भारत की सबसे ऊंची चोटी

भारत की सबसे ऊंची चोटी कोन-सी है | कंचनजंगा की पूर्ण जानकारी

Published on July 17, 2025
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भारत की सबसे ऊंची चोटी

Quick Summary

  • कंचनजंगा भारत की सबसे ऊंची चोटी है, जिसकी ऊंचाई 8,586 मीटर (28,169 फीट) है।
  • यह चोटी सिक्किम और नेपाल की सीमा पर स्थित है।
  • कंचनजंगा का अर्थ है “पाँच खजाने वाला पर्वत”।
  • यह चोटी पहली बार 1955 में चढ़ी गई थी।
  • कंचनजंगा हिमालय की तीसरी सबसे ऊंची चोटी भी है।

Table of Contents

भारत की सबसे ऊंची चोटी कौन सी है? यह जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत में कुल 51 चोटियां है, सभी चोटियों की अपनी खुद की विशेषताएं हैं। कंचनजंगा, भारत की सबसे ऊंची चोटी, हिमालय की गोद में स्थित एक अद्वितीय पर्वत है। इसकी ऊंचाई 8,586 मीटर है, जो इसे विश्व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी बनाती है। सिक्किम और नेपाल की सीमा पर स्थित यह पर्वत अपनी प्राकृतिक सुंदरता और चुनौतीपूर्ण चढ़ाई के लिए प्रसिद्ध है।

कंचनजंगा का अर्थ है “पांच खजानों का स्वामी”, जो सोना, चांदी, रत्न, अनाज और पवित्र किताबों का प्रतीक है। यह पर्वत न केवल पर्वतारोहियों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। कंचनजंगा की भव्यता और इसके चारों ओर की अद्वितीय जैव विविधता इसे एक अनमोल धरोहर बनाती है।

इस ब्लॉग में आप भारत की सबसे ऊंची चोटी कौन सी है, भारत की सबसे ऊंची चोटी कहां है, इसकी ऊंचाई और भारत की सबसे ऊंची चोटी से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में विस्तार से जानेंगे।

भारत की सबसे ऊंची चोटी कौन सी है? | Himalaya ki Sabse Unchi Choti

भारत की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा है, कंचनजंगा की ऊंचाई 8,586 मीटर (28,169 फिट) है। यह हिमालय पर्वत श्रृंखला में स्थित है और भारत और नेपाल की सीमा पर फैली हुई है। कंचनजंगा अपनी अद्वितीय प्राकृतिक सुंदरता और चुनौतीपूर्ण चढ़ाई के लिए प्रसिद्ध है। यह चढ़ाई करने वालों और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक आकर्षक गंतव्य है।

कंचनजंगा का महत्व

  • धार्मिक महत्व: कंचनजंगा पर्वत को हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और सिक्किम के बोन धर्म में पवित्र माना जाता है। इसे “पांच चोटियों का खजाना” माना जाता है, जो शिव, बुद्ध, चनरे ज़िग, वज्रपाणि और स्कंद के निवास स्थान हैं।
  • पर्यटन स्थल: कंचनजंगा पर्वत, चढ़ाई करने वालों और ट्रेकर्स के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य है। यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता, लुभावने दृश्यों और चुनौतीपूर्ण चढ़ाई के लिए जाना जाता है।
  • सांस्कृतिक महत्व: कंचनजंगा पर्वत सिक्किम और नेपाल के लोगों की संस्कृति और विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह कई त्योहारों और अनुष्ठानों का केंद्र है, जो पर्वत के प्रति उनकी श्रद्धा को दर्शाते हैं।
  • विश्व की तीसरी सबसे ऊँची चोटी: कंचनजंगा पर्वत, 8,586 मीटर (28,169 फिट) की ऊंचाई के साथ, हिमालय और दुनिया की तीसरी सबसे ऊँची चोटी है। यह सिक्किम और नेपाल की सीमा पर स्थित है।

भारत की 10 सबसे ऊंची चोटियों की सूची

#उच्चतम शिखर का नाम (घटते क्रम में)ऊंचाई (मीटर)
1कंचनजंगा चोटी8586 मीटर
2नंदा देवी शिखर7816 मीटर
3कामेट चोटी7756 मीटर
4साल्टोरो कांगड़ी चोटी7742 मीटर
5सासेर कांगड़ी चोटी7,672 मीटर
6मामोस्तोंग कांगड़ी चोटी7516 मीटर
7रिमो पीक7385 मीटर
8हार्डोल पीक7151 मीटर
9चौकम्बा चोटी7138 मीटर
10त्रिशूल शिखर7120 मीटर
bharat ki sabse unchi choti kaun si hai |

भारत की सबसे ऊंची चोटी कहां है?

चोटी का भूगोल और स्थिति

कंचनजंगा चोटी, हिमालय पर्वत श्रृंखला की तीसरी सबसे ऊँची चोटी है, जो भारत और नेपाल की सीमा पर स्थित है। इकंचनजंगा की ऊंचाई 8,586 मीटर है। यह पर्वत सिक्किम में स्थित है और इसकी भौगोलिक विशेषताओं में गहरी घाटियाँ, बर्फ से ढके शिखर, और विविध जैव विविधता शामिल हैं। कंचनजंगा का क्षेत्र पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, जहाँ दुर्लभ वनस्पतियाँ और जीव-जंतु पाए जाते हैं। यह क्षेत्र धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जाता है।

आस-पास के क्षेत्र और स्थल


शिखर का नाम
ऊंचाई
मीटरफिट
कंचनजंगा मुख्य8,58628,169
कंचनजंगा पश्चिम (यालुंग कांग)8,50527,904
कंचनजंगा दक्षिण8,49427,867
कंचनजंगा सेंट्रल8,48227,828
कंगबाचेन7,90325,928

K2 को भारत की सबसे ऊँची पर्वत चोटी क्यों नहीं माना जाता?

सर्वे ऑफ़ इंडिया के अनुसार, जम्मू और कश्मीर का पूरा राज्य भारत गणराज्य की सीमाओं के भीतर आता है, इससे गिलगित-बाल्टिस्तान और काराकोरम रेंज भारतीय क्षेत्र बन जाते हैं और इस क्षेत्र में स्थित K2 पर्वत भारत की सबसे ऊँची चोटी हो सकती थी।

लेकिन, आज की स्थिति में, LAC भारत, पाकिस्तान और चीन के बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत सीमा है। हालाँकि भारत इस दावे पर विवाद करता है, लेकिन K2 पाकिस्तान के अंतर्गत आता है, क्योंकि LAC को सीमा माना जाता है।

इसलिए कंचनजंगा शिखर (इसका एक किनारा) अब भारत की सबसे ऊँची पर्वत चोटी है।

भारत की सबसे ऊंची चोटी | कंचनजंगा का परिचय

कंचनजंगा कहां है?

भारत की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा हिमालय पर्वत श्रृंखला में स्थित है। यह दार्जिलिंग से 74 कि.मी. उत्तर -पश्चिमोत्तर में, भारत और नेपाल की सीमा पर गंगोत्री और यालुंग ग्लेशियरों के बीच स्थित है। कंचनजंगा कहां है, यह जानने के लिए आपको सिक्किम राज्य की ओर देखना होगा, जहाँ यह अद्भुत पर्वत स्थित है। सिक्किम के उत्तर-पश्चिमी भाग में कंचनजंघा का भौगोलिक स्थान बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह क्षेत्र धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। कंचनजंगा कहां है, इस सवाल का जवाब देते हुए, यह जानना दिलचस्प है कि इस पर्वत की ऊँचाई 8,586 मीटर है और यह दुनिया भर के चढ़ाई करने वालों के लिए एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र है।

कंचनजंगा का इतिहास और महत्व

कंचनजंगा कहां है | Kanchanjangha kaha hai

कंचनजंगा चोटी का इतिहास और महत्व समृद्ध है। यह चोटी प्राचीन काल से ही स्थानीय समुदायों के लिए पूजनीय रही है। सिक्किम और नेपाल के लोगों के लिए यह एक पवित्र स्थान है, और इसे पर्वत देवता के रूप में पूजा जाता है। कंचनजंगा का नाम तिब्बती भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है “पाँच खजाने की बर्फ”। यह पर्वत धार्मिक, सांस्कृतिक, और पारिस्थितिकी की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

20वीं शताब्दी की शुरुआत में यूरोपीय चढ़ाई करने वालों ने इसके शिखर तक पहुँचने का प्रयास किया, लेकिन 25 मई 1955 को जोए ब्राउन और जॉर्ज बैंड द्वारा पहली सफल चढ़ाई की गई। इस ऐतिहासिक चढ़ाई के बाद से कंचनजंगा पर्वतारोहियों के बीच एक चुनौतीपूर्ण गंतव्य के रूप में जाना जाता है। हालांकि, भारत की सबसे ऊंची चोटी को अब भी “अनकबडेन” (अर्थात, “न छूने योग्य”) माना जाता है, क्योंकि स्थानीय मान्यता के अनुसार इसे छूना अपशकुन माना जाता है।

आज, कंचनजंगा न केवल चढ़ाई करने वालों के लिए एक चुनौतीपूर्ण गंतव्य है, बल्कि यह अद्वितीय जैव विविधता और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए भी प्रसिद्ध है। इसका संरक्षण महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह क्षेत्र कई दुर्लभ वनस्पतियों और जीवों का आवास है, जैसे कि “कंचनजंगा पर्वतीय भालू”, “ब्लू शीप”, और “स्नो लेपर्ड”। इस पर्वत के आसपास का इलाका पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील है और इसे संरक्षित करने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं।

कंचनजंगा का सांस्कृतिक और पारिस्थितिकीय महत्व इसे एक विश्व धरोहर स्थल की ओर भी मार्गदर्शन करता है, और इसके आसपास के क्षेत्रों में पर्यटन और संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिशें जारी हैं।

कंचनजंगा की ऊंचाई

कंचनजंगा की कुल ऊंचाई 8,586 मीटर (28,169 फिट) है।

  1. समुद्र तल से ऊंचाई: कंचनजंगा समुद्र तल से 8,586 मीटर ऊपर स्थित है।
  2. अन्य पहाड़ों की तुलना में: कंचनजंगा दुनिया की तीसरी सबसे ऊँची पर्वत चोटी है। ये केवल दो अन्य पहाड़, माउंट एवरेस्ट और K2, कंचनजंगा से ऊँचे हैं।
  3. मानवीय पैमाने पर: 8,586 मीटर की ऊंचाई को समझना मुश्किल हो सकता है। यदि आप कल्पना कर सकते हैं कि आपने एफिल टॉवर (324 मीटर) को 26 बार एक के ऊपर एक रखा है, तो भी आप कंचनजंगा की ऊंचाई तक नहीं पहुंच पाएंगे।

अन्य प्रमुख चोटियों के साथ तुलना

भारतीय श्रेणीभारतीय चोटियों के नामवैश्विक श्रेणीऊंचाई (मी)ऊंचाई (फिट)श्रृंखलाराज्य
1कंचनजंघा38,58628,169हिमालयसिक्किम
2नन्दा देवी237,81625,643गढ़वालउत्तराखंड
3कामेट297,75625,446
4साल्तोरो कांगरी कांगरी/ K10317,74225,400साल्तोरो काराकोरमजम्मू और कश्मीर
5ससेर कांगरी/ K22357,67225,171ससेर काराकोरम
6ममोस्तोंग कांगरी/ K35487,51624,659रिमो काराकोरम
7ससेर कांगरी II E497,51324,649ससेर काराकोरम
8ससेर कांगरी III517,49524,590
9तेरम कांगरी I567,46224,482साल्तोरो काराकोरम
10जोंगसोंग शिखर577,46224,482कंचनजंघा हिमालयसिक्किम
कंचनजंगा की ऊंचाई

कंचनजंगा का दूसरा नाम

कंचनजंगा के अन्य नाम और उनकी उत्पत्ति

भारत की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा को विभिन्न नामों से जाना जाता है, जिनमें “कंचनजंघा” और “ऊंचे हिम के पांच खजाने” कंचनजंगा का दूसरा नाम है। इन नामों की उत्पत्ति स्थानीय मान्यताओं और दिव्य चरित्रों से हुई है। कंचनजंगा का अर्थ है “पांच खजाने की बर्फ”, जो इसके पाँच शिखरों को दर्शाता है। यह पर्वत सिक्किम और नेपाल की सीमा पर स्थित है और 8,586 मीटर (28,169 फीट) की ऊंचाई पर है। कंचनजंगा को हिंदू और बौद्ध धर्म में एक पवित्र स्थान माना जाता है, और इसे “धरती के देवता” के रूप में पूजा जाता है। यह पर्वत शिखर अपने शिखरों और बर्फीले दृश्यों के कारण पर्वतारोहियों के लिए एक आकर्षण केंद्र है।

नामों का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

भारत की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा का दूसरा नाम इस पर्वत की भव्यता और धार्मिक महत्व को व्यक्त करता है, जिसे स्थानीय लोग पवित्र मानते हैं। कंचनजंगा को स्थानीय भाषा में “पांच खजाने की बर्फ” भी कहा जाता है, जो इसके पांच शिखरों को दर्शाता है। इसे सिक्किम के लोग देवता के रूप में पूजते हैं और तिब्बत में इसे “कांगछेन जोंगा” कहा जाता है, जिसका मतलब है “पांच विशाल खजाने के घर”। इसके शिखर धार्मिक महत्व रखते हैं और इसे पवित्र माना जाता है, जहां चढ़ाई करने वालों से सम्मान और श्रद्धा की उम्मीद की जाती है।

भारत की सबसे ऊंची चोटी: कंचनजंगा की विशेषताएं

प्राकृतिक सौंदर्य और परिदृश्य

  • बर्फ से ढके पर्वत: कंचनजंगा और उसके आसपास के पर्वत, साल भर बर्फ से ढके रहते हैं।
  • ग्लेशियर: कई विशाल ग्लेशियर, पर्वतों से निकलते हुए, घाटियों में बहते हैं।
  • घने जंगल: कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान, घने जंगलों से भरा हुआ है, जहाँ विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे और जीव-जंतु पाए जाते हैं।
  • हरे-भरे घास के मैदान: पर्वतों की तलहटी में, हरे-भरे घास के मैदान फैले हुए हैं, जहाँ चरवाहे अपनी भेड़-बकरियों को चराते हैं।
  • बहते झरने: पहाड़ों से निकलते हुए, अनेक जलप्रपात, प्राकृतिक सौंदर्य में चार चांद लगाते हैं।

पर्वतारोहण और पर्यटन

कंचनजंगा न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह हिंदू और बौद्ध धर्म के लिए भी महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।

  • चुनौतीपूर्ण: कंचनजंगा दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची चोटी है और इसे चढ़ना बहुत मुश्किल है।
  • अनुभवी चढ़ाई करने वालों के लिए: यह केवल अनुभवी और स्किल्ड चढ़ाई करने वालों के लिए ही उपयुक्त है।
  • अनेक मार्ग: कई मार्ग उपलब्ध हैं, जिनमें दक्षिण-पश्चिम कांघा सबसे लोकप्रिय है।
  • अनुमति: चढ़ाई के लिए अनुमति आवश्यक है, जिसे भारत या नेपाल से प्राप्त किया जा सकता है।
  • जोखिम: ऊंचाई, खराब मौसम और पहाड़ से गिरता हुआ बर्फ का ढेर जैसे कई जोखिम हैं।

पर्यटन:

  • अद्भुत दृश्य: कंचनजंगा और आसपास के हिमालय के शानदार दृश्य देखने को मिलते हैं।
  • ट्रेकिंग: कई ट्रेकिंग मार्ग हैं, जो आसान से लेकर कठिन तक हैं।
  • विविधता: विभिन्न प्रकार के पौधे, जानवर और पक्षी देखने को मिलते हैं।
  • सांस्कृतिक अनुभव: स्थानीय संस्कृति और जीवनशैली का अनुभव कर सकते हैं।
  • अवधि: पर्यटन यात्राएं कुछ दिनों से लेकर कई हफ्तों तक हो सकती हैं।

भारत की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा का पारिस्थितिक महत्व

वनस्पति और जीव-जंतु

  • अनेक प्रजातियां: यहां विभिन्न प्रकार के जीवों का निवास स्थान है, जिनमें दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियां भी शामिल हैं।
  • वनस्पतियां: घने जंगलों, अल्पाइन घास के मैदानों और बर्फ से ढके पहाड़ों में विविध प्रकार के पेड़-पौधे पाए जाते हैं।
  • जीव: हिम तेंदुआ, लाल पांडा, मस्क डियर, और कई पक्षी प्रजातियां यहाँ पाई जाती हैं।
  • नदियों की उत्पत्ति: कंचनजंगा कई नदियों का उद्गम स्थल है, जो सिंचाई, जल विद्युत उत्पादन और घरेलू उपयोग के लिए महत्वपूर्ण जल स्रोत प्रदान करते हैं।

पारिस्थितिक संतुलन में भूमिका

  • वर्षा: कंचनजंगा मानसून वर्षा को रोकता है, जो भारत और नेपाल के लिए महत्वपूर्ण है।
  • तापमान: यह तापमान को नियंत्रित करने और जलवायु को स्थिर रखने में मदद करता है।
  • मिट्टी का कटाव: पहाड़ों के वनस्पति कवर मिट्टी के कटाव को रोकते हैं और बाढ़ को कम करते हैं।
  • भूजल: पहाड़ों से स्राव वाला पानी भूजल को भी बहुत मूल्यवान बनाता है, जो पीने और कृषि के लिए आवश्यक है।
  • भूस्खलन: पेड़-पौधे भूस्खलन को रोकने में मदद करते हैं।

कंचनजंगा के बारे में रोचक तथ्य

ऐतिहासिक और आधुनिक दृष्टिकोण

भारत की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंघा का ऐतिहासिक महत्व प्राचीन धार्मिक ग्रंथों और स्थानीय मान्यताओं में है, जहाँ इसे पवित्र पर्वत माना जाता है। आधुनिक दृष्टिकोण से, यह पर्वत चढ़ाई करने वालों के लिए आकर्षण का केंद्र है और पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसे 1955 में पहली बार जोए ब्राउन और जॉर्ज बैंड ने सफलतापूर्वक चढ़ा था। आज, यह पर्यटन और वैज्ञानिक अनुसंधान का प्रमुख स्थल है, जहाँ कई लोग इसकी प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता को देखने आते हैं।

प्रसिद्ध पर्वतारोहण अभियान और उपलब्धियां

भारत की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंघा की पहली सफल पर्वतारोहण 25 मई 1955 को जो ब्राउन और जॉर्ज बैंड द्वारा की गई थी। यह अभियान ब्रिटिश टीम द्वारा आयोजित किया गया था। इस चोटी पर चढ़ाई करना बेहद चुनौतीपूर्ण माना जाता है, लेकिन कई चढ़ाई करने वालों ने इसे सफलतापूर्वक पूरा किया है। जिसमें सर्दी के मौसम में पहली चढ़ाई 11 जनवरी 1986 को जेरज़ी कुकुज़्का और क्रिज़्सटॉफ़ विएलिकी भी सामिल हैं। कंचनजंघा की चढ़ाई में प्राकृतिक कठिनाइयों के साथ-साथ मौसम की अत्यधिक विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, जिससे यह एक प्रतिष्ठित उपलब्धि बनती है।

भारत की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा के संरक्षण के प्रयास

कंचनजंगा को बचाने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं, जिनमें शामिल हैं:

  1. कंचनजंगा संरक्षण क्षेत्र: यह 2035 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र 1985 में स्थापित किया गया था।
  2. वन्यजीव संरक्षण: लुप्तप्राय प्रजातियों जैसे कि लाल पांडा और हिम तेंदुए की रक्षा के लिए कार्यक्रम।
  3. पर्यटन प्रबंधन: पर्यटन के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए नियम और विनियम।
  4. स्थानीय समुदायों का सहयोग: संरक्षण गतिविधियों में स्थानीय लोगों को शामिल करना।
  5. अनुसंधान और शिक्षा: पर्यावरण और वन्य जीवों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए कार्यक्रम।

पर्यटन और पर्वतारोहण में सुधार के प्रस्ताव

पर्यटन:

  1. सुविधाओं का विकास: आवास, परिवहन, और भोजन जैसी सुविधाओं में सुधार।
  2. प्रचार: कंचनजंगा को एक पर्यटन स्थल के रूप में अधिक प्रचारित करना।
  3. स्थानीय समुदायों को शामिल करना: स्थानीय लोगों को पर्यटन उद्योग में शामिल करके उन्हें आर्थिक लाभ प्रदान करना।
  4. पर्यावरण संरक्षण: पर्यावरणीय क्षति को कम करने के लिए टिकाऊ पर्यटन प्रथाओं को बढ़ावा देना।

पर्वतारोहण:

  1. सुरक्षा: चढ़ाई करने वालों के लिए बेहतर सुरक्षा उपाय और बचाव सेवाएं प्रदान करना।
  2. मार्गदर्शन: अनुभवी चढ़ाई करने वालों और गाइडों की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
  3. पर्यावरण: पर्वतारोहण गतिविधियों से होने वाले पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए नियमों का पालन करना।
  4. अनुसंधान: कंचनजंगा क्षेत्र और पर्वतारोहण गतिविधियों पर अनुसंधान को बढ़ावा देना।

भौगोलिक महत्व और पर्वतीय अनुमति से जुड़ी बातें

भारत की पर्वत चोटियाँ न केवल ऊँचाई में अद्वितीय हैं, बल्कि उनके पीछे गहरा भौगोलिक, पारिस्थितिक और सांस्कृतिक महत्व भी छिपा है:

1. प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यटन

  • कंचनजंगा, नंदा देवी, और अनामुडी जैसी चोटियाँ अपने चारों ओर आश्चर्यजनक प्राकृतिक सौंदर्य समेटे हैं।
  • ट्रैकिंग, पर्वतारोहण और वाइल्डलाइफ़ फ़ोटोग्राफी के लिए दुनिया भर से पर्यटक यहाँ आते हैं।

2. वन्यजीव और जैव विविधता

  • नंदा देवी बायोस्फियर रिज़र्व और कंचनजंगा नेशनल पार्क को UNESCO विश्व धरोहर घोषित किया गया है।
  • यहाँ हिम तेंदुआ, लाल पांडा, ब्लू शीप जैसे दुर्लभ प्राणी पाए जाते हैं।

3. पर्यावरणीय संरक्षण और सीमित अनुमति

  • कुछ ऊँची चोटियों तक आम नागरिकों की पहुँच सीमित है:
    • कंचनजंगा बेस कैंप ट्रेक सीमित परमिट के साथ होता है।
    • नंदा देवी इनर सैंक्चुअरी कई वर्षों से प्रतिबंधित है (पर्यावरणीय कारणों से)।

4. ट्रैकिंग ट्रेल्स और पर्वतारोहण के लिए आकर्षण

  • कामेट और सासेर कांगरी में अनुभवी पर्वतारोहियों के लिए ट्रेकिंग ऑप्शन हैं।
  • मुल्लायनगिरी (कर्नाटक) और डोड्डाबेट्टा (तमिलनाडु) जैसी छोटी चोटियाँ भी पर्यटकों में लोकप्रिय हैं।

निष्कर्ष

कंचनजंगा, भारत की सबसे ऊंची चोटी, न केवल अपनी ऊंचाई और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इसकी अद्वितीय जैव विविधता और चुनौतीपूर्ण चढ़ाई इसे पर्वतारोहियों और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक आकर्षण का केंद्र बनाती है। कंचनजंगा की भव्यता और इसके चारों ओर की अनमोल धरोहर इसे एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण पर्वत बनाती है।

इन पर्वतों की महानता सिर्फ उनकी ऊँचाई में नहीं, बल्कि उनकी अद्वितीयता और सुंदरता में भी है। इन्हें देखने से हमें प्रकृति की अद्भुत शक्ति और हमारे देश की प्राकृतिक विविधता का अहसास होता है।

इस ब्लॉग के माध्यम से आपने भारत की सबसे ऊंची चोटी कौन सी है, भारत की सबसे ऊंची चोटी कहां है, भारत की सबसे ऊंची चोटी की ऊंचाई, इसका महत्व, इसकी विशेषताएं के बारे में विस्तार से जाना।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

कंचनजंगा पर्वत श्रृंखला कितने शिखरों से मिलकर बनी है?

कंचनजंगा पर्वत श्रृंखला पांच प्रमुख शिखरों से मिलकर बनी है, जिनमें कंचनजंगा मुख्य, कंचनजंगा वेस्ट, कंचनजंगा सेंट्रल, कंचनजंगा साउथ और कांगबाचेन शामिल हैं।

कंचनजंगा पर्वत का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व क्या है?

कंचनजंगा पर्वत को स्थानीय लिंबू और लेप्चा समुदायों द्वारा पवित्र माना जाता है। वे इसे अपनी देवी कंचनजंगा का निवास मानते हैं और पर्वतारोहियों से उम्मीद की जाती है कि वे अंतिम शिखर से कुछ दूरी पर रुक जाएं ताकि पर्वत का पवित्रता बनी रहे।

कंचनजंगा चोटी पर मृत्यु दर क्या है?

कंचनजंगा चोटी पर आरोहण के दौरान मृत्यु दर लगभग 20% है, जो इसे सबसे खतरनाक आठ हज़ारी चोटियों में से एक बनाता है। यहां की कठिनाइयां, ऊँचाई संबंधी बीमारियाँ, और अप्रत्याशित मौसम की स्थिति इसे अत्यधिक चुनौतीपूर्ण बनाते हैं।

कंचनजंगा चोटी का “शेल्टन कोल” क्या है?

शेल्टन कोल कंचनजंगा पर्वत की दो मुख्य चोटियों के बीच स्थित एक उच्च पर्वतीय दर्रा है। यह पर्वतारोहियों के लिए एक महत्वपूर्ण बिंदु है, जहां वे आखिरी कैंप बनाते हैं और अंतिम चढ़ाई की तैयारी करते हैं।

क्या कंचनजंगा पर्वतारोहण के दौरान गाइड की आवश्यकता होती है?

हाँ, कंचनजंगा की चढ़ाई के दौरान गाइड का होना अत्यधिक महत्वपूर्ण है। अनुभवी गाइड स्थानीय भौगोलिक और पर्यावरणीय परिस्थितियों से अच्छी तरह वाकिफ होते हैं और वे पर्वतारोहियों को कठिन मार्गों पर सुरक्षित तरीके से ले जा सकते हैं।

कंचनजंगा पर चढ़ाई करने का सबसे उपयुक्त समय क्या है?

कंचनजंगा पर चढ़ाई का सबसे अच्छा समय अप्रैल से मई और सितंबर से अक्टूबर के बीच होता है। इन महीनों में मौसम अपेक्षाकृत स्थिर होता है और बर्फबारी कम होती है।

कंचनजंगा चढ़ाई के लिए परमिट लेना अनिवार्य है?

जी हाँ, कंचनजंगा क्षेत्र में ट्रेकिंग और पर्वतारोहण के लिए Sikkim Tourism Department से विशेष परमिट लेना आवश्यक होता है। इसके अलावा विदेशी नागरिकों को Inner Line Permit (ILP) की भी आवश्यकता होती है।

Authored by, Aakriti Jain
Content Curator

Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.

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