वाली संस्था/विवरण |
|---|---|---|
| 1934 | “नीरजा” के लिए सक्सेरिया पुरस्कार | — |
| 1942 | “स्मृति की रेखाएँ” के लिए द्विवेदी पदक | — |
| 1943 | मंगलाप्रसाद पारितोषिक, भारत भारती पुरस्कार | — |
| 1943 | “यामा” के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार | — |
| 1952 | उत्तर प्रदेश विधान परिषद् सदस्य | उत्तर प्रदेश सरकार |
| 1956 | पद्म भूषण | भारत सरकार |
| 1956 | पॅड्म भूषण | भारत सरकार (दोहराव) |
| 1969 | डी.लिट | विक्रम विश्वविद्यालय |
| 1971 | साहित्य अकादमी सदस्यता | साहित्य अकादमी |
| 1977 | डी.लिट | कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल |
| 1979 | साहित्य अकादमी फेलोशिप (Sahitya Akademi Fellowship) | साहित्य अकादमी |
| 1980 | डी.लिट | दिल्ली विश्वविद्यालय |
| 1982 | ज्ञानपीठ पुरस्कार | ज्ञानपीठ |
| 1984 | डी.लिट | बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी |
| 1988 | पद्म विभूषण (मरणोपरांत) | भारत सरकार |
| 1991 | 2 रुपये का एक युगल डाक टिकट जारी किया गया | भारत सरकार (डाक विभाग) |
महादेवी वर्मा का छायावादी काव्य की समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जहाँ निराला ने उसमें मुक्त छंद का परिचय कराया और उसे सुकोमल कला प्रदान की। वहीं छायावाद के स्वरूप में प्राण-प्रतिष्ठा करने का गौरव महादेवी वर्मा जी को ही प्राप्त है।
महादेवी वर्मा दिल्ली में 1983 में आयोजित तीसरे विश्व हिन्दी सम्मेलन के समापन समारोह की मुख्य अतिथि थीं।
उनकी कविताओं में वेदना, संवेदना और प्रकृति के प्रति प्रेम की गहरी अभिव्यक्ति मिलती है। यहाँ महादेवी वर्मा की छोटी कविताएं प्रस्तुत है:
तुम मेरे पास नहीं हो,
पर तुम्हारी स्मृति मेरे संग है।
जैसे चाँदनी का उजाला,
चाँद के बिना भी हर जगह होता है।
सुनहरी किरने आई,
नभ में फैली लालिमा।
जाग उठे सपने मेरे,
हो गई नई सृष्टि की रचना।
इस भीड़ में भी,
कितना अकेला हूँ।
हर चेहरा अनजाना,
हर दिल बेगाना।
तुम्हारी आँखों में मैंने,
अनंत प्रेम का सागर देखा।
उस सागर की गहराई में,
मैंने अपने अस्तित्व को खो दिया।
रात के अंधकार में,
तारे मुस्कराते हैं।
मेरे मन के आकाश में,
तुम्हारी यादें चमकती हैं।
महादेवी जी का जीवन परिचय हिंदी में पढ़कर हमें यह पता चलता है, कि महादेवी वर्मा की छोटी कविताएं सरलता और गहराई से भरी होती हैं, जो पाठक के हृदय को छू जाती हैं। उनकी रचनाओं में भावनाओं की प्रगाढ़ता और प्रकृति के चित्रण की अनूठी शैली मिलती है। महादेवी वर्मा का जीवन परिचय: उत्कृष्टता की दिशा में आगे की प्रेरणा
आधुनिक और सबसे सशक्त कवयित्रियों में शामिल होने के कारण और वैवाहिक जीवन से विरक्ति के कारण इन्हें एक दूसरे नाम से भी जाना जाता है – आधुनिक मीरा। इस लेख में महादेवी वर्मा का जीवन परिचय के माध्यम से उनकी एक संपूर्ण और संवेदनशील जीवन की झलक प्रदान की है, जो इस महान कवयित्री के साहित्यिक और सामाजिक योगदान परिचय मिलता है।
महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य की ‘छायावाद’ युग की प्रमुख कवयित्री थीं। उनकी कविताएँ संवेदना, करुणा, आत्मा की व्यथा, प्रेम और प्रकृति की कोमलता से भरपूर हैं। नीचे उनकी कुछ प्रसिद्ध कविताएँ दी गई हैं
नींद में सपनें किसे न आते?
पर कभी-कभी ये सच बन जाते।
कोई सपनों में आ जाता,
जीवन में भी छा जाता।
कभी दर्द बन जाता सपना,
कभी मधुर गीत बन गाता सपना।
जब तुम आओगे वापिस,
देखोगे मैं न रहूँगी।
केवल मेरे गीत रहेंगे,
जो गूँजेंगे इन दीवारों में।
मृदुल मुस्कान तुम्हारी प्रिये,
फूलों से भी अधिक कोमल।
उसमें छिपा है मधुर अनुराग,
जीवन का सच्चा संब
पथ के साथी! तुम भी थक जाओगे,
कभी राह में खो जाओगे।
पर मेरी स्मृतियाँ रहेंगी साथ,
जैसे छाया दिनभर चलती है।
विपथगा जीवन यात्रा में,
मैं अकेली चलती आई।
मुझे न मिला कोई भी साजन,
साथ न कोई छाया पाई।
महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य की प्रसिद्ध कवयित्री, लेखिका और समाजसेविका थीं। उनका जन्म 26 मार्च 1907 को फ़र्रुख़ाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। उनके पिता का नाम गोविंद प्रसाद वर्मा और माता का नाम हेमरानी देवी था।
महादेवी जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में और उच्च शिक्षा प्रयाग महिला विद्यापीठ, इलाहाबाद से प्राप्त की। बाद में वे वहीं की प्रधानाचार्या और फिर कुलाधिपति बनीं।
वे हिंदी साहित्य के छायावाद युग की चार प्रमुख कवियों में से एक थीं जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और महादेवी वर्मा। उनकी कविताओं में प्रेम, करुणा, विरह और प्रकृति की सुंदर झलक मिलती है।
उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं नीर भरी दुख की बदली, दीपशिखा, सांध्यगीत और यामा। उन्हें पद्मभूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
महादेवी जी का निधन 11 सितंबर 1987 को इलाहाबाद में हुआ। उन्हें उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए “आधुनिक मीरा” कहा जाता है।
महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य की महान कवयित्री, लेखिका, संपादिका और समाजसेविका थीं। उनका जन्म 26 मार्च 1907 को फ़र्रुख़ाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। उनके पिता का नाम गोविंद प्रसाद वर्मा और माता का नाम हेमरानी देवी था। बचपन से ही उनमें लेखन, चित्रकला और संवेदना की गहरी प्रवृत्ति थी। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में और उच्च शिक्षा प्रयाग महिला विद्यापीठ, इलाहाबाद से प्राप्त की। बाद में वे वहीं की प्रधानाचार्या और फिर कुलाधिपति बनीं।
महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य के छायावाद युग की प्रमुख कवयित्री थीं। जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के साथ उन्हें इस युग का चौथा स्तंभ माना जाता है। उनकी कविताओं में प्रेम, करुणा, विरह, प्रकृति और आध्यात्मिकता की गहरी अभिव्यक्ति मिलती है। उनकी भाषा कोमल, संगीतात्मक और भावनाओं से ओतप्रोत है। उन्होंने हिंदी कविता को नई संवेदना और स्त्री चेतना प्रदान की।
उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं – नीर भरी दुख की बदली, दीपशिखा, सांध्यगीत, यामा, श्रृंखला की कड़ियाँ, अतीत के चलचित्र और स्मृति की रेखाएँ। साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्मभूषण (1956), ज्ञानपीठ पुरस्कार (1982) और पद्मविभूषण (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया।
महादेवी वर्मा का निधन 11 सितंबर 1987 को इलाहाबाद में हुआ। उन्हें “आधुनिक मीरा” कहा जाता है क्योंकि उन्होंने प्रेम और पीड़ा को आध्यात्मिक रूप में व्यक्त किया। उनकी रचनाएँ आज भी पाठकों के हृदय को गहराई से छूती हैं और उन्हें हिंदी साहित्य की अमर कवयित्री के रूप में स्थापित करती हैं।
महादेवी वर्मा का जीवन परिचय (Mahadevi verma ka jivan parichay) पढकर हम हिंदी साहित्य में उनके विशेष योगदान को समझ सकते हैं। उनकी कविताएँ और गद्य रचनाएं ना केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज में नारी सशक्तिकरण को बढ़ावा देकर एक अच्छे भविष्य की ओर अग्रसर होने के लिए महत्वपूर्ण साबित होती है।
महादेवी जी का जीवन सादगी, सन्यास और सामाजिक सेवा का प्रतीक था। उन्होंने अपनी लेखनी से समाज की समस्याओं को उजागर किया और नारीवादी विचारों को मजबूती से प्रस्तुत किया। उनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक रूप से नयी पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई है।
महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 को फ़र्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके परिवार में सात पीढ़ियों बाद पहली बेटी के जन्म पर उन्हें महादेवी नाम दिया गया। उन्होंने स्वतंत्रता से पहले और बाद का भारत देखा और अपनी कविताओं में समाज के दर्द और अंधकार को दूर करने का प्रयास किया।
महादेवी वर्मा की लेखन विधा मुख्य रूप से कविताएं हैं। उनके आठ प्रमुख कविता संग्रह हैं: नीहार (1930), रश्मि (1932), नीरजा (1934), सांध्यगीत (1936), दीपशिखा (1942), सप्तपर्णा (अनूदित 1959), प्रथम आयाम (1974), और अग्निरेखा (1990)।
महादेवी वर्मा का बचपन का नाम “महादेवी” ही था। उनके दादा बाबू बाँके विहारी जी ने उन्हें घर की देवी मानते हुए यह नाम दिया था।
महादेवी जी संस्कृत भाषा में परास्नातक थीं और छायावाद की प्रमुख कवयित्री मानी जाती हैं। उनकी भाषा में प्रायः तत्सम् शब्दावली का प्रयोग होता है, जो शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है। उनकी भाषा में व्याकरणिक शुद्धता, सरलता, सरसता और धारा-प्रवाह का गुण सर्वत्र विद्यमान है।
महादेवी वर्मा की पहली प्रकाशित काव्य कृति “नीहार” थी, जो 1930 में प्रकाशित हुई। उन्होंने सर्वप्रथम कविता सात वर्ष की उम्र में लिखी थी।
महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाओं में “यामा” (काव्य-संग्रह) और “अतीत के चलचित्र” (गद्य-संग्रह) शामिल हैं। “यामा” के लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
उन्हें ‘आधुनिक मीरा’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनकी कविताओं में भक्ति, प्रेम और आत्मिक वेदना का वही भाव मिलता है जो मीरा की रचनाओं में झलकता है। उनके शब्दों में करुणा और आध्यात्मिक प्रेम का गहरा भाव देखा जा सकता है।
Authored by, Aakriti Jain
Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.
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