मीरा बाई के अनमोल वचन 

भक्ति, प्रेम और त्याग की प्रतीक मीरा बाई के अनमोल वचन आज भी हमें सच्चे प्रेम और ईश्वर की राह दिखाते हैं। आइए जानते हैं उनके प्रेरणादायक विचार!  

मीरा बाई के अमोल वचन  

"मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।" सच्चा प्रेम स्वार्थ रहित होता है। मीरा बाई ने भगवान कृष्ण को अपना सब कुछ मान लिया। 

प्रेम का सच्चा अर्थ  

"पग घुँघरू बाँध मीरा नाची रे।" भक्ति में डूबकर मीरा ने हर कष्ट को स्वीकार कर लिया और कृष्ण नाम का सुमिरन किया। 

भक्ति की राह  

"यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।"संसार में मोह माया विष के समान है, सच्चा सुख गुरु की शरण में है।  

संसार का मोह 

"मैं तो सांवरिया के रंग राची।" मीरा ने सांसारिक सुखों का त्याग कर कृष्णमय जीवन अपनाया। 

त्याग का संदेश

"जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।" भगवान कृष्ण पर अटूट विश्वास ही मीरा का सबसे बड़ा सहारा था। 

ईश्वर पर भरोसा 

"प्रेम न खेतो उपजे, प्रेम न हाट बिकाय।" सच्चा प्रेम खरीदा या बेचा नहीं जा सकता, ये तो हृदय की अनुभूति है। 

प्रेम और भक्ति का मेल  

"जोगी मत कर निरमोह।" धैर्य और विश्वास के साथ जीवन जीना ही असली भक्ति है।  

धैर्य और विश्वास 

"मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।" मीरा ने आत्मा तक समर्पित कर दी, सिर्फ कृष्ण के लिए। 

आत्मसमर्पण का भाव 

"मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सहज मिले अविनासी।" कष्टों के बीच भी भगवान की भक्ति हमें शांति देती है।  

पीड़ा में भक्ति  

"प्रेम गली अति सांकरी, तामें दो न समाय।" सच्चे प्रेम की राह तंग होती है, उसमें दो दिल एक होकर चलते हैं। 

सच्चा प्रेम अमर है  

मीरा बाई के वचन हमें सिखाते हैं कि सच्चा प्रेम निस्वार्थ होता है और भक्ति से हर मुश्किल राह आसान हो जाती है।  

मीरा बाई से सीखें प्रेम और भक्ति