Quick Summary
यह लेख लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की प्रेरणादायक यात्रा को दर्शाता है—उनके बचपन, शिक्षा, स्वतंत्रता संग्राम में योगदान, प्रधानमंत्री पद तक का सफर, सादगीपूर्ण जीवन, नैतिक नेतृत्व, “जय जवान जय किसान” नारे की भावना, और रहस्यमयी मृत्यु तक। उनके सिद्धांत, नेतृत्व और विरासत आज भी राष्ट्र के लिए मार्गदर्शक हैं, जो सादगी, सेवा और ईमानदारी का प्रतीक बन चुके हैं।
Lal bahadur shastri ka jivan parichay भारत के उन महान नेताओं में से एक की कहानी है, जिन्होंने अपने विनम्र स्वभाव, सादगी और दृढ़ नेतृत्व से देश के राजनीतिक, सामाजिक और नैतिक मानकों को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया। यह लेख शास्त्री जी के प्रारंभिक जीवन से लेकर उनके प्रधानमंत्री बनने, स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका, व्यक्तिगत जीवन, मूल्यों और सिद्धांतों से लेकर उनकी रहस्यमयी मृत्यु और अमर विरासत तक की एक संपूर्ण झलक प्रदान करता है।
Lal Bahadur Shastri ka Jivan Parichay भारत के उन महान नेताओं में से एक का परिचय है, जिनकी सादगी, ईमानदारी और दृढ़ निष्ठा ने उन्हें जनप्रिय नेता बनाया।
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय (अब पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर) में एक साधारण कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता शारदा प्रसाद एक शिक्षक थे और माता रामदुलारी देवी धार्मिक एवं संस्कारी महिला थीं। शास्त्री जी का बचपन अत्यंत संघर्षपूर्ण रहा, लेकिन उन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी शिक्षा प्राप्त की और आगे चलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और राजनीति में एक ईमानदार, सादगीप्रिय और दृढ़ नेता के रूप में प्रतिष्ठा पाई।
लाल बहादुर शास्त्री का जीवन भारतीय इतिहास का एक ऐसा अध्याय है जो सादगी, दृढ़ निश्चय और नैतिक मूल्यों से भरा हुआ है। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय कस्बे में हुआ था, जो न केवल एक सामान्य तिथि है, बल्कि संयोगवश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का भी जन्मदिवस है। इस तारीख ने जैसे उनके जीवन में नेतृत्व और सत्य के मार्ग पर चलने की नींव पहले से ही तय कर दी थी।
पारिवारिक पृष्ठभूमि और प्रारंभिक जीवन
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म एक अत्यंत साधारण, किंतु संस्कारयुक्त परिवार में हुआ था।
• पिता श्री शारदा प्रसाद श्रीवास्तव एक स्कूल शिक्षक थे, जो अपनी ईमानदारी, परिश्रमशीलता और नैतिक सिद्धांतों के लिए जाने जाते थे। उन्होंने अपने बच्चों को शिक्षा का महत्व समझाया और सदैव उन्हें उच्च आदर्शों की ओर प्रेरित किया।
• माता श्रीमती रामदुलारी देवी धार्मिक प्रवृत्ति की, शांत और अनुशासित स्वभाव की महिला थीं। शास्त्री जी के जीवन में संयम, सहनशीलता और नैतिक दृढ़ता के जो गुण परिलक्षित होते हैं, उनकी नींव उनकी माता की सुसंस्कृत परवरिश में निहित थी।
• पारिवारिक परिस्थितियाँ अत्यंत साधारण थीं। शास्त्री जी के बाल्यकाल में ही पिता का निधन हो गया, जिसके पश्चात उनका पालन-पोषण ननिहाल (मिर्ज़ापुर) में हुआ। इस कठिन समय में उन्होंने आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों का निडर होकर सामना किया।
इन प्रारंभिक संघर्षों ने ही उन्हें मानसिक रूप से दृढ़, आत्मनिर्भर और आत्मसम्मानी बनाया। बाल्यकाल से ही उन्होंने स्वावलंबन और परिश्रम को अपने जीवन के मूल मंत्र के रूप में अपनाया।
• शास्त्री जी की प्रारंभिक शिक्षा मिर्ज़ापुर में हुई, जहाँ सीमित संसाधनों और प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने अध्ययन में निरंतर रुचि बनाए रखी।
• तत्पश्चात वे काशी विद्यापीठ, वाराणसी गए, जहाँ से उन्होंने संस्कृत में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। यही वह संस्थान था जिसने उन्हें “शास्त्री” की उपाधि प्रदान की, जो आगे चलकर उनके नाम का अभिन्न अंग बन गई।
लाल बहादुर शास्त्री की बचपन की कहानी एक साधारण बालक के असाधारण संघर्षों की गाथा है। वे जब स्टेशन तक तैरकर स्कूल जाते थे या पैदल मीलों का सफर तय करते थे, तब उन्होंने यह साबित कर दिया कि कठिन परिस्थितियाँ यदि आत्मबल और इच्छा शक्ति के सामने खड़ी हों, तो उन्हें भी झुका दिया जा सकता है।
उनकी जीवनी न केवल एक राजनेता की है, बल्कि एक आदर्श नागरिक, एक संवेदनशील पुत्र, और एक सिद्धांतवादी व्यक्ति की भी है। स्वतंत्रता संग्राम में कूदने का उनका निर्णय बहुत कम उम्र में लिया गया था। यह दिखाता है कि उनमें राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना बचपन से ही थी।
• लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की घटनाएं, विशेष रूप से उनके प्रारंभिक संघर्ष, यह दिखाती हैं कि कैसे सीमित संसाधनों वाला एक व्यक्ति भी देश की सर्वोच्च कुर्सी तक पहुँच सकता है।
• उनकी बचपन की कहानी, युवाओं के लिए यह संदेश देती है कि आत्मबल, शिक्षा और सेवा भाव के साथ कोई भी बाधा पार की जा सकती है।
• वास्तव में, लाल बहादुर शास्त्री की जीवनी भारतीय राजनीति में नैतिकता और सादगी का आदर्श प्रस्तुत करती है।
Lal bahadur shastri ka jivan parichay केवल एक राजनेता की नहीं, बल्कि संघर्ष और आत्मनिर्भरता की प्रेरणादायक कहानी है। बचपन में पिता के निधन के बाद मिर्जापुर में उनका पालन-पोषण हुआ। गंगा नदी तैरकर स्कूल जाना, सादगी और आत्मसम्मान उनकी पहचान बने। काशी विद्यापीठ से शिक्षा लेकर “शास्त्री” उपाधि पाई। लाल बहादुर शास्त्री की जीवनी बताती है कि कठिनाइयाँ भी महानता का मार्ग नहीं रोक सकतीं।
भारत की आज़ादी के लिए लाखों स्वतंत्रता सेनानियों ने बलिदान दिया। लाल बहादुर शास्त्री भी उनमें से एक थे, जिन्होंने युवावस्था से ही राष्ट्र की सेवा को अपना धर्म बना लिया।
Lal Bahadur Shastri ka jivan parichay स्वतंत्रता संग्राम में उनके अद्भुत योगदान की कहानी है। 1921 में मात्र 17 वर्ष की उम्र में उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लेकर अपनी पढ़ाई छोड़ दी। देश के लिए उनका समर्पण इतना दृढ़ था कि वे कई बार जेल भी गए। उन्होंने सविनय अवज्ञा और भारत छोड़ो आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी निभाई। लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की घटनाएं उनके राष्ट्रप्रेम, अनुशासन और गांधीवादी सिद्धांतों से प्रेरित अहिंसात्मक विरोध की गवाही देती हैं, जहाँ उन्होंने सदैव देशहित को सर्वोपरि रखा।
यह हैं लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की घटनाएं और ऐतिहासिक घटनाएं, जिन्होंने उनके सार्वजनिक जीवन और राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाई।
स्वतंत्रता के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने भारतीय राजनीति में एक कर्मठ, ईमानदार और संवेदनशील नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई। उन्होंने कई अहम मंत्रालयों में सेवा दी और अपने कार्य से सार्वजनिक जीवन में उच्च आदर्श स्थापित किए।
भारत की स्वतंत्रता के बाद शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश सरकार में संसदीय सचिव नियुक्त किया गया। इस भूमिका में उन्होंने प्रशासनिक कार्यों की बारीकियों को नजदीक से समझा। इसके बाद वे गृह मंत्री बनाए गए, जहाँ उन्होंने पुलिस व्यवस्था में सुधारों की शुरुआत की। उन्होंने ‘पुलिस को जनता का सेवक’ मानने की सोच को बढ़ावा दिया, जो आज भी एक आदर्श मानी जाती है।
1951 में उन्हें केंद्र सरकार में रेल मंत्री बनाया गया। यह पद स्वतंत्र भारत में एक बड़ी जिम्मेदारी थी। उनके कार्यकाल में यात्री सुविधाओं और रेल विस्तार पर जोर दिया गया। लेकिन एक रेल दुर्घटना में कई लोगों की मृत्यु के बाद, उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया। यह कदम भारतीय राजनीति में ईमानदारी का प्रतीक बन गया और उनके सिद्धांतों की मिसाल बना।
लाल बहादुर शास्त्री को पं. नेहरू की मृत्यु के बाद भारत का दूसरा प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। उन्होंने एक कठिन समय में देश की बागडोर संभाली, जब राजनीतिक अस्थिरता और बाहरी खतरे दोनों देश के सामने थे।
पं. नेहरू के निधन के बाद देश असमंजस की स्थिति में था। ऐसे समय में, लाल बहादुर शास्त्री को उनकी ईमानदारी, सादगी और संतुलित दृष्टिकोण के कारण प्रधानमंत्री बनाया गया। वे आम जनता से जुड़े नेता थे और बिना किसी दिखावे के नेतृत्व करने में विश्वास रखते थे। उनके प्रधानमंत्री बनने से देश में स्थिरता का भाव आया।
प्रधानमंत्री बनने के एक वर्ष बाद ही उन्हें युद्ध जैसी गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ा। पाकिस्तान के आक्रमण के जवाब में उन्होंने साहसिक निर्णय लिए और सशस्त्र बलों का मनोबल बढ़ाया। युद्ध के दौरान उन्होंने राष्ट्रीय एकता और दृढ़ता का परिचय दिया, जिससे भारत की सैन्य और राजनीतिक ताकत वैश्विक मंच पर उजागर हुई।
युद्ध के साथ-साथ देश को खाद्यान्न संकट का भी सामना करना पड़ा। ऐसे समय में शास्त्री जी ने “जय जवान, जय किसान” का नारा दिया, जो सैनिकों की वीरता और किसानों की मेहनत को एक साथ सम्मानित करता था। यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय संकल्प बन गया जिसने भारत की आंतरिक ताकत को दर्शाया।
लाल बहादुर शास्त्री का निजी जीवन भी उनके सादगी और आदर्शों की मिसाल था। वे अपने परिवार के प्रति समर्पित थे और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ हमेशा खड़े रहे। उनका जीवन मूल्य और सोच देश के लिए प्रेरणा का स्रोत थी।
लाल बहादुर शास्त्री ने वर्ष 1928 में ललिता देवी से विवाह किया। दोनों का रिश्ता प्रेम और आदर पर आधारित था। शास्त्री जी ने विवाह के समय दहेज प्रथा का पूरी तरह विरोध किया और अपने परिवार में दहेज न लेने का उदाहरण पेश किया। उन्होंने अपने सामाजिक विचारों को अपने निजी जीवन में भी लागू किया और दहेज के बजाय केवल चरखा और खादी को स्वीकार किया, जो स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक थे। उनका परिवार सादगी और नैतिकता की मिसाल था, जिसने उनके नेतृत्व के गुणों को और मजबूत किया।
लाल बहादुर शास्त्री जी का व्यक्तित्व सादगी, ईमानदारी और नैतिकता का जीवंत उदाहरण था। उनके जीवन के प्रमुख मूल्य और सिद्धांत निम्नलिखित हैं:
इन सभी गुणों के कारण लाल बहादुर शास्त्री न केवल एक सफल राजनेता बने, बल्कि वे एक आदर्श और प्रेरणादायक व्यक्तित्व के रूप में आज भी याद किए जाते हैं। उनकी सादगी और नैतिकता ने उन्हें जन-जन के दिलों में एक सच्चा नेता बना दिया।
लाल बहादुर शास्त्री का निधन भारत के राजनीतिक इतिहास में एक दुखद और रहस्यमय घटना थी। उनकी मृत्यु के बावजूद, उनका योगदान और आदर्श आज भी लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। शास्त्री जी की विरासत भारतीय राजनीति और समाज में सदैव जीवित रहेगी।
ताशकंद समझौता और मृत्यु | Tashkent Agreement and Mysterious Death
जनवरी 1966 में भारत-पाकिस्तान के बीच ताशकंद समझौता हुआ, जिसमें दोनों देशों ने युद्ध विराम पर सहमति जताई। समझौता संपन्न करने के कुछ ही समय बाद, लाल बहादुर शास्त्री ताशकंद में अचानक रहस्यमय परिस्थिति में निधन हो गए। उनकी मौत के कारणों को लेकर आज भी कई सवाल और अटकलें बनी हुई हैं।
लाल बहादुर शास्त्री को उनके अद्वितीय साहस, नेतृत्व और देशभक्ति के लिए मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। यह भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है, जो उनके जीवन और कार्यों की महानता को दर्शाता है।
Lal bahadur shastri ka jivan parichay राष्ट्रीय एकता और सादगी का प्रतीक माना जाता है। अपने सरल और निष्कपट स्वभाव के कारण वे जनता के दिलों में गहरी छाप छोड़ गए। शास्त्री जी ने अपने जीवन में ईमानदारी, समर्पण और नैतिकता को सर्वोपरि रखा, जिससे वे हर वर्ग के लोगों के लिए आदर्श बने।
उनकी नीतियाँ और विचार आज भी प्रासंगिक हैं, खासकर उनका दिया हुआ “जय जवान, जय किसान” का नारा, जो देश की रक्षा और कृषि विकास दोनों के महत्व को दर्शाता है। यह नारा आज भी किसानों और जवानों के बीच प्रेरणा का स्रोत है।
शास्त्री जी के नेतृत्व में भारत ने कठिन समय में साहस और एकजुटता का परिचय दिया, Lal bahadur shastri ka jivan Parichay आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मजबूत संदेश है। उनकी सोच, आदर्श और कार्यशैली भारत के लोकतंत्र और विकास के लिए सदैव मार्गदर्शक रहेगी।
भारत के इतिहास में अनेक महान नेता हुए हैं, लेकिन लाल बहादुर शास्त्री जैसा सादा जीवन जीने वाला, ईमानदार और दृढ़ इच्छाशक्ति वाला नेता बहुत कम देखने को मिला है। वे केवल एक राजनीतिक नेता नहीं, बल्कि नैतिक मूल्यों और सच्ची देशभक्ति के प्रतीक थे। उनका नारा “जय जवान, जय किसान“ आज भी देश के प्रत्येक नागरिक को प्रेरणा देता है।
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय (अब पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर) में एक सामान्य कायस्थ परिवार में हुआ। उनके पिता शारदा प्रसाद श्रीवास्तव एक शिक्षक थे और माता का नाम रामदुलारी देवी था। जब वे केवल डेढ़ वर्ष के थे, तब उनके पिता का देहांत हो गया। उनकी परवरिश बहुत ही साधारण और संघर्षमय रही।
उन्होंने अपने नाम के आगे ‘श्रीवास्तव’ लगाने से इनकार कर दिया क्योंकि वे जाति प्रथा में विश्वास नहीं करते थे। बनारस (अब वाराणसी) में उन्होंने पढ़ाई की और काशी विद्यापीठ से स्नातक की डिग्री प्राप्त की, जहाँ उन्हें “शास्त्री” की उपाधि मिली, जो बाद में उनका स्थायी नाम बन गया।
लाल बहादुर शास्त्री महात्मा गांधी के विचारों से अत्यंत प्रभावित थे। उन्होंने 1921 में असहयोग आंदोलन में भाग लेकर अपनी शिक्षा अधूरी छोड़ दी। इसके बाद वे नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन सहित कई आंदोलनों में सक्रिय रहे। उन्होंने कई बार जेल यात्रा की, लेकिन कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।
उनकी सरलता, निष्ठा और समर्पण के कारण वे जल्दी ही कांग्रेस पार्टी में एक ईमानदार और भरोसेमंद कार्यकर्ता के रूप में पहचाने जाने लगे।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शास्त्री जी को कई महत्वपूर्ण प्रशासनिक जिम्मेदारियाँ सौंपी गईं। वे रेल मंत्री, गृह मंत्री, और योजना मंत्री जैसे कई मंत्रालयों में रहे। 1956 में रेल दुर्घटना के बाद उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, जो आज भी भारतीय राजनीति में ईमानदारी की मिसाल माना जाता है।
उनकी कुशल नेतृत्व शैली, सादगी और कर्मठता के कारण उन्हें पंडित नेहरू के निधन के बाद 9 जून 1964 को भारत का दूसरा प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया।
लाल बहादुर शास्त्री जी का कार्यकाल भले ही केवल 19 महीने का रहा, लेकिन उतने कम समय में उन्होंने देश को बड़ी मजबूती दी।
11 जनवरी 1966 को ताशकंद में ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर के कुछ घंटों बाद ही उनकी अचानक मृत्यु हो गई। सरकार ने इसे दिल का दौरा बताया, लेकिन कई लोगों और उनके परिवार ने इसे संदिग्ध माना।
उनकी मृत्यु आज भी एक अनसुलझा रहस्य बनी हुई है, क्योंकि न तो उनका पोस्टमॉर्टम हुआ और न ही उनकी मौत की रिपोर्ट सार्वजनिक की गई।
लाल बहादुर शास्त्री जी के जीवन की सबसे बड़ी विशेषता थी – सादगी, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा। वे न तो दिखावा करते थे, न ही सत्ता के पीछे भागते थे।
उनका पूरा जीवन भारत के युवाओं के लिए एक प्रेरणा है कि सादा जीवन और उच्च विचार अपनाकर भी देश की सेवा की जा सकती है।
उनकी स्मृति में अनेक संस्थानों, योजनाओं और स्थलों का नाम रखा गया है, जैसे:
लाल बहादुर शास्त्री जयंती हर साल 2 अक्टूबर को मनाई जाती है। यह दिन भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जन्मतिथि के रूप में मनाया जाता है, जिनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय (अब पं. दीनदयाल उपाध्याय नगर) में हुआ था। संयोग से यह दिन महात्मा गांधी की जयंती भी होती है, इसलिए यह तिथि राष्ट्रीय महत्व की बन जाती है।
शास्त्री जी ने अपने जीवन में सादगी, ईमानदारी और दृढ़ संकल्प का उदाहरण प्रस्तुत किया। उनका दिया गया प्रसिद्ध नारा “जय जवान, जय किसान” आज भी भारतीय समाज की आत्मा को दर्शाता है। उनकी जयंती के अवसर पर देशभर में उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है, स्कूलों, सरकारी संस्थानों और सामाजिक संगठनों में उनके विचारों और योगदान पर भाषण, निबंध प्रतियोगिता, और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि नेतृत्व केवल शक्ति से नहीं, बल्कि सेवा, कर्तव्य और ईमानदारी से किया जाता है — जैसा कि शास्त्री जी ने अपने पूरे जीवन में करके दिखाया।
यहां पढ़ें ऐसे ही महान लोगो की जीवन की कहानियां जो हमें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।
लाल बहादुर शास्त्री का बचपन अत्यंत कठिनाइयों से भरा हुआ था। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद उन्होंने शिक्षा को कभी नहीं छोड़ा।
लाल बहादुर शास्त्री का मूल उपनाम “श्रीवास्तव” था, लेकिन उन्होंने समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव का विरोध करने के लिए इसे त्याग दिया।
लाल बहादुर शास्त्री ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया और महात्मा गांधी के आंदोलनों से प्रेरित होकर कई बार जेल गए।
Lal bahadur shastri ka jivan parichay वास्तव में एक प्रेरणादायक गाथा है, जिसमें सादगी, ईमानदारी और निःस्वार्थ नेतृत्व के गुण स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। उन्होंने कठिन से कठिन परिस्थितियों में देश को एकजुट किया—चाहे वह भारत-पाक युद्ध का समय हो या किसानों की समस्याएं। उनके “जय जवान जय किसान” जैसे नारे आज भी जनमानस में गूंजते हैं।लाल बहादुर शास्त्री का जीवन केवल इतिहास नहीं, बल्कि एक ऐसी विरासत है जो हर युवा को नैतिकता, सेवा और आत्मबल के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य धरोहर बना रहेगा।
लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। बचपन में ही पिता का निधन हो गया, जिसके बाद उनका पालन-पोषण मिर्जापुर में ननिहाल में हुआ। कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने पढ़ाई जारी रखी और काशी विद्यापीठ से “शास्त्री” की उपाधि प्राप्त की। उनका जीवन सादगी, संघर्ष और देशभक्ति का प्रतीक है।
Lal bahadur shastri ka jivan parichay एक सादगीपूर्ण, ईमानदार और राष्ट्रभक्त नेता की प्रेरक कहानी है। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 को मुगलसराय, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और “जय जवान, जय किसान” जैसे प्रभावशाली नारों के माध्यम से देश को एकजुट किया। वे भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने और उनके नेतृत्व में देश ने कठिन समय में साहस दिखाया।
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय नामक स्थान पर हुआ था। उनका मूल नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था। उनके पिता, शरद प्रसाद श्रीवास्तव, एक सम्मानित शिक्षक थे, जिनका जीवन शिक्षा और सादगी से जुड़ा हुआ था।
लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की घटनाएं देशभक्ति, सादगी और सेवा की मिसाल हैं। उन्होंने 1921 में असहयोग आंदोलन में भाग लिया, 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान पहली बार जेल गए, और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भूमिगत रहते हुए आंदोलन को संगठित किया। स्वतंत्रता के बाद वे उत्तर प्रदेश सरकार और फिर केंद्र में विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे। उनके “जय जवान, जय किसान” जैसे नारे आज भी प्रेरणा देते हैं।
लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु 11 जनवरी 1966 को ताशकंद (उज़्बेकिस्तान, उस समय सोवियत संघ का हिस्सा) में हुई थी। वे भारत और पाकिस्तान के बीच हुए 1965 के युद्ध के बाद ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करने गए थे। उसी रात उनकी अचानक मृत्यु हो गई।
लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को मुगलसराय (अब पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर, उत्तर प्रदेश) में हुआ था। वे कायस्थ जाति से संबंध रखते थे।
उनके पिता का नाम श्री शारदा प्रसाद श्रीवास्तव था, जो एक स्कूल शिक्षक और बाद में राजस्व विभाग में क्लर्क थे, तथा माता का नाम रामदुलारी देवी था।
Authored by, Aakriti Jain
Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.
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